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Wednesday, May 22, 2024

पूजा-पाठ आदि शुभ कार्यों में मुख पूर्व दिशा में क्यों करते हैं? (Why do we face east during auspicious activities like worship etc?)

पूजा-पाठ आदि शुभ कार्यों में मुख पूर्व दिशा में क्यों करते हैं? (Why do we face east during auspicious activities like worship etc?):-सूर्य देव का उदय पूर्व दिशा में होता है और उगते हुए सूर्य की किरणों का धर्म शास्त्रों में बहुत ही महत्त्व बताया हैं, साथ ही विज्ञान के अनुसार भी महत्त्व होता हैं।




Why do we face east during auspicious activities like worship etc?



पूजा-पाठ आदि शुभ कार्यों में मुख पूर्व दिशा में क्यों करते हैं?



अर्थववेद के अनुसार पूर्व दिशा का महत्त्व:-अर्थववेद में इस तरह बताया हैं-



उद्यन्त्सूर्यो नुदतां मृत्युपाशान्। (अर्थववेद १७/१/३०)



अर्थात्:-जब सूर्य उगता हैं, तो उसके उगने पर उसकी तेज रश्मियों में समस्त प्रकार की व्याधियों को उत्पन्न करने वाले दोषों का शमन करने की ताकत होती हैं, जिससे मनुष्य को होने वाली मृत्यु से सम्बंधित व्याधियों का अंत करने एवं स्वास्थ्य को उत्तम रखने के गुण होते हैं।



अर्थववेद में दूसरी जगह पर भी पूर्व दिशा का महत्त्व:-अर्थववेद में दूसरी जगह पर इस तरह बताया हैं-


सूर्यस्त्वाधिपतिर्मृत्यो रूदायच्छतु रश्मिभिः।


अर्थात्:-मनुष्य को अपनी मृत्यु के बंधनों को तोड़ने के लिए सूर्य के प्रकाश से संपर्क बनाए रखना चाहिए।



एक दूसरे जगह पर:-इस तरह कहा गया हैं-


मृत्योः पड्वीशं अवमुंचमानः।


माच्छित्था सूर्यस्य संदृशः।।


अर्थात्:-जिस तरह देवता देवलोक में निवास करते हैं, उसी तरह जो कि सूर्य की रोशनी में रहता है, वह भी उस देवलोक की तरह सुख एवं आनंद पूर्वक निवास करके जीवन को व्यतीत करने वाले होते हैं।



भगवान श्रीचक्रपाणी जी के स्वरूप का ही अंश सूर्य को प्रत्यक्ष रूप में माना जाता है। ब्रह्माजी के स्वरूप में सूर्य को आदित्य रूप में माना जाता है। भगवान सूर्यदेव की पूजा-अर्चना करने से स्पष्ट रूप से फल की प्राप्ति होती है और मन की समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती हैं, इस तरह एकमात्र सूर्यदेव के द्वारा ही संभव होता हैं।



सूर्योपनिषद के अनुसार:-सूर्योपनिषद के अनुसार ऋषि-मुनि, गंधर्व और समस्त तरह के देव का निवास सूर्य की पड़ने वाली किरणों में होता है।



सभी तरह के धर्म विहित कार्य, पारमार्थिक सत्ता या वास्तविक तथ्य और अच्छा व्यवहार में सूर्य का ही अंश माना गया है। इसी कारण सूर्य की रश्मियों और उनके प्रभाव की प्राप्ति के लिए शुभ कार्य पूर्व दिशा की ओर मुख करके संपन्न कराने का व्यवहार प्रयोजन बताया गया है।




ज्योतिष के दृष्टिकोण के अनुसार:-सूर्यदेव को नौ ग्रहों में राजा का पद प्राप्त हैं, इसलिए जब कोई मनुष्य सूर्यदेव पूजा-पाठ आदि शुभ कार्य किया जाता हैं, तो सूर्यदेव की प्रिय दिशा पूर्व होती हैं और पूर्व दिशा में मुख करके पूजा-पाठ आदि करने से सूर्यदेव खुश होते हैं और अपनी छत्र-छाया और आशीर्वाद प्रदान करते हैं, इसलिए मनुष्य को पूर्व दिशा में मुख करके पूजा-पाठ करने से शुभ कार्य मिलता हैं।




वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार:-जब सूर्यदेव का पूर्व दिशा में उदय होता हैं, तो सूर्यदेव की पड़ने वाली तीक्ष्ण किरणों में पराबैगनी किरणों या अल्ट्रा वॉयलेट किरणों का प्रादुर्भाव होता हैं। यह पराबैंगनी किरणों में व्याधियों के कीटाणुओं के विरुद्ध लड़ने की क्षमता होती हैं, जिससे पराबैंगनी किरणें इन व्याधियों को उत्पन्न करने वाले कीटाणुओं को अपने तेज प्रभाव से खत्म कर देती हैं, जिससे व्याधि नहीं हो पाती हैं।




सूर्य रश्मियों में अलग-अलग ऊर्जा किरणों पाया जाना:-सूर्य के उदय होने पर उसमें सात तरह की ऊर्जा किरणों का उदय होता हैं, जो इस तरह हैं- यह उदय होती किरणें नवग्रहों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो कि मनुष्य शरीर को बीमारी से रक्षा करते हुए ताजगी प्रदान करने में अपना अहम रोल अदा करती हैं।



1.लाल रंग की ऊर्जा किरणे:-से किसी व्यक्ति, वस्तु, काम, बात, विषय आदि के प्रति मन में होने वाले मोह की निशानी होती हैं प्रतीक है। यह बहुत ही गर्म, गाढ़े और लसीले तरल पदार्थ से होने वाली व्याधियों को समाप्त करके जोश भरने वाला होता हैं। 




2.पीले रंग की ऊर्जा किरणे:-से किसी व्यक्ति की बढ़ाई और सोचने-समझने एंव निश्चय करने की मानसिक शक्ति की निशानी होती हैं। मन पर काबू रखने, सर्वोत्तम स्थिति जो अनुकरणीय हो और भलाई करने की निशानी होने के साथ-साथ और उष्ण एवं गाढ़े और लसीले तरल पदार्थ से होने वाली व्याधियों को समाप्त करने वाला है। मन को आनंद और मौज, समझने की शक्ति और क्रियाशील होने का प्रतीक होता हैं।




3.हरे रंग की ऊर्जा किरण:-से व्यक्ति का मन हमेशा खिला-खिला हुआ और संतुष्ट रहता हैं। 




4.नीले रंग की ऊर्जा किरण:-से मनुष्य को तसल्ली मिलती हैं। यह शीतलता देने वाला, पित्त एवं ताप व्याधि का नाशक है। किसी बात को जानने के लिए मन ही मन में बार-बार गहनता  सोचने का प्रतीक हैं।




5.आसमानी रंग की ऊर्जा किरण:-से मनुष्य को सभी तरह के ऐशो-आराम के साथ अधिक रुपये-पैसों और सोचने-समझने और तय करने की मानसिक ताकत का प्रतीक हैं। यह शरीर में ताजगी, जोश और शीतलता प्रदान करने का प्रतीक हैं। यह मनुष्य के शरीर में वायु से होने विकार की व्याधि का नाश करके खून में मिली अशुद्धि को शुद्ध करने वाला होता हैं।




6.बैंगनी रंग की ऊर्जा किरण:-से अनेक तरह के भाव को उत्पन्न करने का प्रतीक हैं। यह शीतल, लाल रक्त कणिकाओं को बढाने के साथ धीरे-धीरे शरीर को नष्ट करने वाले तपेदिक रोग में फायदा देने वाली हैं। 



7.नारंगी रंग की ऊर्जा किरण:-से तन्दुरुस्ती और सोचने-समझने और तय करने की मानसिक शक्ति का प्रतीक हैं।  आरोग्य और बुद्धि का प्रतीक है। मन की कल्पना से उत्पन्न होने वाली व्याधियों में सामर्थ्य और ज्यादा पाने की इच्छा शक्ति का प्रतीक होता हैं। यह उष्ण और गाढ़े और लसीले तरल पदार्थ से होने वाली व्याधियों को समाप्त करने वाला होता हैं। 



 

जो विभिन्न तरह की क्षमताओं से युक्त होती हैं। इन क्षमताओं के कारण ही धार्मिक अनुष्ठान सहज ही सफल हो जाते हैं। सूर्य रश्मियों की विभिन्न क्षमताओं से युक्त ऊर्जाओं को प्राप्त करने के लिए ही सूर्य के उगने के समय पूर्व दिशा की ओर मुख करके सूर्यदेव की अरदास करते हुए उनकी भक्ति करना, सूर्य नमस्कार, संध्या के वंदन या उनका गुणगान करने और हवन-पूजा आदि किए जाते हैं। शरीर के समस्त तरह अवयव के द्वारा प्राप्त करते हैं।