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Monday, May 30, 2022

कैसे होंगे पिता-पुत्र के सम्बन्ध? जानें जन्मकुंडली से(How will the father-son relationship be? know from horoscope)

How will the father-son relationship be? know from horoscope




कैसे होंगे पिता-पुत्र के सम्बन्ध? जानें जन्मकुंडली से(How will the father-son relationship be? know from horoscope):-जब मनुष्य अपने दाम्पत्य जीवन की शुरुआत करता हैं, तब उसको अपने वंश को आगे चलाने के लिए संतान की आवश्यकता होती हैं। इस तरह संतान की चाहत को पूर्ण करना चाहता है। जब तक बच्चा का जन्म नहीं होता हैं। तब प्रत्येक माता-पिता का मन व्यथित रहता हैं कि उनके होने वाली बच्चा लड़की होगा या लड़का। बचपन में बच्चे के प्यार को देखकर कोई नहीं सोचता कि भविष्य में पिता-पुत्र के संबंध कैसे होंगे। जन्म होने के बाद पिता को चिंता सताने लगती हैं कि अमुक पुत्र या पुत्री उनके प्रति कैसे रहेंगे और उनके वृद्धावस्था में उनकी देखभाल करेगा या नहीं। इस तरह की चिंता को पिता व पुत्र के बीच के संबन्ध के बारे में जन्मकुंडली के द्वारा जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं। जन्मकुंडली में भावों व राशियों में स्थित ग्रहों का अवलोकन करवाकर जाना जा सकता हैं, की भविष्य पुत्र उनका कहना मानने वाला होगा और उनकी देखभाल करेगा। प्राचीन काल के विद्वानों ने ज्योतिष शास्त्र में वर्णित नौ ग्रहों की गति के आधार पर बहुत शोध किया था, उस शोध के आधार पर उन्होंने पिता व पुत्र के संबन्ध में निचोड़ निकाला था। उस निचोड़ के आधार पर उन्होंने कुछ ज्योतिषीय योगों की रचना की थी, जिससे पिता व पुत्र के संबंध के बारे में जाना जा सकता है।




पिता व पुत्र के बीच संबन्ध के विषय के योग:-ये ज्योतिषीय योग निम्नलिखित हैं-



◆जब पुत्र का जन्म लग्न पिता की जन्मकुंडली के पहले भाव से दशवें भाव की राशि का होता हैं। जैसे-पिता की जन्मकुंडली में मेष लग्न की हैं, उससे दशम भाव में मकर राशि होती हैं, जब पुत्र का जन्म मकर लग्न में होता हैं, तब पुत्र पिता की तरह बहुत अधिक खूबियों से युक्त प्रतिभाशाली होता हैं।



◆यदि पुत्र का जन्म लग्न पिता की जन्मकुंडली में स्थित दूसरे भाव, तीसरे भाव, नवें भाव एवं ग्याहरवें भाव में स्थित राशि का होता हैं। जैसे-पिता की जन्मकुंडली में मेष लग्न की हैं, उससे दूसरे भाव में वृषभ राशि, तीसरे भाव में मिथुन राशि, नवें भाव में धनु राशि एवं ग्याहरवें भाव में कुम्भ राशि होती हैं, इनमें से किसी भी भावस्थ राशि में पुत्र का जन्म लग्न होने पर पुत्र अपने पिता पर आश्रित रहने वाला एवं पिता के अनुसार चलने वाला होता हैं। 



◆यदि पुत्र का जन्म लग्न पिता की जन्मकुंडली में स्थित छठे भाव एवं आठवें भाव में स्थित राशि का होता हैं। जैसे-पिता की जन्मकुंडली में मेष लग्न की हैं, उससे छठे भाव में कन्या राशि एवं आठवें भाव में वृश्चिक राशि होती हैं, इनमें से किसी भी भावस्थ राशि में पुत्र का जन्म लग्न होने पर पुत्र अपने पिता को अपना दुश्मन मानता हैं और पिता के प्रति बुरे विचारों को रखने वाला होता हैं।




◆यदि पुत्र का जन्म लग्न पिता की जन्मकुंडली में स्थित बारहवें भाव में स्थित राशि का होता हैं। जैसे-पिता की जन्मकुंडली में मेष लग्न की हैं, उससे बारहवे भाव में मीन राशि होगी। इस तरह के पुत्र का जन्म होने पर पिता व पुत्र एक दूसरे के प्रति अनुराग नहीं रख पाते हैं।



◆यदि पुत्र के जन्मकुण्डली के लग्न भाव मे पिता की जन्मकुंडली के छठे भाव के स्वामी या आठवें भाव के स्वामी बैठे होते है। जैसे-जैसे-पिता की जन्मकुंडली में मेष लग्न की हैं, उससे छठे भाव कन्या राशि का होने से उसका स्वामी बुध या आठवें भाव में वृश्चिक राशि होने पर उसका स्वामी मंगल होगा। जब इस तरह की स्थिति बनती हैं, तब पुत्र अपने पिता से बढ़कर होता हैं, उसमें अनेक तरह की खूबियां होती हैं।  



◆यदि लग्न भाव के स्वामी के द्वारा पांचवें भाव के स्वामी को देखा जाता है और पांचवें भाव के स्वामी के द्वारा लग्न भाव के स्वामी को देखा जाता है।




◆लग्न भाव के स्वामी का पांचवें भाव में बैठा होने पर और पांचवें भाव के स्वामी नवें भाव के स्वामी के नवांश में हो और नवें भाव के स्वामी पांचवें भाव के स्वामी के नवांश में हो तो पुत्र अपने पिता के मार्गदर्शन पर चलने वाला उनका हर तरह से कहना मानने वाला और पिता की देखभाल करने वाला होता हैं। 



◆यदि पंचम स्थान में लग्न भाव के स्वामी और पांचवें एवं नवें भाव के स्वामी एक साथ होकर एक भाव में बैठे होते है और उन पर अच्छे ग्रहों के द्वारा देखा जाता हैं, तब पिता के लिए केवल राजयोग ही नहीं होता हैं बल्कि उसके होने वाली सन्तान पुत्र या पुत्री सरल स्वभाव की, सभी तरह से अपने जीवन को सुखपूर्वक व्यतीत करने वाली, अपने जीवन में ऊंचाई को छूने वाली होती हैं और पिता को सभी तरह से आराम से रखने वाली होती हैं। 




◆यदि छठे भाव के स्वामी, आठवें भाव के स्वामी अथवा बारहवें भाव के स्वामी बुरे व पापी ग्रह होकर और बुरे ग्रहों के प्रभाव में होकर पांचवें भाव में बैठे होते हैं, तब पिता को अपनी सन्तान की बीमारी से ग्रसित होने से उससे मनमुटाव व लगाव नहीं रख पाते हैं, सन्तान के द्वारा बुरे व अशिष्ट आचरणों की वजह से और सन्तान की अकाल मृत्यु होने की वजह से दुःखी रहते हैं।     




◆यदि पांचवें भाव के स्वामी पांचवें भाव में हो अथवा लग्न को अपनी पूर्ण दृष्टि के द्वारा देखते हो, तब पुत्र अपने पिता का कहना मानने वाला होता हैं और पिता-पुत्र के बीच लगाव बढ़ता है।




◆इस तरह से लग्न का संयोग पांचवें भाव व पांचवें भाव के स्वामी, कारकेश के साथ पारस्परिक जुड़ाव होता हैं, उतना ही पिता-पुत्र के बीच पारस्परिक लगाव के साथ गहरे संबंध बनते हैं।




◆यदि पांचवें भाव के स्वामी छठे, आठवें व बारहवें भाव में बैठा हो और इन भावों में बैठे पांचवें भाव के स्वामी को लग्न के स्वामी के द्वारा नहीं देखा जाता हैं, तब पिता व पुत्र के बीच गहरा लगाव रहता हैं।




◆यदि पांचवें भाव के स्वामी छठे, आठवें व बारहवें भाव में बैठा हो और इन भावों में बैठे पांचवें भाव के स्वामी को लग्न का स्वामी, मंगल और राहु अपनी पूर्ण दृष्टि से देखते हो, तो पुत्र अपने पिता के साथ नफरत करने वाला होता हैं और पुत्र अपनी वाणी से गलत व बुरे शब्दों जैसे-गाली-गलौच, अपशब्दों के द्वारा उनके हृदय को चोट पहुंचाने वाला होता हैं।




◆यदि पांचवें भाव के स्वामी बुध, बृहस्पति और शुक्र हो अथवा पांचवें भाव में राशि वृषभ, तुला, मिथुन, कन्या, धनु व मीन राशि हो, तो संतान अपने पिता के साथ हमेशा रहने वाली होगी और पिता को पुत्र अपनी मेहनत से रुपये-पैसों को कमाकर उनका पालन-पोषण करने वाला होगा और पिता को अपनी तरफ से कमाये धन से सभी तरह के सुख को प्रदान करने वाला होगा।



◆पद लग्न से पुत्र और पिता के बारे में जानकारी का होता हैं। पद लग्न से पहले, चौथे, सातवें, दशवें अथवा पांचवें, नवें अथवा तीसरे, छठे, दसवें, ग्याहरवें स्थान में यदि पांचवीं राशि पड़ती हो, तो पिता-पुत्र के बीच में गहरा लगाव रहने से एक दूसरे के साथ दोस्ताना नाता रहता हैं। 



◆जब पिता की जन्मकुंडली के लग्न से पंचम भाव के स्वामी छठे, आठवें, बारहवें भाव में बैठे होते हैं। जैसे-जैसे-पिता की जन्मकुंडली में मेष लग्न की हैं, उससे पांचवें भाव में सिंह राशि होगी उसका स्वामी सूर्य होगा जो कि छठे, आठवें, बारहवें भाव में बैठे होने पर पुत्र अपने पिता से मनमुटाव रखने वाला होता हैं।