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Saturday, June 17, 2023

श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् अर्थ सहित और महत्त्व

श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् अर्थ सहित और महत्त्व (Sri Siddhivinayaka Stotram with meaning and importance):-श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् में भगवान गणपति जी के गुणगान के बारे में जानकारी बताई गयी है। तीनों लोक के समस्त देवी-देवताओं में सबसे उनकी पूजा-वन्दना की जाती हैं, उनकी पूजा-वन्दना के बिना कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता हैं। मनुष्यों को अपने जीवनकाल में आने वाली सभी तरह की रुकावटों से बचने के लिए भगवान गणपतिजी सिद्धिविनायक स्तोत्रम् का सहारा लेना चाहिए, जिससे सभी तरह के कार्यों में बिना किसी बाधा के कार्यों में सफलता मिल सकें। भगवान् गणेशजी को खुश करके उनका आशीष पाने हेतु मनुष्यों को नियमित रूप से स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।





Sri Siddhivinayaka Stotram with meaning and importance



श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् अर्थ सहित(Shri Siddh-Vinayaka Stotram with meaning):-भगवान् गणेशजी के श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् का वांचन करने से पूर्व स्तोत्रं के श्लोकों के अर्थ को जानना भी जरूरी हैं, जिससे स्तोत्रं में जो बताया गया हैं, उसके विषय में अच्छी तरह से जानकारी प्राप्त हो सके और सही तरह से लाभ मिल सकें। श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रं का अर्थ सहित वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है।



जयोSस्तु ते गणपते देहि मे विपुलां मतिम्।


स्तवनम् ते सदा कर्तुं स्फूर्ति यच्छममानिशम्।।१।।


अर्थात्:-हे गणपति जी! आप सभी पर फतह हों और मुझे सभी तरह की जरूरत एवं हालातों के अनुसार सभी तरह के अहसासो और सब बातों की जानकारी देने वाली शरीर चेतना-शक्ति प्रदान करें। आपके सिद्धि विनायक स्तोत्रम् का जो मनुष्य नियमित जाप करता है, उस मनुष्य को आप बहुत ज्यादा किसी विषय पर सोचने-समझने और सकारात्मक सोच रूपी बुद्धि देते हो और उस मनुष्य की देह में ताजगी एवं किसी भी कार्य को करने में तेजी प्रदान करने की ऊर्जा और तसल्ली देते हो। 


 

प्रभुं मङ्गलमूर्तिं त्वां चन्द्रेन्द्रावपि ध्यायतः।


यजतस्त्वां विष्णुशिवौ ध्यायतश्चाव्ययं सदा।।२।।


अर्थात्:-हे भगवन मंगलमूर्ति जी! चन्द्रमा देवता के स्वामी भी आपके नाम का गुणगान करते हुए आपके नाम का ध्यान करते है, भगवन् विष्णुजी एवं शिवजी की पूजा करना और हमेशा आपका ध्यान करते है। उनके नाम का गुणगान करते हुए उनका ध्यान करना हमेशा अविनाशी हैं।



विनायकं च प्राहुस्त्वां गजास्यं शुभदायकम्।


त्वन्नाम्ना विलयं यान्ति दोषाः कलिमलान्तक।।३।।


अर्थात्:-हे विनायक जी! आप की देह पर गज का मुख लगा हैं, जिससे आपको विनायक भी कहते हैं और सभी तरह से मंगलकारी हैं। 


हे गणेशजी! आपके नाम का गुणगान करने मात्र से ही कलियुग में किये गये सभी गुनाहों एवं अनैतिक आचरण व अहितकारी कार्य और ईश्वर, परलोक के प्रति गलत धारणा व अविश्वास आदि बुरे प्रभाव समूल नष्ट हो जाते हैं और आप कलियुग के सभी पापों का दहन करने वाले हो।


 

त्वत्पदाब्जाङ्कितश्चाहं नमामि चरणौ तव।


देवेशस्त्वं चैकदन्तो मद्विज्ञप्तिं शृणु प्रभो।।४।।


अर्थात्:-हे गणेशजी! मैं आपके उत्कीर्ण चरण कमलों को श्रद्धा व विश्वास से झुककर नमन करता हूं।


हे एक दांत वाले एकदन्त! आप सभी देवताओं के भगवान हैं, आप मेरा एलान सुनिए।

 



कुरु त्वं मयि वात्सल्यं रक्ष मां सकलानिव।


विघ्नेभ्यो रक्ष मां नित्यं कुरु मे चाखिलाः क्रियाः।।५।।


अर्थात्:-हे गणेशजी! आप मुझ पर अपनी स्नेह रूपी कृपा दृष्टि कीजिए और सभी प्रकार से जीवन में आने वाली मुसीबतों से सुरक्षा कीजिए। आप हमेशा मेरे जीवनकाल की सभी रुकावटों व बाधाओं से हिफाजत कीजिए और मेरे सभी जरूरी नैतिक और धार्मिक कार्यो को पूर्ण कीजिए।




गौरिसुतस्त्वं गणेशः शॄणु विज्ञापनं मम।


त्वत्पादयोरनन्यार्थी याचे सर्वार्थ रक्षणम्।।६।।


अर्थात्:-हे पार्वतीजी के पुत्र गणपतिजी! आप सुनिए मैं एलान करता हूँ, की आपके चरणों की ही पूजा-अर्चना करता हूँ और आपके अलावा किसी दूसरे की चाह नहीं रखता हूँ। मैं आपसे अरदास करता हूँ कि सभी तरह से पालन-पोषण करते हुए मेरी रक्षा कीजिए।




त्वमेव माता च पिता देवस्त्वं च ममाव्ययः।


अनाथनाथस्त्वं देहि विभो मे वाञ्छितं फलम्।।७।।


अर्थात्:-हे गणेशजी! आप ही मेरा पालन-पोषण, रक्षण करने वाले माता-पिता और ईश्वर हैं और आप ही मेरे कभी क्षय नहीं होने वाले हैं, आप ही बेसहारों को सहारा देने वाले एवं पालन-पोषण करने वाले रक्षक हैं।

हे भगवान! आप मुझे मेरी इच्छा के अनुसार फल को प्रदान कीजिए।



लम्बोदरस्वम् गजास्यो विभुः सिद्धिविनायकः।


हेरम्बः शिवपुत्रस्त्वं विघ्नेशोऽनाथबान्धवः।।८।।



अर्थात्:-हे गणेशजी! आप हाथी के समान बड़े पेट वाले हो और धन-दौलत, ऐश्वर्य के स्वामी सिद्धिविनायक हो। आप भगवान शिवजी के पुत्र, सभी तरह की रुकावटों व मुसीबतों के स्वामी और बेसहारों के सहारा देने वाले हेरम्बा हो।



नागाननो भक्तपालो वरदस्त्वं दयां कुरु।


सिन्दूरवर्णः परशुहस्तस्त्वं विघ्ननाशकः।।९।।


अर्थात्:-हे सर्प मुख वाले भक्तों के रक्षक वरदान देने वाले मुझ पर दया करें। 

हे विघ्ननाशक! आपका वर्ण सिंदूर के समान हैं, एक हाथ में परशु को धारण करके चलाते हो और सभी बाधाओं को हरण करने वाले हो।


विश्वास्यं मङ्गलाधीशं विघ्नेशं परशूधरम्।


दुरितारिं दीनबन्धूं सर्वेशं त्वां जना जगुः।।१०।।


अर्थात्:-हे गणेशजी! आप पर ऐतबार करने वाले का यकीन बनाये रखने वाले, समस्त इच्छापूर्ति, सभी तरह के संकटो को दूर करने वाले और हाथ में परशु को रखने वाले स्वामी हो।

हे बुरे आचरण करने वाले के दुश्मन, लाचार व कंगाल के सखा और समस्त जगत के स्वामी गणेशजी! समस्त जगत के लोग आपके नाम का गुणगान करते हैं।


 


नमामि विघ्नहर्तारं वन्दे श्रीप्रमथाधिपम्।


नमामि एकदन्तं च दीनबन्धू नमाम्यहम्।।११।।


अर्थात्:-हे गणेशजी! आप सभी तरह की अड़चनों को दूर करने वाले हो मैं आपको श्रद्धा व विश्वास के साथ हाथ जोड़कर नमन करता हूँ। 


हे एकदंत! मैं आपको झुक कर नमन करता हूँ और हे निर्धन के सखा! मैं आपको श्रद्धा व विश्वास के साथ हाथ जोड़कर नमन करता हूँ। श्री प्रमथ देवी के स्वामी को मैं आदरपूर्वक हाथ जोड़कर नमस्कार करता हूँ।



नमनं शम्भुतनयं नमनं करुणालयम्।


नमस्तेऽस्तु गणेशाय स्वामिने च नमोऽस्तु ते।।१२।।


अर्थात्:-हे शिवजी के पुत्र एवं दयावान! मैं आपको श्रद्धा व विश्वास के साथ हाथ जोड़कर नमन करता हूँ।


हे भगवान गणेश! मैं आदरपूर्वक हाथ जोड़कर नमस्कार करता हूँ और मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ।



नमोऽस्तु देवराजाय वन्दे गौरीसुतं पुनः।


नमामि चरणौ भक्त्या भालचन्द्रगणेशयोः।।१३।।



अर्थात्:-हे देवताओं के राजा! मैं आदरपूर्वक हाथ जोड़कर नमस्कार करता हूँ और मैं माता गौरी के पुत्र को दुबारा नमस्कार करता हूँ।


हे भालचन्द्र गणेशजी! मैं आपके चरणों में श्रद्धा, विश्वास और आस्था के झुकते हुए नमन करता हूँ।



नैवास्त्याशा च मच्चित्ते त्वद्भक्तेस्तवनस्यच।


भवेत्येव तु मच्चित्ते ह्याशा च तव दर्शने।।१४।।


अर्थात्:-हे गणेशजी! मैं अपने मन को एक जगह पर स्थिर रखते हुए श्रद्धा से आपका गुणगान करने की कोशिश करता हूँ, लेकिन मुझे अपनी भक्ति और आराधना से किसी भी तरह की आस नहीं हैं और मेरी इच्छा तो आपके साक्षात दर्शन करने की हैं और आप मुझे आपके चरण कमलों के दर्शन दीजिए।



अज्ञानश्चैव मूढोऽहं ध्यायामि चरणौ तव।


दर्शनं देहि मे शीघ्रं जगदीश कृपां कुरु।।१५।।


अर्थात्:-हे सम्पूर्ण विश्वगोलक के स्वामी! मैं तो नासमझ हो, मुझे किसी भी तरह की जानकारी नहीं हैं, मैं तो अपने मन को एकाग्रचित्त करके आपके चरणों में ध्यान करता हूँ। इसलिए आप कृपा करके मुझे एक बार आपके दर्शन दीजिए।



बालकश्चाहमल्पज्ञः सर्वेषामसि चेश्वरः।


पालकः सर्वभक्तानां भवसि त्वं गजानन।।१६।।


अर्थात्:-हे गणेश जी! आप सबके स्वामी हो, मैं छोटा बालक हूँ और बहुत कम समझ रखने वाला हूँ।


हे गजानन! आप अपने सभी भक्तों का पालन-पोषण एवं रक्षा करने वाले हैं।

 


दरिद्रोऽहं भाग्यहीनः मच्चित्तं तेऽस्तु पादयोः।


शरण्यं मामनन्यं ते कृपालो देहि दर्शनम्।।१७।।


अर्थात्:-हे गणेशजी! मैं कंगाल व अभावग्रस्त बदकिस्मत हूँ। मैं अपने मन को एक जगह पर रखते हुए आपके चरणों की सेवा में लगाऊँ। हे दया करने वाले दयालु! मैं केवल आप पर श्रद्धा, विश्वास भाव रखते हुए आपकी शरण में हूँ, इसलिए कृपालु आप अपने स्वरूप का दर्शन मुझे देवे। 



इदं गणपतेस्तोत्रं यः पठेत्सुसमाहितः।


गणेशकृपया ज्ञानसिध्धिं स लभते धनम्।।१८।।


अर्थात्:-जो कोई भी मन को एक जगह पर स्थिर रखते हुए श्रद्धा एवं भक्ति भाव रखते हुए गणेशजी के गुणगान वाले सिद्धिविनायक स्तोत्र का निरन्तर वांचन करता हैं, उस पर गणेशजी अपनी अनुकृपा रखते हुए उसे अपनी आवश्यकताओं और स्थितियों के अनुसार की अनुभूतियाँ और सब बातों के बारे जानकारी और सोना-चाँदी एवं अन्य बहुमूल्य धातुएँ, रुपया-पैसा आदि कार्य-फल की प्राप्ति हो जाती हैं।




पठेद्यः सिद्धिदं स्तोत्रं देवं सम्पूज्य भक्तिमान्।


कदापि बाध्यते भूतप्रेतादीनां न पीडया।।१९।।


अर्थात्:-जो कोई भी मन में भक्ति रखते हुए गणेशजी के गुणगान वाले सिद्धिविनायक स्तोत्र का निरन्तर वांचन करता हैं, वह देवता के समान वंदनीय होता हैं। सत्ता युक्त भूत एवं सूक्ष्म शरीर रूपी आत्मा प्रेत आदि के द्वारा प्राप्त होने वाले संकटों एवं वेदना के जाल में कभी नहीं बँधता हैं।


 



पठित्वा स्तौति यः स्तोत्रमिदं सिद्धिविनायकम्।


षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति न भवेदनृतं वचः


गणेशचरणौ नत्वा ब्रूते भक्तो दिवाकरः।।२०।।


अर्थात्:-हे गणेशजी। आपके इस सिद्धिविनायक स्तोत्र का जो कोई भी वांचन बार-बार करते हुए आपका गुणगान करते हैं, उसको छः महीने में कार्य के फल की प्राप्ति हो जाती हैं, इन बातों में वास्तविकता हैं एवं किसी भी तरह का मिथ्या वचन नहीं होता हैं। भगवान गणेशजी के चरणों में श्रद्धायुक्त होकर अनुगत सूर्य नमस्कार करते हुए बोलते हैं। श्री सिद्धिविनायकार्पणमस्तु अर्थात् इसे सिद्धिविनायक को अर्पण किया जाता हैं।



।।इति श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् अर्थ सहित।।


   ।।जय बोलो श्री गणपति जी की जय।।



श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् के वांचन के महत्त्व और लाभ (The importance and benefits of reciting Sri Siddhivinayak Stotram):-निम्नलिखित है। 


1.आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु:-जो मनुष्य कठिन मेहनत करने पर भी रुपये-पैसों को संचय नहीं कर पाते हैं, उन मनुष्यों को विघ्नं विनाशक गणपतिजी के स्तोत्र का वांचन शुरू करना चाहिए, जिससे उनकी गरीबी दूर हो सके।



2.किस्मत का साथ नहीं मिलने पर:-जिन मनुष्यों को अपने किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती हैं एवं बनते-बनते काम बिगड़ने लगते हैं, उन मनुष्यों को सिद्धि विनायक स्तोत्र का वांचन करते रहने पर किस्मत का साथ मिलना शुरू हो जाता हैं।



3.नासमझ को समझ पाने हेतु:-जिन मनुष्यों में सही तरीके से सोचने व समझने की शक्ति का अभाव होता हैं, जब वे विघ्नं विनाशक स्तोत्र के वांचन शुरू करते हैं, तो उनमें बहुत सोचने व समझने की शक्ति का विकास होता हैं।



4.संतान की प्राप्ति हेतु:-जिन दम्पतियों को सन्तान सुख नहीं मिलता हैं, उनको स्तोत्र का वांचन करने से बढ़िया व गुणवान सन्तान की प्राप्ति होती हैं।



5.नकारात्मक शक्तियों के असर से मुक्ति हेतु:-जिन मनुष्यों पर भूत- प्रेतादि की नकारात्मक शक्तियों के बुरे असर से मुक्ति हेतु स्तोत्र का वांचन करना चाहिए।



6.मन में उत्पन्न सभी इच्छाओं की पूर्ति हेतु:-विघ्नं विनाशक स्तोत्र के वांचन से मन में उत्पन्न सभी इच्छाओं की पूर्ति होती हैं।



7.सभी तरह के कार्य में सफलता हेतु:-सिद्धि विनाशक स्तोत्र का पठन करने से सभी कार्य में सफलता मिलती हैं।