अस्त शनि ग्रह का प्रभाव और उपाय(Effects and Remedies of the setting Saturn):-शनि ग्रह गोल आकार के छल्ले में सटा हुआ आसमान के रंग के समान चमक या कांति वाला होता हैं, जो कि नौ ग्रहों में सबसे ज्यादा खास स्थान रखता हैं। जब शनि ग्रह पश्चिम में अस्त होता हैं। सूर्य ग्रह से 15 डिग्री की अवस्था में शनि ग्रह मार्ग पर चलते हुए और 16 डिग्री के पास आने पर शनि ग्रह तिरछापन के रूप में पीछे की तरफ चलते हुए ओझल हो जाता हैं।
ग्रह अस्त का अर्थ:-ज्योतिष शास्त्र में ग्रह अपनी गति के अनुसार अपना चक्कर पूर्ण करते हुए अपनी दूरी की पार करते हैं। जब कोई भी ग्रह सूर्य के साथ एक सीमित या तय अंशात्मक फासले पर अपनी गति के द्वारा आता हैं, तब वह ग्रह अपने वास्तविक स्वभावगत विशेषता को छोड़ देता हैं, इस तरह के परिवर्तन होने से उस ग्रह का अस्त होना कहा जाता हैं।
जब सूर्य ग्रह एवं दूसरे ग्रह के बीच निर्धारित अंशात्मक गति का फासला नहीं हो जाता हैं, तब तक ग्रह अस्त कहलाते हैं।
ग्रह उदय का अर्थ:-जब सूर्य और दूसरे ग्रह के बीच निर्धारित अंशात्मक दूरी से बहुत अधिक दूर होने पर ग्रह उदय कहलाता हैं।
'फलदीपिका' के अनुसार:-जब कोई भी ग्रह अपनी गति को खो बैठता हैं और सूर्य की सीमा में आ जाता हैं, तब उस ग्रह के फल में परिवर्तन होने लगते हैं।
शनि ग्रह के अस्त होने के अच्छे-बुरे प्रभाव या फल(Good and bad effects or consequences of Saturn's setting):-जब कोई भी ग्रह सूर्य एवं उस ग्रह के बीच तय अंशात्मक मान के नजदीक आने से उस ग्रह का शुभत्त्व नष्ट हो जाता हैं, जब उस ग्रह की महादशा, गोचर, अंतर्दशा आदि आते ही वह अपना बुरा असर दिखाकर जीवन को कई तरह से प्रताड़ित करने लग जाता हैं।
'सर्वाथचिंतामणि' के अनुसार:-जब कोई भी ओझल हुआ ग्रह दूसरे ग्रह के प्रभाव के कारण अपने स्वभाविक गुण को त्याग कर बल हीन हो जाता है और उस ग्रह पर किसी भी अच्छे ग्रह जैसे-बलवान चन्द्रमा, बुध, गुरु एवं शुक्र ग्रह आदि में से किसी के द्वारा भी नहीं देखा जाता हैं, तब जिस घर में अस्त हुआ ग्रह बैठा हो, जिस घर का मालिक हो और जिन-जिन कारकों का स्वामी हो उन सब पर उसका बुरा असर होता हैं।
◆जब कभी भी शनि सूर्य के प्रभाव में आकर एक तरह ओझल हो जाता हैं, तब इंसान के जीवन पर वेदना देने के हालात को उत्पन्न कर देता हैं, जिससे तरह-तरह की अड़चने आने लगती हैं और जीवन उस इंसान का दुश्कर हो जाता हैं।
◆जब इंसान की जन्मकुण्डली और गोचर ग्रह हालात में शनि सूर्य के प्रभाव में आकर ओझल होता हैं, तो इंसान के शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक स्वरूप पर असर डालकर उसकी देह को कमजोर करके उसकी तंदुरुस्ती को भी कमजोर कर देता हैं, जिससे इंसान को मालूम नहीं पड़ पाता हैं, की वह कैसे ठीक होवे।
◆जब इंसान की जन्मकुण्डली और गोचर ग्रह हालात में शनि सूर्य के प्रभाव में आकर ओझल होता हैं, तो इंसान के जीवन में रुपये-पैसे की बहुत तंगी कर देता हैं, मेहनत करने पर भी रुपये-पैसों को बचा नहीं पाता हैं, जिससे दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ते हैं और जमीन-जायदाद एवं समृद्धि को नष्ट कर देता हैं।
◆जब इंसान की जन्मकुण्डली और गोचर ग्रह हालात में शनि सूर्य के प्रभाव में आकर ओझल होता हैं, तो इंसान के जीवन में जो पिता व पुत्र के बीच मर्यादित रिश्ता होता हैं, उस रिश्ते के बीच बिना वजह परेशानी बढाकर क्लेश, टकराव और मतभेद को उत्पन्न करा देता हैं, जिससे पिता व पुत्र के बीच दूरियां बढ़ती जाती हैं और उनके रिश्ते बीच में भुजंग हर समय अपना विषैला हलाहल को फैलता रहता हैं।
◆जब इंसान की जन्मकुण्डली और गोचर ग्रह हालात में शनि सूर्य के प्रभाव में आकर ओझल होता हैं, तो इंसान के शरीर के किसी हिस्से को बेकार अंगों वाला करके उसे लँगड़ा-लूला कर देता हैं।
◆जब इंसान की जन्मकुण्डली और गोचर ग्रह हालात में शनि सूर्य के प्रभाव में आकर ओझल होता हैं, तो इंसान अपने पारिवारिक जीवन में बिना वजह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करके बिना मतलब का क्लेश करने लग जाता है और परिवार के सदस्यों के बीच मधुरता के सम्बन्धों में खटास पैदा हो जाती हैं, जिससे उसके निवास स्थान का माहौल एकदम बिगड़ जाता हैं।
◆जब शनि जिस घर का स्वामी हो, कारकेश एवं जिस राशि का मालिक होकर जिस घर में बैठकर जब अस्त या ओझल होता हैं, तब जिन-जिन कारकेशों, भाव का स्वामी होता हैं, उससे मिलने वाले फलों को नष्ट करके उन उनके फलों से दूर कर देता हैं।
◆शनि ग्रह का अधिकार क्षेत्र स्नायु तंत्र व वायु तत्त्व पर होता हैं, जब यह अस्त होता हैं, तो शरीर में स्पर्श और वेदना का ज्ञान कराने वाली सूक्ष्म नस या तन्तु और जोड़ों में सूजन, अकड़न और पीड़ा आदि के दोषों को बढ़ाने में मुख्य रोल अदा करते हुए इन इनसे सम्बन्धित व्याधियों को बढ़ाता हैं।
◆जब शनि अस्त होता हैं तब इंसान के शरीर में किसी भी कार्य के प्रति मेहनत को कम करके उसके शरीर में शिथिलता को उत्पन्न करते हैं, किसी भी तरह की इच्छा या कार्य के पूर्ण होने की उम्मीद को नष्ट कर देता है और हर बात में अपने को केंद्र में रखने के भाव आदि के परिणाम शनि ग्रह देने लगता हैं।
◆शनि अपनी चाल से बहुत धीरे-धीरे चलते हुए अपना समय पूर्ण करने में बहुत समय लगाता हैं, जो चारों तरफ अपने कलुष रूपी हुलिया के द्वारा बहुत ही भयंकर दिखाई पड़ता है, धर्म और नीति के विरुद्ध आचरण को कराने वाला ग्रह होता हैं।
◆जो सबसे नीचे या पीछे के वर्ण से पैदा हुए जिन्हें छूने योग्य नहीं मानते हैं, उस शुद्र वर्ग के प्रतिरूप व्याधि, शरीर से प्राण निकलना, कारखानों की मशीनों के समूह, लोखन एवं खेती-बाड़ी आदि के स्वामी बनते हैं।
◆शरीर को थका देने वाले कार्य और जमीन से मिलने वाली अस्तित्व युक्त वस्तुओं से शनि ग्रह का नाता होता हैं। अतः जब शनि अस्त होता हैं, तब मेहनतकश, कार्य संपादन के लिए नियुक्त व्यक्ति, लौह धातु एवं भूमि से प्राप्त होने वाली अस्तित्व युक्त वस्तुओं और उनके पैदावार को भी प्रभावित करेगा। इन प्रभागों में भी मुसीबत सहित वेदना की मिलने की संभावना बनती हैं।
◆नौ ग्रहों में शनि ग्रह को सभी के प्रति एक भाव रखते हुए न्याय करने वाला माना गया है, शनि ग्रह इंसान के द्वारा किये उत्तम व खराब कार्यों के परिणाम को उनकी महादशा, अंतर्दशा, गोचर में और ढैया-साढ़ेसाती आदि में प्रदान करते हैं। जब शनि ग्रह जन्मकुण्डली या गोचर वश अस्त होते हैं, तब तकलीफों को और भी बढ़ा देते हैं।
◆शनि का सम्बन्ध श्रम से और भूमि से प्राप्त होने वाली वस्तुओं से हैं। अतः अस्त हो कर यह श्रमिक, कर्मचारी, लौह धातु एवं भूगर्भ से प्राप्त वस्तुओं तथा उत्पादन को प्रभावित करेंगे। इन क्षेत्रों में कष्ट पीड़ा की संभावना है।
विभिन्न लग्नों या द्वादश राशियों में शनि अस्त के फल या प्रभाव:-विभिन्न लग्नों या द्वादश राशियों के जातकों की जन्म कुण्डली में भाव के स्वामियों के अनुसार अस्त होकर शनि निम्नलिखित सामान्य फल या परिणाम प्रदान करते हैं-
1.मेष लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-मेष लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब इंसान के रुपये-पैसा कमाने के धंधे में बिना वजह ही मुश्किलें आने लगती हैं, नौकरी या रोजगार सम्बन्धी हालात में अड़चनें आने लगती हैं और बाप और बेटे के बीच बिना वजह ही टकराव एवं राय नहीं मिलती हैं।
2.वृषभ लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-वृषभ लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब इंसान को अपनी जीविका निर्वहन के लिए प्रतिदिन किये जाने वाले कार्य या संस्था या कार्यालय में वेतन पर काम करने की अवस्था और तकदीर से जुड़ी हुई अड़चने आती हैं।
3.मिथुन लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-मिथुन लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब इंसान को किस्मत का साथ नहीं मिलता हैं, बनते-बनते काम बिगड़ने लगते हैं और जीवन काल में मुसीबतें आने लगती हैं।
4.कर्क लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-कर्क लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब इंसान अपनी जिंदगी में विवाह के कारण बहुत दुःखों को भोगता हैं, दाम्पत्य जीवन में बिना वजह ही क्लेश के कारण पीड़ा सहन करनी पड़ती हैं, कार्य क्षेत्र की जगह एवं जीविका को चलाने की जगह पर वेवजह मुश्किलों के साथ टकराव व लड़ाई-झगड़े होते हैं और शरीर से प्राण निकलने की तरह तकलीफ भोगने को मिलती हैं।
5.सिंह लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-सिंह लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब इंसान अपनी दाम्पत्य जीवन में एक-दूसरे की ओर सकारात्मक रूप से प्रवृत्त नहीं हो पाते हैं, जिससे हमेशा एक-दूसरे से खींचे-खींचे रहते हैं, कार्य क्षेत्र की जगह पर व जीविकोपार्जन के काम में हिस्सेदारी में बिना वजह ही नुकसान भोगना पड़ता हैं। इंसान का जोश धीरे-धीरे कम होने लगता हैं और वह मेहनत से जी चुराने लग जाता हैं।
6.कन्या लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-कन्या लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब इंसान को अपनी औलाद के द्वारा दुर्व्यवहार को सहन करना पड़ता हैं, जिससे बाप-बेटे के बीच दूरियां बढ़ती जाती हैं और उनके रिश्ते में मीठापन समाप्त हो जाती हैं। इंसान का मन दुःखी रहने से वह गलत-सही का निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाता हैं, जिससे उसके कार्य क्षमता पर असर पड़ने से सामाजिक, पारिवारिक जीवन में मान-मर्यादा के ऊपर भी बुरा असर पड़ने लगता हैं।
7.तुला लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-तुला लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब इंसान को चल एवं अचल संपत्ति के लेन-देन में बहुत रुकावटों का सामना करना पड़ता है, उसे न्यायालय के चक्कर काटने पड़ते है और औलाद के कारण भी मानसिक चिन्ता बढ़ जाती हैं।
8.वृश्चिक लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-वृश्चिक लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब अपने जीवन को सुखी बनाने वाली वस्तुओं यजे चीजों के उपयोग लेने में कष्ट को झेलने पड़ता है। इंसान जिस किसी भी कार्य को करने में अपने हाथ आगे बढ़ाता हैं, तब उस कार्य में उसे अनेक विघ्नों का सामना करना पड़ता है और उस कार्य में सफलता नहीं मिलती हैं। जिससे उसके कार्य को करने का जोश कमजोर हो जाता हैं।
9.धनु लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-धनु लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब इंसान के खानदान के लोगों के बीच में टकराव व किसी भी विषय पर समान सहमति नहीं होना, जिससे परिवार में छोटे सहोदर-सहोदरा के मध्य लड़ाई-झगड़ा होने लगते हैं, जिससे इंसान के कार्य करने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता हैं और रुपयों-पैसों के मामलों में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं।
10.मकर लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-मकर लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब इंसान शारीरिक रुप से पीड़ित रहता हैं, जिससे उसका मन किसी भी कार्य को करनर में नहीं लगता हैं, निरन्तर कठिन मेहनत करने पर भी उसे उस मेहनत का फल नहीं मिल पाता हैं। पारिवारिक जीवन में उसे गृहकलेश के कारण सुकून नहीं मिलता हैं,उसके नाक पर गुस्सा हर समय चढ़ा रहता है, जिससे परिवार के सदस्यों के द्वारा उसे इज्जत नहीं मिलती हैं। रुपयों-पैसों को कमाने के लिए दिन-रात एक करने पर भी उसको सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में सत्कार या कद्र नहीं होती हैं।
11.कुंभ लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-कुंभ लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब इंसान अपने जीवनकाल में रुकावटों के ऊपर रुकावटों को झेलता हैं, जिससे उसका जोश खत्म होने लगता हैं, वह दिनोदिन शरीर से दुर्बल होने लगता हैं। इंसान को अपने जीवनकाल में जो सुख मिलना चाहिए वह उस सुख को प्राप्त नहीं कर पाता हैं। मनुष्य रुपयों-पैसों को कमाने में जीजान लगा देता हैं, उसके कमाये हुए रुपये-पैसे बिना वजह ही खर्च हो जाते हैं, वह इस चिन्ता में कमजोर होकर व्याधि से ग्रसित हो जाता हैं।
12.मीन लग्न या राशि में शनि अस्तं के फल या परिणाम:-मीन लग्न या राशि में जब शनि दूसरे ग्रह के कारण ओझल हो जाता हैं, तब इंसान के पैरों में दर्द या सूजन होने से उसके पैर ठीक तरह से काम नहीं कर पाते हैं, जिससे जीविकोपार्जन के लिए कमाई करने पर प्रभाव पड़ता हैं, मनुष्य को अपने जीवनकाल में तकलीफों का सामना करना पड़ता हैं, संसार की विषयों एवं वस्तुओं से उसे चारों तरफ से मुश्किलों में अपने जीवन को बिताना पड़ता हैं और उसकी मदद करने का कोई जरिया उसको दिखाई नहीं देता हैं। जिससे वह अपनी आजीविका या संस्था या कार्यालय में अपने काम को पूरी तरह लग्न से नहीं कर पाता हैं।
कुण्डली में शनि अस्त होने पर क्या करे? या अस्त शनि ग्रह पीड़ा निवारण उपाय(What to do when Saturn is setting in the horoscope? either Set Shani Planet Pain Remedy Remedy):-जिन जातकों को शनि की साढ़े साती अथवा दशान्तर्दशा चल रही है उनको शनि पीड़ा से मुक्ति के लिए निम्न उपाय शुभ फलदायक होंगे-
◆यंत्र धारण करना:-जब इंसान शनि ग्रह के बुरे असर से ग्रसित हो तो उस इंसान को निम्नलिखित यंत्र को पहनने से भी फायदा मिलता हैं।
12 | 7 | 14 |
13 | 11 | 9 |
8 | 15 | 10 |
शनिवार को शनि की होरा में लोहे पर शनि यंत्र उत्कीर्ण करवा कर श्रद्धा एवं विश्वास के साथ धूप-दीप से शनि देव की पूजा करें एवं शनि के किसी भी मंत्र का जप करते हुए अपने भुजा या गले में पहनना चाहिए।
◆इंसान को शनिदेव को खुश करने के लिए निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना चाहिए।
1.मंत्र:-ऊँ शं शनैश्चराय नमः अथवा
2.मंत्र:- ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।
उपर्युक्त मंत्रों का जाप मंत्र संख्या 23000 तेइस हजार बार करना चाहिए।
◆इंसान को प्रत्येक शनिवार का व्रत भी करना चाहिए।
◆किसी जरूरतमंद को लौह पात्र, काले तिल, सरसों का तेल, अपने पहने हुए नीले-काले वस्त्र अथवा चमड़े के जूते दान कर सकते हैं। यह चीजें किसी भृत्य या सेवक को दान करना उत्तम है।
◆इंसान को किसी काले घोड़े की घिसी हुई व अपने आप पैर से निकली हुई नाल अथवा पुरानी नाव के पैंदे की कील का छल्ला बनवाकर शनिवार को मध्यमा या बीच वाली बड़ी अंगुली में धारण करें।
◆इंसान को प्रत्येक शनिवार को सायंकाल जब सूर्योस्त हो जाता हैं तब पीपल के वृक्ष की जड़ के नीचे चार बाती को सरसों के तेल से परिपूर्ण करके दीपक को प्रज्वलित करना चाहिए।
◆पीपल के वृक्ष की जड़ में सूर्योदय पूर्व सरसों का तेल चढ़ाएं या दीपक जलाएं।
◆इंसान को शनि ग्रह की पीड़ा से मुक्ति के लिए भगवान शिव का महामृत्युंजय मंत्र का जप को पूर्ण विश्वास से शुरू करना चाहिए। जिससे शनि ग्रह का बुरा प्रभाव इंसान का कुछ भी नहीं बिगाड़ सके।
◆शनिवार या मंगलवार के दिन हनुमानजी के मंदिर परिसर में जाकर हनुमानजी की सेवा-पूजा करें।
◆शनि ग्रह की पीड़ा होने पर दूसरों की औरतों पर गन्दी दृष्टि नहीं रखनी चाहिए।
◆माता-पिता और वृद्ध जनों की सेवा व उनकी मदद करनी चाहिए।
◆छोटे जीवों को नहीं सताना चाहिए उनकी सेवा करनी चाहिए।
◆सभी के प्रति समान भाव रखना चाहिए।