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Tuesday, May 2, 2023

शिव रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित और लाभ

शिव रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित और लाभ(Shiva Raksha Stotra with meaning and benefits):-मनुष्य के जीवन की रक्षा करने एवं जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति के लिए ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना शक्ति के द्वारा भगवान शिवजी को खुश करके उनसे आशीर्वाद स्वरूप प्राण रक्षक कवच को प्राप्त किया था। जिससे मनुष्य का उद्धार हो सके और मोक्षगति मिल सके।



शिव रक्षा स्तोत्र या प्राण रक्षक या मुक्ति प्राप्ति या शिव सायुज्य कवच का अर्थ:-जिनके वांचन से मनुष्य के जीवन की रक्षा करने में सहायक होकर जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति प्रदान करने वाले तांत्रिक साधना में आपत्तियों में स्वयं की रक्षा में पढ़े जाने वाले मंत्र को प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं या मुक्ति प्राप्ति कवच या शिव सायुज्य कवच कहते हैं।



Shiva Raksha Stotra with meaning and benefits






स्तोत्रं का अर्थ:-गुणों के आख्यान करने के लिए श्लोकबद्ध गंर्थ में वंदना हो उसे स्तोत्रं कहा जाता है।



प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं दूसरों के सामने प्रकट न करने योग्य वाला हैं, जो कि जीवन की रक्षा करने वाला होने से उपयोगी भी होता हैं, इसलिए मनुष्य को अपने जीवन की रक्षा करने के लिए इस स्तोत्रं का वांचन नियमित रूप से करना चाहिए।



श्रावण मास प्राणरक्षक एवं मुक्ति प्राप्ति कवच के लिए पूजा सामग्री:-कुमकुम, अबीर, गुलाल, धूपबत्ती, केशर, अक्षत, दीपक, फूल, नैवेद्य, फल, अगरबत्ती, पारद शिवलिंग और मोक्षदा माला आदि उपयोग में ली जाती हैं।



श्रावण मास प्राणरक्षक एवं मुक्ति प्राप्ति कवच के वांचन करने की विधि:-योगी जो तपस्या करने वाले साधना में लीन रहने वाले होते हैं, उनके साथ ही जो मनुष्य साधना में रुचि रखते है, वे सभी प्राण रक्षक और मुक्ति प्राप्ति के लिए प्राण रक्षक कवच का वांचन कर सकते हैं।



◆जो मनुष्य प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं के वांचन को शुरू करना चाहते हैं, उनको श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का वांचन शुरू करना चाहिए।



◆श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि को प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का वांचन पूर्ण होकर निष्पादन करना चाहिए।



◆मनुष्य को प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं के वांचन के दिन जल्दी उठना चाहिए।



◆फिर अपनी रोजाना की चर्यो जैसे-शोचकर्म, दातुन, स्नानादि, बाल बनाना आदि को पूर्ण करना चाहिए।



◆फिर स्नानादि करके स्वच्छ या नए वस्त्रों को धारण करना चाहिए।



◆अपने निवास स्थान पर साधना करने की जगह की साफ-सफाई करनी चाहिए।



◆फिर साधना स्थल पर लकड़ी के बाजोट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान शिवजी की मूर्ति या फोटू को स्थापित करना चाहिए।



◆साथ ही रजत या ताम्र धातु की बनी हुई कटोरी या तश्तरी में पारद शिवलिंग, मोक्षदा माला को भी स्थापित करना चाहिए।



◆कुश की बिछावन या ऊनि बिछावन को बिछाकर पूर्व दिशा में मुहं करके बैठना चाहिए।



◆फिर पंचोपचार कर्म से उस मोक्षदा माला एवं भगवान शिवजी का पूजन करना चाहिए।



पंचोपचार पूजा कर्म:-यंत्र का पंचोपचार कर्म इस तरह से करते हैं-



१.पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि:-पंचामृत को अर्पण करके स्नान कराते हैं।



२.शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि:-फिर शुद्ध जल से स्नान कराते समय "शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि" बोलते हुए करवाते हैं।



३.केसर समर्पयामि:-फिर केसर चढ़ाते समय "ऊँ नमः शिवायः" "केसर समर्पयामि" बोलते हैं। 



४.अक्षत समर्पयामि:-फिर अक्षत चढ़ाते समय "ऊँ नमः शिवायः" "अक्षत समर्पयामि" बोलते हैं। 



५.पुष्पाणि समर्पयामि:-फिर पुष्प को अर्पण करते समय "पुष्पाणि समर्पयामि" बोलते हुए पुष्प को अर्पण करते हैं।



६.गन्धं समर्पयामि:-फिर गंध के रूप में चन्दन, रक्त चंदन, केसर, रोली, कुमकुम, सिंदूर आदि अर्पण करते समय "गन्धं समर्पयामि " बोलते हैं।



७.सुंगधित इत्र समर्पयामि:-फिर इत्र चढ़ाते समय "ऊँ नमः शिवायः" "इत्र समर्पयामि" बोलते हैं। 



८.यज्ञोपवीत समर्पयामि:-फिर यज्ञोपवीत चढ़ाते समय "ऊँ नमः शिवायः" "यज्ञोपवीत समर्पयामि" बोलते हैं। 



९.बिल्ब समर्पयामि:-फिर बिल्ब चढ़ाते समय "ऊँ नमः शिवायः" "बिल्ब समर्पयामि" बोलते हैं। 



१०.धूपं आघ्रापयामि:-धूपबत्ती को प्रज्वलित करके धूप की गंध को सुंघाते हुए "धूपं आघ्रापयामि" बोलते हैं।




११.दीपं दर्शयामि:-फिर गाय से बने हुए शुद्ध घृत को दीपक में बत्ती से युक्त करके प्रज्वलित करते समय "दीपं दर्शयामि" बोलते हुए दीपक को दिखाते हैं।



१२.नैवेद्यं व फलं निवेदयामि:-फिर भोग के रूप में फल व कोई भी मिठाई अर्पण करते समय "नैवेद्यं निवेदयामि" बोलते हैं।



◆फिर अपनी आंखें मूंदकर भगवान शिवजी को मन ही मन में याद करते हुए उनकी इस साधना को पूर्ण करने का संकल्प करते हैं।



◆माला के रूप में:-मनुष्य को मन्त्र के बार-बार उच्चारण करने के लिए भी मोक्षदा माला लेनी चाहिए।



◆भगवान शिवजी का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए।



◆यदि हवन करने हेतु:-मनुष्य को हवन को करना चाहिए।



◆फिर प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए। 



◆इस तरह से मनुष्य को हमेशा पांच बार प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।



◆फिर मोक्षदा माला को अपने गले में धारण करना चाहिए।



◆इस तरह से नियमित रूप से साधना कर्म को तीस दिन तक करना चाहिए।



◆पारद शिवलिंग को अपने निवास स्थान में पूजा की जगह पर रख देना चाहिए।




श्रावण मास प्राणरक्षक एवं मुक्ति प्राप्ति साधना करने के लिए विनियोग:-विनियोग श्रावण मास में प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं पाठ के वांचन से पूर्व विनियोग को एक ही बार वांचन करना चाहिए।



विनियोग का अर्थ:-वैदिक कार्यों में या फल को पाने हेतु मंत्रों का उपयोग करने के लिए दृढ़ इरदा करने को विनियोग कहते हैं।



भैरव उवाच:-भैरवजी कहते है, हे साधक मनुष्य! प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं पाठ करने से पूर्व दृढ़ इरदा रखते हुए मन में देव को धारण करना चाहिए।



वक्ष्यामिदेव कवचं मंगलं प्राणरक्षकम् अहोरात्रं


महादेवरक्षार्थ देवमण्डितम् अस्य


श्री महादेवकवचस्य वामदेव ऋषिः


पंक्तिछन्दः सौः बीजं रुद्रो देवता सर्वाथसाधने विनियोगः।।



अर्थात्:-भैरवजी समझाते हुए, कहते हैं जो साधक मनुष्य अहोरात्र में महादेवजी को स्थापित करके कवच स्तोत्रं का वांचन करते हैं, तब यह कवच अपने प्रभाव से जीवन की रक्षा करते हुए आनन्द को देने वाला होता हैं। श्री प्राण रक्षक कवच स्तोत्रम् श्लोकों में मंत्रों की रचना वामदेव ऋषिवर ने की थी, जिसमें पंक्ति छंद हैं, सौः बीजं रूप में हैं और रुद्र देवता के रूप में हैं, जो कोई प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं के श्लोकों में वर्णित मंत्रों के द्वारा इनके देवता को याद करते हुए वांचन का संकल्प करता हैं, उसको सभी जगहों पर जीत, सभी तरह की सिद्धि, ज्ञान के क्षेत्र में सिद्धि और आने वाले विघ्नों से मुक्ति आदि देने वाला माध्यम हैं।




प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का पाठ:-प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं पाठ को हमेशा पांच बार वांचन करना चाहिए।



रुद्रो मामग्रतः पातु पृष्ठत्ः पातु शंकरः।


कपर्दी दक्षिणे पातु वामपार्श्वे तथा हरः।।१।।



शिवः शिरसि मां पातु ललाटे नीललोहितः।


नेत्रं मे त्र्यंम्बकः पातु बाहुयुग्मं महेश्वरः।।२।।



हृदये च महादेव ईश्वरश्च तथेदरे।


नाभौ कुक्षौ कटिस्थानने पदौ पातु महेश्वरः।।३।।



सर्व रक्षतु भूतेशः सर्वगात्राणि मे हरः।


पाशं शूलञ्च दिव्यास्त्रं खड्गंवज्र तथैव च।।४।।



नमस्कारोमि भूतेश रक्ष मां जगदीश्वर।


पापेभ्यो नरकेभ्यश्च त्राहि मां भक्तवत्सल।।५।।



जन्म मृत्यंजरा व्याधिकामक्रोधादपि प्रभो।


लाभमहान्महादेव रक्ष मां त्रिदेश्वर।।६।।



त्वं गतिस्त्वं मतिश्चैव त्वं भूमिस्त्वं परायणः।


कायेन मनसा वाचा त्वयि भक्तिर्दृढास्तु में।।७।।



शिव रक्षा स्तोत्र या प्राण रक्षक या मुक्ति प्राप्ति या शिव सायुज्य कवच स्तोत्रं अर्थ सहित(Shiva Raksha Stotra or Pran Rakshak or Mukti Prapti or Shiva Sayujya Kavach Stotram with meaning):-



रुद्रो मामग्रतः पातु पृष्ठत्ः पातु शंकरः।


कपर्दी दक्षिणे पातु वामपार्श्वे तथा हरः।।१।।



अर्थात्:-हे बहुत शक्तियों वाले भयानक रूप धारी विनाश करने वाले रुद्र आप मेरे आगे आने वाले संकटो और कल्याणकारी भगवान शिव आप मेरे पीछे की तरफ आने वाले संकटो से सुरक्षा कीजिए।



हे जटाजूटधारी गतिमान शिव रूप कपर्दी! आप मेरी देह के दाहिनी तरफ के एवं बायें तरफ के भाग पर आने वाले प्रत्येक संकटों को लेकर भगवान शिव रक्षा कीजिए।



शिवः शिरसि मां पातु ललाटे नीललोहितः।


नेत्रं मे त्र्यंम्बकः पातु बाहुयुग्मं महेश्वरः।।२।।



अर्थात्:-हे कल्याणकारी शिव! आप मेरी देह के सिर की और मेरे माथे के के भाग पर आने वाले संकटों को नीले कंठ एवं लोहित वर्ण के मस्तक धारी नीललोहित भगवान शिव रक्षा कीजिए।


हे तीन नेत्रों वाले त्र्यंम्बक शिव! आप मेरी देह की चक्षुओं की और मेरी बाहुओं पर आने वाले संकटों को देवों के ईश्वर महेश्वर रक्षा कीजिए।

 


हृदये च महादेव ईश्वरश्च तथेदरे।


नाभौ कुक्षौ कटिस्थानने पदौ पातु महेश्वरः।।३।।



अर्थात्:-हे सभी देवताओं में सबसे बड़े देव महादेव! आप मेरे वक्ष के अंदर बाईं ओर स्थित दिल में और मेरे शरीर के भीतरी भाग पेट में भगवान आप विराजमान हैं। हे सबसे बड़े देव महादेव! आप मेरे शरीर के केन्द्र स्थान शिरामूल, कुक्ष, मध्यांग और चरणों पर आने वाली मुसीबतों से रक्षा कीजिए।


 


सर्व रक्षतु भूतेशः सर्वगात्राणि मे हरः।

पाशं शूलञ्च दिव्यास्त्रं खड्गंवज्र तथैव च।।४।।



अर्थात्:-हे सृष्टि नाशक भूतेश! आप सभी प्राणयुक्त देह वालों के भगवान हो और मेरे शरीर के सभी अंगों की रज्जु, बरछा, अलौकिक हथियार, लोहे का लंबा धारदार कृपाण और बादलों से टकराने से गिरने वाली आकाशीय बिजली आदि के द्वारा सुरक्षा कीजिए




नमस्कारोमि भूतेश रक्ष मां जगदीश्वर।


पापेभ्यो नरकेभ्यश्च त्राहि मां भक्तवत्सल।।५।।



अर्थात्:-हे सृष्टि नाशक सत्ता धारी भूतों के स्वामी एवं सम्पूर्ण लोक के स्वामी! मैं आपको आदरपूर्वक हाथ जोड़कर अभिवादन करता हूँ।



हे भक्तों पर कृपा एवं स्नेह करने वाले भक्तवत्सल! आप मुझे धर्म और नीति के विरुद्ध किये जाने वाले आचरणों और मेरी आत्मा को जीवनकाल में किये गए बुरे कर्मों के भोगने की जगह में जाने से प्राप्त होने वाले कष्टों, विपत्ति आदि से दूर रखिए और मेरी रक्षा कीजिए।




जन्म मृत्यंजरा व्याधिकामक्रोधादपि प्रभो।


लाभमहान्महादेव रक्ष मां त्रिदेश्वर।।६।।



अर्थात्:-हे प्रभु! आप मुझे गर्भ से निकलकर जन्म लेने, शरीर से प्राण निकलने, बुढ़ापा, बीमारी, इंद्रिय या विषय सुख की कामना, प्रतिकूल कार्य से मन में उत्पन्न उग्र मनोविकार आदि से दूर रखते हुए मेरा हित चाहने वाले तीनों देवों में सर्वेश्वर महादेव आप मेरी रक्षा कीजिए।




त्वं गतिस्त्वं मतिश्चैव त्वं भूमिस्त्वं परायणः।


कायेन मनसा वाचा त्वयि भक्तिर्दृढास्तु में।।७।।



अर्थात्:-हे शिवजी! आप ही जन्म एवं मृत्यु के बंधन से मुक्ति प्रदान करने वाले भी हैं, अच्छे-बुरे का विवेक करने वाली भीतरी चेतना भी आप हैं, जिस पर जीवन का संचार हो वह भी आप हैं और आप ही आश्रय देने वाले हैं। तन, मन और वाणी से मेरी श्रद्धा एवं आस्था आपके प्रति प्रगाढ़ रूप में हो।




फलश्रुति का अर्थ:-जिसमें पूर्ण स्तोत्र के वांचन से एवं सुनने से मिलने वाले लाभ या फायदे के बारे गुणगान होता हैं, उसे फलश्रुति कहते हैं।



इत्येतद्रुद्रकवचं पाठनात्पाप नाशनम्।


महादेवप्रसादेन भैंरवेन च कीर्तितम्।


न तस्य पापं देहेषु न भयं तस्य विद्यते।।


प्राप्नोति सुखरारोग्यं पुत्रमायुःवर्द्धनम्।


पुत्रार्थी लाभते पुत्रन्धनार्थी धनमाप्नुयात्।।


विद्यार्थी लाभते विद्यां मोक्षार्थी मोक्षमेव च।


व्याधितो मुच्यते रोगाद्र्बंधौ मुच्यते बंधनात्।।


ब्रह्महत्यादि पापं च पठनादेव नश्यति।।


इत्येतद्रुद्रकवचं पाठनात्पाप नाशनमँ।


महादेवप्रसादेन भैंरवेन च कीर्तितम्।



अर्थात्:-जो मनुष्य साधक नियमित रूप से प्राण रक्षक एवं मुक्ति कवच स्तोत्रं का वांचन करते हैं उनके धर्म एवं नीति के विरुद्ध किये गए आचरण से मुक्ति मिल जाती हैं।



भैरवजी कहते हैं, की जो मनुष्य साधक नियमित रूप से प्राण रक्षक एवं मुक्ति कवच स्तोत्रं का वांचन करते हैं, उन मनुष्य को भगवान शिवजी का आशीर्वाद मिल जाता हैं।



न तस्य पापं देहेषु न भयं तस्य विद्यते।।


प्राप्नोति सुखरारोग्यं पुत्रमायुःवर्द्धनम।


अर्थात्:-प्राण रक्षक एवं मुक्ति कवच स्तोत्रं का वांचन करने वाले मनुष्य को न ही किसी तरह के बुरे कार्यों को करने में रुचि एवं बिना मतलब के डर से मुक्ति मिल जाती हैं।


मनुष्य साधक को समस्त तरह के सुख प्राप्त हो जाते है, जिससे देह में निरोग्यता रहती हैं और उम्र की बढ़ोतरी होकर पुत्र सन्तान में वृद्धि होती हैं।


जिन मनुष्य को पुत्र सन्तान होती हैं, उनको पुत्र सन्तान की सेवा एवं सुख की प्राप्ति होती हैं।



पुत्रार्थी लाभते पुत्रन्धानार्थी धनमाप्नुयात।।


विद्यार्थी लाभते विद्यां मोक्षार्थी मोक्षदेव च।



अर्थात्:-जिन मनुष्य के पास धन होता हैं, उन मनुष्य को ज्यादा धन मिल जाता हैं।


जो छात्रवृतिधारी होते हैं, उनको विद्या की प्राप्ति होती हैं। 


जो मनुष्य अपने जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होना चाहते हैं, उनका उद्धार हो जाता हैं और मोक्षगति को प्राप्त कर लेते हैं।



व्याधितो मुच्यते रोगाद बंधौ मुच्यते बंधनात।।


ब्रह्महत्यादि पापं च पठनादेव नश्यति।।



अर्थात्:-जिन मनुष्य को व्याधि ने घेर रखा होता हैं, उन मनुष्य को व्याधि से मुक्ति मिल जाती हैं।


जो मनुष्य बन्धन या जेल आदि में फंसे होते हैं, उस बन्धन से मुक्ति मिल जाती हैं।


जिन मनुष्य के द्वारा ब्रह्म हत्या के समान या ब्रह्म हत्या से सम्बंधित पाप हो चुका हैं, जब वे प्राण रक्षक एवं मोक्ष मुक्ति कवच स्तोत्रं के पाठ का वांचन करते हैं, तब महादेवजी उसके समस्त पापों को नष्ट कर देते हैं।



क्रियोड्डीश तंत्र के अनुसार:-क्रियोड्डीश तंत्र में वर्णित पाठ के विषय बताया गया है, की यह पाठ बहुत ही दुसरो के सामने प्रकट करने वाला नहीं होता हैं, जिससे किसी भी कार्य में पूर्ण रूप से कामयाबी प्रदान करवाने वाला है। 



शिव रक्षा स्तोत्र या प्राण रक्षक एवं मुक्ति कवच स्तोत्रम् का महत्त्व एवं लाभ(Importance and benefits of Shiva Raksha Stotram or Prana Raksha and Mukti Kavach Stotram):-मनुष्य जब "शिव रक्षा स्तोत्र" या "प्राण रक्षक एवं मुक्ति कवच स्तोत्रं" का वांचन नियमित रूप से करते रहने पर निम्नलिखित फायदे मिलते हैं, जो इस तरह हैं- 



किये गए बुरे एवं गलत कार्यों से मुक्ति:-मनुष्य के द्वारा अपने जीवन काल में बहुत सारे धर्म एवं नीति के विरुद्ध आचरण कर लेते हैं, उन किये गए आचरणों से प्राण रक्षक एवं मुक्ति कवच स्तोत्रं के वांचन से मुक्ति मिल जाती हैं। 



भगवान शिवजी की अनुकृपा पाने हेतु:-जो मनुष्य नियमित रूप से प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का वांचन करते हैं, उन मनुष्य पर शिवजी अपनी अनुकृपा कर देते हैं।



बुरे किये गए कार्यों एवं अनावश्यक डर से मुक्ति:-मनुष्य अपने जीवन काल में बहुत ही बुरे कार्यों को करते हैं, जिससे उनको डर रहता हैं, उन बुरे कार्यों एवं डर से मुक्ति दिलवाता हैं।



समस्त तरह की सुख-सुविधाओं को पाने हेतु:-मनुष्य को अपने जीवन में बहुत सारी शारीरिक, भौतिक एवं बौद्धिक सुख-सुविधाओं की जरूरत होती हैं, उन सुख-सुविधाओं को पाने हेतु मनुष्य को प्राण रक्षक कवच स्तोत्रं का वांचन करने पर मिल जाता है।



व्याधियों से मुक्ति पाने का उपाय:-मनुष्य को कई तरह की व्याधियां शरीर में अपना घर बना लेती हैं, जो इस स्तोत्रं का वांचन हमेशा करते हैं, उनकी व्याधियों से भगवान शिवजी जी मुक्ति प्रदान कर देते हैं।



उम्र की बढ़ोतरी हेतु:-मनुष्य को अपनी उम्र को बढ़ाने हेतु इस कवच का वांचन करना चाहिए।



पुत्र सन्तान की प्राप्ति एवं सुख पाने हेतु:-मनुष्य को पुत्र चाहत को पूर्ण करने के लिए एवं पुत्र सुख पाने हेतु इस कवच का वांचन करना चाहिए।



मोक्ष गति पाने हेतु:-मनुष्य के द्वारा इस स्तोत्र का वांचन नियमित रूप से करते रहने पर भगवान शिवजी की कृपा उस मनुष्य पर हो जाती हैं और भगवान शिवजी के चरणों में जगह मिल जाती हैं, जिससे उस मनुष्य का उद्धार हो जाता है और मोक्षगति को प्राप्त कर लेता हैं।



मनुष्य मानसिक चिंता से मुक्त:-जो मनुष्य नियमित स्तोत्रं का वांचन करते हैं, तो उन मनुष्य की मानसिक चिंता को भगवान शिवजी दूर कर देते हैं।



समस्त तरह की परेशानियों से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य को अपने जीवन काल में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं, उन परेशानियों से मुक्ति का उपाय यह स्तोत्रं हैं।



कार्य को सफल करने हेतु:-मनुष्य के जीवन में बनते-बनते काम बिगड़ जाते हैं, उन बिगड़ते हुए कार्यों को बनाने हेतु इस कवच स्तोत्रं का वांचन नियमित रूप से करने से कार्यों में सफलता मिल जाती हैं।



निर्धनता दूर करने हेतु:-मनुष्य को अपनी निर्धनता को दूर करने हेतु इस कवच स्तोत्रं का वांचन हमेशा करते रहना चाहिए। जिससे मनुष्य को धन की प्राप्ति हो जाती है और धनवान बन जाते हैं।



छात्रवृत्तिधारी को विद्या पाने हेतु:-छात्रवृत्तिधारी द्वारा विद्या पाने हेतु इस कवच का वांचन करना चाहिए।



बन्धन या जेल से मुक्ति हेतु:-मनुष्य के ऊपर तांत्रिक क्रियाओं के असर एवं जेल योग से मुक्ति का उपाय प्राण रक्षक कवच हैं।



ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु:-ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु प्राण रक्षक कवच का वांचन करना चाहिए।



असामयिक मृत्यु से राहत हेतु:-मनुष्य को दुर्घटना या बीमारी आदि में होने वाली असामयिक मृत्यु या उम्र के पूर्ण होने से पूर्व मृत्यु के डर से मुक्ति मिलती हैं।