अम्बे माता की आरती अर्थ सहित(Ambe Mata Aarti with meaning):-माता दुर्गाजी का नवदेवीयों के स्वरूप में पूजन किया जाता है, उन नवदेवीयों के स्वरूप में से ही एक स्वरूप को अम्बे माता के नाम से जाना जाता हैं। नवरात्रि में माता दुर्गाजी के नवस्वरूपों के रूप अलग-अलग स्वरूप की पूजा-आराधना की जाती हैं। हिन्दुधर्म में वर्ष में मुख्य दो नवरात्र आते है, उनमें से बसन्तीय नवरात्र एवं शारदीय नवरात्र होते है, तब माता अम्बे की आराधना के लिए उनकी आरती की जाती हैं, जिससे माता अम्बे की अनुकृपा मनुष्य के जीवन में प्राप्त हो सके।
जिस तरह माता ने दैत्यों के संहार करके जगत सहित समस्त तीनों लोकों को दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करवाया था, इसलिए माता खुश करने के लिए उनको अरदास स्वरूप उनकी आरती नियमित रूप से करते रहना चाहिए। जिससे मनुष्य के जीवन में आने वाली समस्त बाधाओं से मुक्ति मिल सके।
अम्बे माता की आरती अर्थ सहित:-अम्बे माता की आरती को मनुष्य को अपने जीवनकाल में नियमित समय पर करने से माता की अनुकृपा की प्राप्ति हो सके। माता अम्बे समस्त जगत का पालन-पोषण करती है, जगत पर निवास करने वालो समस्त जीवों पर स्नेह से दुलार करती है। इसलिए माता अम्बे की आरती में शब्दों को जानकर उनका सही उच्चारण करते हुए आरती करनी चाहिए।
अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गाएं भारती।
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती।
अर्थात्:-हे माता! आप ही अम्बे हो, आप ही जगदम्बे हो, आप ही काली हो, आप ही दुर्गा और आप को ही खप्पर वाली के नाम से यह पुकारता हैं। हे माता! आपका नाम भारती भी है। आपके गुणों का बखान चारों तरफ आपके भक्त करते-रहते है। हे माता! आपकी आरती को समस्त जगत के प्राणी उतारते हैं।
माता तेरे भक्त जनों पे भीड़ पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिंह सवारी।
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती।
अर्थात्:-हे माता! आपके दर्शन करने के लिए आपके भक्तों की संख्या असंख्य है, आपके दर्शन करने के लिए भक्त दूर-दूर से आते है। आप तो जिस तरह दैत्यों के संहार करने को तत्पर रहती हो और सिंह की सवारी करती हो। हे माता! आपकी आरती को समस्त जगत के प्राणी उतारते हैं।
सौ-सौ सिंहों से बलशाली अष्ट-दश भुजाओं वाली।
दुष्टो को तू ही संहारती। दुखियों के दुःख को निवारती।
ओ मैया हम सब उतारेंते री आरती।
अर्थात्:-हे अम्बे माता! आपके बल का क्या कहना? आपमें तो सौ-सौ सिंहों से भी अधिक शक्ति होती है और आपके आठ भुजाएँ हैं। हे माता! आपकी आरती को समस्त जगत के प्राणी उतारते हैं।
मां बेटे का इस जग में है बड़ा ही निर्मल नाता।
पूत कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता।
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती।
अर्थात्:-हे माता! आपके भक्त को आप अपने सन्तान के रूप में स्नेह-दुलार करती है, इसलिए तो इस जगत में जिस तरह माता-पुत्र का स्नेह का निर्मल सम्बन्ध होता है। इस जगत में माता के पुत्र कपूत हो सकते है, लेकिन इस जगत में कभी भी माता कुमाता नहीं होती है। इस जगत में समस्त को पता हैं। हे माता! आपकी आरती को समस्त जगत के प्राणी उतारते हैं।
सब पे करुणा दरसाने वाली अमृत बरसाने वाली।
दुखियों के दुखड़े को निवारती।
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती।
अर्थात्:-हे भगवती! आप तो समस्त जीवों पर अपने दया भाव रखने वाली हो, समस्त पर अमृत की तरह अपना आशीर्वाद देने वाली हो और समस्त निर्बल-कमजोर एवं अपने कर्मो से दुःखी होते है, उनके दुःखों को दूर करने वाली हो। हे माता! आपकी आरती को समस्त जगत के प्राणी उतारते हैं।
नहीं मांगते धन और दौलत न चांदी न सोना।
हम तो मांगते तेरे मन का एक छोटा सा कोना
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती।
अर्थात्:-हे अम्बे माताजी! हम आपके समस्त भक्त गण आपसे हमें नहीं तो रुपये-पैसे, नहीं सोना-चांदी चाहिए। आपका आशीर्वाद हम समस्त मानव पर बना रहे इतना हम चाहते है। आपके मन की जगह पर थोड़ा सा स्थान हमें दे दीजिए। आपकी भक्ति को हम सच्चे मन से करने वाले है। हे माता! आपकी आरती को समस्त जगत के प्राणी उतारते हैं।
सबकी बिगड़ी बनाने वाली लाज बचाने वाली,
सतियों के सत को संवारती।
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती।
अर्थात्:-हे भगवती माताजी! आप तो सबकी बिगड़ी को बनाने वाली हो, सबके आन-मान की लाज रखने वाली हो। आप तो सतियों के सत को संवारने वाली हो। हे माता! आपकी आरती को समस्त जगत के प्राणी उतारते हैं।
।।इति आरती श्री अम्बे माता जी की अर्थ सहित।।
।।अथ श्री अम्बे माता की आरती।।
अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गाएं भारती।
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती।
माता तेरे भक्त जनों पे भीड़ पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिंह सवारी।
ओ मैया हम सब उतारेंते री आरती।
सौ-सौ सिंहों से बलशाली अष्ट-दश भुजाओं वाली।
दुष्टो को तू ही संहारती। दुखियों के दुःख को निवारती।
ओ मैया हम सब उतारेंते री आरती।
मां बेटे का इस जग में है बड़ा ही निर्मल नाता।
पूत कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता।
ओ मैया हम सब उतारेंते री आरती।
सब पे करुणा दरसाने वाली अमृत बरसाने वाली।
दुखियों के दुखड़े को निवारती।
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती।
नहीं मांगते धन और दौलत न चांदी न सोना।
हम तो मांगते तेरे मन का एक छोटा सा कोना।
ओ मैया हम सब उतारेंते री आरती।
सबकी बिगड़ी बनाने वाली लाज बचाने वाली,
सतियों के सत को संवारती।
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती।
।।इति आरती श्री अम्बे माता जी की।।
।।जय बोलो अम्बे माता की जय।।
।।जय बोलो दैत्यों के संहारिका की जय हो।।