Breaking

Tuesday, July 11, 2023

ब्रह्म मुहूर्त क्या हैं, जानें समय, मंत्र, लाभ और महत्त्व(What is Brahma Muhurta, know timing, mantra, benefits and importance)

ब्रह्म मुहूर्त क्या हैं? जानें समय, मंत्र, लाभ और महत्त्व(What is Brahma Muhurta? know timing, mantra, benefits and importance):-ब्रह्ममुहूर्त को ऋषि-मुनियों ने अपनी ज्ञान साधना शक्ति के फलस्वरूप बहुत ही महत्वपूर्ण मनुष्य के लिए माना हैं, उन्होंने ब्रह्ममुहूर्त पर विशेष रूप से गहन अध्ययन करके इससे होने वाले लाभ को बताया हैं। जिसका उपयोग करके मनुष्य अपने जीवन में तरक्की की ऊंचाइयों को पा सकता हैं। जो मनुष्य सूर्य के प्रकट होने से पहले उठते हैं, तो उन मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है और किस्मत का साथ भी मिलता हैं।



What is Brahma Muhurta? know timing, mantra, benefits and importance






ब्रह्ममुहूर्त का मतलब:-दिन-रात्रि का तीसवां भाग मुहूर्त कहा जाता हैं, एक मुहूर्त का समय दो घटी या अड़तालीस मिनिट का समय खण्ड मुहूर्त कहलाता हैं, उसके बाद वाला भगवान श्रीविष्णुजी का समय होता हैं, जिसमें सूर्य का उदय नहीं होता है, सुबह प्रारम्भ हो जाता है, घड़ी के समय अनुसार प्रातः 04 बजकर 24 मिनिट से प्रातः 05 बजकर 12 मिनिट का समय ब्रह्ममुहूर्त का होता हैं। रात्रि के अंतिम प्रहर के तीसरे भाग को ब्रह्ममुहूर्त कहा जाता है।





आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्ममुहूर्त का समय:-प्रातःकाल 04:00 बजे से 5:30 बजे तक का समय ब्रह्ममुहूर्त कहलाता है। 



ब्रह्ममुहूर्त शब्द 'ब्रह्मी' से बना हैं। शास्त्रों में ब्रह्मी ज्ञान की देवी सरस्वती को कहा गया है। यही कारण है कि प्राचीन काल में गुरुकुलों में आचार्य ब्रह्ममुहूर्त में ही अपने शिष्यों को वेदों का अध्ययन कराते थे। आज भी विश्व के प्रसिद्ध, विद्वान, विचारक और साधक ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने दैनिक क्रिया-कलापों की शुरुआत करते हैं।




किसे कहते हैं 'ब्रह्म मुहूर्त?:-ब्रह्ममुहूर्त में दो शब्द के योग से बना हैं, जब दोनों शब्द को अलग-अलग करते हैं, तब एक शब्द 'ब्रह्म' और 'दूसरा शब्द 'मुहूर्त' मिलते हैं, उन दोनों शब्दों के अर्थ के आधार पर मतलब होता हैं, जो इस तरह हैं-



ब्रह्म का अर्थ:-सच्चिदानंद स्वरूप जगत का मूल तत्त्व या ईश्वर होता हैं।




मुहूर्त अर्थ:-काल गणना के अनुसार कार्य हेतु निश्चित किया गया विशिष्ट समय। मुहूर्त शब्द सामान्यतः द्विअर्थी हैं। एक अर्थ में दिनमान या रात्रिमान का पन्द्रहवां भाग हैं।


मुहूर्त दूसरे अर्थ में:-किसी शुभ कार्य को करने योग समय का सूचक हैं।



मुहूर्त का अर्थ:-मुहूर्त वह समयावधि हैं, जो अपेक्षित नतीजों को पाने के हेतु से किसी भी काम को करने के लिए अयन, मास, ग्रहों की स्थिति, गोचर, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, राशि, लग्न, दिनमानांश या रात्रिमानांश आदि की दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त हैं।



दो घटी समयावधि वाले नित्य मुहूर्त द्विघटिका नित्य मुहूर्त कहलाते हैं। दिनमान एवं रात्रिमान को औसत रूप से तीस-तीस घटी माना जाए, तो द्विघटिका मुहूर्त की समयावधि पन्द्रहवां भाग या दिनमान या रात्रिमान के पन्द्रहवें भाग के बराबर होगी। इस तरह दिन और रात्रि में अलग-अलग पन्द्रहरा-पन्द्रहरा है। जो कि अहोरात्र या सावन दिन या वार में तीस मुहूर्त होते हैं पूरे दिन रात में चौबीस घण्टे होते हैं, इस तरह पूरे दिन-रात में तीस मुहूर्त होते हैं और आठ प्रहर या याम होते हैं।




एक प्रहर का मान:-तीन घण्टा होता हैं। दिन एवं रात्रिकाल में आठ प्रहर या याम के नाम इस तरह हैं-



दिन के चार प्रहर के नाम:-इस तरह हैं-



1.प्रथम प्रहर पूर्वाह्न।


2.दूसरा प्रहर संगव या मध्याह्न।


3.तृतीय प्रहर मध्याह्न और अपराह्न।


4.चतुर्थ प्रहर अपराह्न या सायंकाल।



रात्रि के चार प्रहर के नाम:-इस तरह हैं-


1.प्रथम प्रहर प्रदोषकाल।


2.दूसरा प्रहर साम्बाधिक या निशीथ।


3.तृतीय प्रहर अर्धरात्र या निशीथ त्रियामा।


4.चतुर्थ प्रहर अपररात्र या उषा का होता हैं।



सूर्य के उगने से पहले के प्रहर में दो मुहूर्त होते हैं, उनमें से पहले मुहूर्त को ब्रह्ममुहूर्त कहा जाता हैं या रात्रि का चौथा मुहूर्त ब्रह्म मुहूर्त के नाम से जाना जाता है या एक मुहूर्त का समय उषाकाल कहलाता है। इस मुहूर्त में वार, तिथि, करण, नक्षत्र आदि की आवश्यकता नहीं होती हैं। यह समय हजारों काँटों से युक्त दिन को भी शुभ बना देता हैं। महानिशानित्य मुहूर्त को ब्रह्म मुहूर्त भी कहा जाता है, क्योंकि रात्रिकालीन मुहूर्तों में महानिशा का काल अष्टम मुहूर्त होता हैं और अष्टम मुहूर्त का स्वामी ब्रह्मा को माना गया है, रात्रिकालीन मुहूर्तों में ब्रह्म मुहूर्त को शुभ कार्यों में प्रशस्त माना गया है। उषाकाल को ब्राह्म मुहूर्त के नाम से जाना जाता है।




ब्रह्ममुहूर्त के प्रातःकाल के समय में सबसे पहले वंदना करना:-मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठने के समय अपने दोनों हाथों की हथेली को देखते हुए देवी-देवताओं को याद करने के लिए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए, जो इस तरह हैं-



करागे वसति लक्ष्मी, करमध्ये सरस्वती।


कर मुले स्थितो ब्रह्मा, प्रभाते कर दर्शनम्।।


अर्थात्:-मनुष्य प्रातःकाल उठते ही अपने हाथ को देखना चाहिए, क्योंकि हाथ के आगे की ओर माता लक्ष्मीजी का वास, हाथ के बीच के भाग में माता सरस्वती का निवास होता हैं, हाथ के मूल भाग में ब्रह्माजी के वास माना जाता है।



अर्थात्:-जब कोई भी मनुष्य प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त के समय अपने बिस्तर को छोड़कर सबसे पहले अपने दोनों हाथों को एक-दूसरे के पास लाकर अंजलि की आकृति को बनाना चाहिए, जिसमें दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़ना होता हैं, फिर जोड़ने से चन्द्रमा के समान आकृति बनती हैं, उस आकृति को बहुत ही गहराई से दर्शन करना चाहिए, फिर दर्शन करते समय मन ही मन में मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए।



ब्राह्मे मुहूर्ते सम्प्राप्तेत्यक्तनिद्रः प्रसन्नधीः।


प्रक्षाल्य पादावाचाम्य हरिसंकीर्तनं चरेत्।।


ब्राह्मे मुहूर्ते निद्रां च कुरुते सर्वदा तु यः।


अशुचिं तं विजानीयादनर्हः सर्वकर्मसुः।।


अर्थात्:-मनुष्य को सूर्य के उगने से पहले अपनी शय्या को छोड़ना चाहिए और अपनी निद्रा को भी त्याग देना चाहिए। फिर अपने मन को ताजा रखते हुए अपने चेहरे पर प्रसन्नता का भाव भी उत्पन्न करना चाहिए। मनुष्य को अपनी रोजाना की क्रियाओं को पूरा करते हुए हाथ-पैर को स्वच्छ जल से धोते हुए ओक में जल लेकर पीना (पूजन शुद्धि) होता हैं, जिससे पवित्र हो सके। ततपश्चात प्रातःकालीन मंगल या शुभ श्लोकों, पूण्य या पवित्र शुद्ध श्लोकों एवं अपने इष्टदेव के विभिन्न नामों का वांचन करने से मनुष्य के लिए कल्याणकारी या मंगलकारी होता हैं।



वास्तव में ब्रह्ममुहूर्त का समय देह संबन्धी, मन सम्बंधी भावनाएं मानसिक एवं यौगिक क्रियाओं (योगाभ्यास, किसी विशेष विषय पर चित्त की एकाग्रता, देवी-देवता की वंदना-सत्कार, विद्याध्ययन और चिंतन-मनन आदि) के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी होता हैं। इस समय के शांत और देखने में सुंदर व मन को अच्छा लगने वाले वातावरण में मस्तिष्क शीघ्र ही एकाग्र हो जाता है तथा इसके परिणाम सुखकारी ही मिलते हैं।



ब्रह्ममुहूर्त की वायु जो ठंडक को उत्पन्न करने वाली, मन को मोहित करने वाली, देह को व्याधियों से मुक्त करते हुए निरोग्यता को प्रदान करने वाली और खुबसूरती को बढ़ाने वलु होती हैं। इस समय की सुखकारी वायु में इकतालीस प्रतिशत ऑक्सीजन, पचपन प्रतिशत नाइट्रोजन और चार प्रतिशत कार्बनडाइऑक्साइड गैस होती हैं। इसके बाद सूर्योदय होने पर जिस अनुपात में सूर्य की रोशनी बढ़ती जाती हैं, वैसे ही वातावरण की वायु में ऑक्सीजन की प्रतिशतता और कार्बन डाइऑक्साइड की प्रतिशतता बढ़ती जाती हैं। ध्यान रहे कि ऑक्सीजन व्यक्ति के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। यही कारण हैं कि ब्रह्ममुहूर्त में नित्य उठना चाहिए और इसके लाभ उठाने चाहिए।




ब्रह्ममुहूर्त के समय में पृथ्वी के चारों ओर की वायु में किसी तरह का कोई अवांछित द्रव्यों से दूषित नहीं होती हैं, जिससे मनुष्य के जीवन को चलाने वाली वायु ऑक्सीजन एकदम शुद्ध होती हैं, वह भी इकतालीस प्रतिशत की मात्रा में शरीर को शुद्ध रूप से प्राप्त होती हैं, जिससे फेफड़ों के कार्य करने की क्षमता में बढ़ोतरी करती हैं, जिससे श्वसनतंत्र एकदम सही तरीके से संचारित होता हैं और शुद्ध वायु प्राप्त होने से मनुष्य का मस्तिष्क सही तरीके से कार्य करते हुए रक्त का संचरण भी ठीक तरह से होता हैं। मनुष्य का चित्त निर्मल होकर नकारात्मक भावनाओं को नष्ट करके सकारात्मक भावनाओं को उत्पन्न करता हैं। जिससे मनुष्य के समस्त विकार समाप्त हो जाते हैं।



ब्रह्ममुहूर्त के समय में पृथ्वी के चारों तरह का वातावरण एक शुद्ध एवं किसी भी तरह से बिना शोर-गुल के शांत होता हैं, इस समय में समस्त देवी एवं देवता घूमने-फिरने के लिए निकलते हैं। इस समय में पवित्रता भी मुख्य रूप से रहती हैं। मन्दिरों के पुजारियों के द्वारा मन्दिरों के पट को खोल देते है, वे मन्दिर परिसर की साफ-सफाई करवा कर ईश्वर की साज-सँवारना आदि करके उनके रूप में आकर्षण को बढ़ाने का कार्य भी शुरू कर देते हैं और फिर पूजा भी करने का धर्मग्रन्थों में उल्लेख मिलता हैं।




ब्रह्म मुहूर्त में क्या करना चाहिए:-ब्रह्म मुहूर्त में मनुष्य को अपने ध्यान को केंद्रित करने वाले कार्य करने चाहिए, जो चार तरह के हैं-



१.संध्योपासना या संध्या वंदन:-दिन एवं रात्रि की संधि जो सूर्य एवं तारों के बिना होती हैं, जिन्हें हमारे प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने संध्या काल बताया गया है। इस समय संध्या वंदन करने से मनुष्य के दैहिक एवं आत्मिक शरीर में नकारात्मक भावना नष्ट होकर सकारात्मक भावना जागृत होती है, जिससे मनुष्य की हर इच्छाओं की पूर्ति होकर समस्त तरह की चिंताओं से मुक्ति मिल जाती हैं। संधि काल का पांच समय का होता हैं, जिनमें से मुख्यतया प्रातःकाल या सूर्य के उदय का समय एवं संध्या काल या सूर्य के अस्त के समय की संधि को माना गया है। इन दोनों समय में मनुष्य को अपने दैनिकचर्या को पूर्ण करने के बाद अपने मन को केंद्रित करने के लिए कोई पवित्र स्थान पर अपने ईष्टदेव की अरदास करना चाहिए। इस समय में मनुष्य को चुपचाप रहते हुए अपने कार्य को करने पर समस्त तरह से मंगल होता हैं। संध्या काल के समय में मनुष्य को निद्रां, आहार, किसी जगह पर जाने सम्बन्धित, किसी भी तरह से वाणी से बोलना और स्त्री या पुरुष सहवास का परिहार करना चाहिए। 




२.ध्यान:-मनुष्य को अपने चित्त की एकाग्रता को केन्द्रित करने को ध्यान कहा जाता है। 




३.प्रार्थना:-मनुष्य के द्वारा अपने इष्टदेव की भक्तिपूर्ण एवं अस्थाभाव से उनसे निवेदन करना ही प्रार्थना कहलाता हैं। 




४.अध्ययन:-मनुष्य को किसी भी विषय का ज्ञान अर्जित करना होता है, तब इस समय में पढ़ाई करने पर उचित परिणाम प्राप्त होते हैं। 



ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी।



अर्थात्:-जो मनुष्य सूर्य के उदय के समय से पूर्व नहीं उठते हैं, जो अपने बिस्तर पर गहरी निद्रा लेते हैं, इस तरह ब्रह्ममुहूर्त के समय में जो इस तरह निद्रा की गोद में सोते रहते हैं, उन मनुष्य का समस्त तरह के किये गए अच्छे कार्य के फल समाप्त हो जाते हैं।




ब्रह्म मुहूर्त में क्या नहीं करना चाहिए:-मनुष्य को ब्रह्म मुहूर्त में निम्नलिखित कार्य को नहीं करना चाहिए।



◆मनुष्य को किसी से भी मतभेद नहीं करना चाहिए।


◆मनुष्य को अपने मन में किसी भी तरह की ऐसी बात को नहीं अपने ऊपर हावी होने देना चाहिए। उस विषय में नहीं सोचना चाहिए।


◆स्त्री या पुरुष को अपनी कामवासना पर नियंत्रण रखना चाहिए।


◆मनुष्य को इस पवित्र समय में किसी भी तरह के आहार को ग्रहण नहीं करना चाहिए।


◆मनुष्य को एक स्थान से अन्य स्थान को नहीं जाना चाहिए।


◆तर्क-वितर्क भी नहीं करना चाहिए।


◆ब्रह्ममुहूर्त के समय पर किसी दूसरे मनुष्य से बातचीत को भी नहीं करें।


◆इस समय मनुष्य को बिस्तर का परित्याग कर देना चाहिए।


◆मनुष्य को इस समय शांति बनाकर रखना चाहिए और किसी भी तरह से हल्ला नहीं करना चाहिए।


◆मनुष्य को आरती या पूजा-पाठ और हवन आदि को करना भी शास्त्र के विरुद्ध होता हैं। जो मनुष्य इस तरह के कार्य इस समय करते हैं, उन मनुष्य से बचना चाहिए।




ब्रह्म मुहूर्त में उठने का पौराणिक महत्त्व:-ब्रह्ममुहूर्त में अपनी निद्रा को छोड़कर जो मनुष्य उठते हैं, तो उस विषय से सम्बंधित महत्त्व के बारे में जानकारी पौराणिक रूप में मिलती हैं।



वेदों में ब्रह्ममुहूर्त में निद्रा को त्याग करके उठने का महत्त्व एवं लाभ:-ब्रह्ममुहूर्त में उठने से बहुत सारे शारिरिक, मानसिक और आध्यत्मिक फायदे मिलते हैं, जो कि वेदों में बताएं गए है- 



ऋग्वेद में ब्रह्ममुहूर्त में निद्रा को त्याग करके उठने वाले मनुष्य के विषय में:-इस तरह बताया गया है-


प्रातारत्नं प्रातरित्वा दधाति तं चिकित्वानप्रतिगृह्यनिधत्ते।


तेन प्रजां वर्ध्यमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीरः।।(ऋग्वेद१/१२५/१)



अर्थात्:-जो मनुष्य प्रातःकाल के समय सूर्य के उगने से पहले (ब्रह्ममुहूर्त) उठते हैं, तो उनका शरीर में किसी भी तरह की व्याधि हो तो उस व्याधि से मुक्त होकर सबसे बढ़िया स्वास्थ्य को प्राप्त करते है। जो समझदार एवं ज्ञानी मनुष्य अपने स्वास्थ्य की परवाह करते है, वे इस प्रातःकाल के समय का अमूल्य समय को बेकार नहीं करते हैं।  जो कोई भी मनुष्य प्रातःकाल (ब्रह्ममुहूर्त में) जल्दी उठते हैं, वे मनुष्य सदैव सुख से जीवन को जीते, शारिरिक रुप एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हुए शरीर से बलवान, बहादुर एवं लम्बी उम्र को जीने वाले होते हैं।



अथर्ववेद में ब्रह्ममुहूर्त में निद्रा को त्याग करके उठने वाले मनुष्य के विषय में:-इस तरह बताया गया है-

उद्यन्तसूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे। (अथर्ववेद)


अर्थात्:-जो मनुष्य सूर्य के उगने पर भी नहीं अपने बिस्तर का परित्याग नहीं करके उठते या जागते है, तो उन मनुष्य के शरीर की चमक कमजोर होकर अन्त में नष्ट हो जाती हैं।


सामवेद में ब्रह्ममुहूर्त में निद्रा को त्याग करके प्रातः उठने वाले मनुष्य के विषय में:-इस तरह बताया गया है-


यद्य सूर उदितोSनागा मित्रोSर्यमा।


सुवाति सविता भगः।।(सामवेद-३५)


अर्थात्:-मनुष्य को हमेशा सूर्य के उगने से पूर्व अपने बिस्तर का परित्याग करके अपनी दैनिकचर्या जैसे-शौच एवं स्नानादि को पूर्ण करना चाहिए। फिर स्वच्छ वस्त्रों को धारण करते हुए अपने ईष्ट को सच्ची आस्था से एवं विश्वास पूर्वक उनकी आराधना-उपासना करनी चाहिए। जो सूर्य उगने से पहले (ब्रह्ममुहूर्त) वातावरण की चलने वाली शीतल एवं किसी भी तरह की बिना गन्दगी की स्वच्छ हवा का सेवन करते हैं, उन मनुष्य का शरीर एकदम आरोग्य रहता है और रुपयों-पैसों की सम्पत्ति में बढ़ोतरी होती हैं।




धार्मिक वाल्मीकि रचित रामायण ग्रन्थ के एक प्रसंग के अनुसार:-जब श्रीहनुमानजी को माता सीताजी की खोज-खबर का दायित्व दिया गया, तब श्रीहनुमानजी माता सीताजी को ढूंढते हुए लंका नगरी में प्रवेश करते है और माता की तलाश में जब वे लंका नगरी में स्थित अशोक वाटिका में पहुंचते हैं, तब वह समय ब्रह्ममुहूर्त का था, उस समय में उन्होंने वेद एवं यज्ञ के जानकारों के द्वारा मन्त्रों के वांचन की ध्वनि सुनाई पड़ी थी।


वर्ण कीर्ति मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।


ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा।। (भावप्रकाश सार-९३)


अर्थात्:-जो कोई भी मनुष्य ब्रह्ममुहूर्त के समय में अपनी निद्रा को छोड़कर अपने बिस्तर को त्यागकर उठ जाते हैं, उन मनुष्य की देह बहुत ही आकर्षक होती हैं, उनके घर-आंगन में लक्ष्मीजी निवास करते हुए धन-धान्य का भण्डार भर देती हैं, जिससे मनुष्य के ज्ञान के क्षेत्र में विकास होता और बहुत ही मनुष्य होशियार बन जाता हैं, मनुष्य को समस्त तरह की व्याधियों से मुक्ति मिलकर आरोग्यता की प्राप्ति होती हैं, जिससे मनुष्य की उम्र में बढ़ोतरी होती है। जो मनुष्य ब्रह्ममुहूर्त में उठते है, उनकी देह की चमक इस तरह दिखाई देती हैं, जिस तरह कोई खिला हुआ कमल का फूल हो।




आयुर्वेद के मतानुसार:-आयुर्वेद में वात, पित एवं कफ को ही व्याधियों का कारण माना गया है, इन त्रिदोषों से बचने के लिए ब्रह्ममुहूर्त का समय उत्तम रहता हैं, क्योंकि प्रकृति में सबसे उचित समय मनुष्य के लिए ब्रह्ममुहूर्त का बताया गया है। इस समय जो शीतल शुद्ध एवं बिना किसी तरह के विकारों रहित पवन जब संचरण करती हैं, उस समय मनुष्य उस पवन को अपने नासान्द्रियों एवं मुँह के द्वारा अपने शरीर में ग्रहण करते है, तो समस्त शरीर के त्रिदोषों के विकारों का नाश करके शरीर को आरोग्यता प्रदान करती है और मनुष्य के द्वारा इस समय धीमे-धीमे चलते हुए इस पवन को ग्रहण करते है तो फेफड़ों के कार्य करने की क्षमता बढ़ती हैं। जिससे मनुष्य के लिए एक तरह से मृत संजीवनी की तरह ताकत प्राप्त हो जाती हैं और मनुष्य को अमृत के समान जीवन की उम्र में बढ़ोतरी करती हैं।




छात्रवृत्तिधारी के लिए:-जो छात्रवृत्तिधारी होते है, उनको अपनी पढ़ाई को याद करने के लिए यह समय बहुत ही बढ़िया होता है, क्योंकि इस समय मनुष्य जब उठकर किसी भी विषय को पढ़ते है, तब वह पढा हुआ विषय लम्बे समय तक याद रहता हैं। यह समय बहुत ही शांत होता हैं, इस समय मनुष्य का मस्तिष्क एकदम फुर्ती एवं ताजगी से युक्त होता है, जिससे मस्तिष्क को नई ताकत मिलती है और जो पढा होता हैं, वह मस्तिष्क में एकदम सटीक इकट्ठा हो जाता हैं।




व्यावहारिक जीवन में महत्त्व:-जो साधारणतः व्यवहार जीवन में उपयोग में आता हैं या प्रयोग में आने वाली व्यवहार कुशलता युक्त हो। साधारणतः मनुष्य को अपने शरीर में नई शक्ति को उत्पन्न करने के लिए शरीर में किसी भी तरह की विकृतियों के नहीं होने पर शरीर शुचारु रूप से कार्य करता हैं, जिससे शरीर में आरोग्यता होने पर ही हो सकती हैं, ब्रह्ममुहूर्त का समय शरीर नई ऊर्जा को उत्पन्न करके मनुष्य के मस्तिष्क को ताजेपन से भर देता हैं। मनुष्य प्रत्येक दिन अपने शारिरिक एवं मानसिक कार्य करते रहने से शरीर में कमजोरी शुरू हो जाती हैं, उस कमजोरी को पूरा करने के लिए वह रात्रिकाल में निद्रा की गोद में सोता है, फिर वह मनुष्य जब ब्रह्ममुहूर्त के समय में उठता है, तो वातावरण की निर्मल समीर को ग्रहण करता हैं, तो उसमें नया जोश व ताजगी से भर जाता है और शरीर के प्रत्येक अंग शुचारुरुप से कार्य करते है। इस तरह स्वस्थ देह से युक्त व नए जोश वाला मनुष्य जब अपने शरीर के अंगों को मजबूती प्रदान करने के लिए व्यायाम-योग करते है एवं अपने देव की उपासना करने के लिए ध्यान की ओर अग्रसर होता है, तो उस मनुष्य का शरीर साथ देते है वह अपने मन को नियंत्रित करते हुए अपनी कौशल क्षमता को भी मजबूती प्रदान करते हैं।




ब्रह्ममुहूर्त में निद्रा को त्याग करके उठने पर मिलने वाले लाभ:-ब्रह्ममुहूर्त में उठने से बहुत सारे शारिरिक, मानसिक और आध्यत्मिक लाभ मिलते हैं, जो कि वेदों, धार्मिक ग्रन्थों, आयुर्वेद और व्यवहारिक जीवन में बताएं गए है- 



◆ब्रह्ममुहूर्त की वायु जो ठंडक को उत्पन्न करने वाली, मन को मोहित करने वाली, देह को व्याधियों से मुक्त करते हुए निरोग्यता को प्रदान करने वाली और खुबसूरती को बढ़ाने वलु होती हैं।



◆जो मनुष्य ब्रह्ममुहूर्त में उठते हैं, तो उन मनुष्यों का शरीर एकदम ताकत वाला हो जाता हैं।



◆मनुष्य की सुंदरता में भी चार चांद लग जाता हैं।



◆मनुष्य को अपने ज्ञान के क्षेत्र में बढ़ोतरी मिलती हैं।



◆मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहते हुए किसी भी तरह की व्याधि से शरीर मुक्त रहता हैं।



◆जो मनुष्य किसी भी तरह के ग्रन्थ की रचना करना चाहते है, तब इस समय में जो ग्रन्थ की रचना होती हैं वह सबसे बढ़िया ग्रन्थ होता हैं।



◆ब्रह्ममुहूर्त में उठने से मनुष्य का शरीर पूर्ण रूप से कार्य करने से मनुष्य अपने रोजगार पर ध्यान देकर रुपयों-पैसों की सम्पत्ति में बढ़ोतरी कर सकता हैं।



◆जो मनुष्य ब्रह्ममुहूर्त में उठते है वे मनुष्य पूरे जोश से अपनी दैनिकचर्या को पूरा करते हुए अपने कौशल को उपयोग में लेते हुए अपने सामाजिक, धार्मिक एवं अपने कर्म क्षेत्र में प्रगति की ओर अग्रसर हो जाते हैं।



◆जो मनुष्य ब्रह्ममुहूर्त के समय अपने बिस्तर पर पड़े रहते है, उनमें न तो किसी तरह का उत्साह होता है, न ही किसी भी कार्य करने का जोश होता हैं, वे तो उस आलसी मनुष्य की तरह अपना जीवन को चलाते रहते हैं।