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Sunday, February 27, 2022

काल भैरवाष्टमी क्यों मनाई जाती हैं, जानें पूजा विधि, कथा और महत्व(Why Kal Bhairav Ashtami is celebrated, know the puja vidhi, katha and importance)

काल भैरवाष्टमी क्यों मनाई जाती हैं, जानें पूजा विधि, कथा और महत्व(Why Kal Bhairav Ashtami is celebrated, know the puja vidhi, katha and importance)




काल भैरवाष्टमी क्यों मनाई जाती हैं, जानें पूजा विधि, कथा और महत्व(Why Kal Bhairav Ashtami is celebrated, know the puja vidhi, katha and importance):-मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को काल भैरवाष्टमी कहते है। मार्गशीर्ष महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरवाष्टमीया भैरव जयन्ती कहते हैं। इस तिथि के प्रदोषकाल में भैरवजी का जन्म दिन माना जाता है। इस दिन भैरवजी का पूजन करते हैं। भैरवजी की सवारी श्वान होने से श्वान को भी आदर दिया जाता है। भैरवजी का मुख्य हथियार "दण्ड" हैं। जिससे इन्हें " या किये गए बुरे कर्मों की सजा देने वाली स्वामी दण्डपति" भी कहते हैं। इस रोज रात्रि जागरण करके शिव-पार्वती की कथा सुनते हैं। 


भगवान शिवजी के स्वरूप:-भगवान शिवजी के दो रूप माने जाते हैं। भगवान शिव के दो तरह के स्वरूप को माना गया है।  

१.भक्तों को अभय देने वाले विश्व में कण-कण में प्रत्येक जगहों पर वास करने वाले "विश्वेस्वस्वरूप"हैं।

२.धर्म व नीति के विरुद्ध करने बुरे आचरणों को करने वाले को सजा देने वाले मृत्यु रूप में "कालभैरव स्वरूप"। 

जहां विश्वेस्वस्वरूप:-बहुत ही सौम्य या कांतिमान कोमल मन को हरणे वाले और गंभीर या मौन रूप में रहने वाले हैं।

वही कालभैरव स्वरूप:-बहुत ही डरावने रूप के, भय को उत्पन्न करने वाले, भीषण आकृति वाले और भीषण या अत्यंत क्रोधी होते हैं। इन्हें साकार या प्रत्यक्ष भगवान शंकर ही मानना चाहिए।

भैरव और विश्वनाथ। भैरव रविवार और मंगलवार को पूजे जाते हैं। इनकी पूजा से भूत-प्रेत बाधाऐं नष्ट हो जाती हैं।


शिवपुराण की शतरुद्रसंहिता(८/२) के अनुसार:-परमेश्वर सदाशिव ने मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव रूप में दैवीय शक्ति का पार्थिव रूप में जन्म लिया था। अतः उन्हें साकार भगवान् शंकर ही मानना चाहिए-

भैरवः पूर्णरूपो ही शङ्करस्य परात्मनः।

मूढास्तं वै न जानन्ति मोहिताश्शिवमायया।।

अर्थात्:-भैरवजी को पूर्ण रूप से शंकर का स्वरूप माना जाता है, जो तमोगुण वाले चित्त के विवेक से रहित मन को लुभाने वाली शिवजी की माया को नहीं जानते हैं।


कालभैरवाष्टमी के दिन भैरवजी के व्रत विधि:-भैरवजी की पूजा-अर्चना करते समय निम्नलिखित विधि से करनी चाहिए-

◆भैरवजी का जन्म मध्याह्न में हुआ था। इसलिए मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी तिथि लेनी चाहिए।

◆व्रत करने वाले व्रती को सवेरे जल्दी उठकर अपने रोजाना के कार्यों को पूर्ण करना चाहिए।

◆फिर व्रती को व्रत का मन ही मन में कालभैरवी जी को साक्षी मानते हुए संकल्प को करना चाहिए।

◆उसके बाद में भैरवजी की मन्दिर में जाकर वाहन सहित उनकी पूजा करनी चाहिए।

◆"ऊँ भैरवाय नमः" इस मंत्र से षोडशोपचार पूर्वक पूजन करना चाहिए।

◆भैरवजी का वाहन श्वान होता हैं, अतः इस दिन श्वानों को मिष्ठान खिलाना चाहिए।

◆इस दिन उपवास करके भगवान कालभैरव के समीप जागरण करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता हैं।

मार्गशीर्षसिताशतमयां कालभैरवसन्निधौ।

उपोष्य जागरं कुर्वन् सर्वपापैः प्रमुच्यते।।

अर्थात्:-मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनुष्य को कालभैरवजी के समीप रहते हुए उनकी पूजा करनी चाहिए। भगवान कालभैरवजी के दिन व्रत को करते हुए जो मनुष्य रात्रिकाल में उनके गुणों का बखान करते हुए जागरण करते हैं, उनके समस्त धर्म व नीति के विरुद्ध किये गए बुरे व्यवहारों या कर्मों से मुक्ति मिल जाती हैं।


भैरवजी का पूजन करके अर्घ्यं:-भैरवजी का पूजन करके निम्नलिखित मंत्रों के द्वारा अर्घ्यं देना चाहिए-

भैरवार्घ्यं गृहाणेश भीमरूपाव्ययानघ।

अनेनार्घ्यप्रदानेन तुष्टो भव शिवप्रिय।।

सहस्त्राक्षिशिरोबाहो सहस्त्रचरणाजर।

गृहाणार्घ्यं भैरवेदं सपुष्पं परमेश्वर।।

पुष्पाञ्जलिं गृहाणेश वरदो भव भैरव।

पुनर्घ्यं गृहाणेदं सपुष्पं यातनापह।।


धर्म गर्न्थो के मतानुसार कथा:-एक समय ब्रह्मा व विष्णु में विवाद छिड़ गया कि विश्व को धारण करने वाला परम् तत्त्व कौन हैं? यह विवाद बहुत ही उग्र रूप धारण कर लेता हैं और विष्णुजी एवं ब्रह्माजी मनाने को तैयार नहीं थे, तब शिवजी के पास ब्रह्माजी एवं विष्णुजी गए, फिर शिवजी ने काफी सोच-विचार कर एक इस विवाद को हल के लिए विशेष मण्डली का आयोजन किया गया, इस मण्डली में समस्त ऋषियों को बुलाया तो महर्षियों ने निर्णय दिया कि "परम् तत्त्व तो एक अव्यक्त सत्ता हैं। ब्रह्मा, विष्णु व महेश आदि उसी सत्ता से बने हैं।" विष्णुजी ने ऋषियों की बात मान ली। किन्तु ब्रह्माजी ने नकार दिया। इस तरह की बातों को सुनकर शिवजी चुपचाप रहे और वे देखते हैं, ब्रह्माजी मानने को तैयार नहीं थे, ब्रह्मा अपने को ही परम् तत्त्व मानते थे। तब शिवजी ने तत्काल भैरव का रूप धारण किया और इस तरह से काल भैरवजी की उत्पत्ति हुई, जिससे कालभैरवजी ब्रह्माजी को मारने के उन पर झपटा मारा, तो ब्रह्माजी उनसे बचने के लिए भागने लगे, इस तरह भागते वे थक जाते है, लेकिन कालभैरवजी उनका पीछा करते रहते हैं, अन्त में कालभैरवजी ब्रह्माजी के सिर वार करते हैं, जिससे उनके पांच सिर में से एक सिर कटकर अलग हो जाता है और आखिर में ब्रह्माजी हार मानकर शिवजी की स्तुति करते है और उनसे क्षमा मांगते है, तब शिवजी मानकर उनको माफ कर देते हैं, तो उस दिन अष्टमी तिथि थी। इस तरह अष्टमी के दिन ब्रह्माजी का गर्व नष्ट कर दिया था। तब से इस दिन को भैरव अष्टमी कहा जाने लगा और भैरवनाथ का पूजन किया जाने लगा। भगवान शिवजी को ब्रह्म हत्या का पाप लग जाता हैं, उस पाप को धोने के लिए वे काशी जाते हैं और काल भैरवजी के रूप में निवास करते हैं। काशी धाम में नगर के रक्षक के रूप एवं दंडाधिकारी के रूप में पूजन किया जाता हैं। 


काल भैरवाष्टमी व्रत करने का महत्त्व:-भैरवजी का काशी के कोतवाल या नगर के रक्षक हैं। काशी में अनेक मंदिर हैं। कालभैरव पूजा का काशीनगर में विशेष महत्त्व हैं। काल भैरव, बटुक भैरव, आनन्द भैरव आदि भैरवाष्टमी यदि मंगलवार या रविवार को पड़े तो उसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता हैं।

समस्त बुरे प्रभावों से मुक्ति:-मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों से मुक्ति दिलवाने में भैरवजी होते हैं।

शनि ग्रह एवं राहु-केतु ग्रह के असर से मुक्ति:-मनुष्य के जीवनकाल में शनि ग्रह और राहु-केतु ग्रह के पड़ने वाले बुरे प्रभावों को भैरवजी कम करते हैं।

प्रतिमा दर्शन से नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति:-भैरव अष्टमी के दिन कालभैरवजी की प्रतिमा को देखने से ही समस्त तरह के बुरे एवं नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति मिल जाती हैं।

समस्त तरह की जीवन बाधाओं से मुक्ति:-कालभैरवाष्टमी के दिन भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्रं, ब्रह्म कवच इत्यादि के मंत्रों का वचन करने पर मनुष्य के जीवनकाल में आने वाली समस्त तरह की बाधाओं से मुक्ति मिल जाती हैं।

भक्तों की रक्षा करने वाले रक्षक:-कालभैरव जी के व्रत को करने से भक्तों की उत्तर दिशा, दक्षिण दिशा, पूर्व दिशा, पश्चिम दिशा, वायव्य कोण, आग्नेय कोण, ईशान कोण, नैऋत्य कोण, पाताल एवं आकाश आदि दसों दिशाओं से भक्तों की रक्षा करते हैं।

असमय मृत्यु से मुक्ति:-मनुष्य के जीवन की रक्षा करते हुए बिना समय मृत्यु होने के डर से मुक्ति प्रदान करते हैं।

साहस का संचार हेतु:-जो मनुष्य भैरवजी की पूजा-आराधना करते हैं, उनमें साहस का संचार होता हैं।

क्लेश से मुक्ति:-बिना मतलब के होने वाले मनुष्य के जीवन के क्लेश को भैरवजी हरण कर लेते हैं।