उमा महेश्वर स्तोत्रं अर्थ सहित महत्त्व(Uma Maheshwara Stotram meaning and importance):-माता पार्वती जी और भगवान शिवजी की उपासना एक साथ करने के लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने कई स्तोत्रों की रचना की थी। उनमें ऋषिवर शंकराचार्य जी भगवान शिवजी एवं माता गौरी को खुश करने एवं उनका आशीर्वाद पाने के लिए उमा महेश्वर स्तोत्रं की रचना की थी। उमा महेश्वर स्तोत्रं में उमा माता एवं शिवजी के गुणों का गुणगान एक साथ मिलता हैं, जो मनुष्य उमा माता एवं शिवजी की उपासना अलग-अलग नहीं कर पाते हैं, उनको उमा महेश्वर स्तोत्रं का वांचन करने से वही फल की प्राप्ति होती हैं, जो की दोनों की पूजा करने पर प्राप्त होता हैं। इसलिए श्री शंकराचार्य जी मनुष्यों के लिए उमा महेश्वर स्तोत्रं की रचना की थी। मनुष्य को नियमित रूप से उमा महेश्वर स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।
उमा महेश्वर स्तोत्रं:-महर्षि शंकराचार्य द्वारा रचित उमा महेश्वर का वांचन करने से मनुष्य की समस्त तरह की मनोकामना की पूर्ति होती है, इस स्तोत्रं का वांचन इस तरह हैं:
।।अथ श्री उमा महेश्वर स्तोत्रं।।
नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां
परस्पराश्लिष्ट वपुर्धराभ्याम।
नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।१।।
नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां
नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम।
नारायणेनार्चितपादुकाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम।।२।।
नमःशिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां
विरिञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम।
विभूतिपाटिरविलेपनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।३।।
नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां
जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम।
जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।४।।
नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्याम
पञ्चाशरी पञ्जररञ्चिताभ्याम।
प्रपञ्च सृष्टिस्थिति संहृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।५।।
नमः शिवाभ्यामतिसुन्दराभ्याम
अत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम।
अशेषलोकैकहितङ्कराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।६।।
नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां
कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम।
कैलाशशैलस्थितदेवताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।७।।
नमः शिवाभ्यामशुभापहाभ्याम
अशेषलोकैकविशेषिताभ्याम।
अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसंभृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।८।।
नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां
रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम।
राका शशाङ्काभ मुखाम्बुजाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।९।।
नमः शिवाभ्यां जटिलन्धराभ्यां
जरामृतिभ्याम चविवर्जिताभ्याम।
जनार्दनाब्जोद्भवपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।१०।।
नमःशिवाभ्यां विषमेशणाभ्यां
बिल्वच्च्हदामल्लिकदामभृद्भ्याम।
शोभावती शान्तवतीश्वराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।११।।
नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्याम
जगत्त्रयीरशण बद्दहृद्भ्याम।
समस्त देवासुरपूजिताभ्याम
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।१२।।
स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं शिवपार्वतीभ्यां
भक्त्या पठेद्द्वादशकं नरो यः।
स सर्व्सौभाग्य फलानि भुङ्क्ते
शतायुरन्ते शिवलोकमेति।।१३।।
।।इति श्री शङ्कराचार्य कृत उमा महेश्वर स्तोत्रं।।
नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां
परस्पराश्लिष्ट वपुर्धराभ्याम।
नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।१।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! मैं नतमस्तक होकर आपका अभिवादन करता हूँ! आप सबका मंगल करने वाले हो, आप हमेशा नये युवावस्था के लक्षणों से युक्त हो, एक-दूसरे को गले लगाकर लिपटे हुए देह से युक्त हो, मैं नतमस्तक होकर आपका अभिवादन करता हूँ! आपकी पताका पर पुंगव का निशान है, ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां
नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम।
नारायणेनार्चितपादुकाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम।।२।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! मैं नतमस्तक होकर आपका अभिवादन करता हूँ! जिनको सभी खुश करके आशीर्वाद पाने के लिए मन को एक जगह पर केंद्रित करके अभीष्ट सिद्धि की तपस्या करते हैं, मैं मन की इच्छाओं को पूरा करने वाले आशिर्वाद देने वाली को नमस्कार करता हूँ। जिनके पाद की इतनी महिमा हैं, भगवान नारायण भी उनकी विनय, श्रद्धा और समर्पण भाव से अर्चना करते हैं। ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
नमःशिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां
विरिञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम।
विभूतिपाटिरविलेपनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।३।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ! जिनकी सवारी के रूप में पुनीत पुंगव (बैल) है। ब्रह्मा, भगवान नारायण तथा इन्द्र भी भली-भाँति उनकी विनय, श्रद्धा और समर्पण भाव से अर्चना करते हैं। जिनके देह पर पुनीत भस्म और मलयज का लेप लगाया जाता हैं। ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां
जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम।
जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।४।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ! जो सम्पूर्ण विश्वगोलक के अधिपति हैं, जो समस्त जगत का पालन करने वाले स्वामी, जो सभी तरह के युद्ध आदि में अपने विरोधियों का दमन करके उन पर जीत हासिल करने वाले के समान स्वरूप हैं, जम्भारी अर्थात आकाशीय बिजली के समान तेज और हीरे के समान चमकीले शस्त्र कुलिस के स्वामी वज्रधर और दूसरे सभी प्रमुखों द्वारा आगे बढ़कर सादर अभिनंदन करने वाले का नतमस्तक होकर नमन करता हूँ। ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्याम
पञ्चाशरी पञ्जररञ्चिताभ्याम।
प्रपञ्च सृष्टिस्थिति संहृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।५।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ! सभी तरह की संकटों और बीमारी को दूर करने में जो मुख्य औषधि के स्वामी हैं, जो पंचाक्षरी मन्त्र की ध्वनि से परिपूर्ण जगह पर रहने पर कौन आनन्दित होता हैं। जो ब्रह्माण्ड रचना की अवस्था जिसमें उद्गम, परवरिश और सर्वनाश करने वाले हैं। ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
नमः शिवाभ्यामतिसुन्दराभ्याम
अत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम।
अशेषलोकैकहितङ्कराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।६।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ! जो अपने उत्तम सौंदर्य से युक्त होकर सौंदर्य में डूबे हुए हैं, जो सभी के साथ बहुत अनुराग करने वाले है, हृदय कमल की तरह है, जो हमेशा सभी लोकों के लोगों के कल्याण करते हैं। ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां
कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम।
कैलाशशैलस्थितदेवताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।७।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ! जो आप इस कलियुग में किये हुए धर्म के विरुद्ध आचरणों के फल के अस्तित्व को नष्ट करने वाले हो, दिव्य जोड़ी जहां एक खोपड़ी को धारण करते हैं और दूसरा सुरुचिपूर्ण कपड़ों के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले महान देवता और देवी जो सबका कल्याण करने वाले हैं, ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
नमः शिवाभ्यामशुभापहाभ्याम
अशेषलोकैकविशेषिताभ्याम।
अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसंभृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।८।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ! जो बुराई और नुकसान करने वाले का अस्तित्व को नष्ट करते हैं, जो तीनों लोक अर्थात पृथ्वीलोक, स्वर्गलोक एवं पाताललोक में निवास करने वाले प्राणयुक्त जीव-जंतु में विलक्षण गुणों से युक्त सर्वोपरि सत्ताधारी हैं, जिनकी शक्ति की कोई सीमा नहीं है और जिन तक सोचने-समझने और निश्चय करने की मानसिक शक्ति के द्वारा बिना कोई हिचकिचाहट पहुंचा जा सकता है। (शास्त्र के अनुसार जिसमें आजीविका पर दिशा-निर्देश शामिल है) ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां
रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम।
राका शशाङ्काभ मुखाम्बुजाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।९।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ! आप परलोक से संबंधित सवारी पर आसीन हैं, आपके नेत्र रवि, सोम और हुताशन हैं (अग्नि का एक विशेषण वैश्वनार है) एवं आपका कमल जैसा मुखड़ा पूर्णमासी में पूरे आकार में उदित होते हुए चन्द्रमा के समान है। ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
नमः शिवाभ्यां जटिलन्धराभ्यां
जरामृतिभ्याम चविवर्जिताभ्याम।
जनार्दनाब्जोद्भवपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।१०।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ! आपकी तीन आंखें हैं, बिल्वपत्र और मल्लिका के फूलों से बनी मालाओं से सुशोभित (चमेली) कौन है शोभवती (जो देदीप्यमान दिखते है तथा संथावतेश्वर (भगवान जो महान शांति के साथ हैं) ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
नमःशिवाभ्यां विषमेशणाभ्यां
बिल्वच्च्हदामल्लिकदामभृद्भ्याम।
शोभावती शान्तवतीश्वराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।११।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ! जिनके बाल उलझे हुए हैं जो वृद्धावस्था और मृत्यु से अप्रभावित रहते हैं जनार्दन (भगवान विष्णु) और कमल (भगवान ब्रह्मा) से पैदा हुए व्यक्ति द्वारा पूजा की जाती हैं ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्याम
जगत्त्रयीरशण बद्दहृद्भ्याम।
समस्त देवासुरपूजिताभ्याम
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां।।१२।।
भावार्थ्:-हे भगवान शिव और देवी उमाजी! आप सभी जीवों की रक्षा करने वाले हो, मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ! तीनों लोक अर्थात देवलोक, पाताललोक और पृथ्वीलोक पर निवास करने वालों की सभी तरह से हिफाजत करने में समर्पित हो, सभी देवता और दानवों के द्वारा भगवान शिव एवं देवी उमा की अलौकिक युगल के रूप में विनय, श्रद्धा और समर्पण भाव से पूजन करते हैं। मैं ऐसे शिवजी एवं धरणीधर की तनुजा गिरिजा को मैं बार-बार नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ!
स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं शिवपार्वतीभ्यां
भक्त्या पठेद्द्वादशकं नरो यः।
स सर्व्सौभाग्य फलानि भुङ्क्ते
शतायुरन्ते शिवलोकमेति।।१३।।
भावार्थ्:-जो मनुष्य भगवान शिव और देवी उमाजी के गुणगान वाले उमा महेश्वर स्तोत्रं के बारह श्लोको का वांचन तीन समय अर्थात सुबह, दोपहर एवं सायंकाल पर करते हैं, उन भक्तों को समस्त तरह के सौभाग्य फल को प्राप्त करके उस फल को भोगते हैं और सौ वर्षों की आयु को भोग कर बार-बार जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर शिवलोक अर्थात भगवान शिव और देवी उमाजी के चरण की सेवा को प्राप्त करते हैं। मैं भगवान शिव और देवी उमाजी को बार-बार नतमस्तक होकर नमन करताहूँ।
।।इति उमामहेश्वर स्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
उमामहेश्वर स्तोत्रं का महत्त्व:-उमामहेश्वर स्तोत्रं का नियमित रूप से वांचन करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं, जिसके आधार पर महत्त्व सार्थक होता है।
1.सभी तरह के सौभाग्य को पाने हेतु:-जिन औरत को अपने पति का सुख व अखण्ड सौभाग्य को पाना चाहती है, वे इस स्तोत्र का नियमित वांचन करें।
2.दीर्घ आयु पाने हेतु:-जो मनुष्य पृथ्वी लोक में लंबे समय तक बगेर दुःख के जीना चाहते है, उनको इस स्तोत्र का वांचन करना चाहिए।
3.जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति पाने हेतु:-जो मनुष्य जन्म व मृत्यु के बंधन से छुटकारा चाहते है, वे इस स्तोत्र का नियमित वांचन करते है, तो उनको जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है और भगवान शिव व देवी पार्वती के निवास स्थान में शरण को पा लेते हैं।
4.सभी तरह की बीमारी मुक्ति:-शरीर की सभी की बीमारियों से मुक्ति का माध्यम यह स्तोत्र हैं।
5.सभी तरह के संकटों से छुटकारा हेतु:-मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन में आने संकटो, मुसीबतों और परेशानियों से राहत के लिए इस स्तोत्र का वांचन करना चाहिए।
6.जीवन में सभी तरह सुख पाने हेतु:-मनुष्य को अपने जीवनकाल में सभी तरह के ऐशो-आराम, सुख-शांति, धन-दौलत आदि को पाने के लिए इस स्तोत्र का वांचन करना चाहिए।