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Tuesday, May 16, 2023

मांगलिक दोष क्या है और कब नहीं होता हैं?(What is Manglik Dosh and when does it not happen)

मांगलिक दोष क्या है और कब नहीं होता हैं?(What is Manglik Dosh and when does it not happen):-ज्योतिष शास्त्र में मांगलिक दोष के बारे में विचार कब से शामिल हुआ हैं, उसके बारे में बताना पक्का नहीं कहा जा सकता हैं, लेकिन पुराने समय के महर्षि पाराशर, जैमिनी, वराहमिहिर आदि तथा उनके समय व उसके बाद के आचार्यों ने भी इस बात को ज्यादा अहमियत नहीं दिया था। मगर आज के समय में जरा से ज्योतिषियों व ज्योतिषी लेखकों के अनुसार जन्मकुण्डली में पहले, चौथे, सातवें, आठवें तथा बारहवें घर में बैठे मंगल ग्रह से बनने वाले मांगलिक दोष  का बोलबाला समाज में खड़ा कर दिया है कि मांगलिक दोष से पीड़ित लड़का-आदमी और लड़की-औरत एक-दूसरे को नष्ट कर देने वाले होते हैं। 




आज के समय में सामाजिक जीवन में प्रत्येक माता-पिता के मन में यह नजरिया घर कर चुका हैं कि यदि मांगलिक दोष से पीड़ित लड़के-आदमी की शादी बिना मांगलिक दोष से पीड़ित लड़की-औरत के साथ करने से लड़की-औरत की मृत्यु हो जायेगी और इसी तरह यदि मांगलिक दोष से पीड़ित लड़की-औरत की शादी बिना मांगलिक दोष से पीड़ित लड़के-आदमी के साथ करने से लड़के-आदमी की मृत्यु हो जायेगी।



इस तरह आज के कुछेक लेखकों और ज्योतिषियों ने नौ ग्रहों में से पहले चार ग्रहों मंगल, शनि, राहु, केतु आदि के साथ सूर्य व शुक्र ग्रह को भी बुरे व पाप असर वाले ग्रहों की श्रेणी में रखकर इनको भी मांगलिक दोष प्रदान करने वाला बना दिया हैं।



What is Manglik Dosh and when does it not happen



उसके बाद जन्मकुण्डली के लग्न से, चन्द्र कुण्डली के चन्द्र लग्न से और शुक्र लग्न कुण्डली से मांगलिक दोष का निर्धारण करने को कहा जाता हैं।



जैसे-


◆लग्नकुण्डली से मंगल यदि पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें घर में हो।



◆चन्द्रकुण्डली से मंगल यदि पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें घर में हो, तो मांगलिक दोष बनता हैं।



◆शुक्रकुण्डली से मंगल यदि पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें घर में हो।


इस तरह के अलग-अलग मत से समाज में मांगलिक दोष के बारे में बहुत ही डर बिठा दिया हैं। ऐसे हालात में कदाचित ही कोई कुण्डली बिना मंगली दोष की हो, फिर इस मंगली दोष को रदद् करने के उपाय का प्रयास किया।



सबसे पहले लड़की-औरत को अमांगलिक बनाने के लिए लड़के-आदमी की मांगलिकता को बलि का बकरा बनाया गया। जिसके परिणाम स्वरूप लड़के-आदमी की मांगलिकता से  लड़की-औरत की मांगलिकता से कट गयी। 



यह हकीकत में गौर करने की बात हैं, की मेष लग्नकुण्डली के जातक या जातिका के लग्न का स्वामी मंगल होता हैं और अपने घर में भी स्थित होता हैं, तो फिर मारक कैसे हो सकता हैं?



इस प्रकार ज्योतिष शास्त्र में अपनी-अपनी नयी-नयी बातों को जोड़ने से मांगलिक दोष के बारे में तरह-तरह की राय को उत्पन्न किया हैं, जिसके कारण मांगलिक दोष अभी भी विवाद से घिरा हुआ विषय बना हुआ हैं।  



पति-पत्नी के संबंध को बिना किसी मतभेद व सफलतापूर्ण बनाने की तमन्ना से मांगलिक दोष से उपजे हुए खौफ से प्रत्येक माता-पिता घबराये हुए रहते हैं। इसलिए लड़का-आदमी और लड़की-औरत की जन्मकुण्डली में मंगल के हालात पर शादी से पूर्व चिन्तन-मनन कर लेना फायदेमन्द रहेगा। जब विवाह के लिए लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के ग्रहों का मिलान की प्रक्रिया की जाती हैं, मंगलदोष का मिलान पहले किया जाता हैं, इस तरह मंगलदोष के मेलापन की रीति ज्यादा चलती हैं।



मंगलदोष या मांगलिक दोष को अन्य नाम:-मंगलदोष को 'कुजदोष', भौमदोष' व दक्षिण भारत में 'कलत्रदोष अर्थात् भार्या या भर्तार सुख में कमी' और आमजन की बोली में 'मंगलीदोष' मंगलीक दोष', 'मांगलिकदोष' आदि नामों से बोला जाता है।



काल के अनुसार मंगलदोष या मांगलिक दोष में बदलाव:-पुराने समय एवं मध्यकाल के लिखे हुए प्रसिद्ध ग्रन्थों में मंगलदोष के बारे में मात्र लक्षणों के विषय में लिखित ब्यौरा मिलता हैं।  प्राचीनकाल एवं मध्यकाल के ग्रन्थों में किसी भी जगह पर मंगल दोष को 'कुजदोष', भौमदोष' या 'कलत्रदोष' आदि नामों के बारे में जानकारी नहीं दी गई हैं। जैसे-जैसे समय बदलता गया वैसे-वैसे मंगल ग्रह से बनने वाला दोष होने से 'मंगलदोष' कहा जाने लगा हैं।




मांगलिक दोष का अर्थ:-जब किसी भी मनुष्य की जन्म कुण्डली में मंगल ग्रह से मंगल दोष बनता हैं, तब उसे 'मंगली' कहा जाता हैं। आम बोली में ऐसे मनुष्य को 'मांगलिक' कहा जाता हैं।




मंगली दोष या मांगलिक दोष की परिभाषा:-मंगलदोष लड़के या लड़की की जन्म कुण्डली के पहले घर, चौथे घर, सातवें घर, आठवें घर और बारहवें घर में से किसी भी घर में मंगल ग्रह बैठा होता हैं, तब उसे मंगली दोष या मांगलिक दोष कहते हैं।



किसी भी लड़की या लड़के को सामाजिक रूप से पति-पत्नी के सम्बन्ध में बंधने के लिए विवाह जरूरी होता हैं, जब वैवाहिक जीवन को सुख पूर्वक एवं हंसी-खुशी से व्यतीत करने के लिए जन्मकुण्डली के पहले घर, चौथे घर, सातवें घर, आठवें घर और बारहवें घर में से किसी भी घर में मंगल नहीं होना चाहिए।



'पतिहन्तृयोग':-जब किसी भी लड़की की जन्म कुण्डली के पहले घर, चौथे घर, सातवें घर, आठवें घर और बारहवें घर में से किसी भी घर में मंगल ग्रह बैठा हो, तो 'पतिहन्तृयोग' होता हैं।




'पत्नीहन्तृयोग':-जब किसी भी लड़के की जन्म कुण्डली के पहले घर, चौथे घर, सातवें घर, आठवें घर और बारहवें घर में से किसी भी भाव में मंगल ग्रह बैठा हो, तो 'पत्नीहन्तृयोग' होता हैं।



पतिहन्तृयोग एवं पत्नीहन्तृयोग के हालात तब उत्पन्न होती हैं, जब मंगल ग्रह पर किसी अच्छे ग्रह के असर में नहीं होता हैं। जब अच्छे ग्रह का असर जैसे-बुध, गुरु, शुक्र ग्रह में से किसी भी ग्रह के साथ मंगल बैठा हो या इन ग्रहों में से किसी भी ग्रह के द्वारा मंगल स्थित घर को देखा जाता हैं, तब भार्या-भर्तार के लिए और भर्तार-भार्या के लिए भारी नुकसान नहीं होंगे। मंगल के द्वारा बनने वाले हालात पति-पत्नी के सम्बन्ध के बीच दूरी बढ़ाने के हालात को  उत्पन्न कर सकती हैं।




अनेक ज्योतिष ग्रंथों में मंगल के बारे में:-एक निम्नलिखित रूप से वर्णन मिलता हैं, जो कि एक श्रेष्ठ श्लोक में वर्णन मिलता है-


लग्ने व्यये च पाताले, जामित्रे चाष्टमे कुजे।


भार्याभर्तृर्विनाशाय, भर्तुश्च स्त्रीविनाशनम्।।


कन्याभर्तृर्विनाशाय, भर्त्तु कन्या विनाशकः।।


कन्याभर्तृर्विनाशाय, भर्ता पत्नी विनाशकृत।।



अर्थात्:-जन्मकुंडली के लग्न स्थान से पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें स्थान में मंगल हो तो ऐसी कुंडली मांगलिक कहलाती हैं। पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति नाश करने वाला होता हैं। दुल्हन के लिए दूल्हा और दूल्हे के लिए दुल्हन बर्बाद करने वाली होती हैं। बेटे के पति की बर्बादी और पत्नी के द्वारा पति का नाश होता हैं।



'मौलिया मंगल' या पगड़ी मंगल:-जब किसी भी पुरुष जातक की जन्मकुण्डली में यदि मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें घर में से किसी जगह पर बैठा हो, तो वह जन्मकुण्डली 'मौलिया मंगल' वाली कुण्डली कहलाती है।



'चुनरी मंगल':-जब किसी भी स्त्री जातक की जन्मकुण्डली में यदि मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें घर में से किसी जगह पर बैठा हो, तो वह जन्मकुण्डली 'चुनरी मंगल' वाली कुण्डली कहलाती है।



श्लोक के अनुसार जिस पुरुष की कुण्डली में 'मौलिया मंगल' हो उसे 'चुनरी मंगल' वाली कन्या से विवाह करना चाहिए, अन्यथा पति या पत्नी में से किसी एक कि उम्र कम हो जाती है। अतः कुण्डली मिलान में मंगल दोष का ध्यान रखना शास्त्र सम्मत है ताकि जीवन सुखी और बहुत अधिक रुपये-पैसों वाला बने।



धने व्यये च पाताले, जामित्रे चाष्टमे कुजे।


स्त्री भर्तृर्विनाशाञ्च, भर्ता स्त्री विनाशनम्।।



भारत देश को दिशाओं के आधार बाँटने पर मंगलदोष के विषय में मत:-उत्तरी भारत में एवं दक्षिणी भारत में मंगलदोष की विचारधारा अलग मानी गई हैं। पहले घर में बैठे मंगल के आधार पर बनने वाले मंगलदोष को उत्तरी भारत में मंगलदोषकारक माना गया हैं और दक्षिणी भारत में  मंगलदोषकारक नहीं माना गया हैं, बल्कि दूसरे घर में बैठे मंगल को भी मंगलदोषकारक माना गया हैं।





प्रश्न उठता है की क्या चन्द्रमा से भी मंगल देखना चाहिए?:-बहुत सारे मतभेद हैं, क्या मंगल दोष के बारे में लग्नकुण्डली की तरह चन्द्र कुंडली से भी विचार करना चाहिए? जब प्राचीन काल में वर्णित शास्त्रों के श्लोक को देखते हैं, तो उसमें स्पष्ट रूप से  'लग्ने' शब्द दिया गया है। यहां पर चन्द्रमा के बारे में कहीं भी वर्णन नहीं मिलता हैं। इस जिज्ञासा के निवारण के लिए दो सूत्र मिलते हैं- 


लग्नेन्दुभ्यां विचारणीयम्।


अर्थात्:-जन्मकुण्डली के लग्न से एवं जन्म के चन्द्रमा दोनों से मंगल के हालात पर सोचना चाहिए, कहा भी है-यदि जन्म चक्र एवं जन्म समय का ज्ञान न भी हो तो नाम राशि से जन्म तारीख ग्रहों को स्थापित करके अर्थात् कुण्डली बनाकर मंगल के हालात के बारे सोचना चाहिए। इस विषय में शास्त्रों के श्लोक में बताया गया हैं- 



अज्ञातजन्मनां नृणां, नामभे परिकल्पना।


तेनैव चिन्तयेत्सर्व, राशिकूटादि जन्मवत्।।



अर्थात्:-यहां यह बात भी जिक्र करने योग्य हैं कि यदि एक जातक का जन्म चक्र उपलब्ध हो और दूसरे का न हो तो दोनों का निर्णय उनके नाम की राशि को आधार मानकर करना चाहिए। एक जातक का जन्म से राशि और दूसरे जातक का नाम राशि से मिलान नहीं करना चाहिए।



भौम पंचक दोष:-अपने समान असर डालने वाले पांच ग्रहों (सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु) के समूह से जो दोष बनता हैं, उसे भौम पंचक दोष कहा जाता हैं।


चन्द्राद् व्ययाष्टमे मदसुखे राहुः कुजार्की तथा।


कण्याचेद् वरनाशकृत वरवधूहानिः ध्रुवं जायते।।



अर्थात्:-जब चन्द्रमा से सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु आदि ग्रह आठवें, बारहवें घर में होते हैं, तब कन्या हैं, तो अपने वर अर्थात् पति के सुख का नाश करने वाली और निश्चित रूप से वर और वधू के विनाश का कारण होते हैं।



◆ज्योतिषशास्त्र में नवग्रहों में से सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु ये पांच बुरे एवं पाप असर वाले क्रूर ग्रह होते है। अतः पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें स्थानों में मंगल स्थिति व सातवें घर के स्वामी का छठे, आठवें और बारहवें घर में बैठा होना भी मांगलिक दोष को उत्पन्न करता है, तब उस दोष को 'भौम पंचक दोष' कहा जाता हैं।



◆जब दूसरा घर भी सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु आदि पांच बुरे एवं पाप असर वाले क्रूर ग्रह से पीड़ित हो, तो उसके दोष को दूर दूर एवं शांति आदि का सोचना ठीक रहता हैं।  




वैवाहिक जीवन के लिए घरों या भावों की भूमिका:-जन्मकुण्डली का पहला घर, दूजा घर, चौथा घर, सातवां घर, आठवां घर एवं बारहवां घर लड़के-पुरुष और लड़की-औरत के वैवाहिक जीवन में बहुत ही खास भूमिका होती हैं। 



पहला घर या भाव:-पहला घर से मनुष्य की तन्दुरुस्ती के साथ-साथ उसके जीवन जीने के तरीके के हावभाव को जाहिर करता हैं।



दूजा घर या भाव:-दूजा घर मनुष्य के खानदान, रुपये-पैसे एवं मारक घर हैं। इसके साथ ही बोलने के तरीके के बारे में जानकारी देने का घर होता हैं।



चौथा घर या भाव:-चौथा घर माता के सुख एवं परिवार संबंधी सुख का घर हैं। इसके अलावा वह सांसारिक जीवन को सुख और सहूलियत से सम्बंधित घर भी है।


सातवां घर या भाव:-सातवां घर से जीवन भर एक-दूसरे का साथ निभाने से सम्बन्धित होता है। इसके अलावा सातवां घर विषय-सुख की ख्वाहिश से जुड़ा हुआ घर हैं।  


आठवां घर या भाव:-अष्टम भाव आठवां घर आदमी की जन्मकुण्डली में आदमी के जीवनकाल के बारे में जानकारी देने से जुड़ा होता हैं। 


आठवां घर औरत की जन्मकुण्डली में औरत के मंगलकारक या सुहाग अर्थात् उसके भर्तार की उम्र से सम्बंधित होता हैं। 



द्वादश घर या भाव:-बारहवां घर पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ सेज पर शारीरिक सुख अर्थात् औरत-आदमी को समागम प्रदान करने का हैं। 



निष्कर्ष:-लड़के या लड़की को सामाजिक जीवन में धार्मिक प्रक्रिया के द्वारा पति-पत्नी के रूप में मर्यादित बन्धन में बंधने में दूजा और बारहवां घर की विशेष भूमिका होती हैं। क्योंकि दूजा घर खानदान की बढ़ोतरी और बारहवां घर से दाम्पत्य जीवन में शारीरिक सुख अर्थात् सहवास सम्बन्धित होता हैं।



◆पहला घर से शरीर सम्बन्धी सुख से होता हैं, जब शरीर तन्दुरुस्त रहेगा तब तक दाम्पत्य जीवन में किसी भी तरह से परेशानी नहीं होगी, जब शरीर में से किसी भी तरह से व्याधि का असर होने पर दाम्पत्य सुख में बाधा पहुँचती हैं।




◆चौथा घर में मंगल होने पर निवास स्थान में मिलने वाले सभी सुखों को खत्म करता हैं।



◆सातवां घर पति-पत्नी के जीवन भर साथ होता हैं, जब मंगल सातवें घर में होगा तो पति व पत्नी के प्रेम सम्बन्धों में खटास उत्पन्न करके उनके दाम्पत्य जीवन के सुख को समाप्त करेगा।



◆आठवां घर आदमी व औरत के जननेन्द्रिय जैसे-उपस्थ, मदनालय एवं मलद्वार का होता हैं, अतः इन स्थानों में व्याधि के उत्पन्न होने की संभावना हैं।


 


मंगल दोष के लक्षण फल विभिन्न भावों या घरों में:-विभिन्न भावों में बनने वाले मंगल दोष के लक्षण और फल या मंगल का प्रभाव निम्नानुसार होते हैं-



1.पहले भाव में मंगल की स्थित होने पर:-पहले घर या भाव में मंगल बैठा होने पर जातक के मिजाज एवं हावभाव में स्नेह व दया की सोच को दबाकर क्रोध में बढ़ोतरी करता हैं। पहले घर या भाव में बैठा मंगल अपनी पूर्ण दृष्टि से चौथे, सातवें एवं आठवें भाव को देखता है। उन भावों से सम्बन्धित होने पर पारिवारिक एवं वैवाहिक विषयों के सुख पर बुरा असर डालता है। इसी कारण पहले घर या भाव में बैठे मंगल को दोषकारक माना गया है। यदि मंगल पाप असर में है तो देह सुख, पति-पत्नी के सहवास सुख एवं दाम्पत्य जीवन के सुख में कमी करेगा।



2.दूजा घर या भाव में मंगल की स्थित होने पर:-दूजे भाव में मंगल के बैठे होने पर जातक की बोली में कड़वे शब्दों को उत्पन्न करता है। वह गुस्सैल मिजाज से व्यवहार करता हैं और अपने जीवनसाथी के साथ गलत शब्दों की बोली को बोलता हैं, जिससे उनके दाम्पत्य जीवन के सम्बन्धों में कटुता के कारण दरार पड़ जाती हैं। दूजे घर में बैठा मंगल रुपये-पैसे, जमीन-जायदाद और पारिवारिक छल-कपटपूर्ण जालसाजी, पति-पत्नी के बीच में लड़ाई-झगड़े के रूप में मारपीट के साथ शारीरिक कष्ट जैसे नतीजे प्रदान करता हैं। पति-पत्नी के बीच अस्वाभाविक सहवास के कारण बहुत ही मानसिक पीड़ा भी देता हैं। दूजे घर में स्थित मंगल पांचवें, आठवें एवं नवें घर को पूर्ण दृष्टि से देखता है। पांचवां घर बेटा-बेटी रूपी सन्तान का कारक है। दाम्पत्य जीवन बिना सन्तान के पूर्ण नहीं माना जाता है। मंगल की पंचम भाव पर दृष्टि इस सम्बन्ध में प्रतिकूल परिणाम उत्पन्न करने वाली मानी जाती है। अष्टम भाव पर मंगल की दृष्टि पुरुष की कुण्डली में उसके स्वयं के लिए घातक होती है, वहीं स्त्री की कुण्डली में उसके पति के लिए घातक होती है। नवम भाव दक्षिण भारत में पिता का कारक माना जाता है। मंगल की दृष्टि पिता से सम्बन्ध खराब करने वाली होती है, जिससे पारिवारिक अशांति उत्पन्न होती है।





3.सातवां भाव में मंगल की स्थिति होने पर:-सातवां भाव में बैठा मंगल बहुत ज्यादा दोष को उत्पन्न करता हैं। पहले रूप में अपने जीवनसाथी के साथ बिना वजह मतभेद व टकराव, जीवनसाथी के बदचलनी, आगे बढ़ने में बहुत मेहनत और मारपीट के द्वारा शारीरिक कष्ट का कारण बनता हैं। दूसरे रूप में जीवनसाथी के जीवनकाल पर बुरा असर डालता हैं। सातवें घर का मंगल पत्नी-पति के सुख को नष्ट करता हैं और परिवार कुटुम्ब के सदस्यों के सुख पर अपना असर करेगा। सातवें घर में बैठा मंगल की चौथी दृष्टि दशवें घर पर, सातवीं दृष्टि पहले घर पर और आठवीं दृष्टि दूजे घर पर पड़ती हैं, जिसके फलस्वरूप जीवनसाथी के साथ बिना वजह क्लेश, मनमुटाव, मिजाज में उग्रता, बोली में कटुता, उग्रता और बिना वजह हर समय गुस्सा भरा रहना आदि नतीजे प्राप्त होते हैं।



4.चतुर्थ भाव में मंगल की स्थिति होने पर:-चौथे भाव में मंगल के बैठे होने पर जातक के परिवार में माता-पिता, भाई-बन्धुओं एवं जीवनसाथी के साथ मधुर सम्बन्ध नहीं रह पाते हैं, जिससे परिवार में बिना वजह मनमुटाव व टकराव के कारण से निवास स्थान में अशांति की वजह बनती हैं और पारिवारिक सुख में कमी महसूस होती हैं। चौथे घर में बैठा हुआ मंगल अपनी पूर्ण दृष्टि के द्वारा सातवें घर, दसवें घर और ग्यारहवें घर को देखता हैं। जब सातवें घर पर चौथी दृष्टि मंगल की पड़ने से पति-पत्नी के बीच सम्बन्धों में कटुता जन्म ले लेती हैं, जिससे उनके बीच में आये-दिन छोटी-छोटी बातों पर बहस होने लगती हैं और सास-श्वसुर के दखलंदाजी एवं पारिवारिक कारणों की वजह से उनमें झगड़ा बना रहता हैं। दशवें घर पर मंगल की सातवीं दृष्टि पड़ने से जातक के पिता के साथ जीवनसाथी की वजह से सम्बन्धों में कटुता एवं मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं। इन सभी वजहों से जातक की आमदनी पर असर पड़ता हैं, मंगल की आठवीं दृष्टि ग्यारहवें घर पर होने स्पष्ट रूप दिखाई पड़ता हैं। 




5.अष्टम भाव में मंगल की स्थिति होने पर:-आठवें भाव में मंगल का किसी भी जातक की जन्मकुण्डली में बैठना बहुत अधिक दोषपूर्ण माना जाता हैं। लड़की की जन्मकुण्डली में यह विशेषरूप से दोषकारक है, क्योंकि लड़की की जन्मकुण्डली में आठवां घर सुहाग या सौभाग्य का भाव है।  मंगल आठवें भाव में बैठा होने पर पति के लिए मारक बनता है। आठवें भाव में बैठा हुआ मंगल दूजी घर को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तो जातक या जातिका की बोली में कटुता व उग्रता होती है, जिससे कारण जीवनसाथी के साथ जीवनभर झगड़ा, जीवनसाथी के विवाह के बाद दूसरी औरत-आदमियों से सहवास सम्बन्ध, कम पुत्र-पुत्री, भाई-बहनों, उम्र और सहवास सुख को अपने असर में लेकर प्रभावित करता हैं। 





6.द्वादश भाव में मंगल की स्थिति होने पर:-बारहवें घर में मंगल का किसी भी जातक की जन्मकुण्डली में बैठना बहुत अधिक दोषपूर्ण माना जाता हैं। क्योंकि बारहवां घर सहवास के लिए बिस्तर आराम का होता हैं, बारहवें घर में बैठकर मंगल पति-पत्नी के दाम्पत्य जीवन में सहवास सुख पर असर करके दाम्पत्य जीवन को प्रभावित करता हैं। बारहवें घर में बैठा मंगल सातवें घर पर पूरी तरह से देखता हैं, जिसके कारण पति-पत्नी के बीच वैचारिक मतभेद करवाकर तनाव के हालात को उत्पन्न करवाता हैं और पति-पत्नी के बीच के सम्बन्धों में उनके परिवार के सदस्यों की दखलंदाजी होती हैं।



अतः इन जगहों में मंगल की एवं अन्य क्रूर ग्रहों जैसे-सूर्य, शनि, राहु-केतु की दशा नेष्ट मानी गई है। आठवें और सातवें घर में बैठा मंगल का दोष तो बहुत ज्यादा असर करने वाले होता है।




विशेष:-औरतों में सहवास या विषय भोग की सोच का जुड़ाव मंगल से और आदमियों का शुक्र से होता हैं। मंगल का वर्ण लाल या खून के रंग के समान और शुक्र का वर्ण श्वेत रंग की तरह होता हैं। अतः जब मंगल और शुक्र अच्छे भाव में अच्छे ग्रहों के साथ बैठे और अच्छे ग्रहों के द्वारा देखा जाता हैं, तब जन्म लेने वाली सन्तान हष्ट-पुष्ट होती हैं। 



◆मंगल ग्रह शनि की मकर राशि में उच्च राशि का होता हैं और शुक्र ग्रह गुरु की मीन राशि में उच्च राशि का होता हैं।



मंगली दोष या मांगलिक दोष के प्रकार:-जिस लड़की-औरत की जन्मकुंडली में मंगल ग्रह से बनने वाला मंगली योग होता है, उस जन्मकुंडली पर बहुत गहनता से मनन-चिंतन करना बहुत जरूरी होता हैं। इसलिए मंगली योग तीन प्रकार की श्रेणियां हैं-


1.प्रथम उग्र मांगलिक योग:-


2.द्वितीय सामान्य मांगलिक योग।


3.तीसरा सौम्य मांगलिक योग।


1.प्रथम उग्र मांगलिक योग:-जब किसी भी जातक या जातिका की जन्मकुंडली में कर्क नीच राशि में मंगल बैठा तथा राहु अथवा केतु के साथ बैठा हो या राहु अथवा केतु की पूर्ण दृष्टि पड़ रही हो, तो बनने वाला योग 'उग्र मांगलिक योग' कहलाता हैं।



2.द्वितीय सामान्य मांगलिक योग:-जब किसी भी जातक या जातिका की जन्मकुंडली में मंगल साधारण हालात में पहले, चौथे, सातवें, आठवें एवं बारहवें घर में हो, तब यह योग द्वितीय सामान्य श्रेणी का मांगलिक योग कहलाता है।



3.तीसरा सौम्य मांगलिक योग:-जब किसी भी जातक या जातिका की जन्मकुंडली में मंगल के साथ बृहस्पति बैठा हो या बृहस्पति के द्वारा पूर्ण दृष्टि पड़ रही हो, तो बनने वाला योग 'सौम्य मांगलिक योग' कहलाता हैं।



ऊपर बताये गई तीन श्रेणियों के मंगली योग में से केवल 'उग्र मांगलिक योग' ही दाम्पत्य जीवन में पति-पत्नी के लिए रुकावट देने वाला होता हैं।



मंगल दोष के प्रकार:-मंगल दोष के बुरे असर या दुष्प्रभावों के आधार पर इसे दो भागों में विभक्त किया गया है:



1.सामान्य या आंशिक मंगलदोष:-यदि किसी भी जातक या जातिका की जन्मकुण्डली के पहले, दूजे, चौथे अथवा बारहवें घर या भाव में मंगल ग्रह बैठा हो, तो सामान्य मंगलदोष बनता हैं। इसका असर पति-पत्नी के दाम्पत्य जीवन में सुख में कमी उत्पन्न करता हैं।



2.घातक या विघटनकारी या मुख्य मंगलदोष:-यदि किसी भी जातक या जातिका की जन्मकुण्डली के सातवें और आठवें घर या भाव में मंगल ग्रह बैठा हो, तो मंगलदोष घातक या विघटनकारी मंगलदोष माना जाता है। मंगलदोष पति-पत्नी के लिए बहुत ही जीवन में उथल-पुथल करके दाम्पत्य जीवन के सुख में बाधा उत्पन्न करता हैं, जिसके परिणामस्वरूप पति-पत्नी के गृहस्थी जीवन में टकराव व मतभेद करके उनको अलग भी करने वाला होता है। 


ऊपर बताये गये मांगलिक दोष का निवारण जातक-जातिका के द्वारा भलाई एवं अच्छे कार्यों को करते रहने पर हो जाता हैं। लेकिन फलित ज्योतिष के अनुसार मांगलिक दोष एक मामूली बुरा व हानिकर घटित होने वाली घटना हैं।



मंगलदोष के परिहार शास्त्रोक्त विवरण के आधार पर:-कुण्डली मेलापन की दृष्टि से यदि निम्नलिखित परिस्थितियाँ हो, तो मंगलदोष परिहार होता है:


1.जब लड़के और लड़की दोनों की जन्मकुण्डली में मंगलदोष हो, तो उन दोनों का विवाह कराना मंगलकारी होता हैं।



2.जब लड़के और लड़की दोनों के नक्षत्र-राशि मेलापन में गुणों की अधिकता हो, तो मंगलदोष होने पर विवाह कराने पर किसी भी तरह से नुकसान नहीं होता हैं।


3.जब लड़की-औरत की जन्मकुण्डली के पहले, चौथे, पांचवें, सातवें, नवें या दशवें घर में बृहस्पति बैठे हो, तो मंगली दोष का किसी भी तरह का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता हैं।



4.जब लड़की-औरत की जन्मकुण्डली के सातवें और आठवें घर में शुभ ग्रह जैसे-पूर्ण बली चन्द्रमा, बुध, बृहस्पति, शुक्र आदि बैठे हो, तो मंगली दोष का किसी भी तरह का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता हैं।



5.जब लड़की-औरत और लड़का-आदमी की जन्मकुण्डली के आधार पर प्राप्त होने वाली राशियों के स्वामी में मित्रता हो, अष्टकूट गुण मिलान करने पर चौबीस गुण अथवा इससे अधिक गुण प्राप्त होते हैं, तब मंगली दोष का किसी भी तरह से असर नहीं होता हैं। 


6.नारद संहिता के अनुसार:-लड़की-औरत की जन्मकुण्डली के आठवें घर को इन्द्रिय सुख की चाहत का घर कहा गया हैं।


जब आठवें घर में अच्छे व मंगलकारक ग्रह जैसे-पूर्ण बली चन्द्रमा, बुध, बृहस्पति, शुक्र आदि का असर रहता हैं, तब लड़की-औरत को पूर्ण पति सुख की प्राप्ति होती हैं।



शर्त यह है कि दोष क्यों न हो, बृहस्पति को लड़की-औरत के जीवन में पति सुख का कारक माना जाता है तथा पति के सुख का स्थान नवें घर से जाना जाता हैं और पति की लंबी उम्र दूजे घर को माना गया है। इस वजह से आठवें, नवें व दूजे घरों के अच्छे प्रभाव में होने पर मंगली दोष का निवारण अपने आप ही हो जाता हैं।


ब्रह्मवादिनी योग:-जब जातक या जातिका की जन्मकुण्डली में वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन आदि सम राशियों में लग्न, चन्द्रमा और बृहस्पति तीनों बैठे हो, तो ब्रह्मवादिनी योग बनता हैं। ब्रह्मवादिनी योग के असर से कोमल मिजाज, सभी बढ़िया गुणों से विकसित एवं खुशहाली जीवन में रहेगी, तब मांगलिक दोष का क्या बुरा असर पड़ेगा।



इन सभी बातों पर गहनता से चिंतन-मनन सभी जानकर विद्वान ज्योतिषचार्यों द्वारा किया जाना जरूरी है, क्योंकि मंगल जातक या जातिका के जीवनकाल में उनके मिजाज, सामर्थ्य और चाल-चलन आदि पर सबसे ज्यादा असर डालने वाला ग्रह हैं। साथ ही मंगल रक्त का कारक होने से इन्द्रिय सुख की इच्छा में जागृति उत्पन्न करने की सोच में मददगार होता हैं। इन्हीं वास्तविकता के आधार पर मंगल के हिंसक व्यवहार और सौम्य या कोमलता के लिए गहराई से चिंतन-मनन करके ही मांगलिक दोष बतलाना चाहिए।





मांगलिक दोष कब नहीं होता देखें:-निम्नलिखित हालात हैं।



1.लड़के-आदमी की जन्मकुण्डली में मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें घरों में से किसी भी घर में हो और लड़की-औरत की जन्मकुण्डली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें घरों में से किसी भी घर में यदि शनि, राहु या सूर्य बैठा हो, तो मंगल का मिलान हो जाता हैं। इस तरह के मिलान होने पर विवाह करने पर किसी भी तरह का कष्ट नहीं होता हैं और सभी तरह की शंका का समाधान हो जाता हैं। 



2.लड़की-औरत की जन्मकुण्डली में मंगल, शनि अथवा कोई भी पापी व बुरे असर डालने वाले ग्रह जैसे-राहु-केतु, सूर्य पहले, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें घरों में से किसी भी घर में हो और लड़के-आदमी की जन्मकुण्डली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें घरों में से किसी भी घर में यदि सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु बैठा हो, तो भौमदोष समाप्त हो जाता हैं। 



3.किसी एक जन्मकुण्डली में मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें घरों में से किसी भी घर में हो और किसी दूसरे की जन्मकुण्डली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें घरों में से किसी भी घर में यदि शनि बैठा हो, तो भौमदोष समाप्त हो जाता हैं। 


4.जब लड़के-आदमी और लड़की-औरत की जन्मकुण्डली के तीजे, छठे, ग्यारहवें घरों में कोई बुरा व पापी ग्रह जैसे-सूर्य, मंगल, शनि, राहु-केतु हो और पहले, चौथे, सातवें, दशवें एवं पांचवें, नवें घर में से किसी भी घर में अच्छे व शुभ ग्रह जैसे-चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र में से कोई भी ग्रह हो और सातवें घर का स्वामी सातवें घर में बैठा हो, तो मंगलदोष नहीं रहता हैं।



5.जब लड़के-आदमी और लड़की-औरत की जन्मकुण्डली में गुरु एवं शनि ग्रह अच्छे भाव, अच्छे ग्रह के साथ एवं अच्छे ग्रह की दृष्टि से बलवान हो, चाहे पहले, चौथे, सातवें, दशवें एवं पांचवें, नवें घर में से किसी भी घर में अच्छे व शुभ ग्रह जैसे-चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र में से कोई भी ग्रह क्यों नहीं हो और सातवें घर का स्वामी सातवें घर में क्यों नहीं बैठा हो, तो मंगलदोष नहीं रहता हैं।




6.लड़की-औरत की जन्मकुण्डली में गुरु यदि पहले, चौथे, पाँचवें, सातवें, नवें, दसवें घरों मंगल हो, चाहे वक्री या नीच राशि में अथवा सूर्य की राशि में स्थित हो, तो मांगलिक दोष नहीं लगता, अपितु वह सभी तरह के आराम और वैभव-समृद्धि में बढ़ोतरी करने वाला होता है।



7.लड़के-आदमी और लड़की-औरत की जन्मकुण्डली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें घरों में मंगल जन्म व लग्न से एवं शुक्र लग्न से हो (दोनों के ऐसा होने पर) तो पति-पत्नी लंबे समय के जीवनकाल को भोगते हैं और पुत्र सन्तान और सभी तरह के ऐशो-आराम के साथ रुपये-पैसों को प्राप्त करते है।




8.जब किसी की भी जन्मकुण्डली के किसी भी घर में मंगल के साथ गुरु बैठा हो अथवा चन्द्रमा के साथ मंगल बैठा हो अथवा पहले, चौथे, सातवें, दशवें घर में से किसी भी घर में चन्द्र बैठा हो, तो मांगलिक दोष नहीं होता हैं।



9.जब एक जन्मकुण्डली के तीजे, छठे, ग्यारहवें घरों में राहु, मंगल या शनि में से कोई भी ग्रह दूसरी जन्मकुण्डली में बैठा हो, तो भौमदोष समाप्त हो जाता हैं।




10.जब जन्मकुण्डली में चन्द्र, बुध या गुरु में से एक भी ग्रह एक साथ एक ही घर में मंगल के साथ बैठा हो, तो भौमदोष स्वतः ही समाप्त हो जाता हैं, लेकिन इस युति में चन्द्र एवं शुक्र ग्रह के बल को जरूर देखना चाहिए।



7.मंगलदोष की समाप्ति:-जन्म कुण्डली में 1, 4, 7, 8, 12 वें दोषोक्त भावों में मंगल की स्थिति होने पर भी आधुनिक ज्योतिर्विदों की मान्यता है कि निम्नलिखित स्थितियों में से एक या अधिक स्थितियाँ होने पर मंगलदोष समाप्त हो जाता है:



(क)मंगल की राशिगत स्थिति के आधार पर मंगलदोष की समाप्ति:-विभिन्न राशियों में मंगल की स्थिति दोष का नाश करने वाली होती है। इस सम्बन्ध में वर्तमान में निम्नलिखित नियम एवं उपनियम प्रचलित है:




1.यदि जन्मकुण्डली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें भावों में से मंगल चर राशियों (मेष, कर्क, तुला, मकर) में से किसी भी राशि में बैठा हो, तो मंगलदोष नहीं होता हैं।



2.यदि जन्म कुण्डली में मंगल स्वराशि मेष, वृश्चिक या उच्च राशि मकर का स्थित हो अथवा नवांश में वह स्वराशि या उच्च राशि का हो, तो मंगलदोष समाप्त हो जाता है।



3.कतिपय विद्वानों की मान्यता है कि यदि मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें भावों में से किसी भी भाव में स्थित हो, मंगल स्थित भाव में अपने मित्र ग्रह सूर्य की सिंह, चन्द्रमा की कर्क और गुरु की धनु व मीन राशियों में बैठा हो, तो भी मंगल दोषकारक नहीं होता है।



4.जब जन्मकुण्डली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें भावों में मंगल वक्री, कर्क राशि में नीच का होकर, सूर्य के साथ अस्त होकर एवं अपनी शत्रुराशि मिथुन एवं कन्या बुध राशियों में बैठा हो, तो भी मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता है। लेकिन मंगल के बलवान होने पर ही मंगलदोषपूर्ण और कमजोर होने पर मंगलदोष रहित होता हैं।




5.निम्नलिखित स्थितियों में:-मंगलदोष समाप्त हो जाता हैं:


१.जब जन्मकुण्डली के पहले घर में मंगल अपनी मेष स्वराशि में बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।


२.जब जन्मकुण्डली के चौथे घर में मंगल अपनी वृश्चिक स्वराशि में बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।



३.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में मंगल अपनी मकर उच्च राशि में या वृषभ समराशि बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।



४.जब जन्मकुण्डली के आठवें घर में मंगल अपनी कर्क नीच राशि में या कुंभ समराशि बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।



५.जब जन्मकुण्डली के बारहवें घर में मंगल अपने मित्र की धनु राशि बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।



6.निम्नलिखित स्थितियों में:-मंगलदोष समाप्त हो जाता हैं:



१.जन्मकुण्डली के दूजे, चौथे, सातवें एवं बारहवें भाव में से किसी भी भाव में मंगल यदि सिंह व कुम्भ राशि में बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।



◆जन्मकुण्डली के दूजे भाव में मंगल यदि सिंह व कुम्भ समराशि का होकर बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।



◆जन्मकुण्डली के चौथे,भाव में मंगल यदि सिंह व कुम्भ समराशि का होकर बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।



◆जन्मकुण्डली के सातवें भाव में मंगल यदि सिंह व कुम्भ समराशि होकर बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।



◆जन्मकुण्डली के बारहवें भाव में मंगल यदि सिंह व कुम्भ समराशि होकर बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।



२.जब जन्मकुण्डली के दूजे भाव में बुध की स्वराशियां मिथुन व कन्या राशि का होकर बैठा हो, तो  मंगलदोष का प्रभाव समाप्त हो जाता हैं। ऐसा वृषभ व सिंह लग्न में सम्भव है।



३.जब जन्मकुण्डली के चौथे घर में मंगल अपनी मेष व वृश्चिक स्वराशि का होकर बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।



४.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में मंगल अपनी उच्च मकर एवं अपनी कर्क नीच राशि का होकर बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।



५.जब जन्मकुण्डली के आठवें घर में मंगल अपने मित्र गुरु की स्वराशियों धनु व मीन का होकर बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं। ऐसा वृषभ लग्न और सिंह लग्न में होगा।



६.जब जन्मकुण्डली के बारहवें घर में मंगल शुक्र की राशियों वृषभ, तुला का होकर बैठा हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता हैं।




अर्थात्:-इस प्रकार अलग-अलग घरों में मंगल  स्व, उच्च-नीच, बुध, गुरु एवं शुक्र की राशियों में स्थित होने पर मंगलदोष समाप्त हो जाता हैं।



७.जब जन्मकुण्डली के चौथे घर में मंगल शुक्र की राशियों में वृषभ-तुला राशि का मंगल दोषकृत नहीं है। ऐसा कर्क और कुम्भ लग्न में होगा।



बारहवें घर में बुध की राशियों में मिथुन-कन्या होकर बैठा हो, तो मंगलदोष कारक नहीं होता हैं। ऐसा कर्क और तुला लग्नों में होगा।



ऊपर बताये गये ७ नियमों (मंगल की गुरु की राशियों धनु व मीन राशियां में स्थिति को छोड़कर) को लागू करते हैं। 



बारह लग्नों में मंगलदोष को खारिज करने वाले:-हालात भावानुसार निम्नलिखित प्रकार से हैं: 


(a)बारह लग्नों में कुल बहत्तर स्थितियों में मंगल की मौजूदगी में 'मंगलदोष' का निर्माण करती हैं, परन्तु उनमें से साठ दशाओं में मंगलदोष खारिज हो जाता हैं, केवल बारह दशाओं में ही मंगल दोषकारक होता हैं।




(b)बारह लग्नों में से केवल मेष लग्न को छोड़कर बारहवें भाव में मंगल दोषकारक नहीं हैं।



(c)बारह लग्नों में से तुला लग्न को छोड़कर आठवें भाव में भी मंगल दोषकारक नहीं हैं।



(d) बारह लग्नों में से मिथुन एवं कन्या लग्नों में ही सातवें घर मंगल दोषकारक होता हैं, दूसरे लग्नों में दोषकारक नहीं होता हैं।


 

(e)बारह लग्नों में से मिथुन, कन्या एवं वृश्चिक लग्नों में ही चौथे घर मंगल दोषकारक होता हैं, दूसरे लग्नों में दोषकारक नहीं होता हैं।



(f)बारह लग्नों में से वृषभ, धनु एवं मीन लग्नों में ही दूजे घर मंगल दोषकारक होता हैं, दूसरे लग्नों में दोषकारक नहीं होता हैं।



(g)बारह लग्नों में से वृषभ, धनु एवं मीन लग्नों में ही पहले घर मंगल दोषकारक होता हैं।



(h)किसी भी भाव में मंगलदोष नहीं बनना:-बारह लग्नों में से कर्क, सिंह एवं मकर लग्न के लिए मंगल किसी भी भाव में मंगलदोष का निर्माण नहीं करता है। इस प्रकार इन लग्नों में मंगलदोष अपने आप ही निरस्त हो जाता हैं। कर्क और सिंह लग्न के लिए तो वह योगकारक है।



(i)एक-एक भाव में मंगलदोष बनना:-वृषभ, मिथुन, तुला, वृश्चिक, कुम्भ एवं मीन लग्न के लिए मंगल एक-एक भाव में ही दोषकारक होता हैं।



(j)केवल दो भावों में मंगलदोष बनना:-मेष, कन्या, धनु लग्नों में दोषोक्त भावों में से केवल दो भावों में ही मंगल दोषकारक होता है, अन्य भावों में नहीं।



(k)किसी भी लग्न में लग्न तीजे, चौथे, पांचवें या छठे भावों में दोषकारक नहीं होता हैं।



८.जब जन्मकुण्डली में विंशोत्तरीदशानुसार केतु के नक्षत्र जैसे-अश्विनी, मघा या मूल नक्षत्र में दोषकारक मंगल स्थित होता हैं,  पहले के ऊपर बताये नियम ii के आधार पर अपने आप ही मंगलदोष से रहित है। 


जब जन्मकुण्डली में दोषकारक मंगल सिंह राशि में होगा, तो वह केतु के मघा नक्षत्र में होने से पहले के ऊपर बताये नियम iii के अनुसार अपने आप ही दोष रहित मानी जाती है। 



इसी तरह मूल नक्षत्र धनु राशि का होता है। जब धनु राशि में तेरह अंश बीस कला तक मंगल दोषरहित होता हैं।



९.यदि जन्मकुण्डली में मंगल शुक्र वृषभ या तुला राशि में हो और सातवें घर का स्वामी बलवान होकर पहले, चौथे, सातवें, दशवें या पांचवें, नवें घर हो, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता है।



(ख)ग्रहों की युति या दृष्टि या अन्य सम्बन्धों के आधार पर मंगलदोष की समाप्ति:-जब जन्मकुण्डली में जिस घर में मंगल बैठा हो, तब मंगल दूसरे ग्रहों के साथ युति, दृष्टि आदि के द्वारा योग करता हैं, तब मंगल ग्रह से बनने वाले मंगलदोष के असर को खारिज करने के नियम व्यवहार में प्रचलित हैं, जिनको तीन वर्गों में विभक्त कर स्पष्ट किया जा रहा है।




१.युति के आधार पर मंगलदोष की समाप्ति:-यदि जन्मकुण्डली में मंगल चन्द्रमा, गुरु, बुध, शुक्र राहु में से किसी एक या अधिक ग्रह के साथ पहले, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें भावों में एक साथ बैठकर सम्बन्ध बनाता है, तो मंगलदोष समाप्त हो जाता हैं।




बृहत्पाराशर होराशास्त्र के श्लोक (८२/४७-४८) की  मान्यता:-के अनुसार जब मंगल ग्रह शुभ ग्रहों जैसे-चन्द्रमा, गुरु, बुध, शुक्र से यौन करें या इनके द्वारा पूर्ण दृष्टि से देखा जाता हैं, तब मंगलदोष घातक नहीं होता है।



२.दृष्टि के आधार पर मंगलदोष की समाप्ति:-यदि जन्मकुण्डली में दोषकारक मंगल पर शुभ ग्रह जैसे-बुध, गुरु, शुक्र और पक्षबली चन्द्रमा आदि में से किसी के द्वारा पूर्ण दृष्टि से देखा जाता हैं, तब मंगलदोष समाप्त हो जाता है।




(ग)अन्य ग्रहों की स्थिति के आधार पर मंगल दोष की समाप्ति:-यदि जातक की कुण्डली में मंगलदोष विद्यमान हो, लेकिन साथ ही निम्नलिखित में से एक या अधिक हालात बन रहे हों, तो मंगलदोष समाप्त हो जाता है:



१.यदि मंगल पहले, दूजे, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें पंचभावों में बैठा हो और चन्द्रमा, गुरु या बुध लग्नकुण्डली के पहले घर में बैठे हों अथवा चन्द्रमा, बुध या गुरु पहले घर को देखते हों, तोव मंगलदोष का ख्याल नहीं करना चाहिए अर्थात् मंगलदोष समाप्त हो जाता है।



२.यदि जातक या जातिका की जन्मकुंडली में मंगलदोष हो, लेकिन पहले या सातवें घर में बृहस्पति या शुक्र ग्रह में से कोई भी ग्रह बैठा हो, तो मंगलदोष समाप्त हो जाता हैं।




३.यदि जातक या जातिका की जन्मकुण्डली के केन्द्र भावों पहले, चौथे, सातवें एवं दशवें घर में चन्द्रमा बैठा हो, तो मंगलदोष नहीं होता हैं। इस आधार पर चन्द्रकुण्डली के अनुसार पहले, चौथे, सातवें भाव में मंगल की स्थिति के अनुसार बनने वाले मंगलदोष अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। 



४.यदि जातक या जातिका की जन्मकुण्डली में मंगलदोष है, तो उस जन्मकुण्डली में मंगल जिस राशि में बैठा है, उस राशि का मालिक यदि लग्न या चन्द्रमा से पहले, चौथे, सातवें एवं दशवें या पांचवें, नवें घरों में बैठा होता है, तो मंगलदोष समाप्त हो जाता है।



उदाहरण के लिए:-किसी भी जातक या जातिका की जन्मकुण्डली के पहले भाव में कन्या राशि का लग्न हैं, कन्या लग्न राशि में मंगल बैठा हैं, छठे घर में कन्या राशि का स्वामी बुध एवं चन्द्रमा एक साथ बैठे हो, तो ऐसे हालात में मंगलदोष का असर खत्म हो जाएगा, क्योंकि मंगल स्थित राशि का स्वामी बुध चन्द्रमा से केन्द्र भाव में स्थित है।



५.जब लड़की या औरत की जन्मकुण्डली में मंगल दोष बन रहा हो और जन्मकुण्डली में गुरु पहले, चौथे, सातवें, दशवें अथवा पांचवें, नवें घर में से किसी भी घर में बैठा हो, तो मंगलदोष का प्रभाव खत्म हो जाता है।



६.जब जन्मकुण्डली में चन्द्र एवं शुक्र दूजे घर में बैठे हों, तो मंगलदोष का असर समाप्त हो जाता है।



७.जब लड़की-औरत और लड़के-आदमी की जन्मकुण्डली में मंगल दोष बन रहा हो और जन्मकुण्डली में पहले, चौथे, सातवें, दशवें और पांचवें, नवें घर में बली चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र ग्रह बैठा हो, तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में बुरे व पापी ग्रह जैसे-सूर्य, शनि, राहु-केतु बैठे हो और सातवें घर का स्वामी सातवें घर में हो, तो मंगलदोष का प्रभाव खत्म हो जाता है।




(घ)मंगल की स्थिति के आधार पर मंगलदोष की समाप्ति:-मंगल के बली और निर्बल अवस्था के अनुसार निम्नलिखित प्रकार से होती हैं।


◆जब जन्मकुण्डली के पहले, दूजे, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें में से किसी भी भाव में मंगल बैठा होता हैं, वह यदि किसी भी तरह मजबूत हालात में होता हैं, तब मंगलदोष कारक होता हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पहले, दूजे, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें में से किसी भी भाव में मंगल बैठा होता हैं, वह यदि किसी भी तरह पापी व बुरे ग्रहों के असर में होकर कमजोर हालात में होता हैं, तब मंगलदोष कारक नहीं होता हैं।



◆जब जन्मकुण्डली में पक्षबली चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र ग्रह के द्वारा मंगल स्थित घर पर दृष्टि पड़ती हैं अथवा सूर्य ग्रह के साथ बैठकर अंशों के आधार पर मंगल के अस्त होने पर मंगलदोष की समाप्ति होती हैं।




(ङ)अवस्था के आधार पर मंगलदोष की समाप्ति:-लोक-रीति में चलन हैं, की मंगल ग्रह से बनने वाले मंगलदोष का असर जातक या जातिका के जीवनकाल में अठाईस वर्ष की उम्र तक होता हैं। जिन जातिका या जातक की जन्मकुण्डली में मंगलदोष होता हैं, उनको उनकी अठाईस वर्ष की उम्र तक विवाह नहीं करना चाहिए, अठाईस वर्ष की उम्र बीतने के बाद यदि विवाह करते हैं, तो मंगलदोष के बारे में ख्याल नहीं करना चाहिए।



लेकिन बहुत सारे जानकर अनुभवी विद्वानों के मतानुसार:-जातक या जातिका की अठाईस वर्ष की उम्र बीतने के बाद भी मंगलदोष का असर कम जरूर हो जाता हैं, लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं होता हैं।





निष्कर्ष:-जिस तरह से पुराने समय में मंगलदोष के असर बताया गया हैं, उससे भी ज्यादा आधुनिक ज्योतिष में पति-पत्नी के जीवन के लिए बहुत ही घातक बताया जाता हैं, लेकिन मंगलदोष के असर को कम करने के बहुत सारे परिहार भी हैं।



राशिगत स्थिति के आधार:-राशिगत हालात के आधार मंगलदोष बहत्तर प्रकार के बनते हैं, उनमें से साठ स्थानों पर बनने वाले मंगलदोष स्वतः ही खत्म हो जाते हैं। 



यदि एस.नटराजन के मत:-को मानते हैं, तो अपने मित्रग्रह की राशि में बैठा मंगल ग्रह दोषकारक नहीं माना जाए, तो गुरु की स्वराशियों धनु और मीन में भी मंगल दोषकारक नहीं रहेगा। इस प्रकार मंगल नौ और जगहों पर भी दोषकारक नहीं होगा। अब वह बहत्तर कुल जगहों में से केवल तीन जगहों में दोषकारक रहेगा। यह एक उपहासमात्र हालात हैं कि शुरुआत में मंगलदोष योग को पति और पत्नी के लिए नाश करने वाला माना गया और बाद में अनेक खण्डन के द्वारा निराकरण करके उसके समाप्त करते हुए केवल तीन जगहों पर ही दोषकारक माना गया। ये तीन स्थान भी वृषभ राशि के हैं। वृषभ राशि का स्वामी शुक्र यदि लग्न या चन्द्रमा से केन्द्र या त्रिकोण भावों (पहले, चौथे, पांचवें, सातवें, नवें, दशवें भावों) में हो (जिसके होने की सम्भावना काफी अधिक है), तो नियम के आधार पर-जब लड़की या औरत की जन्मकुण्डली में मंगल दोष बन रहा हो और जन्मकुण्डली में गुरु पहले, चौथे, सातवें, दशवें अथवा पांचवें, नवें घर में से किसी भी घर में बैठा हो, तो मंगलदोष का प्रभाव खत्म हो जाता है। 




◆इसके अतिरिक्त मंगल के साथ शुभ ग्रहों (पक्षबली चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र) के बैठने या उनकर द्वारा देखने आदि परिहारों से भी मंगलदोष पूरी तरह से नष्ट होने के आसार रहते हैं। किसी कारण से ऊपर के तीन जगहों पर खारिज नहीं होने पर भी जीवन भर साथ निभाने वाले पति-पत्नी की जन्मकुण्डली के लग्न या चन्द्रमा से पहले, दूजे, चौथे, सातवें, आठवें, दशवें घरों में बुरे व पाप असर डालने ग्रह जैसे-सूर्य, शनि, राहु, केतु अथवा तीजे, छठे, ग्यारहवें घरों शनि अथवा राहु के बैठे होने से मंगलीदोष का मिलान हो जाता है। इस प्रकार निराकरण के चलते मंगलदोष एक बेकार का कोशिश है, अतः इस योग की घातकता एवं परिहार दोनों का दुबारा जांच करना जरूरी हैं।




मंगली दोष निवारण के मुख्य उपाय:-निम्नलिखित हैं:



◆परिवार एवं समाज के अपने से बड़ी उम्र वाले पैर को छूकर उनसे आशीष लेना चाहिये।


◆परिवार-कुटुम्ब के बहन-बेटी को चीनी या गुड़ से बने हुए खाने वाली चीजों को सौगात में देना चाहिए।



◆अविवाहित लड़की या बेटी को मान-सम्मान देते हुए उनका हर तरह से देखभाल करनी चाहिए। हरित वर्ण के कपड़े और उनकी पसन्द का भोजन देकर उनको खुश करना चाहिए।



◆पति या पत्नी के माता-पिता के निवास स्थान पर उनसे मधुरता से सम्बन्ध बनाकर हमेशा रखने चाहिए।



◆अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलजुल रहते हुए उनका उचित रूप से पालन-पोषण करना चाहिए।



◆किसी भी दूसरे मनुष्य को कष्ट पहुँचाकर सुखी रहने की सोच नहीं रखनी चाहिए।



◆जो मनुष्य लँगड़ा-लूला हो उनकी अपने सामर्थ्य के अनुसार मदद जैसे-उनकी बीमारी में, खाना देना आदि करनी चाहिए।



◆मनुष्य को बिना कोशिश से जो भी वस्तु मिलने पर उसे नहीं लेना चाहिये। 



◆किसी भी जीव हत्या स्वरूप उनके मांस को भक्षण में ग्रहण नहीं करना चाहिए, जैसे-शफरी, ताम्रचूड़, छाग आदि।



◆मनुष्य को नशे वाले तरल द्रव्य जैसे-दारू, अफीम, गाँजा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।



◆जिस मनुष्य दम्पत्ति के बेटी-बेटा नहीं हो, उनके धन-दौलत आदि को किसी भी हालत में नहीं छीनना चाहिए।



◆मनुष्यों को साफ व धुले हुए कपड़ों को पहनना चाहिए।



◆मनुष्यों को अपनी नासिका का विशेष रूप से ध्यान जैसे-उसकी नियमित सफाई रखनी चाहिए।



◆मनुष्य को मिथ्या बात नहीं करनी चाहिए और किसी दूसरे के विरुद्ध में असत्य बात पर साक्षी नहीं बनना चाहिए।



◆जातक या जातिका को अपनी नासिका और श्रुतिपटल आदि में जरूर सुराख करवाना चाहिए।  



◆जातक या जातिका को अपने मुखखुर की नियमित रूप से सफाई कीकर की टहनी से करनी चाहिए।



◆गंजे तथा काने काने व्यक्ति से सदा सतर्क रहें, क्योंकि ऐसा आदमी धोखा दे सकता है।



◆जिन जातक या जातिका के सिर बाल झड़ रहे और आँख खराब या एक आँख से विकृत हो, उनसे सदैव सजग रहना चाहिए।



◆जातक या जातिका दूसरों को गुस्से में आकर दुर्वचन और गलत भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।



◆निवास स्थान की छाजन में किसी भी तरह का सुराग नहीं होना चाहिए।



◆मनुष्य के द्वारा धेनु, श्वान और कपि आदि जीवों को जरूर खाने के लिए खाना देना चाहिए।



◆मनुष्य कपि को पालें अर्थात् उनकी भोजन, बीमारी में देखभाल करें।


◆मिट्टी से बनी हुई भट्टी पर मीठी रोटी बनाकर श्वानों को खिलाना चाहिए।


◆मनुष्य को मंदिर परिसर में मीठा भोजन बनाकर गरीब या असहाय को बाँटना चाहिए।


◆मनुष्य को अपने शरीर वजन के हिसाब से शरीर के वजन का चौथे भाग की मात्रा में शर्करा लेकर बहते हुए पानी के स्त्रोत में बहाना चाहिए।


◆मनुष्य को अपने शरीर वजन के हिसाब से शरीर के वजन का चौथे भाग की मात्रा में मधु या हिंगुल लेकर बहते हुए पानी के स्त्रोत में बहाना चाहिए।



विशेष टोटके:-मंगलदोष से ग्रसित जातक-जातिका को निम्नलिखित विशेष टोटके एवं उपाय करने चाहिए।


◆देवी-देवताओं की भक्ति करते समय अपने मन मन्दिर रखते हुए मन को एक जगह पर स्थिर रखते हुए पूरी तरह से विश्वास एवं आस्था भाव से उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए।  



◆मंगलदोष से बचने के लिए पवनपुत्र हनुमानजी के हनुमान स्तोत्र, हनुमान चालीसा, हनुमान कवच और बजरंग बाण का वांचन करना चाहिए।



◆हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते समय सिंदूर व चमेली के तेल को मिश्रित करके लेप बनाकर उस लेप को मालिपन्ने पर लगाकर हनुमानजी को चोला अपने हाथ से चढ़ाना चाहिए।



◆मंगलदोष से मुक्ति के लिए हनुमानजी को गुड़ व चना मिश्रित प्रसाद चढ़ानी चाहिए।



◆जो जातक-जातिका मंगल ग्रह के बुरे असर से पीड़ित हैं, उनको गायत्री मंत्र, गायत्री कवच, गायत्री स्तोत्र और गायत्री चालीसा का वांचन करना चाहिए। 



◆मंगल ग्रह पीड़ित जातक या जातिका को भगवती दुर्गा माता की आराधना जैसे-दुर्गा पाठ, दुर्गा कवच एवं दुर्गा स्तोत्र के साथ रामायण के सुंदरकांड के पाठ का वांचन करना चाहिए।



◆यदि मंगलदोष से पीड़ित जातक या जातिका का निवास स्थान दक्षिणमुखी हैं, तो उनको अपने निवास स्थान की जगह में गणेशजी, महाकाली या हनुमानजी की तस्वीर लगानी चाहिए।



◆मंगल दोष से पीड़ित का विवाह घट विवाह, कदली वृक्ष या पीपल के वृक्ष के साथ करवाकर बादमें दुबारा किसी लड़के-पुरुष से करवाने पर विवाह सफल रहता हैं।



◆मंगल ग्रह को बल देने के लिए हमेशा अपने पास में लाल रंग रुमाल रखना या बनियान या अंडरगारमेंट्स को पहनना चाहिए। 



◆लड़की-औरत और लड़का-आदमी बिना जोड़ वाला रजत धातु से बना हुआ छल्ला पहनाना चाहिए।



◆लड़की-औरत और लड़का-आदमी को मूंगा रत्न स्वर्ण या ताम्र धातु की अंगूठी में जड़वाकर मंगलवार को धारण करने से मंगलदोष से राहत मिलती हैं।



◆मंगलदोष से पीड़ित आदमी या औरत को अपनी पत्नी या पति को रजत धातु का कड़ा बनवाकर उस पर ताम्र धातु की कील या खूँटी जड़वाकर पहनाना चाहिए।



◆मंगलदोष से पीड़ित आदमी अपनी पत्नी को रजत धातु का कंगण बनवाकर उस पर लाल रंग करवाकर पहनाना चाहिए।



◆मंगल का असर जिन जातक या जातिका के जीवन पर पड़ रहा हैं, वे कही पर कच्ची दीवार बनाकर बनवा कर गिरवा देना चाहिए।



◆यदि सामर्थ्य हो तो अपने निवास स्थान या कार्यालय में खिदमतगार रखना चाहिए।




मंगली-दोष निवारण के लिए सामान्य उपाय एवं टोटके:-निम्नलिखित हैं।



◆जातक या जातिका को हमेशा अपने चाल-चलन को अच्छा रखते हुए अच्छे व शिष्ट व्यवहार को अपने जीवन में अपनाना चाहिए।



◆जातक या जातिका को अपने बड़ी उम्र के भाई की मन से सेवा करनी चाहिए।



◆जातक या जातिका को अपने परिवार-कुटुम्ब के सभी बड़े-उम्र में बूढ़े हैं, उनको मान-सम्मान देते हुए उनकी देखभाल करनी चाहिए। अपने पति या पत्नी, बड़ी तथा छोटी भाभी को मान-सम्मान देते हुए उनका ख्याल रखना चाहिए।



◆मंगलदोष से पीड़ित जातक या जातिका को अपने पति या पत्नी का अच्छी तरह से ख्याल रखना चाहिए और उन्हें सुख-आराम देना चाहिए।



◆अपने रिश्तेदारों जैसे-साली, मौसी, बुआ के निवास स्थान जाते समय मिठाई जैसे-मावा, काजू कतली, बर्फी आदि अपने साथ लेकर जाना चाहिए। 



◆जातक या जातिका को बड़े भाई, ताऊ और मामा को मान-सम्मान देते हुए उनका कहना मानना चाहिए और उनका सभी तरह से ख्याल रखना चाहिए। 



◆जातक या जातिका को अपने भाई की सन्तान जैसे-बेटा-बेटी हो, उनका पालन-पोषण एवं देखभाल करनी चाहिए।



◆मंगलदोष से पीड़ित को मनुष्य को सुबह जल्दी उठकर मधु का उपभोग करना चाहिए।



◆अपने निवास स्थान में गुड़ या शर्करा या मल्लिका आदि के द्वारा कोई भी मीठी वस्तु बनाकर इस्तेमाल खुद करते हुए अन्य को भी खिलाना चाहिए।



◆अपने निवास स्थान पर आने वाले अतिथियों को मीठी वस्तुएं जैसे-वनपुष्पा और चंद्रिका जरूर खिलानी चाहिए।



◆मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए जातक या जातिका को अपने जन्म लेने की तारीख आदि मौके पर मिठाइयां बाँटनी चाहिए।



◆मंगल ग्रह का असर होने पर निवास स्थान में मतंग द्विज या हस्ती दशन से बनी हुई किसी भी तरह की चीज नहीं रखना चाहिए।


◆मनुष्य को आवास की जगह में लोखन से बनी हुई वस्तु व हाथ में पकड़कर चलाये जाने वाले हथियार को नहीं रखना चाहिए।