वैकुण्ठ चतुर्दशी कब हैं? जानें पूजा विधि, कथा, शुभ मुहूर्त और महत्व(When is Vaikuntha Chaturdashi? know puja vidhi, katha, shubh muhurat & importance):-कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को "नरकचतुर्दशी" कहते हैं। नरकचतुर्दशी को नरक के स्वामी यमराजजी की पूजा की जाती हैं, जिससे उनकी अनुकृपा मनुष्य पर बनी रहे और अकाल मृत्यु से बचा जा सके।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी "वैकुण्ठ चतुर्दशी" के नाम से जानी जाती है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी को वैकुण्ठाधिपति भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना करने की होती हैं। कार्तिक शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि को अरुणोदय व्यापिनी ही ग्रहण करना चाहिए। कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीविष्णुजी की एवं शिवजी की पूजा एक साथ एक रूप मानकर की जाती हैं, जो मनुष्य इस दिन व्रतं को रखता है और पूर्ण विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करता है, उस पर भगवान श्रीविष्णुजी एवं शिवजी की अनुकृपा मिल जाती हैं। जिससे मनुष्य के जन्म-मरण के चक्कर का अंत हो जाता है उसे वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है और भगवान के चरणों में जगह मिलने से उस मनुष्य का उद्धार हो जाता हैं।
वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रतं पूजा विधि-विधान:-कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रतं को पूरा करने के लिए मनुष्य को व्रतं में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखते हुए पूजा विधि का अनुशरण करना चाहिए:
◆जो भी मनुष्य व्रत करना चाहते हो उनको सवेरे जल्दी उठना चाहिए।
◆फिर जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या जैसे-स्नानादि को पूरा करना चाहिए।
◆इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
◆मनुष्य को पूरे दिन भर के व्रत को धारण करते हुए व्रत को रखना चाहिए।
◆उसके बाद में भगवान श्रीविष्णु जी की कमल पुष्पों से पूजा करनी चाहिए।
◆उसके बाद में भगवान शंकरजी की पूजा करनी चाहिए।
विना नो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
◆रात्रिकाल का समय व्यतीत होने पर दूसरे दिन मनुष्य को भगवान शिवजी का फिर पूजन करना चाहिए।
◆भगवान शिवजी का जलाभिषेक रुद्रमंत्रों के साथ करना चाहिए।
◆शिवताण्डव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए तथा रात्रि जागरण करना चाहिए।
◆उसके बाद में ब्राह्मणों को खाना खिलाना चाहिए।
◆ततपश्चात स्वयं भोजन को ग्रहण करना चाहिए।
◆ब्राह्मणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देकर सन्तुष्ट करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
◆यह व्रत वैष्णवों के साथ-साथ शैव मतानुयायियों द्वारा भी किया जाता हैं। वैकुण्ठ चतुर्दशी का पवित्र व्रत शैवों एवं वैष्णवों की पारस्परिक एकता और भगवान श्रीविष्णुजी एवं शिवजी के ऐक्य का प्रतीक होता हैं।
वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत कथा:-एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आये। यहां मणिकर्णकाघाट पर स्नान करके उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमलपुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमलपुष्प कम कर दिया। भगवान श्रीहरि को अपने संकल्प की पूर्ति के लिए एक हजार कमल पुष्प चढ़ाने थे।
एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आँखें कमल के ही समान हैं, इसीलिए मुझे 'कमलनयन' और 'पुण्डरीकाक्ष' कहा जाता है। एक कमल के स्थान पर मैं अपनी आँख ही चढ़ा देता हूँ-ऐसा सोचकर वे अपनी कमलसदृश आँख चढ़ाने को उद्यत हो गए। भगवान विष्णुजी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न हो देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले-हे विष्णो! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं हैं, आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी, अब वैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से अभिहित होगी।
इस दिन व्रत पुर्वक पहले आपका पूजन कर जो मेरा पूजन करेगा, उसे वैकुण्ठधाम की प्राप्ति होगी। भगवान शिव ने विष्णु को करोड़ों सूर्यों की प्रभा के समान कान्तिमान सुदर्शन चक्र दिया और कहा की यह राक्षसों का अन्त करने वाला होगा। त्रैलोक्य में इसकी समता करने वाला कोई अस्त्र नहीं होगा।
वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रतं की पूजा की तिथि एवं शुभ मुहूर्त:-वैकुण्ठ चतुर्दशी तिथि 17 नवम्बर 2021 को बुधवार को शुरू होगी।
वैकुण्ठ चतुर्दशी तिथि का समय:-17 नवम्बर 2021 को बुधवार के दिन प्रातःकाल 09 बजकर 49 मिनिट 37 सेकण्ड चतुर्दशी तिथि शुरू होगी।
18 नवम्बर 2021 को गुरुवार के दिन प्रातःकाल 11 बजकर 59 मिनिट 41 सेकण्ड पर पूर्ण होगी।
इस तरह वैकुण्ठ चतुर्दशी तिथि शुभ समय:-निशीथ काल रात्रिकाल में 23 बजकर 45 मिनिट 09 सेकण्ड से शुरू होकर रात्रिकाल 24 बजकर 39 मिनिट 09 सेकण्ड तक उपस्थित रहेगी, जिससे निशीथ काल का समय 55 मिंनट तक रहेगा
वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व:-इस तिथि का बहुत ही महत्व धर्मग्रन्थों में बताया गया है, जिससे इस तिथि के व्रतं को करने पर उचित फल प्राप्त होता हैं:
◆जो मनुष्य एक साथ विष्णुजी एवं शिवजी की पूजा एक साथ एक ही दिन करते है, तब उन दोनों देवों की कृपा मिल जाती है, वे दोनों देव उस मनुष्य की पूजा से खुश होकर उसका उद्धार कर देते हैं, जिससे मनुष्य को अपने जीवनकाल के अंतिम समय में भगवान के चरणों की सेवा करने का मौका मिलता है
◆वैकुण्ठ चतुर्दशी का जो कोई भी मनुष्य व्रतं को करता है, तो वह मोक्ष पद को प्राप्त करता हैं।
●जो मनुष्य इस दिन श्राद्ध एवं तर्पण भी करते हैं, तो उन स्वर्गवासी आत्माओं की तृप्ति होती हैं।
◆महाभारत के युद्ध में जो भी योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए थे, तब भगवान श्रीकृष्णजी ने उन योद्धाओं का श्राद्धकर्म किया था, जिससे उन योद्धाओं का उद्धार हुआ था