अथ श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम् अर्थ सहित:-श्रीकाशी विश्वनाथाष्टकं स्तोत्रं का वांचन करने से पूर्व इसके श्लोकों के अर्थ को जान लेना चाहिए, जिससे इस स्तोत्रं के श्लोकों में वर्णित महत्त्व को समझा जा सके। इसलिए मैं अपनी भाषा में इस स्तोत्रं का अर्थ सहित विवेचन कर रहा हूँ, आप इस तरह अर्थ को जानकर इस स्तोत्रं से मिलने वाले लाभ को प्राप्त करें-
गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं
गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम्।
नारायणप्रियमनंगमदापहारं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।१।।
अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आपके गुथे एवं लिपटे हुए बालों की लटों में गङ्गा के पानी की लहर या हिलोर करती हुई बहुत ही सुंदर शोभायमान होती हैं। गौरी हमेशा बाएं भाग की तरफ शोभित होती हैं। जो भगवान नारायण को प्यारे होते हैं, पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी हैं।
वाचामगोचरनेकगुणस्वरुपं
वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम्।
वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।२।।
अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आपकी वाणी में मधुरता हैं, जिनका स्वरूप अनेक तरह के अच्छे या भलाई को करने के लिए तत्पर रहता हैं, जो बोलने में चतुर हैं, आपका स्थान उच्च हैं, पीठ पर आसीन उनके चरणों की सेवा विष्णु भगवान आदि देवता भी करते हैं, आपके बाएँ भाग में आपकी भार्या का स्वरूप होता हैं। पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी हैं।
भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं
व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम्।
पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।३।।
अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आप भूत-पिशाच के स्वामी हैं, आप अपनी भुजा को फेरकर गले में आभूषण के रूप में नाग को धारण करने वाले हैं, आपकी समस्त देह के अंग अलंकृत होते हैं, बाघ की चर्म को अपने शरीर पर धारण करने वाले एवं आसन के रूप में उपयोग में लेने वाले हैं, आप कठिन दुर्बोध तीन नेत्रों के स्वामी हैं, पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी हैं।
शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं
भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम्।
नागाधिपारचितभासुरकर्णपुरं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।४।।
अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आपके मुकुट से शीतल किरणों के द्वारा समस्त जगह पर प्रकाशमान होता हैं, जिससे उनकी छवि बहुत ही शोभायमान होती हैं, जिनके भाल पर त्रिशूल का चिह्न रखने वाले एवं अग्नि की तेज ज्वाला से युक्त पंच बाणों से विशोषित हैं। हे नागों के स्वामी! कर्णपुर नामक नगर में वास करने वाले हैं, आप बहुत ही पवित्रता से उज्ज्वल हैं, पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी हैं।
पंचाननं दुरितमत्तमतदङ्गजानां
नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नागानाम्।
दावानलं मरणशोकजराटवीनां
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।५।।
अर्थात्:-हे विश्वनाथ जी! आप पांच मुख वाले देव को उनके द्वारा अविवेकी या पाप कर्म करने पर दंडित करने वाले हैं, दनु के गर्भ से उत्पन्न दानव के भय से मुक्त करने के लिए गले में नागों को धारण करते हुए बैल या साँड़ की सवारी करके मुक्त करवाने वाले हो, दावाग्नि के तीव्र ज्वाला के दुःख से होने वाले मरण से बचाव करने वाले हो। पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी हैं।
तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं
आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम्।
नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरुपं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।६।।
अर्थात्:-हे विश्वनाथ जी! आप तेज या शक्ति से युक्त हो अच्छे गुणों के साथ गुणों से रहित दूसरे रूप को भी रखने वाले हो। जिस तरह से गूदेदार एवं बिना रेशे की जड़ होती हैं, उसी तरह का स्वरूप धारण करते हुए खुशी से युक्त हों। आप नागों से युक्त होकर समस्त जगहों पर कलारहित स्वयं में रमण करने वाले हो। पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी आप हो।
रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं
वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम्।
माधुर्यधैर्यसुभंग गरलाभिरामं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।७।।
अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आपमें सबके प्रति किसी भी तरह दोष नहीं रखते हुए एवं बिना किसी तरह का भेदभाव नहीं रखते हुएअपने भक्त लोगों से प्रेम करते हो, हिमालय पर्वतराज की तनुजा की सहायता करने वाले या साथी एवं विरक्ति के लिए मन की स्थिरता को पाने के लिए एकांत वासी जगह पर वास करने वाले हो, आप अपने चित्त की दृढ़ता या स्थिरता या धीरता को मधुर भाव से शोभा से युक्त ग्रहण करने वाले हो, विष या हलाहल को भी आप अपने गले में ग्रहण करने वाले मोहक स्वरूप वाले हो। पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी आप हो।
आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां
पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ।
आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।८।।
अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आप पर जो कोई भी विश्वास रखते हुए अपनी चाहत को त्याग कर आपसे उम्मीद करते हैं, उनकी उम्मीद को पूर्ण करने वाले हो, दूसरों की बुराई या झूठ मुठ दोष निकलना, धर्म एवं नीति विरुद्ध किया जाने वाले आचरण में रत होने के भाव रखते हैं, उनके मन में समस्त विकारों का अंत करके उनकी आत्मा की तृप्ति करते हुए आनन्द प्रदान कर देते हो, आप उस भक्त के मन को ब्रह्म पर केंद्रित करके उसमें किसी से कुछ लेने या ग्रहण करने का भाव को जागृत कर देते हो, आप सबसे श्रेष्ठ प्रभुओं के प्रभु का नाम सबका और सबसे बढ़कर स्वामी हो। पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी आप हो।
श्रीविश्वनाथाष्टकं स्तोत्रम् फलश्रुति:-श्रीविश्वनाथाष्टकं स्तोत्रम् फलश्रुति में स्तोत्रम् के वांचन करने से मिलने वाले लाभ के बारे में जानकारी मिलती हैं, जिससे मनुष्य इस स्तोत्रम् का वांचन करके या दूसरों के द्वारा सुनकर इस स्तोत्रम् के लाभों को पा सके।
वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य
व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः।
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं
सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम्।।
अर्थात्:-जो कोई मनुष्य श्रीविश्वनाथाष्टकं स्तोत्रं को विश्वास के साथ एवं मन में किसी तरह के बुरे विकारों नहीं रखते हुए जो भी भक्तिभाव को रखते हुए शिवजी के स्वरूप के गुणगान को श्रवण करते है या वांचन करते हैं, उन भक्त मनुष्य को अपने जीवनकाल में उच्च ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है और वह मनुष्य विद्वान बन जाते हैं। बहुत सारे रुपये-पैसों को अर्जित करके धनवान बन जाते हैं, उन मनुष्य का नाम समस्त जगहों पर फैल जाता हैं एवं समस्त प्रकार के सुख-समृद्धि से जीवन को जीते हुए व्यतीत करते हैं। फिर आखिर में जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर मोक्षधाम को पा लेते हैं।
विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।
अर्थात्:-श्रीविश्वनाथाष्टकं स्तोत्रं को जो मनुष्य पढ़ते हैं, वे मनुष्य शिवलोक में शिवजी के साथ रहते हुए उनके चरण कमलों की सेवा करने का मौका मिलता हैं।
।।इति श्रीमहर्षिव्यासप्रणीतं श्रीविश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम्।।
अथ श्रीकाशी विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम् के वांचन से मिलने वाले लाभ एवं महत्त्व (Benefits and importance of reading Sri Kashi Vishwanath Ashtakam Stotram):-श्रीकाशी विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम् के श्लोकों को उच्चारण करते रहने पर मनुष्य को बहुत सारे लाभ प्राप्त होते हैं, जो इस तरह हैं-
◆उच्चज्ञान की प्राप्ति हेतु:-शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रवृत्तिधारी को अपने ज्ञान के क्षेत्र में बढ़ोतरी होती हैं और वे सब तरह से विद्वान बन जाते हैं।
◆धनवान बनने हेतु:-जो मनुष्य इस स्तोत्रम् के श्लोकों का वांचन करते हैं, वे अधिक रुपयों-पैसों को कमाकर धनवान बन जाते हैं।
◆प्रसिद्धि को पाने हेतु:-मनुष्य की चाहत होती हैं, की उसकी प्रसिद्धि चारों तरफ हो जावे, इसके लिए मनुष्य को इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।
◆समस्त जीवनकाल की जरूरत को पूरा करने हेतु:-मनुष्य के जीवनकाल में अनेक तरह की भौतिक एवं शारिरिक आवश्यकताओं होती हैं। इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मनुष्य दिन-रात मेहनत करते हैं, तब भी वे जरूरतें पूर्ण नहीं हो पाती हैं। तब उन मनुष्य को नियमित रूप से श्रीकाशी विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम् के श्लोकों का पाठन शुरू कर देना चाहिए, जिससे विश्वनाथ जी का आशीर्वाद मिल जाता हैं।
◆मोक्षधाम को पाने हेतु:-मनुष्य का लक्ष्य होता हैं कि जन्म-मरण के बंधन से छुटकारा मिल जावें, तो मनुष्य को इस स्तोत्रम् के श्लोकों का वांचन शुरू कर देना चाहिए, जिससे जगत में आने व जाने से छुटकारा मिल जावें और उस मनुष्य का उद्धार हो जावें।