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Tuesday, October 17, 2023

आरती गिरधारी जी की अर्थ सहित(aarti girdhari ji ki with meaning)

आरती गिरधारी जी की अर्थ सहित(aarti girdhari ji ki with meaning):-भगवान श्रीकृष्ण जी को अनेक तरह के नामों से जाना जाता है, उनके नाम जैसे वासुदेव, कृष्ण, गोपालक, गिरिधरी, कान्हा, मुरारी, केशव, माधव, यशोदापुत्र आदि हैं। उन नामों में से एक नाम गिरधारी भी है, जिसमें भगवान कृष्ण अपनी लीलाओं के द्वारा समस्त गोकुलधाम को आनन्दित किया था। श्रीकृष्णजी का नाम गिरिधर पड़ने का कारण था। भगवान श्रीकृष्णजी ने अपनी उंगलियों से गोवर्धन पर्वत को उठाया था, इसलिए उनको गिरिधर भी कहते है। जब इंद्रदेव को अपने ऊपर अभिमान हो गया। उनके बिना संसार नहीं चल सकता है, वे अपने-आपको ईश्वर तुल्य मानने लगे। समस्त जगत के निवासियों से अपनी पूजा करवाना चाहते थे। क्योंकि इंद्रदेव को वर्षा ऋतु एवं बारिश का स्वामी माना जाता है, वे अपनी पूजा मानव जाति को करवाने के लिए बाध्य करने लगे। जिससे उनके भय से मानव उनकी पूजा करते थे। 



Aarti with Girdhari ji's meaning



इस तरह उनकी इस जबर्दस्ती की पूजा का जब कृष्णजी को पता चलता है, तब कृष्णजी ने अपने समस्त गोकुलवासियों को कहा कि आप सब इंद्रदेव की पूजा की बजाएं गोवर्धन पर्वत को पूजन किया करे, क्योकि यह गोर्वधन पर्वत समस्त मानव जाति की रक्षा करते है। जो कि प्रकृति की विभिन्न तरह की मुशीबतों से बचाता है। इस तरह गोकुलवासियों ने श्रीकृष्णजी की बातें के अनुसार इंद्रदेव की पूजा करना छोड़ दिया और गोर्वधन पर्वत की पूजा करने लगे जब इंद्रदेव को पता चला तो उन्होंने इतनी तेज वर्षा की चारों तरफ सब कुछ पानी से लबालब हो गया, इस तरह की भारी वर्षा से बचने के लिए सब परेशान हो गए अपने जीवन को किस तरह बचाए। तब श्रीकृष्णजी ने अपनी उंगली पर गोर्वधन पर्वत को उठाई उनके नीचे समस्त गोकुलवासियों को आने के लिए कहा था। इस तरह इंद्रदेव को आखिर में अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी और इंद्रदेव का घमंड चूर-चूर हो गया। इस तरह श्रीकृष्णजी का नाम गिरिधर पड़ा था। तब से गोर्वधन पर्वत की पूजा विधान शुरू हुआ था। जो आज के युग तक चल रहा हैं।




इसलिए भगवान श्रीकृष्णजी की आरती को हमेशा करते रहने पर समस्त तरह के दुःखो का अन्त हो जाता हैं और अंत मोक्ष गति मिल जाती है। भगवान कृष्णजी को सच्चे मन से उनकी आराधना करनी चाहिए।



आरती श्री गिरधारी जी की अर्थ सहित:-भगवान गिरधारी की आरती करने से पूर्व आरती में लिखे गए शब्दों के अर्थ को समझकर आरती करने से आरती के बारे में जानकारी मिल जाती हैं। इसलिए आरती के अर्थ को समझकर करने से शुभ फल मिलता है, जो आरती का अर्थ इस तरह है:


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।


भावार्थ्:-हे श्रीकृष्णजी! आपको कृष्ण के नाम, हरि का नाम और गिरधारी के नाम से जाना जाता है। आपकी जय-जयकार हो। राक्षस की शक्ति को नष्ट करके उनको को मारने वाले एवं गायों एवं ब्राह्मणों का हित करने वाले हो।



जय गोविन्द दयानिधि, गोवर्धन धारी।


वंशीधर बनवारी, ब्रज जन प्रियकारी।।


भावार्थ्:- हे गोविन्द! आपकी जय-जयकार करें, आप तो दया के सागर हो, आपने तो उंगली पर गोर्वधन पर्वत को उठाने वाले, वंशी को अपने हाथ में धारण करने वाले बनवारी और ब्रज वासियों के दुलारे हो।



गणिका गोध अजामिल गणपति भयहारी।


आरत-आरति हारी, जय मंगल कारी।।


भावार्थ्:-हे गिरधारी! आपके नाम में भी इतना बल होता है, जिस तरह चमेली के फूल दूर होने पर भी अपनी सुंगध से महकाता है। आप तो मादा घड़ियाल, गिरगिट या छिपकली आदि के डर को हरने वाले एक पापी ब्राह्मण अजामिल था, जिसका उद्धार उसके पुत्र नारायण की मृत्यु होने पर उसकी याद में नारायण नाम का उच्चारण करते-करते मोक्ष को पाया, जो गणपति जी के डर को हरण करने वाले और शांति पूर्वक अपने विराग का हरण करने वाले और जो सभी तरह कल्याण करने वाले होते है, उनकी जय-जयकार हो।



गोपालक गोपेश्वर, द्रौपदी दुखहारी।


शबर-सुता सुखकारी, गौतम-तिय तारी।।


भावार्थ्:-हे माधवजी! आपका नाम गायों को पालने के कारण गोपालक पड़ा था, गोपियों के स्वामी हो, द्रौपदी के दुःखो को दूर करने वाले हो, शबरी का उद्धार करके उसको सुख देने वाले हो एवं गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के दुःख को दूर करके उसका उद्धार करने वाले होते हो।



जन प्रहलाद प्रमोडक, नरहरि तनु धारी।


जन मन रंजनकारी, दिति-सुत संहारी।।


भावार्थ्:-हे गिरिधारी! आप तो सभी मनुष्य को एवं प्रहलाद के दुःखो को दूर करने के लिए नृसिंह रूप को धारण करने वाले हो, समस्त मनुष्य को मनभावन सुख को देने वाले हो और दक्ष की सुंदर पुत्री एवं ऋषि कश्यप की पत्नी के द्वारा उत्पन्न पुत्र की आभा का संहार करने वाले होते हो।



टिट्टिभ-सुत संरक्षक, रक्षक मंझारी।


पाण्डु सुवन शुभकारी, कौरव मद हारी।।


भावार्थ्:-हे केशवजी! आप तो जमींनपर घोंसला बनाने वाले टिटिहरी पक्षी या टिड्डी को पुत्र के रूप में मानकर उनका पालन-पोषण करने वाले हो और उनकी रक्षा करने की स्वीकृति देने वाले होते हो। जिस तरह से पाण्डु जो की एक पीले रंग की मिट्टी होती है उसका उपयोग आभूषण आदि बनाने में किया जाता है, वह मिट्टी फायदेमंद होती है और कौरव वंश में जब घमंड में चूर हो जाते है तब उनके घमंड को तोड़ने वाले हो।




मन्मथ-मन्मथ मोहन, मुरली-रव कारी।


वृन्दाविपिन बिहारी, यमुना तट चारी।।


भावार्थ्:-हे श्रीकृष्णजी! आपके मुरली की ध्वनि इतनी मधुर होती है कि आप तो कामदेव के समान सभी को मोहित कर देते हो। वृन्दा जंगल में भृमण करने वाले आपको बिहारी भी कहते हैं और अपनी इच्छानुसार यमुना के किनारों पर घूमने वाले ही।



अघ-बक-बकी उधारक, तृणावर्त तारी।


बिधि-सुरपति मदहारी, कंस मुक्तिकारी।।


भावार्थ्:-हे केशव जी! आप तो पापिओं के द्वारा बिना मतलब के बोलने पर ध्यान नहीं देते हो, लेकिन पापियों के माफी मांगने पर उनके बचे हुए जीवन का उद्धार कर देते हो, बवंडर के समान विशाल दैत्य का भी आप तारण कर देते हो, जब इंद्रदेव जब मद में चूर हो जाते है तब उनकी मद के नशे को हरके उनको अनुकूलता प्रदान करते हो और कंस जैसे दैत्य से भी मुक्ति दिलवाने वाले हो।



शेष, महेश, सरस्वती, गुन गावत हारी।


कल कीरति विस्तारी, भक्त भीति हारी।।


भावार्थ्:-हे नारायण! आपके गुणों का बखान तो शिवजी, माता सरस्वती जी एवं शेषनाग करते रहते है, आपकी कीर्ति तो कल भी थी और आज भी है। आप तो अपने भक्तों के डर को हरने वाले हो।



'नारायण' शरणागत, अति अघ अघहारी।


पद-रज पावनकारी, चाहत चितहारी।।


भावार्थ्:-हे नारायण! आप तो आपके शरण में आये हुए शत्रु की भी रक्षा करने वाले होते है, आपके शरण में आये हुए बहुत ही पापी एवं दुष्कर्मी को भी माफ कर देते हो। आपके पैरों की धूल भी पावन करने वाली होती है और आप तो सभी का हित करना चाहते हो।



      ।।इति श्री गिरधारी जी की आरती।।


    ।।अथ आरती श्री गिरधारी जी की।।


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।



जय गोविन्द दयानिधि, गोवर्धन धारी।


वंशीधर बनवारी, ब्रज जन प्रियकारी।।


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।



गणिका गोध अजामिल गणपति भयहारी।


आरत-आरति हारी, जय मंगल कारी।।


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।



गोपालक गोपेश्वर, द्रौपदी दुखहारी।


शबर-सुता सुखकारी, गौतम-तिय तारी।।


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।



जन प्रहलाद प्रमोडक, नरहरि तनु धारी।


जन मन रंजनकारी, दिति-सुत संहारी।।


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।



टिट्टिभ-सुत संरक्षक, रक्षक मंझारी।


पाण्डु सुवन शुभकारी, कौरव मद हारी।।


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।



मन्मथ-मन्मथ मोहन, मुरली-रव कारी।


वृन्दाविपिन बिहारी, यमुना तट चारी।।


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।



अघ-बक-बकी उधारक, तृणावर्त तारी।


बिधि-सुरपति मदहारी, कंस मुक्तिकारी।।


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।



शेष, महेश, सरस्वती, गुन गावत हारी।


कल कीरति विस्तारी, भक्त भीति हारी।।


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।



'नारायण' शरणागत, अति अघ अघहारी।


पद-रज पावनकारी, चाहत चितहारी।।


जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी।


दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी।।



      ।।इति आरती श्री गिरधारी जी की।।


।।जय बोलो गिरधारी बांके बिहारी जी की जय हो।।


        ।।जय बोलो केशवजी की जय हो।।