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Friday, January 22, 2021

अथ सोमवार के व्रत करने के विधि-विधान के नियम,कथा,आरती और व्रत के फायदे(Fasting rules of Atha Monday, rules, story, aarti and benefits of fasting)




अथ सोमवार के व्रत करने के विधि-विधान के नियम,कथा,आरती और व्रत के फायदे(Fasting rules of Atha Monday, rules, story, aarti and benefits of fasting):-सोमवार का व्रत भगवान शिव-शंकरजी को खुश करने के लिए किया जाता है,शिवजी सबकी इच्छाओं को जल्दी पूरा करते है और उनका नाम भोलेनाथ है। मनुष्य के द्वारा किये हुए व्रत के करने से जीवन में आ रही बाधाएं और कष्टों से मुक्ति मिलती है और मनुष्य इस भवसागर से तर जाता है। सोम ग्रह के बुरे असर को कम करने के लिए भी सोमवार का व्रत करना चाहिए।

सोमवार व्रत की रीति के नियम्:-सोमवार का व्रत चैत्र, वैशाख,श्रावण या कार्तिक मार्गशीर्ष के मास से धारण करना योग्य होता है।

◆मनुष्य को किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम पहले सोमवार से शुरुआत करना चाहिए। 

◆सोमवार के व्रत की संख्या अपने मन में दश या चौपन व्रत करने की इच्छा से करना चाहिए।

भोजन के रूप में:-मनुष्य को भोजन में दही,दूध-चावल अथवा खीर के पहले साथ ग्रास को खाना चाहिए फिर दूसरे प्रदार्थ को खाना चाहिए।

दान करना:-मनुष्य को व्रत के दिन खाने से पहले किसी भी विद्यार्थी को दही,दूध-चावल अथवा खीर वस्तु प्रदार्थ आदि में से अपनी इच्छा के अनुसार अनुदान करना चाहिए।

◆मनुष्य को खाना सूर्यास्त के बाद ही करना चाहिए।

◆मनुष्य को सोमवार के दिन में सफेद रंग के कपड़े आदि को पहनना ठीक रहता है।

◆प्रातःकाल के समय स्नान करने के बाद चन्दन का तिलक लगाना चाहिए।

◆मनुष्य को शिवालय के दर्शन दिप-ज्योति सुगंध अर्पण करना चाहिए।

◆मनुष्य को "ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः" इ बीज मंत्र का अपनी मन श्रद्धा शक्ति के अनुसार जाप करना चाहिए।

◆मनुष्य को जब भी व्रत शुरू करें तो दिन के तीसरे पहर को ध्यान रखना चाहिए।

◆सोमवार के व्रत में फल को आहार का कोई भी विशेष नियम नहीं होता है।

◆मनुष्य को दिन और रात में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए।

◆मनुष्य को भगवान शंकरजी और माता गौरी का पूजन सोमवार के दिन में करना चाहिए।

सोमवार व्रत के भाग:-सोमवार व्रत को तीन भागों में मनुष्य कर सकता है,जो इस तरह है-

1.सामान्य हर सोमवार व्रत।

2.सौम्य सोमवार का व्रत।

3.सोलहा सोमवार का व्रत।

सामान्य हर,सौम्य एवं सोलहा सोमवार का व्रत तीनों व्रत करने की विधि:- सामान्य हर सोमवार,सौम्य सोमवार का व्रत और सोलहा सोमवार के व्रत में विधि समान है। सोमवार के दिन के तीसरे पहर में एक समय ही भोजन करना चाहिए और शंकर जी और गौरी माता की पूजा करनी चाहिए।लेकिन तीनों व्रतों की कथा अलग-अलग है।

1.अथ हर सोमवार व्रत की कथा आरम्भ:-एक जमाने में एक बहुत ही धनवान साहूकार रहता था,जिसके पास में कोई तरह के धन की कमी नहीं थी।लेकिन उसको बहुत ही दुःख था कि उसके कोई पुत्र सन्तान नहीं थी इसी सोच-विचार में रात-दिन पुत्र सन्तान इच्छा के लिए हर सोमवार को शंकरजी का व्रत और पूजन करता और शाम के समय में शंकरजी के मंदिर में जाकर शंकरजी के विग्रह के सामने दिया को जलाया करता था। उस साहूकार के भक्तिभाव को देखकर माता गौरी ने शंकर जी से कहा कि-"महाराज! यह साहूकार आपका बहुत बड़ा भक्त है और आपका व्रत व पूजन पूरी श्रद्धा और विश्वास से करता है,इसलिए इसकी मन की इच्छा को पूरा करना चाहिए।

शंकरजी ने कहा-"हे गौरी! यह जगत् कर्म की जगह है,जो मनुष्य जैसे कर्म करता है,उसे वैसा ही फल मिलता है"माता गौरी ने ज्यादा आग्रह करते हुए कहा-"महाराज! जब यह आपका बहुत ही ज्यादा भक्त है और इसको जो भी दुःख है उसे आप दूर कर देना चाहिए, क्योंकि आप सब भक्तों पर सदैव अपनी कृपा दृष्टि करते है और दुखों को दूर करते है।यदि आप ऐसा नहीं करोगें तो कोई भी मनुष्य आपकी सेवा,व्रत और पूजन क्यों करेंगे?

गौरी माता के अधिक आग्रह करते देख शंकरजी महाराज कहने लगे-"हे गौरी! इस साहूकार के कोई भी पुत्र सन्तान नहीं होने से दुःखी रहता है। लेकिन इसके भाग्य में पुत्र सन्तान नहीं होते हुए भी मैं इसे पुत्र सन्तान का वरदान देता हूँ, लेकिन इसका पुत्र बारह साल तक ही जीवित रहेगा उसके बाद उसकी मृत्यु हो जायेगी। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ।" यह सब बातें साहूकार सुन रहा था। इन बातों से नहीं उसे खुशी हुई और नहि उसे दुःख हुआ। वह पहले की तरह नियमित शंकरजी का व्रत और पूजन करता रहा। कुछ सनी बीतने पर साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और दशवें महीने में उसके गर्भ से एक अति सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। साहूकार घर में खुशिया मनाई गई लेकिन साहूकार मालूम था कि यह पुत्र बारह साल के बाद मर जायेगा जिसके कारण उसको कोई खुशी नहीं थी इस बात को किसी को भी नहीं बताई। जब बालक ग्यारह साल का होने पर उसकी पत्नी ने साहूकार से कहा कि इस पुत्र का विवाह करना चाहिए तो साहूकार ने कहा अभी इसका विवाह का समय नहीं है और पुत्र को काशी पढ़ने के लिए भेजूंगा।फिर साहूकार ने अपने साले को बुलाकर,उसको बहुत ही ज्यादा धन देकर कहा-" तुम इस बालक को काशी जी पढ़ने के लिये ले जाओ और रास्ते में जिस जगह पर भी जाओ यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाओ।

दोनों मामा और भानजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए जा रहे थे।मार्ग में एक शहर से गुजरे रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक राजा की लड़की का विवाह था और दूसरे राजा का जो लड़का विवाह करने के लिए आया था वह एक आंख से काना था। लड़की वाले पिता राजा को चिंता थी कि कहि लड़की उस राजा के लड़के को काना जानकर शादी के लिए मना नहीं कर देवे। जब उस राजा ने सेठ के पुत्र को देखा की इस सुंदर लड़के से अपनी लड़की विवाह कर देता हूँ। जब राजा ने लड़के और उसके मामा से बात करके उनको मना लिया। उस लड़के को बिंद के कपड़े पहनाकर घोड़ी पर बैठाकर अपने राजमहल के दरवाजे पर ले गये और सब काम खुशी से पूरा हो गया। फिर लड़की के पिता ने विचार किया कि शादी की रस्में भी इस लड़के से कराने में क्या बुराई है? इस तरह का विचार करके लड़के और उसके मामा से कहा-",यदि फेरों का और कन्यादान के काम को भी करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी और मैं इसके बदले में बहुत धन दूंगा।"तो उन्होंने बात मान ली और शादी काम पूरी तरह से पूरा हो गया, परन्तु लड़के जब जाने लगा टी उसने राजकुमारी की चुंदड़ी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है,परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आंख से काना है और मैं पढ़ने काशी जा रहा हूँ। जब राजकुमारी ने चुंदड़ी के पल्ले पर गांठ देखी और खोला तो उसमें लिखा देखकर पढा और जब उस राजकुमार के साथ भेजने पर उसने मना कर दिया और बोली कि मेरा पति नहीं है।मेरी शादी इस राजकुमार के साथ नहीं हुई है। मेरी शादी जिसके साथ हुई है वह तो पढ़ने काशी गया है। राजकुमारी को उसके माता-पिता ने विदा नहीं किया और बारात वापस भेज दी।

सेठ का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचकर वहां उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया।जब लड़का बारह साल का हुआ और उस दिन यज्ञ किया गया था लड़के ने अपने मामाजी से कहा मेरी तबियत ठीक नहीं है तो मामा ने कहा अंदर जाकर सो जाओ। जब लड़का अंदर जाकर सो गया और उसके प्राण निकल गए। जब मामा ने देखा कि लड़का मर चुका है तो उसको दुःख हुवा और उसने विचार किया कि अभी रोने-पीटने से यज्ञ का काम अधूरा रह जाएगा, इसलिए उस मामा ने यज्ञ को जल्दी से पूरा कराके ब्राह्मणों को दान देकर विदा करने के बाद रोना-पीटना शुरू किया। तब उसी समय शंकरजी और माता गौरी वहां से जा रहे थे उन्होंने रोने की आवाज सुनी तब गौरी माता ने शंकरजी को कहा कि-"महाराज! कोई दुखियारा रो रहा है उसके दुःख व कष्ट को मिटावे। जब शंकरजी-माता गौरी नजदीक से देखा तो वहां एक लड़का मरा पड़ा था। माता गौरी कहने लगी-महाराज यह तो उस सेठ का लड़का है जिसको आपने वरदान देने से हुआ था। शंकरजी कहने लगे-"हे गौरी इसकी उम्र इतनी ही थी यह भोग चुका है।" तब माता गौरी ने कहा-"हे महाराज!  इस लड़के को उम्र दो नहीं तो इसके माता-पिता तड़प-तड़पकर मर जायेंगे।"माता गौरी के बहुत कहने पर शंकरजी के द्वारा उस लड़के को जीवन दान देने पर लड़का जीवित हो गया। शंकरजी और माता गौरी कैलाश पर्वत को चले गये।

तब वह लड़का और मामा उसी तरह यज्ञ करते तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते अपने घर की ओर निकले तो मार्ग में वही नगर आया,जहां पर उस लड़के मि शादी हुई थी। वहां पर आकर दोनों हवन शुरू किया तो राजा ने देखा और पहचान लिया। पहचाने पर अपने राजमहल ले गये और उन दोनों की बहुत ही सेवा की साथ ही बहुत से दास-दासियों सहित सम्मान के साथ अपनी लड़की और जमाई को विदा किया। जब वह अपने नगर के नजदीक आने पर मामा ने कहा कि मैं पहले घर पर जाकर सूचना देता हूँ, जब लड़के के मामा घर पर पहुंचा तो देखा कि लड़के के माता-पिता छत पर बैठे है और उन्होंने ने प्रतिज्ञा कर रखी है कि जब तक हमारा पुत्र सकुशल लौट आएगा तो ही हम राजी-खुशी से नीचे आ जायेंगे। इतने में उस लड़के के मामा ने आकर यह सूचना दी कि आपका पुत्र आ गया है तो उनको विश्वास नहीं हुआ तब उसके मामा ने सौगन्ध खाकर कहा कु आपका पुत्र अपनी पत्नी  और बहुत ज्यादा धन साथ लेकर आया है। तो सेठ ने खुशी के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी खुशी के साथ रहने लगे। 

सोमवार व्रत करने के फायदे:-जो अपनी श्रद्धा से सोमवार का व्रत करता है और कथा को पढ़ता है और कथा को सुनता है उसकी सभी मन की कामनाए पूरी होती है।


2.सोलह सोमवार व्रत कथा:-एक बार शंकरजी और माता गौरी की इच्छा मृत्यु लोक में घूमने की हुई तो वे दोनों मृत्यु लोक में पधारे,वहां पर घूमते हुए विदर्भ देश के अंतर्गत अमरावती सुंदर नगरी में पहुंचे। अमरापुरी की तरह अमरावती नगर में सब तरह के सुखों से पूर्ण थी। उस अमरावती नगरी के राजा के द्वारा उस नगरी में अधिक सुंदर शिवजी का मंदिर बनाया हुआ था। उसमें भगवान शंकरजी भगवती गौरी माता के साथ निवास करने लगे।

एक समय माता गौरी ने प्राणपति को खुश देख के हंसी मजाक करने की इच्छा से बोली-"हे महाराज! आज तो हम दोनों चौसर खेलेंगे। शिवजी ने अपनी प्राणप्रिया की बात को मानकर चौसर खेलने लगे। उसी समय उस मंदिर का पुजारी ब्राह्मण मन्दिर में पूजा करने को आया। माता गौरी ने पुजारी ब्राह्मण से पूछा कि इस चौसर के खेल में किसकी जीत होगी। ब्राह्मण बिना सोचे ही बोला कि शिवजी की जीत होगी,लेकिन जब बाजी खत्म हुई तो माता गौरी की जीत हो गयी। माता गौरी ने जीतते ही ब्राह्मण को झूठ बोलने के अपराध में श्राप देने को तैयार हो गयी। तब शिवजी ने उनको समझाया परन्तु माता गौरी ने शिवजी की बात को नहीं मानते हुए उस पुजारी ब्राह्मण को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया।

1.ब्राह्मण के शाप से मुक्ति का उपाय अप्ससराओं के द्वारा बताना:-श्राप की वजह से पुजारी ब्राह्मण अनेक तरह से दुःखी रहने लगा। इस तरह के कष्ट को भोगते हुए बहुत दिन हो गये तो देवलोक की अप्ससरायें शिवजी की पूजा करने के लिए उस मंदिर में आयी और पुजारी के कोढ़ के कष्ट को देखकर बड़े दयाभाव से उससे रोगी होने का कारण पूछा-"पुजारी ने बिना संकोच के सब बातें उनको बताई।"वे अप्ससरायें बोली-" पुजारी!भगवान शिवजी तुम्हारे कष्ट को जल्दी दूर कर देंगे तुम्हे चिंता करने की जरूरत नहीं है। तुम सब बातों में सबसे अच्छा षोडश सोमवार का व्रत भक्ति भाव से किया करो।पुजारी ने अप्ससराओं से हाथ जोड़कर षोडश सोमवार करने की विधि पूछने लगा।

सोलह सोमवार व्रत के लिए सामग्री और विधि अप्ससराओं के द्वारा बताई गई:-अप्ससराओं बोलीं की जिस दिन सोमवार हो उस दिन भक्तिभाव के साथ व्रत करे। साफ कपड़े पहनकर आधा सेर गेहूँ का आटा ले उसके तीन अंगा बनावे और घी,गुड़,दिप,नैवेद्य,पुंगीफल,बेलपत्र,जनेऊ जोड़ी में,चन्दन,अक्षत,फलादि के द्वारा प्रदोष समय में भगवान शिव जी का विधि से पूजन करके उसके बाद में अंगों में से एक शिवजी को अर्पण कर दे बाकी दो को शिवजी का प्रसाद समझकर हाजिर लोगों में बांट दें और खुद प्रसाद लेवे। 

इस विधि से सोलह सोमवार व्रत को करे।उसके बाद सत्रहवें सोमवार के दिन पाव सेर पवित्र गेहूँ के आटे की बाटी बनावे उसके बाद घी और गुड़ मिलाकर चूरमा बनावें और शिवजी को भोग लगाकर हाजिर भक्तों को बांटे और पीछे खुद सकुटुम्ब प्रसाद को लेवें। इस तरह पुजारी नियमित सोमवार को व्रत करता रहा और वह ठीक हो गया। जब शिवजी और माता गौरी वापस उस मंदिर में आये तो देखा कि पुजारी कोढ़ से ठीक होकर स्वस्थ हो गया है तो माता गौरी ने पुजारी ब्राह्मण के ठीक होने का कारण पूछा तो ब्राह्मण पुजारी ने सोलह सोमवार व्रत की कथा कह सुनाई।


2.माता गौरी द्वारा अपने नाराज पुत्र को मनाने के लिए व्रत करना:- गौरी माताजी बहुत खुश होकर ब्राह्मण से व्रत की विधि के बारे में जानकर व्रत करने को तैयार हुई। इस व्रत के बाद उनकी मन की कामना पूरी हुई तथा अपने आज्ञाकारी नाराज पुत्र स्वामी कार्तिकेय को मनाया।जब कार्तिकेय अपनी नाराजगी खत्म हो गयी तो अपनी माता गौरी से पूछा कि मेरे विचार में बदलाव किसके कारण हुआ तब माता गौरी ने बताया कि षोडश सोमवार के व्रत करने से तुम्हारा मन बदल गया और तुम मेरे पास आ गए।


3.भगवान कार्तिकेय के द्वारा अपने प्यारे मित्र से मिलने की इच्छा के लिए व्रत करना:- तब कार्तिकेय ने कहा कि हे माताजी मैं यह सोलह सोमवार का व्रत करूँगा क्योंकि प्रियमित्र ब्राह्मण बहुत दुःखी दिल से परदेश गया है और मुझे उससे मिलने की इच्छा है। जब कार्तिकेय जी ने यह व्रत करने से अपने प्रिमित्र ब्राह्मण से मिले। जब कार्तिकेयजी से उनके मित्र ने पूछा कि हम अचानक कैसे मिले तो कार्तिकेय जी सोलह सोमवार व्रत के बारे में बताया कि यह व्रत करने से मेरी तुम्हारे से मुलाकात हुई है।


4.ब्राह्मण के द्वारा अपनी शादी के लिए व्रत करना:- ब्राह्मण मित्र को अपने विवाह की बहुत इच्छा हुई। कार्तिकेय जी से व्रत की विधि पूछकर स्वयं विधिपूर्वक व्रत को किया। व्रत के असर से जब ब्राह्मण किसी काम के लिए विदेश गया तो वहां राजा की लड़की का स्वयंवर था। राजा ने प्रण किया था कि जिस राजकुमार के गले मे सब तरह श्रृंगारित हथिनी माला डालेगी मैं उसी के साथ अपनी प्यारी पुत्री का विवाह कर दूंगा। शिवजी की कृपा से ब्राह्मण भी स्वयंवर को देखने की इच्छा से राजसभा में गया और सभा में एक ओर बैठ गया। नियत समय पर हथिनी आई और जयमाला उस ब्राह्मण के गले में दाल दी। राजा अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार बड़ी धूमधाम से कन्या का विवाह उस ब्राह्मण के साथ कर दिया। राजा ने बहुत से धन और सम्मान देकर सन्तुष्ट किया। ब्राह्मण सुंदर राजकन्या पाकर सुख से जीवन व्यतीत करने लगा।


5.ब्राह्मणी के द्वारा पुत्र सन्तान की कामना के लिए व्रत करना:-एक दिन राजकन्या ने अपने पति से प्रश्न किया-"हे प्राणनाथ! आपने कौनसा ऐसा पूण्य का काम किया जिसके असर से हथिनी ने सब राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में माला डाली?"ब्राह्मण बोला-"हे प्राणप्रिय!मैने अपने मित्र कार्तिकेय जी के कहे अनुसार सोलह सोमवार का व्रत पूर्ण विधि-विधान से किया जिसके असर से मुझे तुम जैसी सुंदर रूप वाली पत्नी मिली है।व्रत की महिमा को सुनकर वह आश्चर्य हुआ और वह भी अपने मन में पुत्र Tसन्तान को पाने के लिए व्रत करने लगी। शिवजी की कृपा से उसके गर्भ में एक बहुत सुंदर अच्छा धर्मात्मा और पंडित पुत्र सन्तान की प्रप्ति हुई। माता-पिता दोनों उस देव पुत्र को पाकर बहुत ही खुश हुए और उसका पालन-पोषण अच्छी तरह से करने लगे।


6.ब्राह्मणी के पुत्र द्वारा राज्याधिकार पाने के लिए व्रत करना:-जब पुत्र समझदार हुआ तो एक दिन अपने माता से पूछा कि"मां तुमने कौन सा ऐसा व्रत किया जिसके असर से मेरे जैसा पुत्र तुम्हारे गर्भ से पैदा हुआ।"माता ने पुत्र की तीव्र इच्छा को जानकर सोलह सोमवार के व्रत को विधि सहित अपने पुत्र को बताया।पुत्र ने ऐसे सरल व्रत और सब इच्छा के पूर्ण करने वाला सुना तो वह भी इस व्रत को राज्याधिकार पाने की इच्छा से हर सोमवार को व्रत को विधि-विधान से करने लगा तो एक दिन एक देश के वृद्ध राजा के दूतों ने आकर उसकी राजकन्या के लिए चुना। राजा ने अपनी राजकन्या का विवाह सब गुणों से युक्त ब्राह्मण युवक से करवा दिया और जब वृद्ध राजा देवलोक हो गये तब यही ब्राह्मण बालक राजगद्दी पर बिठाया गया,क्योंकि दिवंगत राजा के कोई पुत्र सन्तान नहीं था। राज्य का उत्तराधिकारी होकर भी वह ब्राह्मण पुत्र अपने सोलह सोमवार के व्रत को करता रहा।जब सत्रहवां सोमवार आया तो विप्र पुत्र ने अपनी प्रियतमा से सब पूजन सामग्री लेकर शिवपूजा के लिये शिवालय में चलने को कहा,परन्तु प्रियतमा ने उसकी आज्ञा की परवाह न कि। दास-दासियों के द्वारा सब सामग्री शिवालय में भिजवा दी और खुद नहीं गई।जब राजा ने शिवजी की पूजा को समाप्त किया,तब आकाशवाणी राजा के प्रति हुई-" हे राजा! अपनी इस रानी को अपने राजमहल से निकल दे नहीं तो तेरा सर्वनाश कर देगी।"आकाशवाणी को सुन राजा को आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और तुरंत ही मंत्रणा गृह में आकर अपने सभासदों को बुलाकर पूछने लगा कि हे मंत्रियों!मुझे आज शिवजी की वाणी हुई है कि राजा तू अपनी इस रानी को अपने महल से निकाल दें नहीं तो ये तेरा सर्वनाश कर देगी। राज्यसभाये,मंत्री आदि सब बड़े विस्मय और दुःख में डूब गये क्योंकि जिस कन्या के कारण राजा को राज्य मिला है उसी को निकालने का यह जल रच रहा है,यह कैसे हो सकेगा?अंत में राजा ने अपने यहां से निकल दिया। रानी दुःखी ह्रदय में को कोसती हुई नगर  के बाहर चली गई। बिना पदत्राण, फ़टे कपड़े पहने भूख से दुखी धीरे-धीरे चलकर एक नगर में पहुंची। वहाँ एक बुढ़िया सूट कात कर बेचने को जाती थी। रानी की करूँ हालत को देख बोली-"चल तू मेरा सूत बिकवा दे,मैं वृद्ध हूँ, भाव नहीं जानती हूँ।" ऐसी बात बुढ़िया की सुन रानी ने बुढ़िया के सिर से सूट गठरी उतार कर अपने सर पर रख ली, थोड़ी देर बाद आंधी आई और बुढ़िया का सूत पोटली के सहित उड़ गया। बेचारी बुढ़िया पछताती रह गई और रानी को अपने साथ से दूर रहने को कह दिया। अब रानी तेली के घर गई,तो तेली के सब मटके शिवजी के प्रकोप से उसी समय चटक गये। ऐसी हालत देख तेली ने रानी को अपने घर से निकल दिया।इस तरह रानी अत्यंत दुःख पाती हुई एक नदी के तट पर गई तो नदी का सारा जल सुख गया। उसके बाद रानी एक वन में गई,वहां जाकर सरोवर में सीढ़ी से उतरकर पानी पीने को गई उसके हाथ का जल में स्पर्श होते ही सरोवर का नीलकमल के समान जल असंख्य कीड़ामय गन्दा हो गया। रानी ने भाग्य पर दोषारोपण करते हुए उस जल को पी करके पेड़ की पत्ते उसी समय गिर जाते। वन,सरोवर तथा जल की ऐसी दशा देखकर गऊ चराते ग्वालों ने अपनी गुसाईं जी से जो उस जंगल में स्थित मंदिर में पुजारी थे कहि। गुसाईं जी के आदेशानुसार ग्वाले रानी को पकड़कर गुसाईं के पास ले गये। रानी की मुख कांति और शरीर की शोभा देख गुसाईं जान गए कि यह अवश्य ही कोई विधि की गति की मारी कुलीन स्त्री है। ऐसा सोचकर पुजारीजी ने कहा कि मैं तुमको किसी तरह का कष्ट नहीं दूंगा। गुसाईं के ऐसे वचन सुनकर रानी को धीरज हुआ और आश्रम में रहने लगी। परन्तु आश्रम में रानी जो भोजन बनाती उसमें कीड़े पड़ जाते,जल भर के लाती तो उसमें कीड़े पड़ जाते। अब तो गुसाईं जी भी दुःखी हुए और रानी से बोले कि हे बेटी! तुम्हारे ऊपर कौनसे देवता का कोप है जिससे तुम्हारी ऐसी दशा हुई?पुजारी की बात सुन रानी ने शिवजी महाराज के पूजन का बहिष्कार करने की कथा सुनाई तो पुजारी शिवजी महाराज की अनेक तरह से स्तुति करते हुए रानी से बोले कि देवी तुम सब मनोरथों को पूर्ण करने वाले सोलह सोमवार व्रत को करो। उसके असर से अपने कष्ट से मुक्त हो सकोगी। गुसाईं की बात सुनकर रानी ने सोलह सोमवार व्रत को विधिवत सम्पन्न किया और सत्रहवें सोमवार को पूजन के प्रभाव से राजा के ह्रदय में विचार आया कि रानी को गए बहुत समय बीत गया न जाने कहां- कहां भटकती होगी? ढूढ़ना चाहिए। यह सोच रानी को तलाश करने के लिए चारों दिशाओं में दूत भेजे। वे दूत रानी को खोजते हुए पुजारी के आश्रम में पहुँचे वहाँ रानी को पाकर पुजारी से रानी का मांगने लगे,परन्तु पुजारी ने उन दूतों को मना कर दिया। तो दूत चुपचाप लौट आए और आकर महाराज के सन्मुख रानी का पता बतलाया।रानी का पता पाकर राजा स्वयं पुजारी के आश्रम में गये और पुजारी से अरदास करने लगे कि"महाराज!जो देवी आपके आश्रम में रहती है वह मेरी पत्नी है। शिवजी के कोप से मैंने इसको त्याग दिया था अब इस पर से शिवजी का प्रकोप शांत हो गया है। इसलिए मैं इन्हें लेने आया हूँ। आप इनको मेरे साथ जाने की आज्ञा दीजिए।"


गुसाईं आज्ञा पाकर रानी खुश होकर राजा के साथ महल में आई,नगर में अनेक तरह के बधावे बजने लगे। नगर निवासियों ने नगर के दरवाजे तथा नगर को तोरण बन्दनवारों से विविध प्रकार से सजाया। घर-घर में मंगल गान होने लगे,पंडितो ने विविध वेद मंत्रों का उच्चारण करके अपनी राज रानी का स्वागत किया। ऐसी अवस्था मे रानी पुनः अपनी राजधानी में प्रवेश किया, महाराज ने अनेक तरह से ब्राह्मणों को दानादि देकर सन्तुष्ट किया,याचकों को धन-धान्य दिया,नगरी में स्थान-स्थान पर सदाव्रत खुलवाये, जहाँ भूखे लोगों को भोजन मिलता था। इस प्रकार से राजा शिवजी की कृपा का पात्र हो राजधानी के साथ अनेक तरह के सुखों का भोग करते हुए सोमवार व्रत करने लगा। विधिवत शिवाजी का पूजन करते हुए, इस लोक में अनेकानेक सुखों को भोगने के बाद शिवपुरी को पधारे। ऐसे ही जो मनुष्य मन,वचन और कर्ण द्वारा भक्ति सहित सोलह सोमवार का व्रत पूजन इत्यादि विधिवत करता है वह इस लोक में समस्त सुखों को भोगकर अंत मे शिवपुरी को प्राप्त विधिवत करता है। यह व्रत सब मनोरथों को पूर्ण करने वाला हैं। 


             ।।इति सोलह सोमवार व्रत कथा।।



3.सौम्य प्रदोष व्रत कथा:-पुराने जमाने में एक ब्राह्मणी अपने पति की मृत्यु होने के बाद बिना आधार के भीख मांगने लग गई। वह सुबह होते ही अपने बेटे को अपने साथ लेकर भीख मांगने के लिए अपने घर से बाहर निकल जाती थी और शाम होने पर घर आती थी। एक समय में उसको विदर्भ राज्य के राजा का पुत्र मिला। जिसके पिता को दुश्मनों ने धोखे से मार दिया और उससे उसके पिता का राज्य छीनकर उसे उसके राज्य से बाहर निकाल दिया। इस कारण से वह बहुत दु:खी होकर इधर-उधर मारा-मारा फिर रहा था। ब्राह्मणी जब उसे इस तरह देखा तो उसको अपने साथ अपने घर ले गई और उसका लालन-पालन करने लगी। एक दिन दोनों बालक वन में खेल खेलते हुए वन में गन्धर्व कन्याओं को देखा। राजा का पुत्र वन में रुककर उस अंशुमती नाम की गन्धर्व कन्या से बातचीत करने लगा। एक दिन वह अपने घर से निकल उस जगह पर पहुंचा जहां पर गन्धर्व लड़की से मिला था,तो उसने देखा कि अंशुमती अपने माता-पिता के साथ बैठी बातें कर रही थी।उस तरफ ब्राह्मणी ऋषियों के द्वारा बताये हुए सोमवार के प्रदोष व्रत को कर रही थी। थोड़े समय के बाद में उस राजकुमार को अंशुमती के माता-पिता ने बताया कि तुम विदर्भ राज्य के राजकुमार धर्मगुप्त हो,हम आपके साथ भगवान शिवजी के आशीर्वाद से आपका लग्न अपनी राजकुमारी अंशुमती से करवा देते है। इस तरह अंशुमती का लग्न राजकुमार धर्मगुप्त के साथ हो जाता था। फिर राजकुमार ने अपने ससुराल गन्धर्व राज की सेना की मदद से विदर्भ राज्य को जीत लिया और ब्राह्मण के पुत्र को अपना मंत्री बनाया था। इस तरह उस ब्राह्मणी के द्वारा सोमवार के प्रदोष व्रत के प्रभाव से सबकुछ हुआ। यही से सोमवार के प्रदोष व्रत की शुरुआत हुई थी।



            ।।इति सौम्य प्रदोष व्रत कथा।।




                   सोमवार की आरती


आरती करत जनक कर जोरे। बड़े भाग्य रामजी घर आए मोरे।।टेक।।

जीत स्वयंवर धनुष चढ़ाये। सब भूपन के गर्व मिटाए।।

तोरि पिनाक किए दुई खण्डा।रघुकुल हर्ष रावण मन शंका।।

आई है लिए संग सहेली। हरिष निरख वरमाला मिली।।

गज मोतियन के चौक पुराए। कनक कलश भरि मंगल गाए।।

कंचन थार कपूर की बाती। सुर नर मुनि जन आये बराती।।

फिरत भांवरी बाजा बाजे। सिया सहित रघुवीर विराजे।।

धनि-धनि राम लखन दोऊ भाई। धनि-धनि दशरथ कौशल्या माई।।

राजा दशरथ जनक विदेही। भरत शत्रुधन परम् सनेही।।

मिथिलापुर में बजत बधाई। दास मुरारी स्वामी आरती गाई।।


हवन यज्ञ करना:-मनुष्य को मन की इच्छा के अनुसार सोमवार व्रत के करने के बाद में अंतिम सोमवार के दिन हवन करना चाहिए। 

◆मनुष्य को हवन की क्रिया को करने के बाद बालक-विद्यार्थी को खीर सहित खाना खिलाना चाहिए।।

◆हवन की समिधा के रूप में पलाश की छाल या लकड़ीयों का उपयोग करना चाहिए।

दान देना:-मनुष्य को दक्षिणा के रूप में चाँदी अथवा सफेद कपड़ो को दान के रूप में किसी गरीब या ब्राह्मण को देना चाहिए।

सोमवार के दिन का व्रत करने के फायदे:-मनुष्य को सोमवार का व्रत करने से मनुष्य को अपने व्यापार में फायदा होता है।

◆मनुष्य के मानसिक कष्ट विकारों का नाश होकर मुक्ति मिलती है।