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Tuesday, August 15, 2023

सूर्यदेव को अर्घ्यं जल क्यों दिया जाता है? जानें विधि, मंत्र, समय, लाभ और महत्त्व(Why is Arghya water offered to the Suryadev? Know the vidhi, mantra, timing, benefits and importance)

सूर्य को अर्घ्यं जल क्यों दिया जाता है? जानें विधि, मंत्र, समय, लाभ और महत्त्व (Why is Arghya water offered to the Surya? Know the vidhi, mantra, timing, benefits and importance):-धार्मिक रूप से उपास्य पाँच देव-सूर्यदेव, शिवदेव, विष्णुदेव, भगवान गणेशजी और दुर्गा माताजी को धर्म शास्त्रों में सबसे पहले पूजनीय बताया गया हैं, जबसे सृष्टि की रचना हुई हैं, तब से इनकी वंदना की जाती हैं और आज के युग में वंदित हैं। इन पंचदेव में से भी सूर्य को देव के रूप में पूजन किया जाता हैं। इस तरह जबसे सृष्टि की रचना हुई हैं, तब से सूर्य का अस्तित्व हैं। इस तरह सूर्य को एक देव के रूप में पूजन किया जाता हैं। समस्त जगत में भास्कर देव के द्वारा चारों ओर के अंधेरे को हरण करके अपनी प्रखर किरणों से जगत में उजाला प्रदान करते हैं। इस तरह से सूर्यदेवजी को स्पष्ट रूप से अपनी आंखों से दिखाई देने वाले देव कहा जाता हैं। सूर्यदेव विशेष रूप से रविवार के दिन बहुत प्रसन्न रहते है और सप्तमी तिथि के दिन को बहुत प्रसन्न होते हैं, इसलिए रविवार एवं सप्तमी तिथि सूर्यदेव की प्रिय तिथि एवं वार होते हैं।







Why is Arghya water offered to the Surya? Know the vidhi, mantra, timing, benefits and importance





सूर्यषष्ठी और संक्रांतियों के अवसर पर सूर्योपासना का विशेष विधान या विधि:-बताया गया है। जो इस तरह हैं-सामान्यतः प्रत्येक रविवार को सूर्योपासना की जाती हैं। प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्योपासना करने के लिए रक्त चंदन से मंडल बनाकर तांबे के कलश में जल, लाल चंदन, अक्षत, लाल फूल और कुश आदि रखे जाते हैं। फिर घुटने टेककर प्रसन्न मन से सूर्यदेव की ओर मुंह करके कलश को छाती के सामने बीचो-बीच लाकर गायत्री मंत्र, सूर्य मंत्र का जप करते हुए जल की धारा धीरे-धीरे प्रवाहित की जाती हैं। सूर्यदेव को अर्ध्य जल देकर फिर पुष्पांजलि अर्पित की जाती हैं। सूर्यदेवजी को तीन बार जल से अर्घ्यं को अर्पण करना चाहिए। फिर नतमस्तक होकर उनकी वंदना करनी चाहिए।




सूर्यदेव को अर्घ्यं अर्पण करते समय उच्चारण करने का मंत्र:-सूर्य भगवान को अर्घ्यं देते समय मनुष्य को निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-



एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।


अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।


अर्थात्:-हे सूर्यदेवजी! आप अपनी असंख्य अग्नि के समान किरणों के द्वारा समस्त लोकों में उजाला करने वाले जगपती हो। जिस तरह मां देवी अपने भक्तों पर अपनी अनुकम्पा रखती हैं, उसी तरह से जो भक्त आपको अर्घ्यं का जल अर्पण करता हैं उस पर अपनी अनुकम्पा बनाकर रखना दिवाकर जी।



शिव पुराण के अनुसार अर्घ्य देते समय प्रभावशाली मंत्र का वांचन करना:-सूर्य मंत्र अथवा गायत्री मंत्र के स्थान पर शिव पुराण में वर्णित निम्नलिखित मंत्र का भी जाप किया जा सकता हैं-


सिन्दूरवर्णाय सुमण्डलाय नमोस्तुते वज्राभारणाय तुभ्यम्।


पद्माभनेत्राय सुपंकजाय ब्रह्मेन्द्रनारायणकारणाय।।


सरक्तचूर्ण ससुवर्णतोयंस्त्रककुंकुमाढ्यं सकुश सपुष्पम्।


प्रदत्तमादायसहेमपात्रं प्रशस्तमर्घ्यं भगवन् प्रसीद्।।



अर्थात्:-सिंदूर वर्ण के समान सुंदर मंडल वाले, हीरा नामक रत्न, बहुमूल्य पत्थर जैसे-मणि, नगीना आदि आवरणों से सुसज्जित कमल के समान नेत्र वाले, हाथ में कमल धारण करने वाला ब्रह्मा, विष्णु और इंद्रादि या सम्पूर्ण सृष्टि के मूल कारण हे प्रभु! हे आदित्य!! आपको नतमस्तक नमन है। भगवन! आप सुवर्ण पात्र में रक्तवर्णी चूर्ण कुमकुम, कुश, पुष्पांजलादि से युक्त रक्तवर्णिम जल द्वारा प्रदान किए गये श्रेष्ठ अर्घ्य को ग्रहण करके प्रसन्न हों। 




सूर्यदेव की आराधना या अर्घ्यं जल देने या चढ़ाने का उपयुक्त समय:-सूर्य भगवान को अपनी पूजा-अर्चना से संतुष्ट करने एवं अपने पर उनकी कृपा की बारिश करवाने के लिए उनकी पूजा का सबसे अच्छा समय सूर्यदेव के उदय का समय होता हैं और जब सूर्यदेवजी कि पहली-पहली किरणें पड़ने लगती हैं, तब जल अर्घ्यं देना चाहिए। सूर्यदेवजी की किरणें जब तीव्र रूप में हो और मनुष्य को सूर्यदेव की किरणों से देह पर सुई की तरह चुभन की तरह महसूस होने पर जल देने पर कोई मतबल नही होता हैं। 



सूर्यदेवजी को अर्घ्यं जल देते समय मनुष्य का मुख कौनसी दिशा में होना चाहिए?:-सूर्यदेवजी को अर्घ्यं जल देते समय मनुष्य का मुहं पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।



सूर्यदेवजी को अर्घ्यं जल देते समय कौनसा पैर उठाना चाहिए?:-मनुष्य के द्वारा जब भी अर्घ्यं का जल सूर्यदेवजी को चढ़ाए जाता हैं, तब वे अपना दायाँ पैर ऊपर उठाकर बाएँ पैर पर रखते हुए जल अर्पण करना चाहिए।



सूर्यदेवजी को अर्घ्य देने से मिलने वाले लाभ:-जब मनुष्य के द्वारा सूर्यदेवजी को नियमित रूप से अर्घ्य देने पर निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं, जो इस तरह हैं-



1.अपने समान गुणों को प्रदान करते:-मनुष्य के द्वारा जब सूर्यदेवजी कि आराधना की जाती हैं, तब मनुष्य को सूर्यदेवजी अपने समान ही गुणों को प्रदान करते हैं।



2.मनुष्य के चेहरे की चमड़ी या त्वचा की सिकुड़न होने से मुक्ति:-मनुष्य को अपने चेहरे की चमड़ी या त्वचा की सिकुड़न से मुक्ति मिल जाती है और झुर्रियां खत्म हो जाती हैं, जिससे चेहरा खिला-खिला दिखाई पड़ता है और चेहरे पर एक तरह की आभा दिखाई पड़ती हैं।



3.मनुष्य में अपनी तरफ आकर्षित करने की शक्ति हेतु:-मनुष्य में दूसरे मनुष्य को अपनी तरफ खींचने के भाव आ जाते है। जिससे दूसरे मनुष्य प्रभावित होते हैं।



4.मनुष्य की आंखों की दृष्टि सम्बन्धित परेशानी से मुक्ति हेतु:-मनुष्य को यदि आंखों से कम दिखाई देता हैं और नेत्र ज्योति कमजोर हो गई हो तो उन मनुष्य को सूर्यदेवजी के मंत्रों का वांचन करना चाहिए। जिससे मनुष्य के नेत्रों की ज्योति में बढ़ोतरी होती है।




5.कमजोर सूर्यग्रह को मजबूत बनाने हेतु:-जब मनुष्य की जन्मकुंडली एवं ग्रह गोचर के समय सूर्य ग्रह कमजोर हालात में हो तो सूर्य ग्रह को मजबूत करने के लिए सूर्यदेवजी के मंत्रों का वांचन करना चाहिए।




6.मनुष्य को रुपये-पैसों की तंगी से मुक्ति हेतु:-मनुष्य को अपने जीवन के रुपयों-पैसों की तंगी को दूर करने हेतु नियमित रूप से सूर्यदेवजी को अर्घ्य देना चाहिए, जिससे आर्थिक स्थिति में सुधार होता हैं। 




7.मनुष्य को अपने आप पर विश्वास को बढ़ाने हेतु:-मनुष्य में सभी तरह की योग्यता होने पर भी अपने आप पर विश्वास नहीं रहता हैं, जिससे मनुष्य को अपनी योग्यता के अनुसार फल प्राप्त नहीं हो पाता है, इसलिए मनुष्य सूर्यदेवजी को अर्घ्य नियमित रूप से देने पर अपने आप पर विश्वास बढ़ जाता हैं।



8.सकारात्मक भाव जागृत करने हेतु:-मनुष्य के मन में हर समय नकारात्मक भाव उत्पन्न होने लगते है, उन नकारात्मक भावों से मुक्ति पाने हेतु मनुष्य को हमेशा अर्घ्य देना चाहिए।




9.मनुष्य को मान-सम्मान पाने हेतु:-मनुष्य में योग्यता एवं कार्य कुशलता होने पर भी मान-सम्मान नहीं मिलने पर नियमित रूप से अर्घ्य देने पर हर जगह पर मान-सम्मान मिलने लग जाता हैं। मिलता है। 





सूर्योपासना में अर्घ्य या जल देने का महत्त्व:-समस्त तरह के पुराणों, वेदों, उपनिषदों, आयुर्वेद शास्त्र और वैज्ञानिक रूप से महत्त्व बताया हैं, जो इस तरह हैं- 




स्कंदपुराण के काशीखंड के अनुसार:-सूर्यदेवजी की आराधना से मनुष्य को चारों पुरुषार्थ जैसे-मनुष्य के द्वारा जो भलाई से सम्बंधित एवं अपने ईश्वर, परलोक आदि के सम्बंध में विशेष तरहसे विश्वास एवं उपासना पद्धति को ही धर्म कहते हैं, इंद्रियों के विषय-रूप, रस, गन्ध, शब्द एवं स्पर्श से सम्बंधित एवं रुपये-पैसों से सम्बंधित भाव को अर्थ कहते हैं, इन्द्रिय या विषय-सुख से सम्बन्धित भाव को काम कहते हैं और जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति पाने को मोक्ष कहते हैं। इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही धन-धान्य, आयु, स्वास्थ्य, पशु, धन, विविध भोग और स्वर्ग आदि भी सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।




सूर्योपासना का महत्त्व ब्रह्मपुराण के अनुसार:-'ब्रह्मपुराण' में सूर्यदेव की उपासना के महत्त्व के बारे में इस तरह बताया है-



मानसं वाचिकं वापि कायजं यच्च दुष्कृतम्।


सर्व सूर्यप्रसादेन तदशेषं व्यपोहति।।



अर्थात्:-जो मनुष्य श्रद्धा-भक्ति से सूर्यदेव की उपासना करते हैं, उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सूर्यदेव स्वयं उपासक के सम्मुख प्रकट होकर उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। सूर्यदेव की कृपा से मनुष्य मानसिक, शारीरिक और वाणी सम्बन्धी सभी धर्म एवं नीति के विरुद्ध किये गए आचरण विनष्ट हो जाते हैं।



ऋग्वेद के अनुसार:-सूर्यदेव में पापों से मुक्ति, रोगों का नाश करने, आयु एवं सुखों में वृद्धि करने वाले तथा दरिद्रता निवारण की अपार क्षमता है। इसी कारण ऋग्वेद में इनके संतुलन हेतु सूर्यदेव से प्रार्थना की गई है। वेदों में भी ओजस्, तेजस और ब्रह्मवर्चस्व कि प्राप्ति के लिए सूर्योपासना करने का विधान दिया गया हैं।



यजुर्वेद के अनुसार:-सूर्यदेव की आराधना इसलिए कि जानी चाहिए कि वह मानव मात्रक सभी शुभाशुभ कार्यों के साक्षी हैं और उनसे हमारा कोई भी कार्य-व्यवहार छुपा हुआ नहीं है।




ब्रह्मपुराण के अनुसार:-सूर्यदेव सर्वश्रेष्ठ देवता हैं और सभी देवता इन्हीं के प्रकाशरूप हैं। सूर्यदेव की उपासना करने वाले उपासक जो भी सामग्री इन्हें अर्पित करते हैं, सूर्यदेव उसे लाख गुणा करके लौटा देते हैं।




अग्निपुराण के अनुसार:-गायत्री मन्त्र के द्वारा सूर्योपासना करने पर वे प्रसन्न होते हैं और उपासक को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।



स्कन्दपुराण के अनुसार:-सूर्यदेवजी को अर्ध्य जल दिए बिना भोजन करना पाप-भक्षण के समान हैं।



सूर्योपनिषद् के अनुसार:-समस्त देव, गंधर्व और ऋषि भी सूर्य-रश्मियों में वास करते हैं। सूर्योपासना के बिना किसी का भी कल्याण संभव नहीं हैं। चाहे कोई अमरत्व के गुणों से भरपूर देवता ही क्यों न हो।




सूर्यदेवजी को अर्घ्य देने के विषय से सम्बंधित ध्यान रखने योग्य बातें एवं सावधानियां:-मनुष्य सूर्यदेवजी को अर्घ्य देते समय निम्नलिखित बातों एवं सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए। जो इस तरह हैं-



1.मनुष्य को नियमित रूप से 'आदित्य हृदय स्तोत्र' का वांचन करना:-मनुष्य को हमेशा सूर्यदेवजी को खुश करने के लिए उनका 'आदित्य हृदय स्तोत्र' का वांचन करना चाहिए।



2.मनुष्य को अपने शरीर पर एवं आहार में उपयोग में नहीं लेना:-मनुष्य को रोगन एवं नमक को रविवार के दिन अपने भोजन में शामिल नहीं करना चाहिए।




3.मनुष्य को रविवार के व्रत में एक समय आहार को ग्रहण करना:-मनुष्य को रविवार के दिन व्रत करते हुए एक बार ही भोजन को करना चाहिए।




4.मनुष्य को समस्त नियमों का पालन करने से सम्बंधित बातें:-इस तरह से मनुष्य के द्वारा रविवार को नियमों का पालन करते हुए सूर्यदेवजी को अपनी पूजा-अर्चना से सन्तुष्ट करते हैं, तो सूर्यदेवजी का आशीर्वाद मिल जाता हैं।




5.मनुष्य को अपने मन की कामनाओं को पूर्ण करने हेतु:-मनुष्य को किसी महीने के शुक्लपक्ष में पड़ने वाले रविवार से संकल्प करते हुए अपने जीवनभर के लिए या अपनी इच्छा पूर्ति के निमित पांच, सात, नो, ग्यारहा, इक्कीस, इकतीस या इक्यावन रविवार आदि में से जो इच्छा होती हैं, उतने रविवार तक यह प्रयोग करना चाहिए।



6.मनुष्य को अपने शरीर के वजन के अनुसार वस्तुओं को जल में प्रवाहित करना:-मनुष्य को गुड़ एवं चावल को अपने शरीर वजन के अनुसार में मात्रा में लेकर रविवार के दिन किसी भी नदी, सरोवर या बहते हुए पानी में बहाया जाने पर उचित फल मिलता हैं।



7.मनुष्य को ताम्र धातु से बनी वस्तुओं को जल में प्रवाहित करना:-मनुष्य को ताम्र धातु से बने सिक्कों को भी नदी, तालाब या बहते हुए जल में बहाया जाते है तब मनुष्य को सूर्य ग्रह से होने वाली परेशानी से मुक्ति मिल जाती हैं।




8.मनुष्य को सूर्यदेवजी को खुश करने हेतु मीठे चीजों को निवास स्थान पर बनाना:-मनुष्य को सूर्यदेवजी को प्रसन्न करने के लिए उनके दिन रविवार को अपने निवास स्थान में मीठा भोजन या मीठे लाल रंग से बने हुए चावल को बनाना चाहिए एवं निवास स्थान के समस्त मनुष्यों को उस मीठे भोजन या गुड़ से बनी वस्तुओं को आहार के रूप में सेवन भी करना चाहिए। जिससे सूर्यदेवजी का आशीर्वाद निवास स्थान के समस्त मनुष्यों पर बना रहता हैं और निवास स्थान में सुख-शांति बनी रहती हैं।




9.यदि मनुष्य अपने निवास स्थान पर मीठा नहीं बना पाने की स्थिति में:-मनुष्य को अपने निवास स्थान में मीठा नहीं बना पाते हैं, तो उस रविवार को गुड़ को सूर्यदेवजी को अर्पण करना चाहिए। फिर उस गुड़ को समस्त सदस्यों के द्वारा प्रसाद स्वरूप ग्रहण करना चाहिए।



10.राजसेवा करने एवं उच्च पद पाने हेतु:-मनुष्य को नियमित रूप से सूर्यदेवजी को अर्घ्य देने पर राजसेवा एवं उच्च पद की प्राप्ति होती हैं।



11.उम्र में बढ़ोतरी पाने हेतु:-मनुष्य को उम्र में बढ़ोतरी के लिए नियमित रूप से अर्घ्य को अर्पण करना चाहिए।




12.शरीर की निरोग्यता पाने हेतु:-मनुष्य के द्वारा सूर्यदेवजी को नियमित रूप से अर्घ्य देते रहने पर शरीर में किसी भी तरह की व्याधि नहीं हो पाती हैं, जिससे मनुष्य की निरोग्यता बनी रहती हैं।




13.सूर्यदेव की किरणों को देखना:-जब भी मनुष्य के द्वारा अर्घ्य दिया जाता हैं, तब उन मनुष्य को सूर्यदेव की पड़ने वाली रश्मियों को जल गिराते समय देखना चाहिए।



14.पैर को अर्घ्य जल नहीं छूना:-मनुष्य को अर्घ्य देते समय गिरने वाला जल पैरों को नहीं छूना चाहिए।



15.बिना पैरों में कुछ धारण किये:-मनुष्य को अपने पैरों में बिना कुछ पहने हुए ही जल अर्घ्यं देना चाहिए।



16.मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठना:-मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठना चाहिए। 



17.लाल वस्त्र को पहनना:-जब मनुष्य सूर्यदेवजी को अर्घ्यं जल देते समय लाल रंग के वस्त्र को धारण करना चाहिए।



18.नियमित रुप से जल चढ़ाएं:-मनुष्य को नियमित रूप से जल चढ़ाना चाहिए।



सूर्यदेवजी को खुश करने हेतु एवं अपने जीवन में सफलता पाने हेतु करने योग्य उपाय:-निम्नलिखित हैं-



1.किसी दूसरे मनुष्य को दिया हुए रुपये-पैसों एवं आभुषण को वापस पाने हेतु:-जब मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य की मदद के फलस्वरूप उस मनुष्य को उधार के रुपये-पैसे दे देता हैं और किसी कारणवश मनुष्य को अपने आभूषण की किसी दूसरे मनुष्य को हिपाजत के लिए देना पड़ता है, जब मनुष्य को जरूरत पड़ती हैं, तब उस मनुष्य के द्वारा वापस देने में मना करना या आनाकानी करने लगता हैं। इस तरह की परेशानी से बचने एवं वापस धन-सम्पत्ति को पाने के लिए निम्नलिखित सूर्यदेवजी का उपाय करने से निश्चित परिणाम मनुष्य के पक्ष में मिलते हैं-



1.मनुष्य को एक ताम्र धातु से बना छोटा कलश या लोटा लेकर उसमें जल भर लेवे।



2.फिर गुड़, चावल, लाल रंग के पुष्प, रक्त चंदन, कुमकुम और सुखी साबुत लाल रंग की मिर्च आदि लेवे। इन सभी वस्तुओं को उस ताम्र पात्र में डालकर उसमें उस साबुत लाल मिर्च में से निकाले गए ग्यारहा दानों को भी मिलाकर सुबह सूर्य उदय के समय नियमित रूप से अर्घ्य देने से निश्चित फल मिल जाता हैं। 



3.लाल मिर्च की जगह पर साबुत इलायची के ग्यारहा दाने ले सकते हैं। इस तरह से अर्घ्य देते हुए सूर्यदेवजी से अरदास करनी चाहिए। इस तरह से अर्घ्य देने से मनुष्य को अपने आप पर विश्वास बढ़ता हैं और सकारात्मक भाव जागृत होते हैं। मनुष्य की आभा बढ़ती है और मनुष्य को मान-सम्मान मिलता है। मनुष्य को आर्थिक स्थिति से सम्बंधित परेशानी से मुक्ति मिल जाती हैं।




2.मनुष्य को अपने मन की मुराद को प्राप्त करने हेतु:-मनुष्य को अपने इच्छित मन की मुराद को पूर्ण करने के लिए निम्नलिखित मंत्रो का वांचन करना चाहिए-



1.मनुष्य को जो भी सूर्यदेवजी से सम्बंधित मंत्र जो वांचन करने में सरल लगे, उस मंत्र को पूर्ण विश्वास भाव से नियमित रूप से पाठन करना चाहिए। जिससे मनुष्य को सूर्यदेवजी की अनुकृपा मिल सके।



1.ऊँ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्त्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।


2.ऊँ घृणिं सुर्य्यः आदित्यः।


3.ऊँ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।


4.ऊँ घृणि सूर्याय नमः।


5.ऊँ घृणिं सुर्य आदित्य श्रीं ओम्। 


6.ऊँ ह्रीं घृणिः सुर्य आदित्यः क्लीं ऊँ। 


7.ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सुर्याय नमः।


8.ऊँ आदित्याय विद्महे मार्तण्डाय धीमहि तन्न सुर्यः प्रचोदयात्।


9.ऊँ ऐहि सुर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपये मां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकरः।


2.सूर्यदेवजी से सम्बंधित मंत्रों को जब भी वांचन करना होता हैं, तब मनुष्य को किसी भी महीने के कृष्णपक्ष में पड़ने वाले पहले रविवार को ही शुरू करना चाहिए।


3.मनुष्य को सूर्य उगने के समय पर मंत्रों का वांचन करने का सही समय होता हैं।


4.मनुष्य को जब भी सूर्यदेवजी की आराधना से सम्बंधित मंत्रों का वांचन करना होता हैं, तब उनको लाल रंग का ऊन से बनी हुई बिछावन का उपयोग करना चाहिए।


5.फिर सूर्यदेवजी के उदय होने की दिशा अर्थात् पूर्व दिशा के सामने की तरफ मुख को करके मन ही मन में मंत्रों का वांचन करना चाहिए।