मंगल चंडिका स्तोत्र अर्थ सहित और लाभ(Mangal Chandika Stotra with meaning and benefits):-महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती तीनों रूप सयुंक्त होकर एक रूप बनते हैं, उसे मंगल चंडिका रूप कहते हैं। नवदुर्गा का एक नाम चामुंडा या दुर्गा माँ या चंडिका हैं। चंडिका देवी को सृष्टि मंडल की परम् शक्ति माता भुवनेश्वरी के रूप में धर्मग्रन्थों में बताया गया हैं, जो कि सबसे उच्च पद पर आसीन होकर समस्त लोकों का पालन-पोषण करती हैं और धर्म व नीति के विरुद्ध आचरण करने का उग्र एवं विकराल रूप को धारण करके संहार करती हैं। अपने प्रिय भक्तों की रक्षा के लिए सदा तैयार रहती हैं और तीनों लोक में सिंह पर सवार होकर भ्रमण करती हैं। समस्त तीनों लोकों में पूजनीय हैं। अपने भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि की बारिश करते हुए उनको आशीर्वाद प्रदान करती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के आधार पर वर्णित हैं।
मंगल चंडिका स्तोत्र अर्थ सहित(Mangal Chandika Stotra with meaning):-मंगल चंडिका स्तोत्रं का वांचन करने से पहले श्लोकों में वर्णित मंत्रों के उच्चारण को जानना चाहिए, जिससे स्तोत्र का बारे में जानकारी मिल जावे और स्तोत्रं में जो बताया हैं, उसका सही लाभ मिल सके।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवि मङ्गलचण्डिके।
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! आप का यह मंत्र इक्कीस अक्षरों से बना हुआ हैं और सबके द्वारा आपकी पूजा करते हैं।
पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तांना सर्वकामदः।
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम्।।
अर्थात:-हे कल्पवृक्षस्वरूपणी! भक्तों के द्वारा सच्चे मन से श्रद्धापूर्वक आपकी अरदास करते हैं, तो उन भक्तिभाव रखने वाले भक्तों की मन की समस्त मुराद को आप पूर्ण पारिजात तरु के तुल्य हो। जब मनुष्य के द्वारा दश लाख मंत्रों का वांचन करते हैं, तब उन मनुष्य के समस्त कार्यों में अभीष्ट फल को प्रदान कर देती हो।
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामद।
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम्।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! जब आपकी स्तुति करने पर उस मनुष्य को तपस्या के रूप में दिव्य शक्ति को विष्णुजी प्रदान करके सभी कार्यों को पूर्ण रूप से सफलता प्रदान करते हैं। हे ब्राह्मन, वेदों को जानने वाले और समस्त की सहमति वाले! आप अपने मन को एक जगह पर स्थिर करते हुए पूर्णरूप से सुनिए।
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम्।
सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम्।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! आप हमेशा युवावस्था के स्वरुप में रहने वाली सोलह वर्ष के समान की जान पड़ती हैं। आप समस्त रूप में वास करने वाली, सभी विषय या क्षेत्र में प्राप्त निपुणता वाली हो, आपके शरीर के अंग बहुत ही नाजुक हैं और मन को अपनी तरफ खींचकर मन को लुभाने वाली हो।
श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम्।
वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम्।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! आपका वर्ण पितिमा या लालिमा लिए गोरा वर्ण श्वेत चम्पा पुष्प के समान हैं और करोड़ो चन्द्रमाओं की सोलह कलाओं से युक्त मन को हरने वाली दिप्ति वाली हो। आप हुताशन की तेज उष्णता रूपी स्वच्छ अलोकिक वस्त्रों को धारण करने वाली हो और आप बहुमूल्य मणियों के पत्थर को अपने सजावट के रूप अलंकारों अलंकृत हो।
बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषिताम्।
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम्।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! आप अपने कुंतल की लटों में मल्लिका कुसुमों के बंधन से सजी-सवरी रहने वाली हो। आपके रक्त वर्ण के ओष्ठ, मन को भाने वाले दांत एक-दूसरे के बाद एक ही सीध वाली कतार में प्रतीत होते हैं। आपका मुख शरद ऋतु में खिले हुए कुसुम पुष्प की तरह शोभा प्रदान करने वाला हैं।
हे मङ्गलचण्डिका! जिस तरह खिले हुए एवं विकसित पंकज के पुष्प के सौंदय की तरह आपके चेहरे पर धीमी-धीमी गति से हंसी की झलक मुग्ध करने वाली सौन्दर्य वाली हैं।
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यं सुनीलोल्पललोचनाम्।
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम्।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! जिस तरह खिले हुए नीलकमल अपनी सुंदरता से मन का हरण कर लेते हैं, उसी तरह मन को भाने वाले आपके दोनों चक्षु प्रतीत होते हैं। हे जगद्धात्रीं व दात्रीं! आप सभी को पूर्णरूप से ऐश्वर्य एवं वैभव को देने वाली हो।
संसारसागरे घोरे पोतरूपां वरां भजे।
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने।।
अर्थात:-हे जगदम्बा देवि! आप समस्त जगत का पालन-पोषण करने वाली हो और जगत रूपी घने व विकराल रूपी सागर से आप नैया को पार लगाने वाली हो। जिस तरह समुद्र के जल से जहाज पार करती हैं। आपको मैं हमेशा सच्चे मन से पूर्ण विश्वास भाव रखते हुए वंदना करता हूँ।
हे मुनिवर! आपने अभी तक जो सुना हैं यह भगवती मङ्गलचण्डिका देवि के प्रति मन को एकाग्रचित्त करने के भाव हैं।
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! जो मनुष्य संकट की स्थिति में पूर्ण प्रयत्न से मङ्गलचण्डिका का ध्यान करते हैं, उनसे भगवान शिवजी सन्तुष्ट या तृप्त हो जाते हैं।
शंकर उवाच:-भगवान शंकरजी ने कहा हैं-कि आप सभी अपने को एक जगह पर केंद्रित करते हुए ध्यान किया हैं, उसी तरह से मन में किसी भी तरह के बुरे विकारों को निकालते हुए श्रद्धाभाव से मङ्गलचण्डिका की स्तुति करने के भाव को भी ध्यानपूर्वक सुनिए-
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके।
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके।।
अर्थात:-हे जगत माता मङ्गलचण्डिका! आप अपने सच्चे भक्तों की समस्त तरह की बाधाओं को दूर करते हुए उनकी आप हिफाजत करती हो। आपसे मैं अरदास करता हूँ कि आप मेरी रक्षा कीजिए, मेरी रक्षा कीजिए।
हे मङ्गलकारिक! आप अपने भक्तों के समस्त तरह की परेशानी का नाश करके उन भक्तों में खुशी को प्रदान करने वाली मंगल को देने के लिए हमेशा तैयार रहती हो।
हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके।
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभ मङ्गलचण्डिके।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! आप अपने भक्तों को खुशी प्रदान करने में पूर्ण निपुणता वाली सुखात्मक भाव वाली मङ्गल चण्डिका हो आप मंगलमय, आंनद देने में पूर्ण निपुण हो और सबका भला करने वाली मङ्गलचण्डिके हो।
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले।
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि!आप उत्तम आचरण तथा उत्तम प्रकृति वाले सज्जन एवं भले मनुष्य का कल्याण करना आपका स्वभाव जन्य विशेषता हैं। तो सबको समान रूप में मानते हुए आपकी शरण में आने वालों की रक्षा करते हुए अपनी शरण प्रदान करने वाली हो।
आपको मङ्गले, मङ्गलार्हे और सर्वामङ्गलमङ्गले के नाम से भी जाना जाता है। आप रथ के पर सवार होकर भ्रमण करने वाली मन्गलदे देवि हो। आप सब जगह पर वास करने वाली हो।
पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते।
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम्।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! आप मङ्गल ग्रह की इष्टदेवी हो और मंगलवार के दिन आपकी पूजा होनी चाहिए। मनुवंश में उत्पन्न हुई राजा मङ्गल की आप आदरणीय एवं श्रद्धाभाव से पूजनीय देवी हो।
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले।
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि।।
अर्थात:-हे मङ्गलाधिष्टातृ देवि! आप मङ्गलों के लिए भी मङ्गल हो। संसार की प्रत्येक जगह में वास करते हुए मङ्गल करने के भाव का सहारा लिये हो। आप सभी को जन्म व मरण के बंधन से मुक्त करके उनका उद्धार करके उनको मोक्षगति प्रदान करने वाली हो।
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम्।
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! मङ्गल को आपकी पूजा की जाती हैं, जिससे आप सभी तरह का कल्याण करते हुए आंनद को देने वाली हो। आप जगत में सर्वोत्तम हो और आप कल्याणरूपी प्रवाह से सभी कर्मों से परे भी हो। हे मङ्गलप्रदे! मङ्गल को देने वाली आपकी पूजा प्रत्येक मंगलवार को होती हैं।
फलश्रुति:-जो मंगल चंडिका स्तोत्रं के वांचन से या सुनने पर जो फल प्राप्त होते हैं, उसे ही फलश्रुति कहते हैं।
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम्।
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः।।
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः।
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम्।।
अर्थात:-हे मङ्गलचण्डिका देवि! आपके मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं का वांचन भगवान शिवजी ने करते हुए आपके गुणों की प्रशंसा की थी। भगवान शिवजी आपकी प्रत्येक मंगलवार को पूजन करते चले जाते हैं।
इस तरह से सबसे पहले भगवान शिवजी के द्वारा भगवती सर्वमङ्गला पूजित हुई हैं।
मङ्गलचण्डिका देवि के अनुयायी उपासना करने वाले मङ्गल ग्रह हैं।
मङ्गलचण्डिका देवि की तीसरी बार राजा मङ्गल अनुयायी ने उपासना की थी।
मङ्गलचण्डिका देवि की चौथी बार कुछ सुन्दरी औरतों के अनुयायी ने उपासना की थी।
मङ्गलचण्डिका देवि की पाँचवीं बार कल्याण की इच्छा को रखने वाले अनुयायी मनुष्यों ने उपासना की थी।
इस तरह संसार के स्वामी भगवान शिवजी से अच्छी तरह से पूजित होने से मङ्गलचण्डिका प्रत्येक जगत में हमेशा ही पूजित होने लगी।
हे मुनिवरों! फिर इस तरह से पूजित होने के कारण बाद में देवताओं, मुनियों, मनु और मनुष्यों सभी के द्वारा सभी जगह पर सृष्टि मंडल की मूल अधिष्ठाता शक्ति की पूजा करने लगे।
फलश्रुति:-जो मनुष्य अपने मन में बुरे विकारों को त्याग करते हुए एकाग्रचित्त होकर सच्चे मन से एवं श्रद्धाभाव रखते हुए मां भगवती मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं में वर्णित श्लोकों के मंत्रों का वांचन करते हैं या किसी दूसरे के द्वारा वांचन को सुनते हैं, तो उन मनुष्य को हमेशा कल्याण ही होता हैं और उनको किसी तरह का अनिष्ट नहीं हो पाता हैं। उन मनुष्य को पुत्र सन्तान एवं पुत्र के पुत्र सन्तान में बढ़ोतरी होती हैं और उन मनुष्य को हमेशा मङ्गल ही दिखाई पड़ने लगता हैं।
।।इति श्री ब्रह्मवैवर्त मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम्।।
श्रीमंगल चंडिका स्तोत्रं के वांचन का दिन एवं विधि(Day and method of reciting Shrimangal Chandika Stotram):-ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीमंगल चंडिका स्तोत्रं के श्लोकों के मंत्रों का विवरण मिलता हैं, जो कि पूर्णरूप से संस्कृत भाषा में वर्णित हैं।
◆मनुष्य को अपनी इष्टदेवी या इष्टदेव को साक्षी मानते हुए अपनी मुराद के पूर्ण होने तक या जीवनभर वांचन का संकल्प लेना चाहिए।
◆मनुष्य को श्रीमंगल चंडिका स्तोत्र का वांचन मंगलवार के दिन से शुरू करना चाहिए।
◆श्रीमंगल चंडिका की पूजा करके ही श्रीमंगल चंडिका स्तोत्र का वांचन करना चाहिए।
◆फिर भगवान शिवजी के शिव पंचाक्षरी की एक माला जप करने से भी फायदा मिलता हैं।
श्रीमंगल चंडिका स्तोत्रं के वांचन से मिलने वाले लाभ और महत्व(Benefits and importance of reciting Shrimangal Chandika Stotram):-श्रीमंगल चंडिका स्तोत्रं के वांचन से अनेक तरह के लाभ मिलते हैं, जो इस तरह हैं-
मनुष्य की समस्त मन की मुराद को पूर्ण करने हेतु:-श्रीमंगल चंडिका स्तोत्रं के वांचन करने से मनुष्य के मन की सभी मुराद पूर्ण हो जाती हैं।
रुपयों-पैसों की प्राप्ति:-जो मनुष्य नियमित रूप से इस स्तोत्रं का वांचन करते हैं, उनके जीवन में कभी रुपयों-पैसों की कमी नहीं होती हैं और बढ़ोतरी होती हैं।
निवास स्थान में होने वाले मतभेद एवं झगड़ो से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य के निवास स्थान में रहने वाले मनुष्य के मतभेद एवं झगड़ों से मुक्ति यह स्तोत्र प्रदान करता हैं।
लग्न में विलम्ब से मुक्ति पाने हेतु:-जिन मनुष्य के सगाई एवं लग्न में में देरी हो रही होती हैं, उनको इस स्तोत्र का वांचन नियमित रूप से शुरू करना चाहिए, जिससे उनके सगाई एवं लग्न जल्दी हो सके।
दाम्पत्य जीवन में सुख-शांति पाने हेतु:-मनुष्य को अपने दाम्पत्य जीवन में सुख-शांति के लिए इस स्तोत्रम् का नियमित वांचन करना चाहिए।
जीवन में आने वाली सभी बाधाओं से राहत हेतु:-मनुष्य के जीवन में आने वाली सभी बाधाओं से राहत पाने के लिए मनुष्य को नियमित रूप से इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।
पुत्र सुख एवं पौत्र सुख हेतु:-मनुष्य को पुत्र सुख एवं पौत्र सुख के लिए इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।
।।अथ श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम्।।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये मङ्गलचण्डिके।
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः।।
पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तांना सर्वकामदः।
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम्।।
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामद।
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम्।।
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम्।
सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम्।।
श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम्।
वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम्।।
बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषिताम्।
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम्।
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यं सुनीलोल्पललोचनाम्।।
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम्।
संसारसागरे घोरे पोतरूपां वरां भजे।।
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने।
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः।।
शंकर उवाच्:-
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके।
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके।।
हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके।
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभ मङ्गलचण्डिके।।
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले।
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये।।
पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते।
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम्।।
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले।
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि।।
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम्।
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे।।
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम्।
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः।।
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः।
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम्।।
।।इति श्री ब्रह्मवैवर्त मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम्।।