कालसर्प योग का ज्योतिषीय विवेचना निदान-उपाय (astrological analysis of kalsarp yoga, diagnosis-remedy):-कालसर्प योग का वर्णन आधुनिक समय बहुत मिलता हैं, कालसर्प योग एक भयानक योग माना गया है, सांसारिक ज्योतिष शास्त्र में इस योग के विपरीत परिणाम देखने में आते हैं जिसके कारण मनुष्य के जीवन में उथल-पुथल मच जाती हैं। प्राचीन काल में सर्प दोषों के बारे में भिन्न-भिन्न धर्म ग्रन्थों और शास्त्रों में लिखित रूप से वर्णन मिलता हैं। आधुनिक समय में प्राचीन एवं नवीन फलित ज्योतिष एवं दैव संबंधी बातों के ज्ञाताओं के बीच में काल सर्प योग के विषय पर विचार विमर्श एवं बातचीत के बाद स्थिर मत के लिए प्रयास शुरू हो गया हैं।
प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार:-जब पुराने समय में रचित प्राचीन ग्रन्थों जैसे-मानसागरी और बृहज्जातक तथा बृहत्पाराशर होरा शास्त्र का ध्यानपूर्वक वांचन करते हुए निरीक्षण करते हैं, तो प्रमाण के साथ इन ग्रन्थों में कालसर्पयोग अथवा सर्पयोग के वर्णन के बारे में जिक्र किया गया है। प्राचीन काल से चली आ रह परम्परा के अनुसार आचार-विचार, रहन-सहन एवं जीवन पद्धति आदि में निष्ठा युक्त सदा बना रहने वाला ईश्वर, परलोक आदि के सम्बन्ध में विशेष तरह के विश्वास एवं उपासना पद्धति वाला हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति में नागों का बहुत ही महत्ता बताई गई हैं। नागपूजा सृष्टि की पैदाइस के साथ मनुष्यों एवं देव-असुरों आदि के द्वारा करने साक्ष्य मिलते हैं और की जाती रही है। हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति को मानने वाले मनुष्यों के द्वारा नागपंचमी का पर्व को में पूर्ण विश्वास, भक्ति, आदर, सम्मान एवं स्नेह के भाव के द्वारा पहले भी एवं आज भी मनाया जाता है। सनातन धर्म के पत्नी और बाल-बच्चों से युक्त मनुष्यों के द्वारा अपने निवास स्थान के भीतर जाने के मार्ग पर नाग के हूबहू शक्ल का चित्र नागपंचमी के दिन बनाया जाता हैं और उसका विधिवत पूजन भी किया जाता हैं। इस तरह के नाग को देखना बहुत अच्छा जीवन में माना जाता है और नाग को सूर्यदेव और देवी-देवताओं में पाये जाने गुण से युक्त शक्ति का पार्थिव रूप में जन्म माना गया है। नागों के प्रति मुख्य रूप से समाज की आत्मिक एवं भौतिक उन्नति से युक्त विशेषताओं के सामूहिक रूप के सभ्य मनुष्यों के द्वारा पुराने समय से ही मन में विद्यमान विचारों रहा हैं। भगवान् आशुतोष के पूजन का विधान भारत देश के हरेक स्थान में पुराने समय से ही आज के समय से होता है। भगवान शिव के गले में आभूषण की तरह नाग शोभा बढ़ाते हैं।
दुर्भाग्य एवं पापी ग्रह:-समुंद्र मन्थन के समय से विष एवं अमृत दोनों निकले अमृत सभी देवता को पीना था परन्तु विप्रचित नामक दानव और हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका पुत्र राहु ने भी देवता का रूप धारण कर देवताओं के साथ बैठकर अमृत पी गया चन्द्र को इस बारे में पता चला चल गया और उसने विष्णु भगवान् को बोल दिया श्री विष्णु भगवान् उसी वक्त अपने सुदर्शन से उसका सिर काट दिया परन्तु अमृत पी लेने के कारण वो भी अमर हो गया।
सृष्टि की उत्पत्ति के समय के विभाग के आधार प्रत्येक ग्रह का नाम सप्ताह के सात दिनों के नाम पर रखा गया हैं, लेकिन सप्ताह के सात दिनों के नाम पर राहु-केतु के आधार पर कोई नाम नहीं रखा गया, क्योंकि राहु-केतु को क्षीण अवशेष के रूप में आभास कराने वाली परछाईं कर रूप में छायाग्रह माना जाता है। इसीलिए इनका असर आँखों के सामने नहीं होते हुए या अज्ञात रूप से होता है।
◆राहु केतु की कोई राशि नहीं है। जिस राशियों में राहु-केतु आते हैं उसके गुण धर्म के अनुसार शुभाशुभ प्रभाव देते हैं।
◆राहु के सभी कार्य करने के ढंग, भाव, मूल गुण एवं सहज प्रकृति के मिजाज शनि के समान एवं केतु के मंगल की तरह माना जाता है।
◆ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु का सम्बन्ध सर्प के साथ जोड़ा गया हैं। राहु का कटा हुआ सिर की सर्प का मुख और केतु को कटा हुआ धड़ पूँछ माना जाता है। आकाश में राहु-केतु का शरीर पांचों भूत से नहीं बना होने से इनको क्षीण अवशेष के रूप में परछाँई का आभास कराने वाले छाया ग्रह मानकर इनको नभमंडल में फैले हुए दूसरे सातों ग्रहों यथा-सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि के समान ही ग्रह मण्डल में जगह प्राप्त हैं।
◆जन्मकुण्डली में हमेशा 180 डिग्री पर एक-दूसरे के समक्ष राहु और केतु रहते हैं।
◆राहु एक शरीर रूपी अमृत पान से अमृतत्व से युक्त दैत्य स्वरूप में होते हुए देव रूप में अमर हैं। श्रीविष्णुजी के सुदर्शन चक्र के प्रहार से शरीर के दो भागों में बंटने से के कारण राहु को सर्प का सिर एवं केतु को पूंछ और शनि को धड़ स्वीकार करने पर मस्तिष्क में विषय, बात आदि के संबंध में सोच कर निश्चित करने की क्षमता होती है, लेकिन शरीर के दो भागों में बंटने से पूर्ण रूप शरीर नहीं होने पर राहु-केतु स्वयं किसी भी कार्य को करने में अक्षम होता है। ये तीनो ग्रह मिलकर सर्प बनते हैं। इस तरह अमृतत्व के कारण तीनों लोक में इनको ग्रहों का स्वरुप प्राप्त हुआ है। इस तरह पूर्णरूप से देवत्य नहीं होने से इनकी छवि एक छाया रूपी ठण्डा वायु तत्वीय ग्रह हैं, भूतप्रेत, नाग, सर्प, पूर्वजों का अधिष्ठाता हैं। राहु को काल पुरुष का दुःख माना गया है इस तरह दोनों ग्रह को तमोगुणी एवं पाप ग्रह माना जाता है। जब राहु-केतु बुरे व धर्म के विरुद्ध आचरण करने वाले ग्रह होने से इनके बीच में सभी ग्रह में आकर केंद्रित हो जाते हैं, तब सभी ग्रहों के इनके बीच में उपस्थित अधम मानी जाती है।
◆राहु हर कार्य उल्टा करता है। यह कभी मार्गी नहीं होता हैं। एक राशि पर डेढ़ वर्ष तक रहता है अगर कुण्डली में राहु तीसरे, छठे, ग्यारहवें घर में हो तो बहुत शुभ फल देता है। मिथुन, कन्या, तुला, मकर और मीन राशियाँ राहु की मित्र राशि हैं तथा कर्क और सिंह शत्रु राशियाँ हैं। यह ग्रह शुक्र के साथ राजस तथा सूर्य एवं चन्द्र के साथ शत्रुता का व्यवहार करता है। बुध, शुक्र, गुरु को न तो अपना मित्र समझता है और न ही उससे किसी प्रकार की शत्रुता रखता है यह अपने स्थान से पांचवें, नवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है।
◆कलियुग में राहु का प्रभाव बहुत है अगर राहु अच्छा हुआ तो जातक आर.एस. या आई.पी.एस., कलेक्टर, राजनेता बनता है। इसकी शक्ति असीम हैं। सामान्य रूप से राहु के द्वारा मुद्रण कार्य फोटोग्राफी नीले रंग की वस्तुएं, चर्बी, हड्डी जनित रोगों से पीड़ित करता है। राहु के प्रभाव से जातक आलसी तथा मानसिक रूप से सदैव दुःखी रहता है। यह सभी ग्रहों में बलवान माना जाता है तथा वृषभ और तुला लग्न में यह योगकारक रहता है।
राहु जन्मकुण्डली में जिस किसी भी स्थान पर बैठे होता हैं, उस स्थान के मालिक, उस स्थान में बैठे ग्रह या जिस स्थान को अपनी दृष्टि के द्वारा देखते हैं, उस राशि, राशि के स्वामी एवं उस स्थान में स्थित ग्रह को अपनी बात आदि के संबंध में सोच कर निश्चित करनी की क्षमता शक्ति से प्रभावित करके अपने अनुरूप कार्य करने की ओर प्रेरत करते हैं। जिससे मनुष्य के जीवन बिना में मतलब की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
इसी तरह केतु उग्र स्वभाव का अग्निकारक ग्रह हैं, जन्मकुण्डली में जिस स्थान में बैठा होता हैं, उस स्थान के मालिक, उस स्थान में बैठे ग्रह या जिस स्थान को अपनी दृष्टि के द्वारा देखते हैं, उस राशि, राशि के स्वामी एवं उस स्थान में स्थित ग्रह को अपनी बात आदि के संबंध में सोच कर निश्चित करनी की क्षमता शक्ति से प्रभावित करके अपने अनुरूप कार्य करने की ओर प्रेरत करते हैं। इस तरह से मंगल की तरह कार्य, गुण एवं मिजाज वाले केतु को स्वीकार करने पर केतु का असर भी मंगल की तरह तोड़-फोड़ करके बर्बादी करने वाला हो जाता हैं। जब केतु या मंगल की महादशा एवं अन्तर्दशा जन्मकुण्डली के अनुसार शुरू होती हैं, तब मनुष्य की सोचने-समझने और उचित राह पर चलने की मानसिक शक्ति को अपने चक्कर में फंसाकर गलत कार्य करवाकर उसके ऐशोआराम एवं धन-सम्पत्ति का पतन करता हैं।
◆राहु की दशा, महादशा और अन्तर्दशा के गोचर में भ्रमण के समय उसके भाव के अनुसार प्रभाव देता है।
◆राहु की जब महादशा शुरू होती हैं, तब मनुष्य के जीवन में विघ्नों एवं प्रत्येक क्षेत्र में रुकावटों को उत्पन्न करने वाली होती हैं। यहाँ पर विचार करने योग्य बात हैं यह है कि जिस ग्रह के साथ राहु का जुड़ाव होता हैं, उस ग्रह के जुड़ाव के अनुरूप ही राहु अपने कार्य को कराता है।
◆जबकि जिस ग्रह के साथ केतु का जुड़ाव होता हैं, उस ग्रह के दबाब में आकर उस ग्रह के अनुरूप कार्य को करता हैं।
◆राहु के जुड़ाव के बारे में एक बात जरूरी रूप से विचार करने योग्य हैं कि जब किंस भी ग्रह के साथ राहु का जुड़ाव होता हैं, तब उस जुड़ाव वाले ग्रह के अंश से कम अंश राहु के होने पर राहु असरदार होगा, जबकि उस जुड़ाव वाले ग्रह के अंश राहु के अंश से अधिक होने पर उस जुड़ाव ग्रह का असर अधिक होगा एवं राहु का तेज धूमिल हो जाएगा, उस दशा में कालसर्प योग का असर सबसे कम रहेगा।
◆कालसर्प योग का निर्माण राहु जिस स्थान में स्थित होता हैं, उस स्थान से केतु की ओर एवं केतु जिस स्थान में स्थित होता हैं, उस स्थान से राहु की ओर बनता हैं। यहाँ पर विचार करने योग्य बात हैं कि राहु के स्थित स्थान से केतु के स्थित स्थान की ओर बनने वाले कालसर्प योग का ही असर पड़ता हैं।
◆लेकिन केतु स्थित स्थान से राहु स्थित स्थान की ओर बनने वाला कालर्सप योग निष्प्रभावी होता हैं। यह कहना उपयुक्त होता है कि केतु स्थित स्थान से राहु स्थित स्थान की ओर बनने वाले योग को कालसर्प की संज्ञा देना मुनासिब नहीं होगा।
◆व्यवस्थित, क्रमबद्ध और तार्किक वैज्ञानिक सोच में जब कालसर्पयोग का स्पष्टीकरण करते हैं, तो जन्मकुण्डली में राहु-केतु हमेशा एक दूसरे के समक्ष बैठे होते हैं। जबकि दूसरे सभी ग्रह राहु-केतु के बीच में बैठे होकर इनके अनुरूप कार्य को करते हुए इनके प्रभाव क्षेत्र में आ जाते हैं, तब वे दूसरे ग्रह अपने कार्य करने के गुण एवं अपने ढंग को छोड़कर राहु-केतु के अनुरूप ढ़लते हुए उनके चुम्बकीय क्षेत्र से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते हैं एवं राहु-केतु के गुण-दोषों का असर निश्चित रूप से टाला नहीं जा सकता हैं और राहु-केतु हमेशा अपने गति से चलते हुए अपना चक्कर पूर्ण करने के लिए आगे बढ़ने की अपेक्षा पीछे की ओर वक्र गति से चलते हैं। इस तरह वैज्ञानिक रूप से विवेचन करने पर जन्मकुण्डली में दो स्थितियाँ वाम गोलार्ध एवं दक्षिण गोलार्ध बनती है। इस तरह राहु का वाम गोलार्ध या बायाँ भाग कालसर्प कहलाता है। इसीलिए राहु के स्थित होने से केतु के स्थित होने तक की बनने वाली स्थिति के योग को ही कालसर्पयोग की श्रेणी में आता है।
◆केतु के स्थित होने से लेकर राहु के स्थित होने तक की स्तिथि में बनने वाले योग को बहुत सारे फलित ज्योतिष एवं दैव संबंधी जानकारों के द्वारा कालसर्पयोग नहीं कहा जाता। इतना अवश्य है कि किसी-न-किसी पहले जन्म में किये गए कार्यों के आधार के दोष और पितृदोष के कारण कालसर्पयोग का निर्माण होता हैं।
कालसर्प योग का निर्धारण करते:-समय निम्नलिखित बातों पर गहराई से विचार करना चाहिए।
◆जब भी किसी मनुष्य की जन्मकुण्डली में कालसर्प योग को निश्चित या तय करना होता हैं, तो बहुत ही सोच-समझकर सतर्कता से करना चाहिए। केवल राहु-केतु के बीच में ग्रहों के स्थित होने का आधार ही उचित नहीं होता हैं। यहाँ पर दूसरी बातों का भी मनन या विचार नहीं रखने पर मनुष्यों की दिशा और दशा खराब होने में अधिक समय नहीं लगेगा।
◆सबसे पहले जन्मकुण्डली में देखना चाहिए कि कालसर्प योग किस स्थान से किस स्थान तक बन रहा हैं।
◆ग्रह का भाव क्या है।
◆उस भाव में ग्रह की क्या स्थिति बन रही है।
◆ग्रहों की युति का क्या प्रभाव पड़ रहा है।
◆यदि राहु के साथ कोई दूसरा ग्रह बैठकर उसका मेल बना रहा हो, तो उस जुड़ाव करने वाले ग्रह का बल राहु से अधिक हैं या कम हैं, इसकी जानकारी भी प्राप्त करनी चाहिए। इस तरह के हालात होने पर राहु का न केवल प्रभाव कम होगा, अपितु कालसर्प योग भंग भी हो सकता है।
◆ऐसे हालात किसी भी ग्रह के राहु-केतु के असर एवं पकड़ से बाहर निकलने पर हो सकता है। अतः कालसर्प दोष को सामान्य स्तर पर जाँच करके तय करना मनुष्य के लिए बहुत ही दुःख या कष्ट देने वाला हो सकता हैं।
यहाँ पर एक बात, भाव, विचार या उद्देश्य को दूसरे शब्दों के माध्यम से बताना भी मुनासिब हैं, कि कालसर्प हमेशा मनुष्यों के जीवन में पीड़ा पहुँचाने वाला नहीं होता हैं। कभी-कभी तो इंसान के जीवन पर इतनी अधिक कृपा कर देता हैं कि मनुष्य को सम्पूर्ण जगतपटल पर न केवल मशहूर करता हैं, अपितु रोये-पैसों वाला समृद्धि, नाम और शौहरत को प्रदान करने वाले भी बन जाते हैं।
विश्व जगत में जन्म लेने वाले महिमाशाली पुरुषों की जन्मकुण्डली का पठन-पाठन करते हुए जाँच करने पर पता चलता हे कि उनकी जन्मकुण्डली में कालसर्प योग होने के बाद भी वे शौहरत की बुलंदी के चोटी पर पहुँचे। इसका कारण यह है कि उनके जीवन का कोई-न-कोई एक सिरा ऐसा भी जरूर रहा होगा, जिससे उनकी जन्मकुण्डली में कालसर्प योग होते हुए भी उनको शौहरत दिलाने में सहायक रहा होगा, जो अधूरापन या कमी का प्रतीक बन गया हो, इसलिए मनुष्यों को कालसर्प योग से खौफ होने या डरने की जरूरत बिल्कुल भी नहीं हैं।
जन्मकुण्डली में अनेक तरह के अच्छे व बुरे योग बनते हैं, जब जन्मकुण्डली में शुभ योग जैसे-पंचमहापुरुष योग, बुधादित्य योग आदि बनते हैं, जिनके कारण कालसर्प योग का असर बहुत ज्यादा नहीं होकर कुछ समय तक का होता है। यदि संसार में उत्पन्न कामयाबी के शिखर को प्राप्त मनुष्यों की जन्मकुण्डलियों का पठन-पाठन करके जाँच करने पर पता चल जाता हैं कि उनकी जन्मकुण्डलियों कालसर्प दोष ने ही उनको शौहरत के शिखर पर पहुँचाया था।
मनुष्य की जन्मकुण्डली में कालसर्प योग का संचार पुरखों के देनदारी को उतारने के लिए:-जब किसी भी इंसान की जन्मकुण्डली में कालसर्प योग विद्यमान होता हैं, तब उस कालसर्प योग का प्रभाव उसके परिवार के दूसरे सदस्यों जैसे-सन्तान पुत्र-पुत्री की जन्मकुण्डली में अवश्य होगा। क्योंकि इंसान का परबाबा, बाबा, दादा आदि पुरखों से संबंध होने के कारण पीढ़ी-पीढ़ी सिलसिला चलता रहता हैं, उन पुरखों में विद्यमान होने से उसकी संतान को देनदारी के रूप में उतारना होता हैं, जिससे परिवार में रहने वाले समस्त सदस्यों को कालसर्प योग अपने असर में किसी न किसी रुप लेकर रखता हैं, जिससे पितृदोष का नाम दिया जाता हैं।
रुपयों-पैसों के चक्कर में फंसे हुए ज्योतिषी:-आधुनिक समय में रुपये-पैसों की चकाचौंध रुपी होने से फलित ज्योतिष के ज्ञाता के द्वारा मनुष्य की जन्मकुण्डली में कालसर्प योग नहीं होने पर भी या आंशिक कालसर्प के असर होने पर उस मनुष्य को बहुत ही डरा दिया जाता हैं, जिससे उस मनुष्य नींद उड़ जाती हैं, वह मनुष्य उस योग से होने वाले प्रभावों की चिंता करने लग जाता हैं। इस तरह ज्योतिषी के द्वारा अपने ज्ञान का गलत उपयोग करते हैं, वे चाहते तो उस कलसर योग या दूसरे बनने वाले योग का सरलता से उस बुरे योग का मूल कारण का उपचार कर सकते थे। इसलिए मनुष्य को अपने जन्मकुण्डली का विश्लेषण अलग-अलग जानकर ज्योतिषी से कराना चाहिए, जिससे जन्मकुण्डली में कालसर्प योग बन रहा हैं या नहीं। यदि बन रहा हैं, तो उस योग के बुरे प्रभाव को दूर करने का निदान करा लेना चाहिए।
आज भी समाज में बहुत जानकारी रखने वाले बिना रुपयों-पैसों से मोह रखने वाले बहुत सारे ज्योतिषी विद्यमान हैं, जो अपने ज्योतिषी ज्ञान के द्वारा जन्मकुण्डली का सही तरह विश्लेषण करते हुए ज्योतिष के द्वारा सेवा देते हुए ज्योतिष शास्त्र की गरिमा की बनाए रखें हुए हैं। इसलिए मनुष्य को रुपये-पैसों के चक्कर में फंसे हुए ज्योतिषी जो ज्योतिष को दुकान में समान बेचने की तरह मोलभाव करते हैं, उनसे हमेशा मनुष्य को बचने कोशिश करनी चाहिए
काल सर्प योग क्या होता है?:-जब किसी भी मनुष्य की जन्मकुण्डली के बारह घरों में से किसी भी घर में राहु एवं केतु ग्रह बैठते हैं और राहु-केतु ग्रह अपने बीच में सभी सात ग्रहों को घेर करके अपने प्रभाव में ले लेते हैं, तब बनने वाले योग या दोष को कालसर्प योग या कालसर्प दोष कहा जाता है।
यदि राहु-केतु के एक तरफ सातों ग्रह बिखरी हुई अवस्था से इकट्ठा जन्मकुण्डली में इकट्ठा हो जायँ और कोई भी ग्रह दूसरी तरफ नहीं बचते हैं, तब जो स्थिति बनती हैं, उसे कालसर्प योग कहा जाता है। जिस तरह से तराजू के एक पलड़े में भार रख दिया गया हो और दूसरे पलड़े में कुछ भी न हो। उसी तरह से जन्मकुण्डली बिना किसी संतुलन या अस्थिरता के समान प्रतीत लगती हैं।
कालसर्प का अर्थ:-कालसर्प दो शब्दों के मेल से बना हैं।
काल का अर्थ:-मृत्यु होता हैं।
सर्प का अर्थ:-सांप होता हैं।
कालसर्प का अर्थ:-जिसे तरह सांप के काटने से मनुष्य की मृत्यु जल्दी हो जाती हैं और अगर जीवित भी रहता है, तो मृत्यु के समान कष्ट को भोगना पड़ता है, उसी तरह कालसर्प का प्रभाव पड़ता हैं।
कालसर्प योग कब या कितने समय तक रहता हैं?:-शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के जीवन के 42 वर्ष तक इसका प्रभाव रहता हैं।
सर्वाधिक अनिष्टकारी समय:-जातक के जीवन में सर्वाधिक अनिष्टकारी समय निम्न अवस्था में होता है-
◆जब जन्मकुण्डली में राहु की महादशा, राहु की प्रत्यन्तर दशा में अथवा शनि, सूर्य तथा मंगल की अन्तर्दशा के शुरू होने पर इंसान के जीवन का सर्वाधिक अनिष्टकारी समय होता हैं।
◆मनुष्य के जीवन के मध्यकाल लगभग चालीस से पैंतालीस वर्ष की उम्र होने पर कालसर्प दोष के द्वारा सबसे अधिक परेशानी को भोगना पड़ता हैं।
◆ग्रह-गोचर में कुण्डली में जब-जब कालसर्प योग बनता हो। उपर्युक्त अवस्था में कालसर्प योग सर्वाधिक प्रभावकारी होता है एवं मनुष्य को इस समय में शरीर संबंधी, मन संबंधी, माता-पिता और उनकी संतानों से सम्बंधित, रुपये-पैसों, समाज से संबंध रखने वालों, जीविका निर्वाह के साधन जैसे-नौकरी, स्वयं का धंधा इत्यादि स्थानों में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
कालसर्प योग के परिणाम स्वरूप:-जब किसी भी इंसान की जन्मकुण्डली में कालसर्पयोग बनता हैं, तब निम्नलिखित परिणाम स्वरूप प्रभाव पड़ते हैं, जो इस प्रकार हैं-
◆इंसान का जीवन संघर्षपूर्ण रहता है और सांसारिक सुखों में कमी आती हैं।
◆प्रत्येक कार्य में कुछ न कुछ परेशानी सामने आना आदि होता हैं।
◆मनुष्य को अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र जैसे-जन्म, बचपन, शादी, सन्तान, पत्नी, नौकरी, व्यवसाय आदि में परेशानी होती रहती हैं।
◆कालसर्प योग से पीड़ित मनुष्य को अपने जीवनकाल में काफी संघर्ष करना पड़ता है।
◆जो मन की इच्छा के अनुसार मिलने वाली प्रगति में रुकावटें आती हैं।
◆बहुत समय के बाद मनुष्य को अपने जीवन में यश मिलता हैं।
◆मनुष्य हमेशा मन की कल्पना से उत्पन्न सोच के कारण बैचेन रहता हैं, जिससे उस विषय में डूबे रहने से सही-गलत का भेद नहीं कर पाता हैं और सही समय पर फैसला नहीं ले पाता हैं।
◆मनुष्य के बिना मतलब एवं कारण के दुश्मनों की संख्या में बढ़ोतरी होती हैं।
◆मनुष्य की पीठ के पीछे उंसके दुश्मन क्रियाशील होकर उसके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में रुकावटें उत्पन्न करने लगते हैं।
◆मानसिक, शारीरिक और आर्थिक त्रिविध रूप से मनुष्य परेशान होकर अशान्ति जीवन में प्रकट होती हैं।
◆इंसान अपने जीवनकाल के सभी क्षेत्रों में भरसक मेहनत करता हैं, लेकिन उसने उस क्षेत्र में सोचे अनुसार कामयाबी नहीं मिलती हैं।
◆सभी बनते हुए कार्य में ज्यों सफलता मिलने वाली होती हैं, त्यों असफलता हाथ लगना।
◆छात्रवृत्तिधारी के द्वारा मेहनत करने पर भी उचित अंक नहीं मिलना।
◆मनुष्य के भाग्य प्रवाह को राहु-केतु रोक देते हैं, जिससे मनुष्य की उन्नति नहीं होती हैं। उसे अपने जीवन को चलाने के लिए कामकाज नहीं मिलता है। यदि कामकाज मिल भी जाये तो उसमें अनन्त अड़चने आती हैं। परिणामस्वरूप उसे अपनी जीवनचर्या चलाना मुशिकल हो जाता है।
◆मनुष्य के शादी होने में परेशानियाँ आती हैं, शादी की बात पक्की होने पर टूट जाना, विवाह नहीं होता है। विवाह हो भी जाय, तो सुख में बाधा आती हैं।
◆विवाह होने के बाद पति-पत्नी के बीच अक्सर मतभेद होने लगते हैं, जिससे एक-दूसरे के बीच सम्बन्धों में कड़वापन आने लगता हैं, अंत में वैवाहिक जीवन का सम्बन्ध तोड़कर एक-दूसरे से अलग होने का दुःख भोगना पड़ता हैं।
◆इंसान को परिवार संबंधी जीवन में बिना मतलब के टकराव के साथ लड़ाई-झगड़े होने लग जाते हैं।
◆दाम्पत्य जीवन को ज्यादा समय होने के बाद भी सन्तान प्राप्ति में रुकावटें या संतान सुख में बाधा आती हैं।
◆इंसान अपने जीवनकाल में बहुत मेहनत करने पर भी रुपये-पैसों की परेशानी रहती हैं और रुपयों-पैसों को इकट्ठा नहीं कर पाते हैं।
◆कर्ज का बोझ उसके कंधों पर होता हैं और उसे अनेक प्रकार के दुःख भोगने पड़ते हैं।
कालसर्प योग के प्रमुख लक्षण:-कालसर्पयोग का असर होने पर इंसान में प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
◆मनुष्य को सोते समय उसको नींद में अवचेतन मन की कल्पना में बार-बार सर्प दिखाई देता हो।
◆मनुष्य की ऊपर से नीचे की ओर देखने पर डर लगता हो।
◆मनुष्य के सांप पीछे पड़े रहते हैं और आगे-आगे मनुष्य चलता हैं और पीछे-पीछे सर्प दौड़ते हैं
◆मनुष्य रात्रि को सोते समय नींद में धीरे-धीरे शब्दों को बोलते हुए बड़बड़ाने लगता हैं।
◆कालसर्प योग दोष से ग्रसित मनुष्य को नींद में देखे गये स्वप्नों से उतावलापन से उठ जाता हैं।
◆मनुष्य को तीव्र गति से पिपासा लगती हैं और गला व मुंह पानी के बिना सूखने लगता हैं आदि स्वप्न आते हैं।
◆मनुष्य की बहुत गुस्सा आता हैं, वह गुस्से से अभिभूत होकर अपने दांत-पिसते रहता हैं।
◆मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य से बात करते समय अपनी जिबान को बाहर निकालकर बोलते हो।
◆मनुष्य बार-बार होठों के बाहर जिबान निकालना हो।
◆मनुष्य को शुभ सूचना मिलनी वाली होती हैं, लेकिन अचानक ही उसके जीवन में रोजाना उसे कुछ न कुछ बुरे समाचारों के मिलने का संदेह मन में बना रहता हो।
◆मनुष्य को नींद के सपने में पहाड़ या पहाड़ी से गिरते हुए दिखाई पड़ता हो।
◆इंसान सांप को मारने का असर कालसर्प योग के रूप में होता हैं।
◆इंसान को जल से डर लगने और पानी में गिरना।
◆मनुष्य को भूमि में उथल-फुथल स्वरूप भूकंप आदि को देखना।
◆लड़ाई-झगड़े आदि देखना और झगड़े में फंस जाना।
◆मनुष्य को अपने ख्याब में किसी बेवा नारी के दर्शन होते हो, चाहे अपने परिवार की ही क्यों न हो। यदि उस स्वप्न को देखने के बाद नींद से उठने पर उस स्वप्न का असर नहीं होता हैं।
◆छोटे बच्चे सोते समय अपनी नींद में बुरे स्वप्न को देखने के कारण उठकर वे पेशाब नहीं कर पाते हैं, जिससे वे बिस्तर पर पेशाब करके बिस्तर को गीला कर देते हैं।
जिनकी जन्मपत्रिका में कालसर्प योग अशुभ है उनके लिए नाग पंचमी की तिथि का दिन सबसे अच्छा होता हैं। इस दिन वह नाग पंचमी का व्रत करें व शिवलिंग व नाग की पूजा करें।
कालसर्प योग की शुभता-अशुभता के आधार पर भेद एवं मुख्य भूमिका निभाने वाले योग:-जब जन्मकुंडली में कालसर्प योग बन रहा हैं, तो दो प्रकार का शुभ एवं दूसरा अशुभ होता हैं, इसकी शुभता और अशुभता अन्य ग्रहों के योगों पर निर्भर करती हैं। तब निम्नलिखित शुभ-अशुभ योग बनते हैं, तो उनके अनुसार फल मिलता हैं।
कालसर्प योग होने पर यदि शुभ योग हो, तो:-जब भी कालसर्प योग में पंच महापुरुष योग, रूचक, भद्र, हंस, मालव्य एवं शश योग, गजकेसरी, राजसम्मान योग, महाधनपति योग बनें तो व्यक्ति उन्नति करता हैं।
जब कालसर्प योग के साथ अशुभ योग बने जैसे-ग्रहण योग, विष योग, चांडाल, अंगारक, जड़त्व, सूर्य ग्रह से वाशी, वेशी व उभयाचारी, चन्द्रमा ग्रह से अनफा, सुनफा व दुर्धरा, नंदा, अंभोत्कम, कपट, क्रोध, पिशाच तो वह अनिष्टकारी होता हैं।
दृश्यगोलार्ध कालसर्पयोग एवं अदृश्यगोलार्ध कालसर्पयोग:-बारह प्रकार के कालसर्पयोग राहु की लग्नादि बारह भावों में स्थिति के आधार पर द्वादश नागों के नाम पर रखे गए हैं। दृश्यगोलार्ध और अदृश्यगोलार्ध नामक दो कालसर्प योग और बताए गए हैं, जिन्हें क्रमशः उदितगोलार्द्ध कालसर्पयोग और अनुदितगोलार्द्ध कालसर्पयोग भी कहा जाता है।
1.दृश्य गोलार्द्ध का कालसर्पयोग:-कुण्डली में घड़ी की सुई की दिशा में बढ़ते क्रम में राहु से केतु पर्यन्त सप्तग्रहों के स्थित होने पर बनता हैं।
2.अदृश्य गोलार्द्ध का कालसर्पयोग:-कुण्डली में सप्तग्रहों की स्थिति घड़ी की सुई की दिशा में केतु से राहु पर्यन्त सप्तग्रहों के स्थित होने पर बनता हैं।
निम्न चक्र द्वारा कालसर्प योग को स्पष्टतः समझा जा सकता है-
1.उदित गोलार्ध कालसर्प योग:-जब मनुष्य का जन्म होने के समय बनने वाली जन्मकुण्डली में उदित गोलार्ध में बनने वाला कालसर्प योग ही असरकारी हो जाता हैं।
2.अनुदित गोलार्ध कालसर्प योग:-जब मनुष्य की जन्मकुण्डली में जिस स्थान में स्थित राहु होता हैं, गोचर में ग्रह जब राहु के प्रभाव में आते हैं, तब अनुदित गोलार्ध का असर होता हैं। अतः उदित गोलार्ध में बनने वाले कालसर्प योग का असर बहुत खतरनाक और देखने या सोचने मात्र से भी डर लगता हैं, ऐसा देखा गया हैं।
इस तरह से देखा जाए तो अदृश्य गोलार्द्ध कालसर्प योग राहु-केतु की वक्र गति और कालसर्प के मुख राहु के सिद्धान्त के विपरीत हैं।
कालसर्पयोग के 288 प्रकार:-कतिपय विद्वानों ने उक्त 24 प्रकार के कालसर्पयोगों (12 उदित, 12 अनुदित) को 12 लग्नों के आधार पर भी वर्गीकृत करने की कोशिश की है और इस आधार पर 12×24=288 प्रकार के कालसर्पयोग परिगणना की हैं।
कालसर्पयोग के 62,208 प्रकार:-डॉ. भोजराज द्विवेदी ने 62,208 प्रकार के कालसर्पयोग होने का उल्लेख किया हैं। उनके अनुसार मोटे तौर पर 12×12=144 प्रकार के कालसर्पयोग बनते हैं। इनमें भी 'उदित गोलार्ध' और 'अनुदित गोलार्ध' के भेद से यह संख्या 144 से द्विगुणित होकर 288 हो जाती हैं।
◆यदि किसी जातक का जन्म अमावस्या के दिन या सूर्यग्रहण जैसी ग्रह स्थिति में हों, तो कुण्डली में 'उग्रकालसर्पयोग' की स्थिति बनेगी।
◆यदि किसी जातक का जन्म पूर्णिमा के दिन हो, तो 'चन्द्रग्रहण कालसर्पयोग' की स्थिति बनेगी।
इस तरह 288+144 उग्र+144 चन्द्रग्रहण =576 प्रकार के कालसर्पयोग निर्मित होंगे।
इस तरह 576 प्रकार की कुण्डलियों को नौ ग्रह एवं बारह भावों में विभाजित करने पर 576×9×12=62,208 प्रकार के कालसर्प योग निर्मित होते हैं।
कालसर्प योग के प्रकार:-मुख्यतः कालसर्पयोग के दो प्रकार हैं।
1.एक पूर्ण कालसर्प योग:-लग्न कुंडली में दूसरे, प्रथम और बारहवें घर में राहु केतु हो और छठा, सातवां और आठवें घर में राहु केतु हो तो सम्पूर्ण कालसर्प योग या दोष होते हैं।
सभी ग्रह राहू व केतु के मध्य में आकर फस जाते हैं या लग्न में राहु और सप्तम भाव में केतु या लग्न में केतु और सप्तम भाव में राहु हो तो पूर्ण कालसर्प योग बनता हैं।
2.दूसरा अर्द्धचंद्र कालसर्पयोग या आंशिक कालसर्पयोग:-कालसर्पयोग में अंशात्मक आधार पर एक या अधिक ग्रहों के बाहर निकलने पर तथा राशि आधार पर एक-दो ग्रहों के बाहर निकलने पर 'आंशिक कालसर्पयोग' कहा गया है।
1.पूर्ण कालसर्प योग के परिणाम:-मनुष्य की उन्नति में बाधक होता हैं।
2.अर्द्धचंद्र कालसर्पयोग या आंशिक कालसर्पयोग के परिणाम:-मनुष्य को सुख-समृद्धि दिलाता हैं।
कालसर्प योग के प्रकार:-ज्योतिष शास्त्र में 576 प्रकार के कालसर्प योग बताए गए है, जिनमें लग्न से द्वादश स्थान तक मुख्यतः बारह प्रकार के सर्प योग इस प्रकार है-
राशिचक्र में बारह राशियां होती हैं और लग्न भी बारह ही होते हैं। इस तरह मेषादि द्वादश लग्न बारह प्रकार के कालसर्प योग का निर्माण करती हैं। कालसर्प दोष भिन्न-भिन्न योगों के आधार पर कुल 288 प्रकार के कालसर्प योग निर्मित हो सकते हैं। इस तरह जन्मकुण्डली प्रमुख रूप से भाव के आधार पर कालसर्प योग बारह प्रकार के होते हैं, जिनके नाम एवं प्रभाव निम्नानुसार हैं-
1.अनन्त कालसर्प योग।
2.कुलिक कालसर्प योग।
3.वासुकी कालसर्प योग।
4.शंखपाल कालसर्प योग।
5.पद्म कालसर्प योग।
6.महापद्म कालसर्प योग।
7.तक्षक कालसर्प योग।
8.कर्कोटक कालसर्प योग।
9.शंखनाद कालसर्प योग।
10.पातक कालसर्प योग।
11.विशाक्त कालसर्प योग।
12.शेष नाग कालसर्प योग कहे जाते हैं।
1.अनन्त कालसर्प योग:-जब जन्मकुंडली के लग्न में राहु ग्रह और सातवें घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को अनन्त कालसर्प योग कहते हैं।
अनन्त कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले बुरे असर:-निम्नलिखित हैं-
◆मनुष्य मानसिक रूप से बैचेनी एवं अस्थिरता से जीवन को जीना पड़ता है।
◆मनुष्य लगातार अपने जीवन में अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख पाने से गलत-सही के बीच फंसा रहता हैं।
◆मनुष्य के गृहस्थी जीवन और दाम्पत्य जीवन पर बुरे असर पड़ते हैं।
◆मनुष्य के सोचने-समझने एवं निर्णय लेनी की शक्ति कमजोर पड़ जाती हैं, जिससे वह दूसरों के साथ छलपूर्ण आचरण के द्वारा नुकसान पहुँचाने वाला बन जाता हैं।
◆मनुष्य को अपने परिवार के सदस्यों से नुकसान को भोगना पड़ता है।
◆मनुष्य अपनी इज्जत को स्वयं उछालने लग जाता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा अपने जीवन क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश करता हैं, लेकिन उसके बनते हुए कार्यों को अपनी गलती से बिगाड़ देते हैं।
◆मनुष्य को अपना जीवन संघर्ष के साथ व्यतीत करता हैं।
◆मनुष्य को अपनी मेहनत का फल नहीं मिलता हैं।
2.कुलिक कालसर्प योग:-जब जन्मकुंडली के दूसरे घर में राहु ग्रह और आठवें घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को कुलिक कालसर्प योग कहते हैं।
कुलिक कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले अच्छे-बुरे असर:-निम्नलिखित हैं-
◆मनुष्य का शरीर कमजोर होकर मांदगी के द्वारा घिर जाता हैं।
◆मनुष्य को रुपये-पैसों को तंगी होने लग जाती हैं, जिससे उसको दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ता हैं।
◆मनुष्य को अपने भाई-बहिन, परिजनों एवं पारिवारिक सदस्यों के कारण कष्ट होता हैं।
◆मनुष्य स्वभाव से क्रोधित हो जाता हैं, जिससे उसकी वाणी से कड़वे या कठोर वचन निकलते हैं, जो दूसरों को ठेस पहुँचाने वाले होते हैं। इस तरह कठोर वाणी बोलने से दूसरों से मतभेद एवं लड़ाई-झगड़े होने लग जाते हैं।
◆परिवार के सदस्यों का साथ नहीं मिलता हैं और परिवार वाले उसकी मदद करने से कतराने लगे जाते हैं।
◆मनुष्य को अपने कार्य क्षेत्र की जगह में भी बदलाव और मुसीबतों का सामना करना पड़ता हैं।
◆मनुष्य को भाग्य का साथ नहीं मिलता हैं, भाग्योदय में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे उसे अपनी इच्छाओं के फलस्वरूप पूर्ण अच्छे फलों की प्राप्ति नहीं होती हैं।
◆मनुष्य को यश, मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा नहीं मिलती हैं तथा प्रतिष्ठा पाने के लिए हमेशा कोशिश करते हैं।
◆मनुष्य अच्छा कार्य करते हैं, तब भी बदनामी को सहन करना पड़ता हैं।
◆मनुष्य को अपने भागेदारी में नुकसान भोगना पड़ता है।
◆मनुष्य की उम्र बढ़ने लगती हैं, विवाह उम्र बढ़ने से विवाह में देरी होती हैं और विवाह हो भी जाता हैं तब तलाक तक नौबत आ जाती हैं।
3.वासुकी कालसर्प योग:-जब जन्मकुंडली के तीसरे घर में राहु ग्रह और नवें घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को वासुकी कालसर्प योग कहते हैं।
वासुकी कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले शुभ-अशुभ असर:-निम्नलिखित हैं-
◆मनुष्य को अपने परिवार के सदस्यों और भाई-बहिनों की ओर से परेशानी रहती हैं।
◆मनुष्य को अपने कार्य करने की जगह पर बिना मतलब की परेशानी रहती हैं।
◆मनुष्य के जीविकोपार्जन धंधे या वेतन के रूप में कार्य क्षेत्र में बाधाओं का सामना करना पड़ता हैं।
◆मनुष्य का ईश्वर, परलोक आदि के संबंध में विशेष प्रकार के विश्वास और उपासना पद्धति के प्रति विश्वास नहीं होता हैं।
◆मनुष्य को अपने निकट के सदस्यों के कारण बिना मतलब की परेशानी को भोगना पड़ता है।
◆मनुष्य के द्वारा कड़ी मेहनत करने पर भाग्य का साथ नहीं मिलने से उचित फल नहीं मिलता हैं।
◆मनुष्य को अपने दोस्तों के द्वारा छल मिलता हैं।
◆मनुष्य को बात-बात पर कायदे-कानून दुहाई देने वालों के द्वारा रुकावटें आदि बातें देखने को मिलती हैं।
◆मनुष्य को कानूनी दस्तावेजों के कारण दुःख का सामना करना पड़ता है।
◆जातक धन को जरूर कमाता है, किंतु कोई-न-कोई बदनामी उसके साथ जुड़ी रहती हैं।
◆मनुष्य यश, पद, प्रतिष्ठा पाने के लिए बहुत ही मेहनत करनी पड़ती हैं।
4.शंखपाल कालसर्पयोग:-जब जन्मकुंडली के चोथे घर में राहु ग्रह और दशवें घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को शंखपाल कालसर्प योग कहते हैं।
शंखपाल कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले शुभ-अशुभ प्रभाव:-निम्नलिखित हैं।
◆जातक के समस्त तरह के सुखों में कमी होती है तथा इस कारण उसे जीवनपर्यन्त संघर्ष करना पड़ता है।
◆जातक को माता, वाहन, नौकर, चल-अचल सम्पत्ति सम्बन्धी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
◆मनुष्य जिस स्थान पर वेतन के रूप में कार्य करता हैं, उस स्थान पर उसे रुकावटें आने लगती हैं।
◆मनुष्य को बिना वजह से नुकसान भोगना पड़ता हैं।
◆कार्य-व्यवसाय में अनेक उतार-चढ़ाव सहन करने पड़ते हैं।
◆वाहन एवं भृत्यों तथा कर्मचारियों को लेकर कोई-न-कोई समस्या हमेशा आती है।
◆इंसान को अनेक स्थानों पर दूसरों के द्वारा अपने स्वार्थवश विश्वासघात का सामना करना पड़ता है।
◆महिला जातिका की पिता तथा पति की तरफ से चिंताजनक स्थिति होती हैं।
◆छात्रवृत्तिधारी को अध्ययन एवं शिक्षा से प्राप्त ज्ञान को पाने रूकावटों को झेलना पड़ सकता हैं
◆मनुष्य के हालात रुपयों-पैसों से बहुत खराब हो जाते हैं, जिससे वह अपने लिए उधार के रुपयों-पैसों को नहीं चुका पाने से कंगाल बन जाता हैं।
5.पद्म कालसर्पयोग:-जब जन्मकुंडली के पांचवें घर में राहु ग्रह और ग्याहरवें घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को पद्म कालसर्प योग कहते हैं।
पद्म कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले शुभ-अशुभ प्रभाव:-निम्नलिखित हैं।
◆छात्रवृत्तिधारी को अध्ययन एवं शिक्षा प्राप्ति में अनेक तरह की रुकावटें अति हैं, जिससे छात्रवृत्तिधारी की शिक्षा भी पूर्ण नहीं हो पाती हैं।
◆मनुष्य की सोचने-समझने एवं निश्चय करने की निर्णय शक्ति कमजोर पड़ने से भ्रम में फँसा रहता हैं।
◆मनुष्य को शासन से संबंधित सजा को भी भुगतना पड़ता है।
◆मनुष्य को पुत्र व सन्तान सुख में कमी या सन्तान का दूर रहना अथवा अलग रहने के दुःख को शान्त करना पड़ सकता हैं।
◆मनुष्य की पीठ पीछे षड्यंत्र करने वाले एवं प्रगति से जलने वाले दुश्मन बढ़ते जाते हैं।
◆जातक जिन पर ज्यादा विश्वास करता हैं, वे ही उसके विश्वास को दगा देते हुए उसके भरोसे का गलत कार्यों में उपयोग लेते हैं, जिसकी वजह से उसे नुकसान को भोगना पड़ता हैं।
◆मनुष्य के जननेन्द्रियों की जगह हुए संक्रामक व्याधियों से लगातार पीड़ा भोगनी पड़ती हैं। इलाज कराने पर ठीक नहीं होने वाली व्याधि भी हो सकती हैं। इलाज कराने में बहुत अधिक रुपये-पैसे को खर्च भी होता हैं।
◆मनुष्य प्यार संबंध के मामलों दूसरों के साथ धोखा-छल के द्वारा खिलवाड़ करते हैं।
◆मनुष्य को अपने परिवार-कुटुम्ब में अच्छा करने पर रुसवाई मिलती हैं।
◆मनुष्य को अपने जीवन साथी और दोस्तों के द्वारा समय पर साथ नहीं देकर अनैतिक आचरण एवं आश्वासन देकर बात से मुकर जाने वाले होते हैं।
◆मनुष्य जिन पर सबसे अधिक भरोसा करते हैं, वे ही उंसके साथ छल करते हैं।
◆मनुष्य को किसी हादसे में हाथों को तकलीफ हो सकती हैं।
◆जातक को किसी भी जगह पर फायदा पाने में मुश्किलें आती हैं।
◆मनुष्य यदि सट्टा, लॉटरी, जुआ का शौकीन हो तो इसमें सर्वस्व स्वाहा होने में देर नहीं लगती।
◆मनुष्य सभी तरह से आराम के हालात में होने पर कार्य को करने कोशिश के हाथ डालते हैं, तो उसको मन के मुताबिक कामयाबी नहीं हैं और असफलता ही हाथ लगती हैं।
◆मनुष्य अपने जीवन में निरन्तर चिंता एवं कष्ट के कारण मेहनत करने में लगा रहता हैं और जीवन ऐसे ही बिताता है।
6.महापद्म कालसर्पयोग:-जब जन्मकुंडली के छठे घर में राहु ग्रह और बारहवें घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को महापद्म कालसर्प योग कहते हैं।
महापद्म कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले शुभ-अशुभ प्रभाव:-निम्नलिखित हैं
◆जातक को देह से संबंधी व्याधियाँ अपने घेर लेती हैं, जिसके फलस्वरूप वह चिकित्सालय में भी भर्ती रह सकता है। कोशिश करने पर भी बीमारी से छुटकारा नहीं मिलता।
◆जातक उदर विकार, किडनी एवं पेट से सम्बन्धित अनेक रोगों से ग्रस्त रहता हैं।
◆जातक को अपनी भार्या से मतभेद एवं कहासुनी या दूसरी वजह से अलग होने के दुःख सहन करना पड़ता हैं
◆जातक के चाल-चलन एवं आचरण में गिरावट आने लगती हैं।
◆जातक ईर्ष्या करने वाले दुश्मन पीठ के पीछे साजिश की योजना करते रहते हैं, जिससे जातक उन दुश्मनों से दुःखी रहते हुए हर बार उनसे पराजय की आशंका भी तीव्र होती हैं।
◆जातक को एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए सफर की अधिकता रहती है।
◆मनुष्य जीवनकाल में रुपये-पैसों और जीविकोपार्जन के साधन के हमेशा दिन-रात दौड़-धूप करता रहता हैं।
◆मनुष्य के मन में नकारात्मक के भाव उत्पन्न होने से मन का बल कमजोर पड़ जाता हैं।
◆जातक को प्रतिक्षण डर बना रहता हैं, उसके विरुद्ध कोई कानूनी शिकायत नहीं कर दें, जिससे उसे जेल की हवा खाने का डर सताता रहता है।
◆यह योग जातक को बहुत अच्छा या बहुत ज्यादा बुरा फल देता है।
7.तक्षक कालसर्पयोग:-जब जन्मकुंडली के सातवें घर में राहु ग्रह और पहले घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को तक्षक कालसर्प योग कहते हैं।
तक्षक कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले बुरे असर:-निम्नलिखित हैं
◆तक्षक कालसर्प योग का असर जातक का वैवाहिक जीवन पर सबसे ज्यादा पड़ने से पति-पत्नी एक दूसरे से खिंचे-खिंचे रहते हैं।
◆जीवन भर साथ निभाने वाले पति-पत्नी को एक -दूसरे से अलग होने का दुःख भोगना पड़ता हैं।
◆जातक को इलाज से ठीक नहीं होने वाली बीमारियों से जूझना पड़ता है।
◆जातक को जननेन्द्रियों से सम्बंधित रोग से कष्ट होता हैं।
◆जातक को दुश्मनों के द्वारा हमेशा दुःख और नुकसान उठाना पड़ता हैं।
◆जातक या जातिका का चाल-चलन और आचरण ठीक नहीं होने से वे दूसरे पुरुष या स्त्री के बीच मर्यादा से विपरीत अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाले होते हैं। जिससे उनका भेद खुलने पर उनका दाम्पत्य जीवन में उथल-पुथल मच जाती हैं और तलाक तक कि नौबत बन जाती हैं।
◆मनुष्य को प्रेम प्रसंग के मामलों में भी नाकामयाबी हाथ आती हैं।
◆मनुष्य को कानूनी कारवाई से गुजरना पड़ सकता हैं और कारावास के भी दर्शन करने पड़ सकते हैं।
◆जातक को मानसिक परेशानी का कोई-न-कोई कारण उपस्थित होता रहता हैं।
◆जातक अपनी मेहनत एवं पैतृक भाग्य से प्राप्त धन-दौलत, जमीन-जायदाद को लंबे समय स्थिर नहीं रख पाता हैं या तो वह उसको खर्च कर देता हैं या फिर वह किसी को दान में दे देता हैं।
◆जातक अपनी जीविकोपार्जन के खरीदने-बेचने के काम में बार-बार बदलाव करता रहता हैं।
◆मनुष्य अपने कार्य क्षेत्र की जगह में तरक्की के बहुत हाथ-पैर पटकता हैं, लेकिन उसको बाधाएँ आती रहती हैं।
◆जातक गलत व बुरे कार्यों को करने वाले दोस्तों से दोस्ती रखता हैं, तब उन गलत एवं बुरे दोस्तों के रास्तों पर चलने से उसे जलील होना पड़ता हैं और नुकसान उठाना पड़ सकता हैं।
8.कर्कोटक कालसर्पयोग:-जब जन्मकुंडली के आठवें घर में राहु ग्रह और दूसरे घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को कर्कोटक कालसर्प योग कहते हैं।
कर्कोटक कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले अच्छे-बुरे असर:-निम्नलिखित हैं।
◆जातक अधिक व्याधियों से घिरा रहता हैं और वे व्याधियां उसका पीछा नहीं छोड़ती हैं।
◆जातक को व्याधियों से मुक्ति के लिए चीड़फाड़ का इलाज भी करवाना पड़ सकता हैं।
◆जातक को दुर्घटना का भय बना रहता हैं और दुर्घटना से कष्ट उठाना पड़ सकता हैं।
◆जातक को बाहरी हवा एवं नकारात्मक शक्तियां जैसे-टोन-टोटके, भूत-प्रेत आदि बाधाओं की पीड़ा भी सहन करनी पड़ सकती हैं।
◆जातक को उम्र से पहले होने वाली मृत्यु के योग बन सकते हैं।
◆जातक को जहर का प्रकोप भी हो सकता हैं।
◆मनुष्य अपनी बोली पर अंकुश नहीं रखने से उसके बहुत सारे दुश्मन बनते जाते हैं।
◆जातक जी तोड़कर मेहनत को लगन से करता हैं, लेकिन उस मेहनत का उचित नतीजा नहीं मिल पाता हैं।
◆खानदान में अच्छे एवं भलाई के कार्य करने पर भी बदनामी मिलती हैं।
◆परिवार के सदस्यों जैसे-पत्नी, पुत्र, पुत्री के द्वारा जो आवश्यक आदर एवं इज्जत मिलनी चाहिए वह उसे नहीं मिलती हैं।
◆जातक के जीवन में मुसीबतों का चोली-दामन का साथ बना रहता हैं, एक बार मुसीबत शुरू होने के बाद पीछा नहीं छोड़ती।
◆जातक पर किसी भी अपराध का दोष लगने से कार्यक्षेत्र की जगह से उसे निकाल दिया जाता हैं।
◆जातक को किसी संस्था या कार्यालय में वेतन पर काम करने की जगह पर काम नहीं मिलता हैं या काम मिलता हैं, तो वहां पर कार्य करने वाले वालों के बीच क्लेश या बोलचाल के कारण परेशानी उठानी पड़ती हैं या बार-बार कार्यक्षेत्र की जगह से हाथ धोना पड़ता हैं।
◆मनुष्य अपने कार्यक्षेत्र की जगह के अधिकारियों से मतभेद कर लेता हैं, जिससे उसे ऊँचे पद से हटाकर नीचे पद पर कार्य करना पड़ता हैं।
◆मनुष्य दोस्तों के साथ रहने से उनके किये गये कार्यों के बुरे नतीजों के द्वारा नुकसान को भोगना पड़ सकता हैं।
◆मनुष्य के साथ हिस्सेदार में काम करने वाले के द्वारा छल करके विश्वासघात मिलता हैं।
◆जातक की किस्मत साथ नहीं देती हैं और जिससे वह निराश हो जाता हैं।
◆मनुष्य के पिता की सेहत का बार-बार खराब होने से पिता की चिंता बनी रहती हैं।
◆पारिवारिक विवाद के कारण मन दुःखी रहता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा दूसरे किसी को भी उसकी सहायता के लिए दिए गए रुपये-पैसे बहुत कोशिश करने पर भी नहीं मिलते हैं और उन दिए हुए रुपये-पैसे से हाथ धोना पड़ता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा खरीदने-बेचने के काम के धंधे के द्वारा कमाये हुए रुपये-पैसों का नुकसान भोगना पड़ता हैं।
9.शंखचूड़ या शंखनाद कालसर्पयोग:-जब जन्मकुंडली के नवें घर में राहु ग्रह और तीजे घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को शंखचूड़ कालसर्प योग कहते हैं। जिससे भाग्य को दूषित करता है।
शंखचूड़ कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले बुरे असर:-निम्नलिखित हैं।
◆जातक को किस्मत का साथ नहीं मिलता और अच्छे समय के आने में बहुत झंझटों का सामना करना पड़ता हैं।
◆मनुष्य किसी संस्था या कार्यालय में वेतन पर काम करने की जगह पर क्रमिक उन्नति में अवरोध आते हैं।
◆मनुष्य की क्रय-विक्रय के धंधे में नुकसान को भोगना पड़ता हैं।
◆पारिवारिक जीवन में अपने सदस्यों से बिना मतलब के आपसी अनबन को भोगना पड़ता हैं।
◆मनुष्य को शारीरिक, भौतिक एवं बौद्धिक ऐशो-आराम में दिनों-दिन कमी देखने को मिलती हैं।
◆मनुष्य जिस जगह पर कार्य करता हैं, उस जगह से उसका आधार छूट जाता हैं।
◆मनुष्य को कोर्ट-कचहरी का डर सताने लग जाता हैं।
◆मातुलपक्ष से किसी बात पर तू-तू मैं-मैं हो जाती हैं।
◆पिता पक्ष से क्षीणता प्राप्त होती हैं।
◆मनुष्य जिस जगह पर कार्य करता हैं, उस जगह के अधिकारियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों से कटुता से पूर्ण कहासुनी हो सकती हैं, जिससे दुश्मनी उत्पन्न होती हैं। राजकीय आदेश कार्यों में रुकावट हो सकती हैं।
10.घातक या पातक कालसर्पयोग:-जब जन्मकुंडली के दशवें घर में राहु ग्रह और चौथे घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को घातक कालसर्प योग कहते हैं।
घातक कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले बुरे असर:-निम्नलिखित हैं।
◆जन्मकुण्डली के दशम भाव से जीविकोपार्जन के पेशे के बारे में जानकारी मिलती है।
◆जातक को खरीदने-बेचने के धंधे में नुकसान को भोगना पड़ता हैं।
◆मनुष्य को अपने पुत्र-पुत्री सन्तान की किसी बीमारी से ग्रस्त होने के कारण वह दुःखी एवं परेशान रह सकता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा किसी दूसरे के साथ मिलकर किये गये हिस्सेदारी के काम में एक-दूसरे के बीच द्वेष की सोच जन्म ले लेती हैं।
◆सरकारी अधिकारी से बिना मतलब की बात का मतभेद होने से दुश्मनी के भाव जन्म लेते हैं।
◆पत्नी और बाल-बच्चों से युक्त मनुष्य को अपने परिवारिक जीवन में बहुत तकलीफ का सामना करना पड़ता हैं।
◆दशम एवं चतुर्थ से माता-पिता के बारे में अध्ययन किया जाता है, अतः राहु की महादशा या अन्तर्दशा में प्रिय जैसे-माता-पिता, दादा-दादी आदि से दूर हो जाने की सम्भावना बनती हैं।
◆माता-पिता के साथ सम्बन्धों की मधुरता को ग्रहण लग जाता है।
◆मनुष्य को शोहरत की प्राप्ति नहीं होती हैं।
◆जातक को हृदयरोग सम्बन्धी चिन्ता बनी रहती हैं।
◆मनुष्य को सरलता से मेहनत करने पर ही किसी भी कार्य में कामयाबी प्राप्त नहीं होती है।
◆मनुष्य के यहां पर वेतन आदि पर काम करने वाले सेवक के द्वारा अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए अनैतिक आचरण के द्वारा छल मिलता हैं।
◆मनुष्य को वाहन हादसे का डर हमेशा मन में सताते रहता हैं, जिससे वह दुःखी रहता है।
◆मनुष्य के द्वारा लगातार मेहनत करने पर उस मेहनत का अपनी इच्छा के अनुरूप फल नहीं मिल पाता है।
11.विषधर या विषाक्त कालसर्पयोग:-जब जन्मकुंडली के ग्याहरवें घर में राहु ग्रह और पांचवें घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को विषधर या विषाक्त कालसर्प योग कहते हैं।
विषधर कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले बुरे असर:-निम्नलिखित हैं।
◆जातक को अपनी जीविकोपार्जन के लिए अपने जन्म स्थान को छोड़कर मजबूरी वश दूर जाकर व रहना पड़ता हैं।
◆जातक को काफी मात्रा में आमदनी होती है, परन्तु उस आमदनी के द्वारा कमाये हुए रुपये-पैसों का अपने जीवन में ठीक तरह से इस्तेमाल में नहीं ले पाता हैं।
◆जातक को अपने भाई-बहनों, सजातीय एवं आत्मीय के साथ आपसी अनबन हो सकती हैं, जिससे उनके बीच के सम्बन्धों में कड़वापन आ जाता हैं।
◆जातक को अपने जीवनकाल में दीर्घ समय तक ठीक नहीं होने वाली व्याधि हो सकती हैं।
◆जातक को नेत्रपीड़ा, हृदय रोग और अनिद्रा रोग आदि की स्थितियाँ बनती हैं।
◆जातक पेट में किसी तरह का दोष से पीड़ित होता हैं और जीवन का अन्त रहस्यात्मक ढंग से होता है।
12.शेषनाग कालसर्पयोग:-जब जन्मकुंडली के बारहवें घर में राहु ग्रह और छठे घर में केतु हो और सभी सातों ग्रह राहु-केतु के बीच बैठे हो, तो तब बनने वाले कालसर्प योग को शेषनाग कालसर्प योग कहते हैं।
शेषनाग कालसर्प योग में जन्म लेने वालों को मिलने वाले शुभ-अशुभ असर:-निम्नलिखित हैं।
◆मनुष्य ने जिस जगह पर जन्म लिया होता हैं, उस जन्मस्थान से दूर रहना पड़ता हैं।
◆मनुष्य अपने जीवल काल में हमेशा आगे बढ़ने एवं अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विकास के लिए स्पर्द्धा करने वाला होता हैं।
◆इंसान के द्वारा आगे बढ़ने की होड़ लगी रहने से उसकी प्रगति करने से सामने की ओर मीठा बोलने वाले और पीछे से आघात करने वाले दुश्मनों की संख्या में इजाफा होता हैं और वे दुश्मन इंसान को एक के बाद एक संकट व कष्ट को बढ़ाने वाले होते हैं। लगातार पीठ के पीछे छिपे हुए दुश्मन बढ़ते जाते हैं।
◆मनुष्य को अपने जीवनकाल में बहुत ज्यादा लोकनिंदा का सामना करना पड़ता हैं।
◆मनुष्य को अपने जीवनकाल में जब तक जीवित रहता हैं, तब तक उसे किसी भी तरह की प्रशंसा नहीं मिलती हैं, जब वह अपने प्राणों को त्याग देता हैं, तब उसकी प्रसंशा होने लगती हैं।
◆मनुष्य को अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किसी भी तरह से उम्मीद की किरण नजर नहीं आती हैं।
◆मनुष्य की आँखों की ज्योति धूमिल होने लगती हैं, जिससे राहत के लिए उसे आँखों की चिर-फाड़ का इलाज करवाना पड़ सकता हैं।
◆मनुष्य का मन हर समय रुपये-पैसों के प्रति बैचेनी में रहता हैं और अपने द्वारा लिए उधार के रुपये-पैसों को उतारने के लिए दिन-रात मेहनत करने पर उन उधारी के रुपये-पैसों को उतारने में कामयाबी नहीं मिलती हैं।
◆मनुष्य को अपने जीवनकाल में न्यायालय के चक्कर काटने पड़ते हैं, जिससे न्यायालय में चल रहे वाद-विवादों पर अपने पक्ष का निर्णय नहीं मिलता हैं और उन वाद-विवादों में मुंह की खानी पड़ती हैं।
◆मनुष्य नींद में अवचेतन अवस्था में बहुत ही बुरे ख्याब आते हैं।
◆मनुष्य निरन्तर दूसरों के द्वारा की गई साजिशों में फंसा रहता हैं।
कालसर्प योग या कालसर्प दोष शांति की पूजा कब और कौनसे शुभ मुहूर्त में करें?:-निम्नलिखित रूप से बताएं गए हैं-
1.जब अमावस्या तिथि का दिन हो और उसी दिन चन्द्रमा आर्द्रा, शतभिषा, आश्लेषा, स्वाति नक्षत्र में अपनी गति से चल रहे हो, तो बहुत बढ़िया रहता हैं।
2.जब चंद्रमा आर्द्रा, शतभिषा, आश्लेषा, स्वाति नक्षत्रों में हों और उसी दिन नागपंचमी हो, तो बहुत अच्छा होता हैं।
3.जब सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण के समय त्रिवेणी संगम जैसे-गंगा, यमुना एवं सरस्वती लगातार बहने वाले नदियों के पानी की दो या दो से अधिक धाराएँ जब मिल रही होती हैं, उस समय कालसर्प योग की शांति करवाई जाने पर अच्छा रहता हैं।
4.शुभ तिथियां:-कालसर्प योग से राहत पाने के लिए एकम, पांचम, सातम,नौंवी, पूर्णिमा और अमावस्या तिथियाँ शुभ तिथियाँ होती हैं।
5.यदि कालसर्प योग के दिन वैधृत, भद्रा, क्षयतिथि, वृद्धि तिथि एवं अधिक मास हो, तो उनको त्याग कर देना चाहिए।
6.कालसर्प दोष शान्ति के लिए शुभ व अशुभ नक्षत्र:-अश्विनी, स्वाति, आर्द्रा, आश्लेषा, मघा, पुष्य, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा नक्षत्र मुख्य रूप से ग्रहण करने योग्य हैं।
अशुभ नक्षत्र:-जब धनिष्ठा नक्षत्र से बनने वाला द्विपुष्कर योग हो, तो उनको ग्रहण नहीं करना चाहिए, क्योंकि इन नक्षत्रों में कालसर्प दोष शांति के लिए ठीक नहीं रहता हैं।
त्रिपाद नक्षत्र:-नक्षत्रों में कृत्तिका, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, उत्तराषाढा, पूर्वाभाद्रपदा आदि को त्रिपाद नक्षत्र कहा जाता हैं, इन नक्षत्रों में कालसर्प दोष की शांति नहीं करनी चाहिए।
6.शुभ-अशुभ वार:-सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार शुभ रहते हैं।सभी वारों में बुधवार को सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि "राहु दोषं बुंधोहन्यात" सूत्र के अनुसार कालसर्पयोग शांति के लिए बहुत अच्छा माना गया है।
अशुभ वार:-रविवार, मंगलवार, शनिवार के दिन कालसर्पयोग की शांति नहीं करनी चाहिए।
7.कालसर्प दोष से राहत के लिए पूजा आश्विनी या शारदीय या चैत्रीय नवरात्रि के नौ दिनों में करना बहुत बढ़िया रहता हैं।
◆जब पंचमी या नवमी तिथि के दिन आश्लेषा नक्षत्र हो, तो भी बहुत अच्छा रहता हैं।
◆जब गोचर कुण्डली में राहु-केतु जिस दिन गोचर में वापस आकर कालसर्प दोष को बनाते हो, राहु जिस नक्षत्र में हो, वह दिन उत्तम रहता हैं।
8.शुभ-अशुभ पक्ष विचार:-जब कालसर्प दोष की शांति कराते समय ताराबल के बारे में बदी या कृष्ण पक्ष में और चन्द्र बल के बारे में शुदी या शुक्लपक्ष में आवेशय देखकर पूजा करनी चाहिए
9.ब्राह्मण को अपनी पूजा एवं यज्ञ कराने वाले यजमान मनुष्य के कालसर्प दोष की शांति कराने के दिन उसकी राशि के अनुसार घात चन्द्र, घात तिथि, घात महीना का जरूर विचार करके ही पूजा करनी चाहिए।
10.जब संयोगवश सोमवार के दिन पंचमी या सोमवती अमावस्या होने पर बहुत बढ़िया रहता हैं।
11.पंचांगों में सभी विषयों के मुहूर्त दिए होते हैं, उन मुहूर्तों में से जो कालसर्प योग के मुहूर्त मिल रहे होते हैं, उन मुहूर्तों का विचार करके ही कालसर्प योग की शांति किसी योग्य ब्राह्मण या पण्डित से करवानी चाहिए।
12.कालसर्प योग दोष के बुरे प्रभाव से मुक्ति के लिए नागपंचमी और शिवरात्रि का दिन पूजा एवं हवन करने के लिए सबसे अच्छा होता हैं।
विशेष ध्यान देने वाले निर्देश:-निम्नलिखित हैं-
◆जब मनुष्य के निवास स्थान में किसी भी तरह कोई भी मांगलिक या ईश्वर, परलोक आदि के संबंध में विशेष प्रकार के विश्वास और उपासना पद्धति के कार्य किये गए हो, तो मनुष्य को कालसर्प योग शांति पूजा, नागबली पूजा एक वर्ष तक नहीं करनी चाहिए।
◆जब मनुष्य की पत्नी के गर्भ में बच्चा हो, तो उस मनुष्य को कालसर्प योग दोष से राहत के लिए कम से कम छः माह तक कालसर्प योग शांति को नहीं करना चाहिए।
◆जब मनुष्य बहुत जमघटो मनुष्यों के साथ कोई कार्य करने की दृढ़ प्रतिज्ञा से बन्धित होने पर कालसर्प योग दोष शान्तिकर्म नहीं करना चाहिए।
◆जब मनुष्य को सहसा ही पवित्र पौराणिक महत्व के कोई पुण्य स्थान को जाने पर शान्तिकर्म नहीं करना चाहिए।
◆जब मनुष्य या उसके परिवार के सदस्यों में से किसी की सेहत कमजोर होकर मांदगी होने पर कालसर्प योग दोष शांति नहीं करना चाहिए।
◆जब नींद में सोते समय बार-बार अनिष्टकारी स्वप्नों के आने पर शांति कर्म करना चाहिए।
◆जब जीवनकाल में एकाएक सोचा नहीं था कि कोई संकट आ सकता हैं, उस स्थिति में शांति कर्म करें।
◆जब मनुष्य को पहले से ही आभास हो जावें की उसको किसी तरह बुरे समाचार या बुरा होने वाला हैं, तब मनुष्य को कालसर्प योग दोष की शांति के लिए विशेष मुहूर्त की किसी भी तरह से आवश्यकता नहीं होती हैं, उस समय शान्तिकर्म कर सकते हैं।
कालसर्प योग या कालसर्प दोष शांति की पूजा सामग्री:-कंकु, लच्छा, गुलाल, अबीर, केसर, चन्दन, हल्दी, सिंदूर, कपूर, नारियल 15 नग, सुपारी 250 ग्राम, लाल वस्त्र एक मीटर, काला कपड़ा एक मीटर वस्त्र नये जिसको पहनकर पूजा करनी है एवं अभिषेक के बाद दान करना हैं, दूध, दही, शहद, खारक 21 नग, आसन, सर्प की बांबी की मिट्टी, अखरोट 250 ग्राम, इलायची 30 ग्राम, बादाम 100 ग्राम, किशमिश 100 ग्राम, अंजीर 100 ग्राम, काजू 150 ग्राम, पिस्ता 150 ग्राम, मिश्री 250 ग्राम, जनेऊ 11 नग, लौंग 50 ग्राम, गुड़ 500 ग्राम, सफेद वस्त्र एक मीटर, कालसर्प अंगूठी, तांबे के लोटे 12, धोती एक नग, कम्बल एक नग, सोने का सर्प एक, चांदी के सर्प दो, सप्तधातु के सर्प दो, कांसे के सर्प दो, सीसे के सर्प दो, साबूत मूँग एक किलो, चार रास्ते की मिट्टी, राजद्वारे की मिट्टी, गंगाजल, मिठाई, ताँबे का सर्प बड़ा, नागपाश यन्त्र, पुष्पमाला, दुर्वा, बिल्वं पत्र, यज्ञ समिधा, पलाश, पीपल, अशोक, खेजड़ी, बिच्छुझाडां, दुर्वा, कुश, आरणिया छाणा, रुई, माचिस, अगरबत्ती, राहु की मूर्ति, केतु की मूर्ति, लकड़ी के बाजोट, पूजन थाली, होम पूड़ा एक, चंदन चूरा, साबूत उड़द एक किलो, ज्वार एक किलो, अष्टगंध, मालिपन्ना, कोड़िया नौ, ऋतुफल, गणपति मूर्ति, पीताम्बर एक, पंचगव्य, पंचरत्न, घी एक किलो, टवाल, पंच पात्र-ताम्बे के, चावल सवा किलो, गेहूँ सवा किलो, उड़द सवा किलो, तिल आधा किलो, जौ पाव भर, अगर, तगर, धूपबत्ती, धूप, कमलगट्टा आदि।
कालसर्प योग शांति के लिए पूजा विधि:-कालसर्प योग दोष से ग्रसित मनुष्य को निम्नलिखित तरह से पूजा करनी चाहिए।
◆मनुष्य को पूजा करने से सबसे पहले गंगा पूजन करना चाहिए।
◆उसके बाद स्नान करके स्वच्छ या साफ-सुथरे वस्त्र को धारण करना चाहिए।
◆फिर गणपति स्मरण करना चाहिए।
◆अथ प्रधान संकल्प करना चाहिए।
◆अथ दिगरक्षणम् करना चाहिए।
◆अथ प्रतिष्ठापनम् करना चाहिए।
◆इति वरुणं सम्पूज्य करना चाहिए।
◆कलश प्रार्थना करना चाहिए।
◆अथ पवित्रीकरणम् करना चाहिए।
◆अथ दीप पूजनम्।
◆दीप प्रार्थना।
◆अथ शङ्खपूजनम्।
शङ्खप्रार्थना।
◆अथ वैदिक शिव पंचायतन पूजनम्।
ब्राह्मण वरण का संकल्प।
◆गणेशजी का मंत्र।
◆पार्वती का मंत्र।
◆नवग्रह मण्डल पूजनम्।
◆नवग्रह प्रार्थना।
◆अधिदेवता और प्रत्यधिदेवता का स्थापन।
◆पञ्च लोकपाल पूजा।
◆दश दिक्पाल पूजा।
◆चतुःषष्टियोगिनी पूजन।
◆यजमान द्वारा रक्षाबन्धन।
◆यजमान द्वारा तिलक।
◆आचार्य द्वारा रक्षाबन्धन।
◆आचार्य द्वारा तिलक।
◆अथ मातृकास्थापनं पूजनम्।
◆नन्दीश्वर पूजन।
◆वीरभद्र पूजन।
◆कार्तिकेय पूजन।
◆कुबेर पूजन।
◆कीर्तिमुख पूजन।
◆सर्प मंत्र।
◆शिव पूजन।
◆ध्यानम्।
◆आसनम्।
◆पाद्यम्।
◆अर्घ्यम्।
◆आचमनम्।
◆स्नानम्।
पयःस्नानम्।
दधिस्नानम्।
घृतस्नानम्।
मधुस्नानम्।
शर्करास्नानम्।
पञ्चामृत स्नानम्।
गन्धोदकस्नानम्।
शुद्धोदकस्नानम्।
◆आचमनीजलम्।
◆अभिषेक मन्त्राः।
◆वस्त्रम्।
◆यज्ञोपवीतम्।
◆उपवस्त्रम्।
◆गन्धम्।
◆सुगन्धि द्रव्य।
◆अक्षतान्।
◆बिल्वपत्र।
◆नानापरिमलद्रव्याणि।
◆धूपम्।
◆दीपम्।
◆नैवेद्यम्।
◆करोद्वर्तनम्।
◆ऋतुफलम्।
◆ताम्बूल-पूंगीफलम्।
◆दक्षिणम्।
◆आरर्तिक्यम्।
अथ हवन क्रम:-को निम्नलिखित विधि से करना चाहिए।
1.कुश कण्डिका।
2.गणपति आहुति।
3.अम्बिका आहुति।
4.षोडश मातृका हवनम्।
5.सप्तघृत मातृका हवनम्।
6.पञ्च ओंकार हवनम्।
7.सर्वतो भद्र।
8.ग्रहादि होमः।
9.अथाधि देवता होमः।
10.प्रत्यधि देवता होमः-क्षेत्रपाले (योगिनी ६४)
11.नक्षत्र।
12.योग।
13.पंचलोकपाल।
14.दश दिग्पाल। इसके बाद प्रधान होमः।
15.फिर उत्तर पूजन और बलिदान।
16.मन्त्र पुष्पाञ्जंलि।
17.प्रदक्षिणा।
18.नागसहस्त्रनामावलि।
कालसर्प योग दोष शांति हवन में लगने वाला समय:-कालसर्प योग दोष का निवारण करने के लिए पूजा करने के बाद निम्नलिखित विधि से हवन करने में कम से कम तीन घंटे का समय लगता हैं।
कालसर्प योग में पूजन विधि:-कालसर्प योग के बुरे प्रभाव से बचने के लिए निम्नलिखित विधि और उपाय को करना चाहिए-
◆यदि कालसर्प योग के कारण बाधा-परेशानियां हैं और योग से पीड़ित मनुष्य को नाग पंचमी के दिन स्वर्ण-रजत धातु की या गेंहू के आटे की सर्पाकृति बनानी चाहिए।
◆फिर उस बनी हुई सर्पाकृति को एक मिट्टी के कलश पर रखना चाहिए।
◆फिर सर्पाकृति को कलश पर रखने के बाद में विधिपूर्वक नाग देवता की पूजा करनी चाहिए।
◆नाग पंचमी के दिन नाग प्रतिमा पर कच्चा दूध अर्पित करते हुए पूजा करें।
◆इस पर्व पर सर्पों को दूध से स्नान करवाने और पंचोपचार के बाद दूध पिलाने से एवं वासुकीकुण्ड में स्नान करने से विष व्याधियों का शमन होता हैं।
◆नागराज को सुंगधित पुष्प एवं दूध बहुत ही प्रिय होता हैं।
◆इसलिए नागदेवता को दूध से निर्मित नैवेद्य को चढ़ाना चाहिए।
◆अपने गृह के दरवाजे के दोनों ही तरफ गोबर के सर्प बनाकर दही, दूब, कुशा, गंध, अक्षत, फूल, लड्डू और पुआ से पूजन करने तथा व्रत करने से कभी घर-परिवार में सर्पों का भय नहीं रहता है।
कालसर्प योग से मुक्ति के उपाय:-नाग पंचमी के दिन नाग देवता के बारह स्वरूपों की पूजा करनी चाहिए। जिन मनुष्यों की जन्मकुंडली में कालसर्प योग हो, उन मनुष्यों को नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा और उपाय करने चाहिए, जिससे कालसर्पयोग के बुरे प्रभाव से राहत मिल जावें और लाभ मिल जावें। कालसर्प योग है दोष नहीं हैं। इससे डरें नहीं मनुष्य को कालसर्प योग से पीड़ित हो तो उनको इसके निदान के लिए निम्नलिखित उपायों करना हित होना संभव है-
◆प्रतिदिन सर्प सूक्त का पाठ करना चाहिए।
◆इसी क्रम को प्रत्येक महीने की पंचमी के दिन करने से अधिक फायदा मिलता हैं।
◆नागनुमा या सर्प अंगूठी बनवाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर उसे धारण करें।
◆नाग पंचमी को संभव हो, तो सपेरे द्वारा पकड़े गए एक नाग बंधन या सर्प को बन्धन मुक्त करवाएं।
◆कालसर्प योग निवारण के लिए कालसर्प शांति विधान करवा लें।
◆भगवान शिव का एवं नित्य पार्थिवेश्वर पूजन रुद्राभिषेक सहित पांच साल तक करें।
◆शिव उपासना एवं निरन्तर रुद्रयुक्त से अभिमन्त्रित जल से स्नान करने से भी यह योग कमजोर हो जाता है। संकल्प लेकर रुद्राभिषेक करने से भी लाभ मिलता हैं।
◆कालसर्प योग का सर्वमान्य शान्ति-उपाय रुद्राभिषेक हैं। श्रावण मास में अवश्य नियमित करें।
◆श्रावण मास में लघुरुद्र या महारुद्र के आवर्तन अपने ब्राह्मण से करवा लें।
◆शिवपूजन, सोमवार के दिन शंकरजी को लघुरुद्र, महारुद्र करके अभिषेक करें।
◆शिवलिंग पर मिसरी एवं दूध अर्पित करें।
◆शिवताण्डवस्तोत्र का नियमित पाठ करें।
◆कालसर्प योग दोष से मुक्ति के लिए पंचाक्षर मन्त्र 'ऊँ नमः शिवाय' नियमित जप करें।
◆कालसर्प योग दोष की शांति मन्त्र:-उम्र के पूर्ण होने से पूर्व मरण से बचने के लिए, जन्मकुण्डली में मारक भाव के स्वामी की दशा और जो इलाज से बीमारी ठीक नहीं होती हैं, उन सब से राहत के लिए महामृत्युंजय मंत्र-
ऊँ हौं जूं सः ऊँ भूर्भुवः स्वः।
ऊँ त्र्यम्बंक यजामहे सुगंन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमि्व बंधानान्ममृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
स्वःर्भुवः ऊँ। सः जूं हौं ऊँ।
का विधिविधान पूर्वक सवा लाख संख्या में जप के रुप में मानसिक वांचन करने से फायदा होता हैं।
◆कालसर्प योग दोष की शांति के लिए महामृत्युंजय नीलकंठ स्तोत्रम् का एक हजार आठ की संख्या में नियमित रूप वांचन करने से लाभ मिलता हैं।
◆कालसर्प योग दोष से मुक्ति के लिए नवनाग स्तोत्र' रोज 9 बार पढ़ें।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धृतराष्ट्रां तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
◆प्रतिवर्ष किसी शिव मन्दिर में नाग पंचमी के दिन को विशेष रूप से सुफल और सफलता के लिए देवी-देवता की अराधना ब्रह्म मुहूर्त में ताम्र धातु या रजत धातु का सर्प बनवाकर उसकी शास्त्रों में बताई हुई विधि से पूजा करके शिवलिंग पर चढ़ाएं एवं चढ़ाने से पूर्व ध्यान रखना चाहिए कि कोई नहीं देखे और चढ़ाने से पूर्व एक रात उसे घर में ही रखें। एक सर्प सर्पिणी को पानी में छोड़कर आवे इससे जातक को खूब लाभ मिले।
◆किसी भी सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण के दिन चांदी के सर्प, सर्पिणी को एक मिट्टी के बर्तन में शहद से भरकर बहते पानी में बहावे।
◆चंदन की लकड़ी के छोटे चौकोर टुकड़े पर चांदी का एक नाग का जोड़ा बनवाकर जड़वा लें, फिर पूजा करके यह ताबीज गले में बांध लें।
◆चांदी की नाग प्रतिमा बनवाकर रोजाना उसका अभिषेक और पूजन करना चाहिए। अभिषेक का जल नित्य ग्रहण करना चाहिए।
बहते जल में विधान सहित पूजन कर दूध से पूरित कर चाँदी के नाग-नागिन के जोड़े को नदी या बहते पानी में प्रवाहित करें।
◆लोहे के सर्प या नाग-नागिन का जोड़ा नदी या बहते पानी में प्रवाहित करें।
◆पलाश के फल-फूल, गौमूत्र में कूटकर उसके चूर्ण बनाकर नित्य स्नान करने से भी यह योग खत्म हो जाता है।
◆पलाश के फल-फूल, समिधा का रविपुष्य, सोमपुष्य के दिन हवन करने से भी लाभ मिलता हैं।
◆यजमान के जन्मदिवस पर एक सर्प सर्पिणी बहते पानी में विसर्जन करने से उत्तम लाभ मिलता हैं।
◆हर बुधवार को काले वस्त्र में उड़द एक मुट्ठी डालकर, राहु के मंत्र जपकर के किसी भी भीख मांगने वाले को देवें। अगर दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में विसर्जन करें। इस प्रकार हर बुधवार करने से पूर्ण फायदा मिलेगा।
◆सप्तधातु के सर्प के मुँह की आकृति की अंगूठी प्राण प्रतिष्ठित करवाकर बुधवार के दिन सूर्योदय होते ही पहनें। जिस दिन धारण करें उस दिन राहु के दान करें चमत्कारी लाभ मिले।
◆बुधवार के दिन नाग सहस्त्रनामावली निरन्तर पढ़ने से चमत्कारी फल मिलता है।
◆सर्पयुक्त का निरन्तर पाठ करने से भी यजमान को महत्त्वपूर्ण फल मिलता हैं।
◆नागपंचमी को नागावली नारायण नागावली का जप करें।
◆किसी भी शिवमंदिर में रुद्राभिषेक करवाकर नागबलि, नागसहस्त्रावलि से हवन करवाने से अति उत्तम फल मिलता हैं।
◆नारायणवली करवाने एवं किसी त्रिवेणी संगम पर स्नान करने से भी कालसर्प शांति होती है।
◆गुरुवार को सूर्यास्त के समय यजमान के शरीर के बराबर कच्चे कोयले पर "ऊँ रां राहवे नमः" मंत्र का उच्चारण करके बहाने से उत्तम लाभ मिलता हैं।
◆सप्तधातु का नाग बनाकर पीपल के पेड़ पर जनेऊ से बांधने पर तुरन्त फायदा मिलता हैं।
◆घर व कार्यालय में मोर पंख रखें व कलसर्प निदान के लिए शांति विधान करें।
◆राहु हमेशा मंत्र से ही वशीभूत होता है, इसलिए उपासना को अधिक महत्त्व दें।
◆राहु-केतु के मन्त्र, स्तोत्र एवं कवच का पाठ करना चाहिए।
◆राहु के मन्त्र एवं केतु के मन्त्र का वांचन करना चाहिए।
राहु की शांति के मंत्र:-राहु की शांति के लिए निम्नलिखित मन्त्रों का वांचन करना चाहिए-
वैदिक मंत्र:-ऊँ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदा वृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता।
बीज मंत्र:-ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः का एक सौ आठ बार संख्या को ध्यान रखते हुए वांचन करना चाहिए।
अथवा:-ऊँ ऐं ह्रीं राहवे नमः।
तांत्रिक मंत्र:-ऊँ रां राहवे नमः।
एकाक्षरी मंत्र:-राम्।
उपर्युक्त मन्त्रों के मानसिक वांचन की संख्या अठारह हजार रखनी चाहिए।
मन्त्रों का जप पूर्ण होने के बाद निम्नलिखित मन्त्रों के द्वारा जल गिराते हुए अरदास करनी चाहिए-
अर्द्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूत, तं राहु प्रणमाम्यहम्।।
केतु की शांति के मंत्र:-केतु की शांति के लिए निम्नलिखित मन्त्रों का वांचन करना चाहिए-
वैदिक मंत्र:-ऊँ केतुं कृण्वभं केतवे पेशोमर्य्या अपेशसे समुषद्रिभरजायथाः।
ऊँ म्रां म्रीं म्रौं सः केतवे नमः।
ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः।
ऊँ कें केतवे नमः।
अथवा ऊँ ह्रीं ऐं केतवे नमः।
तान्त्रिक मंत्र:-ऊँ कें केतवे नमः।
एकाक्षरी मंत्र:-क्षेम्।
उपर्युक्त मन्त्रों के मानसिक वांचन की संख्या सत्राहरा हजार रखनी चाहिए।
मन्त्रों का जप पूर्ण होने के बाद निम्नलिखित मन्त्रों के द्वारा जल गिराते हुए अरदास करनी चाहिए-
पलाशपुष्पसंकाशं तारकग्रहमस्तकम्।
रौद्रां रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्।
◆राहु कवच एवं केतु कवच का वांचन करना चाहिए।
◆राहु स्तोत्र एवं केतु स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
कालसर्प दोष में कौन सा रत्न धारण करें?:-निम्नलिखित हैं।
◆राहु-केतु ग्रह से बनने वाले कालसर्प योग से मुक्ति के लिए किसी भी धातु जैसे-स्वर्ण, रजत, ताम्र, सीसा, पीतल, लोहा आदि का सर्प बनवाकर उसके मुख पर गोमेद तथा पूंछ पर लहसुनिया जड़वाकर पूजा स्थान पर रखना चाहिए।
◆राहु की शांति के लिए गोमेद रत्न की अंगूठी बनाकर करांगुली में धारण करनी चाहिए।
◆कुंडली में कालसर्प योग के साथ चन्द्र-राहु, चन्द्र-केतु, सूर्य-राहु, सूर्य-केतु इनमें से एक भी ग्रहयोग हो तो केतु-रत्न लहसुनिया (वैदूर्य) बीच की उंगली में धारण करें।
◆केतु की शांति के लिए लहसुनिया रत्न की अंगूठी धारण करनी चाहिए।
◆कालसर्प योग दोष की शांति के लिए पंचधातु से बनी नवग्रहों से जड़ित अंगूठी को धारण करना चाहिए।
◆कालसर्प योग दोष की पूजा एवं हवन से सिद्ध कालसर्प योग दोष यंत्र को पास में या गले में धारण करना चाहिए।
◆दुर्गा के कवच-अर्गला एवं कीलक पाठ का वांचन करने से कालसर्प योग दोष से राहत मिलती हैं।
◆कालसर्प योग दोष से पीड़ित इंसान को दुर्गासप्तशती का पाठ करने के लिए अमावस्या तिथि के दिन करने का मन ही मन में दृढ़ प्रतिज्ञा लेते हुए करने से लाभ मिलता हैं।
राहुकृत पीड़ा के उपाय:-यदि जन्मांग में राहु अशुभ स्थिति में हो तो उससे बचने के लिए कस्तूरी, तारपीन, गजदन्त भस्म, लोबान एवं चन्दन का इत्र जल में मिलाकर स्नान करने से राहु की पीड़ा से शान्ति मिलती हैं। इसके लिए नक्षत्र, योग, दिन, दिशा एवं समय का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ऐसे जातकों को गोमेद का दान करना चाहिए।
राहु के दान:-राहु की पीड़ा के निवारण हेतु जातकों को निम्न वस्तुओं का दान बुधवार या शनिवार के दिन करना चाहिए- सरसों का तेल, सीसा, काला तिल, कम्बल, तलवार, स्वर्ण, नीला वस्त्र, सूप, गोमेद, काले रंग का पुष्प, अश्व, नारियल अभ्रक, दक्षिणा उपर्युक्त वस्तुओं का दान किसी शनि का दान लेने वाले को दें अथवा किसी शिव मंदिर में रात्रिकाल में बुधवार या शनिवार को छोड़ दें।
◆केतु के दोष निवारण हेतु ब्राह्मण को तेल, शाल, काला वस्त्र, काला तिल एवं नीले रंग के पुष्प दान करने चाहिए।
◆सामर्थ्य के अनुसार केतु से सम्बंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।
◆श्री कार्तवीर्यार्जुन मंत्र का प्रतिदिन बतीस हजार-बतीस हजार जप करना चाहिए।
◆राहु और राहु की दशा से प्रभावित व्यक्ति प्रतिदिन सरस्वती मंत्र-पूजा करें।
◆कालसर्प योग में राहु की शांति का उपाय रात्रि के समय किया जाय।
◆राहु के सभी पूजन शिवमन्दिर में रात्रि के समय या राहुकाल में करें।
◆राहु हवन हेतु दूर्वा का उपयोग आवश्यक हैं।
◆राहु के पूजन में धूप एवं अगरबत्ती उपयोग न करें। इसके स्थान पर कपूर, चन्दन का इत्र उपयोग करें।
◆राहु के तांत्रिक मंत्र से निम्न अनुष्ठान सोमवार या गुरुवार को करें।
सामग्री:-108 दूर्वा, काले तिल, उड़द, 50 ग्राम गाय का घी, गोबर का उपला, हवन पात्र तथा कपूर।
हवन पात्र में अग्नि प्रज्वलित कर लें। अग्नि प्रज्वलित होने पर एक-एक दूर्वा घी में डुबोकर 'ऊँ रां राहवे नमः' यह मंत्र बोलकर वह दूर्वा आहुति के रूप में अग्नि को अर्पण करें। कुल 108 आहुतियां देनी हैं। बीच-बीच में काले तिल और उड़द भी अग्नि को अर्पण करते रहें।
◆नवग्रहों के मन्त्र, स्तोत्र एवं कवच का पाठ करना चाहिए।
◆अनुष्ठान विधि से श्री बटुक भैरव मंत्र का सवा लाख जप करें।
◆भैरव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, क्योंकि शास्त्रों में कहा गया हैं, की 'भैरवस्तोत्र पाठेन कलसर्पं विनश्यति।'
◆राहु सिंहिका का पुत्र हैं। सिंहिका पर हनुमान जी ने विजय प्राप्त की थी। इसीलिए 108 दिनों तक हनुमान चालीसा का पाठ करें। नागपंचमी के दिन हनुमानजी की कृपा से भी सर्पश्राप या कालसर्प योग की शांति होती हैं।
◆कालसर्प दोष निवारण यंत्र की विधिवत स्थापना करके उसकी नित्य पूजा करनी चाहिए।
◆कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को सप्तमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
कालसर्प योग दोष की शांति के लिए मन्त्र:-निम्नलिखित मन्त्रों का वांचन करना चाहिए।
शिव गायत्री मन्त्र का मानसिक वांचन:-
ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे धीमहि तन्नोरुद्रः प्रचोदयात्।
नाग या सर्पः गायत्री मंत्र:-
ऊँ नवकुलाय विषदंताय धीमहि तँनों सर्पः प्रचोदयात्।
ऊँ नागदेवताय नमः
उपरोक्त मन्त्रों को एक सौ आठ बार की संख्या में रुद्राक्ष की माला से मानसिक रूप से वांचन करना चाहिए।
सर्प मन्त्र का वांचन:-
ऊँ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु।
ये अन्तरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः स्वाहा।।
ऊँ क्रौं नमो अस्तु सर्पेभ्यो कालसर्प शांति कुरु कुरु स्वाहा।
ऊँ क्लीं आस्तिकम् मुनिराजम नमोनमः।।
उपरोक्त मन्त्रों का इकतीस हजार की संख्या कम से कम रखनी चाहिए और कलियुग होने से चार गुणा अर्थात् एक लाख से सवा लाख की संख्या को रखते हुए मानसिक वांचन करना चाहिए। उसके बाद इन जप किये हुए मन्त्रों का दशवा भाग के रूप हवन के द्वारा पूर्ण रूप से आहुति देनी चाहिए।
◆कुलदेवता की उपासना करें।
◆नागप्रतिमा का व्रत करें।
◆ऊपर बताए उपायों में से कोई एक उपाय विधिपूर्वक करना चाहिए। इससे कालसर्प दोष का निवारण होगा।
भावों के अनुसार कालसर्प योग के निवारण के अन्य उपाय:-जन्मकुण्डली के बारह भावों में बनने वाले बारह कालसर्प योग दोष के निवारण के निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
प्रथम भाव:-जब पहले भाव में बनने वाले अनन्त कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए हमेशा चाँदी का एक चौकोर टुकड़ा बनाकर उसे अपने गले में पहनने से राहत मिलती हैं।
द्वितीय भाव:-जब द्वितीय भाव में बनने वाले कुलिक कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए के लिए घर के उत्तर-पश्चिम कोण की साफ-सफाई करनी चाहिए, उस स्थान की सफाई के बाद वहां पर एक मिट्टी के बर्तन को रखकर उसमें जल डालकर भर देना चाहिए। हमेशा उस पुराने जल को बदलते रहना चाहिए और उस पुराने बदले हुए जल को चौराहे में डाल देने से राहत मिलती हैं।
तृतीय भाव:-जब तृतीय भाव में बनने वाले वासुकि कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए के लिए अपने जन्मदिन पर गुड़, गेहूँ एवं ताँबे का दान करने से राहत मिलती हैं।
चतुर्थ भाव:-जब चतुर्थ भाव में बनने वाले शंखपाल कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए के लिए हमेशा दूध को बहते हुए पानी में बहा देने से मनुष्य को राहत मिलती हैं।
पंचम भाव:-जब पंचम भाव में बनने वाले पद्म कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए के लिए मनुष्य को अपने निवास स्थान के उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में सफेद हाथी की मूर्ति को रखने से राहत मिलती हैं।
षष्ठ भाव:-जब षष्ठ भाव में बनने वाले महापद्म कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए के लिए मनुष्य को एक नारियल को हर माह की पंचमी तिथि को लेकर उस नारियल को बहते हुए जल में बहा देने से राहत मिल जाती हैं।
सप्तम भाव:-जब सप्तम भाव में बनने वाले तक्षक कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए के लिए मनुष्य को दूध लेकर मिट्टी के बर्तन में दूध भरकर सुनसान स्थान में रख आने से राहत मिल जाती हैं।
अष्टम भाव:-जब अष्टम भाव में बनने वाले कर्कोटक कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए के लिए मनुष्य को हमेशा काली गाय को गुड़, रोटी, काले तिल एवं उड़द आदि को खिलाने से राहत मिल जाती हैं।
नवम भाव:-जब नवम भाव में बनने वाले शंखचूड़ कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए के लिए मनुष्य को शिवरात्रि के दिन अठारह नारियल को लेकर उन अठारह नारियलों को सूर्य के उगने से लेकर सूर्य के डूबने तक अठारह नारियलों को अठारह मंदिरों में रख आने पर राहत मिल जाती हैं। यदि अठारह मन्दिर पास में न हो तो दुबारा उसी क्रम से मन्दिरों में दान कर सकते हैं।
दशम भाव:-जब दशम भाव में बनने वाले घातक कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए के लिए मनुष्य को किसी महत्वपूर्ण कार्यों को निवास स्थान से जाते समय खाली उड़द के दाने सिर से सात बार घुमाकर बिखेर देने से राहत मिलती हैं।
एकादश भाव:-जब एकादश भाव में बनने वाले विषधर कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए के लिए मनुष्य को प्रत्येक बुधवार को घर की सफाई कर कचरा बाहर फेंक देने से राहत मिलती हैं और बुधवार के दिन पुराने व फटे कपड़े को पहनना चाहिए।
द्वादश भाव:-जब द्वादश भाव में बनने वाले शेषनाग कालसर्प योग दोष के निवारण के लिए मनुष्य को काले कपड़े में काला तिल, दूध में भीगे जौ, नारियल एवं कोयला आदि को बाँधकर प्रत्येक अमावस्या में उस बांधी हुई पोटली को बहते हुए जल में बहा देना से राहत प्राप्त होती हैं।
लाल किताब के कालसर्प योग निवारण उपाय:-के लिए निम्नलिखित अनुभूत टोटके करने चाहिए।
◆मनुष्य को कोयले लेकर नदी या बहते पानी में बहाने से स्थायी शान्ति प्राप्त होती हैं।
◆मनुष्य के द्वारा हमेशा ताजी मुलीदान करते रहने से स्थायी शान्ति प्राप्त होती हैं।
◆इंसान को मसूर की दाल और कुछ पैसे सुबह या प्रातःकाल सफाई कर्मचारी या भंगी को दान करना चाहिए।
◆मनुष्य को जौ के दाने लेकर रात को सोते समय उनको सिरहाने रखकर सोना चाहिए और सुबह पौ फटते ही पक्षियों को खिला देना चाहिए।
◆कालसर्प योग के कारण वैवाहिक जीवन में बाधा आती हो, तो पत्नी के साथ दुबारा विवाह करना चाहिए।
◆मनुष्य को अपने निवास स्थान के प्रवेश द्वार की चौखट पर चांदी का 'स्वास्तिक' लगाना चाहिए।
◆मनुष्य को अपने निवास स्थान के पूजास्थल में भगवान् श्रीकृष्ण की मोरपंखयुक्त मूर्ति का हमेशा पूजन करना चाहिए।
◆मनुष्य को अपने परिवार के सदस्यों के साथ रसोईघर में बैठकर ही भोजन करना चाहिए।
◆मनुष्य को अपने निवास स्थान के शयनगृह में पर्दे, बेडशीट्स, तकियों के कवर आदि में लाल रंग का प्रयोग करना चाहिए।
◆मनुष्य को समुद्र के जल में एक नारियल को बहाना चाहिए।
◆कालसर्प योग दोष से ग्रसित मनुष्य को अपने दांतों को गौमूत्र से साफ करना चाहिए।
◆भाद्रपद मास में मनुष्य के द्वारा सोलह श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।
◆मनुष्य को पवित्र एवं पुण्य प्रदान करने वाले तीर्थराज प्रयाग में देवताओं और पितरों को तिल या चावल मिले हुए जल को तर्पण के रूप में और श्राद्धकर्म को सम्पन्न करना चाहिए।
◆ मनुष्य को किसी भी तरह से सर्प को नहीं सताना चाहिए और नहीं मारना चाहिए।
◆इंसान को पशु-पक्षी के प्रति दया के भाव रखते हुए उनकी देखभाल करनी चाहिए।
◆इंसान के द्वारा पक्षियों को हमेशा सतनाजा अर्थात् सात तरह के अनाज जैसे-गेहूँ, तिल, मक्का, जौ, चावल , कंगनी, उड़द, मूंग आदि में से कोई भी अनाज को चुगाना चाहिए।
◆नागपंचमी के दिन नाग के प्रतीकस्वरूप चांदी के नाग की पूजा करनी चाहिए।
◆मृत पूर्वज (पितरों) को आने के लिए पुकार करनी चाहिए। मृत पूर्वजों को मुक्ति प्राप्त हो, ऐसी इस नाग से अरदास करनी चाहिए।
◆निवास स्थान में रहने वाले के सभी परिवार के सदस्यों के द्वारा इस नाग को आदरपूर्वक हाथ जोड़कर अभिवादन करना चाहिए और फिर नदी या समुद्र में समस्त सामग्री श्रद्धापूर्वक विसर्जित कर देनी चाहिए।
◆मनुष्य को त्वचा के रोग से ग्रसित किसी भी कोढ़ी (जिस रोग में शरीर की त्वचा पर चकते पड़ने लगते हैं और शरीर गलने लग जाता हैं) को खाना खिलाने एवं हरिजन (भंगी) को खाना खिलाने से कालसर्प योग शांत होता है।
◆जैन मतावलंबी 'विषधर स्फुलिंग' मंत्र का पाठ करना चाहिए।
कालसर्प योग शान्ति के कुछ स्थान:-कालसर्प योग दोष के बुरे प्रभाव से राहत पाने के लिए उसकी पूजा के कुछ मुख्य स्थान हैं, जो कि निम्नलिखित हैं।
1.कालहस्ती शिवमन्दिर, तिरुपति।
2.त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक।
3.त्रिवेणी संगम, इलाहाबाद।
4.त्रियुगी नारायण मन्दिर, केदारनाथ।
5.त्रिनागेश्वर मन्दिर, जिला तंजौर।
6.सिद्धशक्तिपीठ, कालीपीठ, कलकत्ता।
7.भूतेश्वर महादेवमन्दिर नीमतल्लाघाट, कलकत्ता।
8.गरुड़-गोविन्द मन्दिर छटीकारा गाँव एवं गरूड़ेश्वर मन्दिर बड़ोदरा।
9.नागमन्दिर, जैतगाँव, मथुरा।
10.चामुण्डादेवी मन्दिर, हिमाचलप्रदेश।
11.मनसादेवी मन्दिर, चण्डीगढ़।
12.नागमन्दिर ग्वारीघाट, जबलपुर।
13.महाकाल मन्दिर, उज्जैन।
कालसर्प योग की शांति करने के स्थान:-कालसर्प योग दोष की शांति करने के निम्नलिखित जगहों पर करनी चाहिए।
◆किसी पवित्र नदी के किनारे पर, जहाँ पर नदियों का मिलन होता हो, नदी किनारे के शमशान, नदी किनारे स्थित शिवमन्दिर अथवा किसी भी नागमन्दिर में की जाती है।
◆कभी-कभी देखने में आता है कि अनेक दैवज्ञ यजमान के घरों (निवास) में ही कालसर्प योग की शांति करवा देते हैं। ऐसा ठीक नहीं प्रतीत होता।
◆रुद्राभिषेक तो घर में किया जा सकता है, किंतु कालसर्प योग की शांति निवास स्थल में नहीं करनी चाहिए।
यदि किसी के घर में सर्प निकलते हों तो निम्न उपाय करें-
◆सर्पगंधा औषधि लगानी चाहिए। मान्यता है कि नेवला सर्प-संहार के बाद इसी औषधि का सेवन कर अपने को निर्विष करता हैं।
◆घर में मोरपंखों को श्रीकृष्ण की ऐसी तस्वीर के सामने रखें जिसमें भगवान मोरमुकुट धारण किए हों। इस तस्वीर के सामने "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः" महामंत्र का जाप करना चाहिए।
कालसर्प योग भंग कब होता हैं?(When does Kalsarpa Yoga break?):-आपकी कुंडली में कालसर्प दोष हैं या नहीं, इसकी जानकारी किसी ज्योतिष विशेषज्ञ से अवश्य लेना चाहिए। किसी भी वेद पाठी पंडित से कालसर्पयोग की विधि को कराना चाहिए जिससे पूर्वजन्म कृत पाप या दोष मिट जाते हैं। अगर पूर्व जन्म कृत दोष ज्यादा ही बलि हों तो इसकी शांति दो-तीन बार करवाना चाहिए।
◆जब जन्मकुंडली में कालसर्प योग में राहु-केतु के साथ गुरु हो, तो कालसर्प दोष भंग हो जाता हैं। जिससे कालसर्प दोष नहीं लगता हैं।
◆राहु-केतु के साथ उनके अंश से ज्यादा अंश वाले शुभग्रह उनके साथ पड़े हो, तो कालसर्प दोष भंग हो जाता हैं। ऐसे संयोग में अशुभ फल कम या नहीं बराबर मिलते हैं।
प्रतिबंध का अर्थ:-जब किसी भी कार्य को करने के बाद भी उस कार्य को सफल नहीं होने देता हैं और रुकावटें या बाधाएँ को उत्पन्न करके अपने असर के बंधन से बांधे रखने को प्रतिबंध कहा जाता हैं।
कालसर्प योग पूजा के बाद प्रतिबंध:-जब मनुष्य के द्वारा कालसर्प योग दोष की पूजा करा ली जाती हैं, तब भी कालसर्प योग का असर नष्ट नहीं होता हैं और मनुष्य के जीवन के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता हैं, जिससे मनुष्य निराश हो जाता हैं और कालसर्प योग दोष का निवारण नहीं होने का प्रतिबंध करता हैं।
कालसर्प योग पूजा के बाद प्रतिबंध के कारण:-निम्नलिखित हैं।
1.जन्मकुण्डली बन रहे कालसर्प योग दोष नहीं होने पर भी पूजा करा देने से और जन्मकुण्डली में बन रहे दूसरे दोषों की तरफ ध्यान नहीं देने से।
2.कालसर्प योग दोष की पूजा पद्धति को सामान्य रूप से करने के कारण भी दोष प्रतिबंध करता हैं।
3.फलित ज्योतिष के ज्ञाता या विद्वान ब्राह्मण के द्वारा मन्त्रों का एवं पूजा विधि को सही तरीके से सम्पन्न नहीं कराने से।
4.पूजा विधि को सही ढंग से करने के बाद तीस तिथियों, ग्यारह करणों, सत्ताईस योग व नक्षत्रों, नवग्रहों आदि के मन्त्रों को पूर्ण रूप से ब्राह्मण के द्वारा नहीं करने से भी दोष प्रतिबंध होता हैं।
5.पूजा-हवन करने के बाद जातक को कालसर्प योग यन्त्र एवं नवग्रह की अभिमंत्रित अंगूठी नहीं पहनाने से दोष प्रतिबंध होता हैं।
6.पूजा के बाद भी समस्या ज्यों के त्यों बनी रहने पर मनुष्य को देखना चाहिए कि उसके पूर्वजन्म एवं इस जन्म में किये गए धर्म एवं नीति के विरूद्ध गलत आचरण भी दोष प्रतिबंध करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
7.सभी तरह से विश्लेषण करने के बाद भी समस्या बनी रहने पर उसको उसके निवास स्थान में कोई वास्तु शास्त्र के दोष तो नहीं बन रहे हैं। इसलिए उस मनुष्य को विद्वान वास्तु शास्त्र के ज्ञाता ज्योतिष से विचार-विमर्श करना चाहिए। वास्तुशास्त्री को अपने निवास स्थान का अवलोकन कराना चाहिए। वास्तुशास्त्री के निरक्षण के बाद यदि अपने निवास स्थान में बनने वाले दोषों को दूर करने के जो भी उपाय बताएं जाते हैं, उन उपायों को अपनाते हुए जो निवास स्थान में जिस जगह पर जो दोष बन रहे हैं उन दोषों के के निवारण के लिए कुछ बदलाव करना हो, तो अवश्य करना चाहिए। वास्तुशास्त्री के द्वारा निवास स्थान पर बन रहे दोषों को प्रतिबंध करवा देने से जो समस्या बन रही थी उन समस्यों का निवारण हो जाता हैं। नैर्ऋत्य दिशा के स्वामी निर्ऋति या नैरुत या राक्षस और ग्रहों की दिशाओं में स्थान राहु एवं पृथ्वी तत्त्व का होता हैं उसी प्रकार वायव्य दिशा के स्वामी वायु देव या वरुणदेव और ग्रहों की दिशाओं में स्थान केतु और वायु तत्व का होता हैं।
कालसर्प योग दोष की पूजा कराने के बाद भी समस्या का निवारण नहीं:-होने पर निम्नलिखित वास्तुशास्त्र में वर्णित दिशाओं के आधार पर स्वयं जानकर समस्या का निर्धारण करके उपाय कर सकते हैं।
दिशाएँ दोष निवारक टोटके:-यदि आपने भवन निर्माण कार्य वास्तु शास्त्र के अनुकूल नहीं कराए है और परिणाम स्वरूप वास्तुदोष से पीड़ित होकर विभिन्न विपत्तियों के शिकार हो रहे हैं तो निम्नलिखित उपाय करें:-
वायव्य कोण:-इस दिशा के स्वामी बटुक भैरव तथा दिशा का प्रतिनिधि ग्रह चन्द्र माना गया है। वायव्य में गृह स्वामी का शयनकक्ष होने पर शारीरिक तथा आर्थिक रूप से पीड़ित रहता है। वायव्य कोण में शौचालय बना देने से परिवार के सदस्यों में अशांति तथा व्याकुलता फैल जाती हैं। इस स्थान पर किसी प्रकार का दोष होने पर अकारण दुश्मनी या मुकदमेबाजी होती हैं।
उपाय:-भवन के मुख्य द्वार पर चाँदी के वर्क में मढ़ें हुए "गणपति की स्थापना" करें।
◆सोमवार के दिन बासमती चावल दान करें।
◆मीठी खीर का भोजन करें।
नैऋत्य कोण:-नैऋत्य दिशा का स्वामी "राहु" है। अतः इस स्थान पर किसी भी प्रकार का दोष होने पर "अकाल मृत्यु" हो सकती हैं। मकान या औधोगिक संस्थान की नैऋत्य दिशा कभी खाली नहीं रखनी चाहिए और न ही भूखण्ड के नैऋत्य में कोई गड्ढा ही खोदना चाहिए। यह दिशा असुर, क्रूर कर्म करने की शक्ति या भूत-पिशाच की दिशा हैं। इसलिए यह दिशा कभी भी खाली या रिक्त न रखें। नैऋत्य कोण में कुआँ अथवा कोई गड्ढा होने पर पारिवारिक जन अकारण ही बीमारियों का शिकार होते हैं। नैऋत्य में रसोई घर का निर्माण कर देने से गृह स्वामिनी के मन में अशांति तथा शरीर में रोष उत्पन्न होते हैं।
उपाय:-मुख्य द्वार पर हल्के लाल रंग के गणपति की स्थापना करें।
◆राहु और गायत्री मंत्र का अनुष्ठान कराएँ।
पूर्व दिशा:-देवताओं के राजा इन्द्र को पूर्व दिशा का स्वामी माना गया है। इस दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य हैं।
पूर्व दिशा में ऊँचाई होने से गृह स्वामी को समृद्धि प्राप्त नहीं होती है। संतान मंदबुद्धि ही रहती हैं। पूर्व भाग में गंदगी रहने, पत्थर एवं मिट्टी का ढेर रहने से गृह स्वामी दुखी रहता है।
उपाय:-प्रतिदिन सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करें।
◆दिशा दोष के निवारण के लिए "सूर्य" यंत्र पूजा स्थल पर स्थापित करें।
दक्षिण दिशा:-इस दिशा के स्वामी विधान का पालन कराने वाले तथा मृत्यु के देवता "यम" हैं। इसका प्रतिनिधि ग्रह "मंगल" है। निवास का दक्षिणी भाग गृह स्वामी के जीवन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। दक्षिण में कोई जल स्रोत, कुआँ आदि है तो गृह स्वामी के सुख में न्यूनता होती हैं।
उपाय:-दक्षिण दिशा के दोष निवारण के लिए दाहिनी ओर सूंड वाले गणेश जी की स्थापना, द्वार के ऊपर करें और घर में "मंगल यंत्र" सिद्ध किया हुआ पूजा स्थल पर स्थापित करें।
पश्चिम दिशा:-पुराणों में पश्चिम दिशा के स्वामी "वरुण" कहे गये हैं तथा प्रतिनिधि ग्रह शनि हैं। यदि पश्चिम भाग भवन के पूर्व की अपेक्षा निकास हो, तो भवन स्वामी को अपयश एवं मानहानि का सामना करना होता है।
उपाय:-भवन में "सिद्ध महाकाली यंत्र" की स्थापना करें।
उत्तर दिशा:-अतुल संपदा प्रदान करने वाले "देवता कुबेर" उत्तर दिशा के स्वामी हैं और प्रतिनिधि "बुध" हैं।
उत्तर दिशा में कुआँ या पानी का टैंक होने से पारिवारिक सदस्य अधिक संवेदनशील होते हैं।
उपाय:-बुधवार के दिन "बुध यंत्र" पूजा स्थल पर स्थापित करें।
ईशान कोण:-ईशान दिशा के स्वामी भगवान रुद्र हैं तथा इस दिशा के प्रतिनिधि "गुरु" हैं। ईशान कोण में शौचालय बना देने से अनेक प्रकार के दुष्परिणाम सामने आते हैं। रसोई घर का निर्माण कराने से धन के संचय में बाधा आती है तथा घर में शांति नहीं रहती।
उपाय:-घर की पूजा स्थल पर "सिद्ध दुर्गा यंत्र" की स्थापना करें।
आग्नेय कोण:-इस दिशा के स्वामी भगवान गणपति तथा प्रतिनिधि ग्रह "शुक्र" माने जाते हैं। इस दिशा में जल स्त्रोत होने से अनेकों परेशानियों का सामना करना होता है।
उपाय:-भवन के मुख्य द्वार पर श्री गणपति जी की मूर्ति स्थापित करें।
◆"शुक्र यंत्र" पूजा स्थल पर स्थापित करें।
इस प्रकार वास्तु शास्त्रीय पक्ष को संक्षेप में अभिव्यक्त किया गया है। यदि उपयुक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर वास्तु नियमों का पालन किया जाए, तो मनुष्य सुख-शांति एवं आर्थिक प्रगति कर सकता है।