नारियल का धार्मिक पूजा एवं शुभ कार्यों में क्यों महत्व हैं?(Why is coconut important in religious puja and shubh works?):-सृष्टि पर उत्पन्न प्रत्येक मानव नारियल के बारे में जानते हैं। भारतीय अद्यात्म के क्षेत्र में इसको अत्यन्त शुभकारी वनस्पति माना जाता है। यह पूजा-पाठ में प्रयुक्त होने वाला पवित्र फल हैं। धार्मिक एवं तांत्रिक कार्यों में नारियल बहुत ही अधिक उपयोगी होता है। भारतीय संस्कृति में नारियल बहुत शुभ, पवित्र और कल्याणकारी माना जाता है। नारियल शुभ, समृद्धि और सम्मान का भी प्रतीक हिन्दू धर्म के अनुसार माना जाता हैं।
नारियल के विविध नाम:-नारिकेल, नारिकेर, जटाफल, तृणराज, दृढ़फल, महाफल, त्र्यम्बकफल, सदाफल, स्कन्धफल, कोला, कोकोनट, गरी, गोला, खोपरा, श्रीफल आदि नामों से भी नारियल को जाना जाता है।
नारियल में किसका वास होता हैं?:-नारियल में माता लक्ष्मीजी का, ब्रह्मा, महेश एवं विष्णुजी का वास माना गया हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार:-पौराणिक कथाओं में नारियल को 'पारिजात' या 'कल्पद्रुम' कहकर संबोधित किया गया है अर्थात् नारियल के वृक्ष से जो मन की इच्छा स्वरूप मांगा जाता है, वह मिल जाता हैं। यही नहीं, नारियल में त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास माना जाता है। जब भी कहीं दुर्गा पूजा अथवा लक्ष्मी पूजन, नवग्रहों की पूजा या किसी भी तरह की पूजा को करते समय और मन्दिर में स्थापित देवी-देवताओं को नैवेद्य रूप में नारियल की अवश्य जरूरत पड़ती हैं। देवी-देवताओं की उपासना में साबित नारियल को बहुत पवित्र माना गया है, जैसे-धूप, फूल, चन्दन, तुलसी की पूजा के लिए जरूरी समझ जाता हैं। ठीक वैसे ही नारियल को भी पूजा के लिए जरूरी समझा जाता हैं। यही कारण है कि नारियल को शुभ, समृद्धि और सम्मान का प्रतीक माना जाता है।
श्रीफल में लक्ष्मीजी का वास एवं स्वरूप:-हिन्दू धर्म में नारियल को आम भाषा में या संस्कृत भाषा में श्रीफल कहते हैं। श्रीफल दो शब्दों के मेल से बना हैं पहला शब्द श्री और दूसरा फल। वैसे भी श्री का अर्थ लक्ष्मी से है और वैसे तो फल का अर्थ पेड़-पौधों से प्राप्त गूदेदार बीजकोश जैसे-आम, अनार आदि का फल जो खाने के रूप में होता हैं यहां पर फल का मतलब परिणाम या लाभ होता हैं। लक्ष्मी को जो फल हैं वह सम्पत्ति स्वरूप होना चाहिए इसीलिए यह हर प्रकार के सुख दिलाने वाला फल, श्रीफल कहा जाता हैं और हर प्रकार से शुभ माना जाता है। श्रीफल सदैव सौभाग्य को देने वाला हैं। लक्ष्मी स्वरूप रूपी नारियल के बिना कोई भी शुभ कार्य पूर्ण नहीं हो सकता हैं इसलिए शुभ कार्यों में नारियल को अवश्य रखा जाता हैं। ऐसी प्राचीन सोच हैं कि नारियल के उपयोग करने किसी कार्य में कोई तरह की रुकावट नहीं आती हैं।
श्रीफल या नारियल को शिव स्वरूप में मानना:-कुछ भक्तों का मत है कि श्रीफल शिव स्वरूप होता हैं, इसकी बनावट में तीन गोल भाग होते हैं, जो कि तीन आंखों की आकृति की तरह प्रतीत होते हैं, जिसे त्रिनेत्र का प्रतीक माना जाता है। नारियल को भगवान शिवजी का परमप्रिय फल माना जाता है। इसलिए उसका पूजन हर शुभ कार्य आरम्भ करने से पहले किया जाता हैं। इसका प्रयोग देवी-देवताओं के पूजन के लिए नहीं होता बल्कि हर शुभ कार्य को प्रारम्भ करते समय इसकी जरूरत पड़ती हैं।
उत्पत्तीगत विचित्रता:-नारियल की पैदाइश के बारे में भिन्न-भिन्न अनोखी बातों के बारे भिन्न-भिन्न मत प्रचलित हैं।
धार्मिक शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार:-बहुत युगों पूर्व जब विश्वामित्र इन्द्र के नगरी स्वर्गलोक में गये और इन्द्र से मुलाकात की इच्छा जाहिर की। बहुत समय तक प्रतीक्षा करने के बाद जब इन्द्रदेव विश्वामित्र से आकर नहीं मिलने पर स्वयं विश्वामित्र इन्द्र के दरबार मे में गये और वहां पर इन्द्र ने अपने अहंकार स्वरूप विश्वामित्र का सम्मान नहीं करने पर ऋषि विश्वामित्र ने इन्द्र के द्वारा अपमान करने से नाराज होकर इन्द्र को सबक सिखाने के उद्देश्य से उन्होंने दूसरा स्वर्ग के निर्माण करने का निर्णय लिया और उन्होंने दूसरा स्वर्गलोक भी बना दिया। उस स्वर्गलोक की सृष्टि की पैदाइश से पूरी तरह से संतुष्ट नहीं होने पर दूसरी सृष्टि को उत्पन्न करने के लिए उन्होंने मानव के समान की रचना स्वरूप दो नेत्रों एवं मुख स्वरूप नारियल को बनाया और उसे अपनी तन्त्र-मन्त्र साधना से परिपूर्ण करके देवी-देवताओं को अर्पण इन्द्र के अहंकार को तोड़ा था।
पुराणों के अनुसार नारियल की पैदाइश की कथा:-जब समस्त तीनों लोकों में दैत्यों और धर्म के विरुद्ध कार्यों एवं अत्याचारों की बढ़ोतरी होने पर तीनों लोकों में धर्म को स्थापित करने के लिए श्रीहरि विष्णुजी नें पृथ्वीलोक पर अवतार लिया तब उनके अवतार के साथ लक्ष्मी, नारियल और कामधेनु को भी अपने साथ लेकर आये। उनकी पूजा-आराधना से तीनों लोकों में धर्म की फिर स्थापना होने लगी। तब से नारियल का महत्व बढ़ गया।
नारियल की उत्पत्ति:-सदैव समुद्र के किनारों पर ही होती है क्योंकि यह उसी प्रकार की जलवायु में उत्पन्न हो पाता हैं।
हिन्दू धर्म में नारियल का उपयोग एवं महत्व:-हिन्दू-धर्म के अन्तर्गत तो अनेक क्षेत्रों में इसका प्रयोग किया जाता है।
◆किसी देवी-देवताओं पर सम्यक आचरण, विश्वास और समपर्ण के भाव के साथ जल, फूल, फल, अक्षत आदि चढ़ाने के धार्मिक कृत्य को करते समय नैवेद्य के रूप में आदरपूर्वक अर्पित करने में किया जाता हैं।
◆इसके अलावा धार्मिक मान्यतानुसार देवताओं को खुश करने के लिए आग में घृत, जौ आदि डालने की क्रिया हवन-यज्ञ आदि के समय भी नारियल को ईश्वर का प्रतीक मानकर श्रद्धापूर्वक रखा जाता है।
◆हिन्दू धर्म में किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के द्वारा किसी को मान-सम्मान के रूप में वस्त्र के रूप में शॉल एवं नारिकेल को देना का रिवाज हैं।
◆प्राचीन काल से सामाजिक जीवन में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रहे परम्पराएं जैसे:-विवाह के शगुन, गोद भराई, किसी को विदा के समय शुभकामना हेतु माथे पर चंदन, रोली से एक टिका करके श्रीफल को और रुपये-पैसे सौगात के रूप में दिया जाता हैं।
◆भारत देश में अनेक भागों में बहिनें अपने भाइयों का तिलक करने के बाद में और रक्षासूत्र बांधने के बाद अपने भाइयों को सौगात स्वरूप नारियल (गोला) देती हैं। अपने भाईयों से अपने जीवन में आने वाले कष्टों में मदद और रक्षा का वचन भी लेती हैं।
◆नारियल के सूखे फल को 'मेवा' की श्रेणी में गिना जाता है। भारत देश में विभिन्न शुभ अवसरों पर अपने रिश्तेदारों और मित्रों को 'पंच मेवा' अर्थात् पाँच प्रकार की मेवा भेजने का प्रचलन है-उस 'पंच मेवा' में 'गिरी' 'गरी' 'गोला गरी' या 'नारियल गरी' का प्रमुख स्थान हैं। यह अत्यन्त पौष्टिक और शक्ति प्रदायक होता हैं।
◆मंगल-कलश के रूप में:-मांगलिक या शुभ अवसरों पर पूजा आदि के स्थानों पर जल से भरा कलश स्थापना के समय उस कलश के रूप लाल रंग के वस्त्र में लपेटकर नारियल को मौली से बांधकर उसका थोड़ा ऊपरी भाग दिखाई दे उसे स्थापित करके पूजा-पाठ के कर्म को किया जाता हैं।
◆फलाहार के रूप में:-इंसान के द्वारा किये व्रत-उपवास में और खाने के लिए नारियल फल को आहार के रूप ग्रहण किया जाता हैं।
◆औषधि के रूप में:-इंसान के शरीर में ऊर्जा एवं शक्ति के लिए नारियल का फल और उसकी गिरी को औषधि के रूप में सेवन किया जाता हैं।
ज्योतिष महत्व:-ज्योतिष शास्त्र में कई तरह के तांत्रिक टोटकों के रूप में, नवग्रहों और अन्य परेशानियों मुक्ति के रूप विभिन्न प्रकार के बुरे प्रभावों से छुटकारा पाने में नारियल का उपयोग किया जाता हैं।
◆धन-वृद्धि में सहायक:-देवी-देवताओं के निमित पूजा-पाठ से सिद्ध नारियल का उपयोग अपने निवास स्थान या रोजगार स्थान में करने में उपयोग किया जाता है, तो रुपये-पैसों की प्राप्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
◆श्मशान में अग्निदाह के समय:-जब मृत इंसान को श्मशान घाट पर अग्निदाह करते समय नारियल को भी अग्निदाह के रूप में डाला जाता हैं, जिससे उस इंसान की मुक्ति होकर पंचतत्त्वों में उस मृत देह विलीन हो जावें।
◆हवन-वेदी में अर्पण करने के लिए:-वैदिक अभीष्ट प्राप्ति के लिए संकल्प लेकर किये जाने वाले मांगलिक कर्मकांड में हवन-वेदी में हवन के अंतिम समय सूखे हुए जटा वाले नारियल को हवन-वेदी में अर्पण किया जाता हैं।
शनि ग्रह के बुरे असर को कम करने में:-शनि ग्रह के बुरे प्रभाव से छुटकारा पाने के शिवलिंग पर नारियल के जल से रुद्राभिषेक करने के बारे में शास्त्रों में विधान भी बताया गया हैं।
◆तंत्रशास्त्र के विधान के अनुसार:-मानव नर बलि के समान ही नारियल को भेंट स्वरूप चढ़ाने की मान्यता प्राप्त है।
◆आध्यात्मिक प्रभाव के कारण:-नारियल का रिश्ता परमात्मा या आत्मा से जोड़ने वाला माना गया हैं। इसलिए ' नारियल' भारत देश का सर्वाधिक चर्चित फल है और समस्त जगत में बहुत महत्वपूर्ण फल के रूप माना जाता हैं।
समस्त इच्छाओं की पूर्ति हेतु:-इंसान के द्वारा अपने मन की समस्त इच्छाओं की पूर्ति के निमित्त देवी-देवताओं को नारियल को अर्पण किया जाता हैं, जिससे उनका आशीर्वाद मिल सकें।
◆नारियल वृक्ष की रक्षा हेतु:-प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने में कई तरह वृक्ष का आहार एवं औषधीय महत्व होता हैं-जैसे-आम, नीम, बिल्व, बरगद, शमी, पीपल और नारियल आदि में बहुत गुण एवं उपयोगी भाग होते हैं, जिससे इनका अस्तित्व बना रहे। इसलिए प्राचीन ऋषि-मुनियों ने धर्म के साथ नारियल को जोड़ा था।
◆बहुक्षेत्रीय उपयोगिता:-नारियल के बहुत जगह विशेष के रूप में आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता रखते हैं।
◆नारियल तेल:-नारियल गिरी को पेरने से तेल निकलता हैं, जिसे 'नारियल का तेल' कहा जाता है। नारियल का तेल ठण्डा, मीठा, पौष्टिक, केशवर्द्धक, नेत्र ज्योति रक्षक और शांतिदायक होता है। उत्तर भारत में 'नारियल का तेल' केशों या सिर के बालों में लगाने के काम में ही लिया जाता हैं लेकिन दक्षिण भारत में इसका प्रयोग भोजन आदि को बनाने में भी होता हैं।
नारियल की जटा या रेशे से:-रस्सी, कारपेट, पैरपोश, कुशन आदि बनते हैं।
किसी शुभ काम में नारियल क्यों फोड़ा जाता हैं?(Why is coconut broken in some auspicious work?):-सामान्यतः आराध्य देवी-देवताओं को नारियल चढ़ाने से मन की चाही हुई कामनाओं को प्राप्त करने के लिए नारियल को देवी-देवताओं को अर्पण किया जाता हैं। प्रायः नारियल को फोड़कर ही देवी-देवताओं पर चढ़ाया जाता हैं। नारियल को फोड़ने का मतलब हैं कि इंसान अपने मन में छुपी हुई बुरी बातों को त्याग कर धर्म और नीति के विरुद्ध किये जाने वाले आचरण को त्याग कर ईश्वर से अपने गुनाहों की माफी मांगते हुए अपने आपको ईश्वर के चरणों की सेवा में आदरपूर्वक सौंप देना होता हैं, जिससे इंसान को ज्ञात होता हैं कि उसका किसी भी तरह से अस्तित्व नहीं हैं और ईश्वर की शक्ति के द्वारा ही अपना उद्धार हो सकता हैं।
कुछ विशेष अवसरों पर पूरा नारियल चढ़ाने का संपन्न कराने का व्यवहार प्रयोजन बताया गया है। नारियल को नर बलि के रूप में देवी-देवता को भेंट के रूप अर्पण किया जाता हैं। क्योंकि नारियल का स्वरूप भी दो नेत्र व आंख से युक्त होकर इंसान की तरह होता हैं। इसलिए इंसान की बलि नहीं देकर उसके स्थान पर नारियल की बलि देने पर भी वही फल मिलता हैं।
महिलाएं नारियल क्यों नहीं फोड़ती?(Why don't women break coconuts?):-श्रीफल के दाना जिसमें पौधा बनने की शक्ति बीज रूप में होता है, इसलिए इसे उत्पन्न करने का अर्थात् अपने ही जैसे नए पौधे को उत्पन्न करने का कारक माना जाता हैं। स्त्रियां भी अपने गर्भ में बीज को धारण करती हैं। इसलिए एक माँ अपने गर्भ की रक्षा करती हैं, उसी प्रकार नारियल में बीज रूप से दूसरे गर्भ को नुकसान नहीं पहुंचाने के उद्देश्य से स्त्रियां नारियल नहीं फोड़ती हैं।