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Sunday, January 1, 2023

भीष्म पंचक व्रत क्या होता हैं? जानें पूजन विधि, कथा और महत्व(What is Bhishma Panchak Vrat? Know the puja vidhi, katha and importance)

भीष्म पंचक व्रत क्या होता हैं? जानें पूजन विधि, कथा और महत्व(What is Bhishma Panchak Vrat? Know the puja vidhi, katha and importance):-कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि से शुरू होकर पूर्णिमा तक किया जाता है, इसलिए भीष्म पंचक या महाभारत भीष्म पंचक या विष्णु पंचक या पंच भीखम कहते है। इस दिन स्नानादि से शुद्ध होकर पापों के नाश और धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति के लिए व्रत का संकल्प करें।



पंचक को ज्योतिष शास्त्र में अनिष्टकारी एवं नुकसान दायक होने से मांगलिक कर्म के कार्यों को करना वर्जित माना जाता है। लेकिन भीष्म पंचक में समस्त मांगलिक कार्य को किया जा सकता है। भीष्म पंचक को हिन्दुधर्म ग्रन्थों में बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। सबसे पहले भीष्मदेव ने भीष्म पंचक व्रत को करने से भीष्मदेव के नाम पर ही भीष्म पंचक पड़ा था। धर्म गर्न्थो में कार्तिक मास को एक बहुत ही पवित्र एवं पुण्य दायक माना जाता हैं, इस मास में स्नान को भी बहुत महत्व दिया हैं और इस मास में जो मनुष्य व्रत करते हुए पवित्र नदी में स्नान करते हैं, उनका जीवन मोक्ष गति को पा लेते हैं। सर्वप्रथम भीष्मदेव नें भीष्म पंचक व्रत को किया था। ऐसे तो कार्तिक मास पूर्ण रूप से पवित्र एवं पुण्यदायक होता हैं, लेकिन कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि से लेकर पूर्णिमा तिथि तक पांच दिवस बहुत ही पावनकारी माने गए हैं। जो मनुष्य पूरे कार्तिक मास में स्नान नहीं कर पाते हैं और वे मनुष्य केवल कार्तिक मास की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक पांच दिवस स्नान करने पर उस मनुष्य को पूरे कार्तिक मास में मिलने वाले पुण्य का फल केवल पांच दिवस स्नान से मिल जाता हैं। इसलिए मनुष्य को पांच दिवस में प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपनी दैनिकचर्या को पूर्ण करते स्नान करना चाहिए। 



What is Bhishma Panchak Vrat? Know the puja vidhi, katha and importance



भीष्म पंचक व्रत के पांच दिनों के रूप:-भीष्म पंचक व्रत में पांच दिनों को अलग-अलग रूप में मनाया जाता है, जो इस तरह हैं।



◆पहले दिन को हरि या देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत के रूप में मनाया जाता है।



◆दूसरे दिन को तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।



◆तीसरे दिन विश्वेश्वर व्रत के रूप में मनाया जाता है।



◆चौथे दिन मणिकर्णिका स्नान के रूप में मनाया जाता है।



◆पांचवें दिन को कार्तिक पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता हैं।




धर्मग्रन्थों के अनुसार तर्पण एवं अर्घ्य के विषय के मन्त्र:-भीष्म पंचक या विष्णु पंचक के पांच दिन तक मनुष्य को पवित्र नदी जैसे-गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा या गोदावरी नदी में स्नान करना चाहिए, जिससे मनुष्य के द्वारा किये गए धर्म व नीति के विरुद्ध पतित कर्मो से मुक्ति मिल जावे और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति हो सके। इसलिए भीष्मदेव को तर्पण करते समय निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए तर्पण करना चाहिए। इस व्रत में गंगा पुत्र भीष्म की इच्छा पूरी होने से शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण का कायदा हैं।




भीष्म तर्पण के लिए मंत्र:-भीष्म को तृप्त करने के लिए अपने मन को पवित्र एवं एकाग्रचित्त करते हुए निम्नलिखित मन्त्र के द्वारा तर्पण करना चाहिए। यह तर्पण प्रतिवर्ष करना सभी वर्णों के लिए श्रेयस्कर हैं।



"ऊँ वैयाघरा पाद्य गोत्रया समकृति प्रवरया च


अपुत्रया ददमयेतत सलिलम भीष्मवर्मन।


सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने।


भीष्मायेतद् ददाम्यर्घ्यमाजन्म ब्रह्मचारिणे।।



अर्थात्:-जीवनभर सांसारिक बंधनो से दूर रहते हुए सात्विक जीवन को धारण करने वाले श्रेष्ठ पाप एवं दोष से रहित सत्य बोलने की प्रतिज्ञा के प्रति पूर्ण भक्ति भाव को रखने वाले गंगानन्दन महात्मा भीष्म को मैं अर्घ्यं देता हूँ।




भीष्म अर्घ्यंदान देने का मन्त्र:-जिन मनुष्य को सांसारिक जीवन के जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति पानी होती हैं और अपना उद्धार चाहते हैं, उनको निम्नलिखित मन्त्र के द्वारा अर्घ्य या जल, फल-फूल आदि सामग्री को पूजा में चढ़ाने के योग्य होती हैं।



वैयाघ्रद गोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।


अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे।


वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च।


अर्घ्यं ददानि भीष्माय आजन्म ब्रह्मचारिणे।।


अर्थात्:-जो व्याघ्रपद या बाघ के समान चिन्हों से गोत्र वाले और सांकृत वंश में जन्म लेने वाले और पुत्र सन्तान से रहित भीष्म को मैं जल रूपी अर्घ्यं अर्पण करता हूँ। जिन्होंने वसुओं के लिए अवतार लिया हैं, राजा शान्तनु के पुत्र में जन्म लिया हैं। जिन्होंने जीवनभर सांसारिक बंधनो से दूर रहते हुए सात्विक जीवन को धारण करने वाले भीष्म को मैं अर्घ्यं का जल अर्पण करता हूँ। जिन मनुष्य दम्पति को पुत्र सन्तान की अधूरी इच्छा को पूर्ण करना हैं, उनको अपनी भार्या सहित भीष्म पंचक व्रत को धारण करते हुए तर्पण एवं अर्घ्य देने पर एक साल के भीतर पुत्र सन्तान की प्राप्ति इस व्रत के असर से हो जाती है और धर्म एवं नीति के विरुद्ध किये गए पतित आचरणों का प्रभाव समूल नष्ट हो जाता हैं। इसलिए प्रत्येक भारतीय को प्रयत्नपूर्वक इसका अनुष्ठान करना चाहिए।




भीष्म पंचक व्रत की पूजा सामग्री के रूप में:-पंचगव्य (दूध, दही, घृत, गोबर, गोमूत्र), चन्दन आदि से निमित सुंगधित जल, इत्र आदि गन्ध से युक्त , कुंकुम, अबीर, गुलाल, केसर, पुष्प, अक्षत, नैवेद्य आदि हैं।




भीष्म पंचक व्रत की पूजा विधि-विधान या भीष्म पंचक व्रत कैसे करे?:-मनुष्य को निम्नलिखित रूप से श्री भीष्म पंचक व्रत में श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जो इस तरह हैं- 



◆मनुष्य को घर के आंगन या नदी के तट पर चार दरवाजों वाला मंडप बनाकर गाय के गोबर से लीप देना चाहिए। 



◆बाद में सर्वतोभद्र की बेदी बनाकर उस पर तिल भरकर कलश स्थापित करें।



◆पांचों दिन काम, अर्थ, क्रोध आदि का त्याग करके ब्रह्मचर्य, क्षमा, दया और उदारता धारण करनी चाहिए। 



◆पांच दिनों के इस व्रत को भीष्म ने भगवान वासुदेव से प्राप्त किया था।



◆प्रथम दिन पाँच दिन के व्रत का संकल्प लिया जाता हैं और देवताओं, ऋषियों और पितरों को श्रद्धा सहित याद किया जाता हैं।



◆इस व्रत में लक्ष्मीनारायणजी की मूर्ति बनाकर उनका पूजन किया जाता है। 



◆अर्घ्य के बाद श्री हरि विष्णुजी का वैसे तो पूजन षोडशोपचार कर्म से पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे धर्म एवं नीति के विरुद्ध किये गए पतित आचरणों का नाश हो जावें।



◆पंचगव्य (दूध, दही, घृत, गोबर, गोमूत्र), चन्दन आदि से निमित सुंगधित जल, इत्र आदि गन्ध से युक्त , कुंकुम, अबीर, गुलाल, केसर, पुष्प, अक्षत, नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए।



पूजन में सामान्य पूजा के विशेष पूजा अतिरिक्त करने हेतु:-निम्नलिखित रूप से भी पूजा करनी चाहिए- 



◆पहले दिन देव उत्थान एकादशी में:-भगवान के ह्रदय का कमल के पुष्पों से पूजन किया जाता हैं



◆दूसरे दिन तुलसी विवाह में:-भगवान की जांघ या कटि प्रदेश का बिल्वपत्रों से पूजन किया जाता हैं।



◆तीसरे दिन विश्वेश्वर व्रत में:-भगवान की नाभि पर सुंगधित इत्र एवं घुटनों का केतकी के पुष्पों से पूजन किया जाता है।



◆चौथे दिन मणिकर्णिका स्नान:-भगवान के कन्धे पर जावा कस फूल एवं चरणों का चमेली के पुष्पों से पूजन किया जाता हैं।



◆पाँचवे दिन कार्तिक पूर्णिमा में:-भगवान के सिर पर मालती के फूल एवं सम्पूर्ण विग्रह या अंग का तुलसी की मंजरीयों से पूजन करना चाहिए।



◆ततपश्चात "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र से भगवान वासुदेव की पूजा करनी चाहिए।



◆श्रीविष्णुजी के नजदीक में भीष्म पंचक व्रत के पांच दिन कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक लगातार घृत से परिपूर्ण दीपक की लौ बिना बुझे प्रज्वलित होनी चाहिए।



◆फिर भगवान श्रीविष्णुजी को फल एवं मिठाई का भोग के रूप में नैवेद्य को अर्पण करना चाहिए।



◆मौन होकर "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का एक सौ आठ बार जाप करना चाहिए।



◆फिर मनुष्य को पूजा करने के बाद अपने मन को स्थिर रखते हुए श्रीविष्णुजी को मन मन्दिर में स्थापित करके उनको याद करने के लिए उनका ध्यान करना चाहिए।




प्रणाम:-भगवान श्रीविष्णुजी को नतमस्तक होकर नमस्कार करना चाहिए।



"ओम् भीष्मः संतानव बिरह सत्यवादी जितेन्द्रियः


अभिर्दभिर्वपतन पुत्रपौत्रोचितम क्रियाम।"



अर्थात्:-हे श्रीविष्णुजी! मैं भीष्म सन्तान से रहित, अपनी प्रतिज्ञा पर कायम रहने वाला सत्यनिष्ठ, समस्त इन्द्रियों पर विजित और पुत्र-पौत्रों की चित की निर्मलता के लिए एवं जन्म-मारण के बंधन की मुक्ति हेतु आपको नतमस्तक होकर नमस्कार करता हूँ।



◆फिर ध्यान करने के बाद नतमस्तक होकर उनकी वंदना करनी चाहिए।



◆मनुष्य को प्रातःकाल एवं सायंकाल दोनों ही समय पर भगवान श्रीविष्णुजी का गुणगान पांच दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।



◆मनुष्य को रात्रिकाल में पृथ्वी माता की गोद में बिस्तर करके सोना चाहिए।



◆मनुष्य को सांसारिक बंधनो से दूर रहते हुए सात्विक जीवन को धारण करने वाले श्रेष्ठ पाप एवं दोष से रहित सत्य बोलने की प्रतिज्ञा के प्रति पूर्ण भक्ति भाव को रखना चाहिए।



◆भीष्म पंचक में क्या खाना चाहिए?:-मनुष्य को शुद्ध सात्विक भोजन को आहार के रूप ग्रहण करना चाहिए। या कंदमूल, फल, दूध या हविष्य या विहित सात्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता हैं।



◆मनुष्य को भीष्म पंचक व्रत में भगवान श्रीविष्णुजी के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होकर उनका ही गुणगान समय को बिताना चाहिए।



◆जिन औरत के पति का स्वर्गवास हो गया हैं, उन औरतों को अपने जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति के लिए भीष्म पंचक का व्रत करना चाहिए।



◆मनुष्य को पूर्ण विधान पूर्वक भीष्म पंचक व्रत को करते हुए समापन करना चाहिए।



◆भीष्म पंचक व्रत एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक पांच दिन तक किया जाता हैं।



◆मनुष्य को भीष्म पंचक व्रत के पांच दिन तक अन्न को ग्रहण नहीं करना चाहिए।



◆इसके अलावा व्रत के आखिरी दिन में हवन करना चाहिए और "ऊँ विष्णुवे नमः स्वाहा" मंत्र से घी, तिल और जौ की 108 आहुतियां देकर हवन करना चाहिए।



◆व्रत करने वाले मनुष्यों व्रती को ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का अपनी इच्छानुसार मन ही मन में उच्चारण करना चाहिए।



◆यथाशक्ति के अनुसार ब्राह्मण को धेनु दान, वस्त्र दान और रुपयों-पैसों से युक्त दक्षिणा का दान देकर उनको सन्तुष्ट करते हुए उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।



◆फिर मनुष्य को स्वयं भोजन करना चाहिए।



◆मनुष्य को पानी में थोड़ा सा गोझरण डालकर पंचभीष्म स्नान करने से व्याधि एवं दोष नाशक और पाप नाशक हो जाते हैं  हैं।



◆भीष्म पंचक व्रत में पंचगव्य गाय का दूध, दही, घृत, गोबर रस एवं गोझरण का मिश्रण का सेवन करना चाहिए।  



◆इस व्रत में सामर्थ्यनुसार बिना भोजन के, फलाहार, एक समय भोजन करके, मिताहार या नक्तव्रत करना चाहिए।



◆इस तरह से पूर्ण विधि-विधान से भीष्म पंचक व्रत करने से श्रीविष्णुजी की अनुकृपा मनुष्य पर हो जाती है और मनुष्य के मन की मुराद को श्रीहरि पूर्ण कर देते हैं।





भीष्म पंचक व्रत विधान गरुड़ पुराण के अनुसार:-भीष्म पंचक व्रत में पांच दिनों तक भगवान श्रीविष्णुजी को पांच दिन तक विधान बताया है, जिसमें मनुष्य को अलग-अलग रूप में प्रसाद को ग्रहण करने के बारे में गरुड़ पुराण में बताया गया है, जो इस तरह हैं- 



◆श्रीविष्णुजी के नजदीक में भीष्म पंचक व्रत के पांच दिन कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक लगातार घृत से परिपूर्ण दीपक की लौ बिना बुझे प्रज्वलित होनी चाहिए।



◆मौन होकर हमेशा "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का एक सौ आठ बार जाप करना चाहिए।



◆मनुष्य को प्रातःकाल एवं सायंकाल दोनों ही समय पर भगवान श्रीविष्णुजी का गुणगान पांच दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।




◆मनुष्य को रात्रिकाल में पृथ्वी माता की गोद में बिस्तर करके सोना चाहिए।



◆हमारे देश में अधिकतर स्त्रियां एकादशी तिथि को व्रत रखते हुए श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।



◆द्वादशी तिथि को निराहार रहते हुए मनुष्य को पृथ्वी माता की गोद में बैठकर गोमूत्र का सेवन मन्त्रों के उच्चारण से करना चाहिए।



◆त्रयोदशी तिथि को सगहार या दुग्ध का सेवन करना चाहिए।




◆चतुर्दशी को निराहार रहते हुए केवल दधि का सेवन करना चाहिए।



◆इस तरह लगातार चार दिनों तक व्रत करते हुए अपनी देह और आत्मा को पवित्र करना चाहिए।




◆पूर्णिमा तिथि के दिन मनुष्य को स्नान करके एवं निराहार रहकर भगवान चक्रपाणि जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।



◆मनुष्य को अपनी श्रद्धाभाव एवं सामर्थ्य के अनुसार प्रतिपदा को प्रातःकाल द्विज दम्पत्ति या ब्राह्मणदेव को भोजन करना चाहिए।  




◆मनुष्य के द्वारा सात्विक एवं शाकाहार से निर्वाह करते हुए श्रीकृष्णजी के पूजन में सलंग्न रहना चाहिए।



◆भीष्म पंचक व्रत में रात्रिकाल में पंचगव्य गाय का दूध, दही, घृत, गोबर रस एवं गोझरण का मिश्रण का सेवन करना चाहिए। 




◆फिर मनुष्य को अन्न को ग्रहण करना चाहिए।




◆मनुष्य के द्वारा विधिवत शास्त्रों में वर्णित पूजन करने पर उत्तम फल को भोगने वाला होता हैं।



◆मनुष्य भीष्म पंचक व्रत को नियमों के अनुसार संकल्प से युक्त करते हैं, उन मनुष्य को उत्तम पद मिलता हैं।



◆कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक समस्त तरह के धर्म व नीति के विरुद्ध पतित आचरणों से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य को सुबह जल्दी उठकर स्नान करके, 'श्रीविष्णुसहस्त्रणाम' और 'भगवद्गीता' का वांचन करना एवं सुनने से जीवन में समस्त विकारों का शमन हो जाता हैं।





भीष्म पंचक व्रत की पौराणिक कथा:-महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में सिर शैय्या पर शयन कर रहे थे। तभी भगवान कृष्ण को साथ लेकर पांचों पांडव उनके पास आये। उपयुक्त अवसर समझकर धर्मराज युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से प्रार्थना की कि आप हम लोगों को कुछ उपदेश दें। तब युधिष्ठिर की इच्छानुसार भीष्म पितामह ने पांच दिनों तक राजधर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म आदि पर महत्त्वपूर्ण उपदेश दिए। उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण बहुत सन्तुष्ट हुए और उन्होंने कहा कि "पितामह! "आपने कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिनों में जो धर्मजय उपदेश दिया हैं, उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूँ। जो लोग इसे करेंगे, वे संसार में अनेक कष्टों से मुक्त हो जायेंगे। उन्हें पुत्र-पौत्र और धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहेगी। वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करेंगे। तब से आज तक श्रद्धालु इस व्रत को करके धर्म लाभ उठा रहे हैं।






भीष्म पंचक व्रत का महत्व पुराणों एवं धर्मग्रन्थों के अनुसार:-भीष्म पंचक व्रत आश्विन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि या शरद पूर्णिमा से शुरुआत होकर कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि को पूर्ण होता हैं। इस तरह भीष्म पंचक व्रत कार्तिक माह की एकादशी तिथि से लेकर पूर्णिमा तिथि तक पांच दिनों तक चलता हैं। भीष्म पंचक के पहले दिन में हरि प्रबोधिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।




भगवान श्रीकृष्णजी के अनुसार भीष्म पंचक व्रत का महत्त्व:-भगवान श्रीकृष्णजी ने महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद अपनी देह के उद्धार के लिए पांच दिनों तक भीष्म पंचक व्रत को धारण किया था। जिससे उनकी देह को मोक्ष मिल जावें। मनुष्य अपने जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति एवं धर्म व नीति के विरुद्ध किये गए पतित आचरणों से मुक्ति के लिए भीष्म पंचक व्रत को पांच दिन तक धारण करके व्रत करते हैं, जिससे उनके परिवार के सदस्यों को किसी भी तरह की व्याधि का सामना नहीं करना पड़े और सन्तान की असमय मृत्यु से भी रक्षा हो सके।





पद्म पुराण के अनुसार महत्व:-पद्मपुराण के अनुसार भीष्म पंचक व्रत भगवान श्रीविष्णुजी को खुश करने का होता हैं, जो कि कार्तिक माह में आता हैं, कार्तिक माह भगवान श्रीविष्णुजी को बहुत ही प्यारा होता हैं, इस माह में जो मनुष्य प्रातःकाल जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या को पूर्ण करते हुए स्नान करते हैं, उनको समस्त तीर्थ जगहों में स्नान का पुण्य फल मिल जाता हैं।



कृतिका वृत्तिं विप्रं यतोक्तं किं करम यम दुतह पलयन्ते सिम्हम


द्रष्ट्वा यथा गजः श्रीस्तम विष्णु विप्र तत् तूल्या न सत्यम् मखः


क्रत्वा फ्रतुम उरजे स्वार्ग्यम वैकुंठम कृतिका व्रती। (पद्मपुराण)



गरुड़ पुराण में भीष्म पंचक व्रत की प्रार्थनाओं एवं अनुष्ठान:-भीष्म पंचक कथा में अभीष्ट प्राप्ति के लिए संकल्पित मांगलिक कर्मकाण्ड या सुफल एवं सफलता के लिए देवी-देवता की आराधना एवं निवेदन गरुड़ पुराण में भीष्म पंचक कथा में वर्णित की गई हैं।



भीष्म पंचक व्रत के लाभ:-भीष्म पंचक व्रत को करने से मनुष्य को निम्नलिखित लाभ मिलते हैं, जो इस तरह हैं-



1.महापातकों के अंत हेतु:-मनुष्य के द्वारा किये गए समस्त तरह के धर्म व नीति के विरुद्ध पतित आचरणों से मुक्ति पाने हेतु भीष्म पंचक व्रत को करना चाहिए, जिससे उन महापातकों से मुक्ति मिल सके।


2.जीवन में व्याप्त विकारों का अंत:-मनुष्य के द्वारा भीष्म पंचक व्रत की कथा को सुनने एवं दूसरों को सुनाने मात्र से भी समस्त विकारों का शमन हो जाता हैं।


3.दाम्पत्य जीवन में सन्तान सुख की चाहत हेतु:-रखने वाले दम्पत्ति को इस व्रत को करने पर पुत्र सन्तान की प्राप्ति होती हैं।


4.मोक्षगति पाने हेतु:-जो मनुष्य अपने जीवन में उद्धार चाहते हैं, उन मनुष्य को नियमित रूप से भीष्म पंचक व्रत करना चाहिए। जिससे मनुष्य का उद्धार हो जावें और मोक्षगति मिल जावें। 


5.उत्तम फल पाने हेतु:-मनुष्य के द्वारा भीष्म पंचक व्रत को धारण करके सही रीति से करने पर उत्तम फल की प्राप्ति हो जाती हैं। उत्तम पद पाने हेतु:-मनुष्य के द्वारा नियमित रूप से भीष्म पंचक व्रत को संकल्प को धारण करके करने से मनुष्य को उत्तम पद प्राप्त होता हैं।


6.व्याधियों से मुक्ति पाने हेतु:-व्याधियों से मुक्ति पाने का उत्तम उपाय हैं।