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Sunday, January 9, 2022

शुक्र कवचं अर्थ सहित(Shukra Kavacham with meaning)

                 



शुक्र कवचं अर्थ सहित(Shukra Kavacham  with meaning):-शुक्र कवचं स्तोत्रं शुक्र ग्रह के बुरे असर को कम करने का होता हैं। शुक्र ग्रह के गुणगान करने का एक असरदार कवचं होता हैं। जिस किसी मनुष्य की जन्मकुंडली में शुक्र ग्रह के कमजोर स्थिति में एवं बुरे ग्रहों के असर में होने पर सिद्ध शुक्र कवचं स्तोत्रं का वांचन हमेशा करने पर शुक्र ग्रह से सम्बंधित बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती हैं।

ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को सुंदरता एवं किसी को अपने मोह में मोहित करने का, शरीर के सुख से सम्बंधित, भोग-विलास एवं कामक्रीड़ा का कारक माना गया हैं। मनुष्य को समस्त तरह सूख-ऐश्वर्य एवं भौतिक जीवन के साधनों का उपभोग के लिए शुक्र ग्रह को मजबूती प्रदान करना चाहिए, जिससे समस्त सुखों की प्राप्ति हो सके।

सुख के अधिष्ठाता शुक्र को कलत्र कारक ग्रह भी कहा जाता है। अतः इसका कामुकता, भोग विलास, सौन्दर्य, प्रेम, विवाह, कला, गीत-संगीत व जीवन के अन्य सभी सुखों से सीधा एवं गहरा सम्बन्ध हैं।
शिष्टता, शान्ति, धीरज और प्रेम का प्रतीक शुक्र समरसता और मित्रता का ग्रह हैं। 
इक्कीस दिन में शुक्र ग्रह एक राशि को पार करने का समय लेता हैं। शुक्र ग्रह दो राशियों के स्वामी होते हैं, पहली वृषभ राशि एवं दूसरी तुला राशि होती हैं। इस तरह एक राशि तो स्थिर एवं चर या चल्यामान प्रवृति की होती हैं। यही वजह है, की शुक्र ग्रह में स्थिरता एवं गतिशीलता दोनों गुण मिलते हैं।
पुराणों के अनुसार दैत्यों के गुरु का पद शुक्र को दिया गया हैं। 
मृत संजीवनी विधासिद्ध शुक्र को देवताओं के गुरु बृहस्पति से भी अधिक ज्ञानवान बताया गया हैं।
शुक्र आकार में अष्टभुजाकार, कोमल, स्त्रीलिंग, विप्रवर्ण, जलतत्व, रजोगुणी, दक्षिण-पूर्व दिशा का स्वामी, वात-पित प्रकृति वाला, लम्बाई में सामान्य, श्वेत रंग का एक शुभ ग्रह हैं।
शुक्र ग्रह पच्चीस से अठाईस वर्ष की अवस्था में अपनी महादशा या अन्तर्दशा आने पर मनुष्य की भाग्योन्नति कराता हैं। 
शुक्र ग्रह को सूर्य ग्रह के समान ही कान्तिवान एवं आकर्षक ग्रह कहा जाता हैं। शुक्र ग्रह के बुध ग्रह एवं शनि ग्रह मित्र ग्रह होते हैं। शुक्र ग्रह का मुख्य वार शुक्रवार होता हैं।

शुक्र ग्रह के कमजोर होने पर मिलने वाले नतीजे:-जब शुक्र ग्रह निर्बल, पापी ग्रहों के प्रभाव से पीड़ित हो जाते है, सूर्य ग्रह के नजदीक आकर अस्तं हो जाते है और नीच राशि अर्थात् मेष राशि में बैठने पर मनुष्य के दाम्पत्य जीवन में क्लेश एवं कडुवाहट को पैदा करते है।
◆जब जन्मकुंडली में पहले घर या सातवें घर से यदि शुक्र ग्रह त्रिक घरों में बैठे होते हैं या बुरे भावों षष्ठम घर, अष्टम घर या द्वादश घर में बैठ जाते हैं, तब मनुष्य के जीवन काल में उथल-पुथल को शुरू कर देते हैं।
◆जब शुक्र ग्रह जन्मकुंडली में सूर्य ग्रह या मंगल ग्रह या शनि ग्रह या राहु ग्रह या केतु ग्रह के साथ एक साथ एक ही घर में बैठते हैं या एक-दूसरे पर परस्पर देखते हैं या पाप मध्यत्व हो तब मनुष्य का विवाह नहीं होने देते हैं, विवाह को बहुत देर से करवाते है, जाति से बाहर विवाह करवाते है, अलगाव एवं तलाक आदि स्थितियों को उत्पन्न कर देते हैं।।
◆जब जन्मकुंडली में शुक्र ग्रह जिस घर में बैठा होता हैं, उस घर से गिनने पर यदि बारहवें घर, पहले घर, दूसरे घर, चौथे घर, सातवें घर, आठवें घरों में सूर्य ग्रह, मंगल ग्रह, शनि ग्रह, राहु ग्रह बैठे होते है, तब मनुष्य के दाम्पत्य जीवन को अस्थिर कर देते हैं। मांगलिक दोष के समान ही प्रभावित करते हैं।
◆जन्मकुंडली के दूसरे घर में ,छठे घर में, दशवें घर में शुक्र ग्रह के बैठने पर अशुभ फल ही मिलते हैं और छठे घर में बैठने पर पूरी तरह से समस्त अच्छे फल नहीं मिलते हैं।
◆शुक्र ग्रह सुंदरता एवं आकर्षण का कारक होता है, जब जन्मकुंडली में शुक्र ग्रह कमजोर स्थिति में होता है, तब मनुष्य में सभी तरह के आकर्षण के गुण होने पर भी मनुष्य अपने तरफ किसी को आकर्षित नहीं कर पाता है, इसलिए मनुष्य को शुक्र कवचं स्तोत्रं के वांचन को शुरू करके अपने आकर्षण शक्ति को बढ़ाना चाहिए।

करन्यासः-जब किसी भी मंत्रों का उच्चारण करते हुए उनका पाठन करते समय दोनों हाथों के द्वारा विशेष तरह की मुद्रा रचना को बनाने की प्रक्रिया को करन्यास कहते हैं। शुक्र कवचं स्त्रोतं के वांचन से पूर्व करन्यास करना चाहिए। जो इस तरह होता है, जिसमें पांचों अंगुलियों एवं हथेली के बीच के भाग के द्वारा मुद्रा का निर्माण किया जाता है। इस तरह समस्त अंगुलियों एवं हथेली के बीच के भाग से मुद्रा को बनाकर नमस्कार करते हैं।

गां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।

गीं तर्जनीभ्यां नमः। 

गूं मध्यमाभ्यां नमः।

गैं अनामिकाभ्यां नमः।

गौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

गः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।।


अंगन्यासःजब किसी भी देवी-देवता की पूजा-अर्चना अथवा मंत्रोच्चारण करते हुए विभिन्न अंगों को पवित्र करने की धारणा से किया जाने वाला स्पर्श को अंगन्यासः कहते हैं। शुक्र देव की पूजा-अर्चना से पूर्व उनका भी अंगन्यास किया जता हैं। शरीर के विभिन्न अंगों की जगहों को अलग-अलग मन्त्रों से उच्चारित करते हुए उनको शुद्ध एवं पावन किया जाता हैं।

गां हृदयाय नमः।

गीं शिरसे स्वाहा।

गूं शिखायै वषट्।

गैं कवचाय हुम्।

गौं नेत्रत्रयाय वौषट्।

गः अस्त्राय फट्।

भूभुर्वस्सुवरोमिति दिग्बंधः।।


अथ श्री शुक्र कवचं स्त्रोतं अर्थ सहित:-श्रीशुक्र कवचं स्तोत्रं का पूर्ण अर्थ सहित व्याख्यान इस तरह है: 


भारद्वाज ऋषि उवाच:-श्री गणेशाय नमः! भारद्वाज ऋषि कहते है, की भगवान गणेश जी आपकी वंदना करते हुए। शुक्र ग्रह के स्वामी शुक्र देवता को प्रसन्नता के लिए अथ शुक्र कवचं स्तोत्रं को लिख रहा हूँ।

ऊँ अस्य श्रीशुक्रकवचस्तोत्रमन्त्रस्य भारद्वाज ऋषिः।
अनुष्टुप् छन्दः! श्रीशुक्रदेवता! शुक्रप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।।
अर्थात्:- श्री शुक्र कवच स्तोत्रं मन्त्र की रचना श्री भारद्वाज ऋषिवर ने की थी, अनुष्टुप् छंद है एवं श्रीशुक्र देवता हैं। शुक्र ग्रह की पीड़ा के निवारण करने के लिए एवं श्रीशुक्र जी की प्रसन्नता के लिए श्री शुक्र कवचं स्तोत्रं के जप में विनियोग किया जाता हैं।

ध्यानम्:-श्री शुक्र कवचं स्त्रोतं को वांचन करने से पहले मनुष्य को शुक्र देवता पर पूर्ण रूप से विश्वास करना चाहिए और उनकी पूजा-अर्चना से पहले उनको मन ही मन से पूर्ण आस्था से स्मरण करना चाहिए। मन ही मन में उनके रूप की छवि को रखते हुए उनका ध्यान करना चाहिए। 


अथ श्री शुक्र कवचं स्त्रोतं अर्थ सहित:-अथ श्री शुक्र कवचं स्त्रोतं का वांचन हमेशा सही समय पर करते रहने पर मनुष्य को फायदा मिलता है, श्री शुक्र कवचं स्तोत्रं में शुक्र देवता के गुणों का बखान किया गया हैं, जो इस तरह हैं:

 


मृणालकुन्देन्दुपयोजसुप्रभं पीताम्बरं प्रसृतमक्षमालिनम्।
समस्तशास्त्रार्थविधिंमहान्तं ध्यायेत्कविवाञ्छितमर्थ सिद्धये।।1।।

ऊँ शिरो मे भार्गवः पातु भालं पातु ग्रहाधिपः।
नेत्रे दैत्यगुरुः पातु श्रोते मे चन्दनद्युतिः।।2।।

पातु मे नासिकां काव्यों वदनं दैत्यवन्दितः।
वचनं चोशनाः पातु कंठं श्रीकण्ठभक्तिमान्।।3।।

भुजौ तेजोनिधिः पातु कुक्षिं पातु मनोव्रजः।
नाभिं भृगुसुतः पातु मध्यं पातु महिप्रियः।।4।।

कटिं मे पातु विश्वात्मा ऊरु मे सुरपूजितः।
जानुं जाड्यहरः पातु जङ्घे ज्ञानवतां वर।।5।।

गुल्फौ गुणनिधिः पातु पातु पादौ वराम्बरः।
सर्वाण्यङ्गानि मे पातु स्वर्णमालापरिष्कृतः।।6।।

य इदं कवचं दिव्यं पठति श्रद्धायान्वितः।
न तस्य जायते पीड़ा भार्गवस्य प्रसादतः।।7।।

अर्थात्:-हे शुक्र देवजी! आपके दिव्य या अति सुन्दर या अलौकिक कवच को जो मनुष्य तीनों सन्ध्याकाल अर्थात् प्रातःकाल, मध्याह्न एवं सायंकाल के समय श्रद्धाभाव से वांचन करता है, उस मनुष्य की समस्त तरह की पीड़ाओं को आप हरण कर देते हो और मनुष्य की समस्त तरह की इच्छाओं को पूर्ण कर देते हो। 

।।इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे शुक्रकवचं समपूर्णम्।।


शुक्र कवचं स्तोत्रं के वांचन करने का तरीका:-जिस किसी मनुष्य की जन्मकुंडली में शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव पड़ रहे होते हैं, उनको अपनी जन्मकुंडली को किसी जानकार ज्योतिषी से अवलोकन कराना चाहिए, उनके द्वारा बताए अनुसार इस कवच का वांचन विधिपूर्वक करना चाहिए।
◆शुक्र कवचं स्तोत्रं का वांचन किसी भी माह के शुक्लपक्ष के शुक्रवार से शुरू करना चाहिए।
◆शुक्रवार की संख्या अपनी इच्छानुसार अपने कार्यसिद्धि तक इस ग्यारहा, इक्कीस, इकतीस या इक्यावन की संख्या या जीवनकाल में हमेशा के हिसाब से करना चाहिए।
◆जिस दिन शुक्रवार हो उस दिन मनुष्य को सवेरे जल्दी उठकर अपनी जीवनचर्या जैसे स्नानादि आदि से निवृत होना चाहिए।
◆उसके बाद स्वच्छ सफेद या हरे रहंग के कपड़ो को धारण करना चाहिए।
◆फिर अपने घर में किस भी स्थान या पूजा स्थल की जगह को साफ-सफाई करनी चाहिए।
◆उसके बाद में लकड़ी के बाजोठ को लेकर उस पर स्वच्छ पिला या भगवा रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए।
◆ततपश्चात उस बिछे पीले रंग के कपड़े पर शुक्र देव की मूर्ति या फोटू को विधिपूर्वक विराजित करना चाहिए।
◆फिर शुक्र देव को विराजित करके समस्त पूजा सामग्री को अपने पास रखकर स्वच्छ बिछावन को बिछाकर अपना मुहँ पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर पद्मासन लगाकर बैठ जाना चाहिए।
◆फिर मन ही मन में अपने इष्ट को याद करते हुए शुक्र देव को अपनी पूजा में आने के लिए आमंत्रण करना चाहिए। उसके बाद में षोडशोपचार पूजा कर्म से शुक्रदेव की पूजा अर्चना करनी चाहिए।

षोडशोपचारैंः पूजा कर्म:-इस तरह भगवान शुक्रदेव जी का षोडशोपचारैंः पूजा कर्म करना चाहिए

पादयो र्पाद्य समर्पयामि, हस्तयोः अर्ध्य समर्पयामि,

आचमनीयं समर्पयामि,पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि

शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि, वस्त्रं समर्पयामि,

यज्ञोपवीतं समर्पयामि, गन्धं समर्पयामि,

अक्षातन् समर्पयामि, अबीरं गुलालं च समर्पयामि,

पुष्पाणि समर्पयामि, दूर्वाड़्कुरान् समर्पयामि,

धूपं आघ्रापयामि, दीपं दर्शयामि, 

नैवेद्यं निवेदयामि, ऋतुफलं समर्पयामि, 

आचमनं समर्पयामि,

ताम्बूलं पूगीफलं समर्पयामि

दक्षिणांं च समर्पयामि।।


◆जिनमें स्नान करवाना, वस्त्र अर्पण करना, गन्ध, अक्षत, अबीर-गुलाल, फूल, धूप, दिप तथा नैवेद्य आदि को अर्पण करना चाहिए।
◆उसके बाद में शुद्ध गाय के घृत को एक दीपक में भरकर दीपक को प्रज्वलित करना चाहिए।
◆फिर अपने पूर्ण विश्वास एवं श्रद्धाभाव को रखते हुए शुक्र देव को याद करते हुए शुक्र कवचं स्तोत्रं का वांचन शुरू करना चाहिए।
◆जब शुक्र कवचं स्तोत्रं पूर्ण हो जाता हैं, तब शुक्र देव की आरती करना चाहिए और आरती को समस्त घर के सदस्यों को भी देना चाहिए।
◆शुक्रदेव जी शुक्र ग्रह की निर्बलता को दूर करने का अरदास करते हुए उनसे आशीष लेना चाहिए।
◆फिर किसी भी स्थान पर या गौशाला में जाकर अपने सामर्थ्य के अनुसार सफेद गाय या जो भी रंग की गाय मिले उन गायों को हरा चारा अपने हाथ से खिलाना चाहिए।
◆इस तरह हर शुक्रवार को यह प्रक्रिया करते रहना चाहिए। जब तक कि शुक्र ग्रह से सम्बंधित अच्छे फल नहीं मिलने लगते है या जीवनभर भी कर सकते हैं।

अथ श्रीशुक्र कवचं स्तोत्रं के वांचन से मिलने वाले फायदे:-अथ श्री शुक्र कवचं स्तोत्रं के वांचन से निम्नलिखित फायदे मिलते है, जो इस तरह हैं:
◆मनुष्य की जन्मकुंडली में शुक्र ग्रह के कमजोर एवं बुरे प्रभाव में होने पर शुक्र कवचं स्तोत्रं का वांचन करने से शुक्र ग्रह को मजबूती मिलती है। 
◆शुक्र ग्रह जिस भाव के स्वामी एवं कारकेश होते है, उससे सम्बन्धित अच्छे फल देने लगते हैं।
◆सांसारिक जीवन में यदि पति या पत्नी को एक-दूसरे का प्रेम एवं शारीरिक सुख नहीं मिलता हैं, तब उनको शुक्र कवचं स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए। जिससे उनको सांसारिक एवं शारीरिक सुख की प्राप्ति हो सके।
◆जिन मनुष्य की जन्मकुंडली में शुक्र ग्रह की बुरे प्रभाव की महादशा या अन्तर्दशा चल रही होती है, तब उन मनुष्य को शुक्र कवचं स्तोत्रं का वांचन शुरू कर देना चाहिए, जिससे शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव से मुक्ति मिल सके।
◆मनुष्य को अपने जीवनकाल में समस्त तरह शारिरीक सुख, आर्थिक सुख एवं भौतिक सुख-साधनों की जरूरत होती है, वह इन साधनों को पाने में जीवनभर लगा रहता है, तब भी यह साधन उनको नहीं मिल पाते है, तब उनको शुक्र कवचं स्तोत्रं के वांचन को शुरू करने पर सभी तरह के सुख मिलने लग जाते हैं।
◆शुक्र ग्रह को सूर्य ग्रह की तरह ही एक जीवन देने वाला ग्रह माना गया है। शुक के द्वारा ही मनुष्य को भौतिकता में लिप्त रहने की ताकत मिलती हैं।
◆शुक्र के द्वारा ही मनुष्य को कामुकता, भोगविलास एवं मोहमाया के भौतिक सुख-साधनों की ओर आकर्षित करता हैं।
◆शुक्र जब शुभ भाव में या शुभ राशि में स्थित होते है और शुभ ग्रह की दृष्टि होने पर मनुष्य की दीर्घ उम्र को प्रदान करवाते हैं, 
◆सभी जगहों पर आनन्द दिलवाते हैं।
◆जीवनकाल में भोगविलास प्रदान करवाते हैं।
◆रुपये-पैसों की प्राप्ति करवाते हैं।
◆शुक्र के द्वारा ही मनुष्य को सुखपूर्वक जीवन जीने के समस्त सुख-समृद्धि एवं समृद्धि प्रदान करवाते हैं।
◆मनुष्य के जीवन में समस्त तरह की कामनाओं को पूर्ण करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
◆जब शुक्र ग्रह बलवान या शुभ दशा में होता है, तब मनुष्य को नेता, अभिनेता, कलाकार, गायक, नर्तक, जौहरी, रेडीमेड वस्त्र विक्रेता आदि बनाता हैं।