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Wednesday, April 10, 2024

एकादशी के दिन चावल क्यों नहीं खाए जाते हैं, जानें वैज्ञानिक और धार्मिक कारण(Why rice is not eaten on Ekadashi, know scientific and religious reasons)


एकादशी के दिन चावल क्यों नहीं खाए जाते हैं, जानें वैज्ञानिक और धार्मिक कारण (Why rice is not eaten on Ekadashi, know scientific and religious reasons):-पद्मपुराण के अनुसार:-महीने में वर्णित तीस तिथियों में से एकादशी तिथि का स्वामी भगवान श्रीविष्णुजी के स्वरूप को माना जाता है। भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना एकादशी तिथि को करना एक तरह से पुण्य कार्य होता हैं, जिससे भगवान श्रीविष्णुजी का आशीर्वाद मिल सके और पूर्ण श्रद्धा भाव रखते हुए जो भी मनुष्य अपने मन मन्दिर में भगवान श्रीविष्णुजी की छवि को धारण करते हुए सच्चे मन से विश्वास से पूजा-अर्चना करते हैं, उन पूजा-अर्चना करने वाले मनुष्य को जीवन के जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती हैं और उनका उद्धार भी हो जाता है। जो मनुष्य एकादशी तिथि को अपने सामर्थ्य के अनुसार किसी ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान के रूप में अन्न, गोदान, दक्षिणा आदि करते हैं, उनको हजारों अश्वमेघ यज्ञों के समान पुण्य का फल मिल जाता हैं, जो इस दिन बिना पानी को पिये हुए व्रत को करते है, उनको ज्यादा पुण्य मिलता हैं।



Why rice is not eaten on Ekadashi, know scientific and religious reasons







एकादशी तिथि के दिन नहीं करने योग्य कार्य:-मनुष्य को एकादशी तिथि के दिन निम्नलिखित कार्य नहीं करना चाहिए-



◆जिन मनुष्य के द्वारा उपवास करने से सम्बंधित परेशानी होती हैं, उन मनुष्य को शुद्ध सदाचार आचरणों को रखना चाहिए।



◆मनुष्य को धर्म एवं नीति के विरुद्व आचरणों को करना चाहिए।



◆मनुष्य को किसी दूसरे मनुष्य की वस्तुओं जैसे-धनादि का हरण नहीं करना चाहिए।



◆मनुष्य को नीति के विरुद्ध असत्य वचनों को नहीं बोलना चाहिए।



◆दूसरों के द्वारा व्यापक नियमों के विरुद्ध कार्य को मनुष्य को नहीं करना चाहिए।



◆मनुष्य को वेद, देवता और ब्राह्मणों की बुराई नहीं करनी चाहिए।



◆मनुष्य को निंद्रा और स्त्री के साथ कामवासना में लिप्त नहीं रहना चाहिए।



◆मनुष्य को मछली, सुआ, प्याज, लहसून, मांस, अंडा आदि को भोजन के रूप में एकादशी तिथि के दिन नहीं खाना चाहिए। 



◆अन्न को भी नहीं ग्रहण करना चाहिए।



◆मनुष्य एकादशी तिथि के दिन किसी दूसरे मनुष्य के साथ छल-कपट भाव नहीं रखना चाहिए।



◆मनुष्य को एकादशी तिथि के दिन चावल से बनी हुई कोई भी वस्तु एवं चावल का भोजन के रूप में उपयोग नहीं करना चाहिए।




प्राचीन समय से मनुष्यों के द्वारा:-बताया गया है कि चावल या चावल से बनी हुई कोई भी वस्तु को भोजन के रूप में एकादशी तिथि के दिन ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस तरह के पुराने विचारों को आज तक भी मनुष्यों अनुसरण करते हैं, इस तरह की विचारधारा के पीछे क्या कारण हैं? उसको जानने की इच्छा प्रत्येक मनुष्यों को होती है।




चावल की उत्पत्ति के विषय में पौराणिक कथा:-प्राचीन समय में महर्षि मेधा के द्वारा किये गए कार्यों से संसार में बहुत त्राहि-त्राहि होने से माता आदिशक्ति की आराधना करने से आदिशक्ति ने अपना उग्र रूप को धारण किया था, इस तरह अपने क्रोधरूपी उग्र रूप से डरकर भागने लगते हैं, इस तरह माता आदिशक्ति के गुस्से की ज्वाला के डर से भागते-भागते उनसे बचने के लिए जगह ढूंढने लगते हैं, अंत में उनकी बुद्धि कार्य करती हैं, महर्षि मेधा ने तपस्या शक्ति के प्रभाव से अपने देह को त्याग दिया और अपनी बुद्धि या धारणा शक्ति से पृथ्वी माता की गोद में विलीन हो गई।



वही मेधा या बुद्धि जौ और चावल के रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न हुई थी। जिस दिन मेधा जौ एवं चावल के रूप में उत्पन्न हुई वह दिन एकादशी तिथि का दिन था। इस तरह महर्षि की मेधा शक्ति ही जौ एवं चावल हैं, जो चेतना एवं प्राण युक्त हैं। इसलिए एकादशी तिथि के दिन चावल को खाना महर्षि मेधा की देह के छोटे-छोटे हड्डियों और चमड़े के बीच का मुलायम और लचीला भाग के काट-छांटकर खाने की तरह ही माना गया हैं, इसलिए जीवनीशक्ति से युक्त जौ और चावल को माना गया है।




धर्मशास्त्रों के कारण:-चावल की पैदाइस जल में होती हैं। चावल की पैदाइस के लिए दूसरी धान्य फसलों की तुलना में बहुत ही जल की आवश्यकता होती हैं। इस तरह चावल का रंग सफेद होता हैं, जो कि ज्योतिष शास्त्र में सफेद रंग चन्द्रमा ग्रह का होता हैं और जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता हैं।




मन का प्रतिनिधित्व भी चन्द्रमा ग्रह करता हैं। इस तरह आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा आदि पाँच ज्ञानेंद्रियों के द्वारा भौतिक विषयों की जानकारी मिलती हैं और हाथ, पैर, वाणी, गुदा और उपस्थ आदि पाँच कर्मेन्द्रियों के द्वारा शरीर के कार्यों को किया जाता हैं। इस समस्त कार्यों को संपादित करने में मन का सहयोग होता हैं और मन के नियंत्रण से ही कार्य पूर्ण होते हैं। इस तरह शरीर के अंगों के प्रतिनिधि पर मन का पूर्ण स्वामित्व होता हैं। इस तरह चन्द्रमा जल, रस और मन की कल्पना के साथ स्पष्ट सम्बन्ध को करने वाले होते है, इस कारण से कर्क राशि, वृश्चिक राशि एवं मीन राशि आदि जलतत्त्व राशि प्रधान मनुष्य मन की कल्पना में खोये रहने वाले होते हैं, जिससे अक्सर दूसरे मनुष्य के द्वारा स्वार्थ पूर्ति करके मनुष्य को आश्वासन देकर मुकर जाते हैं।




मनुष्य को एकादशी तिथि के दिन व्रत को पूर्ण करने के लिए पूरे दिन भर बिना जल को ग्रहण करके पूर्ण करना होता हैं। इस तरह मनुष्य को अपने शरीर में जल की मात्रा को सीमित करना होता हैं, जिससे व्रत को पूर्ण करने में मदद मिल जावें। शरीर में जल की मात्रा कम होने पर मन में पवित्रता एवं अच्छी सोच को अपनाने में बढ़ोतरी होती हैं। जिससे व्रत पूर्ण रूप से संपन्न हो सके।




देवर्षि नारदजी के मतानुसार:-प्राचीन काल में ब्रह्माजी के मानस पुत्र श्रीदेवर्षि नारदजी ने बिना जल को पिये हुए एक हजार वर्षों तक भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-उपासना करते हुए व्रत को किया था। इस तरह वैष्णव धर्म में सबसे उत्तम एकादशी व्रत को माना जाता है। मन की प्रवृत्ति चंचल होती हैं, जिससे मनुष्य का ध्यान को भटका सकता हैं और मन की गति को नियंत्रित करने के लिए एकादशी व्रत के दिन मनुष्य को चावल नहीं खाने को शास्त्रों में बताया हैं।





वैज्ञानिक आधार:-वैज्ञानिक आधार पर एकादशी तिथि के दिन चावल नहीं खाना चाहिए, वैज्ञानिक आधार पर चावल की पैदाइश का आधार जल होता हैं और चावल जल के द्वारा परिपूर्ण होने से जल की मात्रा में अधिकता होती हैं। जलतत्व पर चन्द्रमा को कारक माना जाता हैं, जिससे जलतत्व पर ज्यादा असर चन्द्रमा का पड़ता है। चावल जल से परिपूर्ण होने से मनुष्य की देह में जल की मात्रा ज्यादा बढ़ोतरी होने लगती हैं और मनुष्य का अस्थिर मन पर नियंत्रण नहीं होता हैं, इस तरह मनुष्य के अस्थिर मन के भटकने से अनेक तरह के विचारों की उत्पत्ति होने लगती हैं और मनुष्य का मन एकादशी तिथि के व्रत के आचार-व्यवहार का शास्त्रानुसार विधानों को करने में विघ्नों को उत्पन्न करके उन विधानों को पूर्ण नहीं करने देता है।




चित्त की एकाग्रता के आवेग पर पूर्णरूपेण नियंत्रण करते हुए वास्तविक या सत्वगुण प्रधान मन में उत्पन्न होने वाली चेष्टा का निर्वाह करना बहुत ही जरूरी होता हैं, इसलिए मनुष्य को एकादशी तिथि के व्रत के दिन चावल को एवं चावल से बनी हुई वस्तुओं को खाना मना किया गया हैं।