Breaking

Sunday, January 30, 2022

माथे पर तिलक क्यों लगाते है? जानें धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व (Why do we apply tilak on the forehead? Know Religious and Scientific Importance)




माथे पर तिलक क्यों लगाते है? जानें धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व (Why do we apply tilak on the forehead?  Know Religious and Scientific Importance):-हिन्दुधर्म में तिलक का बहुत ही महत्त्व होता हैं, हिन्दुधर्म शास्त्र के अनुसार यदि मनुष्य के मस्तिष्क के बीच का खाली होता है, तब उस मनुष्य के द्वारा किए जाने वाले समस्त मांगलिक कार्य जैसे-पूजा, आरती, हवन आदि कभी भी सफल नहीं हो पाते है और उस मनुष्य को उस पूजा आदि का फल भी नहीं मिल पाता हैं। जो मनुष्य बिना तिलक किए कहीं पर भी दिखाई देने पर उसके दर्शन को भी अशुभ माना जाता है।सुषुम्ना नाड़ी को केंद्रीभूत मानकर भृकुटि और ललाट के मध्य भाग में तिलक आदि धारण किया जाता है। 

मनुष्य को नियमित रूप से अपने मस्तिष्क के दोनों भौहों के बीच स्थित "आज्ञाचक्र" पर भ्रकुटी पर किसी भी पवित्र वस्तु से तिलक को करके अपने निवास स्थान से बाहर निकलना चाहिए। मनुष्य को अपने शरीर को निर्मल एवं स्वस्थ रखने के लिए मस्तिष्क के अलावा भी तिलक कर सकते हैं, उस स्थान को चेतना केंद्र कहते हैं।

तिलक के बिना स्नान, होम, तप, देव-पूजन, पितृकर्म और दान आदि पुण्य कर्मों का फल भी निष्फल हो जाता है। अतएव कोई भी पुण्य कर्म करते समय सभी को तिलक धारण करना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक धार्मिक, मांगलिक एवं नया कार्य करने से पूर्व मस्तक पर तिलक लगया जाता है, इस तरह तिलक मस्तक को ताकत प्रदान करता है और मनुष्य के द्वारा किये गए बुरे कर्मों एवं विकारों का शमन करके सही राह की ओर अग्रसर करते हैं।

हिन्दू धर्म के अनुसार तिलक का अर्थ:-किसी भी अच्छे या धार्मिक कार्यो को पूर्ण करने के पहले मस्तक के बीच की जगह पर जो भी द्रव्य के द्वारा लगाया जाने प्रतीक को तिलक कहा जाता हैं।

तिलक, त्रिपुंड्र, टिका और बिंदिया इन सबका पूरी तरह मस्तिष्क से होता हैं और मस्तक के सम्मुख वाले भाग के मध्य में धारण किए जाते हैं।


कठोपनिषद् में तिलक धारण के बारे उल्लेख:-मिलता हैं, की एक मुख्य नाड़ी सुषुम्ना होती हैं, जो कि मस्तक के सामने वाले भाग से निकलती हैं। सुषुम्ना नाड़ी से ऊर्ध्वगतीय मोक्ष का रास्ता निकलता हैं। दूसरी नाड़ियां प्राणोत्क्रमण के बाद शरीर में इधर-उधर चारों ओर फैल जाती हैं, जबकि सुषुम्ना का मार्ग ऊर्ध्वाधर ही रहता हैं। प्रत्येक व्यक्ति के मस्तक पर सुषुम्ना नाड़ी का ऊर्ध्व भाग एक गहरी रेखा के रूप में दिखाई देता हैं। भौंहों के मध्य में आज्ञाचक्र की स्थिति मानी गई हैं और इस स्थान पर तिलक आदि धारण करने पर यह जागृत होने लगता हैं। आज्ञा चक्र के जागृत होने से मस्तिष्क की क्रियाशीलता और अंतर्मन की संवेदनशीलता में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हो जाती हैं।


धार्मिक एवं मांगलिक कार्य को करते समय तिलक धारण नहीं करने का फल:-निम्नलिखित मिलता हैं-

स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च।

तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं विना।।

अर्थात्:-जब भी किसी धार्मिक एवं मांगलिक कार्यों जैसे-तीर्थ स्थान का स्नान, जाप करने की क्रिया, किसी को अपने सामर्थ्य के अनुसार खैरात देने के कार्य, हवन पूजन युक्त एक वैदिक कृत्य कर्म, पितरों के लिए श्राद्ध आदि के कर्म करते समय और देवी-देवताओं की आराधना या उपासना आदि के कर्म को बिना तिलक किये हुए नहीं करना चाहिए। जब बिना तिलक किये ये समस्त कार्य किए जाते हैं, तब उन कार्यों का फल नष्ट हो जाता है और फल नहीं मिल पाता हैं।


त्रिपुंड का अर्थ:-जब ललाट अर्थात् माथे पर भस्म या चंदन से तीन रेखाएं बनाई जाती है, उसे त्रिपुंड कहते हैं। भस्म या चंदन को हाथों की बीच की तीन अंगुलियों से लेकर सावधानीपूर्वक माथे पर तीन तिरछी रेखाओं जैसा आकार दिया जाता हैं। शैव सम्प्रदाय के लोग इसे धारण करते हैं।


शिवपुराण के अनुसार त्रिपुंड के देवताओं के नाम:-शिवपुराण के अनुसार त्रिपुंड के देवताओं के सताइस नाम हैं, त्रिपुंड की तीन रेखाओं में से हर एक में नौ-नौ देवता निवास करते हैं। जो कि तीन श्रेणियों में विभक्त शास्त्रों ने नौ-नौ देवता के रूप में निम्नलिखित हैं-

१.अकार, गार्हपत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, रजोगुण, ऋग्वेद, क्रियाशक्ति, प्रातःस्वन तथा महादेव आदि ये त्रिपुंड की पहली रेखा के नौ देवता हैं।

२.ऊंकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुवेंद्र, मध्यंदिनसवन, इच्छाशक्ति, अंतरात्मा और महेश्वर आदि ये त्रिपुंड की दूसरी रेखा के नौ देवता हैं।

३.मकार, आहवनीय अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, द्युलोक, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तृतीयसवन तथा शिव आदि ये त्रिपुंड की तीसरी रेखा के नौ देवता हैं।

त्रिपुंड का मंत्र:-ऊँ त्रिलोकिनाथाय नमः।


तिलक के प्रकार:-हिन्दुधर्म शास्त्रों में तिलक के कई तरह का बताया गया है, जो इस तरह हैं-

1.मृत्तिका।

2.रोली।

3.भस्म।

4.चंदन।

5.रोली। 

6.सिंदूर।

7.गोपी।

8.हरिद्रा आदि। 


तिलक लगाने का तरीका:-मनुष्य को तिलक लगाते समय कुछ तरीके हैं, उनकी आकृति के अनुसार तिलक को धारण करना चाहिए, जो कि इस तरह हैं-

पर्वताग्रे नदीतीरे रामक्षेत्रे विशेषतः।

सिन्धुतिरे च वल्मिके तुलसीमूलमाश्रिताः।।

मृदएतास्तु संपाद्या वर्जयेदन्यमृत्तिका।

द्वारवत्युद्भवाद्गोपी चंदनादुर्धपुण्ड्रकम्।।

अर्थात्:-जीवनकाल में मनुष्य को प्रतिदिन तिलक भूधर में शंकु की तरह का अग्र भाग की आकृति के समान, तनूजा के किनारों की मृत्तिका की तरह, किसी पवित्र तीर्थ स्थान का हो, पिपीलिकायों के द्वारा बनायी गई मिट्टी की रेखाकार आकृति एवं पुष्पसारा के जड़ की मृत्तिका का हो या गोपी चंदन का हो आदि से करना सभी बढ़िया होते हैं।



भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं के उपासक अलग-अलग प्रकार के तिलक धारण करने का विधान:-विभिन्न धार्मिक कार्यों का निष्पादन करते समय और भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं के उपासक अलग-अलग प्रकार के तिलक धारण करते हैं। तिलक रहस्य में एक श्लोक द्वारा इस पर प्रकाश डाला गया है। श्लोक इस प्रकार है-

ब्रह्मा को बड़पत्र जो कहिये, विष्णु को दो फाड़।

शक्ति की दो बिंदु कहिये, महादेव की आड़।।

जो परम्परागत चला रहा हिन्दुधर्म जो कि शाश्वत या हमेशा बना रहने वाला धर्म हैं, इस धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव आदि अनेक सम्प्रदाय हैं। इन सम्प्रदायों में अपने सम्प्रदाय के अनुसार ही तिलक को धारण करने के बारे में बताया गया है, जो कि इस तरह हैं-


1.वैष्णव सम्प्रदाय के लिए दो पतली रेखाओं के रूप में:-जो भगवान श्री विष्णुजी पर आस्था भाव रखने वाले भक्त उनकी पूजा-अर्चना से पूर्व दो पतली रेखाओं को मस्तक के बीच के भाग में बनाते हुए ऊर्ध्व तिलक करते हैं।

2.शक्ति सम्प्रदा के लिए दो बिंदी के रूप में:-जो आदि शक्ति या देवी की उपासना करने वाला सम्प्रदाय को शाक्त सम्प्रदाय कहते है। जो मनुष्य शाक्त या देवी पर विश्वास भाव एवं आस्था भाव रखते हैं, वे मनुष्य दो बिंदी जो कि शिवजी व शक्ति के प्रतीक चिह्न होते हैं, उनके निमित ही दो बिंदी का तिलक मस्तिष्क के मध्य भाग में करते हैं।

4.ब्रह्मार्पण या ब्रह्म भोज के लिए:-तीन उंगलियों से तिलक करना होता हैं।  

3.शैव सम्प्रदा के लिए आड़ी तीन रेखाओं के रूप में:-जो शिवजी की उपासना करने वाले सम्प्रदाय को शैव सम्प्रदाय कहा जाता हैं। जो मनुष्य शैव या शिवजी पर श्रद्धा रखते हैं, वे शिवजी के निमित आड़ी तीन रेखाओं या त्रिपुंड्र के रूप में मस्तक के मध्य में तिलक करते हैं।



तिलक लगाने का मंत्र:-तिलक को लगाते समय मनुष्य को निम्नलिखित मन्त्र को उच्चारण करते हुए तिलक को धारण करना चाहिए-

केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम।

पुण्यं यशस्यमायुष्य तिलकं मे प्रसीदतु।।

कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्।

ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम्..


तिलक आदमी, औरत एवं ब्राह्मण को किस वस्तु का लगाना ठीक:- रहता हैं, जो निम्नलिखित है-

1.आदमी या नर वर्ग को चंदन का तिलक अपने मस्तिष्क के बीच के भाग पर लगाना चाहिए।

2.मादा वर्ग या औरत को कुमकुम का तिलक अपने मस्तिष्क के बीच के क्षेत्र पर धारण करना शुभ होता हैं।

3.मनुष्य को मस्तिष्क के बीच के भाग पर तिलक लगाने से समस्त तरह के बुरे कर्मो के पापों से मुक्ति दिलाकर परमात्मा एवं आत्मा से सम्बंध को बनाने की ओर अग्रसर करता हैं।

4.ब्राह्मण वर्ग के लिए तो मस्तिष्क पर तिलक लगाना शास्त्रों में एक शुभ परिणाम देने वाला होता हैं।

5.चंदन या कुमकुम से नियमित तिलक को करने पर उत्तम फल मिलता हैं, क्योंकि कुमकुम हरिद्रा एवं चूने के पानी से बना होने से बढ़िया होता हैं।


वारों के स्वामी अनुसार तिलक को धारण करना:-जब मनुष्य की जन्मकुण्डली में कमजोर ग्रहों के होने पर उन ग्रहों को मजबूती प्रदान करने के लिए कमजोर ग्रहों के अनुसार ग्रह जिस वार के सम्बन्धित होता है, उस ग्रह के वार को ध्यान में रखते हुए तिलक को धारण पर फायदा मिलता हैं, जो वारों के अनुसार निम्नलिखित हैं-


1.सूर्य ग्रह एवं श्रीविष्णुजी से सम्बंधित रविवार के दिन तिलक धारण करना:-सूर्य ग्रह के कमजोर होने पर सूर्यदेवजी को मजबूती देने हेतु मनुष्य को रविवार के मालिक रविदेव को माना जाता हैं। भगवान श्रीविष्णुजी एवं रविदेवजी को खुश करने के लिए रविवार के दिन हरि चन्दन या रक्त चन्दन आदि का तिलक मस्तक को धारण करने से मनुष्य के जीवन में उन्नति होने लगती है, जिससे मनुष्य को सामाजिक जीवन, आध्यात्मिक जीवन एवं व्यवहारिक जीवन में चारों तरफ इज्जत की प्राप्ति होती हैं और मनुष्य में किसी भी तरह का डर नहीं होता हैं। 

2.सोम ग्रह एवं भगवान शिवजी से सम्बंधित सोमवार के दिन तिलक धारण करना एवं मिलने वाले फायदे:-सोम ग्रह के कमजोर होने पर चन्द्रदेव को मजबूती देने हेतु, सोमवार के मालिक सोमदेव के निमित तिलक को धारण करना होता हैं। चित्त का प्रतिनिधित्व सोम ग्रह को बताया गया है, सोमदेव जो कि अपनी शीतल किरणों से शीतलता प्रदान करते हैं और मनुष्य के चित्त को नियम में बाँधकर रखता हैं, इसलिए भगवान श्रीशिवजी एवं सोमदेव को खुश करने के लिए सोमवार के दिन श्वेत चन्दन या विभूति या भस्म आदि का तिलक मस्तक को धारण करने से मनुष्य के समस्त तरह के मानसिक एवं शारीरिक क्रियाओं को सुचारू रूप कर पाता हैं एवं मनुष्य पर हावी होने आक्रामकता एवं गुस्से को शांत करता हैं।


3.भौम ग्रह एवं भगवान हनुमानजी से सम्बंधित मंगलवार के दिन तिलक धारण करना एवं मिलने वाले फायदे:-भौम ग्रह के कमजोर होने पर भौमदेव को मजबूती देने हेतु, मंगलवार के मालिक भौमदेव के निमित तिलक को धारण करना होता हैं।रक्त वर्ण, ऊर्जा, पराक्रम, शोणित आदि का प्रतिनिधित्व भौम ग्रह होता है, इसलिए भगवान श्रीहनुमानजी एवं भौम देव को खुश करने के लिए मंगलवार के दिन रक्त चन्दन या सिंदूर को चमेली के तेल में मिश्रित करके बनाये हुए लेप आदि का तिलक मस्तक को धारण करने से मनुष्य में रक्त का संचार ठीक तरह होने से उसका शरीर रक्तवर्ण का बन जाता है, जिससे उसमें किसी भी तरह के कार्य को पूर्ण में रुचि उत्पन्न हो जाती है, जिससे वह अपनी ताकत से कार्य करता हैं और उसके मन में किसी तरह से नकारात्मक भाव उत्पन्न नहीं हो पाते है।


4.सौम्य ग्रह,भगवान गणपति जी और माता दुर्गाजी से सम्बंधित बुधवार के दिन तिलक धारण करना एवं मिलने वाले फायदे:-सौम्य ग्रह के कमजोर होने पर सौम्यदेव को मजबूती देने हेतु, बुधवार के मालिक सौम्यदेव के निमित तिलक को धारण करना होता हैं। बुद्धि, ज्ञान एवं कार्य कुशलता आदि का प्रतिनिधित्व सौम्य ग्रह होता है, इसलिए भगवान भगवान गणपतिजी, माता दुर्गाजी एवं सौम्यदेव को खुश करने के लिए बुधवार के दिन बिना तेल को मिश्रित किये हुए सिंदूर आदि का तिलक मस्तक को धारण करने से मनुष्य के ज्ञान में बढ़ोतरी होती हैं, जिससे मनुष्य के कार्य करने में कुशलता मिलती हैं।


5.जीव ग्रह,भगवान ब्रह्माजी और बृहस्पति देव से सम्बंधित गुरुवार के दिन तिलक धारण करना एवं मिलने वाले फायदे:-जीव ग्रह के कमजोर होने पर जीव ग्रह को मजबूती देने हेतु, बृहस्पति वार के मालिक बृहस्पति देव के निमित तिलक को धारण करना होता हैं,क्योंकि समस्त देवताओं को ज्ञान एवं सही तरह से मार्गदर्शन देने वाले बृहस्पति देव को उनका गुरु माना जाता है। पीत वर्ण या श्वेत वर्ण के मिश्रण से बने वर्ण के समान केसरिया वर्ण जीव ग्रह होता हैं, जो कि ज्ञान, शिक्षा, मनुष्य को सोचने-समझने के विचारों, पति, गुरु, राजकीय सेवा आदि प्रतिनिधित्व जीव ग्रह करता है, इसलिए भगवान ब्रह्माजी एवं बृहस्पति देव को खुश करने के लिए गुरुवार के दिन सफेद चन्दन की लकड़ी को पाषाण पर घिसकर उसका जो लेप बनता हैं, उसमें केसर का मिश्रण करते हुए जो लेप बनता हैं, उसको  या हरिद्रा या गोरोचन के बनाये हुए लेप आदि का तिलक मस्तक को धारण करने से मनुष्य को सही मार्गदर्शन मिलता है, जिससे वह सही तरीके से ज्ञान को प्राप्त करके अपना विकास कर पाते है। मनुष्य के विचारों में शुद्धता का संचार होने लगते हैं और बुरे विकारों का शमन होने लगता हैं।

6.भृगु ग्रह, माता लक्ष्मीजी और दैत्यों के गुरु भृगुदेव से सम्बंधित शुक्रवार के दिन तिलक धारण करना एवं मिलने वाले फायदे:- 

भृगु ग्रह के कमजोर होने पर भृगु ग्रह को मजबूती देने हेतु, शुक्रवार वार के मालिक भृगुदेव के निमित तिलक को धारण करना होता हैं, क्योंकि जो कि भौतिक सुख-सुविधाओं, ऐश्वर्य, पति-पत्नी का सुख, सौंदर्य आदि प्रतिनिधित्व भृगु ग्रह करता है, इसलिए माता लक्ष्मीजी एवं भृगुदेव को खुश करने के लिए शुक्रवार के दिन रक्त चन्दन की लकड़ी को पाषाण पर घिसकर बनाये हुए लेप या सिंदूर आदि का तिलक मस्तक को धारण करने से मनुष्य के जीवन में आने वाली परेशानियों से मुक्ति दिलवाते है। मनुष्य के जीवन में आवश्यक सुविधाओं को प्रदान करके, समस्त तरह के धन-सम्पत्ति एवं ऐश्वर्य प्रदान करवाते हैं।


7.मन्द ग्रह, भैरवजी, यमराज जी और शनिदेव से सम्बंधित शनिवार के दिन तिलक धारण करना एवं मिलने वाले फायदे:-मन्द ग्रह के कमजोर होने पर मन्द ग्रह को मजबूती देने हेतु, शनिवार वार के मालिक शनिदेव के निमित तिलक को धारण करना होता हैं, क्योंकि समस्त देवताओं को ज्ञान एवं सही तरह से मार्गदर्शन देने वाले बृहस्पति देव को उनका गुरु माना जाता है। जो कि भौतिक सुख-सुविधाओं, ऐश्वर्य, पति-पत्नी का सुख, सौंदर्य आदि प्रतिनिधित्व भृगु ग्रह करता है, इसलिए भैरवजी, यमराजजी एवं शनिदेव को खुश करने के लिए शनिवार के दिन रक्त चन्दन की लकड़ी को पाषाण पर घिसकर बनाये हुए लेप या विभूत,भस्म आदि का तिलक मस्तक को धारण करने से मनुष्य के कार्य में आने वाली रुकावटों एवं अनावश्यक धन हानि से बचाव होता है। अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती हैं। 


अलग-अलग द्रव्यों से बने तिलक का महत्त्व एवं उपयोगिता:-अलग-अलग द्रव्यों से बनाने पर जब इन द्रव्यों का तिलक धारण मनुष्य करता है, तो इन द्रव्यों के अनुसार मनुष्य को अलग-अलग तरह के फायदे होते हैं, जिससे इनकी उपयोगिता एवं महत्त्व के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती हैं-

1.चन्दन द्रव्य के तिलक का महत्त्व एवं उपयोग:-जब कोई भी मनुष्य चंदन को घिस कर उसका लेप तैयार करता है, अपने इष्टदेव के नाम से अपने मस्तक के बीच में धारण करता हैं, चंदन का स्वभाव शीतलता प्रदान करना होता हैं। इस तरह चन्दन के तिलक को लगाने से मनुष्य शारिरिक एवं मानसिक रूप से अच्छा या ताजेपन को प्रदान करके ज्ञान-तन्तुओं की क्रियाशीलता को बढ़ाता हैं, जिससे शांति भी मिलती हैं। चंदन को लगाने से मनुष्य के द्वारा किये बुरे कर्मों का नाश हो जाता है, जिससे मनुष्य के जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है और उस मनुष्य पर माता लक्ष्मी अपनी छत्रछाया बनाकर रखती है। चंदन अनेक तरह के होते हैं, जैसे-श्वेत चन्दन, रक्त चंदन, हरि चन्दन, गोपीवल्लभ चंदन, गोमती चंदन और गोकुल चंदन आदि होते हैं।



2.कुमकुम द्रव्य के तिलक का महत्त्व एवं उपयोग:-कुमकुम को केसर या रोली भी कहा जाता है, जो कि लाल रंग का एक चूर्ण के समान द्रव्य होता हैं। जो कि एक पवित्र द्रव्य के रूप में पूजा-अर्चना के रूप में उपयोग होता हैं, जब मनुष्य के द्वारा कुमकुम के लेप का तिलक धारण करते है, तब उस मनुष्य के शरीर की चमक बहुत ही कांति से युक्त हो जाती हैं और मनुष्य में आकर्षण का गुण भी आ जाता हैं। मनुष्य तेजवान होकर प्रतापी भी बन जाता हैं।


3.विशुद्ध मृत्तिका के तिलक का महत्त्व एवं उपयोग:-वह प्रदार्थ जो कि पृथ्वी के ऊपरी तलं पर या अन्य भाग में भी प्रायः समस्त स्थान पर पाया जाता है, उसे मृत्तिका या मिट्टी या खड़िया कहा जाता हैं, मृत्तिका अनेक तरह की होती हैं, जब मृत्तिका को शुद्ध करके उसको अपने मस्तक के बीच में लगाते है, तो उस मृत्तिका की शीतलता से मस्तक एकदम शांत रहता है एवं संक्रामक कीटाणुओं से मुक्ति में सहजता होती हैं


4.द्रव्य के तिलक का महत्त्व एवं उपयोग:-यज्ञ भस्म शीश पर धारण करने से सौभाग्य वृद्धि होती हैं और पुण्य फल की प्राप्ति होती हैं।


5.हरिद्रा का चूर्ण के तिलक का महत्व एवं उपयोग:-हरिद्रा का वर्ण पिला होता है, जब हरिद्रा को कूटकर उसका चूर्ण बनाकर जल में गोलकर उसके लेप को मस्तक पर धारण करने पर मनुष्य की त्वक में निखार आता है, क्योंकि हरिद्रा में एक हजार गुणों को माना जाता है, हरिद्रा में एंटी बेक्ट्रीयल तत्व पाए जाते है, जिससे इनका लेप का तिलक करने से शारिरिक व्याधियों से मुक्ति मिलती हैं।


तिलक धारण करने से मिलने वाले लाभ:-मनुष्य के द्वारा जब नियमित रूप से तिलक को धारण करते हैं, तब उस तिलक के द्वारा निम्नलिखित मनुष्य को लाभ प्राप्त होते हैं, जो इस तरह हैं-


1.मस्तक को शांति की प्राप्ति:-जो मनुष्य तिलक को धारण करते हैं, तो उन मनुष्यों के मस्तक में किसी भी तरह की चिंता हो, तो वह समाप्त हो जाती है, जिससे मस्तक में शांति रहती हैं।


2.मस्तक को शीतलता:-मस्तक को जीवनकाल में अनेक तरह के भावों एवं अनेक बातों को झेलना पड़ता हैं और मस्तक को इन सबसे राहत भी जरूरी होता हैं, जो मनुष्य मस्तक के बीच के भाग में तिलक को धारण करते हैं, तो मस्तक को जीवनकाल में मिलने वाली उष्णता से राहत मिलकर शीतलता की प्राप्ति होती हैं।

3.रसायनों के स्त्राव में संतुलन:-जो मानव शरीर में आवश्यक स्त्रावित होने वाले रसायनों जैसे-बीटाएंडोरफिन एवं सेराटोनिन आदि हैं, जब मनुष्य के द्वारा तिलक धारण करने से इन रसायनों के स्त्राव में सही रूप से एवं उचित मात्रा में होना प्रारम्भ हो जाता हैं।


4.उदासीनता एवं निराशा के भावों से मुक्ति:-मानव शरीर में अनेक तरह के रसायनों का संचार होता हैं, जब इन रसायनों के स्त्राव में कमी आने लगती हैं, तब मनुष्य में उदासीनता एवं निराशा के भाव पनपने लगते है, जिससे मनुष्य जीवन में हार मान लेता है और गलत कदम भी उठा लेते हैं, इन सबसे बचने के लिए मनुष्य को नियमित रूप से तिलक को मस्तक के बीच धारण करना चाहिए, जिससे उदासीनता एवं निराशा के भावों का जन्म नहीं हो पावे।


5.मनुष्य अपने व्यक्तित्व से दूसरों पर अपना आकर्षण जागृत करने में कामयाब रहते हैं।


6.मनोवैज्ञानिक रूप से:-मनुष्य में अपने आप पर विश्वास बढ़ता है, जिससे जोश का संचार होता हैं, जिससे किसी भी कार्य को पूर्ण करने की हिम्मत मिलती है और कार्य को पूर्ण करके ही शांत होते हैं।


7.मनुष्य के सिर में बार-बार होने वाले सिर में दुखावे से मुक्ति मिलती हैं। 


8.मानसिक व्याधियों से आजादी मिलती:-जब रक्त चंदन या श्वेत चंदन के लेप का तिलक जब मनुष्य अपने मस्तक के बीच में लगाते है, तो उन मनुष्य के जीवन में कभी रुपयों-पैसों की तंगी नहीं होती है और उसके निवास की जगह पर धन-धान्य का भंडार भरा रहता है और उसको समस्त तरह के सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती हैं।