श्री हनुमद अष्टकम् अर्थ सहित और लाभ( Shri Hanumad Ashtakam with meaning and benefits):-हनुमानजी भगवान शिवजी के अवतार हैं साथ ही विष्णुजी के अवतार पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी के भक्त हैं। जब भक्त के द्वारा हनुमानजी की आराधना-उपासना की जाती हैं, तब भोलेनाथजी तथा लक्ष्मीपति विष्णुजी की आराधना स्वयं ही हो जाती हैं। इस कारण से हनुमानजी की आराधना करने वाले मनुष्य को जल्दी मोक्ष गति मिल जाती हैं और जीवन की समस्त प्रकार की मन की इच्छाओं भी पूर्ण हो जाती हैं, भक्ति में मग्न रहने वाले श्रीहनुमानजी हैं, भगवान रामजी के नाम लेने वाले भक्तों की रक्षा एवं सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। गौतम ऋषि की पुत्री एवं वानरराज केसरी की भार्या अंजनी एक महान सती और हजारों वर्षों की तपस्या करने वाली पतिव्रता नारी के गर्भ से चैत्र मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि, मंगलवार के दिन, चित्रा नक्षत्र और मेष लग्न में जन्म लिया। श्री हनुमद अष्टकम् में हनुमानजी के बारे में वर्णन मिलता हैं।
श्री हनुमदष्टकम् अर्थ सहित(Shri Hanumad Ashtakam with meaning):-श्री हनुमद अष्टकम् में श्रीहनुमानजी की देह एवं देह के अंगों के बारे में जानकारी मिलती हैं, श्री हनुमद अष्टक का वांचन को करने से पहले मनुष्य को श्री हनुमद अष्टक में वर्णित आठ पदों के श्लोकों के उच्चारण से पूर्व उन श्लोकों के अर्थ को जानना चाहिए, जिससे श्लोकों के अर्थ से श्रीहनुमद अष्टक के महत्व का जान सकते हैं। श्रीहनुमद अष्टक का अर्थ सहित विवेचन निम्नलिखित हैं-
वैशाखमास कृष्णायां दशमी मन्दवासरे।
पूर्वभाद्रासु जाताय मङ्गलं श्री हनुमते।।१।।
अर्थात्:-श्री हनुमान जी के जन्म के बारे उल्लेख मिलता हैं, वैशाख मास के कृष्णपक्षे की दशमी तिथि के शनि वार के दिन पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र शुभकारी श्री हनुमानजी ने जन्म लिया था। शुभकारी या मंगलकारी श्री हनुमानजी की मैं वंदना करता हूँ।
गुरुगौरवपूर्णाय फलापूपप्रियाय च।
नानामाणिक्यहस्ताय मङ्गलं श्री हनुमते।।२।।
अर्थात्:-श्री हनुमानजी बड़े आचार्यो से भी उच्च श्रेणी से युक्त होकर आदर-सम्मान वाले महानता से समस्त तरह से अपना वर्चस्व रखने वाले हैं, केला फल एवं मीठी पूरी या पकवान या पुआ बहुत प्रिय होता हैं, हाथों में लाल रंग का रत्न वाले आभूषण धारण करने वाले हैं, शुभकारी या मंगलकारी श्री हनुमानजी की मैं वंदना करता हूँ।
सुवर्चलाकलत्राय चतुर्भुजधराय च।
उष्ट्रारुढाय वीराय मङ्गलं श्री हनुमते।।३।।
अर्थात्:-ऐसा माना जाता हैं, श्री हनुमानजी चार भुजाओं से युक्त होकर अपनी भार्या सुवर्चला के साथ ऊँचा चौपाया से बने आसन पर दृढ़ रूप से आसीन होते हैं एवं उत्साह एवं वीरता से युक्त योद्धा के रूप में कल्याण करने वाले श्री हनुमानजी को नतमस्तक होकर वंदना करता हूँ।
दिव्यमङ्गलदेहाय पीताम्बरधराय च।
तप्तकाञ्चनवर्णाय मङ्गलं श्री हनुमते।।४।।
अर्थात्:-अलौकिक स्वर्ग में आनन्द पूर्वक रूप से पीले रंग के वस्त्र को धारण करके आकाश मंडल में विचरण करते हैं, अग्नि की तीव्रता से स्वर्ण धातु को जब तपाया जाता हैं, तब स्वर्ण का पीला रंग चमकता हैं, उसी तरह की कठोर तपस्या से उनकी देह का वर्ण पीलापन लिए चमकता हैं, मंगलकारी श्री हनुमानजी की मैं वंदना करता हूँ।
भक्तरक्षणशीलाय जानकीशोकहारिणे।
ज्वलत्पावकनेत्राय मङ्गलं श्री हनुमते।।५।।
अर्थात्:-जो मनुष्य पूर्ण विश्वास भाव व श्रद्धाभाव से हनुमानजी की भक्ति करते हैं, उस भक्त मनुष्य की रक्षा करने के लिए स्थिर पाषण की तरह हर समय सम्मुख रहते हैं, जब धर्म एवं नीति के विरुद्ध किये जाने वाले आचरणों से युक्त को दण्ड देते समय उनके नेत्रों में अग्नि की तरह गुस्से से होकर तेज ज्वाला निकलती हैं, मंगलकारी श्री हनुमानजी की मैं वंदना करता हूँ।
पम्पातीरविहाराय सौमित्रीप्राणदायिने।
सृष्टिकारणभूताय मङ्गलं श्री हनुमते।।६।।
अर्थात्:-जो रामायण एवं महाभारत में वर्णित दक्षिण देश की नदी से लगा हुआ पंपा नामक ताल और नगर में विहार या भ्रमण करने वाले, राजा दशरथ एवं सौमित्रा के गर्भ से उत्पन्न लक्ष्मणजी के जीवन को देने वाले हैं, आप विश्व या संसार की रचना के मूल परमेश्वर हो और मंगलकारी श्री हनुमानजी की मैं वंदना करता हूँ।
रंभावनविहाराय सुपद्मातटवासिने।
सर्वलोकैकण्ठाय मङ्गलं श्री हनुमते।।७।।
अर्थात्:-आप सुंदर व मन को हरणे वाले अटवी में आमोद-प्रमोद करते हुए घूमने वाले या भ्रमणशील हो, बंगाल में गंगा नदी की एक पूर्वी शाखा के किनारे पर वास करने वाले, समस्त लोक को या गले में ग्रहण करने वाले या कण्ठ में धारण करने वाले मंगलकारी श्री हनुमानजी की मैं वंदना करता हूँ।
पञ्चाननाय भीमाय कालनेमिहराय च।
कौण्डिन्यगौत्रजाताय मङ्गलं श्री हनुमते।।८।।
अर्थात्:-पांच नेत्रों वाले, भीम से भी ज्यादा बलवान रूप में विराजमान, काल नेमि नामक दैत्य का काल बनकर प्राण को हरणे वाले और कौण्डिन्य गौत्र की जाती वाले मंगलकारी श्री हनुमानजी की मैं वंदना करता हूँ।
।।इति श्री हनुमद् अष्टकम्।।
।।जय बोलो केसरीनंदन की जय हो।।
।।जय मारुतीनन्दन की जय हो।।
।।जय बोलो रामदूत हनुमान की जय हो।।
श्री हनुमद् अष्टकम् लाभ(Shri Hanumad Ashtakam benefits):-श्री हनुमदष्टकम् के वांचन करने से मनुष्य को निम्नलिखित लाभ मिलते हैं, जो इस तरह है-
हनुमानजी अनुकृपा पाने हेतु:-जो मनुष्य नियमित रूप से हनुमदष्टकम् स्तोत्रं का वांचन सच्चे मन से एवं श्रद्धाभाव रखते हुए विश्वास रूप से भक्ति भाव से करते हैं, तब हनुमानजी शीघ्र खुश हो जाते हैं और अपनी अनुकृपा भक्त पर कर देते हैं।
सुख-समृद्धि पाने हेतु:-श्रीहनुमदष्टक के वांचन करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
जीवन का उद्धार हेतु:-मनुष्य को अपने जीवन में उद्धार करने के लिए नियमित रूप से हनुमदष्टकम् का वांचन करना चाहिए।
मुसीबतों से राहत पाने हेतु:-मनुष्य को अपने जीवनकाल में बहुत सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता हैं, उन मुसीबतों से मुक्ति का उपाय यह स्तोत्रम् हैं।
बुरी शक्तियों के प्रभाव से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य को अपने जीवन में बहुत सारी बुरे शक्तियों का सामना करना पड़ता हैं, उन बुरी शक्तियों से मुक्ति का उपाय हैं।
।।अथ श्री हनुमद् अष्टकम्।।
वैशाखमास कृष्णायां दशमी मन्दवासरे।
पूर्वभाद्रासु जाताय मङ्गलं श्री हनुमते।।१।।
गुरुगौरवपूर्णाय फलापूपप्रियाय च।
नानामाणिक्यहस्ताय मङ्गलं श्री हनुमते।।२।।
सुवर्चलाकलत्राय चतुर्भुजधराय च।
उष्ट्रारुढाय वीराय मङ्गलं श्री हनुमते।।३।।
दिव्यमङ्गलदेहाय पीताम्बरधराय च।
तप्तकाञ्चनवर्णाय मङ्गलं श्री हनुमते।।४।।
भक्तरक्षणशीलाय जानकीशोकहारिणे।
ज्वलत्पावकनेत्राय मङ्गलं श्री हनुमते।।५।।
पम्पातीरविहाराय सौमित्रीप्राणदायिने।
सृष्टिकारणभूताय मङ्गलं श्री हनुमते।।६।।
रंभावनविहाराय सुपद्मातटवासिने।
सर्वलोकैकण्ठाय मङ्गलं श्री हनुमते।।७।।
पञ्चाननाय भीमाय कालनेमिहराय च।
कौण्डिन्यगौत्रजाताय मङ्गलं श्री हनुमते।।८।।
।।इति श्री हनुमदष्टकम्।।
।।जय बोलो केसरीनंदन की जय हो।।
।।जय मारुतीनन्दन की जय हो।।
।।जय बोलो रामदूत हनुमान की जय हो।।।।