ऊपरी बाधा कैसे प्रभावित करती हैं? जानें लक्षण एवं मुक्ति के उपाय (How upper obstruction affects? know symptoms and remedies):-जब से सृष्टि की रचना हुई हैं और इंसान ने जैसे-जैसे अपने सभी क्षेत्रों में विकास किया हैं, उसे अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किसी न किसी से भय रहा हैं। इस तरह इंसान की मृत्यु हो जाने के बाद उसकी गति हुई हैं या नहीं। इन सबके विषय में प्राचीन काल से बहुत सारी धारणाएं मिलती हैं। इंसान के शरीर एवं मन पर किसी ने अपने काबू में कर रखा हैं। इसके विषय में बहुत सारा ज्ञान प्राचीन काल के वर्णित शास्त्रों में मिलता हैं। इन सभी विषयों में से एक विषय ऊपरी बाधा या ऊपरी हवाओं का भी हैं। प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों, तपस्वियों, आयुर्वेद के जानकारों और ज्योतिष शास्त्र के जानकारों और धर्मग्रंथों में ऊपरी हवाओं, नजर दोषों आदि का वर्णन किया हैं। कुछ ग्रंथों में इन्हें बुरी आत्मा कहा गया है तो कुछ अन्य में भूत-प्रेत और जिन्न कहा हैं। जिसमें बुरी शक्तियों का, तंत्र-मंत्र-यंत्र, जादू-टोना एवं टोटके के द्वारा इंसान को अपने काबू में किया जा सकता हैं। ऐसा ही प्रक्रिया प्राचीनकाल में की जाती थी और आज के युग में किया जा रहा हैं। इन क्रियाओं का वजूद आ भी मिलता हैं। इस तरह इंसान अपने जीवन काल में सामाजिक, आर्थिक एवं बौद्धिक क्षेत्र में अक्सर किसी दूसरे इंसान से सुनता हैं या फिर उसने देखा हैं कि अमुक इंसान को ऊपरी बाधा ने घेर रखा हैं और वह शरीर उस ऊपरी बाधा की कैद में और तांत्रिक क्रिया और झाड़-फूंक करने वाले ओझाओं के पास ले जाने पर उनके द्वारा इन ऊपरी बाधाओं या नकारात्मक शक्ति का वजूद बताया जाता हैं और कहा जता हैं कि इस अमुक इंसान पर इस का असर हो गया है या फिर इस अमुक इंसान पर असर नहीं हैं। यह यथार्थ रूप से समझना एवं समाधान करने का गहन विषय हैं।
प्रेत छाया:-जब किसी भी मरे हुए इंसान के अविनाशी अतींद्रिय तत्व की गति पूर्ण नहीं होने से वह इधर-उधर भटकते हुए पृथ्वी लोक में निवास करने वाले इंसानों को अपनी मौजूदगी का अहसास करवाते हैं, जो कि किसी इंसान को क्षीण अवशेष के रूप में परछाईं के रूप या जीवित इंसानों के रूप कौतूहल उत्पन्न करने की ध्वनि, महक आदि में दिखाई देती हैं, उसे प्रेत छाया या ऊपरी बाधा कहा जाता हैं।
पिशाच:-जिनका स्वरूप बहुत ही बेडौल और डरावना होता हैं, जिनमें किसी का स्वरूप ग्रहण करने का सामर्थ्य होता हैं, जो सुनसान निवास स्थान, जल के स्रोत, गलत कार्यों एवं बुरे कर्मों को करने वाले इंसानों, रास्ते आदि के छोर के वृक्ष को रहते हुए इंसानों के अच्छे कार्यों में रुकावट करते हैं और छोटे बच्चों को अधिक पीड़ा पहुंचाते हैं, उसे पिशाच कहा जाता हैं।
ब्रह्मराक्षस:-यह सत्ता युक्त ऊपरी हवाओं का एक वर्ग विशेष है जिसके अन्तर्गत अगस्त्य और विश्वामित्र के वंशज माने जाते हैं। सुरभि वन इनका स्थान है तथा लिसोड़े के वृक्ष पर यह अधिकतर निवास करते हैं। मृत्यु के उपरान्त प्रेतयोनि प्राप्त करने वाले कि ब्रह्मराक्षस कहा जाता हैं।
◆पुरुष और स्त्रियों से संबंध रखने के लिए मना किए हुए एवं मन में लड़ाई की तीव्र तमन्ना से झकडे हुए विशेषता से युक्त श्रेणी के रोग से होते हैं। सरल रुझानों के उपद्रव आदि को बलपूर्वक कुचलते के फलस्वरूप उनकी निराशाजनक अतृप्त भावनाएं इस रूप में सामने आ जाती हैं।
◆जब किसी ने इन ऊपरी बाधा से युक्त बुरी हवाओं के असर को भोग कर पीड़ा पाई हैं और भौतिक शरीर छोड़ने वाली आत्मा सूक्ष्म शरीर को धारण करने के बारे प्रत्यक्ष रूप में दर्शन किया हैं?
◆ऊपरी बाधा या ऊपरी हवाओं के बारे में सभी जीवनशैली या समाज की आत्मिक और भौतिक उन्नति के बारे में विशेषताओं के सामूहिक रूपों में श्रद्धा और विश्वास करती हैं, इनके बारे में जानकारी देने का ढंग अलग-अलग हो सकता हैं।
इंसान के शरीर के दो भाग होते हैं एक शरीर का भाग जो स्पष्ट रूप से बड़े आकार का ज्ञानेंद्रियों द्वारा ग्रहण किया हुआ और दूसरा बहुत ही बारीक भी होता हैं। इंसान के मृत्यु के बाद शरीर से अलग होने को ऊपरी हवा कहा जाता हैं।
पाषाण काल में:-जब इंसान की मृत्यु हो जाती थी, तब उस इंसान के हाथ-पैर बांधकर पाषाणों के बीच में दबा दिया करते थे, जिससे शरीर प्राणयुक्त अविनाशी अतींद्रिय तत्व का शरीर पर फिर काबू करके या अत्यन्त छोटे शरीर के द्वारा रात में घूम-फिर नहीं सके। जिन्होंने को बाहरी वातारण में उपस्थित छोटे स्वरूप वाले शरीर के प्रति यकीन नहीं करते, उनके मतानुसार ऊपरी हवा मृत्यु इंसान शरीर प्राणयुक्त अविनाशी अतींद्रिय तत्व के रूप में व्यवहार करते हैं। सृष्टि में इंसान के उत्पन्न होने के साथ ही ऊपर हवाओं एवं ऊपरी बाधा के द्वारा इंसान को डराने और अपने मोह के प्रति झुकाव करने जैसे एक-दूसरे के साथ विपरीत सोच की पैदाइस करते रहे हैं। पुराने जमाने से वर्णित किसी घटना के हाल एवं मामले इंसान की परछाईं के रूप में अपनी खास जगह रख रहे हैं।
प्राचीन समय से ऊपरी बाधा के विषय किस्से-कहानियों और जन मानसों के द्वारा अक्सर अनेक तरह की विलक्षण बातें सुनने को मिलती थी। ऊपरी हवा ने किसी मनुष्य को अपने काबू में कर लिया हैं, जिससे उस मनुष्य का कोई भी तरह नियंत्रण नहीं हैं। दुबले-पतले शरीर वाले मनुष्य में भी बहुत ताकत आ जाती हैं, जिससे उसको लोहे की बेड़ियों में जकड़ कर रखना पड़ता हैं। जब किसी भी व्यक्ति को ऊपरी बाधा के कारण तरह-तरह की पीड़ाएं को भोगना पड़ता था। तब ऊपरी बाधा के विषय में अनेक तरह धार्मिक आस्था से सम्बंधित विवेकशून्य बने हुए थे। इस तरह की धारणाओं के लिए अनेक मनुष्यों को जादू-टोने आदि के द्वारा दूसरे मनुष्यों को पीड़ा और नुकसान पहुंचाने के लिए उनको सजा दी जाती थी। उनको तरह की यातनाओं के रूप सजा दी जाती थी। इस तरह की प्राचीन बातों में वास्तविकता बहुत कम दिखाई देती थी।
कुछ विद्वानों के विचारों के अनुसार:-कुछ बुद्धिजीवियों के द्वारा यहां तक कि बातों का प्रचार मिलता हैं कि कुछ मनुष्य ऊपरी बाधा या ऊपरी हवा को योग-तपस्या की साधना के द्वारा दिव्य शक्तियों को प्राप्त करके इन ऊपरी हवाओं को काबू करके अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करवा लेते थे।
ऊपरी बाधा का अर्थ:-वातावरण में उपस्थित हल्के या धुंधलेपन में विद्यमान परछाई के रूप में निराशावादी सामर्थ्य की शक्ति होती हैं, जो कि आँखों के सामने होते हुए आँख से स्पष्ट रूप से दिखती नहीं हो और पृथ्वी के जीवों पर तथा उनके शरीर को अपने काबू में करने की शक्ति रखती हैं और अपने असर में ले लेती है, उसे ऊपरी बाधा कहते हैं।
ऊपरी बाधा या ऊपरी हवा की सत्यता क्या हैं?:-इस विषय के बारे में सोचने को मजबूर होना पड़ता हैं। बहुत समय व्यतीत हो जाने के बाद भी आधुनिक युग में भी ऐसी सोच की विचारधारा चल रही हैं। बीते हुए जीवन की घटनाओं के क्रम में, सभी भाषाओं की पुस्तकों के समूह में नैतिक सत्य और मानवभाव बुद्धिमत्ता तथा व्यापकता से प्रकट किए गए भाव की पुस्तकों में और चित्र एवं ध्वनि के साथ प्रस्तुत कहानीयों या कथाओं में ऐसे पात्रों का जिक्र होता रहता हैं।
आधुनिक युग में ऊपरी बाधा या हवाओं की चिकित्सा का अभी तक चिकित्सा विज्ञान पद्धति में प्रयास चल रहा हैं और उचित समाधान नहीं मिल पा रहा हैं। आधुनिक युग विज्ञान का युग होते हुए भी वैज्ञानिक एवं चिकित्सक संकोच सोच के साथ ऊपरी बाधा या हवाओं को मानते हुए कहते हैं कि ऊपरी बाधा या हवाओं को तंत्र-मंत्र के माध्यम से एवं किसी के द्वारा तांत्रिक प्रयोग से, मयूर पंख से झाड़ू या चिमटा या झाड़ू के द्वारा मंत्र आदि पढ़कर मुँह से वेग पूर्वक हवा को छोड़ने की क्रिया, तंत्र-मंत्र-यंत्र गण्डे या मंत्र से परिपूर्ण धागा-ताबीज (जब मंत्र या तंत्र या यंत्र को किसी खोखले धातु या कपड़े के अंदर के अंदर सुरक्षित रखते हुए पहनाया जाता हैं, जिससे दूसरे की नजर दृष्टि दोष या बाहरी वातावरण की बुरी शक्तियों का असर नहीं होवे और उनसे सुरक्षा हो सके) आदि की मदद से ऊपरी बाधा या ऊपरी हवायों से छुटकारा या इनसे बचा प्राप्त किया जा सकता हैं।
आधुनिक युग को किसी वस्तु या विषय के बारे में सुसंगठित, सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध एवं प्रयोगों पर आधारित ज्ञान कराने वाला हैं, जो इस तरह की सोच को कबूल करने को तैयार नहीं होगा, साथ ही यह भी देखना होगा कि पश्चिमी देशों में भी इन बातों पर विश्वास किया जाता रहा है और आज भी किया जाता है। पश्चिमी देशों में अनेक मनुष्यों के द्वारा आधिकारिक कथन भी किये हैं कि उन्होंने ऊपरी हवा को अदृश्य रूप से चलते-फिरते देखा हैं। पश्चिमी देशों में ऊपरी हवा के विषय पर बहुत अधिक काम हुआ हैं। वैज्ञानिक ऊपरी हवा की तस्वीर लेने के लिए ऐसे कैमरे की खोज करने में लगे हुए। पश्चिमी देशों में ऊपरी हवा तथा आत्माओं वाले विषयों पर सर्वाधिक फिल्में बनी हैं जिनमें से अनेक फिल्मों ने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की हैं। इसलिये इस विषय को एकदम से नकारा नहीं जा सकता है। समस्त जगत में ऊपरी बाधा के वजूद को प्रत्येक देश, राज्य, प्रत्येक धर्म-पंथ मानते हैं।
ऊपरी हवा या ऊपरी बाधा के विषय पर खोजबीन का बहुत कम काम हुआ हैं इसलिये सभी विद्वानों के अलग-अलग मत का जन्म हुआ हैं और उन सबकी अलग-अलग बातों पर सभी की सहमति भी एक नहीं हैं। ऊपरी बाधा का विषय प्राचीन समय एवं जनमानस की कहि हुई और सुनी हुई बातों पर अधिक आश्रित हैं, लेकिन सभी जनमानस ऊपरी हवा की सत्यता के बारे में एकमत रखते हैं, इनका भी वजूद विद्यमान हैं।
जानकारों की सोच के अनुसार:-ऊपरी हवाओं के विषय का वजूद से इनकार नहीं किया जा सकता है। जानकारों का कहना है कि शरीर से प्राण निकलने के बाद अविनाशी अतींद्रिय तत्व दूसरे शरीर को धारण कर लेता हैं, उस मृत्यु युक्त शरीर का दाह संस्कार किया जाता हैं, तब वह राख में बदल जाता हैं, लेकिन कभी-कभी वह अविनाशी अतींद्रिय तत्व दूसरे शरीर को तुरन्त धारण नहीं कर पाता हैं, जिससे वह अविनाशी अतींद्रिय तत्व इधर-उधर भटकता रहता हैं। मनुष्य के मरने के बाद उसके जन्म मरण के बंधन से मुक्ति नहीं मिलती हैं अर्थात मोक्ष गति की प्राप्ति नहीं होने पर यह अविनाशी अतींद्रिय तत्व पृथ्वी लोक में इधर-उधर घूमता-फिरता रहता हैं। इनमें से अनेक अविनाशी अतींद्रिय तत्व किसी को किसी भी तरह से हैरान नहीं करते हैं, लेकिन जो हैरान करते हैं, वह उस मनुष्य के साथ-साथ दूसरे मनुष्यों को भी परेशान कर देती हैं।
ऊपरी बाधा के असर के कारण:-ऐसे तो अलग-अलग जानकारों ने अलग-अलग कारण बताये हैं, लेकिन मुख्य रूप से निम्नलिखित कारण हैं।
मन में कोई अधूरी इच्छा रहने पर:-कई बार मनुष्य के मन में कोई अधूरी ख्वाहिश रहते हुए मृत्यु हो जाती हैं, जिससे उस अविनाशी अतींद्रिय तत्व भटकता रहता हैं, जिससे वह ऊपरी बाधा या ऊपरी हवा की श्रेणी में आ जाता हैं।
दूसरे के प्रति अधिक लगाव रहने पर:-कई बार एक मनुष्य का अपने परिवार के किसी सदस्य या निवास स्थान या किसी वस्तु के प्रति ज्यादा लगाव हो जाता हैं, उस लगाव के कारण अविनाशी अतींद्रिय तत्व भटकता रहता हैं।
उपरोक्त बातों में कितनी वास्तविकता हैं, इस विषय पर सोचने की जरूरत हैं, लेकिन ऊपरी हवा की वास्तविकता को कबूल भी जरूर करना होगा।
ऊपरी हवा या ऊपरी बाधा से हानि क्यों होती हैं?:-अब यह जिज्ञासा भी जन्म लेती हैं कि ऊपरी हवा के द्वारा मनुष्य को नुकसान क्यों होता हैं? जब अविनाशी अतींद्रिय तत्व मनुष्य के अपने लोगों की होती हैं, तब भी कष्ट क्यों देती हैं? ऊपरी हवा के द्वारा कष्ट देने के बारे में सभी विद्वान मनुष्यों की सोच में एकरुपता हैं।
सभी विद्वानों के अनुसार:-प्रत्येक चेतन तत्व इसी लोक में रहने के बाद अपनी जगह बना लेता हैं। अपनी रहने की जगह पर किसी मनुष्य के द्वारा अशुद्धता या गन्दगी की जाती हैं और चेतन तत्व जिस कार्य को मंजूर नहीं करता हैं और वहां पर ऐसा कार्य किसी भी मनुष्य के द्वारा करने पर उस पर अपना प्रभाव डालकर उसके शरीर पर काबू करके उसे सजा देती हैं और उस मनुष्य को शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक रूप से परेशान करते हुए उसे पीड़ा देती हैं।
विज्ञान ने प्रकृति के अनेक रहस्यों से पर्दा उठा दिया हैं, बावजूद इसके कितने ही रहस्य अभी तक अनसुलझे हैं।
तांत्रिक एवं मांत्रिक के द्वारा ऊपरी बाधा से राहत हेतु कार्य करना:-ऊपरी बाधा या ऊपरी हवा के असर से छुटकारा दिलवाने के लिए अनेक तांत्रिक एवं मांत्रिक अपने तंत्र-मंत्र एवं यंत्र शक्ति के द्वारा कार्य करते हैं।
ऊपरी हवा या ऊपरी बाधा से मुक्ति हेतु धार्मिक स्थान:-भारत देश में ऊपरी हवा या ऊपरी बाधा से मुक्ति हेतु अनेक स्थान हैं, जहां पर पीड़ित मनुष्य को ले जाने पर ऊपरी बाधा से मुक्ति मिल जाती हैं।
राजस्थान में मेहंदीपुर बालाजी का स्थान:-देशभर में ऊपरी बाधा से मुक्ति दिलाने वाले स्थान में राजस्थान की राजधानी जयपुर के पास आगरा रोड पर मेहंदीपुर के बालाजी का मंदिर का प्रमुख नाम हैं। इस स्थान पर देश के अलग-अलग राज्यों के मनुष्य ऊपरी बाधा की पीड़ा से राहत पाने के लिए आते हैं और उनको राहत भी मिलती हैं। यहां पर लाखों मनुष्यों ने ऊपरी बाधा से छुटकारा पाया हैं, जो इस स्थान के प्रति खूबियों में दोष निकलते हैं, वे मनुष्य मेहंदीपुर बालाजी के मंदिर में जाकर प्रत्यक्ष अहसास कर सकते हैं।
मध्यप्रदेश के देवास जिले का स्थान:-ऊपरी बाधा से पीड़ित मनुष्य के इलाज के बारे में सत्यता सिद्ध करनेवाले मध्यप्रदेश के देवास जिले के विषय में कहा जाता है कि गांव धाराजी में बहने वाली नदी में केवल एक डुबकी लगाने मात्र से ऊपरी हवा या ऊपरी बाधा पूरी तरह से छूमंतर हो जाती हैं। लेकिन ऊपरी बाधा से रहित मनुष्य कभी भी उस नदी में डुबकी नहीं लगा सकते।
बनारस का स्थान:-ऊपरी हवा या पिशाचमोचन करने का बनारस के वह विशिष्ट स्थान हैं, जहां पिशाचों, प्रेत-पितर का मोचन होता हैं।
कहा जाता है कि मृत व्यक्ति का चेतन तत्व दान-पूण्य, श्राद्ध आदि में भूल-चूक के कारण पितृलोक में घूमती-फिरती रहती हैं और प्रेतलोक में भी उतरती रहती हैं, मृत चेतन तत्व के उद्धार के लिए यहां लोग आते हैं, धीरे-धीरे यह परम्परा पितृपक्ष में बढ़ जाती हैं।
पिशाचमोचन पर विभिन्न लोगों के द्वारा संवाद करना:-चेतन तत्वों के युक्त में पड़ी योनि मनुष्य के जीवन में बाधा उत्पन्न करती हैं, इन अविनाशी अतींद्रिय तत्वों के साथ पण्डा, महापातक, कपालकर्मी, औघड़ तमाम तरह के लोग कई तरह से आत्माअविनाशी अतींद्रिय तत्वों से वार्तालाप करते हैं, उनको बोलते हैं और उससे पूछते हैं कि तुम कौन हो?
यदि ऊपरी हवा में श्रेष्ठ जाति का हो:-अगर वह प्रेतों में ऊंची जाति का है तो त्रिपुरी श्राद्ध से प्रेत से पितर में बदल दिया जाता है और पितर से देवताओं तक पहुंचा दिया जाता है।
यदि ऊपरी हवा में अधमी जाति का हो:-अगर वह अधमी है तो उसे शराब, गांजा जैसी चीजें देकर कहीं बिठा दिया जाता है। इससे तांत्रिक प्रयोग के द्वारा किसी को मार डालने के लिए अंधविश्वास पूर्ण क्रियाकलाप, तीव्र दृष्टि से बिना पलक झपकाए हुए एक दृष्टि से देखना की क्रिया, अपने वश में करने का, यंत्र, ऊपरी हवा बाधा को दूर करने के लिए मंत्र बल की क्रिया करना और टोने-टोटकों और बुरे ग्रहों के दुष्प्रभावों से रक्षा करने के रक्षा-कवच आदि का भी प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार की अविनाशी अतींद्रिय तत्वों का असर भारतवर्ष के प्रत्येक कोने-कोने प्रायः पाया जाता है।
मनोविश्लेषकों के अनुसार:-मन की विभिन्न अवस्थाओं एवं विचारों की समीक्षा करने वाले कहते हैं कि मन के अन्दर एक तरह का वह होता हैं।
चिकित्सक के अनुसार:-एक चिकित्सा करने वाले चिकित्सक ने जो दृष्टांत देखा और अपने देखे हुए दृश्य का वर्णन करते हुए कहते हैं, की ऊपरी बाधा से मुक्ति दिलाने वाले देवी-देवताओं के "मंदिर के परिसर के अन्दर या सामने खुले स्थान में बहुत जन समूहों का जमावड़ा होता हैं, उस जमावड़े में ज्यादातर जवान स्त्रियां होती हैं। वे धरातल पर विचित्र-विचित्र विशिष्ट शारीरिक स्थिति एवं भावभंगिमा में लेटी या बैठी हुई दिखाई देती हैं।
अठारह वर्ष की सुन्दर जवान औरत धरातल पर हैं तथा उसका सिर जोर-जोर से झटके खा रहा है। युवती के चेहरे पर पीड़ा के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। वह कम गति से आवाज करते हुए कोई न कुछ शब्दों को बोल रही हैं। वह कभी बीच-बीच में बहुत वजन वाली मर्दाना आवाज में चिल्लाती हैं "बाबा-बाबा मैं नहीं जाऊंगा, मैं नहीं जाऊंगा।" यह युवती किसी कथित पुरुष ऊपरी बाधा के चंगुल में फंसी हैं।" इस प्रकार के मामलों का उन्होंने विश्लेषण किया और बताया कि ऐसे लोग पुरुष एवं स्त्रीयों की जननेन्द्रियों से मना करने पर भी सम्बन्ध रखने वाले और अपनी मन की इच्छा के पूर्ण नहीं होने तीव्र वेग से रोष करते हुए लड़ने की प्रवृत्ति से ग्रस्त विशेष वर्ग के रोगी होते हैं। स्वाभाविक रूप से लगातार सांसारिक विषयों या भोगों के प्रति झुकाव बढ़ने पर उन झुकाव का बलपूर्वक दबा दिए जाने के कारण निराशाजन्य अतृप्त भावना के रूप में सामने किसी दूसरे स्वरूप में ढल कर आती हैं।
ऊपरी बाधा की सच्ची घटना:-लगभग दो वर्ष पहले एक यात्रा के लिए मैं दूसरे बस में चढ़ा और मुझे जो सीट मिली उसी सीट के पास वाली सीट पर तीन परिजनों के साथ एक औरत भी यात्रा कर रही थी। उस औरत को दो व्यक्तियों ने अच्छी तरह से पकड़ा हुआ था। वह औरत अपने मुँह से लगातार एक आवाज ही बोल रही थी कि मैं इसे ले जाऊंगा, मैं इसे ले जाऊंगा। इस तरह बोलते हुए वह उन दोनों व्यक्तियों की पकड़ से छूटने की कोशिश करते थी। जब मैने उस औरत के साथ वाले परिजनों से पूछा तो उन परिजनों ने मुझे बताया कि दो महीने से यह औरत इस तरह का व्यवहार कर रही हैं। इस तरह हम सबने कई जगह पर चिकित्सक को बताकर इलाज करवाया, मन की विभिन्न अवस्थाओं एवं विचारों की समीक्षा करने वाले चिकित्सक से भी इसका इलाज करवाया, लेकिन किसी भी तरह से इलाज में कामयाबी नहीं मिल पा रही हैं। किसी दूसरे व्यक्ति ने बताया कि इस औरत पर ऊपरी बाधा का असर हैं, इसलिए इसको ऊपरी बाधा से मुक्ति दिलवाने के लिए जानकर व्यक्ति के पास ले जा रहे। कुछ समय के बाद उन आदमियों का गमन वाली मंजिल आ गई और वे उस औरत के साथ उतर गये। उसी जगह से एक उम्रदराज आदमी आकर मेरे पास की सीट पर बैठ गया। औरत तो अपनी मंजिल पर उतर गई लेकिन ऊपरी हवा या ऊपरी बाधा संबंधी वार्तालाप के विषय को छोड़ गई। इस तरह बस में सवार सभी यात्री अपने-अपने तर्जुबे के अनुसार ऊपरी हवा के बारे में अपनी-अपनी टिका-टिप्पणियों और प्राप्त ज्ञान को बताने लगे। उस उम्रदराज वृद्ध आदमी से पता चला कि वह जैन धर्म को मानने वाला हैं। ऊपरी बाधा से मुक्ति हेतु उन्होंने जैन धर्म का असरकारी एवं करामाती जैन मंत्र का प्रयोग एवं उपाय बताया। फिर मैने भी जैन मंत्र के उपाय को दो-चार ऊपरी बाधा से पीड़ितों पर प्रयोग करवाया तो उनको निश्चित रूप से उम्मीद से ज्यादा लाभ हुआ। थोड़े समय के बाद पीड़ित व्यक्तियों की ऊपरी बाधा जैसी समस्या दूर होकर छुटकारा मिल गया। ऊपरी बाधा से मुक्ति के जो भी उपाय होते हैं, उनको पीड़ित व्यक्ति स्वयं नहीं कर पाता हैं, इसलिए उसके घरवालों को विशेष ध्यान रखते हुए स्वयं उसके लिए उपाय करना चाहिए या जो भी ऊपरी बाधा से ग्रसित होते हैं, उनके परिचितों को उपायों के बारे में बताना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र में वर्णित सिद्धांतो के अनुसार:-जब किसी मानव की जन्मकुण्डली के पहले घर अर्थात् तन स्थान, पांचवें घर विद्या, बुद्धि, सोचने-समझने और निश्चय करने की शक्ति के घर, एवं नवें घर ईश्वर, परलोक आदि के संबंध में विशेष प्रकार का विश्वास और उपासना पद्धति के घरों के प्रतिनिधित्व करने वाले घरों और मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशियों पर जब बुरे ग्रहों का असर होता हैं, तो उस पर ऊपरी हवा की संभावना होती हैं।
पितृदोष:-ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को शिव एवं गरुड़ अथवा पितरों का कारक माना गया हैं, सूर्य पाताल लोक या पृथ्वीलोक का स्वामी होता हैं। सूर्य के कारक के प्रति गलत व्यवहार करने से पितर नाराज हो जाते हैं, पितृदोष को बनाते हैं।
जलदेवी दोष:-ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा एवं शुक्र को मातृ या सधवा स्त्री, साध्वी स्त्री, गोवंश, सकारात्मक जादुई ताकतों से यूक्त देवयोनि में उत्पन्न सेविका एवं जल का प्रतीक माना जाता हैं। जब शुक्र एवं चन्द्रमा जो कि पितृलोक से सम्बन्ध रखते हैं, जिससे जलदेवीदोष बनता हैं और इंसान के शरीर के भाग पीठ पर किसी तरह का चिन्ह, दर्द, बाईं एवं दाईं पैर में दर्द व पीड़ा होती हैं।
शाकिनी दोष:-ज्योतिष शास्त्र में मंगल को ग्रामदेवता, स्वामी कार्तिकेय, शत्रु या स्वजनों का प्रतीक माना गया हैं, जब छलपूर्ण तिलिस्मी शक्तियों से युक्त असुर योनि में उत्पन्न सेविका पाताल लोक में एवं पृथ्वी लोक में वास करती हैं, जब मंगल का इस लोक से सम्बन्ध बनता हैं, तो शाकिनी दोष बनता हैं। जिससे इंसान के शरीर पर बुरी शक्तियों का असर हो जाता हैं।
देवता दोष:-ज्योतिष शास्त्र में बुध को कुल देवता, पीपल वृक्ष, धर्म, मन्नत, विडाल, मछली या प्राणियों के अंडों, बालक-बालिका या विष्णु भगवान कारक होते हैं, जब पृथ्वी से नीचे के नाग लोक से बुध का सम्बन्ध होता हैं, तब देवता दोष बनता हैं, जिससे जीवन में सभी तरह के दुःखों का असर हो जाता हैं।
पितृदोष:-ज्योतिष शास्त्र में गुरु को ब्राह्मण देवता, फलदार वृक्ष आदि कारक होते हैं, जब देवताओं के रहने के स्थान से गुरु का सम्बन्ध होता हैं, उस स्थान पर अच्छे इंसान मृत्यु के बाद वास करते हैं, जब उनकी श्राद्ध आदि से संतुष्टि नहीं मिलती हैं, तब पितृ दोष बनता हैं, जिससे इंसान को बहुत कष्ट भोगने पड़ते हैं।
ऊपरी हवाओं का दोष:-जब इंसान के जीवन पर मंद, सैंहिकीय एवं शिखी ऊपरी हवाओं के कारक ग्रहों का असर होता हैं, तब ऊपरी हवाओं का दोष बनता हैं।
यमदोष:-जब इंसान के द्वारा पीपल के वृक्ष को उखड़वाया जाता हैं और मृत्यु के देवता व शनि ग्रह का बुरा प्रभाव और भौतिक शरीर को छोड़कर सूक्ष्म शरीर को चेतन तत्व धारण करने वाली के प्रति दुर्व्यवहार करने से यमदोष शनि के द्वारा बनता हैं।
सर्प व प्रेत दोष:-जब राहु के स्वरुप सर्प को मारा जाता हैं और उसको यातनाएं दी जाती हैं, तब राहु के द्वारा सर्प दोष बनता हैं। जब पितरों का श्राद्ध ठीक से नहीं करने से प्रेत योनि में पितर चले जाते हैं, जिससे प्रेतदोष बनता हैं।
ब्राह्मण दोष:-जब इंसान के द्वारा ब्राह्मण का अपमान किया जाता हैं, तब ब्राह्मण दोष केतु के द्वारा बनता हैं।
ऊपरी बाधा या ऊपरी हवा कैसे प्रभावित करती हैं?(How does the upper obstacle or upper wind affect it?):-इंसान के शरीर को ऊपरी बाधा या ऊपरी हवाएं कब और किन स्थितियों में अपने प्रभाव में लेती हैं, वे स्थितियां निम्नलिखित हैं।
◆खान-पान की वस्तुओं एवं पहने के वस्त्रों पर असर:-खान-पान की वस्तुओं एवं पहने के वस्त्रों पर निम्नाकिंत रूप से ऊपरी बाधा या ऊपरी हवाओं का असर होता हैं।
◆जब कोई इंसान अपने निवास स्थान से चावल, दुग्ध का पान, घृत, तिल आदि का सेवन करके निकलता हैं।
◆जब कोई इंसान अपने निवास स्थान से कोई सफेद मिठाई, मिष्ठान खीर एवं अम्ल या खटाई की वस्तु खाकर किसी चार रास्ते मिलने की जगह से गुजरता हैं, तब ऊपरी हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती है।
◆जब कोई इंसान नवीन एवं सुंदर एवं साफ-सफाई से युक्त वस्त्र एवं सुंगध इत्र आदि को लगाकर बाहर निकलता हैं, तब भी बाहर हवाएं अपना असर डाल देती हैं।
◆क्योंकि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार:-चन्द्रमा ग्रह सफेद रंग का, नवीन एवं स्वच्छता, खटाई, दूध, चावल, खीर, सफेद मिष्ठान, घृत, तिल का प्रतिनिधित्व करता हैं। अर्थात् दुग्ध का रंग सफेद और मिठाई भी सफेद रंग की होती हैं। चार रास्ते मिलने की जगह का प्रतिनिधित्व राहु ग्रह करता हैं। समृद्र मंथन के अमृत के कारण राहु ग्रह एवं चन्द्रमा के बीच वैर-भाव रखते हैं। जब चन्द्रमा की कारक वस्तुओं को खाकर राहु के कारक स्थान पर गुजरने पर राहु अपने असर में ले लेता हैं, जिससे उस इंसान पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव की संभावना रहती हैं।
◆चार रास्तों पर रखे टोटके पर पैर के छूने पर असर:-जब इंसान अपने निवास स्थान किसी चार रास्तों की जगह पर निकलता हैं, तब भूलवश उसका पैर उस चार रास्ते पर किसी भी तरह के टोटके की वस्तु जैसे-निम्बू, कील, उड़द, राई के दाने, गेंहू के दाने, किसी मिठाई आदि को छू लेता हैं, तब भूत-पिशाच देवों के प्राणयुक्त अविनाशी अतींद्रिय तत्व का इंसान शरीर से स्पर्श हो जाता हैं अथवा नकारात्मक शक्ति की परछाँई पड़ जाती है, तो वह इंसान को अपने असर में ले लेती हैं।
◆ऋतुस्त्राव युक्त औरत या बालिका पर असर:-जब लड़की या औरत के यौवनारंभ से लेकर रजोनिवृत्ति तक गर्भाशय से हर महीने जो रक्त निकलता हैं, जिससे उस नापाक शोणित के स्त्राव से बालिका या औरत अपवित्र हो जाती हैं, शोणित मंगल कारक एवं स्त्राव प्रकिया चन्द्र का कारक होती हैं, जिससे चन्द्र एवं मंगल इस अशुद्धता से कमजोर हो जाते हैं और राहु भी अपवित्रता एवं गंदे जगहों में वास करने वाला होता हैं। राहु की शत्रुता चन्द्र व मंगल के साथ होती हैं। इस तरह राहु अपना असर इन दोनों पर कर देता हैं, जिससे उस कन्या और औरत पर ऊपरी हवाओं का असर होने की संभावना बढ़ जाती हैं।
◆जलाशय के स्थान पर असर:-चन्द्रमा जलाशय जैसे-कुएँ, तालाब एवं बाबड़ी आदि का देवता एवं कारक होता हैं। जब इंसान सुंदर वस्त्र एवं उज्ज्वल वस्त्र पहनकर बाहर निकलता हैं, उस जलाशय स्रोत के पास गुजरता हैं या उस जलाशय स्रोत्र के पास जाता हैं, तब उन स्थानों पर निवास करने वाली बाहरी बुरी हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं, क्योंकि यह स्थान एकदम निर्जन होता हैं, उस निर्जन स्थान का स्वामी शनि व राहु-केतु का माना गया है। इस तरह राहु की चन्द्रमा से वैर भाव से होने से इन पर अपना असर कर लेती हैं। इन स्थानों पर बाहरी बुरी हवाओं का असर अधिक होता हैं।
◆शुभ प्रसंगों का सुयोग होने असर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली में सूर्य, चन्द्रमा, मंगल एवं गुरु के अच्छा प्रभाव भाव विशेष पर होता हैं, तब उस इंसान के निवास स्थान पर शुभ एवं मंगलकारी कार्य जैसे-पाणिग्रहण संस्कार, हवन, पूजा-पाठ आदि के सुयोग बनते हैं। सूर्य, चन्द्रमा, मंगल एवं गुरु के साथ शनि एवं राहु-केतु वैर भाव रखते हैं, जिससे इन ग्रह के कारक ऊपरी बाधाएं शुभ एवं मंगलकारी कार्यों के समय अपना प्रभाव दिखाना शुरू करके इंसान को सताने लग सकती हैं।
◆मध्याह्न एवं मध्यरात्रि में असर:-सूर्य मध्याह्न में एवं चन्द्रमा मध्यरात्रि में अपने पूरे बल की स्थिति में होते हैं। मुख्य दरवाजे की देहरी पर राहु के प्रतीक रूप की सूचक होती हैं, जब इंसान के निवास स्थान के मुख्य दरवाजे की देहरी स्थान राहु सूचक स्थान पर मध्याह्न के समय सूर्य अपनी तपती हुई तेज किरणों के कारण एवं मध्यरात्रि के समय चन्द्रमा अपनी शीतल तेज किरणों को पूर्ण बल की स्थिति को प्राप्त करते हैं, तब राहु चन्द्रमा एवं सूर्य से वैर भाव के कारण अपने प्रभाव में ले लेता हैं और अपने कारक ऊपरी हवा को क्रियाशील होने की संभावना प्रचंड या बलवान होती हैं।
◆गंदगी एवं अशुद्ध जगहों पर असर:-मैल से युक्त ,फटे-पुराने एवं चित्र-विचित्र कपड़ा, कूड़ा-करकट फेंकने का स्थान, ऊसर भूमि, निम्न श्रेणी के लोगो का निवास स्थान, अशौच स्थान, घर के कौने, श्मसान की अग्नि, वाल्मीक या दीमक का स्थान, सर्प की बांबी, अन्धकारयुक्तबिल, निष्कंटक छिद्र का दरार आदि जगह पर शनि एवं राहु-केतु के कारक के वास होता हैं, इन जगहों पर इन ग्रहों के वास होने इन हवाओं का भी वास होता है। जब इंसान इन जगहों पर से गुजरता हैं, तब ये हवाएं इनको अपने काबू में कर लेती हैं।
◆नेत्रों पर असर:-इंसान के शरीर के भाग नेत्र जिनसे दृष्टि का ज्ञान होता हैं, इन नेत्रों पर ग्रहों का नियंत्रण होता हैं। शरीर के दायीं तरफ के नेत्र पर सूर्य और बायीं नेत्र पर चंद्र ग्रह का काबू रहता हैं, इसलिए नेत्र दृष्टि के द्वारा देखे जाने की शंका रहती हैं, जिससे नेत्रों पर सबसे पहले इन हवाओं का असर पड़ता हैं।
ऊपरी बाधा या हवाओं का असर हैं या नहीं लक्षणों के आधार पर कैसे जानें या पहचान करें?:-जब कोई भी इंसान बुरी शक्ति के प्रभाव में आता हैं, तब उसके परिवार के सदस्यों को मालूम नहीं पड़ता है और उसके व्यवहार एवं किए जाने कार्यों में बदलाव से भी उनका कोई ध्यान नहीं रहता हैं, जिससे ऊपरी हवाएं उस इंसान पर धीरे-धीरे अपना नियंत्रण कर लेती हैं और पूर्ण रूप से अपने नियंत्रण करने के बाद इंसान के परिवार वाले तब जागृत होते हैं, इस तरह आग लगने पर कुआं खोदने की तरह होता हैं, इंसान के परिवार वालों को अपने घर के सदस्यों में होने बदलाव को ध्यान पूर्वक देखना चाहिए और गहनता से उसकी दैनिकचर्या के साथ उसके व्यवहार, हाव-भाव का अध्ययन करना चाहिए। जब इंसान में बहुत सारे बदलाव दिखाई देते हैं तब उनका ध्यान करके सज बदलाव का कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए। यह होने बदलाव शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक दोष या किसी भी तरह की ऊपरी हवाओं के द्वारा भी हो सकता हैं, इसलिए सबसे इंसान के शरीर पर बुरी शक्ति का असर हैं या नहीं इसको जानने के लिए इंसान आचार, व्यवहार, चाल-ढाल, रूप-ढंग आदि के द्वारा मिलने वाले संकेत या लक्षण निम्नलिखित हैं।
◆पीड़ित व्यक्ति अकेला गुमसुम बैठ जाता हैं और बैठे-बैठे रोने लगता हैं।
◆उस व्यक्ति को लगातार उबासियां आना अथवा जम्हाई लेता रहता हैं।
◆पीड़ित व्यक्ति के हाथ-पैरों एवं सम्पूर्ण शरीर में जकड़न होने लगती हैं।
◆किसी को सम्बोधित करते हुए कहना क्या चाहता हैं और कुछ उसकी वाणी से निकलता हैं।
◆कुछ समय बाद वह बिल्कुल स्वस्थ व्यक्ति की तरह व्यवहार करने लगता है।
◆पीड़ित व्यक्ति की स्थिति प्रायः अमावस्या, मंगलवार या शनिवार को विशेष रूप से देखने में मिलती हैं।
◆जब किसी भी इंसान के ऊपर बुरी आत्माओं का असर होता हैं, तब वह इंसान शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर होकर व्याधि के जाल में फंस जाता हैं।
◆इंसान तीव्र मनोविकार के कारण ज्ञान या विवेक को खो बैठता हैं, उसे मालूम नहीं पड़ता हैं कि वह क्या कर रहा हैं।
◆उसका दिमागी संतुलन बिगड़ जाता हैं, वह तरह के नाटक करते हुए अपने शरीर को हिलाता-डोलता हैं।
◆उसका शरीर अग्नि की तरह तेज गर्म रहने से उसे ज्वर व्याधि हो जाती हैं, इलाज करवाने पर चिकित्सक उसका इलाज नहीं कर पाते हैं।
◆वह इंसान सामान्य इंसानों की तरह बर्ताव नहीं करता हैं, उसको समझाने की कोशिश करने पर वह तीव्र रूप से अपना आपा खो बैठता हैं, जिसे काबू में लेने में बहुत जंजाल करने पड़ते हैं।
◆इंसान को जरा सी बात पर नाराज होकर बिगड़ने लगता हैं।
◆ऊपरी हवाओं से पीड़ित इंसान को बहुत भूख लगती हैं, वह बार-बार खाना खाता हैं, तब भी उसकी भूख शांत नहीं होती हैं और उसका पेट खाली ही रहता हैं। खाने-पीने के बाद भी उसका शरीर सूखता चला जाता हैं।
◆वह दिनों-दिन कमजोर होकर उसके अस्थि-पिंजर ही दिखाई पड़ते हैं, उसके मिजाज में बहुत सारे बदलाव आ जाते हैं।
◆वह दूसरों के साथ बातचीत नहीं करना चाहता हैं और सभी के बीच में उठकर किसी शांत या शोरगुल रहित तनहाई वाले स्थान में रहता है।
◆इंसान मन ही मन में धीरे-धीरे बोलता रहता हैं।
◆शरीर को शीत या ठंड लगने आदि के समान शरीर के अंग हिलते-डुलते रहते हैं, शरीर पीत वर्ण का होने लगता हैं एवं खून की अल्पता होने से नाखून श्वेत वर्ण के दिखाई देने लगते हैं।
◆ इंसान को श्वास लेने में कठिनाई आती हैं, जिससे वह तेज गति से श्वास लेने के लिए जोर-जोर ध्वनि करता हैं।
◆दूसरों के साथ बातचीत करने से कतराने लगते हैं।
◆इंसान का मिजाज बदलने लगता हैं कभी वह हंसने लगता हैं और कभी बिना वजह ही रुदन करने लगता हैं।
◆इंसान के चेहरे हावभाव से प्रतीत होता हैं कि उससे छेड़ने पर वह बिच्छू की तरह डंक मारने को आतुर रहता हैं।
◆इंसान मन से बहुत दुःखी दिखाई पड़ता हैं और उसकी रंगत नष्ट होने से मिजाज नीरस हो जाता हैं।
◆जब किसी औरत ऊपरी हवाओं के असर में आ जाती हैं, तब वह औरत अपनी चोटी नहीं बनती हैं और अपने केशों को इस तरह रखती हैं, जैसे कोई बिखरा हुआ चिड़िया का घौंसला हो, उसी प्रकार अपने केशों को बिखरा रखती हैं।
◆इंसान को स्नान कराने पर भी स्नान नहीं करते हैं जिससे उनके शरीर से विशेष तरह की गंध आने लगती हैं एवं साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखता हैं।
◆इंसान के दिमाग पर नियंत्रण नहीं होने से वह इधर-उधर भटकने लगता हैं, कभी वह निवास स्थान में आता हैं और कभी वह बाहर निकलने लगता हैं।
◆जब इंसान बुरी शक्तियों के असर में आ जाता हैं, तब वह किसी के बारे में नहीं सोचता हैं, न ही किसी बात को मानने एवं न सुनने को तैयार होता हैं।
◆इंसान किसी भी विषय को एक बार अपने मन में गहराई से ग्रहण करने के बाद जब तक उस विषय को पूरा नहीं कर लेता हैं, तब तक विषय को बार-बार पूर्ण करने की कोशिश करता रहता हैं।
◆इंसान अपने परिवार के सदस्यों एवं नजदीकी रिश्तेदारों से दूरी बढ़ाने लग जाता हैं।
◆इंसान के शरीर पर ऊपरी हवाओं का असर होने पर वह हमेशा आकाश की तरफ देखता रहता हैं।
◆इंसान के शरीर एवं मन पर निराशावादी एवं निषेधात्मक ऊर्जा का संचार होने से उसकी देह कमजोर हो जाती हैं, लेकिन निषेधात्मक ऊर्जा के कारण उसकी देह में बहुत ज्यादा ताकत प्राप्त होती हैं।
◆इंसान कठिन से कठिन कामों को जिनको करने कठिनाई आती हैं उन कामों को आसानी से करने में कामयाबी प्राप्त करता हैं।
◆इंसान पर बुरी शक्तियों का असर होने पर उसकी वाणी कमजोर हो जाती हैं, जिससे वह स्पष्ट बोलने में झिझकता हैं और उसकी वाणी से तरह-तरह की विचित्र ध्वनि निकलने लगती हैं।
पीड़ित व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव के बाद उपाय:-पीड़ित के कभी सही व्यवहार और कभी गलत व्यवहार की स्थिति को देखकर परिवार वाले समझते हैं कि किसी व्याधि से ग्रसित हैं।, इसलिए उसको चिकित्सक के पास ले जाते हैं और उसकी चिकित्सा करवाते हैं। वहां उसके शरीर के हिस्सों की जांच करने के बाद भी उस जांच में कोई बीमारी नहीं आती हैं। जिससे चिकित्सक उसके परिजनों को यह कहकर निश्चित कर देते हैं कि उस पीड़ित को कोई मानसिक तनाव के कारण इस तरह का व्यवहार कर रहा हैं।
◆जब उस पीड़ित व्यक्ति की पीड़ा बढ़ती जाती हैं, तब उसके घरवाले एवं नजदीक के रिश्तेदार सोचने लगते हैं कि किसी ऊपरी बाधा से सम्बंधित पीड़ा की परेशानी को मानने के लिए तैयार हो जाते हैं।
◆फिर उसके परिवार के सदस्य ऊपरी बाधा की पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए किसी महात्मा सिद्ध, योगी, भुवा, तांत्रिक के पास जाते हैं।
उनके द्वारा बताये उपायों को करते हैं जैसे-
◆पीड़ित व्यक्ति को मंत्र या यंत्र के द्वारा सुरक्षा कवच से सुरक्षित करवा दिया जाता हैं।
◆उस पीड़ित व्यक्ति को किसी पवित्र स्थान की यात्रा कराकर वहां ले जाया जाता हैं। राजस्थान में जयपुर आगरा रोड पर मेहंदीपुर बालाजी नामक हनुमान जी के मंदिर में देश के कोने-कोने से आने वाले इसी बाधा से पीड़ित लोग बिल्कुल स्वस्थ होते देखे गये हैं।
◆ऊपरी बाधा की पीड़ा से मुक्ति हेतु उस ऊपरी बाधा के निमित्त वस्त्र इत्यादि का दान करवा दिया जाते हैं।
◆भगवान श्रीहनुमानजी का सुन्दरकाण्ड, हनुमान चालीसा, हनुमान बाहुक और बजरंगबाण आदि का पाठ उस पीड़ित व्यक्ति को ऊपरी बाधा से मुक्ति के लिए करवाते हैं।
◆अपने निवास स्थान में रामायण एवं भगवत गीता का वांचन भी करवा देते हैं।
◆अपने निवास स्थान में गायत्री मंत्र एवं हवन करवाने से यह स्थिति हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऊपरी बाधाओं से सम्बन्धित कारक ग्रह:-ज्योतिष शास्त्र में निम्नलिखित ग्रह ऊपरी बाधाओं के प्रभाव में लेने वाले कारक ग्रह होते हैं।
चन्द्रमा:-चन्द्रमा अच्छे-बुरे, सुख-दुःख का विवेक करने वाली भीतरी इन्द्रिय या चेतना शक्ति होती हैं। जब चन्द्रमा अर्थात् चित्त पर बुरे एवं पापी ग्रह मंद और सैंहिकीय-शिखि ग्रह का बुरा एवं पाप प्रभाव जितना अधिक होता हैं, उतना ही चन्द्रमा कमजोर हो जाता हैं, जिससे व्यक्ति का मानसिक बल भी कमजोर हो जाता हैं। जब बुरे घरों में चन्द्रमा बैठा होता हैं, तब वह कमजोर होकर अपना शुभ असर नहीं दे पाता है, जिससे इंसान के ऊपर बुरी शक्तियों का साया बढ़ता जाता हैं।
गुरु:-गुरु शुद्धता एवं सत्व गुण प्रधान ग्रह हैं। जो जीव, बुद्धि, मनन शक्ति, शरीर की पुष्टता, ज्ञान, धर्म, मंगलकारी, वियोग इन्द्रिय निग्रह, मधुर रस, बल, सुख-दुःख, पीपल (अश्वत्थ) वृक्ष, तांत्रिक आदि का चेष्टाओं का कारक होता हैं, जब गुरु ग्रह से शनि, राहु या केतु ग्रह से युति, दृष्टि या राशि परिवर्तन के द्वारा सम्बन्ध बनता हैं, तो गुरु ग्रह के कमजोर होने से कारक चेष्टाओं पर भी अपने प्रभाव में ले लेते हैं, जिससे गुरु के कमजोर के होने से ऊपरी हवा अपने असर में लेती हैं और पीड़ा देती हैं।
शनि:-ज्योतिष शास्त्र शनि को राहु के समान माना गया है, जो कूड़ा-करकट फेंकने का स्थान, अशौच स्थान, निम्न श्रेणी के लोगो का निवास स्थान की जगह, नरक, तमस, शुष्क या निर्जल तिल, मांस, त्वचा, रोम, मृत्यु, व्याधि, दुःख, मृत्यु का कारण, बन्धन, चित्त की कठोरता, बिखरे बाल आदि का चेष्टाओं का कारक होता हैं, जब इन चेष्टाओं पर ऊपरी हवा का असर होता हैं तब वे इन चेष्टाओं को अपने कब्जे में लेकर कष्ट देता हैं।
राहु-केतु:-ज्योतिष शास्त्र में राहु को शनि के समान माना गया हैं, जो श्मशान की अग्नि में, अंधकारयुक्त जगह में संचरण करने वाला, तामसिक की प्रवृत्ति का रात्रिकालीन हवाएँ की छिपी हुई स्थिति में रहते हुए अपने प्रभाव से पीड़ा पहुंचाने का कारक माना गया हैं। जब राहु-केतु ग्रह का देह, अच्छे-बुरे का विवेक कराने वाली भीतरी इन्द्रिय या चेतना, विषयों व वस्तुओं की जानकारी कराने वाले सद्बुद्धि, ईश्वर, परलोक में आदि के संबंध में विशेष प्रकार का विश्वास और उपासना करने की रीति, शरीर के प्राणयुक्त अविनाशी अतींद्रिय तत्व आदि चेष्टाओं पर असर होता हैं, ऊपरी बाहरी वातावरण में संचरण करनी वाली अस्तित्व युक्त आत्माएं भौतिक शरीर छोड़ने के बाद धारण करने सूक्ष्म शरीर के रूप वास करते हुए क्रियात्मक होती हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऊपरी बाधाओं से सम्बन्धित भाव और भावों पर प्रभाव:-जन्मकुण्डली में बारह भाव होते हैं, उन बारह भावों में निम्नलिखित भावों पर जब बुरे ग्रहों का असर होता हैं, तब ऊपरी हवाओं का असर होता हैं।
पहला भाव:-पहला भाव देह के बारे में जानकारी का होता हैं। जब इंसान का शरीर स्वस्थ रहता हैं, तब उस पर किसी भी बुरी शक्ति का असर नहीं होता हैं। जब पहला भाव पर सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु आदि बुरे ग्रह का युति, दृष्टि सम्बन्ध बनता हैं, जिससे इंसान की जन्मकुंडली का पहला भाव इन पाप ग्रहों के असर से कमजोर हो जाता हैं, जिससे इंसान का शरीर अस्वस्थ हो जाता हैं, जब अस्वस्थ शरीर पर बुरी हवाओं का असर जल्दी होता हैं और इंसान इन ऊपरी हवाओं के असर में आ जाते हैं।
पांचवा भाव:-पांचवा भाव पहले जन्म में किये गए अच्छे भलाई के कार्यों के बारे में विचार किया जाता है।
जब पांचवें भाव पर सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु आदि बुरे ग्रह का युति, दृष्टि सम्बन्ध बनता हैं, तब ऊपरी बाधा इंसान के जीवनकाल में उत्पन्न होती हैं। अर्थात् इंसान ने पहले के जन्म में अच्छे भलाई के कार्यों को भुतं कम किया हैं, जिसका फल उनको वर्तमान समय में उनकी जन्मकुण्डली के अच्छे भावों पर बुरे ग्रह असर करके अपने प्रभाव में लेते हैं।
आठवां भाव:-आठवां भाव गहराई से युक्त जटिल विषय को समझना आसान नहीं होता हैं, उन व्यवस्था आदि के तरीकों और जीवनकाल और शरीर से प्राण निकलने का भाव भी कहते हैं। जब इस भाव में सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु आदि बुरे ग्रह और चन्द्रमा से युति, दृष्टि सम्बन्ध बनता हैं, तब ऊपरी बाधा इंसान के जीवनकाल में उत्पन्न होती हैं।
नौवां भाव:-नौवां भाव ईश्वर, परलोक आदि के संबंध में विशेष प्रकार का विश्वास एवं उपासना पद्धति का होता हैं, जब पिछले जन्म में दूसरों की सहायता या उपकार के कार्यों में किसी तरह की कमी रहने पर यह भाव वर्तमान जन्म में बुरे ग्रहों के असर से कमजोर हो जाता हैं।
राशियां के असर से ऊपरी बाधाओं का होना:-जब जन्म कुंडली मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशियां दो तरह के गुणों वाली द्विस्वभाव राशियां होती हैं, इन राशियों पर मन्द, सैंहिकीय या शिखि वायु तत्त्व प्रधान ग्रहों असर होता हैं, तब इंसान के जीवन पर बाहरी बुरी हवाओं का असर होने से जीवनकाल में व्यधान होता हैं।
वार के असर से ऊपरी बाधाओं का होना:-पंचांग के अनुसार रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार एवं शनिवार आदि सात वारों को माना गया हैं, इन वारों में सोमवार, बुधवार, गुरुवार एवं शुक्रवार को शुभ माना गया हैं, जबकि रविवार, मंगलवार एवं शनिवार को क्रूर वार माना गया हैं, इन क्रूर वारों के दिन ही बुरी शक्तियां इंसान को अपने प्रभाव में तेज गति से ले लेती हैं।
तिथि के असर से ऊपरी बाधाओं का होना:-तिथि की संख्या शुक्लपक्ष एवं कृष्णपक्ष सहित तीस मानी गई हैं, जिसमें चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी तिथि को रिक्ता अर्थात् खाली माना गया हैं इन तिथियों के साथ अमावस्या तिथि में बुरी ताकतों का असर शीघ्र इंसान के शरीर पर होता हैं।
नक्षत्र के असर से ऊपरी बाधाओं का होना:-ज्योतिष शास्त्र में सत्ताईस नक्षत्रों को माना गया हैं उन सत्ताईस नक्षत्रों में से मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, चित्रा, स्वाति, विशाखा, धनिष्ठा, शतभिषा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रों को वायु संज्ञक नक्षत्र कहा जाता हैं, जिस दिन इन नक्षत्रों का उदयकाल होता हैं, उस दिन बुरी शक्तियां अपने असर को तेज कर देती हैं।
योग के असर से ऊपरी बाधाओं का होना:-ज्योतिष शास्त्र में सत्ताईस योग को माना गया हैं उन सत्ताईस योग में से विष्कुंभ, व्याघात, ऐन्द्र, व्यतिपात, शूल आदि योगों का जिस दिन उदयकाल होता हैं, उस दिन प्रेतात्मा अपनी क्रियाओं से रुकावटों को उत्पन्न करती हैं।
करण के असर से ऊपरी बाधाओं का होना:-ज्योतिष शास्त्र में ग्यारह करण को माना गया हैं उन ग्यारह करण में से विष्टि, किस्तुघ्न और नाग करणों के कारण इंसान को बुरी शक्तियों के फंदे में फँसना पड़ता हैं।
महादशादि का असर से ऊपरी बाधाओं का होना:-जब जन्मकुण्डली में स्थित मंद ग्रह, सैंहिकीय ग्रह, आठवें भाव के स्वामी एवं सैंहिकीय व शिखि ग्रह के पूरी तरह से असर में होने वाले ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा या प्रत्यंतदर्शा आती हैं, तब इंसान के जीवन में बुरी शक्तियों का असर होने की सम्भावना बनती हैं।
ऊपरी हवाओं के कुछ अन्य मुख्य ज्योतिषीय योग:-निम्नलिखित हैं।
बाहरी वातावरण के बुरी शक्तियों:-जब जन्मकुण्डली में कमजोर चन्द्रमा, भौम, मंद, सैंहिकीय और शिखी ग्रह का असर पहले घर, पांचवें, छठे, आठवें या नौवें घर पर होता हैं, तो इंसान को बाहरी वातावरण के बुरी शक्तियों के द्वारा ग्रसित होने कि संभावना रहती हैं।
बाहरी वातावरण के बुरी शक्तियों:-जब जन्मकुण्डली में कमजोर चन्द्रमा, भौम, मंद, सैंहिकीय और शिखी ग्रह का पहले घर, पांचवें, छठे, आठवें या नौवें घर के साथ दृष्टि, युति या परस्पर एक-दूसरे के साथ सम्बन्ध होता हैं, तो इंसान को बाहरी वातावरण के बुरी शक्तियों के द्वारा ग्रसित होने से जीवन में आफत कि संभावना रहती हैं।
ऊपरी-बाधा का असर:-जब जन्मकुण्डली में रवि एवं मंद ग्रह का मेल पांचवें घर हो, कमजोर सोम ग्रह सातवें घर में हो तथा बारहवें घर में जीव ग्रह बैठा होता हैं, तब इंसान को ऊपरी बाधा अर्थात् बुरी शक्तियों के फंदे से ग्रसित होता हैं। पंचम भाव में सूर्य और शनि की युति हो, सप्तम में क्षीण चन्द्र हो तथा द्वादश में गुरु हो, तो इस स्थिति में भी व्यक्ति ऊपरी बाधा का शिकार होता है।
निराशावादी ऊर्जा एवं अदृश्य बुरी ऊर्जा का असर:-जब जन्मकुण्डली सोम ग्रह एवं सैंहिकीय ग्रह एक साथ पहले घर में बैठा हो और रवि, भौम, कमजोर सोम, मंद या शिखि ग्रह आदि में से कोई भी पापी एवं बुरा ग्रह जब पहले घर में बैठा होता हैं, तब इंसान के शरीर एवं चेतना पर अदृश्य बुरी ऊर्जा और निराशावादी सोच में झकड़ा रहता हैं।
झाड़-फूँक का असर होना:-जब जन्मकुण्डली में पहले घर किसी भी तरह जब अच्छे भाव के स्वामी के द्वारा नहीं देखा जाता हैं, तब इंसान के शरीर पर झाड़-फूँक तरकीबों के द्वारा किये गये काम से पीड़ा पहुँचना बहुत तेज गति से पीड़ा पहुँचना मुमकिन होता हैं।
झाड़-फूँक का असर होना:-जब जन्मकुण्डली में पहले घर में छठे घर का मालिक होता हैं और पहले घर पर बुरे ग्रहों के असर के कारण पहला घर कमजोर और अपने प्रभाव का नाश कर देता हैं और भौम ग्रह के द्वारा भी देखा जाता हैं, तो इंसान के शरीर पर तंत्र-मंत्र शक्तियों के असर में होता हैं।
तंत्र-मंत्र का असर होना:-जब जन्मकुण्डली में पहले घर में बुरे ग्रह बैठे हो, बुरे ग्रहों के द्वारा देखा जाता हो और सूर्य, कमजोर चन्द्रमा, मंगल, शनि आदि बुरे व पाप ग्रहों के असर के कारण पहला घर कमजोर और अपने प्रभाव का नाश कर देता हैं अथवा सैंहिकीय-शिखि ग्रह के द्वारा भी देखा जाता हैं या साथ में बैठे होते हैं, तो इंसान के शरीर पर तंत्र-मंत्र शक्तियों के असर में होता हैं।
प्रेतशाप का असर होना:-जब जन्मकुण्डली में सैंहिकीय ग्रह पहले घर में हो, मंद ग्रह पांचवें घर में हो और जीव ग्रह आठवें घर में बैठा होता हैं, तब इंसान के ऊपर मृतात्मा की गति पूर्ण नहीं होने से उसे बद्दुआ देकर उसके जीवन को कष्टप्रद बना देती हैं।
मृतात्मा और नीच आचरणों वाली देव स्त्रियों का असर:-जब जन्मकुण्डली में मंद ग्रह का मेलजोल पांचवें घर से होता हैं, तब इंसान को मृतात्मा और नीच आचरणों वाली देव स्त्रियों पूजा-अर्चना करने वाला होता हैं।
तंत्र-मंत्र शक्ति के टोटकों असर होना:-जब जन्मकुण्डली में सातवें घर में या दशवें घर में छठे घर के मालिक बैठे होते हैं, तब उस इंसान के ऊपर तंत्र-मंत्र शक्ति के टोटकों के द्वारा पीड़ा होती हैं।
भूत-प्रेत का असर:-जब औरत की जन्मकुण्डली में भौम, मंद, सैंहिकीय या शिखि ग्रह सातवें घर में एक साथ बैठे होते हैं, तब उस स्त्री के शरीर पर मृतात्मा अपने काबू में करके उसके जीवन में बाधा उत्पन्न करती हैं।
क्रूरतापूर्वक कार्य करने की तरफ मन का झुकाव होना:-जब जन्मकुण्डली में सैंहिकीय ग्रह के साथ जीव ग्रह अपनी मकर नीच राशि में बैठे होते हैं और सूर्य, मंगल, शनि आदि बुरे एवं पापी ग्रहों के द्वारा देखे जाते हैं अथवा नवांश कुण्डली में जीव ग्रह मकर नीच राशि के नवांश में बैठे होते हैं, तब इंसान नीच और बर्बर जाति की तरह क्रूरतापूर्वक अत्यंत पतित कार्य करने वाला होता हैं।
ऊपरी बाधा निवृत्ति या मुक्ति के उपाय या ऊपरी बाधा कैसे दूर करें?(Upper Obstacles Remedies for Retirement or Liberation or How to Remove Upper Obstacles?):-जब किसी भी मनुष्य को मालूम होवे या संदेह हो कि उसके परिवार के किसी सदस्य या नजदीकी रिश्तेदार को किस भी तरह की ऊपरी बाधा ने अपने शिकंजे में कस रखा हैं, तब पीड़ित के प्रति हमदर्दी एवं चित्त को दृढ़ता पूर्वक रखना चाहिए। पीड़ित के घर सदस्य पूर्ण आस्था भाव, श्रद्धा, संयम और विश्वास रखते हुए संकट के समय अपने मन में सहनशीलता रखते हुए ऊपरी बाधा से ग्रसित व्यक्ति को ऊपरी बाधा से छुटकारा दिलाने के लिये चिकित्सा के साथ शास्त्रों में वर्णित अत्यन्त उपयोगी निम्नलिखित उपायों को करना चाहिए, उनको अवश्य ही लाभ प्राप्त होगा।
1.ऊपरी बाधा से ग्रसित व्यक्ति से उसकी इच्छा पूछना:-जब घर का कोई सदस्य ऊपरी बाधा के असर एवं गुस्से के आक्रोश में होने गाली-गलौच नहीं कहना चाहिए। उससे नमस्कार करके उसकी परेशानी के बारे में पूछते हुए यदि किसी तरह की भूल-चुक के लिए माफी मांगना चाहिए। उस समय ऊपरी बाधा से ग्रसित व्यक्ति को गीता का वांचन सुनाना चाहिए। ज्यादातर मामलों में पीड़ित व्यक्ति के द्वारा इच्छा बता दी जाती हैं, जो प्राय गंगा स्नान या तीर्थ स्थान की इच्छा होती है। जब इस तरह की इच्छा बताने पर उससे कभी परेशान नहीं करनी कसम लेनी चाहिए। यदि उद्देश्य अपने उद्धार करना होने पर वह तुरन्त स्वीकृति देगा जिसके बाद उस व्यक्ति को कभी पीड़ा व परेशानी नहीं होगी।
2.हनुमानजी से अरदास एवं मुक्ति की विधि:-ऊपरी बाधा से ग्रसित व्यक्ति की पीड़ा से छुटकारा के लिए हनुमानजी से अरदास करनी चाहिए।
◆ऊपरी बाधा से मुक्ति के लिए मंगलवार के दिन एक पीपल का पत्ता तोड़कर कर लेकर आना चाहिए।
◆उसके बाद उस पत्ते पर गंगाजल अथवा शुद्ध जल छिड़कर उसे साफ करना चाहिए।
◆ततपश्चात रक्त चंदन को गंगाजल को मिलाकर लेप तैयार करना चाहिए।
◆उसके बाद में अनार वृक्ष की टहनी की कलम के द्वारा रक्तचन्दन व गंगाजल से तैयार लेप से तोड़कर लाये हुए पीपल के पत्ते पर उस पीड़ित व्यक्ति का नाम लिखना चाहिए।
◆फिर उस पत्ते पर पांच साबुत पाँच छोटी सुपारी, पाँच लौंग एवं एक जायफल को रखना चाहिए फिर उसे लपेट कर लाल डोरे से बांध देना चाहिए।
◆फिर दो अगरबत्ती जला कर ऊँ हनुमते रामदूताय नमः मंत्र का एक सौ आठ बार उच्चारण करना चाहिए।
◆उसके बाद में अपने दोनों हाथ जोड़कर पीड़ा-बाधा मुक्त करने की प्रार्थना करनी चाहिए।
◆फिर इस पत्ते को पीड़ित व्यक्ति के ऊपर सात बार उसारें एवं किसी नदी, तालाब में प्रवाहित कर देना चाहिए।
◆ वापस अपने घर के लिए आते समय रास्ते में बन्दरों को केले अथवा भुने हुए चने को खिलाना चाहिए।
◆इस तरह की प्रक्रिया सात मंगलवार करने से व्यक्ति बाधा मुक्त हो जाता है।
◆इस प्रयोग के साथ-साथ अमावस्या को उपले की आंच जलाकर उस पर बताशे का भोग लगाना चाहिए।
◆भोग लगाने से पहले हाथ जोड़कर बोलना चाहिए कि यदि हमसे, हमारे पूर्वजों अथवा पितरों के प्रति कोई अपराध या अपमान हुआ है तो उसे क्षमा करें।
◆यह भोग केवल हमारे पित्तर या पूर्वज ही ग्रहण करें।
◆भोग लगाकर उपले के चारों तरफ जल की रेखा बना दें।
◆यह प्रयोग बाधा दूर तो करेगा ही साथ परिवार की समृद्धि एवं सुख-शांति में भी वृद्धि होगी।
3.काले धतूरे से ऊपरी बाधा मुक्ति हेतु उपाय:-ऊपरी हवा या ऊपरी बाधा दूर करने हेतु काले धतूरे का यह प्रयोग अत्यन्त फायदेमंद होता हैं। सामान्यतः धतूरा नीला-बैंगनी फल वाला होता है। लेकिन कहीं-कहीं काले फूल वाला धतूरा भी उगता है। यह धतूरा प्रायः दुर्लभ माना जाता है और बहुत ढूंढने पर ही मिलता हैं, यदि किसी को मिल जावे तो इसका प्रयोग किया जा सकता है।
◆काले धतूरा का प्रयोग किसी भी माह के शुक्लपक्ष को सोमवार के दिन करना चाहिए।
◆काले धतूरे के प्रयोग करने के एक दिन पूर्व अर्थात् रविवार को संध्या काल में धतूरे के वृक्ष के पास जाकर उस पर जल चढ़ाना चाहिए।
◆फिर उस धतूरे के वृक्ष के पास दो अगरबत्ती जलानी चाहिए।
◆भगवान शिव को प्रणाम कर सोमवार प्रातः काल जड़ प्राप्त करने की आज्ञा लेनी चाहिए।
◆सोमवार के दिन प्रातःकाल अपनी दैनिकचर्या स्नानादि से निवृत्त होकर एक लोटे से जल चढ़ाकर अगरबत्ती जलावें तथा हाथ जोड़ना चाहिए।
◆इसके पश्चात् बिना किसी के टोके थोड़ी सी जड़ खोद कर घर ले आ जाना चाहिए।
◆फिर अपने निवास स्थान पहुँचकर उसे निवास स्थान में लाकर जड़ को पंचामृत से धोना चाहिए।
◆उसके बाद में अपने निवास स्थान से दक्षिण दिशा में पड़ने वाले हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान जी की प्रतिमा के चरणों से सिन्दूर लेकर जड़ पर लगाना चाहिए।
◆मंदिर में अथवा घर में घी का दीपक जलाकर ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हूं फट् मंत्र की एक माला का जाप करना चाहिए।
◆फिर जाप के पश्चात् जड़ को लौबान की धूनी देकर काले कपड़े में लपेटकर रोगी की दाहिनी भुजा पर बांध देवें।
◆कुछ ही दिनों में पीड़ित व्यक्ति स्वस्थ हो जाएगा जब व्यक्ति स्वस्थ हो जाये तब हनुमान जी के मंदिर में प्रसाद चढ़ा कर सबको बांट देना चाहिए।
◆फिर काले मुंह के बन्दरों को पाँच किलो चने अथवा केले को खिलाना चाहिए।
4.ऊपरी बाधाओं से जैन धर्म के मंत्र के द्वारा मुक्ति:-जैन धर्म में वर्णित एक शीघ्र असरकारी एवं करामाती मंत्र हैं।
जैन धर्म में वर्णित मंत्र:-ऊँ नमो भगवते मणिभद्राय, क्षेत्रपालाय, कृष्णरूपाय, चतुर्भुजाय, जिनशासन भक्ताय, नवनाग सहस्त्रबलाय, किन्नर किं, पुरुष, गन्धर्व, राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच सर्व शाकिनीनां निग्रह कुरु-कुरु स्वाहा मां रक्ष-रक्ष स्वाहा।
जैन धर्म में वर्णित मंत्र को सिद्ध करने की विधि:-जैन धर्म में वर्णित मंत्र का प्रयोग करने से पूर्व कोई भी व्यक्ति इस मंत्र को सिद्ध कर सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर काम में ले सकता है।
◆सबसे पहले मंगलवार को जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या स्नानादि से निवृत्त होना चाहिए।
◆उसके बाद में पीत वर्ण के कपड़ों को पहनना चाहिए।
◆बिछावन के लिए भी पीत वर्ण की कम्बल अथवा ऊनी आसन का प्रयोग करना चाहिए।
◆फिर उस पीत वर्ण के आसन पर ईशान दिशा की तरफ मुंह करके बैठ जाना चाहिए।
◆सफेद चंदन की माला से जैन धर्म के मंत्र का ग्यारहा हजार बार वांचन करते हुए जाप करना चाहिए।
◆जाप आरम्भ करने से पूर्व जैन धर्म के प्रवतकों को नतमस्तक होकर नमन करना चाहिए।
◆सामने घृत का दीपक जलाना चाहिए।
इस तरह की प्रक्रिया से जैन धर्म के इस मंत्र को विधि पूर्वक करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है।
◆जब ऊपरी बाधा से ग्रसित व्यक्ति या जरूरत पड़ने पर अनार वृक्ष की टहनी से बनी कलम के द्वारा केसर के लेप से भोजपत्र पर लिखना चाहिए।
◆फिर धूप दिखाकर एक सौ आठ बार वांचन करते हुए जाप करना चाहिए।
◆फिर उस भोजपत्र पर लिखे हुए जैन धर्म के सिद्ध मन्त्र को भोजपत्र को लपेट कर रोगी दाहिनी भुजा में बांध देना चाहिए।
◆उसके बाद में लोटे में थोड़ा सा जल लेकर उसमें सात बार फूंक मारकर एवं रोगी को पिला देना चाहिए।
◆इस तरह हमेशा धूप-दीप आदि दिखाकर इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
◆ऊपरी बाधा या ऊपरी हवा का प्रकोप शीघ्र समाप्त हो जायेगा।
5.ऊपरी बाधा से मुक्ति हेतु:-पीड़ित व्यक्ति को ऊपरी बाधा से मुक्ति हेतु एक अन्य उपाय निम्नलिखित रूप में करना चाहिए।
◆सबसे पहले मंगलवार के दिन बिना टूटा-फूटा पूरा साफ-सुथरा भोजपत्र लेना चाहिए।
◆फिर इस भोजपत्र पर गंगाजल छिड़कर शुद्ध करना चाहिए। ◆फिर अगर, तगर, केशर, गोरोचन, कस्तूरी, लालचन्दन, सफेद चन्दन आदि के द्वारा तैयार किया अष्टगंध को जल में पीसकर उसका लेप बना लेना चाहिए।
◆अष्टगंध के लेप को अनार के वृक्ष की टहनी से बनी कलम के द्वारा भोजपत्र पर निम्नलिखित यंत्र को लिखना चाहिए।
8 | 334 | 334 |
8 | 334 | 334 |
8 | 334 | 334 |
◆इस सिन्दूर से भोजपत्र के पीछे पीड़ित का नाम लिखना चाहिए।
◆फिर हाथ जोड़कर पीड़ित के स्वस्थ होने की अरदास करना चाहिए।
◆एक माला ऊँ हनुमते नमः का जाप करना चाहिए।
◆मंत्र जाप के बाद भोजपत्र को लपेटकर चांदी के ताबीज में डाल देना चाहिए।
◆ताबीज पर धूप देकर पीड़ित को पहना देना चाहिए।
◆इससे पीड़ित शीघ्र स्वस्थ होकर बाधा दूर होगी।
6.ऊपरी बाधा से मुक्ति हेतु यंत्रात्मक उपाय:-ऊपरी बाधा से मुक्ति हेतु एक यंत्रात्मक प्रयोग इस प्रकार हैं। जिसको करने से भी लाभ की प्राप्ति होती हैं।
◆ऊपरी बाधा से मुक्ति के यंत्र को सोमवार के दिन लिखना चाहिए।
◆सोमवार के दिन जाकर मदार अथवा आक के पौधे का एक पत्ता तोड़ लाना चाहिए।
◆फिर घर आकर मदार अथवा आक के पौधे का लाया हुआ पत्ता पर गंगाजल के छींटें देकर शुद्ध करना चाहिए।
◆बाजार में पंसारी या जड़ी-बूटी बेचने वाले से गोरोचन एवं मैनसिल को खरीदकर लाकर उन दोनों को जल में पीसकर लेप बना लेना चाहिए।
◆आक के पत्ते पर अनार वृक्ष की टहनी की कलम से गोरोचन एवं मैनसिल के लेप से यंत्र को लिख देना चाहिए।
◆फिर उस आक के पत्ते को धूप-दीप दिखाना चाहिए।
◆उसके बाद में आक के पत्ते पर लिखे यंत्र को चांदी के ताबीज में भर कर पीड़ित के गले में पहना देना चाहिए अथवा भुजा में बांध देना चाहिए।
ऊपरी बाधा नाशक यंत्र:-
ऊपरी बाधा के कारण उन्माद ग्रसित होने के लक्षण से मुक्ति हेतु:-जब ऊपरी बाधा से पीड़ित ऊपरी बाधा व्यक्ति के परिजनों को ऐसी अनुभूति हो अथवा पीड़ित व्यक्ति में पागलपन के लक्षण दिखाई देने लगें तो निम्न उपचार करने से ऊपरी बाधा से राहत मिलती हैं।
1.लहसुन एवं जतुक से राहत हेतु:-जब कोई व्यक्ति ऊपरी बाधा के कारण उन्माद के लक्षण प्रकट करते हो, तो उस व्यक्ति को लहसुन एवं हींग को कूटकर पानी में पीसकर पीड़ा से ग्रस्त को सुंघाना चाहिए। इससे वह होश में आ जायेगा और उसको पीड़ा से राहत मिलेगी।
◆रविवार को तुलसी पत्र, काली मिर्च 6-6 व सहदेई जड़ लाकर तीनों को तांबे के ताबीज में रखें और फिर धूप देकर धारण करें तो भूतादि बाधा समाप्त होती हैं।
2.पौधे के पत्तो एवं जड़ को गले में पहनाने से राहत:-पीड़ित व्यक्ति के परिजनों को पुष्पसारा के ग्यारह पत्तो, नौ मरीच पिप्पली और सहदोई के पौधे की मूल को रविवार के लाल कपड़े में बांधकर पीड़ित व्यक्ति के गले में पहनाना चाहिए, जिससे उसको पीड़ा से राहत मिलेगी। पुष्पसारा के पत्तों को शनिवार के दिन तोड़कर रखना चाहिए। जिससे उन पतों को रविवार के दिन उपयोग में लिया जा सकें।
3.अलग-अलग वस्तुओं को पीसकर मिश्रण से राहत:-पीड़ित व्यक्ति के परिजनों को थोड़ा सा शुकपुच्छ, गुग्गुल, लाक्षा, कुहुकशफा, नागदंत एवं विषधर की जरायु आदि को लेकर इन सभी वस्तुओं को पीस लेना चाहिए। ऊपरी बाधा ग्रस्त व्यक्ति पर जब ऊपरी हवा का दौरा आये तब इस मिश्रण में पीड़ित व्यक्ति के सिर का एक बाल रखकर उपले की आंच पर धूनी देनी चाहिए जिससे ऊपरी हवा का प्रभाव कम हो जाता है।
◆पीड़ित व्यक्ति के परिजनों को थोड़ा सा विषधर की जरायु, वचा, हींग तथा नीम की सूखी पत्तियां आदि को लेकर सभी वस्तुओं को पीस लेना चाहिए। ऊपरी बाधा ग्रस्त व्यक्ति पर जब ऊपरी हवा का दौरा आये तब इस मिश्रण में पीड़ित व्यक्ति के सिर का एक बाल रखकर उपले की आंच पर धूनी देनी चाहिए जिससे ऊपरी हवा का प्रभाव कम हो जाता है।
◆पीड़ित व्यक्ति के परिजनों को नीम के पत्ते, बट, हींग, विषधर की जरायु व सर्षपों को गोमूत्र में आदि को लेकर इन सभी वस्तुओं को पीस लेना चाहिए।
फिर ऊपरी बाधा ग्रस्त व्यक्ति पर जब ऊपरी हवा का दौरा आये तब इस मिश्रण में पीड़ित व्यक्ति को सुंघाना चाहिए।
4.नाव की कील एवं काले घोड़े की नाल से राहत:-पीड़ित व्यक्ति के परिजनों के द्वारा पुरानी नाव की एक कील एवं काले घोड़े के पैर की नाल को मंगलवार के दिन निकलवा कर लाना चाहिए।
◆फिर किसी लुहार के द्वारा नाव की कील एवं काले घोड़े की नाल को मिलाकर एक कड़ा बनवा लेना चाहिए।
◆उसके बाद में उस लोहे के धातु से बने कड़े को धूप-दीप दिखाना चाहिए।
◆फिर उस कड़े को शनिवार तक पूजा-स्थल में रखकर हमेशा ग्यारह हनुमान चालीसा के पाठ का वांचन करना चाहिए।
◆फिर आने वाले शनिवार को इस कड़े को पुनः धूप देकर पीड़ित व्यक्ति को पहना देना चाहिए। ऊपरी बाधा से शीघ्र मुक्ति मिल जायेगी।
ऊपरी बाधा निवृत्ति हेतु उपवास:-मनुष्य को ऊपरी बाधा निवृत्ति हेतु किए जाने वाले उपायों के साथ-साथ यह उपवास भी करना चाहिये। इसके करने से ऊपरी बाधा से जल्दी मुक्ति मिलकर परेशानी से छुटकारा मिल जाता है।
ऊपरी बाधा निवृत्ति उपवास को पीड़ित के घर के सदस्यों अथवा नजदीकी रिश्तेदार को करना होगा, क्योंकि पीड़ित व्यक्ति ऊपरी बाधा के असर में झकडा होने से उपवास करने की स्थिति में नहीं होता है और उससे उपवास का पालन भी नहीं करवाया जा सकता हैं।
◆ऊपरी बाधा निवृत्ति उपवास को शनिवार के दिन करना चाहिए।
◆पीड़ित के माता, पिता या पत्नी आदि में कोई भी उपवास पीड़ित के नाम से कर सकते हैं।
◆उपवास के दिन व्रतकर्ता को जल्दी प्रातःकाल में उठना चाहिए।
◆फिर अपनी दैनिकचर्या जैसे-शौच, दातुन, स्नानादि से निवृत्त होना चाहिए।
◆उसके बाद में स्वच्छ कपड़ों को पहनकर मन ही मन में अपने इष्टदेव को अपने मन मन्दिर में रखते हुए उनको याद करते हुए नमन करना चाहिए और ऊपरी बाधा से निवृत्ति हेतु उनसे अरदास करनी चाहिए।
◆व्रतकर्ता को मन ही मन में दृढ़ प्रतिज्ञा से युक्त होकर ग्यारह या इक्कीस शनिवार के व्रत को करने का संकल्प लेना चाहिए।
◆किसी भी माह में पड़ने वाले शनिवार को व्रत आरम्भ करना चाहिए।
◆भगवान हनुमानजी की तस्वीर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
◆हनुमान जी की तस्वीर के समक्ष पांचबत्ती वाला दीपक जलाकर लाल पुष्प चढ़ाना चाहिए।
◆भगवान हनुमानजी को भोग के रूप में चढ़ाने के लिए एक कटोरी में गुड़-चने अथवा लड्डू को रखना चाहिए। भोग लगाने के बाद उनको प्रसाद के रूप में बांटना चाहिए।
◆ताम्र धातु से बना हुआ एक छोटे मुँह वाला लोटा लेना चाहिए।
◆उस ताम्र लोटे में शुद्ध जल या गंगाजल को भरना चाहिए।
◆उस ताम्र के लोटे में पूर्व में तोड़कर लाये हुए तुलसी की पांच-सात पत्तियों को उसमें डालना चाहिए।
◆श्रीहनुमानजी के सामने ऊनी बिछावन पर बैठना चाहिए।
◆फिर श्रीहनुमानजी से अमुक रिश्तेदार या सम्बन्धी को ऊपरी बाधा से जल्दी छुटकारा दिलाने के लिए अरदास करनी चाहिए।
◆इसके बाद हनुमान बाहुक का पाठ करना चाहिए।
◆जब हनुमान बाहुक पाठ का वांचन करते समय संभव हो तो उस पीड़ित व्यक्ति को भी पास में उपस्थित रखना चाहिए।
◆फिर पाठ का वांचन पूर्ण हो जाने के बाद ताम्र धातु के लोटे में रखे हुए जल में सात बार फूंक मारनी चाहिए।
◆फूंक मारकर उस जल को और तुलसी के पत्तों को उस पीड़ित व्यक्ति को पिला देना चाहिए।
◆एक कटोरी में गुड़-चने अथवा लड्डू रखे को भोग लगाने के बाद उनको प्रसाद के रूप में बांटना चाहिए।
◆फिर जब सूर्य अस्त होने वाला हो उससे पहले एक समय फलाहार को ग्रहण करना चाहिए।
◆ऊपरी बाधा मुक्ति के लिए ग्यारह या इक्कीस शनिवार तक उपवास करना चाहिए।
◆ऊपरी बाधा मुक्ति के लिए ग्यारह या इक्कीस शनिवार तक हनुमान बाहुक का पाठ भी करना चाहिए।
ऊपरी बाधा मुक्ति के लिए दान:-ऊपरी बाधा मुक्ति उपवास के दिन पीड़ित व्यक्ति के हाथ लगाकर अथवा उसके सिर के ऊपर इक्कीस बार उसार कर भुने हुए चने एवं केले इच्छानुसार बंदरो को खिलाना चाहिए।
◆यदि बंदर कहीं दिखाई नहीं दें या ढूंढने पर नहीं मिलने की स्थिति में उन वस्तुओं को भिखारियों या असहाय जैसे-लूले-लँगड़े, गूंगे-बहरे आदि को बांटा जा सकता हैं।