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Friday, October 11, 2024

नीच भंग राजयोग के नियम एवं फायदे(Neechbhang Rajyoga ke niyam and benefits)

नीचभंग राजयोग के नियम एवं फायदे(Neechbhang Rajyoga ke niyam and benefits):-ज्योतिष शास्त्र में प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों के द्वारा इंसान के जीवन पर ग्रहों के द्वारा कैसा असर पड़ता हैं, उन सबकी जानकारी अपने अनुभवों एवं ज्ञान के माध्यम से निकाली थी। उनके अनुसार ज्योतिष शास्त्र की जन्मकुण्डली में ग्रहों के मेल, दृष्टि एवं राशि परिवर्तन आदि के द्वारा बहुत सारे योगों का निर्माण होता हैं, इन ज्योतिषीय योगों में कुछ बुरे योग और कुछ अच्छे योग भी बनते हैं, जिनमें एक नीचभंग नामक राजयोग भी हैं, ऐसे तो जब कोई भी ग्रह अपनी राशि को छोड़कर नीच राशि में विराजमान हो जाते हैं, तब उसे नीच ग्रह कहा जाता हैं, इस तरह नीच राशि में ग्रह के जाने से उसके आचरण, व्यवहार, कर्म, गुण आदि के विचार से निम्न उस भाव के फल को कम कर देते हैं, इसलिए ज्योतिष शास्त्र में नीच ग्रह को बुरा माना जाता है। लेकिन ज्योतिष शास्त्र के नीचभंग जब अपना नीचतत्व प्रभाव त्याग देता हैं तब वह राजयोग के समान फल देने लगता हैं। नीचभंग राजयोग इंसान को अपने जीवन में किसी भी तरह से काबिल बना देता हैं, जिससे उसके जीवन में किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती हैं, वह निरन्तर अपनी काबिलियत के दम से आगे की ओर बढ़ता जाता हैं, अपने पुरुषार्थ के बल एवं किस्मत के द्वारा हर क्षेत्र में अपनी विजय पताका को गाड़ता जाता हैं और अपने जीवन में आने वाली मुश्किलों से छुटकारा पाता रहता हैं, इस तरह नीचभंग राजयोग एक उत्तम राजयोग होता हैं, जिस किसी की जन्मकुण्डली में बनता हैं, उसकी तो चांदी हो जाती हैं। ग्रहों की उच्च व नीच राशियाँ:-नीचभंग राजयोग के बारे में जानने से पूर्व ग्रहों की उच्च और नीच राशियों के बारे में भी जानना जरूरी होता हैं, प्रत्येक ग्रह की उच्च एवं नीच राशियां होती हैं। इनमें भी इनके परमोच्च एवं परम् नीच बिन्दु होते हैं। ये दोनों बिन्दु परस्पर 180° दूर होते हैं। किसी ग्रह का उच्च बल वह है जो उसे अपनी उच्च राशि में स्थित होने अथवा समीप होने के कारण प्राप्त होता हैं। इसलिए ग्रहों की उच्च एवं नीच राशियाँ निम्नलिखित हैं।





Neechbhang Rajyoga ke niyam and benefits





उच्च राशि में स्थित ग्रह का अर्थ:-जब ग्रह अपने पर्याप्त रूप से बड़े क्षेत्र में घिरा हुआ होकर चारों तरफ भ्रमण राह पर अपनी गति के द्वारा पृथ्वी ग्रह के एक बार सबसे अधिक पास में आ जाते हैं, तब उनको अधिक बल की प्राप्ति होती हैं।पृथ्वी पर ग्रह का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता हैं। इसी कारण उच्च राशि बिन्दु पर स्थित ग्रहों को बली माना गया हैं। इस तरह ग्रह के द्वारा एक राशि में जितने अंशों तक के मान को भोगेगा वह उच्च राशि भोगांश या परमोच्चांश अवस्था में कहलाता है।





नीच राशि में स्थित ग्रह का अर्थ:-जब ग्रह अपने पर्याप्त रूप से बड़े क्षेत्र में घिरा हुआ होकर चारों तरफ भ्रमण राह पर अपनी गति के द्वारा पृथ्वी ग्रह के एक बार सबसे अधिक दूर चले जाते हैं, तब उनको बहुत ही कम बल की प्राप्ति होती हैं।पृथ्वी पर ग्रह का न्यूनतम प्रभाव पड़ता हैं। इसी कारण नीच राशि बिन्दु पर स्थित ग्रह निर्बल माना गया हैं। इस तरह ये दोनों परस्पर एक दूसरे से विपरीत होते हैं। उस उच्च भोगांश से विपरीत अर्थात् 180° पर या उस भाव से सातवें भाव की राशि में ग्रह स्थित होने पर उतने ही अंशों तक के मान को भोगेगा, तब उसे परम् नीच या परम् नीचांश अवस्था कहा जाता हैं।




ज्योतिष शास्त्र में नौ एवं बारह राशियों का निर्धारण किया गया हैं, इन नौ ग्रहों को बारह राशियों में उच्च एवं नीच राशि का स्थान दिया गया हैं।




सूर्य ग्रह:-सूर्य ग्रह मेष राशि में दश अंश तक उच्च राशि का एवं तुला राशि में दश अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



 

चन्द्रमा ग्रह:-चन्द्रमा ग्रह वृषभ राशि में तीन अंश तक उच्च राशि का एवं वृश्चिक राशि में तीन अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



मंगल ग्रह:-मंगल ग्रह मकर राशि में अठाईस अंश तक उच्च राशि का एवं कर्क राशि में अठाईस अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।


बुध ग्रह:-बुध ग्रह कन्या राशि में पन्द्रहरा अंश तक उच्च राशि का एवं मीन राशि में पन्द्रहरा अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



गुरु ग्रह:-गुरु ग्रह कर्क राशि में पाँच अंश तक उच्च राशि का एवं मकर राशि में पाँच अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



शुक्र ग्रह:-शुक्र ग्रह मीन राशि में सत्ताईस अंश तक उच्च राशि का एवं कन्या राशि में सत्ताईस अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



शनि ग्रह:-शनि ग्रह तुला राशि में बीस अंश तक उच्च राशि का एवं मेष राशि में बीस अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



राहु ग्रह:-राहु ग्रह मिथुन या वृषभ राशि में उच्च राशि का एवं धनु या वृश्चिक राशि में नीच राशि का माना जाता हैं।



केतु ग्रह:-केतु ग्रह वृश्चिक या धनु राशि में उच्च राशि का एवं वृषभ या मिथुन राशि में नीच राशि का माना जाता हैं।



नीचभंग राजयोग क्या हैं? (What are Neech Bhang Raja Yogas?):-ज्योतिष शास्त्र के द्वारा बनाई गई जन्म पत्रिका में ग्रह का नीच राशि में होना, सूर्य के प्रभाव में पास आकर ग्रह अस्त हो जाने से या ग्रहों का छठे, आठवें, बारहवें भाव में स्थित होने को बहुत बुरा एवं अनिष्टकारी माना जाता है। इन हालात में बैठ जाने से ग्रह जिस भाव के स्वामी या कारक होते हैं, अपने भाव संबंधी बातों में कमी लाता है।




जब भी नीच ग्रह का बुरापन दूर हो जाये तो नीच ग्रह निश्चित ही अच्छे नतीजे देते है। इसी प्रकिया को 'नीचभंग' कहा गया है और उससे सुखद राजयोग को पाना संभव है।




नीचभंग राजयोग का अर्थ:-जब कोई भी जन्मकुण्डली में किसी भी भाव में स्थित राशि में नीच ग्रह बैठा हो, उस ग्रह का बुरा असर समाप्त हो जावे और वह राजयोग की तरह फल प्रदान करने लगे तो उसे नीचभंग राजयोग कहते हैं।



कैसे बनता हैं नीच भंग राजयोग?(How Neech Bhang Raja Yoga is formed):-नीचभंग राजयोग की स्थिति शास्त्रवेत्ताओं ने केवल चन्द्रकुण्डली में देखने का ही उल्लेख किया है। लेकिन जन्मकुण्डली में कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में वही ग्रह राजयोगप्रद हो जाता हैं। नीचभंग राजयोग निम्नलिखित स्थितियों में बनता हैं।




नीचङ्गतो जन्मनि यो ग्रहः स्यात्तद्राशिनाथोSपि तदुच्चनाथः।


स चन्द्रलग्नाद्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद्धार्मिकचक्रवर्ती।। (जातक पारिजात ७/१३)



नीचस्थितो जन्मनि यो ग्रहः स्यात्तद्राशिनाथोSपि तदुच्चनाथः।

स चन्द्रलग्नाद्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद्धार्मिकचक्रवर्ती।।

 (फलदीपिका ७/२६)


नीचस्थितो जन्मनि यो ग्रहः स्यात्तद्राशिनाथोSपि तदुच्चनाथः।

स चेद्विलग्नाद्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद्धार्मिकचक्रवर्ती।। (सर्वार्थचिन्तामणि, नवमोSध्याय, श्लोक १३)



अर्थात्:-जन्म के समय जो ग्रह नीच राशि में स्थित हैं, उस नीच राशि का स्वामी और नीच राशिस्थ ग्रह की उच्च राशि का स्वामी लग्न या चन्द्रमा से केन्द्र में स्थित होता हैं, तब जातक धार्मिक चक्रवर्ती राजा होता हैं।




◆यदि कोई ग्रह नीच राशि में हो तथा इन स्थितियों जैसे-सूर्य के प्रभाव में पास आकर ग्रह अस्त हो जाने से या ग्रहों का छठे, आठवें, बारहवें भाव आदि में हो, तो उस ग्रह का नीच भंग होने से वह अच्छे नतीजे देता है।



◆चन्द्रमा से गिनने पर पहले, चौथे, सातवें, दशवें घर में नीच राशि का स्वामी हो या नीच राशि में बैठा हो और उस ग्रह का उच्च राशि स्वामी चन्द्रमा से पहले, चौथे, सातवें, दशवें घर में हो।



◆ग्रह नीच राशि में हो और उस राशि का या उस ग्रह की उच्च राशि का स्वामी जन्म लग्न से पहले, चौथे, सातवें, दशवें घर में हो या ग्रह नीच राशि में हो और उस नीच राशि का स्वामी एवं उस नीचस्थ ग्रह की उच्च राशि का स्वामी दोनों एक दूसरे से परस्पर पहले, चौथे, सातवें, दशवें घर में हो।



◆ग्रह जिस राशि में नीच का है, उस नीच राशि का स्वामी अपनी राशि में स्थित उस ग्रह को पूर्ण दृष्टि से देखे तो ग्रह का नीच भंग होकर उत्तम राजयोग की सृष्टि करता है। 



◆यदि जब लग्नकुंडली में भी ढूढ़ने पर अधिकांश नीच ग्रहों का नीचत्व भंग हो जाता है। नीचभंग राजयोग के बारे में अनेक तरह के मतमतान्तर होने से केवल चन्द्र कुंडली से विवेचना करते हैं।




◆जब भी चन्द्रकुण्डली के केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में कोई नीच राशि का ग्रह होने पर नीचत्व भंग के लिए उसके राशि मालिक की स्थिति के बारे में सोचना चाहिए।




◆जब भी नीच राशि का ग्रह जिस किसी भाव में बैठा हो और उस भाव के राशि मालिक ग्रह केन्द्र (प्रथम ,चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में उच्च राशि में होने पर नीच ग्रह का नीचत्व भंग होना माना जाता है, क्योंकि इस तरह की हाल में नीच राशि के ग्रह अपना नकारात्मक असर नष्ट होकर वह अपने राशि मालिक के उच्चत्व को ले लेगा इस तरह के हाल को नीच भंग होगा।




◆नीच ग्रह का राजयोग के समान सुखद श्रेष्ठत्व में बदलाव होंने वाले घटनाक्रम को तो नहीं बदलता, लेकिन उसके नतीजे अच्छे होने से जुड़ जाते है।




◆इस तरह से बदलाव का यश किसको दिया जाए उच्चस्थ ग्रह के उच्चत्व को या नीच ग्रह की ग्रहणशीलता को। 




◆जिस तरह कोई गरीब मनुष्य अपने हालात से उठ कर राजयोग भोगने के हालात में पहुंच जाए, तो इस तरह के बदलाव को सम्मान सहित राजयोग को मानना ही होगा और कारण नीचभंग होगा। ऐसे में राजयोग वाली कुंडली के ग्रहबलों का अवलोकन कर उनके मालिकों के हाल को समझना भी जरूरी होता है।




◆यह भी देखना होता है कि कुंडली में नीच ग्रह और नीच ग्रह स्थिति राशि का मालिक ग्रह कहां पर बैठा है और नीचभंग का कारण जो भी है, उन दोनों ही ग्रहों की दशा-अन्तर्दशा का असर भी समझना होगा। इसी से यह अनुमान होगा कि कौनसा ग्रह अच्छा असर दे रहा है और किसे दे रहा है जैसे-यह असर सूर्य की स्वराशि सिंह को मिलेगा या सूर्य की नीच राशि तुला को, तुला राशि का मालिक ग्रह शुक्र है? यह शुक्र यदि कुंडली के केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम) भाव में बसा हुवा हो, तो सूर्य का नीचत्व भंग होना माना जायेगा।




◆दूसरी हालत में यह कि नीचभंग करने वाले शुक्र ग्रह की उच्च राशि के हालत पर राशि मालिक शनि है, क्योंकि शनि तुला में उच्च राशि का होता है। इस तरह शनि केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में ठहर जाये तो नीचभंग हो जाता है।




◆तीसरी हालत में जो कोई भी नीच ग्रह खुद जिस राशि में उच्च राशि का होता है जैसे-सूर्य, मेष राशि में होता है, तो उसका राशि मालिक ग्रह मंगल कहीं केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में उच्च राशि का हो जाए तो भी सूर्य के नीचभंग के हालात बनेंगे।



नवमांश कुंडली में नीच भंग राजयोग:-यह नीच ग्रह सूर्य उच्च राशि का होकर ठहरा हुआ हो या फिर नीच ग्रह किसी दूसरे नीच ग्रह से देखा जा रहा हो अथवा नीच ग्रह का राशि मालिक शुक्र ग्रह वहां केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में ठहरा हो, तो भी नीचभंग माना जाता है।




◆नीच ग्रह की नवमांश राशि का मालिक ग्रह कुंडली के केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में चर राशि मेष, कर्क, तुला व मकर होकर ठहरा हो तो भी नीचभंग बन जाता है।



◆नीच ग्रह का मालिक ग्रह केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में उच्च राशि ग्रहों के होने पर सूर्य मेष, चन्द्रमा वृषभ, मंगल मकर, बुध कन्या, गुरु कर्क, शुक्र मीन एवं शनि तुला का होकर ठहरा होवे तो भी नीचभंग योग बनता है।




◆नीचभंग का राशि मालिक ग्रह केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में बैठकर नीचभंग तो करता ही है। साथ नीचभंग की राशि में भी जो ग्रह उच्च राशि का होता है।



◆नीचराशिस्थ ग्रह खुद जिस राशि में उच्च का होता है, उसका मालिक भी केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में बैठकर नीचभंग की प्रक्रिया में साथ देता है।



◆यदि उच्च राशि का मालिकग्रह एवं नीच राशि का मालिक ग्रह केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) में बैठकर एक-दूसरे के आमने-सामने होने पर भी नीचभंग होता है।



◆यदि जो कोई भी अच्छे भाव में नीच राशि का मालिक ग्रह और उच्च राशि का मालिक ग्रह बैठे हो और उनसे देखे जा रहे होने पर भी नीचभंग राजयोग होता है।




◆यदि नीच ग्रह के राशि के मालिक ग्रह या नीचराशि का ग्रह जिस किसी भी राशि में उच्च राशि का होने पर और उसका राशि मालिक ग्रह केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में होने पर भी नीचभंग राजयोग बनता है।




◆सम्बन्धित नीच राशि का ग्रह सूर्य जिसकी अपनी उच्च राशि मेष का मालिक ग्रह मंगल यदि चन्द्रकुण्डली के केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में मकर राशि में उच्च राशि का हो जाये तो भी नीचभंग सबसे अच्छा राजयोग बनता है।




उपरोक्त तरह से हर कोई ग्रह जो कही पर भी नीच राशि का हो और उसकी खुद की उच्चता की राशि का मालिक ग्रह केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में उच्च राशि का होकर बैठे तो, अच्छा नीचभंग राजयोग के हालात को बनाने के समर्थ होता है।



◆उच्चनाथों के क्रम में सूर्य का उच्चनाथ मंगल होता है।


◆उच्चनाथों के क्रम में चन्द्रमा का उच्च नाथ शुक्र ग्रह होता है।


◆उच्चनाथों के क्रम में गुरु ग्रह का उच्च नाथ चन्द्रमा ग्रह होता है।


◆उच्चनाथों के क्रम में शुक्र ग्रह का उच्च नाथ ग्रह गुरु ग्रह होता है।


◆उच्चनाथों के क्रम में शनि ग्रह का उच्च नाथ ग्रह शुक्र ग्रह होता है।



◆ग्रहों के नीचत्व के साथ उसके उच्च नाथ व उसकी राशि के मालिक की उच्चता और उस राशि के मालिक की राशि में उच्चस्थ होने वाले ग्रह की केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में भी ढूढ़े।



इस तरह के हालात को चन्द्र कुंडली के अलावा लग्नकुंडली में भी जांच कर अपने अनुभवों को समृद्ध करना चाहिए।



नीचभंग राजयोग के नतीजे या फल (Results or results of Neechbhang Raja Yoga):-जब किसी भी इंसान की जन्मकुण्डली में नीचभंग राजयोग बनता हैं, तो निम्नलिखित अच्छे नतीजे प्राप्त होते हैं।




◆इंसान का नाम एवं शोहरत संसार के प्रत्येक कोने में फैलता हैं।


◆इंसान रुपये-पैसों, जमीन-जायदाद से पूरी तरह सम्पन्न होता हैं।


◆इंसान के पास अपार वैभव सम्पदा होती हैं।


◆इंसान का यश चारों ओर फैलता हैं।


◆इंसान के द्वारा किसी दूसरे की मदद करने पर उसका अहसान जीवन भर मानते हुए बड़ाई करते हैं।


◆इंसान का सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में गुणगान होता हैं।



◆इंसान अपने जीवन काल में भौतिक सुख-सुविधाओं को भोगते हुए पूर्ण ऐशोआराम को प्राप्त करने वाला होता हैं।



◆नीचभंग राजयोग मनुष्य की जन्मकुंडली में बनने से मनुष्य राजयोग की तरह सब प्रकार के सुख को पाने वाला होता है।


◆मनुष्य जीवन में किसी बड़े सम्मानित पद की गरिमा को बढ़ाते हैं।


◆मनुष्य को जीवनकाल में सभी तरह से एवं सभी क्षेत्रों में तृप्ति मिल जाती हैं।



◆मनुष्य मद में मस्त हाथी की तरह एकछत्र होकर अपने जीवन को भोगता हैं।



उदाहरणस्वरूप:-एक जातक की जन्मकुंडली के आधार पर नीचभंग राजयोग का विश्लेषण करने पर इस योग के बारे में जान सकते हैं, जो जातक का जन्म विवरण निम्नलिखित हैं।



जातक का जन्म दिन या तारीख:-11-10-1942।

समय:-शाम के 4:00 बजे।

स्थान:-दिल्ली।


जातक की जन्मकुंडली में ग्रह स्थिति:-जातक का लग्न कुंभ राशि में केतु, चौथे भाव में वृषभ राशि का शनि, छठे भाव में कर्क राशि का गुरु, सातवें भाव में सिंह राशि का राहु, आठवें भाव में कन्या राशि के सूर्य, मंगल, बुध व शुक्र और नवें भाव में तुला राशि का चन्द्रमा स्थित हैं। 




जातक की जन्मकुंडली के चौथे भाव के स्वामी एवं नवें भाव के स्वामी शुक्र अपनी नीच राशि कन्या में आठवें भाव में बैठे हैं।



जातक को सभी तरह के ऐशोआराम एवं सुख-सुविधाओं से रहित, किस्मत का साथ न मिलना और जन सामान्य में पैठ नहीं होना आदि नतीजों की प्राप्ति होने चाहिए थी।




लेकिन शुक्र की उच्च मीन राशि का स्वामी बृहस्पति चन्द्र से दशम् स्थान अर्थात् केन्द्र में होकर नीच भंग राजयोग की सृष्टि कर रहा है।




नीचभंग राजयोग से जीवन में मिली अपार ख्याति:-जिससे जातक धनवान, रुपये-पैसों से युक्त लक्ष्मीजी की अनुकृपा, किसी भी विषय को तत्काल समझ लेने की बौद्धिक शक्ति से सम्पन्न एवं समस्त जगत में जन साधारण को पसंद आने वाला हैं। जन साधारण भी जातक के अच्छे गुणों को आदर की दृष्टि से देखने वाले एवं मोम संग्रहालय में भी जातक का प्रतिरूप विदेश में स्थान पा चुका हैं।


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