श्री गीता जी की आरती अर्थ सहित(Shri Gita ji ki Aarti With Meaning):-बहुत समय पूर्व जब महाभारत का समय था उस समय पांडवों और कौरवों के बीच में युद्ध का बिगुल बज गया था। इस तरह एक पाण्डव और दूसरी तरफ उनके सगे रिश्तेदारों के बीच में युद्ध होना था। इस तरह युद्ध का समय नजदीक आ गया था। युद्ध का शंख नाद हो गया था। एक तरफ युद्ध में पाण्डव अपने तरफ से कौरवों भाइयों की सेना पर अपने अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार कर रहे थे। उसी तरह ही कौरवों भी अपने भाइयों के विरुद्ध अस्त्र-शस्त्रों से प्रहार कर रहे थे। इस तरह रण में भयंकर ताण्डव हो रहा था। जब उस युद्ध में पांडवों में से अर्जुन की बारी आई उसके सामने उसके भाइयों की और उनकी सेना की मृत्यु हो रही थी तो अर्जुन ने अस्त्र-शस्त्रों को त्याग दिया था। इस तरह अपने अस्त्र-शस्त्र को त्याग देने पर भगवान श्रीकृष्णजी ने देखा तो वे अर्जुन को समझाने लगे। तब अर्जुन ने कहा कि हे वासुदेवजी आप तो जानते है कि यह सब मेरे कुटुम्ब के लोग है इनके खिलाफ मैं कैसे हथियार उठा सकता हूँ, यह मेरे से नहीं होगा तब श्रीकृष्ण जी उनको समझाया अपना विराट रूप को अर्जुन के सामने प्रकट किया था। उस समय श्रीकृष्णजी जो उपदेश दिए थे, उन उपदेशों से गीताजी की उत्पात्ति हुई थी। उन्होंने कहा मनुष्य को कर्म को करते रहना चाहिए, फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। इस तरह से गीताजी के संदेश मनुष्य के लिए दिए थे जिनके फलस्वरूप अर्जुन ने युद्ध करने के लिए तैयार हुआ था। इसलिए इस पवित्र ग्रन्थ के जो उपदेश है उनके अनुसार मनुष्य को गीताजी की आरती नियमित रूप से करते रहना चाहिए।
श्री गीता जी आरती का अर्थ:-श्री गीताजी की आरती को करने से पूर्व मनुष्य को उसको भावों को पहले जानकारी लेनी चाहिए, उसके बाद ही आरती को करना चाहिए। जो इस तरह है:
करो आरती गीता जी की।
अर्थात्:-मनुष्य को गीताजी की आरती को करते रहना चाहिए। अपने जीवन की मुक्ति प्राप्त करनी है तो नियमित रूप से गीता जी की आरती करके अपना उद्धार करना चाहिए।
जग की तारन हार त्रिवेणी,
स्वर्गधाम की सुगम नसेनी।
अर्थात्:-गीताजी के उपदेश से ज्ञान मिलता हैं कि इस समस्त जगत का पालन-पोषण और उसको सुचारू रूप चलाने वाली होती है। मुक्तिधाम अर्थात् स्वर्गलोक को सुगमता से प्राप्त करने वाली त्रिवेणी की आरती को नियमित करना चाहिए।
अपरमार शक्ति की देनी,
जय हो सदा पुनिता की।।
अर्थात्:-जिनमें बहुत ही ज्यादा शक्तियों का संचार होता है, जिनमें बहुत ही शक्तियों का भंडार भरा हुआ है, उन पुनिता की हमेशा जय हो।
ज्ञानदीप की दिव्य ज्योति मां,
सकल लगत की तुम विभूति मां।
अर्थात्:-हे विभूति माता! आप ज्ञान की देवी है आपमें बहुत ही ज्ञान की उज्ज्वल ज्योति भरी हुई है, जो आप के ज्ञान का उपयोग करता हैं तो आप उसकी नैया को पार लगा देती हो।
महा निशातीत प्रभा पूर्णिमा,
प्रबल शक्ति भय गीता की।।
अर्थात्:-हे माता गीता!आप तो बहुत आभा युक्त हो जिस तरह पूर्णिमा की चांदनी में आभा होती है उसी तरह ही आप चारों तरफ प्रकाश को फैलाने वाली हो, आप तो प्रबल शक्ति वाली होकर डर को भगाने वाली ही।
अर्जुन की तुम सदा दुलारी,
सखा कृष्ण की प्राण प्यारी।
अर्थात्:-हे माता गीता! आप तो अर्जुन का हमेशा लाड़ अर्थात् उंसके प्रति स्नेह रखने वाली हो, अपने मित्र कृष्ण को बहुत ही प्राणों से प्यारी हो।
षोडश कला पूर्ण विस्तारी,
छाया नम्र विनिताकी।।
अर्थात्:-हे माता गीता! आप तो षोडश कलाओं से परिपूर्ण हो, आप तो बहुत ही नम्र स्वभाव वाली हो, आपकी छाया मात्र से अगले को ठंडाई की प्राप्ति होती हैं।
श्याम का हित करने वाली,
मन का सब मैल हरने वाली।
अर्थात्:-हे माता गीता! आप तो सबका भला करने वाली हो, सबके पापों को हरण करके उनको एकदम स्वच्छ करने वाली हो।
नव उमंग नित भरने वाली,
परम प्रेमिका कान्हा की।।
अर्थात्:-हे माता गीता! आप तो सबको नया उत्साह देने वाली और निराश में जोश को देने वाली हो। आप तो कान्हा की बहुत ही प्यारी प्रीमिका हो।
करो आरती गीता जी की।।
अर्थात्:-हे माता गीता! जो आपकी आरती करता है, उसकी भी जय हो और आपकी भी जय हो।
।।इति श्री गीताजी की आरती।।
।।अथ श्री गीताजी की आरती।।
करो आरती गीता जी की।
जग की तारन हार त्रिवेणी,
स्वर्गधाम की सुगम नसेनी।
करो आरती गीता जी की।।
अपरमार शक्ति की देनी,
जय हो सदा पुनिता की।।
करो आरती गीता जी की।।
ज्ञानदीप की दिव्य ज्योति मां,
सकल लगत की तुम विभूति मां।
करो आरती गीता जी की।।
महा निशातीत प्रभा पूर्णिमा,
प्रबल शक्ति भय गीता की।।
करो आरती गीता जी की।।
अर्जुन की तुम सदा दुलारी,
सखा कृष्ण की प्राण प्यारी।।
करो आरती गीता जी की।।
षोडश कला पूर्ण विस्तारी,
छाया नम्र विनिताकी।।
करो आरती गीता जी की।।
श्याम का हित करने वाली,
मन का सब मैल हरने वाली।।
करो आरती गीता जी की।।
नव उमंग नित भरने वाली,
परम प्रेमिका कान्हा की।।
करो आरती गीता जी की।।
।।इति श्री गीताजी की आरती।।
।।जय बोलो गीताजी की जय हो।।