ग्रह बाधा के होने से पूर्व मानव जीवन में क्या संकेत मिलते हैं?(What are the signs of human life before planetary obstruction?):-प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों ने आकाशमण्डल में स्थित तारों की स्थिति के बारे में आज से बहुत वर्षों पूर्व जानकारी प्राप्त कर ली थी। उन तारों के द्वारा मनुष्य के जीवन में पड़ने वाले बुरे असर व अच्छे असर की जानकारी के लिए बहुत ही मेहनत की और फिर उन्होनें उन तारों में स्थित नौ ग्रहों के बारे पूर्ण जानकारी प्राप्त की और उनका मानव जीवन पर पड़ने वाले ग्रहों के प्रभावों के संकेत को जाना और मानव जीवन में उन प्रभावों को उतारा था। इस तरह जन्मकालीन ग्रहों के पड़ने वाले असर को पूर्व में जान सकते हैं।
मनुष्य के जीवनकाल में जन्म से लेकर मरण तक के बारे में जन्मकुण्डली के आधार पर जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं, मनुष्य की जन्मकुंडली का उचित एवं अनुभव के आधार उसमें स्थित ग्रहों से मनुष्य के जीवन में पड़ने वाले अच्छे एवं बुरे प्रभावों को जाना जा सकता हैं। जन्मकुण्डली में स्थित ग्रह अच्छे एवं शुभ ग्रहों के साथ होने पर या शुभ ग्रहों के साथ युति करने पर या शुभ ग्रहों के द्वारा देखे जाने पर शुभ असर मनुष्य के जीवन पर डालते हैं। इसी तरह जन्मकुण्डली में स्थित ग्रह बुरे एवं अशुभ ग्रहों के साथ होने पर या अशुभ ग्रहों के साथ युति करने पर या अशुभ ग्रहों के द्वारा देखे जाने पर अशुभ असर मनुष्य के जीवन पर डालते हैं। मनुष्य को ग्रहों की दशा-महादशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर्दशा के अनुसार शुभता और अशुभता की जानकारी पहले ही मिल जाती हैं, जिससे उनके जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के संकेत पहले ही मिल जाते हैं। इसी तरह गोचर में स्थित ग्रहों के आधार पर शुभ या अशुभ संकेत मिल जाते हैं। इस नौ ग्रहों के कमजोर होने होने पर उन ग्रहों के संकेतों को जानकर जिस ग्रह से सम्बन्धित संकेत मिलते हैं, उन ग्रहों के उपायों को करके उस सम्बन्धित कमजोर ग्रह को मजबूत स्थिति प्रदान कर सकते हैं। नौ ग्रहों के मिलने वाले बुरे व अच्छे असर के संकेत निम्नलिखित हैं-
1.सूर्य के कमजोर एवं बुरी स्थिति में होने पर मिलने वाले संकेत:-जब मनुष्य की जन्मकुंडली या गोचर में कमजोर एवं बुरे प्रभाव में सूर्य होता हैं, तब निम्नलिखित संकेत पहले देने लगते हैं-
◆मनुष्य के द्वारा अपनी मेहनत के बल से कमाई हुए रुपये-पैसे सहित मकान-जेवरात आदि सम्पत्ति बिना किसी वजह से नष्ट होने लगती हैं।
◆मनुष्य को प्राप्त भौतिक वस्तुओं के द्वारा कामना पूर्ति से होने वाले साधनों में कमी आने लगती हैं, अन्त में सभी समाप्ति की कगार पर पहुंच जाती हैं।
◆मनुष्य के द्वारा किसी भी तरह के गुनाह नहीं करने पर भी उसको दूसरे मनुष्य के द्वारा कोर्ट-कचहरी या सामाजिक जीवन में सजा भोगनी पड़ती हैं।
◆मनुष्य को राजकीय क्षेत्र में मुसीबतों का सामना करना पड़ता हैं।
◆कोर्ट-कचहरी में चल रहे मुकदमे में अपनी इच्छा के अनुसार नतीजे नहीं मिलना।
◆मनुष्य के हृदय में बार-बार दुखावा होकर हृदय गति से सम्बन्धित बीमारी के कारण शारीरिक एवं मानसिक रूप दुःखी होना।
◆जन्मकुंडली में सूर्य जिस घर में होता हैं, उस घर से जुड़े फलों की हानि करता हैं।
◆मनुष्य का मस्तिष्क किसी वस्तु से टकरा जाता हैं, जिससे मानसिक विकृति हो सकती हैं।
◆यदि सूर्य पांचवें भाव का स्वामी, नवें भाव का स्वामी होने पर पिता एवं पुत्र को कष्ट देता है।
◆सूर्य लग्नेश होने पर मनुष्य को माथे की पीड़ा, शरीर का तापमान सामान्य से बहुत बढ़ जाता हैं एवं पित्त रोगों से पीड़ा मिलती हैं।
◆मनुष्य की इज्जत एवं पद में कलंक लग जाना।
◆मनुष्य को अपने कार्यक्षेत्र में उच्च कर्मचारी से बिना वजह मनमुटाव होना।
◆मनुष्य की अस्थियों के जुड़ाव वाली जगह पर कैलिशयम कमी होने से जुड़ाव की जगह पर कट-कट की ध्वनि आने लगती हैं, जिससे मनुष्य बहुत ही कष्ट होता हैं।
◆मनुष्य का शरीर में रक्त का संचार सही से होने पर अंगों में विकृति आने लगती हैं और मनुष्य के शरीर के अंग सही तरह कार्य नहीं कर पाते हैं। अकड़ने लगता हैं, वह चलने-फिरने के योग्य नहीं रहता हैं।
◆मनुष्य की फसल बिना वजह ही सुख कर नष्ट हो जाती हैं।
◆मनुष्य के मुख में बार-बार थूक आने लगता हैं, जिससे उसे बार-बार थूकना पड़ता है।
◆मनुष्य को सूर्यदेव की तेज धूप में चलना पड़ता है और कभी-कभी तो तेज धूप में खड़ा भी रहना पड़ता है।
◆जब मनुष्य के निवास स्थान की जगह में पालित लाल रंग की धेनु या भूरी भैंस को कोई चुरा लेता हैं।
◆आदमी का दायाँ एवं औरत का बायाँ नेत्र की ज्योति धूमिल होने लगती हैं, जिससे मनुष्य को दिखाई देना कम हो जाता हैं।
◆मनुष्य के बाल धीरे-धीरे कम होने लगते हैं, फिर मनुष्य सिर से गंजा दिखाई पड़ता हैं।
◆सिर, मस्तिष्क, चेहरा, मुख, हृदय, प्लीहा, मेरुदण्ड, उदर, प्राण- शक्ति, रक्त आदि के रोग हो जाते हैं।
◆मनुष्य के पिता के साथ अच्छे सम्बन्ध व लगाव नहीं रह पाता हैं, जिससे निवास स्थान का वातावरण दुषित होता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा शासन में नौकरी करते समय बिना वजह के अधिकारियों से मतभेद और उनके द्वारा प्रताड़ित होना पड़ता हैं।
◆मनुष्य का शरीर धीरे-धीरे कमजोर होने लगता हैं और उसमें जोश समाप्त हो जाता हैं।
◆मनुष्य के निवास स्थान में उजाला करने वाली वस्तुएं नष्ट होंगी या उजाला के माध्यम खराब एवं नष्ट हो जाते हैं जैसे-जलते हुए लट्टू का फ्यूज होना, दीपक जलते-जलते बुझ जाना, ताम्र धातु की वस्तु का गुम हो जाना।
◆सूर्योदय से दोपहर तक सूर्य का प्रकाश के प्रवेश करते समय रोशनदान का निवास स्थान की जगह में बंद हो जाना जैसे-बिना जानकारी से उस रोशनदान में कोई सामान को भर देना या किसी पक्षी के घोंसला बना लेने के कारण उसका बन्द हो जाना आदि।
◆सूर्य के कारकतत्व से जुड़े विषयों के बारे में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
सूर्य के कमजोर होने के कारण:-मनुष्य के द्वारा निम्नलिखित कार्य को करने के कारण सूर्य कमजोर और बुरा फल देते हैं:
◆मनुष्य के द्वारा अपने परिवार के बूढ़े-बुजुर्गों एवं अपने पिता का सम्मान नहीं करने और उनका कहना नहीं मानने पर सूर्य कमजोर हो जाते हैं।
◆जब कोई भी मानव दूसरे मानव को शारीरिक एवं मानसिक रूप से हैरान करते हुए उनके साथ छलावा करके उनके आत्मा को दुखाते हैं।
◆मानव के द्वारा सरकार के द्वारा निर्धारित आवक से ऊपर होने पर अपनी आवक के कर को नहीं भरते हैं।
◆मानव के द्वारा छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़ों सहित प्राणियों के अपने मौज के लिए उनको दुःखी करके तड़फाते हुए आनन्द मनाते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा ईश्वर, परलोक आदि के सम्बन्ध में विशेष तरह का विश्वास एवं उपासना पद्धति का विरोध करते हुए गलत कामों करने लग जाते हैं।
◆मनुष्य अपने खानदान के आचरण संबंधी बनाये गए नियमों की परंपरा को तोड़कर उन परम्परा के विरुद्ध काम करने लगता हैं।
2.चन्द्रमा के कमजोर एवं बुरी स्थिति में होने पर मिलने वाले संकेत:-जब मनुष्य की जन्मकुंडली या गोचर में कमजोर एवं बुरे प्रभाव में चन्द्रमा होता हैं, तब निम्नलिखित संकेत पहले देने लगते हैं-
◆मनुष्य के मन में अनेक तरह की कल्पनाएं उत्पन्न होने लगती हैं, जिससे वह उन कोरी कल्पना में खोया रहता हैं।
◆मनुष्य के किसी भी तरह से कार्य में सफलता नहीं मिलने पर उसके मन में कार्य के पूर्ण होने की आशा समाप्त हो जाती हैं, जिससे मन में अनेक तरह के ख्याल आने लगते हैं और सही मार्गदर्शन को ग्रहण कर पाते हैं।
◆मनुष्य को सरकारी विभाग में बदनामी के दाग लग जाते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा अपनी मेहनत के बल से कमाई हुई धन-संपदा धीरे-धीरे समाप्त होने लग जाती हैं।
◆मनुष्य को सोच इस तरह की हो जाती हैं कि उसे लगता हैं कि कोई उसका नुकसान कर सकता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा पहने हुए श्वेत एवं सुंदर कपड़ा बिना वजह से फट जाता हैं या उस श्वेत व साफ कपड़े पर किसी तरह का गाढ़ी वस्तु का दाग लग जाता हैं।
◆मनुष्य के निवास स्थान में जगह-जगह पर लगे हुए नल से पानी टपकने लगे और बिना वजह से बेकार जल की हानि होती हैं।
◆मनुष्य की पनिहारी या किसी दूसरी जगह पर रखे हुए कुम्भ का अकस्मात फुट जाता हैं।
◆मनुष्य के निवास स्थान में पानी रखने का छोटा या बड़ा कुंड या धातु, प्लास्टिक से युक्त कुंड से पानी टपकने लगे।
◆मनुष्य को दूसरों के द्वारा जीवनकाल में कोई सहयोग करने को तैयार नहीं होता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा रुपये-पैसों के लिए दूसरों के आगे हाथ पसारना पड़ता है, जिससे कर्ज बढ़ता जाता है और किसी भी तरह से नहीं उतर पाता है।
◆मनुष्य को प्यार में सफलता नहीं मिलती हैं दूसरों के द्वारा प्यार में धोखा खाना पड़ता हैं, जिससे समाज में अपयश मिलता हैं।
◆मनुष्य के निवास स्थान में सफेद वर्ण की वस्तुएं जैसे-चावल में कीड़े पड़ना, दूध का उफ़न जाना, दही में किसी जंतु-जीव का गिरना आदि की कमी होना एवं नुकसान होने लगता हैं।
◆मनुष्य को भ्रूण, नेत्र पुरुष का बायाँ स्त्री का दायाँ, आहारनाल, अण्डाशय, गर्भाशय, बुद्धिमत्ता, छाती (स्तन, वक्ष, फेफड़े, पसली), लार, लारग्रन्थियों, रक्त, महिलाओं के जननांग एवं जननग्रन्थियाँ, शरीर में स्थित जल, उदरे, मूत्राशय, रसधातु, शारीरिक पुष्टि, कफ आदि बीमारियों से परेशानी होती हैं।
◆मनुष्य को जल की पूर्ति होने वाले स्रोतों जैसे-कुआं, सरोवर में पानी कम होकर सूख जाता हैं या हैण्ड-पम्प से पानी बाहर नहीं निकलता हैं।
◆जब मनुष्य के निवास स्थान की जगह पर दूध देने वाले पशु या अश्व बिना कारण ही अपने प्राण का त्याग कर देते हैं।
◆मनुष्य की रजत धातु की बनी हुई अंगूठी या रजत धातु से युक्त श्रृंगार गहने की चोरी हो जाती हैं।
◆मनुष्य के हाथ में रजत धातु जड़ित मोती रत्न से युक्त अंगूठी गिर जाती हैं।
चन्द्रमा के कमजोर होने के कारण:-मनुष्य के द्वारा निम्नलिखित कार्य को करने के कारण चन्द्रमा कमजोर और बुरा फल देते हैं:
◆मनुष्य के द्वारा जननी, मातामह (नानी, दादी), सास आदि को अपनी वाणी के शब्दों से आघात देने और उनका अपमान करने से उनका जी दुःख पाता है।
◆मनुष्य के द्वारा अपनी जननी की किसी बात पर ध्यान नहीं देते हैं और आराम-तकलीफ में परवाह नही करते हैं।
◆मनुष्य की माता को शारीरिक बीमारी की पीड़ा से ग्रसित होने के कारण चन्द्रमा कुपित हो जाता है।
◆मनुष्य के हाल में जन्म लेनी वाली पुत्री को किसी बीमारी की पीड़ा से दर्द को सहना पड़े।
◆मनुष्य के द्वारा अपनी जननी को जन्म के कुछ समय बाद या वृद्धावस्था में अपने निवास स्थान से बाहर निकाल देने के कारण चन्द्रमा कुपित हो जाते हैं।
◆मनुष्य को दोस्तों पर विश्वास समाप्त हो जाता है और वह दोस्तों को अपना दुश्मन मानने लगे जाता है, उनके साथ अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए अनैतिक आचरण भी करने लग जाता हैं।
◆मनुष्य को जल एवं कफ से संबंधित व्याधियाँ जैसे-पेट के अंदर पानी का इकट्ठा होने, नाक का लगातार बहना, श्वास लेते समय तकलीफ व कफ निकलना, नाक से खून का निकलना, चावल के माँड़ जैसा वर्णविहीन अतिसार और वमन होना आदि।
◆मनुष्य को ठंड लगने से उसकी नाक से पानी बार-बार निकलता रहता हैं और जीवन काल में जुकाम या ठंड लगने की बीमारी से ग्रस्त रहते हैं।
◆मनुष्य को उच्चरक्तचाप की बीमारी के कारण शारीरिक रूप से पीड़ा होने के कारण चन्द्रमा कुपित रहता हैं।
◆मनुष्य को छोटी-छोटी बात पर रोष प्रत्येक समय बना रहता हैं। इन सब कारणों से समझना चाहिए कि चन्द्रमा ग्रह अशुभ स्थिति में होने से होता हैं।
◆मनुष्य के परिवार के सदस्यों के बीच बेवजह ही कलह होने लगता हैं।
◆मनुष्य का किसी दूसरी स्त्री के साथ तर्क-वितर्क होने से परेशानी होने।
◆इंसान जब खाना खाते समय पत्नी के द्वारा गलत शब्दों के द्वारा खाना हराम कर देती हैं।
3.मंगल के कमजोर एवं बुरी स्थिति में होने पर मिलने वाले संकेत:-जब मनुष्य की जन्मकुंडली या गोचर में कमजोर एवं बुरे प्रभाव में मंगल होता हैं, तब निम्नलिखित संकेत पहले देने लगते हैं-
◆मनुष्य की भूमि का कोई हिस्सा किसी दूसरे मनुष्य के द्वारा जबर्दस्ती से हड़फ लिया जाता हैं।
◆मनुष्य की भू-सम्पत्ति का कुछ हिस्सा के लिए टकराव होता हैं, जिससे कुछ हिस्सा नष्ट भी होता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा ज्वाला को प्रज्वलित करने पर भी ज्वाला प्रज्वलित नहीं हो पाती हैं।
◆मनुष्य के निवास स्थान की किसी भी जगह में हुताशन लग जाती हैं, लेकिन नुकसान कम होता हैं।
◆जलती हुई ज्वाला अकस्मात बिना किसी भी कारण से बुझ जाती हैं।
◆मनुष्य को बिना कारण ही बुरी घटना हो जाती हैं, जिसमें शोक एवं जन-धन की हानि हो जाती हैं।
◆मनुष्य के द्वारा देवताओं को खुश करने के लिए आग में घृत, जौ आदि डालने की क्रिया करते समय हुताशन अकस्मात जलती हुई बुझ जाती हैं।
◆मनुष्य के निवास स्थान के किसी हिस्सा टूटकर अलग हो जाता हैं और दीवार में से ईंट अलग होंकर टूट जाती हैं।
◆मनुष्य की लाल रंग की वस्तु एवं कारकत्व की वस्तुएं कही पर गुम जाती हैं।
◆मनुष्य के शरीर में शोणित बार-बार बिना कारण से कम होने लगता है।
◆मनुष्य के जीवन में अति दुखद घटना जो नहीं होनी चाहिए वह होने लगती हैं।
◆मनुष्य के शरीर पर किसी तरह की वस्तु से चोट लगने के कारण अंग छिल जाने से जख्म होना।
◆मनुष्य के मस्तिष्क में बिना वजह ही पीड़ा होती हैं, ऐसा लगता हैं कि कोई सूई चुभा रहा हो और मस्तिष्क में घाव हो जाता हैं।
◆मनुष्य अपने जीविकोपार्जन की जगह पर दुश्मनों के द्वारा अपनी दुश्मनी निकालने के लिए हर समय तैयार रहते हैं, जिससे मनुष्य को किसी बात के बारे में पता नहीं होता हैं और नुकसान भोगना पड़ता हैं।
◆मनुष्य किसी से भी मनुष्य के साथ अपनी बात को मनवाने के लिए बहस करने लगता हैं, जिससे मनुष्य का मन चिंतायुक्त हो जाता हैं।
◆मनुष्य को कानूनी मामलों की वजह से न्यायालय के चक्कर काटने पड़ते हैं।
◆मनुष्य को अपने जीवनसाथी के साथ बेवजह छोटी-छोटी बातों पर टकराव होने की वजह अलग होने तक कि नौबत आ जाती हैं। जीवनसाथी अपने वैवाहिक जीवन में एक-दूसरों पर शक करने लगते हैं, जिससे जीवन दुखमयी बन जाता हैं।
◆मनुष्य को अपने जीवन में चीर-फाड़ के इलाज भी करवाने पड़ता है।
◆मनुष्य को धन संबंधी तकलीफों का सामना करना पड़ता हैं, जिससे दूसरे मनुष्य के द्वारा कर्ज लेना पड़ता है, कर्ज के दबाव को झेलना पड़ता हैं।
◆मनुष्य को रुपयों-पैसों के साथ जायदाद का भी नुकसान होने लग जाता हैं।
मंगल के कमजोर होने के कारण:-मनुष्य के द्वारा निम्नलिखित कार्य को करने के कारण मंगल कमजोर और बुरा फल देते हैं:
◆मनुष्य के द्वारा अपने भ्राता के साथ बिना कारण लड़ाई-झगड़े करके टकराव करके उसको कष्ट प्रदान करते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा अपने भ्राता की भार्या के साथ बुरा आचरण करके इज्जत को खंडित करने वाले एवं हेय समझने का भाव वाले होने से मंगल कुपित हो जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा अपने भाई-बंधुओं के साथ अपनी स्वार्थ की कामना से किया हुआ अनैतिक आचरण करते हुए भ्राता की धन-दौलत को अनुचित तरिके से कब्जा कर लेते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा अपने भाई को दूसरों के द्वारा या स्वयं के द्वारा जान से मार देने के कारण मंगल कमजोर हो जाते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा अपने भाई को बिना वजह परेशान करके तकलीफ देते हैं, जिससे मंगल कुपित हो जाते हैं।
◆मनुष्य के बिना वजह ही दोस्त दुश्मन बनकर अपनी क्रियाविधि से दुश्मनी निकालते है।
◆मनुष्य अठाइस वर्ष की उम्र में प्रवेश करते ही समस्त जीवन के आराम हराम हो जातें हैं।
◆मनुष्य को आवश्यकता के समय कोई भी सहायता करने के आगे आते नहीं हैं, जिससे मनुष्य निराश हो जाते हैं।
4.बुध के कमजोर एवं बुरी स्थिति में होने पर मिलने वाले संकेत:-जब मनुष्य की जन्मकुंडली या गोचर में कमजोर एवं बुरे प्रभाव में बुध होता हैं, तब निम्नलिखित संकेत पहले देने लगते हैं-
◆मनुष्य की सोचने-समझने की ताकत समाप्त हो जाते हैं, जिससे मनुष्य किसी भी तरह के विषय, बात आदि के पक्ष-विपक्ष की सभी बातों का विचार करके उसके विषय में अपनी अच्छी एवं बुरी राह को निश्चित करने में अशक्त हो जाते हैं।
◆मनुष्य को सहवास सुख में रुचि कम होने लगती हैं, जिससे उदासीनता बढ़ जाती हैं।
◆मनुष्य को त्वक विकृति से सम्बंधित कीटाणु व्याधि आदि एक दूसरे में जल्दी फैलकर व्याधि को उत्पन्न होते हैं।
◆छात्रवृतिधारी को पुस्तक या शिक्षक के माध्यम से प्राप्त होने वाले ज्ञान में रुचि कम हो जाती हैं।
◆मनुष्य को किताबें और अपने गुण-दोष, शक्ति, योग्यता आदि की ठीक-ठाक स्थिति को पता लगाने के लिए इम्तिहान आदि में रुपये-पैसों का बिना मतलब का खर्चा करना पड़ता है।
◆मनुष्य को बिना मतलब से रुपयों-पैसों का नुकसान होने लगता हैं जैसे-घर में रुपयों-पैसों की चोरी हो जाना, आवक में कमी होने लगती हैं और बटुआ में रुपयों का गिर जाना आदि के कारण उसको दूसरे से मदद लेनी पड़ती हैं, जिससे ऋण बढ़ जाता है और बढ़ता जाता हैं।
◆मनुष्य को फेफड़े में विकार होने लगते हैं, जिससे उनको अपनी श्वास लेने व छोडने में पीड़ा होती है और अस्थमा की बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं।
◆मनुष्य आंख मूंदकर किसी भी लिखित कागज पर दूसरों के विश्वास में आकर दस्तखत कर देते हैं, जिससे बाद में मुसीबतों का सामना करना पड़ता हैं।
◆मनुष्य के दांत टूटना प्रारम्भ हो जाते हैं।
◆मनुष्य के घ्राणेन्द्रिय के द्वारा किसी चीज या वस्तु के गंध को स्पष्ट रूप से सूंघ नहीं पाते हैं।
बुध के कमजोर होने के कारण:-मनुष्य के द्वारा निम्नलिखित कार्य को करने के कारण बुध कमजोर और बुरा फल देते हैं:
◆मनुष्य अपनी सहोदरा या तनुजा, बुआ, साली और मौसी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हुए उनको बेवजह उनको तकलीफ पहुंचाते हैं और उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं।
◆हिजड़े या किन्नर के साथ दुर्व्यवहार करते हुए उनके साथ उपेक्षापूर्वक व्यवहार करते हुए हेय की दृष्टि से देखते हुए उनके सम्मान को ठेस पहुंचाते हैं, तब बुध ग्रह कमजोर होकर अपने संकेत देने लग जाते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा अपनी पुत्री या सहोदरा के साथ बुरा व्यवहार करके उनको प्रताड़ित करने पर या उनकी किसी के द्वारा हत्या करवा दें से या गुम या भोले-भाले बच्चों को अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए उनको पकड़कर बंधक बनाकर रखते हो उनके बदले में रुपयों-पैसों की मांगनी करते हो।
◆मनुष्य के द्वारा अपनी सहोदरा या पुत्री के साथ गलत रास्ते को अपनाकर उनके रुपयों-पैसों व सम्प्रदा को धोखा से छीन लेने पर बुध अप्रसन्न हो जाते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा सभी तरह से आर्थिक रूप से, बौद्धिक रूप से और भौतिक रूप से सक्षम होते हुए भी अपनी सहोदरा या पुत्री को ऐसा मकान देते हैं, जिससे उस सहोदरा या पुत्री दिनोंदिन निर्धनता बढ़ती जाती हैं।
◆मनुष्य सभी तरह से सक्षम होने पर भी अपनी सहोदरा या पुत्री की उसके बुरे हालात में सहायता नहीं करते हैं।
◆मनुष्य को अपने सासरे व नानरे पक्ष के सदस्यों के द्वारा किसी भी तरह से कोई सहयोग नहीं करते हैं।
5.गुरु के कमजोर एवं बुरी स्थिति में होने पर मिलने वाले संकेत:-जब मनुष्य की जन्मकुंडली या गोचर में कमजोर एवं बुरे प्रभाव में गुरु होता हैं, तब निम्नलिखित संकेत पहले देने लगते हैं-
◆मनुष्य के द्वारा अपने पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक आदि कार्यों को अपनी योग्यता के अनुसार अच्छे भाव से करने पर भी मनुष्यों के द्वारा बदनामी मिलती हैं।
◆मनुष्य को गले में माल्य पहने की आदत हो जाती है।
◆मनुष्य की स्वर्ण धातु से बनी वस्तु या जेवरात कहीं पर से चोरी हो जाता हैं।
◆मनुष्य के श्रृंगार के गहने को कही पर रखकर भूल जाना या किसी के द्वारा चोरी कर लेना।
◆मनुष्य के मस्तिष्क के कुंतल धीरे-धीरे कम होने लगते हैं और बादमें सिर पर कुंतल पूर्ण रूप से कम होकर टकला हो जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा किसी दूसरे मनुष्य के साथ किये हुए वादा पूर्णरूप से नहीं निभाया पाते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा वाणी से मिथ्यात्व के भाव को अपनाते हुए गलत करने लग जाते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा बिना गलती के परेशानी झेलनी पड़ती और लांछन लग जाते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा पूजनीय मनुष्य या धर्म में आस्था रखते हुए कर्म को करने वाले मनुष्य का बिना जानकारी के निरादर हो जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा धर्म विशेष के व्यवहार, पूजा-उपासना आदि की विधियों तथा उपदेशों के संकलित आगम का नाश हो जाता हैं।
◆मनुष्य की विद्या प्राप्ति में रुकावट के ऊपर रुकावट आने लगती हैं जिससे वे उचित विद्या को ग्रहण नहीं कर पाते हैं।
◆मनुष्य की यादशक्ति कम होने लग जाती हैं।
◆मनुष्य के परिवार-कुटुंब के सदस्यों में आपसी टकराव होने से लड़ाई-झगडे होने से निवास स्थान का माहौल क्लेश युक्त हो जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा अच्छे व विद्वान मनुष्यों के साथ बेवजह टकराव होने लगता हैं।
◆मनुष्य के शरीर में अस्थियों के मेल वाले भाग पर असहाय पीड़ा व चोट आदि के कारण फूल जाती हैं।
◆मनुष्य को शारीरिक रूप से ठंड लगने से वेदना को भोगना पड़ता हैं।
◆मनुष्य के शरीर में जरूरत से ज्यादा वसा इकट्ठी हो जाती हैं, जिससे मनुष्य भारी-भरकम शरीर वाला हो जाता हैं।
◆मनुष्य किसी विषय या बात के प्रति मन ही मन में सोचते व विचारने की प्रवृत्ति बढ़ जाती हैं, जिससे उनको नींद नहीं आती हैं और चिंता से व्याकुल रहते हैं।
◆मनुष्य का जिगर में दोष होने से श्वेत-पीले रंग के शरीर के अंग होने लगते हैं, जिसे कामला या पांडु व्याधि कहते हैं।
◆मनुष्य के पुत्र संतान किसी भी तरह से कहना नहीं मानता हो, अपनी मर्जी से काम करता है और पुत्र संतान को किसी तरह की बीमारी हो जाती हैं और परेशानी को भोगना पड़ता है।
गुरु के कमजोर होने के कारण:-मनुष्य के द्वारा निम्नलिखित कार्य को करने के कारण गुरु कमजोर और बुरा फल देते हैं:
◆मनुष्य के द्वारा अपने पिता, दादा, नाना आदि की बातों पर ध्यान नहीं देना, उनका कहना नहीं मानना और उसके साथ उचित व सही व्यवहार नहीं करना चाहिए।
◆मनुष्य के द्वारा ऋषि-मुनियों और ज्ञानी व्यक्तियों के साथ दुर्व्यवहार करने के कारण गुरु कुपित हो जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा अपने गुरु का सम्मान नहीं करना।
◆मनुष्य के द्वारा पिप्पर के वृक्ष को किसी भी तरह से नुकसान पहुंचाने के कारण गुरु कुपित हो जाते हैं।
◆मनुष्य के परिवार-कुटुम्ब के सदस्यों के द्वारा अपने कुलदेव या कुलदेवी के प्रति आस्था व उनकी पूजा-उपासना करना बंद करके दूसरे देव या देवी को अपना कुलदेव या कुलदेवी बनाने के कारण गुरु अप्रसन्न हो जाते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा ब्राह्मणों के साथ वाणी से कठोर वचनों के द्वारा उनका निरादर करने के कारण गुरु नाराज हो जाते हैं।
◆मनुष्य के परिवार में वंश वृद्धि नहीं होने से भी गुरु कुपित हो जाते हैं।
6.शुक्र के कमजोर एवं बुरी स्थिति में होने पर मिलने वाले संकेत:-जब मनुष्य की जन्मकुंडली या गोचर में कमजोर एवं बुरे प्रभाव में शुक्र होता हैं, तब निम्नलिखित संकेत पहले देने लगते हैं-
◆मनुष्य के द्वारा रतिक्रीड़ा की कामना या इच्छा की भावना ज्यादा जागृत होती हैं।
◆मनुष्य का किसी औरत के साथ बिना मतलब के तर्क-वितर्क होता हैं।
◆मनुष्य के हाथ या पैर के अंगूठा में किसी तरह की हरकत नहीं हो पाती हैं।
◆मनुष्य स्वप्न में वीर्य रुखलन कर देता और मनुष्य के शरीर के धातु तत्वों का क्षय से संबंधित व्याधियाँ होने लगती हैं, जिससे मनुष्य का शरीर कमजोर हो जाता हैं।
◆मनुष्य को त्वक विकृतियां जैसे-शरीर पर सफेद चकते होने लगते हैं और शरीर में खुजलाहट आदि व्यधियाँ होने लगती हैं।
◆जब मनुष्य का औरतों के साथ तर्क-वितर्क होने से एक-दूसरों के साथ तालमेल नहीं बन पाता हैं।
◆औरतों के द्वारा विश्वासघात मिलना एवं अपमान का सामना करना पड़ता हैं।
◆मनुष्य के बनते-बनते कार्यों में रुकावट के ऊपर रुकावट आने लगती है और कार्यों में असफलता मिलती हैं।
◆शारिरीक सौन्दर्यं में कमी आने लगती और आकर्षण शक्ति में कमी आने लगती हैं।
◆दूसरे मनुष्य से बनती नहीं हैं और दूसरे मनुष्य बात करने से भी दूर रहते हैं।
◆मनुष्य को रात में स्वप्नदोष की व्याधि हो जाती हैं।
◆मनुष्य को त्वचा से सम्बंधित कई तरह के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
◆मनुष्य के हाथ व पावों का अंगूठा अचानक ही बेकार या सुन्न हो जाता है।
◆मनुष्य के वाहन को क्षति हो जाती हैं।
◆आचरणहीन औरतों से मित्रता होने से दाम्पत्य जीवन में पत्नी से वियोग को भोगना पड़ता हैं।
◆मनुष्य को मधुमेह की व्याधि का सामना करना पड़ता हैं।
◆मनुष्य को अपने निवास स्थान में खुशी के दिन गम का मुहं देखना पड़ सकता हैं।
शुक्र के कमजोर होने के कारण:-मनुष्य के द्वारा निम्नलिखित कार्य को करने के कारण शुक्र कमजोर और बुरा फल देते हैं:
◆जब मनुष्य अपनी जीवनसाथी को इज्जत नहीं देते हैं, उसके साथ हर समय अपशब्दों का प्रयोग करते हुए दुत्कारते हैं।
◆मनुष्य अपने शरीर की साफ-सफाई नहीं रखते हुए गंदे व फटे-पुराने वस्त्रों को पहनते हैं।
◆पुरुष के द्वारा दूसरे स्त्री या स्त्री के द्वारा दूसरे पुरुष के साथ सहवास का रिश्ता बना लेते हैं।
◆जब मनुष्य की बढ़ी हुई इच्छा के मोह में ग्रसित होकर गर्भिणी औरत के कोख को गिरवा दिया जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा अपनी अर्द्धांगिनी को बेवजह लड़ाई-झगड़ा करके, मारने-पीटने आदि के काम करके उसे अपने निवास स्थान से बाहर निकाल दिया जाता है।
◆मनुष्य बहुत विवाह करने के बाद भी उसे पत्नी या पति का सुख नहीं मिलता हैं।
◆मनुष्य का विवाह होने पर स्त्री को अपने सासरे में किसी भी उपचार से व्याधि ठीक नहीं हो पाती हैं।
◆जब मनुष्य के निवास स्थान में जब कोई शुभ या धार्मिक प्रसंग के समय किसी अकस्मात बुरी सूचना प्राप्त होती हैं।
7.शनि के कमजोर एवं बुरी स्थिति में होने पर मिलने वाले संकेत:-जब मनुष्य की जन्मकुंडली या गोचर में कमजोर एवं बुरे प्रभाव में शनि होता हैं, तब निम्नलिखित संकेत पहले देने लगते हैं-
◆मनुष्य को अपने शरीर एवं मस्तिष्क को आराम देने से सम्बंधित परेशानी होने लगती हैं।
◆मनुष्य के द्वारा किसी विकलांग मनुष्य या बहुत ही गरीब और गंदगी से युक्त मैले वस्त्रों को पहने मनुष्य के साथ बहस हो जाती हैं।
◆मनुष्य के रहने की जगह अकस्मात ही हुताशन लग कर भड़क जाती हैं, जिससे निवास स्थान की अनेक वस्तुओं का नुकसान हो जाता हैं।
◆मनुष्य के निवास स्थान में दराज पड़ जाती हैं और कोई भी भाग में दराज आकर गिर जाता हैं।
◆मनुष्य को लोहे की बनी हुई वस्तु से शरीर के किसी अंग में कट-फट कर छिल जाने से भीतर तक झकझोर देने वाला घाव हो जाता हैं।
◆मनुष्य का निचले स्तर से संबद्ध कार्य करने वाले मनुष्य के साथ बहस होकर कलह हो जाता है।
◆मनुष्य के हाथ से रोगन गिर जाता हैं।
◆मनुष्य के स्वच्छ वस्त्रों पर कोई गंदगी से युक्त पदार्थ गिर जाता हैं, जिससे वस्त्रों पर भद्दा दाग लग जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा फटे-पुराने एवं मैले-कुचले वस्त्रों को पहनने लग जाता हैं।
◆मनुष्य की इच्छा निर्जन जगह पर जाने, गंदगी से युक्त स्थान और सांस लेने में दिक्कत वाले स्थानों में जाने की होती हैं।
◆मनुष्य के द्वारा पाला-पोसा हुआ काला जानवर जैसे-काली धेनु, काली महिष, काली अज, काला श्वान या काला शंखचुड आदि बिना वजह ही अपना जीवन को त्याग देते हैं।
◆मनुष्य के दाढ़ी-मूछें एवं केश जल्दी-जल्दी बढ़ने लगते हैं।
◆मनुष्य की भौहों एवं पलकों के बाल झड़ने लगते हैं।
◆मनुष्य के रहने जगह पर सुर्यदेव की किरणों का कम आने लगती हैं।
◆मनुष्य की अस्थियों के मेल की जगह सूजन व दुखावा, अकड़न एवं पैरों एवं घुटनों में दुखावा होने लगता हैं।
◆मनुष्य के एक टांग में कट-फट कर या छिल जाने के कारण जहर से घाव होने से उस घाव की जगह पर कालापन हो जाता हैं।
◆मनुष्य को बिना वजह ही कारागार में जाने का डर मन में बैठ जाता हैं।
◆मनुष्य को मरघट या मसान या मुरदा या लाश के स्वप्ने दिखाई पड़ने लगते हैं।
◆मनुष्य के चक्षु में धुंधलापन आने लगता हैं, जिससे उसके चक्षु दृष्टि में विकृति आने लग जाती हैं और मोतियाबिंद रोग का शिकार हो जाता है।
◆जब मनुष्य की गुणी संतान होते हुए अपने मार्ग से भटक जाते हैं और बुरी संगति में फंस जाते हैं।
◆जब मनुष्य के किसी लगाव से युक्त बूढ़े-बुजुर्ग या परिवार-कुटम्ब के रिश्तेदार को कोई बीमारी हो या किसी वजह से मृत्यु हो जाती हैं।
◆जब मनुष्य के परिवार के सदस्यों को निवास स्थान में घबराहट या बेचैनी के कारण नींद नहीं आती हैं, जिससे उनको अनिद्रा की व्याधि हो जाती हैं।
◆मनुष्य को एवं उसके सासरे वाले सदस्यों को बिना वजह ही कानून प्रशासन परेशान करता हैं, तब शनि कमजोर होने के संकेत दे देता हैं।
शनि के कमजोर होने के कारण:-मनुष्य के द्वारा निम्नलिखित कार्य को करने के कारण शनि कमजोर और बुरा फल देते हैं:
◆मनुष्य को अपने पिता के बड़े भाई और छोटे भाई के साथ अपनी वाणी से गलत बोलचाल करते हुए उनसे झगड़े करने लग जाता है, तब शनि कमजोर होकर पीड़ा देने लगते हैं।
◆जो मनुष्य थकावट भरी मेहनत करते हैं, उन मनुष्य को तकलीफ देते हैं।
◆जो मनुष्य विधि-विधान की दृष्टि से ठीक चाल-चलन या कामों को नहीं कर पाते हैं और इस तरह के कामों को करने में दूसरों की मदद करने वाले होते हैं।
◆मनुष्य के द्वारा किसी दूसरे मनुष्य के साथ दुर्वचन शब्दों के द्वारा तू-तू-मैं-मैं करके झगड़ा करके जी दुखाते हैं।
◆जो मनुष्य दारू आदि मादक द्रव्यों और मांस का भक्षण करने के आदि होते हैं, तब शनि बुरा असर डालने लग जाता हैं।
◆जब मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य को मकान या दुकान को किराये के रूप में देकर उनको परेशान करके जबरदस्ती रुपयों-पैसों के लिए परेशान करते हैं, तब शनि ग्रह कुपित हो जाते हैं।
◆जब मनुष्य के द्वारा अपनी इच्छा पूर्ति के फलस्वरुप किसी दूसरे के साथ यथार्थ को छुपाकर हत्या करवा दी हो, तो शनि कुपित हो जाते हैं।
◆जब मनुष्य के परिवार-कुटुम्ब के सदस्यों की बढ़ोतरी रुक जाती हैं और बिना वजह ही रुकावटों के ऊपर रुकावटें आने लगती हैं।
◆जब मनुष्य को अपने जीवन में किसी भी तरह का कारण ज्ञात नहीं हो रहा हो तो, निश्चित रूप से मनुष्य के द्वारा किसी प्रकार से अपने बल के द्वारा दूसरों के धन या वस्तु को अधिकार किया होने पर शनि दूषित होते हैं।
8.राहु के कमजोर एवं बुरी स्थिति में होने पर मिलने वाले संकेत:-जब मनुष्य की जन्मकुंडली या गोचर में कमजोर एवं बुरे प्रभाव में राहु होता हैं, तब निम्नलिखित संकेत पहले देने लगते हैं-
◆मनुष्य को मृत भुजंग या चार पैरों वाली एवं लंबी दुम से युक्त सरिसृप का दिखाई देना।
◆मनुष्य के हाथों में दुखावा होना एवं हाथ के नाखूनों में चोट लगने से रक्त का बहना।
◆मनुष्य के खिलाफ बिना मतलब से दूसरे मनुष्य का होना और चारों तरफ से घेर लेना।
◆मनुष्य के निवास स्थान की जगह पर रुई या सन आदि से ऐंठकर बनाई हुई डोरी के बांधी गई जगह से एकाएक ही खुल जाना।
◆मनुष्य मानसिक रूप से विकृत हो सकता हैं या पूर्ण रूप से पागल भी हो सकता हैं। दिमाग काम करना बंद कर देता हैं।
◆मनुष्य के चित्त में सोचने-समझने से सम्बंधित विकृति हो जाती हैं, जिससे मनुष्य की स्मरण शक्ति कम हो जाती हैं।
◆मनुष्य की स्मरण शक्ति के कम होने से रास्ता या दूसरी चीजों से सम्बंधित परेशानियां शुरू हो जाती हैं।
◆मनुष्य के मस्तिष्क पर चोट लगने या क्षय रोग होने मृत्यु हो सकती हैं।
◆मनुष्य के जीवन की जरूरत की वस्तु को कहीं पर रखकर भूल जाना या वस्तु की चोरी हो जाना।
◆मनुष्य को जगह-जगह पर मरे हुए पशु-पक्षियों का दिखाई पड़ना।
◆मनुष्य के द्वारा पालित पशु-पक्षी को कोई चोरी कर लेते हैं या मर जाते हैं।
◆जब मनुष्य के द्वारा पालित काला कुत्ता मर जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा किसी सरिता या पाप व दोष को दूर करने वाले शुभता देने वाले कुण्ड के नजदीक जाकर भी स्नान नहीं कर पाना।
◆मनुष्य के पास में नशा हेतु तंबाकू, गाँजा आदि पीने वाले मनुष्य आकर बैठ जाते हैं और जो लगातार धूम्रपान करते हुए धुऐं को निकालते हैं।
◆मनुष्य अचानक ही धुआँ निकलने वाली जगहों पर पहुंच जाते हैं।
◆जब मनुष्य के बिना वजह ही दुश्मन लगातार बढ़ते जाते हैं और हर समय नुकसान पहुंचाने लगते हैं।
राहु के कमजोर होने के कारण:-मनुष्य के द्वारा निम्नलिखित कार्य को करने के कारण राहु कमजोर और बुरा फल देते हैं:
◆ज्योतिष शास्त्र में राहु को भुजंग के बाह्य हुलिया माना गया है, इसलिए जीवक या व्यालिक या नागमंडलिक के साथ बुरा व्यवहार करके उनके बारे में गलत शब्दों को बोलने से राहु कुपित हो जाते हैं।
◆ज्येष्ठ भ्राता को अपनी बोली से अपशब्दों का प्रयोग उसके हृदय को चोट पहुँचाकर दुःखी करने या उनको मान-सम्मान नहीं देने से राहु दुषित हो जाता हैं।
◆ननिहाल पक्ष वालों को अपनी बोली से उसके हृदय को चोट पहुँचाकर दुःखी करने या उनको मान-सम्मान नहीं देने से राहु दुषित हो जाता हैं।
◆जब मनुष्य के द्वारा आचरण, व्यवहार, कर्म व गुण आदि के निम्र विचारों को रखने वाले मनुष्यों के साथ मेल-मिलाप करने से भी राहु कमजोर हो जाता है।
◆मनुष्य के द्वारा अपने सासरे पक्ष के रिश्तेदारों के साथ सही व्यवहार नहीं करते हुए उनके साथ यथार्थ को छुपाकर अपने स्वार्थ की कामना से धोखा करने से भी राहु कुपित हो जाते हैं।
राहु के कमजोर एवं बुरी स्थिति में होने पर मिलने वाले बुरे प्रभाव को दूर करने के उपाय:-निम्नलिखित करने चाहिए-
◆अपने सगे रिश्तेदारों के सम्मान करना चाहिए।
◆खून के रिश्तों से सम्बन्धित मनुष्य के चोट या गंभीर व्याधि के कारण गहरी बेहोशी या अवचेतन की स्थिति जो कि लंबे समय तक होती हैं, उस अवस्था में गए मनुष्य की सेवा करनी चाहिए।
◆अपने परिवार-कुटुम्ब के सदस्यों के साथ बुरा व्यवहार नहीं करते हुए बिना मतलब से उनको पीड़ा नहीं पहुंचानी चाहिए।
9.केतु के कमजोर एवं बुरी स्थिति में होने पर मिलने वाले संकेत:-जब मनुष्य की जन्मकुंडली या गोचर में कमजोर एवं बुरे प्रभाव में केतु होता हैं, तब निम्नलिखित संकेत पहले देने लगते हैं-
◆मनुष्य की वाणी से बिना मतलब के शब्दों की बौछार होगी, वह जो शब्द नहीं बोलना चाहता हैं, उसकी वाणी से निकले जैसे-किसी को ठेस पहुंचाने के शब्द, किसी भी मनुष्य के परिवार के सदस्यों के प्रति लांछन या बदनामी के सम्बंधित शब्दों को कहना या मनुष्य के द्वारा गाली-गलौज एवं बुरे शब्दों का बोलना आदि।
◆मनुष्य को जब एकाएक जिंदगी में समृद्धि कारक या अनिष्टकारी सूचनाएं प्राप्त होती हैं।
◆जब मनुष्य की अस्थियों में जकड़ापन या अस्थि में विकृति आने आदि की मुसीबतों का शुरू होना, जिससे शरीर में दुखावा होता हैं।
◆जब मनुष्य के पैर में किसी तरह की चोट लगना एवं घाव भरने में समय लगता हैं। पैरों के नाखून का टूटना या विकृति से खून निकलने लगता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा एकाएक चलते हुए पैर से फिसलना जिससे मोच आना और किसी ऊंचाई वाले स्थान से एकाएक गिर पड़ना।
◆मनुष्य का कशमकश या मन में अस्थिरता के भाव के रहना और अपने द्वारा हँसी उत्पन्न करने के भाव से उपहास का विषय बनना।
◆मनुष्य को मरने के पास के समय के हालात में श्वान का दिखाई देना।
◆मनुष्य को मस्तिष्क विकार से ग्रसित श्वान का दिखाई पड़ना और उस व्यग्र श्वान के द्वारा काटने के संकेत प्राप्त होते हैं
◆मनुष्य के निवास स्थान की जगह में खग के आकर मृत्यु को प्राप्त होना।
◆जब कन्या या पुत्री या बच्चियों की पैदाइस अधिक होने पर या पुत्र या बेटा का जन्म होने पर अक्सर मानसिक एवं शारीरिक रूप से मरीज बनने लगे जाते हैं।
◆मनुष्य अपने जीवनकाल में अर्जित रुपयों-पैसों एवं समृद्धि पर ग्रहण लग जाता हैं।
◆मनुष्य के मूत्रकोश में पेशाब के इकट्ठा होने से उचित रूप से मूत्र विसर्जन नहीं हो पाता हैं, जिससे मूत्रकोश में पीड़ा होने से दुखावा होता है, जिससे मूत्रकोश से संबंधित बीमारियों का असर होने लगता हैं।
केतु के कमजोर होने के कारण:-मनुष्य के द्वारा निम्नलिखित कार्य को करने के कारण केतु कमजोर और बुरा फल देते हैं:
◆जब मनुष्य के द्वारा अपने भतीजे एवं भांजे के साथ दुर्व्यवहार करके उसके धन-सम्प्रदा को और उसके अधिकार को जबरदस्ती ले लिया जाता हैं, तब केतु कमजोर हो जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा श्वान को बिना मतलब की पीड़ा पहुँचाकर उसको मार दिया जाता हैं या किसी दूसरे मानव के द्वारा श्वान की हत्या करवा देने पर केतु का प्रकोप हो जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा किसी भी धार्मिक परिसर जैसे-मंदिर को क्षति पहुंचाई जाती हैं और मंदिर परिसर में लगी हुई पताका का अपमान किया जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा प्रत्येक वस्तु या रुपयों को भविष्य के लिए सोच कर उस वस्तु या रुपयों का जरूरत के समय खर्च न करने पर केतु रूष्ट हो जाते हैं।
◆जब मनुष्य के द्वारा अपनी की गई बात पर कायम नहीं रहते हुए मुकर जाते है और जो मिथ्याभाषी होकर दूसरों के विरुद्ध बयान देने वाला होने से केतु कमजोर हो जाता है।
◆मनुष्य की अपने पुत्र संतान के साथ राय नहीं मिलती हैं, जिससे पारस्परिक वैमत्य होने से पिता के साथ गलत व्यवहार भी करने से केतु दुषित हो जाता हैं।
◆मर्द लड़के-बच्चे का बलपूर्वक बंधक बनाकर अपने पास रोके रहते हुए उनके बदले में किसी भी बात या वस्तु की मांग करने पर और उनको मरवा देने पर केतु अपना प्रकोप शुरू कर देते हैं।
◆जो मनुष्य अपने बढ़ी हुई इच्छा को स्वार्थ में वशीभूत होकर पूरा करने के लिए दूसरों के खानदान को बरबाद करवा देने से केतु नाराज हो जाते हैं।
केतु के कमजोर एवं बुरी स्थिति में होने पर मिलने वाले बुरे प्रभाव को दूर करने के उपाय:-निम्नलिखित करने चाहिए-
◆मनुष्य को अपनी जिंदगी को धर्म व सदाचार आचरणों का पालन करते हुए व्यतीत करना चाहिए।
◆मनुष्य को अपने बूढ़े-बुजुर्गों, माता-पिता और अपने बंधुत्व का भाव रखने वाले रिश्तेदारों के साथ सदाचारवृत्त आचरण करते हुए उनसे आशीष लेना चाहिए और उनको मान-सम्मान भी देना चाहिए।
◆मनुष्य को अपने जीवन काल में किसी भी प्राणी को यथार्थ को छुपकर उसको तकलीफ देकर अपनी जीविकोपार्जन को नहीं करना चाहिए।
◆मनुष्य को दूसरे मनुष्य या जीवों को लाचार करके उनका फायदा नहीं उठाना चाहिए।