कार्तिक पूर्णिमा कब हैं? जानें पूजा विधि, कथा, तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व (When is Kartik Purnima? Know puja vidhi, katha, date, shubh muhurat and importance):-हिन्दू पंचांग के मतानुसार हर माह में एक पूर्णिमा तिथि आती हैं, इस तरह कुल बारह माह में बारह पूर्णिमा तिथि आती हैं, इस तरह से एक वर्ष में बारह पूर्णिमा तिथियां आती है और किसी माह में अधिक मास होने पर एक ओर पूर्णिमा तिथि होने से तेरह पूर्णिमा तिथियां हो जाती हैं, उन सब पुर्णिमा तिथियों में से कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि का विशेष दान-पुण्य के लिए महत्व शास्त्रों में बताया गया हैं। प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि का अलग-अलग महत्व होता है, जिनमें देवों की पूजा-अर्चना की जाती हैं।
कार्तिक पूर्णिमा तिथि कहलाने का कारण:-कार्तिक पूर्णिमा इस दिन महादेवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसलिए इस दिन को "त्रिपुरा पूर्णिमा" भी कहते हैं। इस कारण से ही भगवान शिवजी के द्वारा कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन असुर का संहार करने से इस तिथि को कार्तिक पूर्णिमा तिथि कहा जाने लगा। इस दिन प्रमुख रूप से दीप दान की परम्परा होती हैं। यह पर्व पांच दिनों तक चलता हैं, जो कि देवप्रबोधिनी एकादशी तिथि से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तिथि के दिन पूर्ण होती हैं।कार्तिक पूर्णिमा जो व्यक्ति पूरे कार्तिक महीने स्नान करते हैं उनका नियम कार्तिक माह की पूर्णिमा को पूरा करता हैं।
इस दिन सायंकाल भगवान श्रीविष्णु का मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन व्रत, भगवान विष्णु व सत्यनारायण भगवान का पूजन एवं कथा को सुनना चाहिए। दान पुण्य करने पर समस्त तरह बुरे कार्यों से मुक्ति मिल जाती हैं।
◆इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो यह "महाकातिकी" होती है।
◆भरणी नक्षत्र होने से विशेष फल देती है।
◆लेकिन रोहिणी नक्षत्र होने पर इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता हैं।
कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि:-कार्तिक पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से भगवान की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जो इस तरह हैं:
◆जो भी मनुष्य कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करता हैं, उस मनुष्य को प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए।
◆उसके बाद में अपनी रोजाना की क्रियाएं पूर्ण करना चाहिए।
◆फिर स्वच्छ कपड़ों को पहनना चाहिए।
◆मनुष्य को कार्तिक पूर्णिमा के व्रत में किसी भी तरह का अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिए।
◆यदि व्रत में कुछ ग्रहण करना हो तो मनुष्य को फलो को आहार के रूप में ग्रहण करके व्रत कर सकते हैं।
◆व्रत करने वाले को स्त्री सहवास से दूर रहते हुए पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन कार्तिक पूर्णिमा के दिन करना चाहिए।
◆उसके बाद में गाय के शुद्ध घृत को दीपक में डालकर रुई से बनी हुई बाती को दीपक में रखकर भगवान श्रीलक्ष्मी नारायण जी के सम्मुख प्रज्वलित करना चाहिए।
◆फिर भगवान श्रीलक्ष्मी नारायण जी का षोडशोपचार कर्म से पूजन करना चाहिए।
◆इस दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा, कथा सुनी जाती हैं तथा पंजरी, केला, पंचामृत का प्रसाद चढ़ाते हैं।
◆भगवान श्रीसत्यनारायण देव जी की कथा का वांचन करना चाहिए, जिससे भगवान श्रीसत्यनारायण जी की अनुकृपा प्राप्त हो सके।
◆दूध से बनी हुई खीर का भगवान को नैवेद्य के रूप में अर्पण करना चाहिए।
◆सायंकाल श्रीलक्ष्मी नारायण जी की आरती करनी चाहिए।
◆फिर तुलसी माता के सामने घृत का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।
◆मनुष्य को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए।
◆घर में रोशनी एवं देवी-देवताओं की अनुकृपा को पाने के लिए सायंकाल दीपक को प्रज्वलित करना चाहिए।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा:-एक बार त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयाग राज में घोर तप किया। इस तप के प्रभाव से सम्मत जड़-चेतन जीव तथा देवता भयभीत हो गए। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराऐं भेजी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल सकी। आखिर ब्रह्माजी स्वयं उसके समन्व प्रस्तुत हुए और वर मांगने का आदेश दिया। त्रिपुर ने वर में मांगा-न देवताओं के हाथों से मरना चाहता हूँ और न ही मनुष्यों के हाथों से मरना चाहता हूँ। इस वरदान के बल पर त्रिपुर निडर अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं, उसने कैलाश पर भी चढ़ाई कर दी। परिणामतः महादेव तथा त्रिपुर निडर में घमासान युद्ध छिड़ गया। अंत में शिवजी ने ब्रह्माजी तथा विष्णुजी की सहायता से उसका संहार कर दिया। कार्तिक माह में इस दिन का महत्त्व बहुत बड़ा है। इस दिन क्षीर-सागर दान का अनन्त महात्मय हैं। क्षीर-सागर का दान चौबीस अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता हैं। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल मनाया जाता हैं।
कार्तिक पूर्णिमा की शुभ तिथि और शुभ मुहूर्त:-समस्त बारह महीनों में दान-पुण्य का सबसे बड़ा महीना कार्तिक मास का होता है, जिनमें कार्तिक पूर्णिमा तिथि तो सबसे उत्तम तिथि शास्त्रों में मानी गई हैं। भगवान श्रीहरिविष्णुजी चार माह की योगनिद्रा से सोकर उठते है और अपने प्रिय भक्तों के कार्य को सफल करने के लिए उनके बीच में निवास करते हैं।
वर्ष 2021 में कार्तिक मास 20 अक्टूबर 2021 को बुधवार से शुरू होगा और 19 नवम्बर 2021 को कार्तिक पूर्णिमा को शुक्रवार के दिन कार्तिक महीना का समाप्ति होगी।
कार्तिक पूर्णिमा की तिथि:-कार्तिक मास में 19 नवम्बर 2021 को शुक्रवार के दिन कार्तिक पूर्णिमा तिथि रहेगी।
कार्तिक पूर्णिमा तिथि:-कार्तिक पूर्णिमा तिथि 18 नवम्बर 2021 को गुरुवार के दिन प्रातःकाल 11 बजकर 59 मिनिट 41 सेकण्ड पर शुरू होगी।
कार्तिक पूर्णिमा तिथि की समाप्ति:-कार्तिक पूर्णिमा तिथि 19 नवम्बर 2021 को शुक्रवार के दिन दोपहर 14 बजकर 26 मिनिट 24 सेकण्ड पर समाप्त होगी।
इस तरह 19 नवम्बर 2021 को शुक्रवार के दिन उदया पूर्णिमा तिथि रहने से इस दिन को ही कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाएगी।
कार्तिक पूर्णिमा स्नान का महत्व:-कार्तिक पूर्णिमा बड़ी पावन तिथि मानी जाती हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि ने महापुनित पर्व कार्तिक पूर्णिमा तिथि को प्रमाणित किया हैं। अतः इसमें किये हुए स्नान, दान, होम, यज्ञ और उपासना आदि का अनन्त फल होता हैं। इस दिन गंगा स्नान एवं सायंकाल दीपदान का विशेष महत्व हैं, इस दिन सायंकाल भगवान श्रीविष्णु का मत्स्यावतार हुआ था, इस कारण इसमें किये गए दान, जपादि दस यज्ञों के समान ही फल प्राप्त होते हैं।
◆कार्तिक पूर्णिमा को स्नान का बड़ा ही महत्व हैं। जो व्यक्ति पूरे कार्तिक मास स्नान करते हैं उनका नियम कार्तिक पूर्णिमा को पूर्ण हो जाता हैं।
◆सत्यनारायण व्रत इस दिन भगवान सत्यनारायण का पूजन एवं व्रत किया जाता हैं तथा भगवान सत्यनारायण की कथा का श्रवण किया जाता है।
◆आरोग्य तथा उसकी रक्षा के लिए भी प्रतिदिन स्नान करना लाभप्रद हैं।
◆फिर भी माघ, वैशाख तथा कार्तिक में नित्य प्रतिदिन स्नान का विशेष महात्मय हैं।
◆मदन परिजात के अनुसार:-कार्तिक के महीने में जितेन्द्रिय रहकर प्रतिदिन स्नान करके एक ही समय भोजन करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत शरद पूर्णिमा से आरम्भ करके कार्तिक पूर्णिमा को सम्पन्न किया जाता हैं।
◆इसमें स्नान के लिए घर बर्तनों की अपेक्षा कुआं, तालाब, नदी आदि पवित्र माने गए हैं।
◆कुरुक्षेत्र, अयोध्या तथा काशी आदि तीर्थो पर स्नान करने का और भी अधिक महत्त्व हैं।
◆स्नान करने के लिए तालाब या नदी में प्रवेश से पूर्व हाथ-पांव आदि सभी अंग अच्छी तरह धो लेने चाहिए।
◆आचमन करने के बाद चोटी बांधकर जल-कुश से संकल्प करने का विधान विशेष हैं।
◆महर्षि अंगिरा के मतानुसार:-स्नान में कुश, दान में संकल्प का जल और जप में संख्या न होना अधिक फलदायी हैं।
◆धर्मपरायण भारत के बड़े-बड़े नगरों से लेकर छोटी-छोटी बस्ती में भी अनेक स्त्री-पुरुष सुबह जल्दी उठकर कार्तिक स्नान करके भगवान का भजन-व्रत करते हैं।
◆सायंकाल के समय देवमन्दिरों, चौराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीपक जलाते हैं और गंगाजी को दीपदान किया जाता हैं।
◆काशी में कार्तिक पूर्णिमा तिथि के दिन देवदीपावली महोत्सव के रूप में मनायी जाती हैं।
◆चान्द्रायण व्रत की समाप्ति भी आज के दिन होती हैं।
◆कार्तिक पूर्णिमा से आरम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को व्रत और जागरण करने से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं।
◆कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा आदि पवित्र नदियों के नजदीक स्नान के लिए सहस्त्रों नर-नारी एकत्र होते हैं, जो बड़े भारी मेले का रूप बन जाता है।
◆सिक्ख धर्मावलम्बी इस दिन गुरुनानक देव की जयन्ती उत्सव मनाते हैं।
◆लंबे बांस में लालटेन बांधकर किसी ऊंचे स्थान पर कण्डीलें प्रकाशित करते हैं। इन व्रतों में स्त्रियां बड़े मनोयोग लेती हैं।