श्री कृष्ण भगवान की आरती का अर्थ सहित वर्णन:-भगवान श्री कृष्ण जी आरती को करने से पूर्व आरती के भावों को जानना भी जरूरी है, इसलिए आरती का अर्थ सहित वर्णन इस तरह है-
ओउम जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे।।
अर्थात्:-हे श्रीकृष्णजी! आपकी जय जय हो, आप ही इस जगत के पालक हो, आपकी जय हो। आप ही अपने भक्तों के दुःखों को क्षण भर में ही हरण कर लेते हो। जय हो श्रीकृष्णजी आपकी जय हो।
परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी।
जय रस रास बिहारी जी जय गिरधारी।
अर्थात्:-हे श्रीकृष्णजी! आपको अनेक नामों से जाना जाता है, जिनमें कुछ आपको परमानन्द अर्थात् सभी तरह का आनन्द देने वाले के रूप में जानते हैं, कुछ आपको मुरारी अर्थात् मुर नामक दैत्य का संहार करने वाले के रूप में, कुछ आपको मोहन अर्थात् मन को हरने वाले के रूप में, कुछ आपको गिरधारी अर्थात् पर्वत को अपनी एक अंगुली पर उठाने के रूप में जानते है। जय-जय हो आपकी रस रास जी।
कर कंचन कटि सोहत कानन में बाला।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला।
अर्थात्:-हे श्रीकृष्णजी! आप हाथ इन स्वर्ण का कड़ा धारण किये हुए हो, कमर पर स्वर्ण की जंजीर को पहनने हुए और कानों में बाले को धारण किये हो, सिर पर आपने मोर के पंख को मुकुट के रूप में धारण किया है और पीले वस्त्र पहनने हुए हो। आपने गले में पुष्पों की और स्वर्ण आभूषण की माला बहुत सुंदर लगती हैं।
दीन सुदामा तारे दरिद्रों के दुख टारे।
गज के फन्द छुड़ाए भव सागर तारे।
अर्थात्:-हे श्रीकृष्णजी! आपने अपने सखा गरीब सुदामा के दुःख को हर कर उसको सभी तरह का ऐश्वर्य एवं सम्पत्ति को प्रदान किया था। आपने अपनी मित्रता को निभाया था। हाथ के फंदे में फंसने पर उसको बचाकर उसका उद्धार किया था। उसको जीवन-मरण के बंधन से मुक्त कराकर के आपने उसको भव सागर की नैया को पार लगाई थी।
हिरण्यकश्यप संहारे नरसिंह रूप धरे।
पाहन से प्रभु प्रंगटे जम के बीच परे।
अर्थात्:-हे श्रीकृष्णजी! जब पृथ्वी पर दैत्यराज हिरण्यकश्यप का अत्याचार बढ़ गया। तब अपने पत्थर से बने थम्बे को तोड़कर आपने श्रीनृसिंह के रूप में अपने प्रिय भक्त प्रहलाद की करुण पुकार पर अवतार लिया था। प्रहलाद कर प्राणों की रक्षा दैत्यराज हिरण्यकश्यप का वध करके की थी।
पापी कंस विदारे नल कूबेर तारे।
दामोदर छवि सुन्दर भक्तन के प्यारे।
अर्थात्:-हे श्रीकृष्णजी! जब दैत्यराज कंस का आतंक बहुत बढ़ गया तो आपने पापी व दुराचारी कंस का वध किया था। तब स्वर्ण नगरी के राजा कुबेर एवं नल राजा ने आपका गुणगान किया था। आपकी के उदर में समस्त जगत समाया हुआ है, इसलिए आपको दामोदर भी कहते है, यह दामोदर रूप की छवि आपके भक्तों को बहुत ही अच्छी लगती है।
काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे।
फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे।
अर्थात्:-हे श्रीकृष्णजी! आपने कालिया नाग को सरोवर से मुक्त कराया था। उस कालिया नाग के फन पर आप विराजित होकर नृत्य करते हुए बहुत ही शोभायमान लगते हो। आपके सिर पर कालिया नाग की छत्र होने से आपको नटवर अर्थात् आप सभी तरह से निपुण एवं चतुर होने से कहा जाता है, जब फनो से नागिन नाचती है, तब बहुत ही मन को लुभाती है, उस तरह की छवि आपकी हैं।
राज्य उग्रसेन पाये माता शोक हरे।
द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे।
अर्थात्:-हे श्रीकृष्णजी! आपने उग्रसेन जी को राज्य वापस दिलवाया था, आपकी जन्मदात्री माता के आपने शोक को हरण किया था। राजा द्रुपद की पुत्री ने जब राखी आपकी कलाई पर बांधी तो आपने उस राखी के निमित आपने लाज रखी थी।
ओउम जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे।।
अर्थात्:-हे श्रीकृष्णजी! आपकी जय जय हो, आप ही इस जगत के पालक हो, आपकी जय हो। आप ही अपने भक्तों के दुःखों को क्षण भर में ही हरण कर लेते हो। जय हो श्रीकृष्णजी आपकी जय हो।
।।अथ श्री कृष्ण भगवान की आरती।।
ओउम जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे।।
परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी।
जय रस रास बिहारी जी जय गिरधारी।
ओउम जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे।।
कर कंचन कटि सोहत कानन में बाला।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला।
ओउम जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे।।
दीन सुदामा तारे दरिद्रों के दुख टारे।
गज के फन्द छुड़ाए भव सागर तारे।
ओउम जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे।।
हिरण्यकश्यप संहारे नरसिंह रूप धरे।
पाहन से प्रभु प्रंगटे जम के बीच परे।
ओउम जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे।।
पापी कंस विदारे नल कूबेर तारे।
दामोदर छवि सुन्दर भक्तन के प्यारे।
ओउम जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे।।
काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे।
फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे।
ओउम जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे।।
राज्य उग्रसेन पाये माता शोक हरे।
द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे।
ओउम जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
भक्तन के दुख सारे पल में दूर करे।।
।।इति श्री कृष्ण भगवान की आरती।।
।।जय बोलो नन्दगोपाल की जय हो।
।।जय बोलो यशोदा सुत की जय हो।।