आरती श्री गंगा जी की(Aarti of shri Ganga ji):-माता गंगा जी को हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार बहुत ही उच्च स्थान दिया गया हैं, जो कि मानव जाति एवं समस्त जीवों के पापों को हरने वाली बताया जाता हैं। हिंदू धर्म ग्रन्थों के अनुसार गंगा माता को भगवान शिवजी ने अपने सिर की जटाओं में जगह दी गई होने से उनको उच्च स्थान की प्राप्ति हुई हैं।
माता गंगा जी का जन्म हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीचक्रपाणी जी के पाद की स्वेद बूंदों से हुई थी। अन्य धर्मं ग्रन्थों के अनुसार माता गंगा जी का जन्म ब्रह्मदेव जी कमण्डल से हुआ बताया जाता है।
माता गंगा को मनुष्य के समस्त बुरे किये गए पापों से मुक्ति दिलाने वाली एवं मनुष्य जाति का उद्धार करने वाली माना जाता हैं। मनुष्य जाति की अस्थियों का विर्सजन माता गंगा के पवित्र जल में करने से उस जीव की मुक्ति हो जाती है। इसलिए माता गंगा जी को उनकी आरती के द्वारा उनका ध्यान करना चाहिए। माता गंगा की आरती को नियमित पाठन करने से मनुष्य जाति के द्वारा किये गए बुरे एवं पाप कर्मों से मुक्ति मिल जाती हैं। मनुष्य जाति को अपनी आत्मा की मुक्ति के लिए नियमित रूप आरती करना चाहिए।
1.।।आरती श्री गंगा जी की ।।
ओउम् जय जय जय गंगे श्री गंगे।
ओउम् जय जय जय गंगे श्री गंगे।।
त्रिलोकी के तारन कष्ट निवारण,
भक्त उबारन आई गंगे।
ओं जय जय जय गंगे श्री गंगे।।
आश्चर्य महिमा वेद सुनावे,
नर मुनि ज्ञानी ध्यान लगावे।।
ओं जय जय जय गंगे श्री गंगे।।
जो तेरी शरणागति आवै,
जीवन मुक्ति इच्छाफल पावै।।
ओं जय जय जय गंगे श्री गंगे।
पाप हरण भक्ति की दाता,
काटे दर्शन की त्रासा।।
ओं जय जय जय गंगे श्री गंगे।
बसि बैकुण्ठ अमर पद पावे।
ओं जय जय जय गंगे श्री गंगे।।
।।इति आरती श्री गंगा जी की।।
2.।।अथ श्री गंगा जी की आरती।।
ओउम् जय गंगे माता, मैया जय श्री गंगे माता,
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।।
चन्द्र सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता।।
ओउम् जय गंगे माता, मैया जय श्री गंगे माता,
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।।
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता,
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता।।
ओउम् जय गंगे माता, मैया जय श्री गंगे माता,
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।।
एक ही बार जो प्राणी, तेरी शरणागति आता,
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता।।
ओउम् जय गंगे माता, मैया जय श्री गंगे माता,
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।।
आरती माता तुम्हारी, जो जन नित्य गाता।
दास वही सहज में, मुक्ति को पाता।।
ओउम् जय गंगे माता, मैया जय श्री गंगे माता,
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।।
।।इति आरती श्री गंगा जी की।।
3.।।श्री गंगा जी की आरती।।
महारानी गंगा मैया, मेरा उद्धार कर दे,
कृपा से अपनी माता, बेड़े को पार कर दे।
स्वर्ग से आई मैया जगत के तारने को,
चरणों में लगा ले मुझको, इतना उपकार कर दे।
महारानी गंगा मैया, मेरा उद्धार कर दे,
कृपा से अपनी माता, बेड़े को पार कर दे।
तेरा प्रवाह मैया, पापों का नाश करता,
भक्तों की खातिर मैया, अमृत की धार कर दे।
महारानी गंगा मैया, मेरा उद्धार कर दे,
कृपा से अपनी माता, बेड़े को पार कर दे।
तू जगदम्बे उसका पूरा भण्डार भर दे।
'चमन' नादान मैया, करता सदा विनती,
जगत की जननी सुखिया सारा संसार कर दे।
महारानी गंगा मैया, मेरा उद्धार कर दे,
कृपा से अपनी माता, बेड़े को पार कर दे।
।।इति आरती श्री गंगा जी की।।
।।जय बोलो गंगा मैया जय की।।
।।जय बोलो पाप निवारिणी मैया की जय।।