Breaking

Thursday, December 7, 2023

तिलक में चावल के दानें का क्या महत्त्व हैं?(What is the importance of rice grains in Tilak?)


तिलक में चावल के दानें का क्या महत्त्व हैं?(What is the importance of rice grains in Tilak?):-हिन्दुधर्म में प्रत्येक पूजाकर्म को करते समय हर कर्म का विशेष रूप से महत्व होता हैं, जिससे मनुष्य को उस कर्म को करते समय उस कर्म का फल मिल सके। हिन्दुधर्म में मनुष्य के मस्तकं के बीच का भाग खाली होने से मनुष्य के द्वारा किये गए समस्त मांगलिक कार्य जैसे-पूजा, हवनादि का पूर्ण फल नहीं मिल पाता है। सुषुम्ना नाड़ी को केन्द्रीयभूत मानते हुए भृकुटि और ललाट के बीच के भाग पर तिलक धारण किया जाता है, जिससे मनुष्य के मस्तकं को अच्छी सोच को उत्पन्न करके बुरे विचारों का अंत हो सके। पूजा-कर्म करते समय पुरोहित या स्वयं मनुष्य के द्वारा मस्तकं पर तिलक लगाने का विधान होता हैं, क्योंकि मस्तक को पूजा-कर्म के समय खाली रखना अशुभ माना जाता हैं।




What is the importance of rice grains in Tilak?






कठोपनिषद के मतानुसार:-कठोपनिषद ग्रन्थ में वर्णित विचारों के अनुसार मस्तकं के सम्मुख जगह से एक मुख्य सुषुम्ना नाड़ी जो कि ऊपर ओर गति करते हुए जीवन-मरण के बंधन से से मुक्ति का पथ देती हैं, दूसरी नाड़ियों से प्राण के निकलने के बाद शरीर में एक जगह से गति कर सके और आज्ञाचक्र में जागृत के भाव को उत्पन्न कर सके और मस्तकं में सक्रियता और मन की भीतरी चेतना को शीघ्रता से अचानक रूप से बढ़ोतरी करने में सहायक होने से तिलक के बाद मस्तकं पर दाने लगाने के महत्त्व की जानकारी मिलती हैं। अपने निवास स्थान या धार्मिक पूजा कर्म करते समय तिलक लगाने के बाद हमेशा चावल के दाने तिलक के ऊपर लगाएं जाते हैं।  


वैज्ञानिक तौर पर:-जब मनुष्य के द्वारा अपने निवास स्थान या धार्मिक पूजा कर्म करते समय पहले तिलक मस्तक पर लगाया जाता हैं, जिससे मस्तक में उत्पन्न तीक्ष्ण ऊष्मा से राहत मिल जावें और मनुष्य के मस्तक के द्वारा सोच-विचार के किये गए कार्य से शांति एवं शीतलता मिल सके।



जब मस्तक पर तिलक करके चावल को लगाते है क्योंकि चावल को पूजा-कर्म में पवित्रता एवं शुद्धता का स्वरूप माना जाता है।



धर्म शास्त्रों के अनुसार:- समस्त तरह के यज्ञ-हवनादि में देवी-देवताओं को अर्पण करने वाला शुद्ध एवं निर्मल धान्य रूप में माना गया है।



पूजा-पाठ कर्म करते समय:-चावल को पूजा-पाठ कर्म करते समय अक्षत कहा जाता हैं।



अक्षत का मतलब:-जिसका स्वरूप क्षत या खंडित न हुआ हो, जो टूटा-फूटा स्वरूप में न होकर सर्वांग रूप के अस्तित्व में होता हैं या जो अपने अस्तित्व से युक्त होता हैं, उसे अक्षत कहते हैं। 



जब तिलक करने के बाद कच्चे चावल के दाने को मस्तकं पर लगाने से निश्चित एवं स्थिर स्वरूप वाले सार्थक सोच-विचार को उत्पन्न करके संचलन की क्षमता प्रदान करते हैं। इसलिए मनुष्य के मन में अच्छी बातों को अपने कर्म में कामयाबी के भाव को उत्पन्न करने में सहायक होने से चावल के दाने का उपयोग किया जाता है।



पूजा कर्म की थाली में तिलक लगाने के लिए कुमकुम, चन्दन आदि, कुसुम, मीठी वस्तु जैसे-गुड़ या मिठाई, पांच धान्य, मौली और चावल आदि होते हैं। इस तरह कोई भी पूजाकर्म करते समय पूजा बिना चावल के अधूरी समझी जाती हैं। चावलों को शुद्धता का स्वरूप मानते हुए पूजा कर्म में तिलक लगाने के बाद मस्तकं पर चावल दानों का उपयोग लिया जाता हैं। 



पूजा कर्म में कुमकुम के तिलक को लगाने के बाद में चावल के दानों को लगाने से आस-पास के वातावरण में उत्पन्न निराशाजनक सोच की क्षमता पर अंकुश लग सके और मनुष्य के मन में आशावादी सोच की क्षमता का विकास हो सके। इस तरह से चावल के दानों को तिलक लगाने के बाद मस्तकं में लगाने पर आशावादी सोच क्षमता का संचार होकर निराशाजनक सोच की क्षमता पर विजय पा सके और अपने मन को एक जगह पर केंद्रित कर पावे।



ज्योतिष शास्त्र के अनुसार:-ज्योतिष शास्त्र में चावल व मन का कारक चन्द्रमा ग्रह को माना जाता हैं, चावल की उत्पत्ति जल में होती हैं, उसी तरह मन की गति भी पानी की तरह चंचल होती हैं, जो कि हर समय चलायमान होता हैं, जिससे मन में कई तरह के विचारों का जन्म होता हैं। जब चावल के दाने को मस्तकं पर धारण करने पर मन में जल के भाव से शीतलता मिल जाती हैं।




चावल के दाने को मस्तकं पर नहीं लगाने पर:-जब पूजा-कर्म करते समय केवल कुमकुम का तिलक मस्तकं और चावल के दाने को मस्तकं पर नहीं लगाते है, तब यह पूजा-कर्म के विपरीत होता हैं, मनुष्य के मन में आशावादी भावना जागृत नहीं हो पाती हैं और मन के अंदर बुरे विचारों का जन्म होने लगता हैं, जिससे मनुष्य का मन भटकने लगता हैं और उसको शांति नहीं मिल पाती हैं, इसलिए पूजा-कर्म करते समय मस्तकं पर तिलक लगाने के बाद में चावल के दानों को लगाना चाहिए। मनुष्य को पूजा-कर्म करते समय अपने मस्तकं पर तिलक लगाने के बाद में अवश्य ही चावल के दानों को लगाना चाहिए।



उपरोक्त बातों की जानकारी के आधार पर तिलक में चावल के दाने को माथे पर लगाने का महत्त्व सिद्ध होता हैं।