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Tuesday, September 6, 2022

सौभाग्य व्रत विधि विधान क्या हैं?(What is Saubhagya Vrat Vidhi Vidhan?)


सौभाग्य व्रत विधि विधान क्या हैं?(What is Saubhagya Vrat Vidhi Vidhan?):-सनातन धर्म में वर्णन मिलता हैं, कि नारी की जहाँ पूजा होती हैं, वहाँ देवी-देवताओं का वास होता हैं। इसलिए नारी का महत्वपूर्ण स्थान होता हैं, नारी के बिना किसी भी जीवन की कल्पना करना संभव नहीं हैं। किसी भी नारी के लिए उसका भर्तार ही सर्वोपरि होता हैं, उसके बिना वह अपने जीवन को पूर्ण रूप से जी नहीं सकती हैं। सदा सुहागिन रहने के लिए वह तरह-तरह के व्रत करती हैं, जिससे उसका सुहाग अमर रहें और उत्तम सन्तान की प्राप्ति हो सके। सनातन में नारी और सौभाग्य एक दूसरे के बिना अधूरे है।




What is Saubhagya Vrat Vidhi Vidhan?





सौभाग्य वस्तुएं:-प्रत्येक मांगलिक कार्य अथवा पूजा में सौभाग्य-पदार्थ आवश्यक होते हैं। इस सौभाग्य वस्तुओं में 'हल्दी, कुमकुम, काजल, काली पोत, मंगल सूत्र और कंकण आवश्यक हैं। कुछ प्रमुख सौभाग्य व्रत का विधान भी है।




सौभाग्य व्रत:-सौभाग्य व्रत की अधिष्ठात्री देवी गौरी माँ होती है। इसलिए माँ गौरी को खुश करने के लिए सौभाग्य व्रत को किया जाता हैं, जिससे उनकी अनुकृपा की प्राप्ति हो जावे।



◆कार्तिक पूर्णिमा के दिन जल्दी उठना चाहिए।



◆फिर अपनी रोजाने की क्रिया जैसे-दातुन, शौच, स्नानादि को पूर्ण करना चाहिए।



◆उसके बाद स्वच्छ कपड़े को पहना चाहिए।



◆कार्तिक पूर्णिमा के दिन मन ही मन में दृढ़ प्रतिज्ञावत एक समय भोजन करने का एकासना अथवा उपवास संकल्प लेना चाहिए।



◆फिर अबीर, गुलाल से सोलह पांखुरी का एक कमल बनाएं। 



◆उस सोलह पांखुरी वाले कमल के बीच में मध्य में चन्द्रमा की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करना चाहिए।



◆चन्द्रमा के तन्तु पर अट्ठाइस नक्षत्र (अभिजीत सहित) तथा पांखुरी पर तिथि ओर उनके अधिपति देवताओं के नाम लिखकर पूजन करना चाहिए।



◆व्रत का समापन करने के बाद दो कपड़ों का दान किसी असहाय या ब्राह्मण दम्पत्ति को दान स्वरूप देना चाहिए।




◆फाल्गुन तृतीया से व्रत प्रारंभ कर आगामी 11 माह की तृतीया तिथि को नमक नहीं खाना चाहिए।



◆वर्ष के अखीर में ब्राह्मण दम्पत्ति को एक पलंग और यथासामर्थ्य गृहस्थी में उपयोग आने वाली जैसे-बर्तन, चटाई, कुर्सी, टेबिल आदि वस्तुएं दान करनी चाहिए।




◆चैत्र महीने की पंचमी तिथि को भी चन्द्रमा की पूजा करने से संपत्ति, कीर्ति मिलती है।



सौभाग्य संक्रांति व्रत:-अयन विषुव संक्रांति व्यतिपात योग एवं संक्रांति के दिन यह व्रत करना चाहिए।



◆सौभाग्य संक्रांति व्रत का समय एक वर्ष तक का होता हैं, यदि कोई भी लड़कियां या औरतें यदि सौभाग्य संक्रांति व्रत को अपनी इच्छा पूर्ति तक भी कर सकती हैं।



◆व्रत करने वाली लड़कियों या औरतों को एकासना करना का संकल्प करना चाहिए।



◆फिर कुमकुम से अष्टदल बनाना चाहिए।



◆उसके बाद उस अष्टदल के प्रत्येक दल पर पूर्व, आग्नेय, उत्तर, दक्षिण, वायव्य, नैर्ऋत्य, ईशान और पश्चिम के अनुसार भास्कर रखी, विवस्मान् पूषा आदित्य नपन, मार्तण्ड, भानु तथा कर्णिका पर विश्वात्मा की स्थापना करनी चाहिए।



◆ततपश्चात इन सभी अष्टदल के प्रत्येक दल पर स्थापित देव की पूजा करनी चाहिए।



◆पूजा करने के बाद औरतों को ब्राह्मण दंपत्ति को सौभाग्याष्टक तथा दो वस्त्र दान करने चाहिए।



◆जब सौभाग्य संक्रांति व्रत के तय सीमा पूर्ण होने के बाद उस व्रत का उद्यापन करते समय लवण पर्वत, सुवर्ण कमल, सूर्य की प्रतिमा का दान करना चाहिए




सौभाग्याष्टक वस्तु:-औरतों को अमर सुहाग एवं अपने जीवन में खुशहाली की प्राप्ति हेतु सौभाग्यष्टक वस्तुएं जैसे-हल्दी, कुमकुम, दर्पण, धान्या आभूषण, सिन्दूर, फल व कंघी आदि आठ वस्तुएं पात्र में भरकर ब्राह्मण को दान करना चाहिए।रोग, अमर सुहाग, सुंदरता,गुणवान सन्तति, धन-धान्य आदि हेतु




गन्ना तरुराज (तालपग) दूध व घी से निर्मित गेंहू का पदार्थ, जीरा, गाय का दूध, केसर, धन तथा नमक इन वस्तुओं को भी सौभाग्याष्टक की संज्ञा प्रदान की गई हैं।




सौभाग्य व्रत विधि विधान:-माघ मास की कृष्णपक्ष या वदी पक्ष की तृतीया तिथि से सौभाग्य व्रत को प्रारम्भ करना चाहिए।



◆औरतों या लड़कियों को सौभाग्य व्रत के दिन एक समय भोजन करने लिए एकासना करना चाहिए।



◆माता गौरी की षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए।



◆औरतों या लड़कियों को पूरे बारह माह के प्रत्येक महीने में माता गौरी के सौभाग्य व्रत करते हुए माता गौरी का पूजन करना चाहिए।



◆औरतों या लड़कियों को अपनी मन की इच्छा पूर्ति के लिए उपवास करना चाहिए।


◆जब औरतों या लड़कियों के द्वारा व्रत करते हुए एक वर्ष पूर्ण हो जाता हैं, तब उनको यदि व्रत का उद्यापन करना हो, तो जिस माह से उन्होंने व्रत को शुरू किया था, उसी माह को व्रत का उद्यापन करना चाहिए।


◆देवी माता के नौ रूप धर्म ग्रन्थों में वर्णित हैं, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री इन नौ रूपों के स्वरूप को नवदुर्गा कहते हैं।



◆शिवा, अम्बिका, सती, पार्वती, उमा, गिरिजा, भवानी आदि गौरी के अनेक रूपों में से एक विशिष्ट रूप का नाम निर्देश कर पूजा करनी चाहिए।



◆पूजन के लिए विशिष्ट फूल, नैवेद्य के लिए विशिष्ट पदार्थ लेकर नाना प्रकार के फलों से विशेष अर्घ्य देकर भोजन हेतु भिन्न-भिन्न प्रकार के पकवान बनाकर ग्रहण करें। यही इस व्रत की विशिष्टता है।



उद्यापन विधि-विधान:-जब स्त्रियों या लड़कियों के द्वारा एक वर्ष तक या अपनी इच्छा पूर्ति तक व्रत करने के बाद यदि उस व्रत की समाप्ति को विधिपूर्वक संपन्न करने के लिए धार्मिक कृत्य निम्नलिखित रूप से करना चाहिए।



◆गौरी पूजन:-सबसे पहले माता गौरी का षोडशोपचार पूजा कर्म से पूजा-अर्चना करनी चाहिए।



◆होम हवन:-माता गौरी को प्रसन्न करने के लिए आग में घृत, जौ आदि की क्रिया को करते हुए अग्निकुंड में अर्पण करने के लिए होम-हवन करना चाहिए।



◆आचार्य पूजा:-होम-हवन के बाद जो भी पूजा-अर्चना एवं होम-हवन संबंधी कर्मकांड को कराने वाले आचार्य या ब्राह्मण पण्डित की पूजा करनी चाहिए। उनके पैर धोने के बाद स्वच्छ कपड़े से उनके पैर पोंछना चाहिए।



◆दाम्पत्य भोजन:-ब्राह्मण दम्पत्ति या किसी भी दम्पत्ति को व्रत की समाप्ति के बाद भोजन करना चाहिए। फिर दम्पत्ति को साथ बैठकर भोजन करके व्रत को पूर्ण करना चाहिए।



◆वस्त्रदान:-ब्राह्मण दम्पत्ति या सौभाग्यवती स्त्रियों को वस्त्र दान करना चाहिए।



◆मंगलाष्टक दान:-लड़कियों या औरतों को उनके मन की इच्छा के पूर्ण होने की कामना के आशीष दिया जाता हैं, शुभकारी वस्तुओं जैसे-मांग के लिए सिन्दूर, माथे के लिए बिंदीया, कंकु, काजल, मोली, हाथों के लिए चूड़ी, मेहंदी, पान, पांव के लिए पायल एवं बिछिया आदि को दान के रूप देना चाहिए।



◆मूर्तिदान:-आखिर में समस्त प्रक्रिया करने के बाद जिस देवी-देवता की पूजा करने मूर्ति या तस्वीर का उपयोग किया गया हैं, उस मूर्ति या तस्वीर को दान आदि करना चाहिए



कार्यक्रम संपन्न होने पर, व्रत समाप्ति पर गुण, रूप, संपदा, सौभाग्य तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।




सौभाग्य अवासि व्रत:-सौभाग्य अवासि व्रत एक काम्य या इच्छापूर्ति व्रत है। जिन लड़कियों-औरतों को अपने मन की धारित कामना की सिद्धि को प्राप्त करना होता हैं, वे सौभाग्य अवासि व्रत को करते हैं। सौभाग्यवती औरतें भगवान श्रीकृष्ण की तरह पुत्र सन्तान की और अपने अमर सुहाग की प्राप्ति हेतु इस व्रत को करती हैं। जब सच्चे मन, आस्था एवं विश्वास के साथ कोई भी व्रत किया जाता हैं, तो ईश्वर की अनुकृपा मिल जाती हैं।



◆सौभाग्य अवासि काम्य व्रत के देवता भगवान श्रीकृष्ण माने जाते हैं।



◆सौभाग्य अवासि काम्य व्रत एक माह की अवधि का होता हैं, इसलिए एक महीने तक करना चाहिए।



◆सौभाग्य अवासि व्रत माघ महीना के कृष्णपक्ष या वदी पक्ष की प्रतिपदा से व्रत को आरम्भ करना चाहिए। 



◆एक नया कपड़ा या साफ-धुला हुआ कपड़ा किसी चौकी पर रखना चाहिए।



◆उस साफ वस्त्र पर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा चित्र रखकर उनकी पूजा करनी चाहिए।


◆व्रत करने वाली लड़कियों या औरतों को को प्रियंगु या छोटी सरसों के दाने की सुगंध से तैयार किये हुए जल से स्नान करना चाहिए।



◆फिर स्वच्छ कपड़े इत्र की सुगंध से युक्त करके ही पहनने चाहिए।



◆प्रियंगु को दूध, दही, घृत, चीनी, शहद आदि में मिश्रित कर पवित्र मानते हुए बने चरणामृत देवता को अर्पण करना चाहिए और उसी का होम करना चाहिए।



◆अन्तिम तीन दिवस उपवास करके फाल्गुन पूर्णिमा के दिन केसरिया रंग के दो वस्त्र, मधुपुर्व पात्र, दान करने से सौभाग्य सौन्दर्य की प्राप्ति होती हैं।



सौभाग्य तृतीया व्रत:-फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को सौभाग्य तृतीया व्रत के रूप में किया जाता हैं।




◆सौभाग्य तृतीय व्रत के दिन श्री हरिविष्णु एवं लक्ष्मी माता का व्रत किया जाता हैं।



◆श्रीहरिविष्णुजी और लक्ष्मी माता की पूजा-अर्चना की जाती हैं।



◆व्रत करने वाले व्रती को मधु, घृत एवं तिल के द्वारा होम करना चाहिए। 



◆फाल्गुन माह से ज्येष्ठ चार माह की प्रत्येक तृतीया तिथि को व्रत करना चाहिए।



◆जो इन चार माह के बीच आने वाली तृतीय तिथि के व्रत करते हैं, उनको लवण, घृत, घी, रोगन रहित गेंहू के व्यंजन का सेवन करना चाहिए।



◆कार्तिक माह से माघ चार माह तक भूने हुए चने, जौ आदि को पीस कर बनाया गया आटा या चूर्ण से बना हुआ सत्तू के द्वारा बनाये गए पदार्थ का भोजन करना चाहिए।



◆आखिर में माघ माह के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को विष्णु लक्ष्मी की मूर्ति, मधु, घृत, तिल, तेल, गुड़, नमक, गाय का दूध भरकर पात्र दान करना चाहिए। दान पात्र का मतलब जो व्यक्ति उस दान को लेने के योग्य होता हैं जैसे-किसी असहाय लूला, लंगड़ा, गूंगा, बहरा, निर्धन व्यक्ति को या किसी दम्पत्ति ब्राह्मण को दान देना चाहिए।


आशीष लेना:-योग्य दान-पात्र को दान देकर उनसे दुआ लेनी चाहिए।



मंत्र:-व्रत करने वाले व्रती को निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण व्रत के दिन करना चाहिए।


देहि में सौभाग्यं आरोग्यं रूपं देहि,

धनं देहि, यशो देहि द्विषो जहि।'


अर्थात्:-हे देवी गौरी माँ! मैं आपसे अरदास करती हूँ कि मुझे अमर सुहाग का सुख, रोग से मुक्ति, अच्छी सूरत, रुपयों-पैसों को आप प्रदान कीजिए। मेरी नाम का यश समस्त जगत में  फैले और मुझमें दूसरे के प्रति वैर भाव की भावना, दूसरे की प्रगति, सुख आदि को देखकर मन में किसी तरह की जलन न हो, इन्द्रिय या विषय सुख की तीव्र इच्छा न हो और किसी भी प्रतिकूल कार्य के होने पर मन में किसी भी तरह का रोष आदि के भाव उत्पन्न नहीं होवें।




सौभाग्य व्रत करने के लाभ(Benefits of Saubhagya vrat):-सौभाग्य व्रत को विधि-विधान से करने पर औरतों को निम्नलिखित लाभ मिलते हैं।



◆सौभाग्य व्रत करने से शरीर की खूबसूरती में चार चांद लग जाता हैं, जिससे दूसरे देखकर प्रशंसा करते हैं और मन को  सुख प्राप्त होता हैं।



◆सभी जगह पर भलाई एवं मंगल की प्राप्ति होती हैं।



◆सौभाग्य व्रत को करने से औरतों को गुणवान पुत्र सन्तान की प्राप्ति होती हैं।



◆औरतों को व्रत करने अमर सुहाग का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।



◆औरतों को जीवन में धन-धान्य के भंडार भरे रहते हैं।



◆शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक सम्बन्धित व्याधियों से छुटकारा मिल जाता हैं।



◆अपने परिवार का नाम समस्त जगत में रोशन होता हैं।



◆व्रत करने से दूसरे के प्रति किसी भी तरह का मैल नहीं रहता हैं और अपने शरीर व वाणी पर नियंत्रण रहता हैं।




◆दूसरों के साथ प्रेम एवं मधुरता पूर्वक सम्बन्ध बनते हैं और मन में किसी के प्रति किसी भी तरह की कोई नफरत नहीं रहती हैं।



◆व्रत करने वाले को देवी-देवता की भक्ति के प्रति इच्छा बढ़ती हैं। विषय सुख की भावना का त्याग होता हैं।