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Sunday, March 27, 2022

श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् अर्थ सहित और महत्त्व(Sri chandi Dhwaj Stotram with meaning and importance)

Srichandi Dhwaj Stotram with meaning and importance




श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् अर्थ सहित और महत्त्व(Srichandi Dhwaj Stotram with meaning and importance):-माता दुर्गाजी के अनेक नाम शास्त्रों में वर्णित हैं, शास्त्रों के अनुसार जब माता अपना विकराल रूप धारण करती हैं, तब चण्डी कहलाती हैं, ऐसे तो माता दुर्गा में सबको अपने वात्सल्य गोद में रखती हैं, जब नीति एवं धर्म के विरुद्ध आचरण होने लगते हैं, तब माता अपने वात्सल्य भाव को त्याग कर तीनों लोकों में शांति एवं धर्म की रक्षा के लिए चण्डी रूप को धारण कर लेती हैं। माता नवदुर्गा के नौ रूप मुख्यतया शास्त्रों जिनके नाम इस तरह शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि एवं महागौरी आदि बताए हैं। इन नवरुपों में से ही एक रूप चण्डी या चामुंडा का भी होता हैं। नवरुपों की पूजा चैत्रीय एवं आश्विन माह में नौ दिन तक कि जाती हैं। माता चण्डी को दुष्ट एवं धर्म के विरुद्ध किये जाने वाले आचरणों से तीनों लोकों में दुराचारी एवं अत्याचारों से मुक्ति के लिए अपना उग्र रूप को धारण करना पड़ता हैं, जिससे तीनों लोक में संतुलन बना रहे। जो मनुष्य नियमित रूप से माता की पूजा-अर्चना करते हुए उनके श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् के श्लोकों में वर्णित मंत्रों का वांचन करना चाहिए, जिससे माता चण्डी के आँचल की छावं में मनुष्य को जगह मिल जावें।


श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रम् विनियोग:-मार्कण्डेय ऋषिवर ने मंत्रों के वांचन से पूर्व देवी-देवताओं के निमित संकल्प किया जाता हैं:

अस्य श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम् मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रां बीजं, श्रीं शक्तिः, श्रूं कीलकं मम वाञ्छितार्थ फल सिद्धयर्थे विनियोगः।

अर्थात्:-श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रं के श्लोंकों में वर्णित मंत्रों को मार्कण्डेय ऋषिवर ने रचना की थी, जिसमें अनुष्टुप छंद हैं एवं श्रीमहालक्ष्मीजी देवता के रूप में हैं, श्रां बीजं दुर्गा स्वरूप में हैं, शक्ति के स्वरूप में लक्ष्मीजी हैं, श्रूं कीलक स्वरूप हैं। जो कोई भी श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रं के श्लोंकों में वर्णित मंत्रों के द्वारा विनियोग करते हैं, उनको मन की इच्छा अनुसार फल की प्राप्ति हैं।


ध्यानम्:-श्री चण्डी ध्वज स्त्रोतं को वांचन करने से पूर्व इस कवचं के लिए मनुष्य को माता चण्डी के प्रति पूर्ण आस्था भाव एवं विश्वास को रखते हुए उनको याद करना चाहिए। फिर उनकी मन ही मन में छवि को बनाकर उनका ध्यान करना चाहिए।


करन्यासः-जब किसी भी मंत्रों का उच्चारण करते हुए उनका पाठन करते समय दोनों हाथों के द्वारा विशेष तरह की मुद्रा रचना को बनाने की प्रक्रिया को करन्यास कहते हैं। श्रीचण्डी ध्वज स्त्रोतं के वांचन से पूर्व करन्यास करना चाहिए। जो इस तरह होता है, जिसमें पांचों अंगुलियों एवं हथेली के बीच के भाग के द्वारा मुद्रा का निर्माण किया जाता है। इस तरह समस्त अंगुलियों एवं हथेली के बीच के भाग से मुद्रा को बनाकर नमस्कार करते हुए स्थापित करना होता हैं।

श्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।

श्रीं तर्जनीभ्यां नमः। 

श्रूं मध्यमाभ्यां नमः।

श्रैं अनामिकाभ्यां नमः।

श्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

श्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।।


अंगन्यासः-जब किसी भी देवी-देवता की पूजा-अर्चना अथवा मंत्रोच्चारण करते हुए विभिन्न अंगों को पवित्र करने की धारणा से किया जाने वाला स्पर्श को अंगन्यासः कहते हैं। चण्डी ध्वज स्तोत्रम् के वांचन से पूर्व एवं पूजा-अर्चना से पूर्व माता चण्डी के निमित अंगों को स्पर्श करते हुए अंगन्यास किया जता हैं। शरीर के विभिन्न अंगों की जगहों को अलग-अलग मन्त्रों से उच्चारित करते हुए उनको शुद्ध एवं पावन किया जाता हैं।

श्रां हृदयाय नमः।

श्रीं शिरसे स्वाहा।

श्रूं शिखायै वषट्।

श्रैं कवचाय हुम्।

श्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।

श्रः अस्त्राय फट्।

भूभुर्वस्सुवरोमिति दिग्बंधः।।



अथ श्रीचण्डी ध्वज कवचं स्त्रोतं पाठ:-अथ श्रीचण्डी ध्वज कवचं स्त्रोतं का वांचन नियमित रूप से करना चाहिए, इसके गुणों का वर्णन इस तरह है:


ऊँ श्रीं नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै भूत्त्यै नमो नमः।

परमानन्दरुपिण्यै नित्यायै सततं नमः।।१।।

अर्थात्:-हे जगत प्रतिष्ठित देवि! आपका स्वरूप परब्रह्म का वाचक होते हुए समस्त लोकों में समाश्रित हैं और संसार में स्थापित में त्रिदेवियों के रूप में लक्ष्मी, सरस्वती और गौरी देवी के रूप में साक्षात अस्तित्व से युक्त है। आपको मैं बार बार नतमस्तक होकर नमन करते हुए वंदना करता हूँ।

हे परमानन्दरुपिण्यै! आप सदा निरन्तर आनन्द स्वरूप ब्रह्म रूप को धारण करने वाली देवी हो। आपको मैं हमेशा बार-बार नमन करता हूँ।


नमस्तेsस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२।।

अर्थात्:-हे महादेवि! आप शिवजी की भार्या के रूप में परम् ब्रह्म रूप को धारण करते हुए सदा आनन्द स्वरूप वाली महाकाली देवी हो। आपको मैं नतमस्तक होकर नमस्कार करता हूँ। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


रक्ष मां शरण्ये देवि धन-धान्य-प्रदायिनि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।३।।

अर्थात्:-हे माता! मैं आपकी शरण में आया हूँ, माता आप रक्षा कीजिए, मुझे धन-धान्य प्रदान कीजिए। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


नमस्तेsस्तु महाकाली परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।४।।

अर्थात्:-हे महाकाली! आप शिवजी की भार्या के रूप में परम् ब्रह्म रूप को धारण करते हुए सदा आनन्द स्वरूप वाली महाकाली देवी हो। आपको मैं नतमस्तक होकर नमस्कार करता हूँ। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


नमस्तेsस्तु महालक्ष्मी परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।५।।

अर्थात्:-हे महालक्ष्मी! आप विष्णुजी की भार्या के रूप में परम् ब्रह्म रूप को धारण करते हुए सदा आनन्द स्वरूप वाली महालक्ष्मी देवी हो। आपको मैं नतमस्तक होकर नमस्कार करता हूँ। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


नमस्तेsस्तु महासरस्वती परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।६।।

अर्थात्:-हे महासरस्वती! आप ब्रह्माजी की भार्या के रूप में परम् ब्रह्म रूप को धारण करते हुए सदा आनन्द स्वरूप वाली महासरस्वती देवी हो। आपको मैं नतमस्तक होकर नमस्कार करता हूँ। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


नमस्तेsस्तु ब्राह्मी परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।७।।

अर्थात्:-हे ब्राह्मी! आप ब्रह्माजी की भार्या के रूप में परम् ब्रह्म रूप को धारण करते हुए सदा आनन्द स्वरूप वाली ब्राह्मी देवी हो। आपको मैं नतमस्तक होकर नमस्कार करता हूँ। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


नमस्तेsस्तु माहेश्वरी देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।८।।

अर्थात्:-हे माहेश्वरी देवि! आप शिवजी की भार्या के रूप में परम् ब्रह्म रूप को धारण करते हुए सदा आनन्द स्वरूप वाली माहेश्वरी देवी हो। आपको मैं नतमस्तक होकर नमस्कार करता हूँ। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


नमस्तेsस्तु च कौमारी परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।९।।

अर्थात्:-हे कौमारी! आप स्वरूप ब्रह्म रूप को धारण करने वाली सदा आनन्द से वास करने वाली कौमारी देवी हो। आपको मैं नमस्कार करता हूँ। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


नमस्ते वैष्णवी देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१०।।

अर्थात्:-हे वैष्णवी देवि! आप ब्रह्म रूप को धारण करने वाली वैष्णवी देवी हो। आपको झुकते हुए बार-बार नमन करता हूँ। पूर्ण प्रभुता युक्त सत्ता देने वाली एवं सम्पत्ति देने वाली हो।


नमस्तेsस्तु च वाराही परब्रह्मस्वरूपिणि। 

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।११।।

अर्थात्:-हे वाराही! आप सदा आनन्द स्वरूप ब्रह्म रूप को धारण करने वाली वाराही देवी हो। मैं आपको नमन करता हूँ। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


नारसिंही नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१२।।

अर्थात्:-हे नारसिंही! आप मनुष्य के रूप के साथ सिंह के रूप में निरन्तर आनन्द स्वरूप ब्रह्म रूप को धारण करने वाली नारसिंही देवी हो। आपको मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


नमो नमस्ते इन्द्राणी परब्रह्मस्वरूपिणि। 

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१३।।

अर्थात्:-हे इन्द्राणी! आप इंद्र की पत्नी की सदा आनन्द स्वरूप को पाने वाली ब्रह्म रूप को धारण करने वाली इन्द्राणी देवी हो। आपको मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


नमो नमस्ते चामुण्डे परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१४।।

अर्थात्:-हे चामुण्डे! आप सदा आनन्द स्वरूप ब्रह्म रूप को धारण करते हुए चंड मुंड का नाश करने वाली चामुण्डे देवी हो। आपको मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ। आप रुपयों-पैसों को देने वाली, सार्वभौम सत्ता को देने वाली एवं राज्य का संचालन करने की शक्ति देने वाली हैं।


नमो नमस्ते नन्दायै परब्रह्मस्वरूपिणि। 

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१५।।

अर्थात्:-हे नन्दायै! आप सदा ब्रह्म रूप खुशी पूर्वक ग्रहण करते हुए तीनों लोकों में विहार करनी वकाली नन्दायै देवी हो। आपको मैं बार-बार प्रणाम करता हूँ। आप धन-संपत्ति को देने वाली एवं राज्य का स्वामी बनाने वाली हो। 


रक्तदन्ते नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१६।।

अर्थात्:-हे रक्तदन्ते! आप अपने दांतों पर शोणित को ग्रहण करते हुए निरन्तर ब्रह्म रूप को आनन्द से धारण करने वाली रक्तदन्ते हो। आपके मेरा नमस्कार स्वीकार करे। आप समस्त तरह के सुख-साधन को देने वाली एवं जीवन को उच्चस्तरीय से व्यतीत कराने वाली हो।


नमस्तेsस्तु महादुर्गे परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१७।।

अर्थात्:-हे महादुर्गे! आप सदा निरन्तर आनन्द स्वरूप ब्रह्म रूप को धारण करने वाली देवी हो। मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप जीवन को चलाने के लिए धन देने वाली, राजा की तरह जीवन व्यतीत करने के लिए राज्य एवं साम्राज्य को देने वाली हो।


शाकम्भरी नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१८।।

अर्थात्:-हे शाकम्भरी! आप ब्रह्म रूप को आनन्दपूर्वक ग्रहण करके शाक-सब्जी को उत्पन्न करने वाली शाकम्भरी देवि हो। आपको मैं हमेशा झुकते हुए आपको नमन करता हूँ। राज्य, धन और साम्राज्य को देने वाली हो।


शिवदूति नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।१९।।

अर्थात्:-हे शिवदूति! आप भगवान शिवजी के संदेश को समस्त लोकों में पहुंचाने के लिए ब्रह्म रूप में आनन्दपूर्वक सदा वास करती हो। आपको मैं नमन करता हूँ। आप धन देने वाली, साम्राज्य एवं राजकीय पद को देने वाली हो।  


नमस्ते भ्रामरी देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२०।।

अर्थात्:-हे भ्रामरी देवि! आप मधुमक्खीयों की स्वामिनी होकर इस परम् ब्रह्म के स्वरूप में भ्रमण करते हुए आनन्द देने वाली हो। आप अपस्मार रोग से पीड़ित को ठीक करने वाली हो। आपको मैं हमेशा नमस्कार करता हूँ। आप धन देने वाली, साम्राज्य एवं राजकीय पद को देने वाली हो।  


नमो नवग्रहरुपे परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२१।।

अर्थात्:-हे नवग्रहरुपे! आप समस्त लोकों के नवग्रहों के रूप में ब्रह्म स्वरूप में विचरण करते हुए आनन्द स्वरूप में रहने वाली नवग्रहरुपे हो। आपको नमन करता हूँ। आप धन देने वाली, साम्राज्य एवं राजकीय पद को देने वाली हो।  


नवकूट महादेवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२२।।

अर्थात्:-हे नवकूट महादेवि! आप देवियों में सर्वोच्च पद पर आसीन होकर मिथ्यावादिता से दूर रहते हुए हमेशा ब्रह्म रूप को धारण करके आनन्द से विचरण करने वाली नवकूट महादेवि हो। आपको हमेशा प्रणाम करता हूँ। आप धन देने वाली, साम्राज्य एवं राजकीय पद को देने वाली हो। 


स्वर्णपूर्णे नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२३।।

अर्थात्:-हे स्वर्णपूर्णे! आप स्वर्ण से सुसज्जित रूप को धारण करते हुए ब्रह्म स्वरूप में आनन्द के साथ हमेशा विचरण करती हो। आपको मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ। समस्त स्वर्ण को देते हुए निर्धनता को दूर करने वाली, राज्य को देने वाली एवं साम्रज्य का स्वामी बनानी वाली हो।


श्रीसुन्दरी नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२४।।

अर्थात्:-हे श्रीसुन्दरी! आप समस्त तरह के रत्नों-आभूषणों से सुसज्जित होकर ब्रह्म रूप में आनन्द लेने वाली श्रीसुन्दरी हो। आपको मैं सदा नमन करता हूँ। आप मुझे अमूल्यवान रत्न-आभूषणों को प्रदान करके धनवान बनानी वाली हो, समस्त तरह के साम्रज्य में उच्च पद को देने वाली हो। 


नमो भगवति देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२५।।

अर्थात्:-हे भगवति देवि! आप समस्त नवदुर्गा के रूप को धारण करते हुए ब्रह्म स्वरूप में विचरण करते हुए आनन्द प्रदान करने वाली हो, आपको मैं हमेशा बार-बार नमन करता हूँ। आप समस्त तरह के सुखों को, ऐश्वर्य एवं उच्च पद को देने वाली हो।


दिव्ययोगिनी नमस्ते परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२६।।

अर्थात्:-हे दिव्ययोगिनी! आप सदा अपनी दैवीय या अलौकिक योग साधना करने की शक्ति के द्वारा समस्त ब्रह्म रूप में आनन्द के साथ विचरण करने वाली हो। आपको मैं नमन करता हूँ। आप समस्त तरह के सुखों को, ऐश्वर्य एवं उच्च पद को देने वाली हो।


नमस्तेsस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२७।।

अर्थात्:-हे महादेवि! आप समस्त देवियों की देवी अर्थात् स्वामिनी हो और सम्पूर्ण ब्रह्म में निवास करते हुए हमेशा खुशी के भाव को उत्पन्न करने वाली महादेवि हो। आपको मैं हमेशा नमन करता हूँ। आप समस्त तरह के सुखों को, ऐश्वर्य एवं उच्च पद को देने वाली हो।


नमो नमस्ते सावित्री परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२८।।

अर्थात्:-हे सावित्री! आप मत्सय देश के राजा अश्वपति की तनुजा हो और समस्त लोकों में सदा ब्रह्म रूप में विराजमान रहती हो। आपको मैं नतमस्तक होकर नमन करता हूँ।

आप समस्त तरह के राजकीय सुख, ऐशो-आराम एवं समस्त तरह के साम्राज्य को देने वाली हो।


जयलक्ष्मी नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।२९।।

अर्थात्:-हे जयलक्ष्मी! आप मनुष्य को एवं जो आपकी भक्ति करते हैं, उनको हमेशा विजय प्रदान करवाती हो एवं आप ब्रह्म रूप में रहती हुए आनन्द देने वाली हो। आपको मैं नमस्कार करता हूँ। आप समस्त उच्च पद को प्रदान करने वाली, राजकीय सेवा में एवं धन-समृद्धि को देने वाली हो।


मोक्षलक्ष्मी नमस्तेsस्तु परब्रह्मस्वरूपिणि।

राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा।।३०।।

अर्थात्:-हे मोक्षलक्ष्मी! आप मनुष्य के जीवन एवं मरण के बंधन से मुक्त करके मनुष्य का उद्धार करने वाली हो, जिससे मनुष्य को मोक्ष गति मिल जाती हैं। आप आनन्द स्वरूप ब्रह्म रूप को हमेशा धारण करने वाली मोक्षलक्ष्मी देवी हो। आपको मैं नमस्कार करता हूँ। धन, राज्य और साम्राज्य को देने वाली हो।


चण्डीध्वजमिदं स्तोत्रं सर्वकामफलप्रदम्।

राजते सर्वजन्तछनां वशीकरण साधनम्।।३१।।

अर्थात्:-श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रं समस्त तरह के कामों में सफलतापूर्वक सिद्धि प्रदान करने वाला होता हैं। समस्त तरह जन्तुओ एवं राजा आदि को अपने मोहपाश में बांधने का उपाय हैं।


          ।।इति श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् सम्पूर्ण।।

         ।।जय बोलो श्रीचण्डी देवी की जय हो।।


श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् का महत्त्व:- श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् के वांचन का बहुत महत्व शास्त्रों में बताया हैं, जो इस तरह हैं:

◆कार्यों में सफलता प्राप्ति हेतु:-मनुष्य को अपने कार्य में सफलता पाने हेतु श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् का वांचन नियमित रूप से करने पर कार्यों में सफलता मिल जाती हैं।

◆अपनी तरफ आकर्षित करने हेतु:-मनुष्य को जब दूसरे मनुष्य परवाह नहीं करते हैं, तब मनुष्य को इस स्तोत्रम् का वांचन करने पर मनुष्य अपने आकर्षण शक्ति से अपनी तरफ खींच लेते हैं।

◆समस्त तरह की मुसीबतों से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य के जीवन में अनेक तरह की मुसीबतें आती रहती है, जिससे वह निराश हो जाते है, तब श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् का वांचन नियमित रूप से करते रहने पर समस्त तरह की मुसीबतों से मुक्ति हो जाती हैं।

◆समस्त तरह के शत्रुओं से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य को जीवनकाल में अनावश्यक रूप से एवं जलन वश दुश्मन बन जाते हैं, उन दुश्मनों के द्वारा मनुष्य को हानि की कोशिश में लगे रहते हैं, उन दुश्मनों के द्वारा हानि से बचने के लिए मनुष्य को इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।

◆व्याधि से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य का शरीर किसी न किसी तरह से व्याधि से ग्रसित हो जाता है, उन व्याधियों से बचने के लिए मनुष्य को इस स्तोत्रम् का वांचन शुरू कर देने पर व्याधियों से मुक्ति मिल जाती हैं।

◆समस्त जगह पर जीत की प्राप्ति हेतु:-मनुष्य को समस्त जगह पर जीत की प्राप्ति हेतु इस स्तोत्रम् का वांचन शुरू कर देना चाहिए, जिससे समस्त जगहों पर विजय मिल जावें।