Breaking

Saturday, March 4, 2023

श्री राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित महत्व(Sri Rama Raksha Stotra Importance with meaning)

श्री राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित महत्व (Sri Rama Raksha Stotra Importance with meaning):-श्रीराम रक्षा स्तोत्र के श्लोकों में वर्णित मन्त्रों को श्री ऋषिवर बुध कौशिक (वाल्मीकि) ऋषि ने अपनी भाषा में निर्मित करके लिखा था। भगवान शिवजी के द्वारा सपने में बताए अनुसार उन्होंने अपनी भाषा में लिखा था। श्रीराम रक्षा स्तोत्र में अड़तीस श्लोक से युक्त देवता के द्वारा कही हुए संस्कृत में कथित हैं, जिसमें भगवान श्रीरामजी के द्वारा किये गए मर्यादा में रहते हुए कार्यों का गुणगान किया गया हैं और उन पर विश्वास एवं सच्ची आस्था रखने वालों का उद्धार के बारे में वर्णन मिलता हैं। इंसान के जीवन में आने वाले सभी तरह संकटों से हिफाजत और जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति के लिए उन्होंने भगवान शिवजी के बताए अनुसार रचना की थी। 






राम का नाम लेने मात्र से ही इंसान जीवन में निश्चित एवं स्थिर स्वरूप से युक्त प्रेरक शक्ति का प्रवाह होने लगता हैं। भगवान होते हुए भी रामजी ने अपनी मर्यादा का पालन करते हुए जीवन को जिया था उनके ग्रहण करने के योग्य गुणों से जीवन में अच्छी सोच का संचार होता हैं, जो मनुष्य श्रीराम रक्षा स्तोत्र का वांचन करता हैं, उनमें सभी तरह गुणों का संचार हो जाता हैं, जिससे वह धर्म एवं नीति के पथ पर अग्रसर हो जाता हैं और अपनी मर्यादा का पालन करते हुए धर्म व नीति के विरुद्ध बुरे आचरणों पर विजय हासिल कर लेता हैं। समाज में उसकी भूरी-भूरी प्रसंशा एवं उसके नाम का बखान होता रहता हैं। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में उन्नति एवं सांसारिक बंधनो से मुक्ति के लिए स्तोत्र का वांचन करना चाहिए। 



Sri Rama Raksha Stotra Importance with meaning)





श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का विनियोग:-बुधकौशिक ऋषिवर ने मन्त्रों के वांचन से पूर्व देवी-देवताओं के निमित संकल्प के लिए विनियोग बताया हैं।


श्रीगणेशायनमः 


अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः।



श्रीसीतारामचन्द्रोंदेवता अनुष्टुप्छन्दः सीताशक्तिः



श्रीमद्हनुमान्कीलकम् श्रीसीतारामचन्द्रप्रीत्यर्थे



 जपे विनियोगः।।



अर्थात्:-श्रीरामरक्षा स्तोत्रम् श्लोकों में मंत्रों की रचना बुधकौशिक ऋषिवर ने की थी, सीता एवं रामचंद्र देवता के रूप में हैं, जिसमें अनुष्टुप छंद हैं एवं सीता शक्ति के रूप में हैं, जिसमें हनुमानजी कीलक हैं, जो कोई श्रीरामरक्षा स्तोत्रम् के श्लोकों में वर्णित मंत्रों के द्वारा इनके देवता को याद करते हुए श्रीरामचन्द्रजी की प्रसन्नता के लिए वांचन का संकल्प करता हैं।




अथ ध्यानम्:-श्रीरामरक्षा स्तोत्रम् को वांचन करने से पूर्व इस स्तोत्र के लिए मनुष्य को भगवान् श्रीराम के प्रति पूर्ण श्रद्धाभाव एवं विश्वास को रखते हुए उनको मन ही मन में याद करना चाहिए। फिर उनकी छवि को अपने मन मन्दिर में बनाकर निम्नलिखित रूप से ध्यान करना चाहिए।



ध्यायेदाजानुबाहुन्, धृतशरधनुषम्, बद्धपद्मासनस्थम्।



पीतं वासो वसानन्, नवकमलदलस्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम्।।



वामाङ्कारुढ़सीता, मुखकमलमिलल्, लोचनन् नीरदाभम्।



नानाSलङ्कारदीप्तन् दधतमुरुजटा, मण्डलम् रामचन्द्रम्।।


 


ध्यान धरिए:-जिनके हाथ घुटनों तक लंबे हैं, जो धनुष-बाण को धारण किए हुए हैं, कमल के आसन के समान पालथी मारकर तनकर योगमुद्रा में बैठे हुए और पीले अंबर या वस्त्र को धारण किये हुए हैं, नए कमल की पंखुड़ी की तरह चमकते हुए चक्षु लक्ष्य को पूरा करने की चुनौती देते हैं, जिनके बायें ओर सीताजी आसीन हैं, उनके मुख कमल से मिले हुए हैं और खुशी से भरे चक्षु से देख रहे हैं और जो वर्षा के जल से परिपूर्ण काले बादलों वाले हैं, जो भिन्न-भिन्न तरह के आभूषणों से सुशोभित और सिर पर जटा को धारण करने वाले श्रीराम का मैं मन ही मन में उनको याद करता हूँ।  



           ।।इति ध्यानम्।।



श्रीराम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित विवेचन शुरू:-श्रीराम रक्षा स्तोत्र के श्लोकों को वांचन करने से पूर्व इस स्तोत्र में वर्णित श्लोकों में क्या-क्या बताया गया हैं, उसको जानने के बाद ही श्रीराम रक्षा स्तोत्र का वांचन करना चाहिए। इसलिये इस स्तोत्र का अर्थ सहित विवेचन इस तरह हैं। 


चरितम् रघुनाथस्य, शतकोटिप्रविस्तरम्।


एकैकमक्षरम् पुंसाम्, महापातकनाशनम्।।


अर्थात्:-हे रामजी! श्री मर्यादा पुरूषोत्तम रामजी! आप के जीवन का व्यक्तित्व सौ करोड़ या लाख से भी अधिक फैलाव से युक्त हैं। जीवन चरित्र के हर एक शब्द धर्म व नीति के विरुद्ध किये गए बुरे व्यवहार को नष्ट करने वाला हैं।



ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामम्, रामम् राजीवलोचनम्।


जानकीलक्ष्मणोपेतञ्, जटामुकुटमण्डितम्।।२।।


अर्थात्:-हे रामजी! आप नील कमल के समान काले-नीले मिले हुए वर्ण वाले हो, नीले कमल के समान चक्षु वाले हो, सिर के बहुत लंबे आपस में चिपके हुए बालों के स्वरूप से बना ताज या सिरमौर बहुत ही सुंदर या रमणीय हैं, राजा जनक की पुत्री तथा अपने भ्राता के साथ इस स्वरूप में भगवान श्रीरामजी का मन ही मन में उनको याद करते हुए उनका ध्यान करता हूँ।



सासितूणधनुर्बाण, पाणिन् नक्तञ्चरान्तकम्।


स्वलील या जगत्त्रातुम, आविर्भूतमजं विभुम्।।3।।


अर्थात्:-हे रामजी! आप बिना जन्म लिए ही आपका अस्तित्व से यूक्त हो और समस्त जगहों पर आपका वास हैं, हाथों में तलवार की तरह का एक प्राचीन शस्त्र को धारण किये हुए, तरकश तीरों से परिपूर्ण, हाथ में धनुष-बाण को धारण किए हुए, दैत्यों का समूल नाश करने वाले और अपने क्रियाकलापों से सम्पूर्ण संसार की हिफाजत करने के लिए अवतार को लेने वाले श्रीरामजी का मन ही मन में उनको याद करते हुए उनका ध्यान कीजिए।



रामरक्षाम् पठेत्प्राज्ञः, पापघ्नीं सर्वकामदाम्।


शिरो मे राघवः पातु, भालन् दशरथात्मजः।।4।


अर्थात्:-हे रामजी! मैं सभी प्रकार की इच्छा या कामना को पूर्ण करने वाले एवं सभी धर्म व नीति के विरुद्ध किये जाने वाले आचरण या गुनाहों को निष्फल करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का वाचन करता हूँ। हे राघव! आप मेरे मस्तिष्क की और दशरथजी के सुत मेरे ललाट की सुरक्षा करें।



कौसल्येयो दृशौ पातु, विश्वामित्रप्रियः श्रुती।


घ्राणम् पातु मखत्राता, मुखं सौमित्रत्रिवत्सलः।।5।।


अर्थात्:-हे रामजी! आप कौशल्या पुत्र मेरे चक्षुओं की, विश्वामित्र के द्वारा बहुत अधिक लगाव रखने वाले मेरे श्रवणेन्द्रियों की, हवन-पूजन युक्त वैदिक कृत्य की रक्षा करने वाले मेरे घ्राणेन्द्रियों की और सुमित्रा के प्यारे पुत्र मेरे चेहरे की रक्षा कीजिए।



जिह्वा विद्यानिधिः पातु, कण्ठम् भरतवन्दितः।


स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु, भुजौ भग्नेशकार्मुकः।।6।।



अर्थात्:-हे रामजी! आप अध्ययन और शिक्षा से प्राप्त ज्ञान रूपी खजाने से मेरी जिह्वा की रक्षा करें, गले के भीतरी भाग की रक्षा भरत के द्वारा स्तुति करें, कंधों की रक्षा दिव्यायुध और भुजाओं की रक्षा शिवजी के पिनाक को तोड़ने वाले श्रीरामजी कीजिए।



करौ सीतापतिः पातु, हृदयञ् जामदग्न्यजित्।


मध्यम् पातु खरध्वंसी, नाभिञ् जाम्बवदाश्रयः।।7।।



अर्थात्:-हे रामजी! आप सीता के स्वामी श्रीराम मेरे हाथों की, जमदग्नि ऋषि के सुत परशुराम को जीतने वाले मेरे हृदय की, खर नाम के असुर के वध को करने वाले मध्य भाग की और जांबवान को शरण देने वाले नाभि की रक्षा कीजिए।



सुग्रीवेशः कटी पातु, सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।


ऊरू रघुत्तमः पातु, रक्षः कुलविनाशकृत्।।8।।



अर्थात्:-हे रामजी! आप सुग्रीव के स्वामी मेरी कटि की, हनुमान के स्वामी अस्थियों की और दैत्यों के वंश को समाप्त करने वाले राजा रघु के वंश में सर्वोत्तम जंघा की रक्षा कीजिए।



जानुनी सेतुकृत् पातु, जङ्घे दशमुखान्तकः।


पादौ बिभीषणश्रीदः, पातु रामोSखिलं वपुः।।9।।



अर्थात्:-हे रामजी! आप पुल का निर्माण करने वाले मेरे जाणुओं की, दैत्य राजा लंकापति रावण का समूल नाश करने वाले मेरी पिंडलियों की, विभीषण को वैभव सहित लंका का राज्य प्रदान करने वाले मेरे पैरों की और समस्त शरीर की रक्षा श्रीराम करें।



एताम् रामबलोपेतां, रक्षां यः सुकृती पठेत्।


स चिरायुः सुखी पुत्री, विजयी विनयी भवेत्।।10।।



अर्थात्:-हे रामजी! जो कल्याणकारी या हितकारी काम को करने वाले अनुगामी आस्था एवं आदर, सम्मान एवं स्नेह का भाव रखते हुए विश्वास के साथ रामबल से सहित रामरक्षा स्तोत्र का वांचन करता हैं, वह इंसान लंबी उम्र को जीने वाला, सभी तरह के खुशहाली से परिपूर्ण, सन्तान के रूप में पुत्र को पाने वाला, सभी जगह पर कामयाबी को प्राप्त करने वाला और अच्छे आचरण वाला सुशील हो जाता हैं। 




पातालभूतलव्योम, चारिणश्छद्मचारिणः।


न द्रष्टुमपि शक्तास्ते, रक्षितम् रामनामभिः।।11।।


अर्थात्:-हे रामजी! जो प्राणी पाताल, पृथ्वी और नभ में भ्रमण करते रहते हैं अथवा छल या कपट भाव को रखते हुए इधर-उधर घुमते रहते हैं, वे राम नामों से सुरक्षित इंसानों को देख भी नहीं सकते हैं।



रामेति रामभद्रेति, रामचन्द्रेति वा स्मरन्।


नरो न लिप्यते पापैर, भुक्तिम् मुक्तिञ् च विन्दति।12।।


अर्थात्:-हे रामजी! आपका जो अनुगामी इंसान राम, रामभद्र और रामचंद्र आदि नामों को बार-बार उच्चारण करते रहते हैं, वे किसी भी तरह से धर्म व नीति के विरुद्ध आचरण करने वाले गुनाहों में शामिल नहीं होते हैं, वे निश्चित रूप से सहवास के सुख को और जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति सहित दोनों को प्राप्त करता हैं।




जगज्जेत्रैकमन्त्रेण, रामनाम्नाSभिरक्षितम्।


यः कण्ठे धारयेत्तस्य, करस्थाः सर्वसिद्धयः।।13।।


अर्थात्:-हे रामजी! जो राम नाम से अच्छी तरह से रक्षित एवं समस्त जगत पर जीत को प्रदान करने वाले स्तुति को जबानी याद कर लेता हैं, उसे समस्त काम को सिद्ध करने की दिव्य शक्ति प्राप्त हो जाती हैं। 



वङ्कापञ्जरनामेदं यो, रामकवचं स्मरेत्।


अव्याहताज्ञः सर्वत्र, लभते जयमङ्गलम्।14।।


अर्थात्:-हे रामजी! जो इंसान कई आवरणों से युक्त अस्तित्व वाले चमकीले एवं बहुत कठोररूपी आन्तरिक ढांचे वाले वज्रपंजर वाले रामरक्षा कवच का बार-बार उच्चारण करते हैं, उस इंसान के आदेश का किसी भी जगह पर कोई भी विरुद्ध नहीं कर सकता हैं और उसको हमेशा प्रत्येक क्षेत्र में कामयाबी और भलाई ही मिलती हैं।



आदिष्टवान् यथा स्वप्ने, रामरक्षामिमां हरः।


तथा लिखितवान् प्रातः, प्रबुद्धो बुधकौशिकः।।15।।



अर्थात्:-हे रामजी! बुध कौशिक ऋषिवर को भगवान आशुतोष ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का हुक्म दिया था, उन्होंने प्रातःकाल उठने पर भगवान शिवजी के द्वारा जैसा बताया वैसा ही लिख दिया।



आरामः कल्पवृक्षाणां, विरामः सकलापदाम्।


अभिरामस्त्रिलोकनाम्, रामः श्रीमान् स नः प्रभु।।16।।



अर्थात्:-हे रामजी! आप इच्छा पूरी करने वाले पारिजात वृक्षों के फुलवारी की तरह चैन सहित सुख-शांति को प्रदान करने वाला हैं, जो सभी तरह के झंझटों के काम एवं संकट को समाप्त करने वाले हैं और जो आकाश, पाताल एवं पृथ्वी लोक सहित तीनों लोकों में देखने में सुखद हो, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं।



तारणौ रूपसम्पन्नो सुकुमारौ महाबलौ।


पुण्डरीकविशालाक्षौ, चीरकृष्णाजिनाम्बरौ।17।।


अर्थात्:-हे रामजी! आप जवान, देखने में मन को भाये जाने वाली सौंदर्यपूर्ण तथा कोमलतायुक्त सुंदर, शक्तिशाली और पुण्डरीक की तरह बड़े-बड़े चक्षुओं वाले हैं, जो ऋषि-मुनियों की तरह वस्त्र और कृष्ण मृग के चर्म को धारण करते हैं। 



फलमूलाशीनौ दान्तौ, तापसौ ब्रह्मचारिणौ।


पुत्रौ दशरथस्यैतौ, भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ।।18।।



अर्थात्:-हे रामजी! आप पेड़-पौधों से प्राप्त गूदेदार बीजकोश जैसे-आम, अनार आदि का फल और गूदेदार व बिना रेशे की गाँठदार जड़ जो जमीन में अंदर या कभी बाहर भी निकली रहती हैं, उसको आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, सयंम करने वाले, कठिन तप या साधना करने वाले एवं ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सात्विक जीवन को बिताने वाले हैं, दशरथ के सुत राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा कीजिए।



शरण्यौ सर्वसत्वानां, श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।


रक्षः कुलनिहन्तारौ, त्रायेतान् नौ रघूत्तमो।19।।



अर्थात्:-हे रामजी! आप सभी प्राणियों को अपना आश्रय देने वाले, सभी पिनाकधारियों में सबसे अच्छे और बुरे कर्मों को करते हुए संसार के प्राणियों पर अत्याचार करने वाले दैत्यों के वंशों को जड़-मूल से समाप्त करने शक्तिशाली रघु राजा के वंश में सबसे उत्तम लोकाचार वाले पुरुषों में उत्तम श्रीराम हमारी रक्षा कीजिए।



आत्तसज्जधनुषा, विषुस्पृशा-वक्षयाशुगनिषङ्गसङ्गिनौ।


रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः, पथि सदैव गच्छताम्।।20।।



अर्थात्:-हे रामजी! आप किसी को खोजने के लिए व रक्षा के लिए पिनाक को धारण किए हुए हैं, शर को स्पर्श कर रहे, बिना समाप्त होने वाले शरों से युक्त तरकश को धारण किये हुए राम और लक्ष्मण है। आपसे निवेदन हैं कि आप मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे आप चलें।



सन्नद्धः कवची खड्गी, चापबाणधरो युवा।


गच्छन्मनोरथोSस्माकम्, रामः पातु सलक्ष्मणः।।21।।



अर्थात्:-हे रामजी! आप किसी भी कार्य को लगन और निष्ठा के साथ करने को हर वक्त तल्लीन रहने वाले कवच को धारण करने वाले, हाथ में तलवार को लिये हुए, चाप-शर और तरुण अवस्था वाले हो, भगवान् राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ आगे-आगे चलकर हमारी सभी तरह से हिफाजत कीजिए।



रामो दाशरथिः शूरो, लक्ष्मणानुचरो बली।


काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः, कौसल्येयो रघुत्तमः।।22।।



अर्थात्:-हे रामजी! आप भगवान के द्वारा कोई कहने के भाव हैं, कि श्रीराम, दशरथ के पुत्र, युद्धकुशल, लक्ष्मण के साथ चलने वाले, पराक्रमी, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौसल्या के पुत्र, रघु कुल में उत्तम हैं।



वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः, पुराणपुरूषोत्तमः।


जानकीवल्लभः श्रीमान्, अप्रमेयपराक्रमः।।23।।



अर्थात्:-हे रामजी! आप उपनिषदों, वेदों के सिद्धांतों का विवेचन और निरूपण करने में बहुत जानकर, यज्ञ के देवता, पुराण निष्पाप तथा शत्रुता मित्रता के भाव से उदासीन पुरुषों में उत्तम, जनक की पुत्री के स्वामी, गौरवशाली, अनंत और शौर्य से युक्त आदि नामों वाले हैं।



इत्येतानि जपेन्नित्यम्, मद्भक्तः श्रद्धयाSन्विताः।


अश्वमेधाधिकम् पुण्यं, सम्प्राप्रोति न संशयः।।24।।



अर्थात्:-हे रामजी! जो भक्त हमेशा विश्वास और आस्था रखते हुए भगवान श्रीराम के उपर्युक्त नामों का भक्ति भाव से बारंबार उच्चारण करते हैं, उन भक्त मनुष्यों को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी ज्यादा उत्तम फल की प्राप्ति होती हैं। 



रामन् दूर्वादलश्यामम्, पद्माक्षम् पीतवाससम्।


स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर् न ते संसारिणो नरः।।25।।



अर्थात्:-हे भगवान राम! आप दूर्वा घास के कोमल पत्ते के समान श्याम वर्ण के, कमल की तरह आंखों वाले एवं पीले अंबर की तरह वस्त्र को धारण करने वाले आदि भगवान श्रीराम के अलौकिक नामों का गुणगान करते हैं, वे भक्त मनुष्य संसार चक्र में नहीं पड़ते हैं।



रामं लक्ष्मणपूर्वजम् रघुवरम्, सीतापतिं सुन्दरम्।


काकुत्स्थङ् करुणार्णवङ् गुणनिधिं, विप्रप्रियन् धार्मिकम्।


राजेन्द्रं सत्यसन्धन्, दशरथनयं, श्यामलं शान्तमूर्तिम्।


वन्दे लोकभिरामम्, रघुकुलतिलकम्, राघवम् रावणारिम्।।26।।



अर्थात्:-हे भगवान राम! आप राम-लक्ष्मणजी पूर्वज, श्रीरामचन्द्र, मिथिला नरेश की जानकी पुत्री के स्वामी, काकुत्स्थ, वंश को आनंद देने वाले, दूसरों के कष्ट को देखकर उसे दूर करने के लिए अपनी अथाह अनुकंपा करने वाले, बहुत से गुणों वाले, ब्राह्मणों के सेवक, बहुत ही धर्म में आस्था रखने वाले, राजाओं के राजा, सत्य पर निष्ठा रखने वाले और वचन को पूर्ण करने वाले, राजा दशरथ के पुत्र, श्याम और गंभीर व राग रहित छवि वाले, समस्त तीनों लोकों में मन को भाने वाले आकर्षक, रघु वंश की शोभा बढ़ाने वाले, रघुकुल में उत्पन्न और दशानन रावण के शत्रु हो, मैं भगवान् राम की स्तुति करता हूँ।



रामाय रामभद्राय, रामचन्द्राय वेधसे।


रघुनाथाय नाथाय, सीतायाः पतये नमः।।27।।



अर्थात्:-हे भगवान राम! आप शिष्ट राम, अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र, सृष्टि को रचने वाले, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, ईश्वर और जानकी के भर्ता हो, मैं भगवान् राम की स्तुति करता हूँ।



श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।


श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।


श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।


श्रीराम राम शरणम् भव राम राम।28।।


अर्थात्:-हे रघु कुल में उत्पन्न श्रीराम! राम-राम।


हे भरत के बड़े भाई राम! राम-राम।


हे युद्ध में कटु और अप्रिय वचनों को बोलने वाले दुराचारीयों के साथ धैर्यपूर्वक लड़ने वाले श्रीराम! राम-राम।


हे लोकप्रचलित शिष्ट व्यवहार और उनके नियमों को पालन करने वाले पुरुषों में उत्तम श्रीराम आप अपनी पनाह में आने वालों की रक्षा करने वाले हो। राम-राम। आप मुझे अपनी शरण में ले लीजिए।



श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि। 


श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।


श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।


श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणम् प्रपद्ये।29।।



अर्थात्:-हे भगवान राम! मैं अपने मन को एक जगह पर स्थिर रखते हुए श्रीरामचन्द्रजी के चरणों का स्मरण और वाचा शक्ति के द्वारा यश का बखान करता हूँ।



मैं अपनी वाचा शक्ति के द्वारा पूर्ण विश्वास भाव और आस्था रखते हुए भगवान् श्रीरामचन्द्रजी के चरणों की सिर झुकाकर हाथ जोड़कर अभिवादन करता हूँ। मैं श्रीरामचन्द्रजी के चरणों में आश्रय को ग्रहण करता हूँ।



माता रामो, मत्पिता रामचन्द्रः।


स्वामी रामो, मत्सखा रामचन्द्रः।


सर्वस्वम् मे, रामचन्द्रो दयालुर्।


नान्यञ् जाने, नैव जाने न जाने।।30।।



अर्थात्:-हे श्रीराम! आप मेरे माता हो, मेरे पिता हो, मेरे स्वामी हो और मेरे साथी हो। हे श्रीराम आप सभी पर अपनी दया दृष्टि रखने वाले हो, मेरे पर भी अपनी दया दृष्टि रखते हुए आप मेरे ही सबकुछ हो और आपके अलावा मैं किसी दूसरें के विषय में कुछ भी नहीं जानता हूँ। 



दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य, वामे तु जनकात्मजा।


पुरतो मारूतिर्यस्य, तं वन्दे रघुनन्दनम्।।31।।



अर्थात्:-हे श्रीराम जी! आपके दायीं तरफ तो लक्ष्मणजी, बायीं तरफ सीताजी और आपके सम्मुख हनुमानजी बैठे हुए हैं, मैं उन श्रीरामचन्द्रजी की स्तुति करता हूँ।



लोकासभिरामम् रणरंङ्गधीरम्, राजीवनेत्रम् रघुवंशनाथम्।


कारुण्यरूपङ् करुणाकरंन् तम्, श्रीरामचन्द्रं शरणम् प्रपद्ये।।32।।


अर्थात्:-हे श्रीरामजी! आप समस्त तीनों लोकों में मन को हरण करने वाले और आनन्द प्रदान करने वाले हो, आप युद्ध में जल्दी विचलित नहीं होने वाले हो, पुण्डरीक के तरह आपके चक्षु हैं, रघु कुल को राह दिखाने वाले, दूसरों के कष्ट को देखकर उसे दूर करने की दया भाव की छवि वाले और दया भाव से परिपूर्ण भण्डार वाले श्रीरामजी के आश्रय में हूँ।



मनोजवम् मारुततुल्यवेगञ्, जितेन्द्रियम् बुद्धिमतां वरिष्ठम्।


वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये।।33।।



अर्थात्:-हे श्रीराम! आपकी गति मन और समीर की तरह अत्यन्त तेज वेग वाली हैं, आप अपनी सभी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर चुके और होशियार व ज्ञानीयों से भी अधिक श्रेष्ठ हो, वायु के पुत्र वानर समुदाय के मुखिया श्रीराम के संदेश वाहक का आश्रय लेता हूँ।



कूजन्तम् रामरामेति, मधुरम् मधुराक्षरम्।


आरुह्य कविताशाखां, वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्।।34।।



अर्थात्:-हे श्रीराम! मैं भावपूर्ण रसात्मक तथा लयात्मक रचना रूपी वृक्ष की टहनी पर बैठकर, कर्णप्रिय मीठे शब्दों वाले का 'राम-राम' के कर्णप्रिय नाम को उच्चारण करते हुए वाल्मीकि रूपी कोकिला की स्तुति करता हूँ। 



आपदामपहर्तारन्, दातारं सर्वसम्पदाम्।


लोकाभिरामं श्रीरामम्, भूयो भूयो नमाम्यहम्।।35।।


अर्थात्:-हे श्रीराम! आप सभी तरह के संकटों का हरण करने वाले हो और सभी तरह के आराम व ऐश्वर्य-वैभव को देने वाले हो। समस्त लोकों में सभी के मन को हरण करने वाले मोहक प्रसन्नता देने वाले भगवान श्रीराम को मैं बार-बार नतमस्तक होकर नमस्कार करता हूँ।



भर्जनम् भवबीजानाम्, अर्जनं सुखसम्पदाम्।


तर्जनं यमदूतानाम्, रामरामेति गर्जनम्।।36।।


अर्थात्:-हे श्रीरामजी! आपके 'राम-राम' नाम को जो कोई भी बार-बार अपनी वाणी से उच्चारित करते हैं उन भक्तों के सभी तरह की मुसीबतों को आप हरण करके समाप्त कर देते हो और सभी तरह के आराम एवं धन-ऐश्वर्य को मनुष्य प्राप्त कर लेता हैं। राम-राम के शब्दों की बार-बार पुनरावृत्ति करने वाले मनुष्य से मृत्यु के देवता यमराज भी हमेशा डरे हुए रहते हैं।



रामो राजमणिः सदा विजयते, रामम् रमेशम् भजे।


रामेणाभिहता निशाचरचमू, रामाय तस्मे नमः।


रामान्नास्ति परायणम् परतरम्, रामस्य दासोSस्म्यहम्।


रामे चित्तलयः सदा भवतु मे, भो राम मामुद्धर।।37।।



अर्थात्:-हे श्रीराम! आप सभी राजाओं में श्रेष्ठ हो एवं सभी जगह पर आप विजय को प्राप्त करते हो। मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम की स्तुति करता हूँ। समस्त दैत्य सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं आदरपूर्वक हाथ जोड़कर अभिवादन करता हूँ। श्रीराम के समान दूसरा कोई सहारा देने वाले नहीं हैं।  मैं उन श्रीराम जो कि पुत्रवत की तरह प्रेम करने वाले हैं, उनकी शरण में आया हुआ सेवक हूँ। मैं हमेशा कल्याण करने वाले श्रीराम की स्तुति में लगन से लगा रहूं। हे श्रीराम! मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप इस संसार में जन्म-मरण के बन्धन से मेरा उद्धार करके मुझे मोक्ष गति प्रदान करें।  



राम रामेति रामेति, रमे रमे मनोरमे।


सहस्त्रनाम तत्तुल्यम्, रामनाम वरानने।।38।।


अर्थात्:-भगवान् शिव पार्वती से बोले-हे सुमुखी! राम-नाम 'विष्णु सहस्रनाम' अर्थात् अनंत के समान हैं। मैं हमेशा राम नाम की स्तुति करता हूं और तन-मन को आनंदित करने वाले राम-नाम में विचरण करता हूँ।



।।इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्।।



अर्थात्:-इस प्रकार बुध कौशिक द्वारा रचित श्रीराम रक्षा स्तोत्रं संपूर्णम् होता हैं।



                ।।श्री सीतारामचन्द्रार्पणमस्तु।।



श्रीराम रक्षा स्तोत्र को कैसे सिद्ध करें?(How to prove Shri Ram Raksha Stotra?):-यदि कोई भी इंसान श्रीराम रक्षा स्तोत्र के श्लोकों का वांचन करने से पूर्व उसकी विधि-नियमों को ध्यान में रखना चाहिए, तब ही उससे अभीष्ट कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती हैं, इसलिए निम्नलिखित विधि को अपनाना चाहिए।



◆इंसान सबसे पहले जल्दी प्रातःकाल उठकर अपनी दैनिक क्रिया को पूर्ण करना चाहिए।



◆फिर स्वच्छ वस्त्रों को पहनकर अपने निवास स्थान की उस जगह को जहां पर स्तोत्र का वांचन करना हैं, उस जगह की साफ-सफाई करते हुए पवित्र करना चाहिए।




◆फिर भगवान राम की मूर्ति या फोटु को उस पवित्र जगह में  स्थापित करना चाहिए।



◆श्रीराम रक्षा स्तोत्र का वांचन करते समय अपनी बिछावन को बिछाकर पूर्व दिशा की ओर अपना मुंह करके बैठना चाहिए।



◆उसके बाद में पूजा करनी चाहिए।



◆श्रीराम रक्षा स्तोत्र का वांचन ग्यारहा बार करना चाहिए।



◆श्रीरामरक्षास्तोत्र का वांचन करते समय अपने पास एक कटोरी में सर्षप के दानों को रखना चाहिए।



◆उस कटोरी के नीचे कोई ऊनी कपड़ा या बिछावन को बिछाना चाहिए।


◆जैसे-जैसे वांचन करते रहते हैं, उस कटोरी में रखे हुए सर्षप के दानों को अपनी अँगुलियों से इधर-उधर करते रहना चाहिए।



◆श्री राम रक्षा स्तोत्र का वांचन करते समय भगवान श्री राम की प्रतिमा या फोटो सामने की तरफ होनी चाहिए, इस तरह भगवान रामजी की प्रतिमा के दर्शन करते हुए मन्त्र का वांचन हो सकें। 



◆इस तरह से ग्यारह बार राम रक्षा स्तोत्र का वांचन करने से कटोरी में रखे हुए सर्षपों के दाने में अलौकिक शक्ति का संचार हो जाता हैं।


◆इस तरह से अलौकिक शक्ति से संचारित सर्षपों के दानों को पवित्र और अच्छी तरह से रक्षित अपने निवास स्थान के पूजा  स्थान पर रख लेना चाहिये।


◆जब किसी भी कार्य में कामयाबी की चाहत होती हैं, तब उन सर्षपों के दानों में से कुछ दाने लेकर शक्ति की परीक्षा करनी चाहिए।



◆फिर भगवान श्रीराम से अपनी तरफ से श्लोकों के उच्चारण में किसी भी तरह की त्रुटि के लिए क्षमा मांगनी चाहिए।



◆इस तरह निरन्तर अपने मन की मुराद के अनुसार समय सीमा को निर्धारण करते हुए प्रतिदिन कर सकते हो, तो करें।




◆जब मनुष्य पर न्यायालय में चल रहे कानून सम्बन्धी बहस या अभियोग से मुक्ति पाने के लिए न्यायालय में जाने से पहले कुछ सर्षप के दानों को अपने साथ लेकर वहाँ जाना चाहिए और उन दानों को विपक्षी के बैठने की जगह या उसके सामने या न्यायालय के परिसर में डाल देना चाहिए। इस तरह करने अदालत में पेश किए गये मामले में पक्ष का निर्णय मिलेगा या न्यायालय के बाहर ही समझौता हो जाएगा।



◆जब कभी भी किसी मनबहलाव वाली क्रीड़ा में भाग लेने के लिए या प्रत्यक्ष मुलाकात करते समय या मुकाबले में भाग लेने बाहर जाने के समय कुछ पवित्र सर्षप के दानों को अपनी खीसा में रखकर जाना चाहिए। जिससे अपने मकसद में कामयाबी मिल सके।



◆जब किसी भी कार्य करने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान का सफर करते समय अपने साथ ले जाने पर वह कार्य निश्चित रूप से सफल होता हैं।



◆जब कोई भी अस्वस्थ हो तो राम रक्षा स्तोत्र के मन्त्रों से पानी में अलौकिक शक्ति का संचार करके अस्वस्थ मनुष्य को पिलाने पर वह अस्वस्थ मनुष्य की बीमारी में सुधार होता हैं। 



श्री राम रक्षा स्तोत्र की वांचन संख्या एवं फल:-राम रक्षा स्तोत्र के वांचन की संख्या और फल निम्नलिखित रूप से मिलता हैं। 



◆श्री राम रक्षा स्तोत्र के मन्त्रों का वांचन ग्यारह की संख्या में जरूर करना चाहिए। जब इंसान ग्यारह की संख्या में वांचन करता हैं, तब इस स्तोत्र का असर दिनभर तक रहता हैं।



◆यदि इंसान श्री राम रक्षा स्तोत्र का वांचन लगातार पैंतालीस दिनों तक नियमित रुप से करता हैं, तो राम रक्षा स्तोत्र का असर दूना हो जाता हैं।




रामरक्षा स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?(When should one recite Ram Raksha Stotra?):-राम रक्षा स्तोत्र का वांचन कार्य के अनुसार अलग-अलग होता है एवं कार्य के अनुसार ही वांचन करने पर विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी मिल सके। 


मनुष्य श्रीराम रक्षा स्तोत्र का वांचन अपनी इच्छा पूर्ति के लिए प्रतिदिन कर सकते हैं।



◆श्री राम रक्षा स्तोत्र का वांचन भगवान श्रीराम के दिन गुरुवार और हनुमानजी के दिन मंगलवार को करने पर विशेष फल मिलता हैं।


◆माता दुर्गा के नौ दिनों के नवरात्र के समय में श्री राम रक्षा स्तोत्र का वांचन जरूर करना चाहिए।



◆राम रक्षा स्तोत्र का मन्त्रों का उच्चारण करने से पहले अपनी देह को पवित्र व पापरहित एवं चित्त को एक जगह पर स्थिर करके ही करना चाहिए।



◆भगवान श्री राम को अपने मन मन्दिर में स्थापित करते ह पूर्ण रूप से श्रद्धा एवं विश्वास रखते हुए उनको याद करना चाहिए।




श्री रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से क्या लाभ होता हैं?(What are the benefits of reciting Ram Raksha Stotra?):-श्री राम रक्षा स्तोत्र जीवन में आने वाली सभी तरह तकलीफों का अतिशीघ्र फायदा करने वाला अचूक उपाय है। इस स्तोत्र का वांचन करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं। जैसे-



1.उम्र की बढ़ोतरी:-इंसान के जीवन काल में उम्र की बढ़ोतरी होती हैं, जिससे इंसान लंबी उम्र तक जीवन को जीता हैं।



2.पुत्र-पुत्री की प्राप्ति:-इंसान को सुंदर, गुणवान और आज्ञाकारी पुत्र-पुत्री की प्राप्ति होती हैं।



3.सवर्त्र कामयाबी मिलना:-इंसान को अपने जीवन काल में प्रत्येक क्षेत्र में कामयाबी मिलती हैं।



4.सभी तरह के आराम एवं धन-संपत्ति:-इंसान को सभी तरह के भौतिक, शारीरिक एवं बौद्धिक ऐशो-आराम की प्राप्ति होती हैं, उसके जीवन में धन-धान्य का भंडार भरा रहता हैं।



5.मुसीबतों से राहत:-इंसान को अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आने वाली मुश्किलों एवं बाधाओं से राहत मिलती हैं।



6.तसल्ली की प्राप्ति:-इंसान का मन सतही रहता हैं, जिससे उचित निर्णय लेने में यह स्तोत्र मदद प्रदान करता हैं, जिससे तसल्ली मिलती हैं।



7.जीवन की हिफायत:-इंसान को बाहरी एवं आंतरिक बुरी शक्तियों और शत्रुओं के डर से मुक्ति प्रदान करके उनकी यह स्तोत्र हिफाजत करता हैं।



8.भौम ग्रह के बुरे असर से राहत:-इंसान की जन्मकुंडली में भौम ग्रह के कमजोर होने पर मंगलवार के दिन इंसान के द्वारा वांचन करने से जीवन पर पड़ने वाले बुरे असर से यह स्तोत्र राहत प्रदान करता हैं।



9.पवनपुत्र हनुमानजी की अनुकृपा पाने हेतु:- ग्रह के बुरे असर से राहत:-तीनों लोक में अजर-अमर एवं सभी तरह के संकटों को हरने वाले पवनपुत्र को खुश करने एवं उनकी अनुकृपा पाने के लिए राम रक्षा स्तोत्र का वांचन करना चाहिए।




10.जीवन की सुरक्षा करने वाला उपाय:-जो कोई इंसान राम रक्षा स्तोत्र का वांचन करते हैं, तब स्तोत्र के श्लोकों का वांचन करने से जो ध्वनि निकलती हैं, वह ध्वनि स्तोत्र करने वाले के चारो तरफ एक तरह से उसकी रक्षा करने के लिए कवच बना देती हैं, जिससे उस इंसान की सुरक्षा होती हैं।