शरद पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?(Why Sharad Purnima is celebrated?):-इसका विवरण निम्नलिखित हैं।
धर्म शास्त्रों के अनुसार:-भगवान श्रीकृष्णजी ने शरद पूर्णिमा में गोपियों के साथ रासलीला की था, इसलिए बृज में इस पर्व को विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है, इसे "कोजागरी पूर्णिमा" या "कोजागर व्रत" या "मोह रात्रि" या "रास पूर्णिमा" "रासोत्सव" या "कौमुदी व्रत महोत्सव" भी कहते हैं। माता महालक्ष्मीजी शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि काल में संसार में घूमने के लिए निकलती हैं, लक्ष्मीजी रात्रिकाल में कौन जाग रहा हैं व कौन नहीं जाग रहा हैं, उनका निरीक्षण करने के लिए निकलती हैं और जो मनुष्य रात्रिकाल में जागते हुए लक्ष्मीजी की पूजा करने वाले मनुष्य के निवास स्थान में स्थिर रूप से वास करते हुए एवं जागते रहने वाले मनुष्य पर अपनी अनुकृपा करके सुख-समृद्धि का आशिर्वाद प्रदान कर देती हैं। इसलिए मनुष्य शरद पूर्णिमा की रात्रिकाल में अधिकांश मनुष्य जागते रहते हैं और माता लक्ष्मीजी की अनुकृपा पाने हेतु इसलिए शरद पूर्णिमा में भगवान विष्णुजी, लक्ष्मीजी और तुलसी माता की पूजा-अर्चना की जाती हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार:-शरद पूर्णिमा तिथि के दिन मंगलवार का संयोग अनेक वर्षों में होता हैं, जब यह संयोग होता हैं, तब उस रात्रिकाल में चन्द्रमा पूरे वर्ष में अपनी पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता हैं और अपनी शीतल व मन को हरणे वाली किरणों से जगत में उजाला करते हैं, इसलिए इस तिथि को महापूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाकर रात भर चाँदनी किरणों में उत्तर भारत के मनुष्य के द्वारा रखने की परंपरा हैं, जिससे चन्द्रदेव के द्वारा अपनी अमृततुल्य किरणों से उस खीर में अमृत उत्पन्न हो सके।
शरद पूर्णिमा व्रत विधान:-शरद पूर्णिमा के व्रत को करते समय व्रत की विधि-विधान की जानकारी लेकर ही व्रत करने से उचित व्रत का फल मिलता हैं, शरद पूर्णिमा व्रत विधि-विधान निम्नलिखित हैं-
◆मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त के प्रातःकाल समय में जल्दी उठना चाहिए।
◆फिर अपनी रोजमर्रा की चर्या जैसे-शौच, दातुन, स्नानादि से निवृत होना चाहिए।
◆फिर स्वच्छ कपड़ों को पहनना चाहिए।
◆मनुष्य को सांसारिक बंधनों से दूर रहते हुए सात्विक जीवन को बिताने की सोच रखते हुए व्रत को पूर्ण रूप से करने का संकल्प मन में धारण करना चाहिए।
◆फिर मिट्टी से निमित कलश या ताम्र धातु के कलश को चावल आदि पर स्थापित करना चाहिए।
◆फिर ऐरावत पर आसठ इन्द्र और स्वर्णमयी महालक्ष्मी की मूर्ति या कोई चित्र वाली फोटू को उस कलश पर कपड़े से ढ़ककर स्थापित करना चाहिए।
◆इस दिन प्रातःकाल अपने आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषण से सुशोभित करना चाहिए।
◆फिर उनका यथा विधि षोडशोपचार कर्म से लक्ष्मीजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। उपवास करना चाहिए।
◆इन्द्र देव का पूजन करना चाहिए।
◆पूर्ण चन्द्रमा के मध्य आकाश में स्थित होने पर उनका पूजन कर अर्ध्य प्रदान करना चाहिए।
◆शाम को खीर बनाकर चन्द्रमाजी को भोग लगाना चाहिए।
◆जब सायंकाल के समय एवं रात्रि के समय चन्द्रदेवजी का उदय होने पर मिट्टी या स्वर्ण या रजत या ताम्र धातु से निमित घृतपूरित और गन्ध, पुष्पादि से पूजित एक सौ आठ या यथा शक्ति इससे भी अधिक दीप को प्रज्ज्वलित करके देव-मन्दिरों, बाग-बगीचों, तुलसी, अश्रत्थ वृक्षों के नीचे तथा भवनों में रखना चाहिए।
◆फिर घृत के मिश्रण में खीर को बनाकर, चपडों, शक्कर आदि को थाली में अलग-अलग पात्रों में डालकर रात्रिकाल में छंत पर खुली चन्द्रमा की चाँदनी में रखना चाहिए। जिससे रात्रि के समय चन्द्र की किरणों द्वारा अमृत गिरता हैं।
◆तत्पश्चात जब तीन घण्टे का समय या एक प्रहर बीत जाने पर समस्त पात्रों में रखी हुई खीर या अर्धरात्रि के समय गौ दूध से बनी खीर का भगवान एवं माता लक्ष्मीजी को भोग लगाना चाहिए।
◆अपराह्न में हाथियों का नीराजन करने का भी विधान हैं।
◆उसके बाद में श्रद्धाभाव ब्राह्मणों को घी-शक्कर मिश्रित खीर रूपी प्रसाद को आहार के रूप में ग्रहण करना चाहिए और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
◆फिर अपने श्रद्धाभाव के अनुसार मनुष्य को ब्राह्मणों को बढ़िया कपड़ो का दान देना चाहिए।
◆सामर्थ्य के अनुरूप ही ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर उनको सन्तुष्ट करके विदा करना चाहिए।
◆इसके साथ में स्वर्ण के दीपक देने से अनन्त फल की प्राप्ति होती हैं।
◆इस दिन श्रीसूक्त लक्ष्मी स्तोत्रं का पाठ ब्राह्मण द्वारा करवाना चाहिए।
◆ब्राह्मणों के द्वारा इस दिन कमल गट्टा, बेल, पंचमेवा अथवा खीर द्वारा दशांग हवन करवाना चाहिए।
◆इस दिन कांस्य पात्र में घी भरकर सुवर्ण सहित ब्राह्मण को दान देने से मनुष्य ओजस्वी होता हैं।
◆रात्रि जागरण करते हुए धार्मिक गीत को गाना चाहिए।
◆फिर प्रातःकाल में दैनिकचर्या स्नानादि से निवृत होकर लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी मूर्ति को ब्राह्मण को दे देना चाहिए।
शरद पूर्णिमा पर खीर खाने का महत्त्व:-आश्विन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि की रात्रि से शरद ऋतु की शुरूआत होती हैं, जिससे शीत की ठंड से मनुष्य के शरीर में राहत पाने के हेतु गर्म प्रदार्थो को आहार के रूप में उपयोग लेने से शरीर को गर्मी पहुंच सके और ठंड से राहत मिल सके। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात में रखी हुई खीर में जो चन्द्रमा की सोलह कलाओं की युक्त अमृत तुल्य होती हैं। जिसको सेवन करने से जीवन को देने ऊर्जा मिल सके।
शरद पूर्णिमा व्रत की कथा:-एक साहूकार के दो बेटियां थी। दोनों कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करती थी। बड़ी बहिन तो व्रत पूरा करती थी और छोटी बहिन अधूरा व्रत करती थी। तब उन्हें बच्चा होते ही मर जाते, यानी बच्चा जीवित नहीं रहते। एक दिन छोटी बहिन ने पण्डितजी को बुलाकर पूछा कि मेरे बच्चे जीवित नहीं रहते हैं, उनका जन्म होते ही मर जाते हैं। जब पण्डितजी ने कहा-तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इस कारण तुम्हारे बच्चे जीवित नहीं रहते हैं।
आप व्रत पूरा करोगे तो आपके बच्चे जीवित रहेगें। छोटी बहिन ने अब पूरे विधि-विधान से व्रत पूरे किए, लेकिन फिर भी थोड़े दिन बाद लड़का होकर मर गया। उस मरे हुए बच्चे को उठाकर पलंग पर सुला दिया और चादर से ढ़क दिया। फिर बड़ी बहिन को बुलावा भेजा। बड़ी बहिन पलंग पर सोते हुए बच्चे को छूते ही लड़का रोने लगा।
जब छोटी बहिन ने कहा कि यह आपके पुण्य प्रताप से मेरा लड़का जीवित हुआ हैं। हम दोनों का पूर्णिमा का व्रत करती थी। आप तो पूरा व्रत करती थी, लेकिन मैं अधूरा व्रत करती थी। इडके दोष से मेरे बच्चे जीवित नहीं रहते हैं। आपके छूते ही बच्चा जैसे गहरी नींद से उठ गया और वैसे ही रोने लगा। हे पूर्णिमा माता! जैसे छोटी बहिन की गोद भर, वैसे ही सभी की गोद भरना और जो कोई भी पूर्णिमा का व्रत करे तो वह पूरा व्रत करें।
शरद पूर्णिमा की रात्रि को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?:-विजयदशमी से शरद पूर्णिमा तक चन्द्रमा अपनी शीतल व मन को हरणे वाली किरणों में अमृततुल्य रस एवं शरीर में शक्ति देने की शक्ति होती हैं। जिससे मनुष्य वर्ष भर जीवन को खुशी पूर्वक और बिना किसी तरह की व्याधि से रहित रह सके। मनुष्य को विजयदशमी से शरद पूर्णिमा तक हमेशा रात्रिकाल में पन्द्रहरा से बीस मिनिट तक चन्द्रमा की तरफ एक नजर दृष्टि से देखते रहने पर मनुष्य की चक्षु की ज्योति बढ़ने लगती हैं और चक्षु से सम्बंधित व्याधि से भी राहत मिलती हैं।
देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमार होते हैं, इसलिए जब मनुष्य की इन्द्रियाँ में दुर्बलता होने पर उनको पूर्ण रूप से मजबूती पाने हेतु चन्द्रदेव की शीतल किरणों में खीर को रखना चाहिए और भगवान को खीर का भोग लगाते हुए अश्विनीकुमारों से अरदास करना चाहिए। हे अश्विनीकुमारों! आप इन्द्रियों को बल व ओज शक्ति को बढ़ावें। इस तरह से अरदास करने के बाद खीर को मनुष्य को ग्रहण करना चाहिए।
जब शुक्लपक्ष की पूर्णिमा और कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि के समय चन्द्रमा के असर के कारण समुद्र में उथल-पुथल होकर ज्वार भाटा को उत्पन्न करता हैं, तब चन्द्रमा के द्वारा उत्पन्न ज्वार भाटा से पृथ्वी पर बहुत ही कम्पन होती हैं, जिससे पृथ्वी पर निवास करने वाले जीव-जंतुओं सहित मानव के शरीर में विद्यमान जलीय तत्व, सात धातुएँ-रस, रक्त, माँस, मेद अस्थि, मज्जा, शुक्र व अण्ड, एवं सात रंग जैसे-लाल, पिला, सफेद, काला, पिला, भूरा, बैंगनी आदि पर असर चन्द्रमा की किरणों का पड़ता हैं, इस तरह इस समय में मनुष्य के द्वारा काम वासना का भोग करने पर अपंग सन्तान या असाध्य घातक व्याधि होने की प्रबल संभावना बनती हैं। जब मनुष्य इन समय में निराहार रहकर, दैहिक व आध्यात्मिक पवित्रता के लिए मन में संकल्प करते हुए साधु-संतों के साथ रहते हुए कर्म करने पर देह में मजबूती व ताजगी के साथ व्याधि से मुक्त हो जाते हैं, जिससे चित्त में पवित्रता उत्पन्न हो जाती हैं और ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं।
शरद पूर्णिमा उद्यापन विधि:-पूर्णिमा का उजमणा पूर्णिमा का व्रत झेलने के बाद ही करें।
◆उजमणा में एक बड़े कटोरे में एक चूनड़ी, चूडों, शक्कर, मेवा, सुहाग का सामान भरकर सासुजी को पैर छूकर देवे।
◆अगर श्रद्धा हो तो ब्राह्मणी को भी भोजन करावें।
◆सामग्री तीस आदमी एक जोड़ा-जोड़ी के कपड़े व सुहाग छाबड़ा, इकतीस लोटा, इकतीस सुपारी, इकतीस जनेऊ जोड़ा, इकतीस छोटे उपवस्त्र व इच्छानुसार दक्षिणा सहित भेंट देना चाहिए।
शरद पूर्णिमा तिथि के व्रत को करने का महत्व-शरद पूर्णिमा तिथि के व्रत को करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं-
1.आंखों की दृष्टि बढ़ाने हेतु:-जो मनुष्य शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रमाजी की रोशनी में सुई को धागे में पिरोने का बार-बार प्रयास करना चाहिए, जिससे मनुष्य की आंखों में रोशनी तेज होकर बढ़ जाती हैं।
2.श्वास से तकलीफ से मुक्ति पाने हेतु:-शरद पूर्णिमा की रात्रि श्वास रोग से ग्रसित मनुष्य के लिए जीवन दायक होती हैं।
3.गर्भवती औरत के गर्भ की रक्षा हेतु:-शरद पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा की पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त किरणों का प्रभाव जब गर्भवती औरत की कुक्षि पर पड़ने से गर्भ में स्थित गर्भ का पूर्ण विकास होकर मजबूत अंग-प्रत्यंगों से युक्त हो जाता है। इस तरह से वर्ष भर में शरद पूर्णिमा की एक रात्रि के प्रभाव से गर्भ के लिए औषधियों की तरह किरणें असर करती हैं।
4.माता लक्ष्मीजी को खुश करके उनकी अनुकृपा पाने हेतु:-शरद पूर्णिमा तिथि के व्रत को करके माता लक्ष्मीजी को खुश किया जा सकता हैं और उनकी अनुकृपा प्राप्त की जा सकती हैं, जिससे मनुष्य को रुपयों-पैसों का सुख मिल जाता हैं और जीवन में खुशहाली भर जाती हैं।
5.मानसिक विकारों से राहत:-मनुष्य पर माता लक्ष्मीजी की अनुकृपा होने से मनुष्य को समस्त तरह से सुख-ऐश्वर्य प्राप्त हो जाता है और मन में उत्पन्न नकारात्मक विचार समाप्त हो जाते हैं।
6.दाम्पत्य जीवन में सुख-शांति:-मनुष्य को दाम्पत्य जीवन में उत्पन्न होने लड़ाई-झगड़े एवं आपसी मतभेद आदि से राहत मिल जाती हैं।
7.समस्त तरह की व्याधियों से राहत:-मनुष्य को शारिरिक व्याधियों से राहत मिलता हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन द्वादश राशियों के मनुष्य को सुख-समृद्धि को प्राप्त करने के लिए योग्य प्रयोग या उपाय:-शरद पूर्णिमा के दिन द्वादश राशियों के मनुष्य को अपनी इच्छा पूर्ति के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
1.मेष राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-मेष राशि वाले मनुष्य को शरद पूर्णिमा के दिन अविवाहित लड़की को अपने निवास स्थान में चावल व दूध से बनी हुई पायस को खिलाना चाहिए और दुग्ध में चावल को धोना चाहिए और उस धुले हुए दुग्ध मिश्रित तरल को नदी या तालाब या बहते हुए जल में प्रवाहित करने से मनुष्य की समस्त तरह की वेदनाओं का निवारण हो जाता हैं और जीवन में खुशहाली भर जाती हैं।
2.वृषभ राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-वृषभ राशि का स्वामी ग्रह भृगु देव होते हैं और वृषभ राशि में सोम ग्रह उच्च राशि के मालिक होते हैं। इसलिए वृषभ राशि वाले मनुष्य को शरद पूर्णिमा के दिन शुक्रदेव को खुश करना चाहिए, जिससे मनुष्य को लौकिक व सांसारिक जरूरतों की पूर्ति हो सके। मनुष्य को धेनु का घृत एवं दधि को मन्दिर में जाकर जरूरत मन्द को दान देना चाहिए।
3.मिथुन राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-मिथुन राशि का मालिक ग्रह बुध होता हैं, जब बुध ग्रह का मेल चन्द्र ग्रह के साथ होता हैं, तब मनुष्य अपने निर्णय लेने में स्थिर नहीं रह पाता हैं, जिससे उसको किसी भी कार्य में कामयाबी नहीं मिल पाती हैं, इसलिए मनुष्य को शरद पूर्णिमा के दिन दुग्ध एवं चावल को गरीब मनुष्य को दान के रूप में देना चाहिए, जिससे मन में स्थिरता रहते हुए मनुष्य अपना उचित निर्णय लेकर प्रगति की राह को पा सके।
4.कर्क राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-कर्क राशि का मालिक ग्रह चन्द्रमा होते हैं, स्वयं की राशि होने से मनुष्य को अपने मन में सकारात्मक भाव को उत्पन्न करने के लिए और बिना मतलब की मानसिक चिंता से मुक्त रहने हेतु मनुष्य को शरद पूर्णिमा के दिन दुग्ध को मिश्री में मिश्रित करके मंदिर में दान के रूप में देना चाहिए।
5.सिंह राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-सिंह राशि का मालिक ग्रह सूर्यदेव होते हैं, इसलिए मनुष्य को अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए एवं रुपयों-पैसों की बढ़ोतरी हेतु, गुड़ का दान मन्दिर परिसर में करने से आत्मविश्वास एवं रुपयों-पैसों से सम्बंधित राहत मिलती हैं।
6.कन्या राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-कन्या राशि वाले मनुष्य को तीन से दस वर्ष की उम्र वाली अविवाहित लड़कियों को अपने निवास स्थान पर आदरयुक्त पूजन करके खीर को खिलाना चाहिए, जिससे कार्य क्षेत्र में उन्नति मिल सके।
7.तुला राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-तुला राशि के मनुष्य को अपनी राशि के मालिक शुक्र ग्रह को खुश करना चाहिए, जिससे मनुष्य को शारीरिक, मानसिक एवं भौतिक सुख-ऐश्वर्य में बढ़ोतरी के लिए शरद पूर्णिमा के दिन मनुष्य को गाय से बना शुद्ध देसी घृत, दुग्ध और चावल को धार्मिक जगहों पर दान करने से सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती हैं।
8.वृश्चिक राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-वृश्चक राशि में जन्में मनुष्य की राशि का मालिक ग्रह मंगल होता हैं, जब चन्द्रमा से सयोंग होता हैं, तब लक्ष्मी योग का निर्माण होता हैं, इसलिए मनुष्य को शरद पूर्णिमा के दिन अपने जीवन में रुपयों-पैसों में बढ़ोतरी करने के लिए और निवास स्थान में सुख-शांति में बढ़ोतरी के लिए मनुष्य को मंगल ग्रह से सम्बंधित जैसे-गुड़, आदि वस्तुओं और अविवाहित लड़कियों को चांदी का व दुग्ध का दान करना चाहिए।
9.धनु राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-धनु राशि में जन्में मनुष्य की राशि का मालिक ग्रह गुरु होते हैं। जिससे मनुष्य के ज्ञान क्षेत्र में उन्नति मिल सके। इसलिए मनुष्य को शरद पूर्णिमा के दिन पीले कपड़ों, चने की दाल और पीले पुष्प को दान करना चाहिए।
10.मकर राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-मकर राशि में जन्में मनुष्य को अपनी राशि के मालिक ग्रह शनि ग्रह को बलवान करने के लिए शनि ग्रह से सम्बंधित दान एवं उपाय को करना चाहिए और मनुष्य को अपनी मन की मुराद को प्राप्त करने हेतु चावल को नदी या तालाब में प्रवाहित करना चाहिए।
11.कुम्भ राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-कुम्भ राशि में जन्में मनुष्य को अपनी राशि के मालिक शनि ग्रह को ज्यादा बलवान करने के लिए शनि ग्रह के उपाय एवं नेत्रहीनों को भोजन करवाने पर फायदा मिलता हैं।
12.मीन राशि वाले मनुष्य के द्वारा करने योग्य उपाय:-मीन राशि में जन्में मनुष्य को सुख-समृद्धि को पाने हेतु ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।