श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् अर्थ सहित और लाभ(Shri Kashi Vishwanath Mangal Stotram with meaning and benefits):-श्रीस्वामी महेश्वरानन्दजी ने श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् की रचना की हैं, जो कि एक अद्भुत स्तोत्रम् हैं, यह स्तोत्रम् संस्कृत भाषा में लिखा गया हैं, इस स्तोत्रम् के श्लोकों को ग्यारहा माला के रूप में तैयार किया हैं। जो कि भगवान शिवजी के स्वरूप में काशी में स्थित श्रीविश्वनाथजी को शिवजी के रूप में गुणगान करने के लिए बनाया गया हैं। भगवान शिवजी के अनेक नाम हैं, उन नामों में से एक नाम श्रीकाशी विश्वनाथ भी हैं। जो मनुष्य शिवजी को अपनी पूजा-अर्चना से खुश करना चाहते है तो उनको इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए, जिससे उनके एक स्वरूप में शिवजी का गुणगान हो जावे और शिवजी का आशीर्वाद मिल जावे। भगवान शिवजी के रूप में श्री काशी में स्थित विश्वनाथ जी के सम्मुख शिवजी के शिवलिंग के सामने बैठकर इस स्तोत्रम् का वांचन करने से निश्चित रूप भगवान की अनुकृपा प्राप्त हो जाती हैं।
अथ श्रीकाशी विश्वनाथ मङ्गल स्तोत्रम् अर्थ सहित:-श्रीकाशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् के श्लोकों को ध्यान पूर्वक वांचन करने से पूर्व इन श्लोकों का मतलब भी मालूम होना जरूरी होता हैं, इसलिए इन श्लोकों का अर्थ सहित विवेचना इस तरह हैं-
गङ्गाधरं शशिकिशोरधरं त्रिलोकी
रक्षाधरं निटिलचन्द्रधरं त्रिधारम।
भस्मावधूलनधरं गिरिराजकन्या
दिव्यावलोकनधरं वरदं प्रपद्ये।।१।।
अर्थात्:-हे भोलेनाथजी! आप अपने मस्तक पर तीव्र गति से प्रवाहित होने वाली गंगा नदी के वेग को आप सम्भालने वाले हो एवं बाल सोमदेव को भी अपने मस्तक पर जगह देते हुए उनको भी सम्भालने वाले हो। आप धूलि या भस्म की राख आदि से युक्त करने वाले और अपनी अलौकिक नजर से पार्वतीजी को देखने वाले हो। हे शिवजी! आप फल की सिद्धि देने वाले हो, मैं आपकी छत्रछाया में हूँ।
काशीश्वरं सकलभक्तजनातिहारं
विश्वेश्वरं प्रणतपालनभव्यभारम्।
रामेश्वरं विजयदानविधानधीरं
गौरीश्वरं वरदहस्तधरं नमामः।।२।।
अर्थात्:-हे काशी में निवास करने वाले प्रभु! आप समस्त भक्त मनुष्य पर अपनी कृपा दृष्टि रखते हुए उनके कष्टों का अंत करने वाले हो। समस्त ब्रह्माण्ड के स्वामी! आप पर जो विश्वास भाव रखते हुए आपकी अरदास करते हैं उन भक्त मनुष्यों को अपनी छत्रछाया में रखते हुए उनकी समस्त तरह से बचाव करने की जिम्मेदारी को लेने वाले हो, आप भगवान श्रीरामजी के भी प्रभु हो, शांत स्वभाव से रहते हुए जीत को देने वाले एवं वर देने की छवि को धारण करने वाले हो। हे गौरीशंकरजी! आपको मैं नतमस्तक होकर वन्दना करता हूँ।
गङ्घोत्तमाङ्ककलितं ललितं विशालं
तं मङ्गलं गरलनीलगलं ललामम्।
श्रीमुण्डमाल्यवलयोज्ज्वलमञ्जुलीलं
लक्ष्मीशवरार्चितपदाम्बुजमाभजामः।।३।।
अर्थात्:-हे शिवजी! आप के उत्ताल के अंग पर अत्यंत शोभायमान गंगाजी हो रही है, जिनका स्वरूप बहुत ही खूबसूरत एवं व्यापक है, जो समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से कालकूट को ग्रहण करने से गले का वर्ण नीला होने से बहुत ही आकर्षक दिखाई देता हैं, जिनके गर्दन के ऊपर के अंग के गोलाकार भाग में नेत्र, श्रवण, नाक एवं मुहँ आदि होते हैं और जिनमें मस्तिष्क भी रहता हैं, उस अंग में खोपड़ी को माला के रूप में आभूषण को पहनने वाले हो, जिनके हाथों में सफेद या स्वच्छ कंगन के समान धागे को धारण करने वाले हैं, जो प्रेमपूर्व क्रीड़ा को करने वाले हैं। श्रीचक्रपाणी जी के द्वारा जिनके चरण कमल वाले भगवान शिवजी की वंदना एवं पूजा करते हैं। उन शिवजी की भक्ति हम करते हैं।
दारीव्र्यदुःखदहनं कमनं सुराणां
दीनार्तिदावदहनं दमनं रिपूणाम्।
दानं श्रियां प्रणमनं भुवनाधिपानां
मानं सतां वृषभवाहनमानमामः।।४।।
अर्थात्:-हे शिवजी! आप समस्त तरह के संकट एवं निर्धनता को हरण करने वाले है, जिनकी छवि देवताओं में शोभनियता से युक्त हैं, जो समस्त तरह की वेदना को नष्ट करने के लिए दावाग्नि की तरह स्वरूप को धारण करके समस्त तरह के अत्रियों का शमन करने वाले हैं, जो धर्म-सम्पत्ति की स्वामिनी लक्ष्मीजी को देने वाले है। मैं समस्त जगत के स्वामी को नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ, सदाचारी एवं योग्य पुरुषों के द्वारा माने जाने योग्य वृषभ की सवारी करने वाले शिवजी को हम अच्छी तरह से झुककर नमन करते हैं।
श्रीकृष्णचन्द्रशरणं रमणं भवान्याः
शशवत्प्रपन्नभरणं धरणं धरायाः।
संसारभारहरणं करुणं वरेण्यं
संतापतापकरणं करवै शरण्यम्।।५।।
अर्थात्:-हे शिवजी! आप श्रीकृष्णचन्द्रजी की रक्षा का भाव रखने वाले, माता पार्वती के स्वामी, जो आपकी पनाह में आते हैं उनका आप हमेशा पालन-पोषण एवं रक्षा करने वाले हो, जो पृथ्वी के भार को भी धारण करने वाले हो, जगत के भार को भी दूर करने वाले हो, आप दयनीय भाव को रखते हुए समस्त प्रकार के दुःख को समाप्त करने वाले हो। पूजनीय भगवान शिवजी से अरदास करता हूँ, की हे स्वामी! आप मुझे आप अपनी शरण में जगह देवे।
चण्डीपिचण्डिलवितुण्डधृताभिषेकं
श्रीकार्तिकेयक्लनृत्यकलावलोकम्।
नन्दीशवरास्यवरवाद्यमहोत्सवाढ्यं
सोल्लासहासगिरिजं गिरीशं तमीडे।।६।।
अर्थात्:-हे शिवजी! आपका चण्डी, पिचण्डिल एवं गणेशजी के शुण्ड के द्वारा जल से अभिषेक होता हैं, जो कार्तिकेय के मन को हरने वाली नाचने की कला को ध्यानपूर्वक देखने वाले हैं, जो नन्दीश्वर के मुख के समान सबसे बढ़िया गम्य से खुश होने वाले है तथा जो आनन्द एवं उत्साह से सबको खुश करने वाले हैं, मैं उन पर्वतों के स्वामी के गुणगान करता हूँ।
श्रीमोहिनीनिविडरागभरोपगूढ़ं
योगेश्वरेशवरहदम्बुजवासरासम्।
सम्मोहनं गिरिसुताञ्चितचंद्रचूडं
श्रीविश्वनाथमधिनाथमुपैमि नित्यम्।।७।।
अर्थात्:-हे शिवजी! आप श्री मोहिनी के पूरी तरह से तीव्र प्रेम से युक्त हृदय से लगाया रखने वाले हो, सिद्ध योगियों के प्रभु हो एवं उनके हृदय रूपी कमल में आनंदमय क्रीड़ा करते हुए हमेशा वास करने वाले हो, आप मुग्ध करने वाले हो, हिमालय राज की पुत्री के द्वारा आपकी पूजा की गई हो, समस्त लोकों के स्वामी श्रीजगत स्वामी की मैं रोजाना नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ।
आपद् विनश्यति समृध्यति सर्वसम्पद्
विघ्नाः प्रयान्ति विलयं शुभम्भ्युदेति।
योग्याङ्गनाप्तिरतुलोत्तमपुत्रलाभो
विश्वेश्वरस्त्वमिमं पठतो जनस्य।।८।।
अर्थात्:-हे शिवजी! आपके श्रीकाशीविश्वनाथ के स्तोत्रं के श्लोकों को जो मनुष्य सही तरीके से वांचन करता हैं, उस मनुष्य की समस्त तरह की परेशानियां का अंत हो जाता है और उस मनुष्य को समस्त तरह के धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होकर सुख मिल जाता हैं, जिससे उसके जीवन में आने वाली रूकावटें दूर हो जाती हैं और उस मनुष्य के जीवन में समस्त प्रकार से मंगल होने लगता हैं। उस मनुष्य को सुशील व गुणगान पत्नी की प्राप्ति हो जाती है और सुशील वत्स सन्तान की प्राप्ति हो जाती हैं।
वन्दी विमुक्तिमधिगच्छति तूर्णमेति
स्वास्थ्यं रुजार्दित उपैति गृहन प्रवासी।
विद्यायशोविजय इष्टसमस्तलाभः
सम्पद्यतेSस्य पठनात् स्तवनस्य सर्वम्।।९।।
अर्थात्:-हे शिवजी! आपके श्रीकाशीविश्वनाथ मंगल स्तोत्रं के श्लोकों का वांचन जो में करते हैं, उनको किसी दूसरे के द्वारा बंधे होने के भाव से मुक्ति मिल जाती हैं, जो मनुष्य असाध्य व्याधि से ग्रसित होते हैं उनकी वह व्याधि ठीक हो जाती हैं और निरोग्यता कि प्राप्ति हो जाती हैं, जो अपने वतन को छोड़कर दूसरे वतन में गया हुआ मनुष्य जल्दी वापस अपने वतन लौट आता हैं, शिक्षा, सभी जगह पर जीत और सभी तरह की मन की इच्छाओं की प्राप्ति हो जाती हैं।
कन्या वरं सुलभते पठनादमुष्य
स्तोत्रस्य धान्यधनवृद्धिसुखं समिच्छन्।
किं च प्रसीदति विभुः परमो दयालुः
श्रीविश्वनाथ इह सम्भजतोSस्य साम्बः।।१०।।
अर्थात्:-हे शिवजी! आपके श्रीकाशीविश्वनाथ मंगल स्तोत्रं के श्लोकों का वांचन जो कोई भी लड़की करती हैं उस लड़की को अपनेमन के अनुसार पति मिल जाता हैं, धन-धान्य के भण्डार भर जाते हैं और समस्त तरह से जीवन में सभी कामनाओं की पूर्ति हो जाती हैं और उस मनुष्य पर मुख्य रूप से कृपालु भगवान श्री विश्वेशवर भगवती समत खुश होकर अपना आशीर्वाद प्रदान कर देते हैं।
काशीपीठाधिनाथेन शङ्कराचार्यभिक्षुणा।
महेश्वरेण ग्रथिता स्तोत्रमाला शिवारपीता।।११।।
अर्थात्:-हे शिवजी!श्रीस्वामी महेश्वरानन्दजी काशीपीठ के शंकराचार्य पद का सम्मान प्राप्त करते हुए श्रीकाशीविश्वनाथ के स्तोत्रं के श्लोकों की माला को तैयार किया हैं। जो कि भगवान श्रीविश्वनाथजी को समर्पण किया हैं।
।।इति श्रीकाशीपीठाधीश्वरशङ्कराचार्य श्रीस्वामि महेश्वरानन्द सरस्वती विरचितं श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् के वांचन से सम्बंधित पूजा-विधि (Puja vidhi related to recitation of Shri Kashi Vishwanath Mangal Stotram):-मनुष्य को किसी भी स्तोत्रम् के वांचन से पूर्व स्तोत्रम् के बारे में उसकी पूजा विधि की जानकारी लेना भी जरूरी होता हैं, पूजा-विधि को जानकर जो मनुष्य स्तोत्रम् का वांचन करते हैं, तो उस स्तोत्रम् से सम्बन्धित भगवान का आशीर्वाद मिल जाता हैं और उनकी कृपा दृष्टि भी मिल जाती है-
◆मनुष्य को श्रीकाशीनाथ विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् का वांचन शुरू करने से पहले अपने मन को केंद्रित करना चाहिए।
◆जिस दिन श्रीकाशीनाथ विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् का वांचन शुरू करना होता हैं, उस दिन मनुष्य को प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए।
◆फिर अपनी रोजाना की क्रियाओं को सम्पन्न करने के बाद में स्वच्छ कपड़ों को पहनना चाहिए।
◆मन में यदि नियमित रूप से वांचन करना हो तो या यदि नियमित रूप से वांचन नहीं कर पाते हो तो दिन विशेष का मन ही मन में अपने देव को साक्षी मानते हुए संकल्प लेना चाहिए।
◆यदि मनुष्य नियमित या दिन विशेष में श्रीकाशीनाथ विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् का वांचन का स्थान को निश्चित रखना चाहिए। यदि मनुष्य मंदिर परिसर में वांचन का स्थान निर्धारित करते हैं, तो मन्दिर परिसर में करना चाहिए।
◆यदि अपने निवास स्थान में स्थित पूजाघर या अपने घर में करना चाहते हो तो भी स्थान का चयन करके ही शुरू करना चाहिए।
◆दिन विशेष रूप में स्तोत्रम् का वांचन करना हो तो सोमवार दिन उत्तम रहता हैं, क्योंकि भगवान शिवजी का दिन होता हैं।
◆मन्दिर में तो भगवान शिवजी की प्रतिमा के सामने बैठकर करना चाहिए।
◆यदि घर पर स्तोत्रम् का वांचन करना हो तो भगवान शिवजी की एक प्रतिमा या फोटू जिसमें उनके समस्त परिवार के सदस्य हो उस प्रतिमा को किसी साफ जगह पर बाजोट पर लाल कपड़े को बिछाकर स्थापित करना चाहिए।
◆सबसे पहले मनुष्य को बिछावन के रूप में यदि कुश बिछावन मिल जावें तो उसका उपयोग लेना चाहिए। अन्यथा कोई भी ऊनि बिछावन या दूसरी बिछावन काम में ले सकते हैं।
◆फिर प्रतिमा के सामने बैठकर भगवान शिवजी को अपने पूजा जगह पर आने के लिए नियंत्रण देते हुए उनका नाम लेते हुए उनको बुलाना चाहिए।
◆उसके बाद में "ऊँ नमः शिवायः" मंत्र का वांचन करते हुए सबसे पहले स्वच्छ तोय से या गंगाजल से शिवजी के शिवलिंग पर तोय की धीमी गति की धारा को प्रवाहित करते हुए तोय को अर्पण करना चाहिए।
◆फिर शिवलिंग पर गुड़हल, सफेद आक या धतूरे के फूल को अपनी सुविधानुसार के अनुसार लेकर उनको अर्पण करना चाहिए।
◆फिर इत्र आदि से खुशबू, चावल, दिप, धूपबत्ती एवं नैवेद्य आदि को अर्पण करना चाहिए।
◆फिर धतूरे के फल, भाँग एवं गन्ने के रस का भोग लगाना चाहिए।
◆फिर शिवलिंग के सम्मुख श्रीकाशीनाथ विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् का वांचन शुरू करना चाहिए।
◆श्रीकाशीनाथ विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् का वांचन पूर्ण होने पर शुद्ध गाय के घृत से दीपक को प्रज्वलित करते हुए आरती करनी चाहिए।
◆आरती के बाद नतमस्तक होकर उनको नमन करते हुए मन ही भगवान से अपने मन की इच्छाओं की पूर्ति के लिए उनकी कृपा दृष्टि के लिए उनसे अरदास करनी चाहिए।
श्रीकाशी विश्वनाथ जी का मन्त्र:-श्रीकाशी विश्वनाथ जी का मन्त्र का उच्चारण करने पर मनुष्य को उचित फल मिल सकते हैं, मंत्र इस तरह हैं-
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः।।
अर्थात्:-जो मनुष्य श्रीकाशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् को वांचन करते हैं, उन मनुष्य को समस्त तरह के फल मिलने में किसी भी तरह से किसी भी प्रकार की कोई शंका नहीं होती हैं।
श्रीकाशी विश्वनाथ मङ्गल स्तोत्रम् के वांचन से मिलने वाले लाभ एवं महत्त्व (Benefits and importance of reading Srikashi Vishwanath Mangal Stotram):-मनुष्य को श्रीकाशी विश्वनाथ मङ्गल स्तोत्रम् का वांचन करने से निम्नलिखित लाभ मिलते हैं-
◆शादी में देरी या शादी का नहीं हो पाने पर:-जिन लड़कीयों की शादी नहीं हो पाती है या शादी में देरी हो रही है उन लड़कियों को श्रीकाशीविश्वनाथ के स्तोत्रं के श्लोकों का वांचन करने से निश्चित रूप शादी हो जाती हैं।
◆सुयोग्य एवं मन की इच्छानुसार पति पाने हेतु:-जिन लड़कियों को अपने रूप-यौवन के अनुसार सुंदर एवं सुयोग्य पति की चाहत होती हैं, उन लड़कियों को नियमित रूप से इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।
◆धन-संपत्ति की प्राप्ति हेतु:-मनुष्य को मेहनत करने पर भी धन-संपत्ति से सम्बंधित परेशानी होने पर इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए, जो हमेशा इस स्तोत्रम् का वांचन करते हैं उन मनुष्य को अपने जीवनकाल में किसी के भी आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती हैं और धन-समृद्धि का भंडार भर जाता हैं।
◆मन की समस्त इच्छाओं को पूरा करने हेतु:-मनुष्य की अनेक तरह की ख्वाहिशे होती हैं, उन ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए रात-दिन एक कर देते हैं, लेकिन उन मनुष्य की ख्वाहिशे पूर्ण नहीं हो पाती हैं, उन मनुष्य को इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।
◆जीवन की समस्त बाधाओं से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य को अपने जीवनकाल में आने वाली बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए इस स्तोत्रम् का पाठन करना चाहिए।
◆समस्त तरह के सांसारिक एवं भौतिक सुख-सुविधाओं को पाने हेतु:-मनुष्य को अपने जीवनकाल में बहुत सारी भौतिक एवं सांसारिक सुख-सुविधाओं की जरूरत पड़ती हैं, उन समस्त सुख-सुविधाओं को पाने का एकमात्र उपाय श्रीकाशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् है, इसके श्लोकों के वांचन से सुख-सुविधाओं की प्राप्ति हो जाती हैं।
◆सुशील व गुणगान भार्या की प्राप्ति हेतु:-मनुष्य अपनी दाम्पत्य जीवन के लिए सुशील एवं गुणवान भार्या की चाहत रखते हैं, उन मनुष्य को इस चाहत को पूरा करने के इस स्तोत्रम् का वांचन हमेशा करना चाहिए।
◆गुणवान वत्स सन्तान की प्राप्ति हेतु:-मनुष्य को गुणवान वत्स सन्तान को पाने हेतु इस स्तोत्रम् का पाठन करना चाहिए।
◆बन्धन में फंसे होने पर मुक्ति हेतु:-मनुष्य पर दूसरे मनुष्य के द्वारा जलन वश गलत कामों से मनुष्य को बन्धन में फंसा देते हैं,उन बन्धन से मुक्ति पाने हेतु इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।
◆व्याधियों से मुक्ति हेतु:-मनुष्य अपने जीवनकाल में अनेक तरह की व्याधियों से घिरा रहता हैं, उन व्याधियों से बचने के लिए एवं निरोग्यता को पाने के लिए मनुष्य को श्रीकाशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम् का वांचन करते रहना चाहिए।
◆दूसरे देश में गए हुए परिजन को वापस अपने देश बुलाने के लिए:-मनुष्य को अपनी जीविका के लिए दूसरे देश में जाना पड़ता हैं, उस जीविका को कमाने के चक्कर मनुष्य अपने देश में निवास करने वाले परिजनों को भूल जाते हैं, उन मनुष्य को अपने देश बुलाने के लिए इस स्तोत्रम् का वांचन करने से निश्चित रूप से दूसरे देश में गए मनुष्य वापस आ जाते हैं।
◆छात्रवृत्तिधारी की यादास्त शक्ति बढ़ाने हेतु:-छात्रवृत्तिधारी की यादाश्त शक्ति कमजोर होती हैं और पढ़ने में रुचि नहीं होने वालों को नियमित रूप से इस स्तोत्रम् का वांचन करने से निश्चित रूप से यादाश्त शक्ति बढ़ जाती है और उच्च विद्या को प्राप्त करते हैं।
◆सभी तरह की मन की इच्छाओं को पूरा करने एवं सभी जगह पर जीत पाने हेतु:-मनुष्य को अपने मन की कामनाओं को पूरा करने एवं सभी जगह पर अपनी कामयाबी पाने हेतु इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।