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Thursday, February 4, 2021

श्री हनुमानजी का 'संकटमोचन हनुमानाष्टक काव्य रचना(ShreeHanumanji's 'Sankatmochan Hanumanashtak Poetry'):

श्री हनुमानजी का 'संकटमोचन हनुमानाष्टक  काव्य रचना(ShreeHanumanji's Hanumanashtak Poetry'):-हनुमान जयंती की तिथि में बहुत मत चलन में बताए गए। उन मतों में से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा और कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का मत विशेष कर चलन में है। श्री हनुमान जी के जन्म दिन के रूप में हनुमान जयंती पुरे भारतवर्ष में मनाई जाती है। हनुमान जयंती के दिन श्री हनुमानजी की भक्तिपूर्वक आराधना करनी चाहिए। श्री हनुमानजी को श्री रामजी के अनन्य भक्त के रूप में जाना जाता है। हनुमानजी को मारुतीनन्दन के रूप और अंजनी पुत्र के रूप में भी जाना जाता है।




भारतीय वैदिक धर्म गर्न्थो के अनुसार जो को मनुष्य श्री हनुमानजी की पूजा-अर्चना करता है, उसके सभी पापों और कष्टों को श्री हनुमानजी हर लेते है। संकटमोचन हनुमानाष्टक के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी थे। भारतीय वैदिक धर्म गर्न्थो के अनुसार हनुमान जयंती पर 'संकट मोचन हनुमानाष्टक का पाठ' करने से मनुष्य के सभी तरह के पापों और कष्टों को श्री हनुमानजी हर लेते है और मनुष्य के जीवन मे खुशहाली भर देते है। 




ShreeHanumanji's Hanumanashtak Poetry'






गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय:-गोस्वामी तुलसीदास जी ने 'रामचरितमानस काव्य' को बनाया था।गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1554 ईसवी में श्रावण शुक्ल सप्तमी तिथि के दिन बांदा में हुआ था। तुलसीदास के माता का नाम हुलसी देवी और पिता का नाम आत्माराम दुबे था। माता-पिता ने उनको अशुभ जानकर छोड़ दिया था। फिर उनको एक दासी ने पालन-पोषण किया था। थोडे समय के बाद उस दासी की मृत्यु हो गई। इस तरह उनको अशुभ समझकर कोई उनको अपने पास में रखने को तैयार नहीं था। इस तरह अनाथ होकर दर-दर की ठोकर खाते हुए भटकने लगे तब उनकी मुलाकात एक सन्त बाबा नरहरिदास जी हुई और उनके द्वारा शिक्षा प्राप्त की थी। उनका विवाह युवावस्था में रत्नावली नाम की एक रूपसी से हुआ था। तुलसीदास जी उससे बहुत ही प्यार करते और उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकते थे। इस तरह समय बीतने पर उनकी पत्नी रत्नावली एक दिन बिना बताएं अपने मायके चली गई और बहुत समय बीतने पर नहीं आने पर तुलसीदास जी ने भारी बारिश के मौसम में भीगते हुए नदी को पार करके अपने ससुराल रात के समय पहुंचे। तब रत्नावली ने अपने पति के इस तरह की अधीरता से बड़ा दुःख हुआ और वह बोली-



हाड़चाम की देह मम, तापर ऐसी प्रीति।


तसु आधी जो होत राम पर, मिट जाती भवभीति।।



इस तरह के वचनों को सुनकर तुलसीदास जी को तीर की भांति चुभे। उन्होंने उसी समय घर को छोड़कर काशी व चित्रकूट के सन्तों का सत्संग करने लगे।




'रामचरित मानस'  की रचना:-जब एक दिन पूजा का चन्दन घिसते समय उनके पास में राजकुंवर आकर कहने लगा कि मेरे चन्दन लगावो तब तुलसीदास जी उस राजकुंवर के चन्दन लगाया।



तभी कहीं से किसी ने कहा-


चित्रकूट के घाट पर,भई सन्तन की भीर।


तुलसीदास चन्दन घिंसे,तिलक देत रघुवीर।।



यह सुनकर तुलसीदास ने भगवान के चरण पकड़ने चाहे पर वें उन्हें नहीं दिखे। अब राम के सेवक के रूप में उन्होंने अपने इष्टदेव का जीवनचरित्र लिखना आरम्भ किया।



दो वर्ष, सात माह व छब्बीस दिन के अथक मेहनत से उन्होंने ग्रन्थ को लिखकर पूरा किया। इस ग्रन्थ का नाम 'रामचरित मानस' रखा।



इस तरह भगवान राम को अपना इष्टदेव के रूप में जगह-जगह पर उनके गुणों के बखान करते रहे थे।



श्री हनुमानजी के द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जी को दर्शन देना:-भगवान रामजी के गुणों के आख्यान करते हुए, उनके गुणों के बखान करने का मुख्य क्षेत्र उन्होंने अवधपुरी, वाराणसी नगर के क्षेत्र पवित्र धाम काशी और चित्रकूट को बनाया था। वे हमेशा प्रभु श्री रामजी के गुणों का बखान अपने कीर्तन के रूप में करते थे। तुलसीदास जी के नियमित श्री रामजी के गुणों के बखान के कीर्तन में बहुत ही सारे भक्त आते थे और उस कीर्तन को सुनते थे। इस तरह काफी समय तक रामजी के गुणों के कीर्तन को सुनने के लिए एक रामरसिक नाम का कोढ़ की बीमारी से ग्रसित मनुष्य भी आता था और भगवान श्री रामजी के गुणों के आख्यान को ध्यानपूर्वक सुनता था। जब श्री रामजी का आख्यान पूरा होता तो वह रामरसिक वहां से चला जाता था। इस तरह तुलसीदास जी उसको नियमित रूप उसको देखते थे। इस तरह काफी समय हो गया। वह रामरसिक आता और प्रभु कीर्तन को सुनकर चला जाता था। एक दिन तुलसीदास ने विचार किया कि यह कौन है, जो नियमित रूप से प्रभु श्री रामजी के कीर्तन को सुनता और चला जाता है। तो तुलसीदास जी ने एक दिन विचार किया की मैं इसका पीछा करता हूं। तो जब रामजी का कीर्तन पूरा हुआ तब सब कीर्तन सुनने वाले चले गए। रामरसिक जाने लगा तो तुलसीदास जी उसके पास जाकर उसके चरणों को पकड़ कर कहा की आप कौन है और अपना परिचय बताए।




तब रामरसिक ने तुलसीदास जी के आदर भाव को देखकर उन्होंने अपना असली रूप बताया तब तुलसीदास जी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। रामरसिक कि रूप में पवनपुत्र हनुमान जी थे जो कि तुलसीदास जी की भक्ति भाव को परखने के लिए आते थे। इस तरह अपने देव हनुमानजी को अपने सामने देखकर आनन्दित हो गये और उन्होंने बजरंगबली जी के प्रोत्साहन से तुलसीदास जी अनेक काव्य रचनाओं को बनाया था। इस तरह से उन रचनाओं में से एक रचना 'संकट मोचन हनुमानाष्टक' को रचित किया था। इस तरह जिस जगह पर तुलसीदास जी और कोढ़ी के रूप में हनुमानजी के साथ मुलाकात और उनके दर्शन की जगह पर हनुमानजी का मंदिर बना हुआ है। इस तरह हनुमानजी के द्वारा अपने भक्तों का कष्टों को हरण करने वाले होते है और अपने भक्तों को सब तरह की मुशीबतों से मुक्त कराने वाले होते है।





बाल्य काल में हनुमानजी अपने मित्रों के साथ अपने बल और क्षमता का उपयोग खेल-खेलते समय करते थे। इस तरह की शैतानीपन से सभी परेशान थे। कभी ऋषियों-मुनियों को भी परेशान करते थे। इस तरह भृगुवंश के ऋषियों को परेशान करने से भृगुवंश के ऋषियों ने हनुमानजी को श्राप दिया कि तुम इन क्षमताओं और अपने बल का खेल की तरह उपयोग करते हो तो तुम सब यह क्षमताएं भूल जायोगे। इस तरह श्राप मिलने पर माता अंजनी और महाराज केसरी जी के अरदास पर भृगुवंश के ऋषियों ने कहा कि श्राप तो रहेगा, लेकिन जब उनको किसी के द्वारा याद दिलाने पर यह अपनी क्षमता और बल का उपयोग कर पाएंगे। इस तरह जब सीता माता की खोज-खबर के समय हनुमानजी को जामन्वत जी के द्वारा याद कराने पर उनमें पहले की तरह बल और क्षमताएं की प्राप्ति हुई थी। उन क्षमताओं और अपने बल का उपयोग इन आठ काव्य रचना के पद में बताया गया है।




।।अथ श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक।।



बाल समय रवि भक्षि लियो तब,


तिनहुँ लोक भयो अँधियारो।


ताहि सों त्रास भयो जग को,


यह संकट काहु सों जात न टारो।


देवन आनि करी बिनती तब,


छाड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।


को नहिं जानत है जग में कपि,


संकटमोचन नाम तिहारो। को-१


बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,


जात महाप्रभु पंथ निहारो।


चौंकि महा मुनि साप दियो तब


चाहिये कौन बिचार बिचारो।


कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,


सो तुम दास के सोक निवारो। को-२


अंगद के संग लेन गए सिय,


खोज कपीस यह बैन उचारो।


जीवत ना बचिहौ हम सों जु,


बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।


हेरि थके तट सिंधु सबै तब,


लाय सिया-सुधि प्रान उबारो। को-३


रावण त्रास दई सिय को सब,


राक्षसि सों कहि सोक निवारो।


ताहि समय हनुमान महाप्रभु,


जाय महा रजनीचर मारो।


चाहत सीय असोक सों आगिसु,


दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो। को-४


बान लग्यो उर लछिमन के तब


प्रान तजे सुत रावण मारो।


लै गृह बैद्य सुषेन समेत,


तबै गिरि द्रोन सुबीर उपारो।


आनि सजीवन हाथ दई तब,


लछिमन के तुम प्रान उबारो। को-५


रावण युद्ध अजान कियो तब,


नाग कि फाँस सबे सिर डारो।


श्री रघुनाथ समेत सबै दल,


मोह भयो यह संकट भारो।


आनि खगेश तबै हनुमान जु,


बन्धन काटी सुत्रास निवारो। को-६


बंधु समेत जबै अहिरावन,


लै रघुनाथ पाताल सिधारो।


देविहिं पूजि भली विधि सों बलि,


देउ सबै मिलि मन्त्र बिचारो।


जाय सहाय भयो तब ही,


अहिरावन सैन्य समेत संहारो। को-७


काज किए बड़ देवन के तुम,


बीर महाप्रभु देखि बिचारो।


कौन सा संकट मोर गरीब को,


जो तुमसों नहिं जात है टारो।


बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,


जो कछु संकट होय हमारो। को-८


                  

                   ।।दोहा।।


लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर,


बज्र देह दानवदलन, जय जय जय कपि सुर।


।।इति श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक।।


।।बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय।।




संकटमोचन हनुमानाष्टक काव्य रचना का विश्लेषण:-हनुमानाष्टक में आठ पद की काव्य रचना है, जिसमे हनुमानजी के द्वारा किये सभी कार्यों के बारे में गोस्वामी तुलसीदास जी ने उनके कार्यों के बारे में जानकारी दी है। हनुमानजी के दिव्य रूप के द्वारा किये सब तरह के कामों को बताया है। हनुमानजी के क्षमता या बल के बारे में विवरण मिलता है कि किस तरह कैसे भी बाधाओ को उन्होंने कैसे अपनी बुद्धि और बल से हल किया है। इस तरह हनुमानजी के संकट मोचन हनुमानाष्टक पाठ को श्रद्धा से पाठन करने से वें अपने भक्तों की सभी तरह की बाधाओं और कष्टों को हर लेते है।




1.संकटमोचन हनुमानाष्टक पाठ की पहली काव्य रचना में:-श्री हनुमानजी के बाल्य काल के समय में भूख लगने पर सूरज भगवान को अपने भोजन के रूप में अपने मुहं में ले लिया था जिससे तीनों लोक देवलोक, पृथ्वीलोक और पाताललोक में अंधेरा हो गया था। सब जगह पर त्राहि-त्राहि होने लगी। तब सभी देवताओं ने मिलकर हनुमानजी से अरदास की तब जाकर सूरज देव को हनुमानजी ने अपने मुहं से छोड़ा।




2.संकटमोचन हनुमानाष्टक पाठ की दूसरी काव्य रचना में:-जब बाली के द्वारा अपने भाई सुग्रीव को मारने के लिए दौड़ते है,तब हनुमानजी के द्वारा सुग्रीव जी को बचाने का उपाय बताते है कि आप पर्वत ऋष्यमूक पर चले जाएं जहां पर ऋषि मातंग जी के आश्रम के पास में है, क्योंकि बाली को ऋषि मातंग जी ने श्राप दिया था कि वह ऋषि मातंग जी के आश्रम से एक योजन की दूरी में आया तो उसकी मौत हो जाएगी। इसलिए आप ऋष्यमूक पर्वत पर निवास करें। इस तरह दुजी काव्य रचना में सुग्रीव की रक्षा का उपाय बताकर उनकी रक्षा की थी।




3.संकटमोचन हनुमानाष्टक पाठ की तीजी काव्य रचना में:-जब माता सीताजी की कोई खबर नहीं मिलती है तो तब सब वानर सेना को ढूंढने के लिए भगवान रामजी के द्वारा कहा जाता है,तब हनुमानजी अंगद को साथ लेकर माता सीताजी को ढूंढने का प्रण करते है और कहते है कि जब तक मैं माता सीताजी को खोज-खबर नहीं लाता हूँ, तब तक मुझे चैन से नहीं बैठूंगा और मेरे जीवत रहना कोई मतलब नहीं रहेगा। मैं तब तक अपना मुहं श्रीरामजी को नहीं दिखाऊंगा। आखिर में माता सीताजी की खोज-खबर के लिए सिंधु समुद्र को पार करके खबर लाकर ही प्रभु श्रीरामजी को अपना मुहं दिखाते है। यह इस तीसरे काव्य रचना में गोस्वामी तुलसीदास जी ने वृन्तान बताया है।




4.संकटमोचन हनुमानाष्टक पाठ की चौथी काव्य रचना में:-जब हनुमानजी के द्वारा सिंधु सागर को पार करके रावण की लंका में प्रवेश करते है तो वे देखते है कि सीता माता को दुःख और कष्ट रावण के द्वारा दिया जाता है। तब हनुमानजी के द्वारा राक्षसों को मारकर लंका में त्राहि-त्राहि करके अशोकवाटिका में आम के पेड़ पर जाकर बैठ जाते है और भगवान रामजी की निशानी के रूप में अंगूठी माता सीता जी को देखकर उनके दुःख और कष्ट को कम करते है। इस तरह चौथी काव्य रचना में माता सीताजी को अंगूठी देकर सांत्वना देते है।




5.संकटमोचन हनुमानाष्टक पाठ की पांचवी काव्य रचना में:-जब लक्ष्मण जी और रावण के पुत्र मेघनाद के बीच युद्ध चल रहा होता है, तब मेघनाद के द्वारा नागपाश के प्रयोग से लक्ष्मणजी मूर्छित हो जाते है, तब विभीषण जी के द्वारा रावण के राज्य वैद्य सुषेन को लाने का कहा जाता है, तब हनुमानजी रावण की लंका से वैद्य सुषेन को लाकर उसने उपचार लक्ष्मणजी का करवाते है, जब उपचार से ठीक नहीं होने पर वैद्य सुषेन के द्वारा पर्वत से संजीवनी बूटी लाने का रास्ता बताया जाता है। तब हनुमानजी अपने पवन वेग से उड़ते हुए सुमेरु पर्वत से अनजान संजीवनी बूटी से उन्होंने पूरे पर्वत को उठाकर ले आये और वैद्य सुषेन के द्वारा लक्ष्मणजी का उपचार कराके उनके प्राणों की रक्षा की इस पांचवी काव्य रचना के पद में बताया गया है।




6.संकटमोचन हनुमानाष्टक पाठ की छठी काव्य रचना में:-जब भगवान राम और लक्ष्मणजी सहित सभी वानर सेना पर रावण के द्वारा युद्ध में नागपाश बाण के प्रयोग करने से भगवान और लक्ष्मणजी के साथ सभी वानर सेना पर नागपाश बाण के बंधन में फंस जाते है और मूर्च्छित हो जाते है, तब हनुमानजी के द्वारा पवन वेग से उड़ते हुए भगवान विष्णुजी के वाहन गरुड़जी को लेकर आते है और नागपाश के बंधन को कटवाते है। इस छठी काव्य रचना में यह विवरण बताया गया है।




7.संकटमोचन हनुमानाष्टक पाठ की सातवीं काव्य रचना में:-जब रावण के भाई अहिरावण-महिरावण को रावण के द्वारा आदेश मिलने पर अहिरावण-महिरावण ने विभीषणजी का रूप लेकर भगवान रामजी और लक्ष्मणजी को अपहरण करके अपने पाताल लोक देवी बलि के लिए ले गए तब हनुमानजी ने अहिरावण-महिरावण के पाताल लोक में जाकर उनकी सेना को नष्ट किया और मक्खी का रूप बनाकर अहिरावण-महिरावण को बलि देने से पांच दियों को जलते हुए अपने पंचमुखी रूप को धरकर उन दियो को बुजाकर अहिरावण-महिरावण का अंत करके श्रीरामजी और लक्ष्मणजी को मुक्त करवाके अपनी सैन्य छावनी में वापस सही सलामत लेकर आये। यह विवरण इस सातवें काव्य रचना के पद में मिलता है।




8.संकटमोचन हनुमानाष्टक पाठ की आठवीं काव्य रचना में:-आठवीं काव्य रचना में हनुमानजी की तारीफ करते हुए बताया है, की हे हनुमानजी आपने भगवान रामजी के बहुत ही सारे बड़े-बड़े कामों को पार लगाया है। मैं तो गरीब असहाय हूँ, आपके द्वारा कौन से कष्ट नहीं मिट सकते है। आपके के द्वारा सभी तरह के संकटो का समाधान है और आपसे यही अरदास करता हूँ कि हे हनुमानजी यदि हमारे ऊपर संकटों की छाया है तो उन संकटों की छाया को दूर करके हमें उनसे मुक्त करावे। इस तरह आठवीं काव्य रचना के पद में अरदास की गई बतायी है।