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Tuesday, November 1, 2022

बुधादित्य योग बड़ी सिद्धि कैसे देता हैं?

बुधादित्य योग बड़ी सिद्धि कैसे देता हैं?(How does Buddhaditya Yoga give great accom-plishment?):-प्राचीन काल में ज्योतिष शास्त्र के विषय पर बहुत ही शोध कार्य ऋषि-मुनियों एवं ज्योतिषी विद्वानों ने किया हैं, उन्होंने जन्मकुण्डली में प्रत्येक ग्रह एवं भाव पर पड़ने वाले अच्छे एवं बुरे फल को जानने के लिए जी-तोड़ मेहनत की हैं, फिर उन्होंने ज्योतिषीय योगों का निर्माण किया हैं, उनमें एक योग बुधादित्य योग हैं, जो दो ग्रहो सूर्य व बुध के एक साथ बैठने पर बनता हैं। प्राचीन ज्योतिष शास्त्र के वर्णित शास्त्रों में बुधादित्य योग के बारे में जो विवरण मिलता हैं, उनमें से जब उच्च राशि में बुध-सूर्य की युति से जो बुधादित्य योग बनता हैं, वह उत्तम कोटि का असरदार होकर विशेष फलदायी होता हैं। बुधादित्य योग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बड़ी सिद्धि देना वाला होता हैं।




How does Buddhaditya Yoga give great accom-plishment?




बुध-आदित्य योग कब बनता हैं?(When is Budha- aditya Yoga formed?):-सम्पूर्ण विश्वगोलक में बुध सूर्य के अगले-बगल में घूमने-फिरने वाला बहुत ही छोटा ग्रह हैं, बुध चन्द्रमा का पुत्र हैं, बुध ज्यादा से ज्यादा चौबीस अंश सूर्य से आगे-पीछे रहता हैं। अमूमन बुध सूर्य के साथ ही रहता हैं, इसी को बुधादित्य योग कहते हैं। जब सभी ग्रह सूर्य के प्रभाव में आकर ओझल होकर अस्त हो जाते हैं, तब बुध अपना पूरा फल प्रदान करता है।





बुधादित्य योग का निर्माण:-के लिए निम्नलिखित मुख्य बातें होना आवश्यक होता हैं।



◆जब जन्मकुण्डली में किसी भी भाव एवं राशि में सूर्य एवं बुध एक साथ बैठे होते हैं, तब जो योग बनता हैं, उसे बुधादित्य योग कहते हैं।



विवेचन:-बुधादित्य योग की विवेचना करने पर निम्नलिखित बातें प्रकट होती हैं।


◆सूर्य व बुध के एक साथ एक राशि एवं भाव में बैठने पर बुधादित्य योग आधारित होता हैं।



◆जब बुध सूर्य के साथ एक राशि एवं भाव में एक साथ बैठने पर बुध सूर्य के द्वारा अस्त हो जाता हैं, इसलिए बुधादित्य योग का असर कम हो जाता हैं।



◆बुधादित्य योग तभी असरदार एवं फलदायक हो सकता हैं, जब सूर्य और बुध के भोगांशों के बीच कम से कम दश अंश का अंतर होता हैं।




बुधादित्य योग के क्या फायदे या नतीजे हैं?(What are the benefits or results of Buddhaditya Yoga?):-निम्नलिखित फायदे या नतीजे प्राप्त होते हैं।




◆इंसान को सभी क्षेत्रों में समझदार बनाता हैं।



◆इंसान को सभी कार्यों को अपनी योग्यता के दम पर पूर्ण लग्न से करने एवं कामयाबी प्राप्त करने में माहिर बनाता हैं।



◆इंसान को सामाजिक जीवन, अपने कार्य क्षेत्र में और दूसरे क्षेत्रों में मशहूर बनाता हैं।



◆इंसान को सभी जगहों पर दूसरों के द्वारा मान-सम्मान मिलता हैं। 



◆स्वयं की इज्जत को बनाये रखने वाला बनाता हैं।




◆इंसान को जीवन के प्रत्येक क्षेत्रों जैसे-शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक रूप से सभी तरह के ऐशो-आराम, रुपये-पैसों और जमीन-जायदाद का अतुलीय स्वामी बनाता हैं।




◆बुद्धिमान, सभी कार्यों में निपुण, प्रसिद्ध, आत्मसम्मानी,  सभी प्रकार के सुख ऐश्वर्यों से यूक्त होता हैं।




सूर्य:-सूर्य देव को प्रत्यक्ष रूप से विष्णु माना है एवं इनका नम्रता से विनती, आस्था और आदरपूर्वक सौंप देने के भाव से पूजा विधान जैसे जल, पुष्प, फल, अक्षत आदि चढ़ाने के धार्मिक कृत्य के कारण एवं आराधना के लिए गायत्री मंत्र निकाला हैं, जो सूर्य की स्तुति एवं पूजन है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों के द्वारा कही गई बात हैं, जब भगवान् भास्कर के भोर की बेला में उदय होने की पहली किरण का दर्शन मनुष्यों के द्वारा करने से सभी तरह की आफतें दूर हो जाते हैं।




सम्पूर्ण विश्वगोलक के पितामह भगवान् आदित्य नारायण अपनी अतितेजस्वीता से पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी जीवन से युत जीव-जंतुओं को अपने जीवन के अस्तित्व को बनाये रखने लिए जल वृष्टि के द्वारा जल एवं जीवन को जीवित अवस्था में बनाये रखने के लिए प्राणवायु देते है। जब बरसात का मौसम होता हैं, तब कई जीविका निर्वाह के साधन में कमी आ जाती हैं, क्योंकि सूर्य को वायुमंडल में संचित घनीभूत वाष्पकण से भरे हुए बादल अपनी ओट में छिपा देते हैं, जिसके कारण सूर्य अपनी तीक्ष्णता से यूक्त अग्नि के समान किरणों को उत्पन्न नहीं कर पाते हैं और जो सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पहुंचकर उजाला प्रदान करती हैं, वही पृथ्वी पर नहीं पहुंचने से धुंधलापन के समान अंधेरा छाने लगता हैं। 




रात को आकाश में उत्तर-दक्षिण में फैले हुए एक छायापथ यानि चमकीली चौड़ी पट्टी के रूप में छोटे-छोटे तारों का समूह में दिखाई देते हैं, उन तारों के समूह में नौ ग्रहों को माना गया हैं, उन नौ पर अपना अधिपति रखने वाले सूर्य हैं, जो कि पूर्व दिशा पर अपना स्वत्व रखते हैं। इंसान की जन्मकुंडली के बारह भावों में पहले घर में केतु एवं पांचवें व नवें, चौथे, ग्यारवें घर में मुख्य रूप से मजबूत स्थिति  में होते हैं। जन्मकुण्डली का छठा घर दुश्मन एवं संकट के समय किसी का साथ नहीं मिलने से होने वाली पीड़ा का होता हैं, इस छठे घर में पापग्रह होने के कारण विशेष बलवान् ही होता है।



सूर्य ग्रह सिंह राशि के स्वामी होते है एवं यह राशि इनकी स्वयं होती हैं, जब भी मेष राशि में होते हैं, तब उच्च राशि के और तुला राशि में होने से नीच राशि के होते हैं। जब सूर्य कन्या राशि में स्थित होते हैं, तब सूर्य बुरा करने का इच्छुक होता है। स्थानबल और किसी तरह (उच्च, स्वग्रही, मित्र क्षेत्री) सूर्य स्थित होने से इंसान का प्रताप चारों ओर फैलता है।



◆इंसान बहुत अपनी प्रतिष्ठा का का ख्याल रखने बनता हैं।



◆इंसान सत्ता चलाने के प्रति अधिक लालसा वाला बनता हैं।



◆इंसान बहुत अधिक इच्छाओं की लालसा रखने वाला बनता हैं।



◆किसी भी तरह व किसी भी विषय पर बेझिक अपना हाथ डालने से कतराता नहीं हैं।



◆दूसरों पर अपना असर डालकर दबदबा रखने वाला होता है।



◆बहुत बड़ा बनने की इच्छा रखने वाले बनते हैं।



◆इंसान सोचने-समझने और किसी भी विषय पर जल्दी सही निर्णय को लेने की शक्ति वाले बनते हैं।



◆सभी तरह से सभी सभी विषयों के बारे जानकारी रखने वाले बनते हैं।   


बुध:-नौ ग्रहों में बुध को युवराज का स्थान प्राप्त हैं और उत्तर दिशा पर स्वत्व रखता हैं।



भावों पर असर:-भावानुसार बुधादित्य योग का असर निम्नलिखित रूप में होता हैं।


◆जन्मकुण्डली के चौथे घर कामना पूर्ति से प्राप्त होने वाले आराम व संतुष्टि के स्थान में स्थान बल बहुत ही असरदार एवं फलप्रद बनता है।



◆चौथे स्थान के पीछे के स्थान अर्थात् तीसरे स्थान और आगे के स्थान अर्थात् पांचवें घर में अपना प्रभाव रखते हुए असरदार एवं फलप्रद बनता है।



◆जन्मकुण्डली में दशवें एवं चौथे स्थान में बुध असरदार बनता है।



◆बुध नवें घर एवं पांचवें व नवें घर में बहुत ही अच्छा फल प्रदान करता हैं। 



◆जन्मकुण्डली में तकलीफ देने वाले छठे स्थान दुश्मन एवं संकट से वेदना और आठवें स्थान उम्र, दुर्घटना आदि में जब बुध ग्रह सूर्य के साथ एक ही स्थान में बैठते हैं, तब बहुत ही अच्छा बल देते हैं।



राशियों पर असर:-द्वादश राशियों में बुध मिथुन का स्वामी होता हैं, यह बुध की अपनी राशि होती हैं, बुध कन्या राशि में उच्च राशि का एवं मीन राशि में नीच राशि का होता हैं।



शुभ प्रभावशाली:-जन्मकुण्डली के द्वादश भाव के किसी भी भाव में जब उच्च, स्वग्रही या मित्र क्षेत्री राशि में स्थित होता हैं, उनमें से सबसे अधिक सिंह राशि में बहुत ही असरदार एवं फलप्रद होता है।



बुध राजयोग:-जब जन्मकुण्डली में पहले, चौथे, सातवें एवं दशवें घर में से किसी भी घर में अपनी राशि में स्थित होता हैं या अपनी मीन उच्च राशि में स्थित होने से बुध राजयोग बनाता हैं।



बुध शुभत्व होने पर:-



◆जब जन्मकुण्डली में बुध अच्छी स्थिति में होता हैं, तब मनुष्य को मीठी बोली से बोलने वाला बनाता हैं।



◆इंसान को किसी भी क्षेत्र में व्यवहार कुशल, फुर्तीला और होशियार बनाता हैं।



◆इंसान को किसी भी कार्य की करने के लिए शीघ्र ही प्रेरित करके जल्दबाजी से करवाने वाले बनाता हैं।



◆इंसान को गणित अर्थात् किसी भी चीज के हिसाब-किताब का सही आकलन में प्रवीण बनाता हैं।



बुधादित्य योग क्या हैं?:-बुध और सूर्य के बीच अंशात्मक रूप से आठ अंश का अन्तर रहता है। वैसे परिवर्तन योग विशेष योग बुधादित्य योग बनता है।



द्वादश या बारह लग्नों के अनुसार बुधादित्य योग के शुभ-अशुभ फल:-द्वादश या बारह लग्नों जैसे-मेष से मीन लग्न में बनने वाले बुद्ध-आदित्य योग के फल निम्नलिखित हैं।



1.मेष लग्न में बुधादित्य योग:-मेष लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली सूर्य पांचवे स्थान का मालिक एवं बुद्ध तीसरे एवं छठे घर का स्वामी होता है। मेष लग्न की जन्मकुंडली में जन्में मनुष्य की जन्मकुंडली में जब मेष लग्न बुधादित्य योग बनता हैं, तब


◆इंसान को बलवान एवं मेहनत को करने वाला होता हैं।



◆इंसान हिम्मती होता हैं।



◆इंसान को सोचने-समझने और किसी भी विषय को पक्के इरादे से पूर्ण करने की मानसिक शक्ति में दक्षता वाले होता हैं।



◆इंसान को अद्भुत  स्वाभाविक शक्ति से युत होता हैं, जिससे अनेक तरह की कार्य को पूर्ण करने से सम्बंधित योग्यता रखते हैं और जगत में उच्च स्थान की प्राप्ति करते हैं।



उदाहरणस्वरूप:-स्वर्गीय फिल्म मंचीय कलाकार अशोक कुमार और सदाबहार श्री देवानंद इन दोनों के मेष लग्न की कुण्डली में जन्म हुआ था। इनकी जन्मकुण्डली के छठे स्थान में कन्या राशि उच्च राशि स्थित हैं और पांचवें घर के स्वामी के साथ सूर्य स्थित होता हैं, जो एक साथ बैठकर मजबूत स्थिति में बुद्ध-आदित्य योग बनाया। इसी कारण सिनेमा के क्षेत्र में लंबे समय तक अपना रुतवा बहुत समय तक रखा था। 




2.वृषभ लग्न में बुधादित्य योग:-वृषभ लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली में सूर्य चौथे स्थान का मालिक एवं बुद्ध दूसरे एवं पांचवें घर का स्वामी होकर लग्न में बुधादित्य योग बनता हैं, तब



◆इंसान सोचने-समझने एवं अपने किसी भी बात या क्षेत्र में सही-गलत को सही तरीके पहचाने की अद्भुत शक्ति वाले होते हैं।



◆इंसान बहुत अधिक बोलता हैं, बोलने में किसी वाणी के द्वारा अगले वाले को बोलने में चित कर देता हैं।



◆इंसान अपने किसी भी कार्य को करते समय पूरी होशियारी रखता हैं और कार्य को पूर्ण निपुणता से पूर्ण करता हैं।



◆इंसान अपनी कांतियुक्त तेज के द्वारा दूसरों को अपनी तरफ खींचने का सामर्थ्य रखता हैं।



◆इंसान के अंदर अद्भुत शक्ति ईश्वर के द्वारा वरदान स्वरूप प्राप्त होती हैं।



उदाहरणस्वरूप:-स्वर्गीय स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर की वृषभ लग्न की कुण्डली में जन्म हुआ था। इनकी जन्मकुण्डली के पांचवें स्थान में कन्या राशि उच्च राशि स्थित हैं और चौथे घर के स्वामी के साथ सूर्य स्थित होता हैं, जो एक साथ बैठकर मजबूत स्थिति में बुद्ध-आदित्य योग बनाया। उनको कोयल के समान मीठी वाणी का कंठ ईश्वर के द्वारा प्राप्त होने से विश्व में प्रसिद्धि को प्राप्त किया।




3.मिथुन लग्न में बुधादित्य योग:-मिथुन लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली सूर्य तीसरे स्थान का मालिक एवं बुद्ध पहले एवं चौथे घर का स्वामी होकर लग्न में बुधादित्य योग बनता हैं, तब



◆इंसान अपनी मेहनत के बल से अद्भुत और बहुत जल्द सब बातें को समझ लेने वाला तेज बुद्धि होते हैं।



◆विश्व में अपने नाम के यश को अपने बलबूते से फैलाने वाले होते हैं।



उदाहरणस्वरूप:-प्रख्यात विज्ञानी स्वर्गीय अल्बर्ट आईन्सटाईन मिथुन लग्न की कुण्डली में जन्म हुआ था। इनकी जन्मकुण्डली के दशम स्थान में मीन राशि में सूर्य-बुद्ध का बुद्ध-आदित्य योग बनाया एवं साथ में शुक्र उच्च बुद्ध के कारण बुद्ध का नीच भंग हुआ एवं विश्वभर में अपना नाम किस्मत ने किया। 



4.कर्क लग्न में बुधादित्य योग:-कर्क लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली के सूर्य दूसरे स्थान अर्थात् धन, कुटुम्ब का मालिक एवं बुध तीसरे एवं बारहवें घर का स्वामी होकर लग्न में बुधादित्य योग बनता हैं, तब



◆इंसान को विश्व में अपनी प्रसिद्धि की प्राप्ति करवाती हैं।



◆इंसान को प्रतिष्ठा के बल पर आज्ञा-पालन कराने की शक्ति और अधिकार के द्वारा दूसरों पर दबदबा बनाये रखने में रुचि वाला होता हैं।



◆इंसान को दुर्लभ किसी क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य के लिए सम्मान के रूप में लिखित अलंकरण की प्राप्ति दिलाता हैं।



उदाहरणस्वरूप:-भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी जी के कर्क लग्न में जन्म होने से कर्क लग्न में पांचवे स्थान के वृश्चिक राशि में सूर्य-बुद्ध युति बुद्ध-आदित्य योग बना।



◆जिससे इनको बहुत ही उच्चकोटि के कांतियुक्त तेजवान बनाकर दूसरों को अपने तरफ खींचने के गुण थे।



◆इनका प्रताप चारों ओर फैला था।



◆इनमें सोचने-समझने एवं निर्णय लेने की अनूठी क्षमता थी। इस तरह निर्णय लेने की अनूठी क्षमता के बल से पश्चिमी पाकिस्तान से अलग करवाकर कर बांग्ला देश बनाने में अतुलनीय योगदान दिया एवं पश्चिमी पाकिस्तान का एक हाथ काट दिया। 




5.सिंह लग्न में बुधादित्य योग:-सिंह लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली के लग्न स्थान का सूर्य मालिक एवं बुध दूसरे एवं ग्यारहवें घर का स्वामी होकर लग्न में युति के द्वारा बुधादित्य योग बनता हैं, तब

  


◆सिंह लग्न में जन्मकुण्डली सूर्य के पहले स्थान का स्वामी होनेसे बुधादित्य योग में सूर्य की विशिष्ट भूमिका रहती है।



◆इंसान को रुपये-पैसों एवं परिवार-कुटुम्ब से सम्पन्न बनाता हैं।



◆इंसान को नवीन जगहों से आय के साधन मिलने से वह उन जगहों से आमदनी को प्राप्त करता हैं।



◆इंसान के जीवन में जगह-जगह पर मान-सम्मान मिलता हैं।



◆इंसान को बहुत ही समझदार बनाता हैं।




उदाहरणस्वरूप:-श्रीलंका के भूतपूर्व प्रमुख श्रीमति शिरिमाओ भण्डारनायक का सिंह लग्न में जन्म हुआ। इनके नवें स्थान में मेष राशि में उच्च राशि में सूर्य के बुद्ध-आदित्य योग के कारण इन्होंने बहुत ऊंचाईयों को प्राप्त की थी। 



6.कन्या लग्न में बुधादित्य योग:-कन्या लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली के बारहवें स्थान का सूर्य मालिक एवं बुध पहले घर का स्वामी एवं दशवें घर का स्वामी होकर लग्न में युति के द्वारा बुधादित्य योग बनता हैं, तब



◆इंसान को तीव्र बुद्धि वाला बनाता हैं।



◆इंसान की तरह पहले कभी दूसरा नहीं हुआ हैं, ऐसा अनोखा बनाता है।



◆इंसान को कांतियुक्त बनाकर दूसरों पर अपना प्रभाव रखने वाला बनाता हैं।



◆इंसान को आत्मा और ब्रह्म के संबंध में ज्ञान प्राप्त करने वाला समझदार बनाता हैं।




उदाहरणस्वरूप:-भारत के भूतपूर्व प्रमुख स्वर्गीय डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकिशन जी का जन्म कन्या लग्न में हुआ था।  के थे। कन्या राशि लग्न में बुध उच्च राशि होकर बैठने से बहुत ही जल्दी नाम की प्रसिद्धि कराने में बहुत शुभ पंचमहापुरुष योग का निर्माण भी हो रहा हैं और बारहवें स्थान में अपनी सिंह राशि में सूर्य व चलित में लग्न मे बुधादित्य योग बनने से उनको बहुत ही जानकर एवं समझदार और सोचने-समझने एवं जल्दी उचित निर्णय लेने वाला बनाकर उच्च स्थान पर बिठाया।




7.तुला लग्न में बुधादित्य योग:-तुला लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली में ग्याहरवें स्थान का सूर्य मालिक एवं बुध नवें एवं बारहवें घर का स्वामी होकर लग्न में युति के द्वारा बुधादित्य योग बनता हैं, तब


◆इंसान के प्रति दूसरे इंसान के द्वारा विरोध करने की कोई गुंजाइश की संभावना नहीं होती हैं।



◆इंसान लोक-रीति का पालन करने वाला और दूसरों के साथ अच्छी तरह से सलूक करने वाला होता हैं।



◆इंसान सोच-समझकर एवं सलीके से काम करने वाला और दूर की सोचने वाला होता हैं।



◆इंसान स्वभाव से अपनी सोच के अनुसार कार्य करने वाला और कहीं पर न टिकने वाला होता हैं।



◆इंसान अपने स्वार्थ के लिए दूसरे के साथ छल करने से भी पीछे नहीं हटते हैं।



◆इंसान बहुत ही अधिक बोलने वाले होते हैं, दूसरों को अपनी बात कहने का मौका नहीं देते हैं और डिंग हाँकने वाले होते हैं।



◆बहुत अधिक जानकारी होने से और अपनी समझदारी के द्वारा अपने यश-कीर्ति, नाम और बहुत ज्यादा रुपये-पैसों एवं जमीन-जायदाद की प्राप्ति करके बहुत उच्च स्थान पर यह योग बैठाता हैं।



 

उदाहरणस्वरूप:-प्रमुख रामायणी पूज्य श्री मोरारी बापु का तुला लग्न में जन्म हुआ हैं, उनकी जन्मकुण्डली के बारहवें स्थान में ग्याहरवें स्थान स्वामी सूर्य कन्या राशि में उच्च बुध के साथ बैठकर युति करते हुए बहुत ही असरदार एवं फलदायी बुधादित्य योग का अच्छा संयोग बना रहे हैं। जिससे उनके कंठ में सरस्वती का वास होने से मीठी वाणी के द्वारा सुनने वाले दूसरों को मंत्रमुग्ध करने की विशिष्ट शक्ति प्रदान करती हैं। सम्पूर्ण रामायण को जीवन में स्थान देकर अपने देश और दूसरे देश में अपने नाम को चारों तरफ फैलाकर यश एवं दुर्लभ कामयाबी प्राप्त की हैं। 



भारत के प्रधान मन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म तुला लग्न में हुआ है, उनकी जन्म कुण्डली में तीसरे भाव में धनु राशि में सूर्य-बुध एक साथ बैठकर बुधादित्य योग बना रहे हैं, जिससे उनका प्रताप चारों तरफ फैला था। उनको दूसरों से किसी तरह भय रहित बनाया और बहुत अधिक समझदार बनाया जिससे उनमें बोलने की अद्भुत शक्ति के प्रदान किया और अपने वाणी के द्वारा सुनने वाले को मोहित कर देते थे और उनको देश का सर्वोच्च पद प्रधानमंत्री तक बना दिया। उन्होंने अठारह पार्टियों को लेकर सरकार चलाई एवं पूर्ण कार्यकाल किया और उन्होंने एक सप्ताह में सात अणु बम  विस्फोट का परीक्षण किया और पूरे विश्व को बताया कि भारत देश किसी भी देश से कम नहीं हैं। 





8.वृश्चिक लग्न में बुधादित्य योग:-वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली के दशवें स्थान में सूर्य मालिक एवं बुध आठवें एवं ग्यारहवें घर का स्वामी होकर लग्न में युति के द्वारा बुधादित्य योग बनाता हैं, तब



◆इंसान के सोचने-समझने की शक्ति बहुत ही तीक्ष्ण होती हैं।



◆इंसान अपने कार्य क्षेत्र में दक्षता से युत होता हैं।



◆इंसान बहुत ही समझदार और अक्लमंद होता हैं।



◆इंसान की जन्मकुंडली के उच्च जगह पर बुधादित्य योग बनने से इंसान को बहुत ऊँचे ओहदे की प्राप्ति करते हैं।


 


उदाहरणस्वरूप:-बांग्ला देश के भूतपूर्व प्रमुख स्वर्गीय शेख मुजीबर रहमान वृश्चिक लग्न में जन्म हुआ हैं। उनकी जन्मकुण्डली में नवें स्थान कर्क राशि में बुद्ध-आदित्य योग का निर्माण हुआ।

बांग्ला देश के भूतपूर्व प्रमुख स्वर्गीय शेख मुजीबर रहमान को निर्भीक बनाकर, जोश व उत्साह से परिपूर्ण करके, अपनी बात पर अड़े रहने वाला बना दिया, उनका प्रभुत्व चारों तरफ फैला जिससे उनको देश में उच्च स्थान की पदवी पर बैठाया। 




9.धनु लग्न में बुधादित्य योग:-धनु लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली नवें स्थान का सूर्य मालिक होकर बहुत निर्णय प्रदान करने में अहम रोल अदा करता हैं एवं बुध सातवें एवं दशवें घर का स्वामी होकर लग्न में युति के द्वारा उत्तम कोटि का बुधादित्य योग का निर्माण होता हैं।


◆इंसान अपनी तीक्ष्ण सोच-समझने की शक्ति के द्वारा और अपने निरन्तर किये जाने मेहनत के बल से दुनिया को अपने सामर्थ्य के बल से झुका देता हैं।



◆इंसान अपने यश को जगत के कोने-कोने में फैलाने वाले होते हैं, जिससे उनका नाम प्रत्येक जगह पर होता हैं।





उदाहरणस्वरूप:-स्वर्गीय विवेकान्द जी का धनु लग्न में जन्म हुआ। उनकी जन्मकुण्डली में दूसरे स्थान में मकर राशि में सूर्य-बुद्ध स्थित होने से बहुत ही मजबूत बुधादित्य योग बना। उन्होंने आत्मा और ब्रह्म के संबंध में ज्ञान प्राप्त किया, ध्यान के प्रति उनमें भाव को जागृत किये, धार्मिक संस्कारों से परिपूर्ण भलाई एवं नेक कार्य को किया, ब्रह्मज्ञानी, बिना किसी से डरे हुए अपने कार्य को पूर्ण करने वाले, बहुत सोच-समझकर सही निर्णय लेने वाले और बड़े बदलाव की कोशिश करने वाले उनको बनाया। जिससे उन्होंने देश और दूसरे देशों में अपने नाम की गरिमा को बढ़ाकर विदेशों में दुर्लभ कामयाबी प्राप्त की थी।


 



10.मकर लग्न में बुधादित्य योग:-मकर लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली के आठवें स्थान का सूर्य मालिक एवं बुध छठे एवं नवें घर का स्वामी होकर लग्न में युति के द्वारा बुधादित्य योग बनता हैं, तब



◆इंसान को किस्मत हर समय उनका साथ देती हैं।



◆इंसान को बहादुर एवं हिम्मती बनाता हैं।



◆इंसान में भरपूर जोश को भरके प्रत्येक कार्य को करने का सामर्थ्य प्रदान करता हैं।



◆इंसान में ज्यादा-ज्यादा प्राप्त करने की इच्छाएं होती हैं, जिसके कारण दुर्लभ दक्षता के द्वारा अपने कार्य क्षेत्र में सफलता को प्राप्त करने वाले होते हैं।



◆इंसान को किसी से भय नहीं लगता हैं।



◆इंसान में सही राह पर चलते हुए सही मन से सोचते हुए उचित निर्णय लेने वाले होते हैं।


 


उदाहरणस्वरूप:-स्वर्गीय मदर टेरेसा का जन्म मकर लग्न में हुआ था। उनकी जन्मकुण्डली के आठवें स्थान में सिंह राशि में स्वग्रही सूर्य एवं नवें स्थान में उच्च राशि स्थित हैं और सूर्य एवं बुध एक-दूसरे के अगल-बगल में स्थित होकर बुधादित्य योग का फल प्रदान कर रहा हैं। जिससे स्वर्गीय मदर टेरेसा ने समस्त जगत के मानव पीड़ितों की सेवा करते हुए भलाई के कार्यों को किया। जिससे उनमें दिनों-दिन मानव पीड़ितों की सेवा करने की श्रेष्ठता की तरफ रुझान को बढ़ाया जिससे उन्होंने दुर्लभ कार्य क्षेत्र में कामयाबी को प्राप्त करके विश्व का सर्वश्रेष्ठ नोबेल पुरस्कार और बहुत निर्मल एवं पवित्र त्यागी जीवन को जीते हुए संत की पदवी को बुधादित्य योग के द्वारा प्राप्त किया।




उदाहरणस्वरूप:-महान क्रिकेटर श्री सुनिल गावस्कर का जन्म मकर लग्न में हुआ। मकर लग्न की जन्मकुण्डली के छठे भाव में अपनी मिथुन राशि बुद्ध-सूर्य एक साथ बैठे होने से एक उत्तमकोटि का बुधादित्य योग बन हैं।



जिसके कारण समस्त जगत में क्रिकेट मैदान में ओपनर बेटिंग करते हुए कई मुकाम को हासिल किया और समस्त जगत में अपने नाम की कीर्ति को फैलाकर सफलता प्राप्त की।




11.कुंभ लग्न में बुधादित्य योग:-कुंभ लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली सातवें स्थान का सूर्य मालिक एवं बुध पांचवें एवं आठवें घर का स्वामी होकर लग्न में युति के द्वारा बुधादित्य योग बनता हैं, तब



◆इंसान अपने सोचने-समझने की उच्च कोटि की दक्षता वाले होते हैं।



◆इंसान लोक-रीति का पालन करने वाले एवं अच्छे आचरण से युत होता हैं।



◆इंसान वाणी से बिना मतलब के कुछ शब्दों को नहीं निकालता हैं और जितनी आवश्यकता होती हैं, उतना ही बोलता हैं।



◆इंसान अपने मान-गुमान करने वाला होता हैं।



◆इंसान बोली को बोलते समय होशियारी रखता हैं।



◆इंसान अपनी जिद्द को पूरा करने की हर संभव कोशिश करने वाला होता हैं।



◆इंसान वाणिज्य करके जीविका निर्वाह करने वाला होता हैं।



◆इंसान असाधारण देखने में सुखद रूप को एक-दूसरे से तालमेल द्वारा उत्तम या प्रभावशाली दुर्लभ किसी काम को सिद्ध करवाने में कामयाबी दिलवाता हैं।




उदाहरणस्वरूप:-सिनेमा जगत के मंचीय कलाकार श्री अमिताभ बच्चन का जन्म कुंभ लग्न की जन्मकुण्डली में हुआ। उनकी जन्मकुण्डली के सातवें घर में सूर्य अपनी सिंह राशि एवं बुध कन्या उच्च राशि में आठवें घर में स्थित होने के कारण बलवान उच्च-बुध से बुधादित्य योग बना हैं जिसके कारण भारतीय सिनेमा जगत उद्योग में सबसे लम्बे समय तक अपना रुतबा बनाकर रखा हैं और विश्व भर में उत्तम कोटि के सितारे के रूप में अपना नाम रोशन किया हैं। 




12.मीन लग्न में बुधादित्य योग:-मीन लग्न में जन्म लेने वाले मनुष्य कि जन्मकुण्डली सूर्य दुश्मन छठे स्थान का मालिक एवं बुध चौथे एवं सातवें घर का स्वामी होकर लग्न में युति के द्वारा बुधादित्य योग बनता हैं, तब



◆इंसान को बहादुर एवं हिम्मती बनाता हैं।



◆इंसान में भरपूर जोश को भरके प्रत्येक कार्य को करने का सामर्थ्य प्रदान करता हैं।



◆इंसान को किसी से भय नहीं लगता हैं।



◆इंसान सोच-समझकर एवं सलीके से काम करने वाले होता हैं।


◆इंसान को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विशेष जानकर बनाता हैं।


◆इंसान में अपने अच्छे आचरण, कौशल एवं गुण के द्वारा दूसरों से अपना काम निकालने के गुण होते हैं।



◆इंसान में सही समय सही निर्णय लेने की मानसिक शक्ति होती हैं।



उदाहरणस्वरूप:-स्वर्गीय कविवर श्री रविन्द्रनाथ टैगोर मीन लग्न की जन्मकुण्डली में जन्म हुआ था। उनकी जन्मकुण्डली के दूसरे धन स्थान में उच्च राशि में सूर्य एवं बुद्ध एक साथ बैठकर उनमें अद्भुत प्रभावशाली बुद्ध-आदित्य योग को बनाया। 



◆स्वर्गीय कविवर श्री रविन्द्रनाथ टैगोर को एक बहुत ही उच्च कोटि का साहित्य की रचना करने वाला कवि बनाया।



◆जिससे उन्होंने समस्त जगत में अपना नाम रोशन किया। उनके द्वारा रचित कविता गीतांजली के लिए उनको नोबेल पुरस्कार 1913 में मिला।